Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004360
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-२४

Translated Chapter :

शतक-२४

Section : उद्देशक-२२ थी २४ देव Translated Section : उद्देशक-२२ थी २४ देव
Sutra Number : 860 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] सोहम्मदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? भेदो जहा जोइसिय-उद्देसए। असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए साहम्मगदेवेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठितीएसु उक्कोसेणं तिपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसं जहा जोइसिएसु उववज्ज-माणस्स, नवरं–सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। नाणी वि, अन्नाणी वि, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं। ठिती जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तहेव। कालादेसेणं जहन्नेणं दो पलिओवमाइं, उक्कोसेणं छप्पलिओवमाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–कालादेसेणं जहन्नेणं दो पलिओव-माइं, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो जहन्नेणं तिपलिओवमट्ठितीएसु, उक्कोसेण वि तिपलिओवमट्ठितीएसु, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–ठिती जहन्नेणं तिन्नि पलिओवमाइं, उक्कोसेण वि तिन्नि पलिओवमाइं। सेसं तहेव। कालादेसेणं जहण्णेणं छप्पलिओवमाइं, उक्कोसेण वि छप्पलिओवमाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ जहन्नेणं पलिओवमट्ठितीएसु, उक्कोसेण वि पलिओवमट्ठितीएसु, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–ओगाहणा जहन्नेणं धणपुहत्तं, उक्कोसेणं दो गाउयाइं। ठिती जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेण वि पलिओवमं। सेसं तहेव। कालादेसेणं जहन्नेणं दो पलिओवमाइं, उक्कोसेण वि दो पलिओवमाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, आदिल्लगमगसरिसा तिन्नि गमगा नेयव्वा, नवरं–ठितिं कालादेसं च जाणेज्जा। जइ संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदिय? संखेज्जवासाउयस्स जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स तहेव नव वि गमा, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। जाहे य अप्पणा जहन्नकालट्ठितिओ भवति ताहे तिसु वि गमएसु सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। दो नाणा दो अन्नाणा नियमं। सेसं तं चेव। जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? भेदो जहेव जोतिसिएसु उववज्जमाणस्स, जाव– असंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववज्जित्तए? एवं जहेव असंखेज्ज-वासाउयस्स सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स सोहम्मे कप्पे उववज्ज-माणस्स तहेव सत्त गमगा, नवरं–आदिल्लएसु दोसु गमएसु ओगाहणा जहन्नेणं गाउयं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं। ततियगमे जहन्नेणं तिन्नि गाउयाइं, उक्कोसेण वि तिन्नि गाउयाइं। चउत्थगमए जहन्नेणं गाउयं, उक्कोसेण वि गाउयं। पच्छिमएसु तिसु गमएसु जहन्नेणं तिन्नि गाउयाइं उक्कोसेण वि तिन्नि गाउयाइं, सेसं तहेव निरवसेसं। जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो? एवं संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्साणं जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणाणं तहेव नव गमगा भाणियव्वा, नवरं–सोहम्मदेवट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव। ईसानदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? ईसानदेवाणं एस चेव सोहम्मगदेवसरिसा वत्तव्वया, नवरं–असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जेसु ठाणेसु सोहम्मे उववज्जमाणस्स पलिओवमठिती तेसु ठाणेसु इह सातिरेगं पलिओवमं कायव्वं। चउत्थगमे ओगाहणा जहन्नेणं धणुपुहत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगाइं दो गाउयाइं। सेसं तहेव। असंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सस्स वि तहेव ठिती जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स असंखेज्ज-वासाउयस्स। ओगाहणा वि जेसु ठाणेसु गाउयं तेसु ठाणेसु इहं सातिरेगं गाउयं। सेसं तहेव। संखेज्जवासाउयाणं तिरिक्खजोणियाणं मनुस्साण य जहेव सोहम्मेसु उववज्जमाणाणं तहेव निरवसेसं नव वि गमगा, नवरं–ईसानठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सणंकुमारदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? उववाओ जहा सक्करप्पभापुढविनेरइयाणं, जाव–पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए सणंकुमारदेवेसु उव-वज्जित्तए? अवसेसा परिमाणादीया भवादेसपज्जवसाणा सच्चेव वत्तव्वया भाणियव्वा जहा सोहम्मे उववज्जमाणस्स, नवरं–सणंकुमारट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। जाहे य अप्पणा