Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004715 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 15 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से सेणिए राया पच्चूसकालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! बाहिरियं उवट्ठाणसालं अज्ज सविसेसं परमरम्मं गंधोदगसित्त-सुइय-सम्मज्जिओवलित्तं पंचवण्ण-सरससुरभि-मुक्क-पुप्फपुं-जोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डज्झंत-सुरभि-मघमघेंत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवर गंधियं गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरि-सवस-विसप्पमाणहियया तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से सेणिए राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्ता-सोगप्पगास-किंसुय-सुयमुह-गुंजद्ध-बंधुजीवग-पारावयचलणनयण-परहुय-सुरत्तलोयण- जासुमणकुसुम- जलियजलण- तवणिज्ज- कलस- हिंगुलयनिगर- रूवाइरेगरेहंत-सस्सिरीए दिवायरे अहकमेण उदिए तस्स दिनकर-करपरंपरोयारपारद्धंमि अंधयारे बालातव-कुंकु-मेण खचितेव्व जीवलोए लोयण-विसयाणुयास-विगसंत-विसददंसियम्मि लोए कमलागर-संडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते सयणिज्जाओ उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव अट्टणसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ।... ...अनेगवायाम-जोग्ग-वग्गण-वामद्दण-मल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधवरतेल्लमादिएहिं पीणणिज्जेहिं दीवणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विंहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भंगेहिं अब्भंगिए समाणे, तेल्लचम्मंसि पडिपुण्ण-पाणिपाय-सुकुमालकोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पुट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणेहिं निउणसिप्पोवगएहिं जियपरिस्समेहिं अब्भंगण-परिमद्दणुव्वलण-करणगुणनिम्माएहिं, अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए–चउव्विहाए संवाहणाए संवाहिए समाणे अवगयपरिस्समे नरिंदे अट्टणसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ,... ...उवागच्छित्ता मज्जणघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समत्तजालाभिरामे विचित्त-मणि-रयण-कोट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडबंसि नाना-मणिरयण-भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहनिसण्णे सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं य पुणो पुणो कल्लाणग-पवर-मज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणग-पवर-मज्जणावसाणे पम्हल-सुकुमाल-गंधकासाइलूहियंगे अहय-सुमहग्घ-दूसरयण-सुसंवुए सरस-सुरभि-गोसीस-चंदणानुलित्तगत्ते सुइमाला-वन्नगविलेवणे आविद्ध-मणिसुवण्णे कप्पिय-हारद्धहार -तिसरय-पालंब-पलंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहे पिणद्धगेवेज्ज-अंगुलेज्जग-ललियंगयललियकयाभरणे नानामणि-कडग-तुडिय-थंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए कुंडलुज्जोइयाणणे मउड-दित्तसिरए हारोत्थय-सुकय-रइयवच्छे मुद्दिया-पिंगलं-गुलीए पालंब-पलंब माण-सुकय-पडउत्तरिज्जे नानामणिकनगरयण-विमल-महरिह-निउणोविय-मिसिमिसिंत-विरइय-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-लट्ठ-संठिय-पसत्थ-आविद्ध-वीरवलए, किं बहुणा?... ... कप्परुक्खए चेव सुअलंकिय-विभूसिए नरिंदे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे मंगल-जय-सद्द-कयालोए गणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-मंति-महामंति- गणग -दोवारिय- अमच्च- चेड-पीढमद्द- नगर-निगम -सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाह-दूय-संधिवालसद्धिं संपरिवुडे धवलमहामेहनिग्गए विव गहगणदिप्पंत-रिक्कतारागणाण मज्झे ससि व्व पियदंसणे नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासनवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे। तए णं सेणिए राया अप्पणो अदूरसामंते उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अट्ठ भद्दासणाइं–सेयवत्थ-पच्चुत्थुयाइं सिद्धत्थय-मंगलोवयार-कय-संतिकम्माइं–रयावेइ, रयावेत्ता नानामणिरतणमंडियं अहियपेच्छणिज्जरूवं महग्घवरपट्टणुग्गयं सण्ह-बहुभत्तिसय-चित्तठाणं ईहामिय-उसभ-तुरय-नर-मगर-विहग-वालग-किन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं सुखचियवरक-णगपवरपेरंतदेसभागं अब्भिंतरियं जवणियं अंछावेइ, अंछावेत्ता अत्थरग-मउअ-मसुरग-उत्थइयं धवलवत्थ-पच्चुत्थुयं विसिट्ठअंगसु-हफासयं सुमउयं धारिणीए देवीए भद्दासणं