Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004712
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Section : Translated Section :
Sutra Number : 12 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं सा धारिणी देवी अन्नदा कदाइ तंसि तारिसगंसि–छक्कट्ठग-लट्ठमट्ठ-संठिय-खंभुग्गय-पवरवर-सालभंजिय-उज्जलमणिकनगरयणथूभियविडंकजालद्ध चंदनिज्जूहंतरकणयालिचंदसालियावि-भत्तिकलिए सरसच्छधाऊबलवण्णरइए बाहिरओ दूमिय-घट्ठ-मट्ठे अब्भिंतरओ पसत्त-सुविलिहिय-चित्तकम्मे नानाविह-पंचवण्ण-मणिरयण-कोट्ठिमतले पउमलया-फुल्लवल्लि-वरपुप्फजाइ-उल्लोय-चित्तिय-तले वंदन-वरकनगकलससुणिम्मिय-पडिपूजिय-सरसपउम-सोहंतदारभाए पयरग-लंबंत-मणिमुत्त-दाम-सुविरइयदारसोहे सुगंध-वरकुसुम-मउय-पम्हलसयणोवयार-मणहिययनिव्वुइयरे कप्पूर-लवंग- मलय-चंदन- कालागरु-पवर- कुंदुरुक्क-तुरुक्क- धूव-डज्झंत- सुरभि-मघमघेंत-गंधुद्धुयाभिरामे सुगंधवर गंधिए गंधवट्टिभूए मणिकिरण-पणासियसंधारे किं-बहुणा? जुइगुणेहिं सुरवरविमाण-विडंबियवरघरए, तंसि तारिसंगसि सयणिज्जंसि–सालिंगणवट्टिए उभओ विब्बोयणे दुहओ उण्णए मज्झे नय गंभीरे गंगापुलिणवालुय-उद्दालसालिसए ओयविय-खोम-दुगुल्लपट्ट-पडिच्छयणे अत्थरय-मलय-नवतय-कुसुत्त-लिंब-सीहकेसरपच्चुत्थिए सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुय-संवुए सुरम्मे आइनग- रूय-बुर- नवनीय- तुल्लफासे पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी-ओहीरमाणी एगं महं सत्तुस्सेहं रययकूड-सन्निहं नहयलंसि सोमं सोमागारं लीलायंतं जंभायमाणं मुहमतिगयं गयं पासित्ता णं पडिबुद्धा। तए णं सा धारिणी देवी अयमेयारूवं उरालं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगल्लं सस्सिरीयं महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुद्धा समाणो हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्प माणहियया धाराहय-कलंबपुप्फगं पिव समूस-सिय-रोमकूवा तं सुमिणं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता सयणिज्जाओ उट्ठेइ, उट्ठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अतुरियमचव-लमसंभंताए अविलंबियाए रायहंसरिसीए गईए जेणामेव से सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं उरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं मिय-महुर-रिभिय-गंभीर-सस्सिरीयाहिं गिराहिं संलवमाणी-संलवमाणी पडिबोहेइ, पडिबोहेत्ता सेणिएणं रन्ना अब्भणुण्णाया समाणी नाना-मणिकनगरयणभत्तिचित्तंसि भद्दासणंसि निसीयइ, निसिइत्ता आसत्था वीसत्था सुहासनवरगया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु सेणियं रायं एवं वयासी–एवं खलु अहं देवानुप्पिया! अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सालिंगणवट्टिए जाव नियगवयणमइवयंतं गयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा–तं एयस्स णं देवानुप्पिया! उरालस्स कल्लाणस्स सिवस्स धन्नस्स मंगल्लस्स सस्सिरीयस्स सुमिणस्स के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ?