जहन्न-कालट्ठितीओ भवति ताहे तिसु वि गमएसु पंच लेस्साओ आदिल्लाओ कायव्वाओ। सेसं तं चेव। जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? मनुस्साणं जहेव सक्करप्पभाए उववज्जमाणाणं तहेव नव वि गमा भाणियव्वा, नवरं–सणंकुमारट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। माहिंदगदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? जहा सणंकुमारगदेवाणं वत्तव्वया तहा माहिंदगदेवाण वि भाणियव्वा, नवरं–माहिंदगदेवाणं ठिती सातिरेगा भाणियव्वा सच्चेव। एवं बंभलोगदेवाण वि वत्तव्वया, नवरं–बंभलोगट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। एवं जाव सहस्सारो, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। लंतगादीणं जहन्नकालट्ठितियस्स तिरिक्खजोणियस्स तिसु वि गमएसु छप्पि लेस्साओ कायव्वाओ। संघयणाइं बंभलोगलंतएसु पंच आदिल्लगाणि, महासुक्क-सहस्सारेसु चत्तारि। तिरिक्खजोणियाण वि मनुस्साण वि। सेसं तं चेव। आणयदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? उववाओ जहा सहस्सारदेवाणं, नवरं–तिरिक्खजोणिया खोडेयव्वा, जाव– पज्जत्तासंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए आणयदेवेसु उववज्जित्तए? मनुस्साण य वत्तव्वया जहेव सहस्सारेसु उववज्जमाणाणं, नवरं–तिन्नि संघयणाणि, सेसं तहेव जाव अनुबंधो। भवादेसेणं जहन्नेणं तिन्नि भवग्गहणाइं उक्कोसेणं सत्त भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमाइं दोहिं वासपुहत्तेहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेणं सत्तावन्नं सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा, नवरं–ठिति संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव। एवं जाव अच्चुयदेवा, नवरं–ठिति संवेहं च जाणेज्जा। चउसु वि संघयणा तिन्नि आणयादीसु। गेवेज्जगदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एस चेव वत्तव्वया, नवरं–दो संघयणा। ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजितदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एस चेव वत्तव्वया निरवसेसा जाव अनुबंधो त्ति, नवरं–पढमं संघयणं। सेसं तहेव। भवादेसेणं जहन्नेणं तिन्नि भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं दोहिं वासपुहत्तेहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं तिहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। मणूसलद्धी नवसु वि गमएसु जहा गेवेज्जेसु उववज्जमाणस्स, नवरं–पढमसंघयणे। सव्वट्ठगसिद्धगदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? उववाओ जहेव विजयादीणं, जाव– से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं तेत्तीससागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेण वि तेत्तीससागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। अवसेसा जहा विजयाइसु उववज्जंताणं, नवरं– भवादेसेणं तिन्नि भवग्गहणाइं, कालादेसेणं जहन्नेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं दोहिं वासपुहत्तेहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाइं दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–ओगाहणा-ठितीओ रयणिपुहत्तवासपुहत्ताणि। सेसं तहेव। संवेहं च जाणेज्जा। सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–ओगाहणा जहन्नेणं पंच धनुसयाइं, उक्कोस्सेण वि पंच धनुसयाइं। ठिती जहन्नेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। सेसं तहेव जाव भवादेसो त्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाइं दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एते तिन्नि गमगा सव्वट्ठसिद्धदेवाणं सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे जाव विहरइ।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! सौधर्मदेव, किस गति से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत्‌ देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? ज्योतिष्क – उद्देशक के अनुसार भेद जानना चाहिए। भगवन्‌ ! असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले सौधर्मदेवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वालों में। भगवन्‌ ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होने वाले असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों अनुसार कहना। विशेषता यह है कि वे सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि होते हैं, वे ज्ञानी भी होते हैं, अज्ञानी भी। उसमें दो ज्ञान या अज्ञान नियम से होते हैं। उनकी स्थिति जघन्य दो पल्योपम की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। अनुबन्ध भी इसी प्रकार जानना। कालादेश से – जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट छह पल्योपम। यदि वह जघन्यकाल की स्थिति वाले सौधर्म देवों में उत्पन्न हों, तो उसके