रयावेइ, रयावेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! अट्ठंगमहानिमित्त-सुत्तत्थपाढए विविहसत्थकुसले सुमिणपाढए सद्दावेह, सद्दावेत्ता एयमाणतियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसासेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहि-यया करयल-परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं देवो! तह त्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेंति, सेणियस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमेंति, रायगिहस्स नगरस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव सुमिणपाढगगिहाणि तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुमिणपाढए सद्दावेंति। तए णं ते सुमिणपाढगा सेणियस्स रन्नो कोडुंबियपुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिया जाव हरिस-वस-विसप्पमाणहियया ण्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पाय-च्छित्ता अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा हरियालिय-सिद्धत्थय-कयमुद्धाणा सएहिं-सएहिं गेहेहिंतो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता रायगिहस्स नगरस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव सेणियस्स भवनवडेंसग दुवारे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एगयओ मिलंति, मिलित्ता सेणियस्स रन्नो भवनवडेंसग दुवारेणं अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव सेणिए राया, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति, सेणिएणं रन्ना अच्चिय-वंदिय-पूइय-माणिय-सक्कारिय-सम्माणिया समाणा पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वन्नत्थेसु भद्दासनेसु निसीयंति। तए णं से सेणिए राया जवणियंतरियं धारिणिं देविं ठवेइ, ठवेत्ता पुप्फफलपडिपुण्णहत्थे परेणं विनएणं ते सुमिणपाढए एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! धारिणी देवी अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि जाव महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुद्धा। तं एयस्स णं देवानुप्पिया! उरालस्स जाव सस्सिरीयस्स महासुमिणस्स के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ? तए णं ते सुमिणपाढगा सेणियस्स रन्नो अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया तं सुमिणं सम्मं ओगिण्हंति ओगिण्हित्ता ईहं अनुप्पविसति, अनुप्पविसित्ता अन्नमन्नेण सद्धिं संचालेंति, संचालेत्ता तस्स सुमिणस्स लद्धट्ठा पुच्छियट्ठा गहियट्ठा विनिच्छियट्ठा अभिगयट्ठा सेणियस्स रन्नो पुरओ सुमिणसत्थाइं उच्चारेमाणा-उच्चारेमाणा एवं वयासी–एवं खलु अम्हं सामी! सुमिणसत्थंसि बायालीसं सुमिणा, तीसं महासुमिणा–बावत्तरि सव्वसुमिणा दिट्ठा। तत्थ णं सामी! अरहंतमायरो वा चक्कवट्टिमायरो वा अरहंतंसि वा चक्कवट्टिंसि वा गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं तीसाए महासुमिणाणं इमे चोद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुज्झंति, तं जहा– | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने प्रभात काल के समय कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रिय ! आज बाहर की उपस्थानशाला को शीघ्र ही विशेष रूप से परम रमणीय, गंधोदक से सिंचित, साफ – सूथरी, लीपी हुई, पाँच वर्णों के सरस सुगंधित एवं बिखरे हुए फूलों के समूह रूप उपचार से युक्त, कालागुरु, कुंदुरुक्क, तुरुष्क था धूप के जलाने से महकती हुई, गंध से व्याप्त होने के कारण मनोहर, श्रेष्ठ सुगंध के चूर्ण से सुगंधित तथा सुगंध की गुटिका के समान करो और कराओ। मेरी आज्ञा वापिस सौंपो। तत्पश्चात् वे कौटुम्बिक पुरुष श्रेणिक राजा द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हर्षित हुए। उन्होंने आज्ञानुसार कार्य करके आज्ञा वापिस सौंपी। तत्पश्चात् स्वप्न वाली रात्रि के बाद दूसरे दिन रात्रि प्रकाशमान प्रभात रूप हुई। प्रफुल्लित कमलों के पत्ते विकसित हुए, काले मृग के नेत्र निद्रारहित होने से विसस्वर हुए। फिर वह प्रभात पाण्डुर – श्वेत वर्ण वाला हुआ। लाल अशोक की कान्ति, पलाश के पुष्प, तोते की चोंच, चिरमी के अर्धभाग, दुपहरी के पुष्प, कबूतर के पैर और नेत्र, कोकिला के नेत्र, जासोद के फूल, जाज्वल्यमान अग्नि, स्वर्णकलश तथा हिंगूल के समूह की लालीमा से भी अधिक लालीमा से जिसकी श्री सुशोभित हो रही है, ऐसा सूर्य क्रमशः उदित हुआ। सूर्य की किरणों का समूह नीचे उतरकर अंधकार का विनाश करने लगा। बाल – सूर्य रूपी कुंकुम से मानो जीवलोक व्याप्त हो गया। नेत्रों के विषय का प्रसार होने से विकसित होने वाला लोक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा। कमलों के वन को