Sutra Meaning : वह धारिणी देवी किसी समय अपने उत्तम भवन में शय्या पर सो रही थी। वह भवन कैसा था ? उसके बाह्य आलन्दक या द्वार पर तथा मनोज्ञ, चिकने, सुंदर आकार वाले और ऊंचे खंभों पर अतीव उत्तम पुतलियाँ बनी हुई थीं। उज्ज्वल मणियों, कनक और कर्केतन आदि रत्नों के शिखर, कपोच – पारी, गवाक्ष, अर्ध – चंद्राकार सोपान, निर्यूहक करकाली तथा चन्द्रमालिका आदि धर के विभागों की सुन्दर रचना से युक्त था। स्वच्छ गेरु से उसमें उत्तम रंग किया हुआ था। बाहर से उसमें सफेदी की गई थी, कोमल पाणाण से घिसाई की गई थी, अत एव वह चिकना था। उसके भीतरी भाग में उत्तम और शुचि चित्रों का आलेखन किया गया था। उसका फर्श तरह – तरह की पंचरंगी मणियों और रत्नों से जड़ा हुआ था। उसका ऊपरी भाग पद्म के से आकार की लताओं से, पुष्पप्रधान बेलों से तथा उत्तम पुष्पजाति – मालती आदि से चित्रित था। उसके द्वार – भागों में चन्दन – चर्चित, मांगलिक, घट सुन्दर ढ़ंग से स्थापित किए हुए थे। वे सरस कमलों से सुशोभित थे, प्रतरक – स्वर्णमय आभूषणों से एवं मणियों तथा मोचियों की लम्बी लटकने वाली मालाओं से उसके द्वार सुशोभित हो रहे थे। उसमें सुगंधित और श्रेष्ठ पुष्पों से कोमल और रूएंदार शय्या का उपचार किया गया था। वह मन एवं हृदय को आनन्दित करने वाला था। कपूर, लौंग, मलयज, चन्दन, कृष्ण अगर, उत्तम कुन्दुरुक्क, तुरुष्क और अनेक सुगंधित द्रव्यों से बने हुए धूप के जलने से उत्पन्न हुए मघमघाती गंध से रमणीय था। उसे उत्तम चूर्णों की गंध भी विद्यमान थी। सुगंध की अधिकता के कारण वह गंध – द्रव्य की वट्टी जैसा प्रतीत होता था। मणियों की किरणों के प्रकाश से वहाँ अंधकार गायब हो गया था। अधिक क्या कहा जाए ? वह अपनी चमक – दमक तथा गुणों से उत्तम देवविमान को भी पराजित करता था। इस प्रकार के उत्तम भवन में एक शय्या बिछी थी। उस पर शरीर – प्रमाण उपधान बिछा था। एक में दोनों ओर – सिरहाने और पाँयते की जगह तकिए लगे थे। वह दोनों तरफ ऊंची और मध्य में भुकी हुई थी – गंभीर थी। जैसे गंगा के किनारे की बालू में पाँव रखने से पाँव धँस जाता है, उसी प्रकार उसमें धँस जाता था। कसीदा काढ़े हुए क्षौमदुकूल का चद्दर बिछा हुआ था। वह आस्तरक, मलक, नवत, कुशक्त, लिम्ब और सिंहकेसर नामक आस्तरणों से आच्छादित था। जब उसका सेवन नहीं किया जाता था तब उस पर सुन्दर बना हुआ राजस्राण पड़ा रहता था – उस पर मसहरी लगी हुई थी, वह अति रमणीय था। उसका स्पर्श आजिनक रूई, बूर नामक वनस्पति और मक्खन के समान नरम था। ऐसी सुन्दर शय्या पर मध्यरात्रि के समय धारिणी रानी, जब न गहरी नींद में थी और न जाग ही रही थी, बल्कि बार – बार हल्की – सी नींद ले रही थी, ऊंध रही थी, जब उसने एक महान, सात हाथ ऊंचा, रजतकूट – चाँदी के शिखर के सदृश श्वेत, सौम्य, सौम्याकृति, लीला करते हुए, जँभाई लेते हुए हाथी को आकाशतल से अपने मुख में प्रवेश करते देखा। देखकर वह जाग गई। तत्पश्चात्‌ वह धारिणी देवी इस प्रकार के इस स्वरूप वाले, उदार प्रधान, कल्याणकारी, शिव, धन्य, मांगलिक – एवं सुशोभित महास्वप्न को देखकर जागी। उसे हर्ष और संतोष हुआ। चित्त में आनन्द हुआ। मन में प्रीति उत्पन्न हुई। परम प्रसन्नता हुई। हर्ष के वशीभूत होकर उसका हृदय विकसित हो गया। मेघ की धाराओं का आघात पाए कदम्ब के फूल के समान उसे रोमांच हो आया। उसमे स्वप्न का विचार किया। शय्या से उठी और पादपीठ से नीचे ऊतरी। मानसिक त्वरा से शारीरिक चपलता से रहित, स्खलना से तथा विलम्ब – रहित राजहंस जैसी गति से जहाँ श्रेणिक राजा था, वहीं आई। श्रेणिक राजा को इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मणाम, उदार, कल्याण, शिव, धन्य, मंगलकारी, सश्रीक – हृदय को प्रिय लगने वाली, आह्लाद उत्पन्न करने वाली, परिमित अक्षरों वाली, मधुर – स्वरों से मीठी, रिभित – स्वरों की धोलना वाली, शब्द और अर्थ की गंभीरता वाली और गुण रूपी लक्ष्मी से युक्त वाणी बार – बार बोलकर श्रेणिक राजा को जगाती है। जगाकर श्रेणिक राजा की अनुमति पाकर विविध प्रकार के मणि, सुवर्ण और रत्नों की रचना से चित्र – विचित्र भद्रासन पर बैठती है। आश्वस्त – होकर, विश्वस्त – होकर, सुखद और श्रेष्ठ आसन पर बैठी हुई वह दोनों करतलों से ग्रहण की हुई और मस्तक के चारों ओर घूमती हुई अंजीर को मस्तक पर धारण करके श्रेणिक राजा से इस प्रकार कहती है – देवानुप्रिय ! आज मैं उस पूर्ववर्णित शरीर – प्रमाण तकिया वाली शय्या पर सो रही थी, तब यावत्‌ अपने मुख में प्रवेश करते हुए हाथी को स्वप्न में देखकर जागी हूँ। हे देवानुप्रिय ! इस उदार यावत्‌ – स्वप्न का क्या फल – विशेष होगा ?
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam sa dharini devi annada kadai tamsi tarisagamsi–chhakkatthaga-latthamattha-samthiya-khambhuggaya-pavaravara-salabhamjiya-ujjalamanikanagarayanathubhiyavidamkajaladdha chamdanijjuhamtarakanayalichamdasaliyavi-bhattikalie sarasachchhadhaubalavannaraie bahirao dumiya-ghattha-matthe abbhimtarao pasatta-suvilihiya-chittakamme nanaviha-pamchavanna-manirayana-kotthimatale paumalaya-phullavalli-varapupphajai-ulloya-chittiya-tale vamdana-varakanagakalasasunimmiya-padipujiya-sarasapauma-sohamtadarabhae payaraga-lambamta-manimutta-dama-suviraiyadarasohe sugamdha-varakusuma-mauya-pamhalasayanovayara-manahiyayanivvuiyare kappura-lavamga- malaya-chamdana- kalagaru-pavara- kumdurukka-turukka- dhuva-dajjhamta- surabhi-maghamaghemta-gamdhuddhuyabhirame sugamdhavara gamdhie gamdhavattibhue manikirana-panasiyasamdhare kim-bahuna? Juigunehim suravaravimana-vidambiyavaragharae, tamsi tarisamgasi sayanijjamsi–salimganavattie ubhao vibboyane duhao unnae majjhe naya gambhire gamgapulinavaluya-uddalasalisae oyaviya-khoma-dugullapatta-padichchhayane attharaya-malaya-navataya-kusutta-limba-sihakesarapachchutthie suviraiyarayattane rattamsuya-samvue suramme ainaga- ruya-bura- navaniya- tullaphase puvvarattavarattakalasamayamsi suttajagara ohiramani-ohiramani egam maham sattusseham rayayakuda-sanniham nahayalamsi somam somagaram lilayamtam jambhayamanam muhamatigayam gayam pasitta nam padibuddha. Tae nam sa dharini devi ayameyaruvam uralam kallanam sivam dhannam mamgallam sassiriyam mahasuminam pasitta nam padibuddha samano hatthatuttha-chittamanamdiya piimana paramasomanassiya harisavasavisappa manahiyaya dharahaya-kalambapupphagam piva samusa-siya-romakuva tam suminam oginhai, oginhitta sayanijjao utthei, utthetta payapidhao pachchoruhai, pachchoruhitta aturiyamachava-lamasambhamtae avilambiyae rayahamsarisie gaie jenameva se senie raya tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta seniyam rayam tahim itthahim kamtahim piyahim manunnahim manamahim uralahim kallanahim sivahim dhannahim mamgallahim sassiriyahim hiyayagamanijjahim hiyayapalhayanijjahim miya-mahura-ribhiya-gambhira-sassiriyahim girahim samlavamani-samlavamani padibohei, padibohetta senienam ranna abbhanunnaya samani nana-manikanagarayanabhattichittamsi bhaddasanamsi nisiyai, nisiitta asattha visattha suhasanavaragaya karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu seniyam rayam evam vayasi–evam khalu aham devanuppiya! Ajja tamsi tarisagamsi sayanijjamsi salimganavattie java niyagavayanamaivayamtam gayam sumine pasitta nam padibuddha–tam eyassa nam devanuppiya! Uralassa kallanassa sivassa dhannassa mamgallassa sassiriyassa suminassa ke manne kallane phalavittivisese bhavissai?