सम्बन्ध में भी यही वक्तव्यता है। विशेष यह है कि कालादेश से – जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट चार पल्योपम। यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले सौधर्म देवों में उत्पन्न हो तो वह जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले में उत्पन्न होता है, विशेष यह कि स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम। कालादेश से – जघन्य और उत्कृष्ट छह पल्योपम। यदि वह स्वयं जघन्यकाल की स्थिति वाला हो और सौधर्म देवों में उत्पन्न हो, जघन्य और उत्कृष्ट एक पल्योपम की स्थिति वाले सौधर्म देवों में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्वोक्त कथनानुसार। विशेष इतना कि अवगाहना जघन्य धनुषपृथक्त्व और उत्कृष्ट दो गाऊ। स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम की। कालादेश से जघन्य और उत्कृष्ट दो पल्योपम। यदि वह (असंख्येय संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंच) स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और सौधर्म देवों में उत्पन्न हो, तो उसके अन्तिम तीन गमकों का कथन प्रथम के तीन गमकों के समान जानना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और कालादेश (भिन्न) जानना चाहिए। यदि वह सौधर्म देव, संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से आकर उत्पन्न हो तो ? असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंच के समान ही इसके नौ ही गमक जानना। स्थिति और संवेध (भिन्न) समझना। जब वह स्वयं जघन्यकाल की स्थिति वाला हो तो तीनों गमकों में सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि होता है, इसमें दो ज्ञान या दो अज्ञान नियम से होते हैं। यदि वह मनुष्यों से आकर उत्पन्न हो तो ? ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों की वक्तव्यता के समान कहना। भगवन्‌ ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य कितने काल की स्थिति वाले सौधर्मकल्प के देवों में उत्पन्न होता है ? सौधर्मकल्प में उत्पन्न होने वाले असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक के समान सातों ही गमक जानने चाहिए। विशेष यह है कि प्रथम के दो गमकों में अवगाहना जघन्य एक गाऊ और उत्कृष्ट तीन गाऊ होती है। तीसरे गमक में जघन्य और उत्कृष्ट तीन गाऊ, चौथे गमक में जघन्य और उत्कृष्ट एक गाऊ और अन्तिम तीन गमकों में जघन्य और उत्कृष्ट तीन गाऊ की अवगाहना होती है। शेष पूर्ववत्‌। यदि वह संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है तो ? असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों के समान नौ गमक कहने चाहिए। विशेष यह कि सौधर्म देव की स्थिति और संवेध (भिन्न) समझना चाहिए। भगवन्‌ ! ईशान देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?, ईशानदेव की यह वक्तव्यता सौधर्म देवों के समान है। विशेष यह कि सौधर्म देवों में उत्पन्न होने वाले जिन स्थानों में असंख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच की स्थिति एक पल्योपम की कही है, वहाँ सातिरेक पल्योपम की जाननी चाहिए। चतुर्थ गमक में अवगाहना जघन्य धनुषपृथक्त्व, उत्कृष्ट सातिरेक दो गाऊ की होती है। असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी की स्थिति, असंख्य वर्ष की आयु वाले पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक के समान जानना। अवगाहना सातिरेक गाऊ की जानना। सौधर्म देवों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों और मनुष्यों के विषय में जो नौ गमक कहे हैं, वे ही ईशान देव के विषय में समझने चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और संवेध ईशान देवों के जानना। भगवन्‌ ! सनत्कुमार देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इनका उपपात शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के समान जानना चाहिए, यावत्‌। भगवन्‌ ! पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले सनत्कुमार देवों में उत्पन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न। परिमाण से लेकर भवादेशतक की सभी वक्तव्यता, सौधर्मकल्प के समान कहनी चाहिए। परन्तु सनत्कुमार की स्थिति और संवेध (भिन्न) जानना। तब वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला होता है, तब तीनों ही गमकों में प्रथम की पाँच लेश्याएं होती हैं। शेष पूर्ववत्‌। यदि मनुष्यों से आकर उत्पन्न हो तो ? इत्यादि प्रश्न। शर्कराप्रभा में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के समान यहाँ भी नौ गमक कहने चाहिए। विशेष यह है कि सनत्कुमार देवों की स्थिति और संवेध (भिन्न) कहना चाहिए। भगवन्‌ ! माहेन्द्र देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। सनत्कुमार देव के अनुसार माहेन्द्र देव जानना