विकसित करने वाला तथा सहस्र किरणों वाला दिवाकर तेज से जाज्वल्यमान हो गया। शय्या से उठकर राजा श्रेणिक जहाँ व्यायामशाला थी, वहीं आता है। आकर – व्यायामशाला में प्रवेश करता है। प्रवेश करके अनेक प्रकार के व्यायाम, योग्य, व्यामर्दन, कुश्ती तथा करण रूप कसरत से श्रेणिक राजा ने श्रम किया, और खूब श्रम किया। तत्पश्चात् शतपाक तथा रसस्त्रपाक आदि श्रेष्ठ सुगंधित तेल आदि अभ्यंगनों से, जो प्रीति उत्पन्न करने वाला अर्थात् रुधिर आदि धातुओं को सम करने वाले, जठराग्नि को दीप्त करने वाले, दर्पणीय अर्थात् शरीर का बल बढ़ाने वाले, मदनीय, मांसवर्धक तथा समस्त इन्द्रियों को एवं शरीर को आह्लादित करने वाले थे, राजा श्रेणिक ने अभ्यंगन कराया। फिर मालिश किये शरीर के चर्म को, परिपूर्ण हाथ – पैर वाले तथा कोमल तल वाले, छेक दक्ष, बलशाली कुशल, मेधावी, निपुण, निपुण शिल्पी परिश्रम को जीतने वाले, अभ्यंगन मर्दन उद्वर्त्तन करने के गुणों से पूर्ण पुरुषों द्वारा अस्थियों को सुखकारी, मांस को सुखकारी, त्वचा को सुखकारी तथा रोमों को सुखकारी – इस प्रकार चार तरह की बाधना से श्रेणिक के शरीर का मर्दन किया गया। इस मालिश और मर्दन से राजा का परिश्रम दूर हो गया – थकावट मिट गई। वह व्यायामशाला से बाहर नीकला। श्रेणिक राजा जहाँ मज्जन – गृह था वहाँ आता है। मज्जनगृह में प्रवेश करता है। चारों ओर जालियों से मनोहर, चित्र – विचित्र मणियों और रत्नों के फर्श वाले तथा रमणीय स्नानमंडप के भीतर विविध प्रकार के मणियों और रत्नों की रचना से चित्र – विचित्र स्नान करने के पीठ – बाजौठ पर सुखपूर्वक बैठा। उसने पवित्र स्थान से लाए हुए शुभ जल से, पुष्पमिश्रित जल से, सुगंध मिश्रित जल से और शुद्ध जल से बार – बार कल्याणकारी – आनन्दप्रद और उत्तम विधि से स्नान किया। उस कल्याणकारी और उत्तम स्थान के अंत में रक्षा पोटली आदि सैकड़ों कौतुक किये गए। तत्पश्चात् पक्षी के पंख के समान अत्यन्त कोमल, सुगंधित और काषाय रंग से रंगे हुए वस्त्र से शरीर को पोंछा। कोरा, बहुमूल्य और श्रेष्ठ वस्त्र धारण किया। सरस और सुगंधित गोशीर्ष चन्दन से शरीर पर विलेपन किया। शुचि पुष्पों की माला पहनी। केसर आदि का लेपन किया। मणियों के और स्वर्ण के अलंकार धारण किए। अठारह लड़ों के हार, नौ लड़ों के अर्धहार, तीन लड़ों के छोटे हार तथा लम्बे लटकते हुए कटिसूत्र से शरीर की शोभा बढ़ाई। कंठ में कंठा पहना। उंगलियों में अंगुठियाँ धारण की। सुन्दर अंग पर अन्यान्य सुन्दर आक्षरण धारण किए। अनेक मणियों के बने कटक और त्रुटिक नामक आभूषणों से उसके हाथ स्तंभित से प्रतीत होने लगे। अतिशय रूप के कारण राजा अत्यन्त सुशोभित हो उठा। कुंडलों के कारण उसका मुखमंडल उद्दीप्त हो गया। मुकुट से मस्तक प्रकाशित होने लगा। वक्षःस्थल हार से आच्छादित होने के कारण अतिशय प्रीति उत्पन्न करने लगा। लम्बे लटकते हुए दुपट्टे से उसने सुन्दर उत्तरासंग किया। मुद्रिकाओं से उसकी उंगलियाँ पीली दीखने लगीं। नाना भाँति की मणियों, सुवर्ण और रत्नों से निर्मल, महामूल्यवान्, निपुण कलाकालों द्वारा निर्मित, चमचमते हुए, सुरचित, भली – भाँति मिली हुई सन्धियों वाले, विशिष्ट प्रकार के मनोहर, सुन्दर आकार वाले और प्रशस्त वीर – वलय धारण किये। अधिक क्या कहा जाए ? मुकूट आदि आभूषणों से अलंकृत और वस्त्रों से विभूषित राजा श्रेणिक कल्पवृक्ष के समान दिखाई देने लगा। कोरंट वृक्ष के पुष्पों की माला वाला छत्र उसके मस्तक पर धारण किया गया। आजू – बाजू चार चामरों से उसका शरीर बींजा जाने लगा। राजा पर दृष्टि पड़ते ही लोग ‘जय – जय’ का घोष करने लगे। अनेक गणनायक, दंडनायक, राजा, ईश्वर, तलवर, मंत्री, महामंत्री, ज्योतिषी, द्वारपाल, अमात्य, चेट, पीठमर्द, नागरिक लोग, व्यापारी, सेठ, सेनापति, सार्थवाह, दूत और सन्धिपाल – इन सब से घिरा हुआ ग्रहों के समूह में देदीप्यमान तथा नक्षत्रों और ताराओं के बीच चन्द्रमा के समान प्रियदर्शन राजा श्रेणिक मज्जनगृह से इस प्रकार नीकला जैसे उज्ज्वल महामेघों में से चन्द्रमा नीकला हो। बाह्या उपस्थानशाला थी, वहीं आया और पूर्व दिशा की ओर मुख करके श्रेष्ठ सिंहासन पर आसीन हुआ। श्रेणिक राजा अपने समीप ईशानकोण में श्वेत वस्त्र से आच्छादित तथा सरसों के मांगलिक उपचार से जिनमें शान्तिकर्म किया गया है, ऐसे आठ भद्रासन रखवाता है। नाना मणियों और रत्नों से मंडित, अतिशय दर्शनीय, बहुमूल्य और श्रेष्ठनगर में बनी हुई कोमल एवं सैकड़ों प्रकार की रचना वाले चित्रों का स्थानभूत, ईहामृग, वृषभ, अश्व, नर, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, रुरु जाति के मृग, अष्टापद, चमरी गाय, हाथी, वनलता और पद्मलता आदि के चित्रों से