Sutra Meaning Transliteration : Vaha dharini devi kisi samaya apane uttama bhavana mem shayya para so rahi thi. Vaha bhavana kaisa tha\? Usake bahya alandaka ya dvara para tatha manojnya, chikane, sumdara akara vale aura umche khambhom para ativa uttama putaliyam bani hui thim. Ujjvala maniyom, kanaka aura karketana adi ratnom ke shikhara, kapocha – pari, gavaksha, ardha – chamdrakara sopana, niryuhaka karakali tatha chandramalika adi dhara ke vibhagom ki sundara rachana se yukta tha. Svachchha geru se usamem uttama ramga kiya hua tha. Bahara se usamem saphedi ki gai thi, komala panana se ghisai ki gai thi, ata eva vaha chikana tha. Usake bhitari bhaga mem uttama aura shuchi chitrom ka alekhana kiya gaya tha. Usaka pharsha taraha – taraha ki pamcharamgi maniyom aura ratnom se jara hua tha. Usaka upari bhaga padma ke se akara ki lataom se, pushpapradhana belom se tatha uttama pushpajati – malati adi se chitrita tha. Usake dvara – bhagom mem chandana – charchita, mamgalika, ghata sundara rhamga se sthapita kie hue the. Ve sarasa kamalom se sushobhita the, prataraka – svarnamaya abhushanom se evam maniyom tatha mochiyom ki lambi latakane vali malaom se usake dvara sushobhita ho rahe the. Usamem sugamdhita aura shreshtha pushpom se komala aura ruemdara shayya ka upachara kiya gaya tha. Vaha mana evam hridaya ko anandita karane vala tha. Kapura, laumga, malayaja, chandana, krishna agara, uttama kundurukka, turushka aura aneka sugamdhita dravyom se bane hue dhupa ke jalane se utpanna hue maghamaghati gamdha se ramaniya tha. Use uttama churnom ki gamdha bhi vidyamana thi. Sugamdha ki adhikata ke karana vaha gamdha – dravya ki vatti jaisa pratita hota tha. Maniyom ki kiranom ke prakasha se vaham amdhakara gayaba ho gaya tha. Adhika kya kaha jae\? Vaha apani chamaka – damaka tatha gunom se uttama devavimana ko bhi parajita karata tha. Isa prakara ke uttama bhavana mem eka shayya bichhi thi. Usa para sharira – pramana upadhana bichha tha. Eka mem donom ora – sirahane aura pamyate ki jagaha takie lage the. Vaha donom tarapha umchi aura madhya mem bhuki hui thi – gambhira thi. Jaise gamga ke kinare ki balu mem pamva rakhane se pamva dhamsa jata hai, usi prakara usamem dhamsa jata tha. Kasida karhe hue kshaumadukula ka chaddara bichha hua tha. Vaha astaraka, malaka, navata, kushakta, limba aura simhakesara namaka astaranom se achchhadita tha. Jaba usaka sevana nahim kiya jata tha taba usa para sundara bana hua rajasrana para rahata tha – usa para masahari lagi hui thi, vaha ati ramaniya tha. Usaka sparsha ajinaka rui, bura namaka vanaspati aura makkhana ke samana narama tha. Aisi sundara shayya para madhyaratri ke samaya dharini rani, jaba na gahari nimda mem thi aura na jaga hi rahi thi, balki bara – bara halki – si nimda le rahi thi, umdha rahi thi, jaba usane eka mahana, sata hatha umcha, rajatakuta – chamdi ke shikhara ke sadrisha shveta, saumya, saumyakriti, lila karate hue, jambhai lete hue hathi ko akashatala se apane mukha mem pravesha karate dekha. Dekhakara vaha jaga gai. Tatpashchat vaha dharini devi isa prakara ke isa svarupa vale, udara pradhana, kalyanakari, shiva, dhanya, mamgalika – evam sushobhita mahasvapna ko dekhakara jagi. Use harsha aura samtosha hua. Chitta mem ananda hua. Mana mem priti utpanna hui. Parama prasannata hui. Harsha ke vashibhuta hokara usaka hridaya vikasita ho gaya. Megha ki dharaom ka aghata pae kadamba ke phula ke samana use romamcha ho aya. Usame svapna ka vichara kiya. Shayya se uthi aura padapitha se niche utari. Manasika tvara se sharirika chapalata se rahita, skhalana se tatha vilamba – rahita rajahamsa jaisi gati se jaham shrenika raja tha, vahim ai. Shrenika raja ko ishta, kanta, priya, manojnya, manama, udara, kalyana, shiva, dhanya, mamgalakari, sashrika – hridaya ko priya lagane vali, ahlada utpanna karane vali, parimita aksharom vali, madhura – svarom se mithi, ribhita – svarom ki dholana vali, shabda aura artha ki gambhirata vali aura guna rupi lakshmi se yukta vani bara – bara bolakara shrenika raja ko jagati hai. Jagakara shrenika raja ki anumati pakara vividha prakara ke mani, suvarna aura ratnom ki rachana se chitra – vichitra bhadrasana para baithati hai. Ashvasta – hokara, vishvasta – hokara, sukhada aura shreshtha asana para baithi hui vaha donom karatalom se grahana ki hui aura mastaka ke charom ora ghumati hui amjira ko mastaka para dharana karake shrenika raja se isa prakara kahati hai – devanupriya ! Aja maim usa purvavarnita sharira – pramana takiya vali shayya para so rahi thi, taba yavat apane mukha mem pravesha karate hue hathi ko svapna mem dekhakara jagi hum. He devanupriya ! Isa udara yavat – svapna ka kya phala – vishesha hoga\?