चाहिए। किन्तु माहेन्द्र देव की स्थिति सनत्कुमार देव से सातिरेक कहनी चाहिए। इसी प्रकार ब्रह्मलोक देवों की भी वक्तव्यता जाननी चाहिए। किन्तु ब्रह्मलोक देव की स्थिति और संवेध (भिन्न) जानना चाहिए। इसी प्रकार सहस्रारदेव तक पूर्ववत्‌। किन्तु स्थिति और संवेध अपना – अपना जानना चाहिए। लान्तक आदि देवों में उत्पन्न होने वाले जघन्य स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक के तीनों ही गमकों में छहों लेश्याएं कहनी चाहिए। ब्रह्मलोक और लान्तक देवों में प्रथम के पाँच संहनन, महाशुक्र चौर सहस्रार में आदि के चार संहनन तथा तिर्यंचयोनिकों तथा मनुष्यों में भी यही जानना। भगवन्‌ ! आनतदेव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) सहस्रार देवों के समान यहाँ उपपात कहना चाहिए। विशेष यह कि तिर्यंच की उत्पत्ति का निषेध करना चाहिए। यावत्‌ – भगवन्‌ ! संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त संज्ञी मनुष्य कितने काल की स्थिति वाले आनतदेवों में उत्पन्न होता है ? (गौतम !) सहस्रार देवों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों की वक्तव्यता के समान कहना चाहिए। विशेषता यह कि इसमें प्रथम के तीन संहनन होते हैं। शेष पूर्ववत्‌ अनुबन्धपर्यन्त। भवादेश से – जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट सात भव ग्रहण करता है। कालादेश से – जघन्य दो वर्षपृथक्त्व अधिक अठारह सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक सत्तावन सागरोपम; इसी प्रकार शेष आठ गमक कहने चाहिए। परन्तु स्थिति और संवेध (पृथक्‌ – पृथक्‌) जानना चाहिए। शेष पूर्ववत्‌। इसी प्रकार यावत्‌ अच्युत देव – पर्यन्त जानना चाहिए। किन्तु स्थिति और संवेध (भिन्न – भिन्न) कहना चाहिए। आनतादि चार देवलोकों में प्रथम के तीन संहनन वाले उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! ग्रैवेयकदेव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। यही वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष – इनमें प्रथम के दो संहनन वाले उत्पन्न होते हैं तथा स्थिति और संवेध (भिन्न) समझना चाहिए। भगवन्‌ ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? पूर्वोक्त सारी वक्तव्यता अनुबन्ध तक जानना। विशेष – इनमें प्रथम संहनन वाले उत्पन्न होते हैं। शेष पूर्ववत्‌। भवादेश से – जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पाँच भव तथा कालादेश से – जघन्य दो वर्षपृथक्त्व – अधिक ३१ सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम। शेष आठ गमक की इसी प्रकार कहने चाहिए। विशेष यह है कि इनमें स्थिति और संवेध (भिन्न) जान लेना चाहिए। मनुष्य के नौ ही गमकों में, ग्रैवेयक में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के गमकों के समान कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि विजय आदि में प्रथम संहनन वाला ही उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! सर्वार्थसिद्ध देव कहाँ से आकर उत्पन्न होता है ? इसका उपपात आदि विजय आदि के समान है। यावत्‌ – भगवन्‌ ! वे कितने काल की स्थिति वाले सर्वार्थसिद्ध देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की स्थिति वाले। शेष वक्तव्यता विजयादि देवों के समान है। विशेषता यह है कि भवादेश से – तीन भवों का ग्रहण होता है, कालादेश से – जघन्य दो वर्षपृथक्त्व – अधिक तैंतीस सागरोपम और उत्कृष्ट दो पूर्वकोटि अधिक तैंतीस सागरोपम। यदि वह स्वयं जघन्यकाल की स्थिति वाला हो और सर्वार्थसिद्ध देवों में उत्पन्न हो, तो भी यही पूर्वोक्त वक्तव्यता जानना। विशेषता यह है कि इसकी अवगाहना रत्नीपृथक्त्व और स्थिति वर्ष – पृथक्त्व होती है। संवेध (इसका अपना) जानना चाहिए। यदि वह स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो तो यही पूर्वोक्त वक्तव्यता। किन्तु इसकी अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष है। इसकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि है। शेष सब पूर्ववत्‌ यावत्‌ भवादेश तक। काल की अपेक्षा से – जघन्य दो पूर्वकोटि अधिक तैंतीस सागरोपम और उत्कृष्ट भी दो पूर्वकोटि अधिक तैंतीस सागरोपम। सर्वार्थसिद्ध देवों में ये तीन ही गमक होते हैं। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Mool Sutra Transliteration : [sutra] sohammadeva nam bhamte! Kaohimto uvavajjamti–kim neraiehimto uvavajjamti? Bhedo jaha joisiya-uddesae. Asamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie sahammagadevesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam paliovamatthitiesu ukkosenam tipaliovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Avasesam jaha joisiesu uvavajja-manassa, navaram–sammaditthi vi, michchhaditthi vi, no sammamichchhaditthi. Nani vi, annani vi, do nana do annana niyamam. Thiti jahannenam paliovamam, ukkosenam tinni paliovamaim. Evam anubamdho vi. Sesam taheva. Kaladesenam jahannenam do paliovamaim, ukkosenam chhappaliovamaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno, esa cheva vattavvaya, navaram–kaladesenam jahannenam do paliova-maim, ukkosenam chattari paliovamaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno jahannenam tipaliovamatthitiesu, ukkosena vi tipaliovamatthitiesu, esa cheva vattavvaya, navaram–thiti jahannenam tinni paliovamaim, ukkosena vi tinni paliovamaim. Sesam taheva. Kaladesenam jahannenam chhappaliovamaim, ukkosena vi chhappaliovamaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva appana jahannakalatthitio jao jahannenam paliovamatthitiesu, ukkosena vi paliovamatthitiesu, esa cheva vattavvaya, navaram–ogahana jahannenam dhanapuhattam, ukkosenam do gauyaim. Thiti jahannenam paliovamam, ukkosena vi paliovamam. Sesam taheva. Kaladesenam jahannenam do paliovamaim, ukkosena vi do paliovamaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva appana ukkosakalatthitio jao, adillagamagasarisa tinni gamaga neyavva, navaram–thitim kaladesam cha janejja. Jai samkhejjavasauyasannipamchimdiya? Samkhejjavasauyassa jaheva asurakumaresu uvavajjamanassa taheva nava vi gama, navaram–thitim samveham cha janejja. Jahe ya appana jahannakalatthitio bhavati tahe tisu vi gamaesu sammaditthi vi, michchhaditthi vi, no sammamichchhaditthi. Do nana do annana niyamam. Sesam tam cheva. Jai manussehimto uvavajjamti? Bhedo jaheva jotisiesu uvavajjamanassa, java– Asamkhejjavasauyasannimanusse nam bhamte! Je bhavie sohamme kappe devattae uvavajjittae? Evam jaheva asamkhejja-vasauyassa sannipamchimdiyatirikkhajoniyassa sohamme kappe uvavajja-manassa taheva satta gamaga, navaram–adillaesu dosu gamaesu ogahana jahannenam gauyam, ukkosenam tinni gauyaim. Tatiyagame jahannenam tinni gauyaim, ukkosena vi tinni gauyaim. Chautthagamae jahannenam gauyam, ukkosena vi gauyam. Pachchhimaesu tisu gamaesu jahannenam tinni gauyaim ukkosena vi tinni gauyaim, sesam taheva niravasesam. Jai samkhejjavasauyasannimanussehimto? Evam samkhejjavasauyasannimanussanam jaheva asurakumaresu uvavajjamananam taheva nava gamaga bhaniyavva, navaram–sohammadevatthitim samveham cha janejja. Sesam tam cheva. Isanadeva nam bhamte! Kaohimto uvavajjamti? Isanadevanam esa cheva sohammagadevasarisa vattavvaya, navaram–asamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajoniyassa jesu thanesu sohamme uvavajjamanassa paliovamathiti tesu thanesu iha satiregam paliovamam kayavvam. Chautthagame ogahana jahannenam dhanupuhattam, ukkosenam satiregaim do gauyaim. Sesam taheva. Asamkhejjavasauyasannimanussassa vi taheva thiti jaha pamchimdiyatirikkhajoniyassa asamkhejja-vasauyassa. Ogahana vi jesu thanesu gauyam tesu thanesu iham satiregam gauyam. Sesam taheva. Samkhejjavasauyanam tirikkhajoniyanam manussana ya jaheva sohammesu uvavajjamananam taheva niravasesam nava vi gamaga, navaram–isanathitim samveham cha janejja. Sanamkumaradeva nam bhamte! Kaohimto uvavajjamti? Uvavao jaha sakkarappabhapudhavineraiyanam, java–pajjattasamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie sanamkumaradevesu uva-vajjittae? Avasesa parimanadiya bhavadesapajjavasana sachcheva vattavvaya bhaniyavva jaha sohamme uvavajjamanassa, navaram–sanamkumaratthitim samveham cha janejja. Jahe ya appana jahanna-kalatthitio bhavati tahe tisu vi gamaesu pamcha lessao adillao kayavvao. Sesam tam cheva. Jai manussehimto uvavajjamti? Manussanam jaheva sakkarappabhae uvavajjamananam taheva nava vi gama bhaniyavva, navaram–sanamkumaratthitim samveham cha janejja. Mahimdagadeva nam bhamte! Kaohimto uvavajjamti? Jaha sanamkumaragadevanam vattavvaya taha mahimdagadevana vi bhaniyavva, navaram–mahimdagadevanam thiti satirega bhaniyavva sachcheva. Evam bambhalogadevana vi vattavvaya, navaram–bambhalogatthitim samveham cha janejja. Evam java sahassaro, navaram–thitim samveham cha janejja. Lamtagadinam jahannakalatthitiyassa tirikkhajoniyassa tisu vi