युक्त, श्रेष्ठ स्वर्ण के तारों से भरे हुए सुशोभित किनारों वाली जवनिका सभा के भीतरी भाग में बँधवाई। धारिणी देवी के लिए एक भद्रासन रखवाया। वह भद्रासन आस्तरक और कोमल तकियों से ढ़का था। श्वेत वस्त्र उस पर बिछा हुआ था। सुन्दर था। स्पर्श से अंगों को सुख उत्पन्न करने वाला था और अतिशय मृदु था। राजा न कौटुम्बिक पुरुषों को बुलवाया और कहा – देवानुप्रियों ! अष्टांग महानिमित्त – तथा विविध शास्त्रों में कुशल स्वप्नपाठकों को शीघ्र ही बुलाओ और शीघ्र ही इस आज्ञा को वापिस लौटाओ। तत्पश्चात् वे कौटुम्बिक पुरुष श्रेणिक राजा द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हर्षित यावत् आनन्दित – हृदय हुए। दोनों हाथ जोड़कर दसों नखों को इकट्ठा करके मस्तक पर घूमा कर अंजलि जोड़कर ‘हे देव ! ऐसा ही हो’ इस प्रकार कहकर विनय के साथ आज्ञा के वचनों को स्वीकार करते हैं और स्वीकार करके श्रेणिक राजा के पास से नीकलते हैं। नीकलकर राजगृह के बीचोंबीच होकर जहाँ स्वप्नपाठकों के घर थे, वहाँ पहुँचते हैं और पहुँच कर स्वप्नपाठकों को बुलाते हैं। तत्पश्चात् वे स्वप्नपाठक श्रेणिक राजा के कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाये जाने पर हृष्ट – तुष्ट यावत् आनन्दितहृदय हुए। उन्होंने स्नान किया, कुलदेवता का पूजन किया, यावत् कौतुक और मंगल प्रायश्चित्त किया। अल्प किन्तु बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत किया, मस्तक पर दूर्वा तथा सरसों मंगल निमित्त धारण किये। फिर अपने – अपने घरों से नीकले। राजगृह के बीचोंबीच होकर श्रेणिक राजा के मुख्य महल के द्वार पर आए। एक साथ मिलकर श्रेणिक राजा के मुख्य महल के द्वार के भीतर प्रवेश किया। प्रवेश करके जहाँ बाहरी उपस्थानशाला थी और जहाँ श्रेणिक राजा था, वहाँ आए। आकर श्रेणिक राजा को जय और विजय शब्दों से बधाया। श्रेणिक राजा ने चन्दनादि से उनकी अर्चना की, गुणों की प्रशंसा करके वन्दन किया, पुष्पों द्वारा पूजा की, आदरपूर्ण दृष्टि से देखकर एवं नमस्कार करके मान किया, फल – वस्त्र आदि देकर सत्कार किया और अनेक प्रकार की भक्ति कर सम्मान किया। वे स्वप्नपाठक पहले से बिछाए हुए भद्रासनों पर अलग – अलग बैठे। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने जवनिका के पीछे धारिणी देवी को बिठलाया। फिर हाथों में पुष्प और फल लेकर अत्यन्त विनय के साथ स्वप्नपाठकों से इस प्रकार कहा – देवानुप्रिय ! आज उस प्रकार की उस शय्या पर सोई हुई धारिणी देवी यावत् महास्वप्न देखकर जागी है। तो देवानुप्रियो ! इस उदार यावत् महास्वप्न का क्या कल्याण – कारी फल – विशेष होगा ? तत्पश्चात् वे स्वप्नपाठक श्रेणिक राजा का यह कथन सूनकर और हृदय में धारण करके हृष्ट, तुष्ट, आनन्दितहृदय हुए। उन्होंने उस स्वप्न का सम्यक् प्रकार से अवग्रहण किया। ईहा में प्रवेश किया, प्रवेश करके परस्पर एक – दूसरे के साथ विचार – विमर्श किया। स्वप्न का आपसे अर्थ समझा, दूसरों का अभिप्राय जानकर विशेष अर्थ समझा, आपस में उस अर्थ की पूछताछ की, अर्थ का निश्चय किया और फिर तथ्य का निश्चय किया वे स्वप्नपाठक श्रेणिक राजा के सामने स्वप्नशास्त्रों का बार – बार उच्चारण करते हुए इस प्रकार बोले – हे स्वामिन् ! हमारे स्वप्नशास्त्र में बयालीस स्वप्न और तीस महास्वप्न – कुल मिलाकर ७२ स्वप्न हैं। अरिहंत और चक्रवर्ती की माता, जब अरिहंत और चक्रवर्ती गर्भ में आते हैं तो तीस महास्वप्नों में चौदह महास्वप्न देखकर जागती हैं। वे इस प्रकार हैं – | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se senie raya pachchusakalasamayamsi kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Bahiriyam uvatthanasalam ajja savisesam paramarammam gamdhodagasitta-suiya-sammajjiovalittam pamchavanna-sarasasurabhi-mukka-pupphapum-jovayarakaliyam kalagaru-pavarakumdurukka-turukka-dhuva-dajjhamta-surabhi-maghamaghemta-gamdhuddhayabhiramam sugamdhavara gamdhiyam gamdhavattibhuyam kareha, karaveha ya, eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa senienam ranna evam vutta samana hatthatutthachittamanamdiya piimana paramasomanassiya hari-savasa-visappamanahiyaya tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se senie raya kallam pauppabhayae rayanie phulluppala-kamala-komalummiliyammi ahapamdure pabhae ratta-sogappagasa-kimsuya-suyamuha-gumjaddha-bamdhujivaga-paravayachalananayana-parahuya-surattaloyana- jasumanakusuma- jaliyajalana- tavanijja- kalasa- himgulayanigara- ruvairegarehamta-sassirie divayare ahakamena udie tassa dinakara-karaparamparoyaraparaddhammi amdhayare balatava-kumku-mena khachitevva jivaloe loyana-visayanuyasa-vigasamta-visadadamsiyammi loe kamalagara-samdabohae utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte sayanijjao utthei, utthetta jeneva attanasala, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta attanasalam anupavisai.. ..Anegavayama-jogga-vaggana-vamaddana-mallajuddhakaranehim samte parissamte sayapagasahassapagehim sugamdhavaratellamadiehim pinanijjehim divanijjehim dappanijjehim mayanijjehim vimhanijjehim savvimdiyagayapalhayanijjehim abbhamgehim abbhamgie samane, tellachammamsi padipunna-panipaya-sukumalakomalatalehim purisehim chheehim dakkhehim putthehim kusalehim mehavihim niunehim niunasippovagaehim jiyaparissamehim abbhamgana-parimaddanuvvalana-karanagunanimmaehim, atthisuhae mamsasuhae tayasuhae romasuhae–chauvvihae samvahanae samvahie samane avagayaparissame narimde attanasalao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva majjanaghare teneva uvagachchhai,.. ..Uvagachchhitta majjanagharam anupavisai, anupavisitta samattajalabhirame vichitta-mani-rayana-kottimatale ramanijje nhanamamdabamsi nana-manirayana-bhattichittamsi nhanapidhamsi suhanisanne suhodaehim gamdhodaehim pupphodaehim suddhodaehim ya puno puno kallanaga-pavara-majjanavihie majjie tattha kouyasaehim bahuvihehim kallanaga-pavara-majjanavasane pamhala-sukumala-gamdhakasailuhiyamge ahaya-sumahaggha-dusarayana-susamvue sarasa-surabhi-gosisa-chamdananulittagatte suimala-vannagavilevane aviddha-manisuvanne kappiya-haraddhahara -tisaraya-palamba-palambamana-kadisutta-sukayasohe pinaddhagevejja-amgulejjaga-laliyamgayalaliyakayabharane nanamani-kadaga-tudiya-thambhiyabhue ahiyaruvasassirie kumdalujjoiyanane mauda-dittasirae harotthaya-sukaya-raiyavachchhe muddiya-pimgalam-gulie palamba-palamba mana-sukaya-padauttarijje nanamanikanagarayana-vimala-mahariha-niunoviya-misimisimta-viraiya-susilittha-visittha-lattha-samthiya-pasattha-aviddha-viravalae, kim bahuna?.. .. Kapparukkhae cheva sualamkiya-vibhusie narimde sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam chauchamaravalaviiyamge mamgala-jaya-sadda-kayaloe gananayaga-damdanayaga-raisara-talavara-madambiya-kodumbiya-mamti-mahamamti- ganaga -dovariya- amachcha- cheda-pidhamadda- nagara-nigama -setthi-senavai-satthavaha-duya-samdhivalasaddhim samparivude dhavalamahamehaniggae viva gahaganadippamta-rikkataraganana majjhe sasi vva piyadamsane naravai majjanagharao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva bahiriya uvatthanasala, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sihasanavaragae puratthabhimuhe sannisanne. Tae nam senie raya appano adurasamamte uttarapuratthime disibhae attha bhaddasanaim–seyavattha-pachchutthuyaim siddhatthaya-mamgalovayara-kaya-samtikammaim–rayavei, rayavetta nanamaniratanamamdiyam ahiyapechchhanijjaruvam mahagghavarapattanuggayam sanha-bahubhattisaya-chittathanam ihamiya-usabha-turaya-nara-magara-vihaga-valaga-kinnara-ruru-sarabha-chamara-kumjara-vanalaya-paumalaya-bhattichittam sukhachiyavaraka-nagapavaraperamtadesabhagam abbhimtariyam javaniyam amchhavei, amchhavetta attharaga-maua-masuraga-utthaiyam dhavalavattha-pachchutthuyam visitthaamgasu-haphasayam sumauyam dharinie devie bhaddasanam rayavei, rayavetta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi– khippameva bho devanuppiya! Atthamgamahanimitta-suttatthapadhae vivihasatthakusale suminapadhae saddaveha, saddavetta eyamanatiyam khippameva pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisasenienam ranna evam vutta samana hatthatuttha-chittamanamdiya java harisavasa-visappamanahi-yaya karayala-pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu evam devo! Taha tti anae vinaenam vayanam padisunemti, seniyassa ranno amtiyao padinikkhamemti, rayagihassa nagarassa majjhammajjhenam jeneva suminapadhagagihani teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta suminapadhae saddavemti. Tae nam te suminapadhaga seniyassa ranno kodumbiyapurisehim saddaviya samana hatthatuttha-chittamanamdiya java harisa-vasa-visappamanahiyaya nhaya kayabalikamma kaya-kouya-mamgala-paya-chchhitta appamahagghabharanalamkiyasarira hariyaliya-siddhatthaya-kayamuddhana saehim-saehim gehehimto padinikkhamamti, padinikkhamitta rayagihassa nagarassa majjhammajjhenam jeneva seniyassa bhavanavademsaga duvare, teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta egayao milamti, militta seniyassa ranno bhavanavademsaga duvarenam anuppavisamti, anuppavisitta jeneva bahiriya uvatthanasala, jeneva senie raya, teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta seniyam rayam jaenam vijaenam vaddhavemti, senienam ranna achchiya-vamdiya-puiya-maniya-sakkariya-sammaniya samana patteyam-patteyam puvvannatthesu bhaddasanesu nisiyamti. Tae nam se senie raya javaniyamtariyam dharinim devim thavei, thavetta pupphaphalapadipunnahatthe parenam vinaenam te suminapadhae evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Dharini devi ajja tamsi tarisagamsi sayanijjamsi java mahasuminam pasitta nam padibuddha. Tam eyassa nam devanuppiya! Uralassa java sassiriyassa mahasuminassa ke manne kallane phalavittivisese bhavissai? Tae nam te suminapadhaga seniyassa ranno amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha-chittamanamdiya java harisavasa-visappamanahiyaya tam suminam sammam oginhamti oginhitta iham anuppavisati, anuppavisitta annamannena saddhim samchalemti, samchaletta tassa suminassa laddhattha puchchhiyattha gahiyattha vinichchhiyattha abhigayattha seniyassa ranno purao suminasatthaim uchcharemana-uchcharemana evam vayasi–evam khalu amham sami! Suminasatthamsi bayalisam sumina, tisam mahasumina–bavattari savvasumina dittha. Tattha nam sami! Arahamtamayaro va chakkavattimayaro va arahamtamsi va chakkavattimsi va gabbham vakkamamanamsi eesim tisae mahasuminanam ime choddasa mahasumine pasitta nam padibujjhamti, tam jaha– | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat shrenika raja ne prabhata kala ke samaya kautumbika purushom ko bulaya aura isa prakara kaha – he devanupriya ! Aja bahara ki upasthanashala ko shighra hi vishesha rupa se parama ramaniya, gamdhodaka se simchita, sapha – suthari, lipi hui, pamcha varnom ke sarasa sugamdhita evam bikhare hue phulom ke samuha rupa upachara se yukta, kalaguru, kumdurukka, turushka tha dhupa ke jalane se mahakati hui, gamdha se vyapta hone ke karana manohara, shreshtha sugamdha ke churna se sugamdhita tatha sugamdha ki gutika ke samana karo aura karao. Meri ajnya vapisa saumpo. Tatpashchat ve kautumbika purusha shrenika raja dvara isa prakara kahe jane para harshita hue. Unhomne ajnyanusara karya karake ajnya vapisa saumpi. Tatpashchat svapna vali ratri ke bada dusare dina ratri prakashamana prabhata rupa hui. Praphullita kamalom ke patte vikasita hue, kale mriga ke netra nidrarahita hone se visasvara hue. Phira vaha prabhata pandura – shveta varna vala hua. Lala ashoka ki kanti, palasha ke pushpa, tote ki chomcha, chirami ke ardhabhaga, dupahari ke pushpa, kabutara ke paira aura netra, kokila ke netra, jasoda ke phula, jajvalyamana agni, svarnakalasha tatha himgula ke samuha ki lalima se bhi adhika lalima se jisaki shri sushobhita ho rahi hai, aisa surya kramashah udita hua. Surya ki kiranom ka samuha niche utarakara amdhakara ka vinasha karane laga. Bala – surya rupi kumkuma se mano jivaloka vyapta ho gaya. Netrom ke vishaya ka prasara hone se vikasita hone vala loka spashta rupa se dikhai dene laga. Kamalom ke vana ko vikasita karane vala tatha sahasra kiranom vala divakara teja se jajvalyamana ho gaya. Shayya se uthakara raja shrenika jaham vyayamashala thi, vahim ata hai. Akara – vyayamashala mem pravesha karata hai. Pravesha karake aneka prakara ke vyayama, yogya, vyamardana, kushti tatha karana rupa kasarata se shrenika raja ne shrama kiya, aura khuba shrama kiya. Tatpashchat shatapaka tatha rasastrapaka adi shreshtha sugamdhita tela adi abhyamganom se, jo priti utpanna karane vala arthat rudhira adi dhatuom ko sama karane vale, jatharagni ko dipta karane vale, darpaniya arthat sharira ka bala barhane vale, madaniya, mamsavardhaka tatha samasta indriyom ko evam sharira ko ahladita karane vale the, raja shrenika ne abhyamgana karaya. Phira malisha kiye sharira ke charma ko, paripurna hatha – paira vale tatha komala tala vale, chheka daksha, balashali kushala, medhavi, nipuna, nipuna shilpi parishrama ko jitane vale, abhyamgana mardana udvarttana karane ke gunom se purna purushom dvara asthiyom ko sukhakari, mamsa ko sukhakari, tvacha ko sukhakari tatha romom ko sukhakari – isa prakara chara taraha ki badhana se shrenika ke sharira ka mardana kiya gaya. Isa malisha aura mardana se raja ka parishrama dura ho gaya – thakavata mita gai. Vaha vyayamashala se bahara nikala. Shrenika raja jaham majjana – griha tha vaham ata hai. Majjanagriha mem pravesha karata hai. Charom ora jaliyom se manohara, chitra – vichitra maniyom aura ratnom ke pharsha vale tatha ramaniya snanamamdapa ke bhitara vividha prakara ke maniyom aura ratnom ki rachana se chitra – vichitra snana karane ke pitha – bajautha para sukhapurvaka baitha. Usane pavitra sthana se lae hue shubha jala se, pushpamishrita jala se, sugamdha mishrita jala se aura shuddha jala se bara – bara kalyanakari – anandaprada aura uttama vidhi se snana kiya. Usa kalyanakari aura uttama sthana ke amta mem raksha potali adi saikarom kautuka kiye gae. Tatpashchat pakshi ke pamkha ke samana atyanta komala, sugamdhita aura kashaya ramga se ramge hue vastra se sharira ko pomchha. Kora, bahumulya aura shreshtha vastra dharana kiya. Sarasa aura sugamdhita goshirsha chandana se sharira para vilepana kiya. Shuchi pushpom ki mala pahani. Kesara adi ka lepana kiya. Maniyom ke aura svarna ke alamkara dharana kie. Atharaha larom ke hara, nau larom ke ardhahara, tina larom ke chhote hara tatha lambe latakate hue katisutra se sharira ki shobha barhai. Kamtha mem kamtha pahana. Umgaliyom mem amguthiyam dharana ki. Sundara amga para anyanya sundara aksharana dharana kie. Aneka maniyom ke bane kataka aura trutika namaka abhushanom se usake hatha stambhita se pratita hone lage. Atishaya rupa ke karana raja atyanta sushobhita ho utha. Kumdalom ke karana usaka mukhamamdala uddipta ho gaya. Mukuta se mastaka prakashita hone laga. Vakshahsthala hara se achchhadita hone ke karana atishaya priti utpanna karane laga. Lambe latakate hue dupatte se usane sundara uttarasamga kiya. Mudrikaom se usaki umgaliyam pili dikhane lagim. Nana bhamti ki maniyom, suvarna aura ratnom se nirmala, mahamulyavan, nipuna kalakalom dvara nirmita, chamachamate hue, surachita, bhali – bhamti mili hui sandhiyom vale, vishishta prakara ke manohara, sundara akara vale aura prashasta vira – valaya dharana kiye. Adhika kya kaha jae\? Mukuta adi abhushanom se alamkrita aura vastrom se vibhushita raja shrenika kalpavriksha ke samana dikhai dene laga. Koramta vriksha ke pushpom ki mala vala chhatra usake mastaka para dharana kiya gaya. Aju – baju chara chamarom se usaka sharira bimja jane laga. Raja para drishti parate hi loga ‘jaya – jaya’ ka ghosha karane lage. Aneka gananayaka, damdanayaka, raja, ishvara, talavara, mamtri, mahamamtri, jyotishi, dvarapala, amatya, cheta, pithamarda, nagarika loga, vyapari, setha, senapati, sarthavaha, duta aura sandhipala – ina saba se ghira hua grahom ke samuha mem dedipyamana tatha nakshatrom aura taraom ke bicha chandrama ke samana priyadarshana raja shrenika majjanagriha se isa prakara nikala jaise ujjvala mahameghom mem se chandrama nikala ho. Bahya upasthanashala thi, vahim aya aura purva disha ki ora mukha karake shreshtha simhasana para asina hua. Shrenika raja apane samipa ishanakona mem shveta vastra se achchhadita tatha sarasom ke mamgalika upachara se jinamem shantikarma kiya gaya hai, aise atha bhadrasana rakhavata hai. Nana maniyom aura ratnom se mamdita, atishaya darshaniya, bahumulya aura shreshthanagara mem bani hui komala evam saikarom prakara ki rachana vale chitrom ka sthanabhuta, ihamriga, vrishabha, ashva, nara, magara, pakshi, sarpa, kinnara, ruru jati ke mriga, ashtapada, chamari gaya, hathi, vanalata aura padmalata adi ke chitrom se yukta, shreshtha svarna ke tarom se bhare hue sushobhita kinarom vali javanika sabha ke bhitari bhaga mem bamdhavai. Dharini devi ke lie eka bhadrasana rakhavaya. Vaha bhadrasana astaraka aura komala takiyom se rhaka tha. Shveta vastra usa para bichha hua tha. Sundara tha. Sparsha se amgom ko sukha utpanna karane vala tha aura atishaya mridu tha. Raja na kautumbika purushom ko bulavaya aura kaha – devanupriyom ! Ashtamga mahanimitta – tatha vividha shastrom mem kushala svapnapathakom ko shighra hi bulao aura shighra hi isa ajnya ko vapisa lautao. Tatpashchat ve kautumbika purusha shrenika raja dvara isa prakara kahe jane para harshita yavat anandita – hridaya hue. Donom hatha jorakara dasom nakhom ko ikattha karake mastaka para ghuma kara amjali jorakara ‘he deva ! Aisa hi ho’ isa prakara kahakara vinaya ke satha ajnya ke vachanom ko svikara karate haim aura svikara karake shrenika raja ke pasa se nikalate haim. Nikalakara rajagriha ke bichombicha hokara jaham svapnapathakom ke ghara the, vaham pahumchate haim aura pahumcha kara svapnapathakom ko bulate haim. Tatpashchat ve svapnapathaka shrenika raja ke kautumbika purushom dvara bulaye jane para hrishta – tushta yavat ananditahridaya hue. Unhomne snana kiya, kuladevata ka pujana kiya, yavat kautuka aura mamgala prayashchitta kiya. Alpa kintu bahumulya abharanom se sharira ko alamkrita kiya, mastaka para durva tatha sarasom mamgala nimitta dharana kiye. Phira apane – apane gharom se nikale. Rajagriha ke bichombicha hokara shrenika raja ke mukhya mahala ke dvara para ae. Eka satha milakara shrenika raja ke mukhya mahala ke dvara ke bhitara pravesha kiya. Pravesha karake jaham bahari upasthanashala thi aura jaham shrenika raja tha, vaham ae. Akara shrenika raja ko jaya aura vijaya shabdom se badhaya. Shrenika raja ne chandanadi se unaki archana ki, gunom ki prashamsa karake vandana kiya, pushpom dvara puja ki, adarapurna drishti se dekhakara evam namaskara karake mana kiya, phala – vastra adi dekara satkara kiya aura aneka prakara ki bhakti kara sammana kiya. Ve svapnapathaka pahale se bichhae hue bhadrasanom para alaga – alaga baithe. Tatpashchat shrenika raja ne javanika ke pichhe dharini devi ko bithalaya. Phira hathom mem pushpa aura phala lekara atyanta vinaya ke satha svapnapathakom se isa prakara kaha – devanupriya ! Aja usa prakara ki usa shayya para soi hui dharini devi yavat mahasvapna dekhakara jagi hai. To devanupriyo ! Isa udara yavat mahasvapna ka kya kalyana – kari phala – vishesha hoga\? Tatpashchat ve svapnapathaka shrenika raja ka yaha kathana sunakara aura hridaya mem dharana karake hrishta, tushta, ananditahridaya hue. Unhomne usa svapna ka samyak prakara se avagrahana kiya. Iha mem pravesha kiya, pravesha karake paraspara eka – dusare ke satha vichara – vimarsha kiya. Svapna ka apase artha samajha, dusarom ka abhipraya janakara vishesha artha samajha, apasa mem usa artha ki puchhatachha ki, artha ka nishchaya kiya aura phira tathya ka nishchaya kiya ve svapnapathaka shrenika raja ke samane svapnashastrom ka bara – bara uchcharana karate hue isa prakara bole – He svamin ! Hamare svapnashastra mem bayalisa svapna aura tisa mahasvapna – kula milakara 72 svapna haim. Arihamta aura chakravarti ki mata, jaba arihamta aura chakravarti garbha mem ate haim to tisa mahasvapnom mem chaudaha mahasvapna dekhakara jagati haim. Ve isa prakara haim – |