gamaesu chhappi lessao kayavvao. Samghayanaim bambhalogalamtaesu pamcha adillagani, mahasukka-sahassaresu chattari. Tirikkhajoniyana vi manussana vi. Sesam tam cheva. Anayadeva nam bhamte! Kaohimto uvavajjamti? Uvavao jaha sahassaradevanam, navaram–tirikkhajoniya khodeyavva, java– Pajjattasamkhejjavasauyasannimanusse nam bhamte! Je bhavie anayadevesu uvavajjittae? Manussana ya vattavvaya jaheva sahassaresu uvavajjamananam, navaram–tinni samghayanani, sesam taheva java anubamdho. Bhavadesenam jahannenam tinni bhavaggahanaim ukkosenam satta bhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam attharasa sagarovamaim dohim vasapuhattehim abbhahiyaim, ukkosenam sattavannam sagarovamaim chauhim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam sesa vi attha gamaga bhaniyavva, navaram–thiti samveham cha janejja. Sesam tam cheva. Evam java achchuyadeva, navaram–thiti samveham cha janejja. Chausu vi samghayana tinni anayadisu. Gevejjagadeva nam bhamte! Kaohimto uvavajjamti? Esa cheva vattavvaya, navaram–do samghayana. Thitim samveham cha janejja. Vijaya-vejayamta-jayamta-aparajitadeva nam bhamte! Kaohimto uvavajjamti? Esa cheva vattavvaya niravasesa java anubamdho tti, navaram–padhamam samghayanam. Sesam taheva. Bhavadesenam jahannenam tinni bhavaggahanaim, ukkosenam pamcha bhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam ekkatisam sagarovamaim dohim vasapuhattehim abbhahiyaim, ukkosenam chhavatthim sagarovamaim tihim puvvakodihim abbhahiyaim evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam sesa vi attha gamaga bhaniyavva, navaram–thitim samveham cha janejja. Manusaladdhi navasu vi gamaesu jaha gevejjesu uvavajjamanassa, navaram–padhamasamghayane. Savvatthagasiddhagadeva nam bhamte! Kaohimto uvavajjamti? Uvavao jaheva vijayadinam, java– Se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam tettisasagarovamatthitiesu, ukkosena vi tettisasagarovamatthitiesu uvavajjejja. Avasesa jaha vijayaisu uvavajjamtanam, navaram– bhavadesenam tinni bhavaggahanaim, kaladesenam jahannenam tettisam sagarovamaim dohim vasapuhattehim abbhahiyaim, ukkosena vi tettisam sagarovamaim dohim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva appana jahannakalatthitio jao, esa cheva vattavvaya, navaram–ogahana-thitio rayanipuhattavasapuhattani. Sesam taheva. Samveham cha janejja. So cheva appana ukkosakalatthitio jao, esa cheva vattavvaya, navaram–ogahana jahannenam pamcha dhanusayaim, ukkossena vi pamcha dhanusayaim. Thiti jahannenam puvvakodi, ukkosena vi puvvakodi. Sesam taheva java bhavadeso tti. Kaladesenam jahannenam tettisam sagarovamaim dohim puvvakodihim abbhahiyaim, ukkosena vi tettisam sagarovamaim dohim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Ete tinni gamaga savvatthasiddhadevanam Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti bhagavam goyame java viharai.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Saudharmadeva, kisa gati se akara utpanna hote haim\? Kya ve nairayikom se yavat devom se akara utpanna hote haim\? Jyotishka – uddeshaka ke anusara bheda janana chahie. Bhagavan ! Asamkhyata varsha ki ayu vale samjnyi pamchendriya – tiryamchayonika kitane kala ki sthiti vale saudharmadevom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya palyopama ki aura utkrishta tina palyopama ki sthiti valom mem. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Jyotishka devom mem utpanna hone vale asamkhyeya varshayushka samjnyi pamchendriya tiryamchom anusara kahana. Visheshata yaha hai ki ve samyagdrishti aura mithyadrishti hote haim, ve jnyani bhi hote haim, ajnyani bhi. Usamem do jnyana ya ajnyana niyama se hote haim. Unaki sthiti jaghanya do palyopama ki aura utkrishta tina palyopama ki hoti hai. Anubandha bhi isi prakara janana. Kaladesha se – jaghanya do palyopama aura utkrishta chhaha palyopama. Yadi vaha jaghanyakala ki sthiti vale saudharma devom mem utpanna hom, to usake sambandha mem bhi yahi vaktavyata hai. Vishesha yaha hai ki kaladesha se – jaghanya do palyopama aura utkrishta chara palyopama. Yadi vaha utkrishta kala ki sthiti vale saudharma devom mem utpanna ho to vaha jaghanya aura utkrishta tina palyopama ki sthiti vale mem utpanna hota hai, vishesha yaha ki sthiti jaghanya aura utkrishta tina palyopama. Kaladesha se – jaghanya aura utkrishta chhaha palyopama. Yadi vaha svayam jaghanyakala ki sthiti vala ho aura saudharma devom mem utpanna ho, jaghanya aura utkrishta eka palyopama ki sthiti vale saudharma devom mem utpanna hota hai, ityadi purvokta kathananusara. Vishesha itana ki avagahana jaghanya dhanushaprithaktva aura utkrishta do gau. Sthiti jaghanya aura utkrishta palyopama ki. Kaladesha se jaghanya aura utkrishta do palyopama. Yadi vaha (asamkhyeya samjnyi pamchendriya – tiryamcha) svayam utkrishta kala ki sthiti vala ho aura saudharma devom mem utpanna ho, to usake antima tina gamakom ka kathana prathama ke tina gamakom ke samana janana chahie. Vishesha yaha hai ki sthiti aura kaladesha (bhinna) janana chahie. Yadi vaha saudharma deva, samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi pamchendriya tiryamchom se akara utpanna ho to\? Asurakumarom mem utpanna hone vale samkhyeya varshayushka samjnyi pamchendriya – tiryamcha ke samana hi isake nau hi gamaka janana. Sthiti aura samvedha (bhinna) samajhana. Jaba vaha svayam jaghanyakala ki sthiti vala ho to tinom gamakom mem samyagdrishti aura mithyadrishti hota hai, isamem do jnyana ya do ajnyana niyama se hote haim. Yadi vaha manushyom se akara utpanna ho to\? Jyotishka devom mem utpanna hone vale manushyom ki vaktavyata ke samana kahana. Bhagavan ! Asamkhyata varsha ki ayu vala samjnyi manushya kitane kala ki sthiti vale saudharmakalpa ke devom mem utpanna hota hai\? Saudharmakalpa mem utpanna hone vale asamkhyeya varshayushka samjnyi pamchendriya – tiryamchayonika ke samana satom hi gamaka janane chahie. Vishesha yaha hai ki prathama ke do gamakom mem avagahana jaghanya eka gau aura utkrishta tina gau hoti hai. Tisare gamaka mem jaghanya aura utkrishta tina gau, chauthe gamaka mem jaghanya aura utkrishta eka gau aura antima tina gamakom mem jaghanya aura utkrishta tina gau ki avagahana hoti hai. Shesha purvavat. Yadi vaha samkhyatavarsha ki ayu vale samjnyi manushyom se akara utpanna hota hai to\? Asurakumarom mem utpanna hone vale samkhyata varshayushka samjnyi manushyom ke samana nau gamaka kahane chahie. Vishesha yaha ki saudharma deva ki sthiti aura samvedha (bhinna) samajhana chahie. Bhagavan ! Ishana deva kaham se akara utpanna hote haim\?, ishanadeva ki yaha vaktavyata saudharma devom ke samana hai. Vishesha yaha ki saudharma devom mem utpanna hone vale jina sthanom mem asamkhyatavarsha ki ayu vale samjnyi pamchendriya tiryamcha ki sthiti eka palyopama ki kahi hai, vaham satireka palyopama ki janani chahie. Chaturtha gamaka mem avagahana jaghanya dhanushaprithaktva, utkrishta satireka do gau ki hoti hai. Asamkhyata varsha ki ayu vale samjnyi ki sthiti, asamkhya varsha ki ayu vale pamchendriya – tiryamchayonika ke samana janana. Avagahana satireka gau ki janana. Saudharma devom mem utpanna hone vale samkhyata varsha ki ayu vale tiryamchom aura manushyom ke vishaya mem jo nau gamaka kahe haim, ve hi ishana deva ke vishaya mem samajhane chahie. Vishesha yaha hai ki sthiti aura samvedha ishana devom ke janana. Bhagavan ! Sanatkumara deva kaham se akara utpanna hote haim\? Inaka upapata sharkaraprabhaprithvi ke nairayikom ke samana janana chahie, yavat. Bhagavan ! Paryapta samkhyeya varshayushka samjnyi pamchendriya – tiryamchayonika kitane kala ki sthiti vale sanatkumara devom mem utpanna hota hai\? Ityadi prashna. Parimana se lekara bhavadeshataka ki sabhi vaktavyata, saudharmakalpa ke samana kahani chahie. Parantu sanatkumara ki sthiti aura samvedha (bhinna) janana. Taba vaha svayam jaghanya kala ki sthiti vala hota hai, taba tinom hi gamakom mem prathama ki pamcha leshyaem hoti haim. Shesha purvavat. Yadi manushyom se akara utpanna ho to\? Ityadi prashna. Sharkaraprabha mem utpanna hone vale manushyom ke samana yaham bhi nau gamaka kahane chahie. Vishesha yaha hai ki sanatkumara devom ki sthiti aura samvedha (bhinna) kahana chahie. Bhagavan ! Mahendra deva kaham se akara utpanna hote haim\? Ityadi prashna. Sanatkumara deva ke anusara mahendra deva janana chahie. Kintu mahendra deva ki sthiti sanatkumara deva se satireka kahani chahie. Isi prakara brahmaloka devom ki bhi vaktavyata janani chahie. Kintu brahmaloka deva ki sthiti aura samvedha (bhinna) janana chahie. Isi prakara sahasraradeva taka purvavat. Kintu sthiti aura samvedha apana – apana janana chahie. Lantaka adi devom mem utpanna hone vale jaghanya sthiti vale samjnyi pamchendriya – tiryamchayonika ke tinom hi gamakom mem chhahom leshyaem kahani chahie. Brahmaloka aura lantaka devom mem prathama ke pamcha samhanana, mahashukra chaura sahasrara mem adi ke chara samhanana tatha tiryamchayonikom tatha manushyom mem bhi yahi janana. Bhagavan ! Anatadeva kaham se akara utpanna hote haim\? (gautama !) sahasrara devom ke samana yaham upapata kahana chahie. Vishesha yaha ki tiryamcha ki utpatti ka nishedha karana chahie. Yavat – bhagavan ! Samkhyata varsha ki ayu vala paryapta samjnyi manushya kitane kala ki sthiti vale anatadevom mem utpanna hota hai\? (gautama !) sahasrara devom mem utpanna hone vale manushyom ki vaktavyata ke samana kahana chahie. Visheshata yaha ki isamem prathama ke tina samhanana hote haim. Shesha purvavat anubandhaparyanta. Bhavadesha se – jaghanya tina bhava aura utkrishta sata bhava grahana karata hai. Kaladesha se – jaghanya do varshaprithaktva adhika atharaha sagaropama aura utkrishta chara purvakoti adhika sattavana sagaropama; isi prakara shesha atha gamaka kahane chahie. Parantu sthiti aura samvedha (prithak – prithak) janana chahie. Shesha purvavat. Isi prakara yavat achyuta deva – paryanta janana chahie. Kintu sthiti aura samvedha (bhinna – bhinna) kahana chahie. Anatadi chara devalokom mem prathama ke tina samhanana vale utpanna hote haim. Bhagavan ! Graiveyakadeva kaham se akara utpanna hote haim\? Ityadi prashna. Yahi vaktavyata kahani chahie. Vishesha – inamem prathama ke do samhanana vale utpanna hote haim tatha sthiti aura samvedha (bhinna) samajhana chahie. Bhagavan ! Vijaya, vaijayanta, jayanta aura aparajita deva, kaham se akara utpanna hote haim\? Purvokta sari vaktavyata anubandha taka janana. Vishesha – inamem prathama samhanana vale utpanna hote haim. Shesha purvavat. Bhavadesha se – jaghanya tina bhava aura utkrishta pamcha bhava tatha kaladesha se – jaghanya do varshaprithaktva – adhika 31 sagaropama aura utkrishta tina purvakoti adhika 66 sagaropama. Shesha atha gamaka ki isi prakara kahane chahie. Vishesha yaha hai ki inamem sthiti aura samvedha (bhinna) jana lena chahie. Manushya ke nau hi gamakom mem, graiveyaka mem utpanna hone vale manushyom ke gamakom ke samana kahani chahie. Visheshata yaha hai ki vijaya adi mem prathama samhanana vala hi utpanna hota hai. Bhagavan ! Sarvarthasiddha deva kaham se akara utpanna hota hai\? Isaka upapata adi vijaya adi ke samana hai. Yavat – Bhagavan ! Ve kitane kala ki sthiti vale sarvarthasiddha devom mem utpanna hote haim\? Gautama ! Jaghanya aura utkrishta taimtisa sagaropama ki sthiti vale. Shesha vaktavyata vijayadi devom ke samana hai. Visheshata yaha hai ki bhavadesha se – tina bhavom ka grahana hota hai, kaladesha se – jaghanya do varshaprithaktva – adhika taimtisa sagaropama aura utkrishta do purvakoti adhika taimtisa sagaropama. Yadi vaha svayam jaghanyakala ki sthiti vala ho aura sarvarthasiddha devom mem utpanna ho, to bhi yahi purvokta vaktavyata janana. Visheshata yaha hai ki isaki avagahana ratniprithaktva aura sthiti varsha – prithaktva hoti hai. Samvedha (isaka apana) janana chahie. Yadi vaha svayam utkrishta kala ki sthiti vala ho to yahi purvokta vaktavyata. Kintu isaki avagahana jaghanya aura utkrishta pamcha sau dhanusha hai. Isaki sthiti jaghanya aura utkrishta purvakoti hai. Shesha saba purvavat yavat bhavadesha taka. Kala ki apeksha se – jaghanya do purvakoti adhika taimtisa sagaropama aura utkrishta bhi do purvakoti adhika taimtisa sagaropama. Sarvarthasiddha devom mem ye tina hi gamaka hote haim. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai