Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Sr No : | 1004357 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-२४ |
Translated Chapter : |
शतक-२४ |
Section : | उद्देशक-२१ मनुष्य | Translated Section : | उद्देशक-२१ मनुष्य |
Sutra Number : | 857 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] मनुस्सा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति जाव देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नेरइएहिंतो वि उववज्जंति जाव देवेहिंतो वि उववज्जंति। एवं उववाओ जहा पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिउद्देसए जाव तमापुढविनेरइएहिंतो वि उववज्जंति, नो अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति। रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! से भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं मासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु। अवसेसा वत्तव्वया जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उव वज्जंतस्स तहेव, नवरं–परिमाणे जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जंति। जहा तहिं अंतोमुहुत्तेहिं तहा इहं मासपुहत्तेहिं संवेहं करेज्जा। सेसं तं चेव। जहा रयणप्पभाए तहा सक्करप्पभाए वि वत्तव्वया, नवरं–जहन्नेणं वासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडी आउएसु। ओगाहणा-लेस्सा-नाण-ट्ठिती-अनुबंध-संवेह-नाणत्तं च जाणेज्जा जहेव तिरिक्खजोणियउद्देसए। एवं जाव तमापुढविनेरइए। जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणि-एहिंतो उववज्जंति? गोयमा! एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो भेदो जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणियउद्देसए, नवरं–तेउ-वाऊ-पडिसेहेयव्वा। सेसं तं चेव। जाव– पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु उक्कोसेणं पुव्वकोडीआउएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं जहेव पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जमाणस्स पुढविक्काइयस्स वत्तव्वया सा चेव इह वि उववज्जमाणस्स भाणियव्वा–नवसु वि गमएसु, नवरं–ततिय-छट्ठ-नवमेसु गमएसु परिमाणं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जंति। जाहे अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ भवति ताहे पढमगमए अज्झवसाणा पसत्था वि अप्पसत्था वि वितियगमए अप्पसत्था, ततियगमए पसत्था भवंति। सेसं तं चेव निरवसेसं। जइ आउक्काइए? एवं आउक्काइयाण वि। एवं वणस्सइकाइयाण वि। एवं जाव चउरिंदियाण वि। असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिय-सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिय-असण्णिमनुस्स- सण्णि-मनुस्सा य एते सव्वे वि जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणि-यउद्देसए तहेव भाणियव्वा, नवरं–एयाणि चेव परिमाण-अज्झवसाण-नाणत्ताणि जाणिज्जा पुढविक्काइयस्स एत्थ चेव उद्देसए भणियाणि। सेसं तहेव निरवसेसं। जइ देवेहिंतो उववज्जंति–किं भवनवासिदेवेहिंतो उववज्जंति? वाणमंतर-जोइसिय-वेमानिय-देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! भवनवासिदेवेहिंतो वि जाव वेमानियदेवेहिंतो वि उववज्जंति। जइ भवनवासिदेवेहिंतो–किं असुरकुमार जाव थणियकुमार? गोयमा! असुरकुमार जाव थणियकुमार। असुरकुमारे णं भंते! जे भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं मासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु, उववज्जेज्जा। एवं जच्चेव पंचिंदियतिरिक्खजोणियउद्देसए वत्तव्वया सच्चेव एत्थ वि भाणियव्वा, नवरं–जहा तहिं जहन्नगं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु तहा इहं मासपुहत्तट्ठितीएसु। परिमाणं जहण्णे-णं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जंति। सेसं तं चेव। एवं जाव ईसानदेवो त्ति। एयाणि चेव नाणत्ताणि। सणंकुमारादीया जाव सहस्सारो त्ति जहेव पंचिंदियतिरिक्खजोणिउद्देसए, नवरं–परिमाणं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जंति। उववाओ जहन्नेणं वासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडीआउएसु उववज्जेज्जा। सेसं तं चेव। संवेहं वासपुहत्तं पुव्वकोडीसु करेज्जा। सणंकुमारे ठिती चउगुणिया अट्ठावीससागरोवमा भवति माहिंदे ताणि चेव सातिरेगाणि, वम्हलोए चत्तालीसं, लंतए छप्पन्नं, महासुक्के अट्ठसट्ठिं, सहस्सारे बावत्तरि सागरोवमाइं। एसा उक्कोसा ठिती भणिया। जहन्नाट्ठिति पि चउगुणेज्जा। आयणदेवे णं भंते! जे भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं वासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडीठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं जहेव सहस्सारदेवाणं वत्तव्वया, नवरं–ओगाहणा-ठिति-अनुबंधे य जाणेज्जा। सेसं तं चेव। भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं छ भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमाइं वासपुहत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं सत्तावन्नं सागरोवमाइं तिहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं नव वि गमा, नवरं–ठिति अनुबंधं संवेहं च जाणेज्जा। एवं जाव अच्चुयदेवो, नवरं–ठितिं अनुबंधं संवेहं च जाणेज्जा। पाणयदेवस्स ठिती तिगुणिया सट्ठिं सागरोवमाइं, आरणगस्स तेवट्ठिं सागरोवमाइं, अच्चुयदेवस्स छावट्ठिं सागरोवमाइं। जइ कप्पातीतावेमानियदेवेहिंतो उववज्जंति–किं गेवेज्जाकप्पातीता? अनुत्तरोववातिय-कप्पातीता गोयमा! गेवेज्जाकप्पातीता, अनुत्तरोववातियकप्पातीता। जइ गेवेज्जा–किं हेट्ठिम-हेट्ठिम गेवेज्जगकप्पातीता जाव उवरिम-उवरिम गेवेज्जा? गोयमा! हेट्ठिम-हेट्ठिम गेवेज्जा जाव उवरिम-उवरिम गेवेज्जा। गेवेज्जगदेवे णं भंते! जे भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं वासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडीट्ठितीएसु। अवसेसं जहा आणय-देवस्स वत्तव्वया, नवरं–ओगाहणा –एगे भवधारणिज्जे सरीरए। से जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं दो रयणीओ। संठाणं–एगे भवधारणिज्जे सरीरे। से समचउरंससंठिए पन्नत्ते। पंच समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेदनासमुग्घाए जाव तेयगसमुग्घाए, नो चेव णं वेउव्वियतेयगसमुग्घाएहिं समोहणिंसु वा, समोहणंति वा, समोहणिस्संति वा। ठिती अनुबंधो जहन्नेणं बावीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं। सेसं तं चेव। कालादेसेणं जहन्नेणं बावीसं सागरोवमाइं वासपुहत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं तेनउति सागरोवमाइं तिहि पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं सेसेसु वि अट्ठगमएसु, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। जइ अनुत्तरोववाइयकप्पातीतावेमानियदेवेहिंतो उववज्जंति–किं विजयअनुत्तरोववाइय? वेजयंत-अनुत्तरोववाइय जाव सव्वट्ठसिद्ध? गोयमा! विजयअनुत्तरोववाइय जाव सव्वट्ठसिद्धअनुत्तरोववाइय। विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवे णं भंते! जे भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? एवं जहेव गेवेज्जगदेवाणं, नवरं–ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं एगा रयणी। सम्मदिट्ठी, नो मिच्छदिट्ठी, नो सम्मामिच्छदिट्ठी। नाणी, नो अन्नाणी, नियमं तिन्नाणी, तं जहा–आभिनिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी ठिती जहन्नेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। सेसं तं चेव। भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं चत्तारि भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं वासपुहत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा, नवरं–ठितिं अनुबंधं संवेधं च जाणेज्जा। सेसं एवं चेव। सव्वट्ठसिद्धगदेवे णं भंते! जे भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए? सा चेव विजयादिदेववत्तव्वया भाणियव्वा, नवरं –ठिती अजहन्नमणुक्कोसेनं तेत्तीसं सागरोवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तं चेव। भवादेसेणं दो भवग्गहणाइं, कालादेसेणं जह-ण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं वासपुहत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं पुव्वकोडीए अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–कालादेसेणं जहन्नेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं वासपुहत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाइं वासपुहत्तमब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव उक्को कालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–कालादेसेणं जहन्नेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं पुव्व कोडीए अब्भहियाइं, उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाइं पुव्वकोडीए अब्भहियाइं एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एते चेव तिन्नि गमगा, सेसा न भण्णंति। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! मनुष्य कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों से आकर यावत् देवों से आकर होते हैं ? गौतम! नैरयिकों से यावत् देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार यहाँ ‘पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक – उद्देशक’ अनुसार, यावत् – तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तक उपपात का कथन करना। भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी का नैरयिक कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य मासपृथक्त्व और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की स्थिति वालों में, शेष वक्तव्यता पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक में उत्पन्न होने वाले रत्नप्रभा के नैरयिक के समान जानना। परिमाण में विशेष यह है कि वे जघन्य एक, दो या तीन, अथवा उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं, संवेध मासपृथक्त्व के साथ संवेध करना। रत्नप्रभा समान शर्कराप्रभा की भी वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि जघन्य वर्षपृथक्त्व की तथा उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है। अवगाहना, लेश्या, ज्ञान, स्थिति, अनुबंध और संवेध का नानात्व तिर्यंचयोनिक – उद्देशक अनुसार जानना। इस प्रकार तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिक तक जानना चाहिए। भगवन् ! यदि वे (मनुष्य), तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे एकेन्द्रिय, या यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे एकेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि वक्तव्यता पंचेन्द्रिय – तिर्यंच – उद्देशक अनुसार जाननी चाहिए। विशेष यह कि इस विषय में तेजस्काय और वायुकाय का निषेध करना चाहिए। शेष पूर्ववत्। यावत् – भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक, कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की स्थिति वाले में उत्पन्न होता है। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होने वाले पृथ्वीकायिक अनुसार मनुष्यों में उत्पन्न होने वाले पृथ्वीकायिक की वक्तव्यता नौ गमकों में कहनी चाहिए। विशेष यह कि तीसरे, छठे और नौंवे गमक में परिमाण जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। जब स्वयं (पृथ्वीकायिक) जघन्यकाल की स्थिति वाला होता है, तब मध्य के तीन गमकों में से प्रथम गमक में अध्यवसाय प्रशस्त भी होते हैं और अप्रशस्त भी। द्वीतिय गमक में अप्रशस्त और तृतीय गमक में प्रशस्त अध्यवसाय होते हैं। शेष पूर्ववत्। यदि वे अप्कायिकों से आकर उत्पन्न हो तो ? (पूर्वोक्त वक्तव्यता कहनी चाहिए) इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों के लिए भी (पूर्वोक्त वक्तव्यता जाननी चाहिए)। इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय – पर्यन्त जानना। असंज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक, संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक, असंज्ञी मनुष्य और संज्ञी मनुष्य, इन सभी के विषय में पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक उद्देशक अनुसार कहना चाहिए। विशेषता यह कि परिमाण और अध्यवसायों की भिन्नता पृथ्वीकायिक के इसी उद्देशक में कहे अनुसार समझनी चाहिए। शेष पूर्ववत्। भगवन् ! यदि वे (मनुष्य) देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, यावत् वैमानिक देवों से आकर ? गौतम ! वे भवनवासी यावत् वैमानिक देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! यदि वे, भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे असुरकुमार – भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् स्तनितकुमार देवों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! असुरकुमार भवनवासी देव कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है? गौतम ! वह जघन्य मासपृथक्त्व और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थितिवाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है। पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक उद्देशक अनुसार यहाँ भी कहनी चाहिए। विशेष यह है कि जिस प्रकार वहाँ जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की स्थिति वाले तिर्यंच में उत्पन्न होने का कहा है, उसी प्रकार यहाँ मासपृथक्त्व की स्थितिवाले मनुष्यों में उत्पन्न होने का कथन करना चाहिए। इसके परिमाण में जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं, शेष सब पूर्वकथितानुसार जानना चाहिए। इसी प्रकार ईशान देव तक वक्तव्यता कहनी चाहिए तथा ये विशेषताएं भी जाननी चाहिए। जैसे पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक उद्देशक अनुसार सनत्कुमार से लेकर सहस्रार तक के देव के सम्बन्ध में कहना चाहिए। विशेष यह कि परिमाण – जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। उनकी उत्पत्ति जघन्य वर्षपृथक्त्व और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की स्थिति वाले मनुष्यों में होती है। संवेध – (जघन्य) वर्ष – पृथक्त्व (उत्कृष्ट) पूर्वकोटि वर्ष से करना चाहिए सनत्कुमार में स्वयं की उत्कृष्ट स्थिति को चार गुणा करने पर अठ्ठाईस सागरोपम होता है। माहेन्द्र में कुछ अधिक अठ्ठाईस सागरोपम होता है। ब्रह्मलोक में ४० सागरोपम, लान्तक में छप्पन सागरोपम, महाशुक्र में अड़सठ सागरोपम तथा सहस्रार में बहत्तर सागरोपम है। यह उत्कृष्ट स्थिति कही गई है। जघन्य स्थिति को भी चार गुणी करनी चाहिए। भगवन् ! आनतदेव कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य वर्ष – पृथक्त्व की और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की। भगवन् ! वे (मनुष्य) एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? सहस्रार देवों अनुसार कहना। परन्तु इनकी अवगाहना, स्थिति और अनुबन्ध के विषय में भिन्नता जानना। भव की अपेक्षा से – जघन्य दो भव और उत्कृष्ट छह भव ग्रहण करते हैं तथा काल की अपेक्षा से – जघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक अठारह सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक सत्तावन सागरोपम। इसी प्रकार नौ ही गमकों में जानना। विशेष यह है कि इनकी स्थिति, अनुबन्ध और संवेध भिन्न – भिन्न जानना। इसी प्रकार अच्युतदेव तक जानना। विशेष यह है कि इनकी स्थिति, अनुबन्ध और संवेध, भिन्न – भिन्न जानने। प्राणतदेव की स्थिति को तीन गुणी करने पर साठ सागरोपम, आरणदेव की स्थति ६३ सागरोपम और अच्युतदेव की स्थिति छासठ ६६ सागरोपम की हो जाती है। भगवन् ! यदि वे मनुष्य कल्पातीत – वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या ग्रैवेयक – कल्पातीत देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा अनुत्तरौपपातिक देवों से ? गौतम ! दोनों प्रकार के कल्पातीत देवों से। यदि वे ग्रैवेयक – कल्पातीत देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे अधस्तन – अधस्तन ग्रैवेयक – कल्पातीत देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् उपरितन – उपरितन ग्रैवेयक से ? गौतम ! वे अधस्तन – अधस्तन यावत् उपरितन – उपरितन ग्रैवेयक कल्पातीत देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! ग्रैवेयक देव कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य वर्षपृथक्त्व की और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है। शेष आनतदेव के समान जानना। विशेष यह है कि हे गौतम ! उसके एकमात्र भवधारणीय शरीर होता है। अवगाहना – जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग की और उत्कृष्ट दो रत्नी की होती है। केवल भवधारणीय शरीर समचतुरस्रसंस्थान से युक्त कहा गया है। पाँच समुद्घात पाए जाते हैं। यथा – वेदना – समुद्घात यावत् तैजस – समुद्घात। किन्तु उन्होंने वैक्रिय – समुद्घात और तैजस – समुद्घात कभी किए नहीं, करते भी नहीं और करेंगे भी नहीं। स्थिति और अनुबन्ध जघन्य बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट इकतीस सागरोपम होता है। कालादेश से – जघन्य वर्षपृथक्त्व – अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि – अधिक ९३ सागरोपम। शेष आठों गमकों में भी इसी प्रकार जानना। परन्तु स्थिति और संवेध भिन्न समझना। भगवन् ! यदि वे (मनुष्य), अनुत्तरौपपातिक कल्पातीत – वैमानिकों से आकार उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे विजय यावत् सर्वार्थसिद्ध वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे विजय यावत् सर्वार्थसिद्ध अनुत्तर विमानवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! ग्रैवेयक देवों के अनुसार कहना। अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग और उत्कृष्ट एक रत्नी। सम्यग्दृष्टि होते हैं, ज्ञानी होते हैं, नियम से तीन ज्ञान होते हैं, यथा – आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान। स्थिति जघन्य इकतीस सागरोपम की और उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की होती है। भवादेश से – वे जघन्य दो भव और उत्कृष्ट चार भव करते हैं। कालादेश से – जघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक इकतीस सागरोपम और उत्कृष्ट दो पूर्वकोटि अधिक छियासठ सागरोपम। इसी प्रकार शेष आठ गमक कहना। विशेष यह कि इनके स्थिति, अनुबन्ध और संवेध भिन्न – भिन्न जानना। भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देव कितने काल स्थितिवाले मनुष्योंमें उत्पन्न होते हैं? (गौतम !) विजयादि देव – सम्बन्धी वक्तव्यता कहना। इनकी स्थिति अजघन्य – अनुत्कृष्ट ३३ सागरोपम है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी जानना। भवादेश से – दो भव तथा कालादेश से – जघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक ३३ सागरोपम और उत्कृष्ट भी। [प्रथम गमक] यदि सर्वार्थ सिद्ध अनुत्तरौपपातिक देव जघन्य काल स्थितिवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हो तो उसके विषय में यही वक्तव्यता। काला – देश से जघन्य और उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व – अधिक तैंतीस सागरोपम। यदि वह उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न हों तो, उसके सम्बन्ध में यही वक्तव्यता। विशेष यह है कि कालादेश से – जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि – अधिक तैंतीस सागरोपम। यहाँ तीन हीं गमक कहना। शेष छह गमक नहीं कहे जाते। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] manussa nam bhamte! Kaohimto uvavajjamti–kim neraiehimto uvavajjamti java devehimto uvavajjamti? Goyama! Neraiehimto vi uvavajjamti java devehimto vi uvavajjamti. Evam uvavao jaha pamchimdiya-tirikkhajoniuddesae java tamapudhavineraiehimto vi uvavajjamti, no ahesattamapudhavineraiehimto uvavajjamti. Rayanappabhapudhavineraie nam bhamte! Se bhavie manussesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam masapuhattatthitiesu, ukkosenam puvvakodiauesu. Avasesa vattavvaya jaha pamchimdiyatirikkhajoniesu uva vajjamtassa taheva, navaram–parimane jahannenam ekko va do va tinni va, ukkosenam samkhejja uvavajjamti. Jaha tahim amtomuhuttehim taha iham masapuhattehim samveham karejja. Sesam tam cheva. Jaha rayanappabhae taha sakkarappabhae vi vattavvaya, navaram–jahannenam vasapuhattatthitiesu, ukkosenam puvvakodi auesu. Ogahana-lessa-nana-tthiti-anubamdha-samveha-nanattam cha janejja jaheva tirikkhajoniyauddesae. Evam java tamapudhavineraie. Jai tirikkhajoniehimto uvavajjamti– kim egimdiyatirikkhajoniehimto uvavajjamti java pamchimdiyatirikkhajoni-ehimto uvavajjamti? Goyama! Egimdiyatirikkhajoniehimto bhedo jaha pamchimdiyatirikkhajoniyauddesae, navaram–teu-vau-padiseheyavva. Sesam tam cheva. Java– Pudhavikkaie nam bhamte! Je bhavie manussesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam amtomuhuttatthitiesu ukkosenam puvvakodiauesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Evam jaheva pamchimdiyatirikkhajoniesu uvavajjamanassa pudhavikkaiyassa vattavvaya sa cheva iha vi uvavajjamanassa bhaniyavva–navasu vi gamaesu, navaram–tatiya-chhattha-navamesu gamaesu parimanam jahannenam ekko va do va tinni va, ukkosenam samkhejja uvavajjamti. Jahe appana jahannakalatthitio bhavati tahe padhamagamae ajjhavasana pasattha vi appasattha vi vitiyagamae appasattha, tatiyagamae pasattha bhavamti. Sesam tam cheva niravasesam. Jai aukkaie? Evam aukkaiyana vi. Evam vanassaikaiyana vi. Evam java chaurimdiyana vi. Asannipamchimdiyatirikkhajoniya-sannipamchimdiyatirikkhajoniya-asannimanussa- sanni-manussa ya ete savve vi jaha pamchimdiyatirikkhajoni-yauddesae taheva bhaniyavva, navaram–eyani cheva parimana-ajjhavasana-nanattani janijja pudhavikkaiyassa ettha cheva uddesae bhaniyani. Sesam taheva niravasesam. Jai devehimto uvavajjamti–kim bhavanavasidevehimto uvavajjamti? Vanamamtara-joisiya-vemaniya-devehimto uvavajjamti? Goyama! Bhavanavasidevehimto vi java vemaniyadevehimto vi uvavajjamti. Jai bhavanavasidevehimto–kim asurakumara java thaniyakumara? Goyama! Asurakumara java thaniyakumara. Asurakumare nam bhamte! Je bhavie manussesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam masapuhattatthitiesu, ukkosenam puvvakodiauesu, uvavajjejja. Evam jachcheva pamchimdiyatirikkhajoniyauddesae vattavvaya sachcheva ettha vi bhaniyavva, navaram–jaha tahim jahannagam amtomuhuttatthitiesu taha iham masapuhattatthitiesu. Parimanam jahanne-nam ekko va do va tinni va, ukkosenam samkhejja uvavajjamti. Sesam tam cheva. Evam java isanadevo tti. Eyani cheva nanattani. Sanamkumaradiya java sahassaro tti jaheva pamchimdiyatirikkhajoniuddesae, navaram–parimanam jahannenam ekko va do va tinni va, ukkosenam samkhejja uvavajjamti. Uvavao jahannenam vasapuhattatthitiesu, ukkosenam puvvakodiauesu uvavajjejja. Sesam tam cheva. Samveham vasapuhattam puvvakodisu karejja. Sanamkumare thiti chauguniya atthavisasagarovama bhavati mahimde tani cheva satiregani, vamhaloe chattalisam, lamtae chhappannam, mahasukke atthasatthim, sahassare bavattari sagarovamaim. Esa ukkosa thiti bhaniya. Jahannatthiti pi chaugunejja. Ayanadeve nam bhamte! Je bhavie manussesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam vasapuhattatthitiesu, ukkosenam puvvakodithitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Evam jaheva sahassaradevanam vattavvaya, navaram–ogahana-thiti-anubamdhe ya janejja. Sesam tam cheva. Bhavadesenam jahannenam do bhavaggahanaim, ukkosenam chha bhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam attharasa sagarovamaim vasapuhattamabbhahiyaim, ukkosenam sattavannam sagarovamaim tihim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam nava vi gama, navaram–thiti anubamdham samveham cha janejja. Evam java achchuyadevo, navaram–thitim anubamdham samveham cha janejja. Panayadevassa thiti tiguniya satthim sagarovamaim, aranagassa tevatthim sagarovamaim, achchuyadevassa chhavatthim sagarovamaim. Jai kappatitavemaniyadevehimto uvavajjamti–kim gevejjakappatita? Anuttarovavatiya-kappatita Goyama! Gevejjakappatita, anuttarovavatiyakappatita. Jai gevejja–kim hetthima-hetthima gevejjagakappatita java uvarima-uvarima gevejja? Goyama! Hetthima-hetthima gevejja java uvarima-uvarima gevejja. Gevejjagadeve nam bhamte! Je bhavie manussesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam vasapuhattatthitiesu, ukkosenam puvvakoditthitiesu. Avasesam jaha anaya-devassa vattavvaya, navaram–ogahana –ege bhavadharanijje sarirae. Se jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam do rayanio. Samthanam–ege bhavadharanijje sarire. Se samachauramsasamthie pannatte. Pamcha samugghaya pannatta, tam jaha–vedanasamugghae java teyagasamugghae, no cheva nam veuvviyateyagasamugghaehim samohanimsu va, samohanamti va, samohanissamti va. Thiti anubamdho jahannenam bavisam sagarovamaim, ukkosenam ekkatisam sagarovamaim. Sesam tam cheva. Kaladesenam jahannenam bavisam sagarovamaim vasapuhattamabbhahiyaim, ukkosenam tenauti sagarovamaim tihi puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam sesesu vi atthagamaesu, navaram–thitim samveham cha janejja. Jai anuttarovavaiyakappatitavemaniyadevehimto uvavajjamti–kim vijayaanuttarovavaiya? Vejayamta-anuttarovavaiya java savvatthasiddha? Goyama! Vijayaanuttarovavaiya java savvatthasiddhaanuttarovavaiya. Vijaya-vejayamta-jayamta-aparajiyadeve nam bhamte! Je bhavie manussesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Evam jaheva gevejjagadevanam, navaram–ogahana jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam ega rayani. Sammaditthi, no michchhaditthi, no sammamichchhaditthi. Nani, no annani, niyamam tinnani, tam jaha–abhinibohiyanani, suyanani, ohinani thiti jahannenam ekkatisam sagarovamaim, ukkosenam tettisam sagarovamaim. Sesam tam cheva. Bhavadesenam jahannenam do bhavaggahanaim, ukkosenam chattari bhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam ekkatisam sagarovamaim vasapuhattamabbhahiyaim, ukkosenam chhavatthim sagarovamaim dohim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam sesa vi attha gamaga bhaniyavva, navaram–thitim anubamdham samvedham cha janejja. Sesam evam cheva. Savvatthasiddhagadeve nam bhamte! Je bhavie manussesu uvavajjittae? Sa cheva vijayadidevavattavvaya bhaniyavva, navaram –thiti ajahannamanukkosenam tettisam sagarovamaim. Evam anubamdho vi. Sesam tam cheva. Bhavadesenam do bhavaggahanaim, kaladesenam jaha-nnenam tettisam sagarovamaim vasapuhattamabbhahiyaim, ukkosenam tettisam sagarovamaim puvvakodie abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno, esa cheva vattavvaya, navaram–kaladesenam jahannenam tettisam sagarovamaim vasapuhattamabbhahiyaim, ukkosena vi tettisam sagarovamaim vasapuhattamabbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva ukko kalatthitiesu uvavanno, esa cheva vattavvaya, navaram–kaladesenam jahannenam tettisam sagarovamaim puvva kodie abbhahiyaim, ukkosena vi tettisam sagarovamaim puvvakodie abbhahiyaim evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Ete cheva tinni gamaga, sesa na bhannamti. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Manushya kaham se akara utpanna hote haim\? Nairayikom se akara yavat devom se akara hote haim\? Gautama! Nairayikom se yavat devom se bhi akara utpanna hote haim. Isa prakara yaham ‘pamchendriya – tiryamchayonika – uddeshaka’ anusara, yavat – tamahprabhaprithvi ke nairayikom se bhi akara utpanna hote haim, kintu adhahsaptamaprithvi ke nairayikom se akara utpanna nahim hote, taka upapata ka kathana karana. Bhagavan ! Ratnaprabhaprithvi ka nairayika kitane kala ki sthiti vale manushyom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya masaprithaktva aura utkrishta purvakotivarsha ki sthiti valom mem, shesha vaktavyata pamchendriya – tiryamchayonika mem utpanna hone vale ratnaprabha ke nairayika ke samana janana. Parimana mem vishesha yaha hai ki ve jaghanya eka, do ya tina, athava utkrishta samkhyata utpanna hote haim, samvedha masaprithaktva ke satha samvedha karana. Ratnaprabha samana sharkaraprabha ki bhi vaktavyata kahani chahie. Vishesha yaha hai ki jaghanya varshaprithaktva ki tatha utkrishta purvakotivarsha ki sthiti vale manushyom mem utpanna hota hai. Avagahana, leshya, jnyana, sthiti, anubamdha aura samvedha ka nanatva tiryamchayonika – uddeshaka anusara janana. Isa prakara tamahprabhaprithvi ke nairayika taka janana chahie. Bhagavan ! Yadi ve (manushya), tiryamchayonikom se akara utpanna hote haim to kya ve ekendriya, ya yavat pamchendriya tiryamchayonikom se akara utpanna hote haim\? Gautama ! Ve ekendriya – tiryamchayonikom se akara utpanna hote haim, ityadi vaktavyata pamchendriya – tiryamcha – uddeshaka anusara janani chahie. Vishesha yaha ki isa vishaya mem tejaskaya aura vayukaya ka nishedha karana chahie. Shesha purvavat. Yavat – bhagavan ! Jo prithvikayika, kitane kala ki sthiti vale manushyom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya antarmuhurtta ki aura utkrishta purvakotivarsha ki sthiti vale mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Ityadi prashna. Pamchendriya – tiryamchayonikom mem utpanna hone vale prithvikayika anusara manushyom mem utpanna hone vale prithvikayika ki vaktavyata nau gamakom mem kahani chahie. Vishesha yaha ki tisare, chhathe aura naumve gamaka mem parimana jaghanya eka, do ya tina aura utkrishta samkhyata utpanna hote haim. Jaba svayam (prithvikayika) jaghanyakala ki sthiti vala hota hai, taba madhya ke tina gamakom mem se prathama gamaka mem adhyavasaya prashasta bhi hote haim aura aprashasta bhi. Dvitiya gamaka mem aprashasta aura tritiya gamaka mem prashasta adhyavasaya hote haim. Shesha purvavat. Yadi ve apkayikom se akara utpanna ho to\? (purvokta vaktavyata kahani chahie) isi prakara vanaspatikayikom ke lie bhi (purvokta vaktavyata janani chahie). Isi prakara chaturindriya – paryanta janana. Asamjnyi pamchendriya – tiryamchayonika, samjnyi pamchendriya – tiryamchayonika, asamjnyi manushya aura samjnyi manushya, ina sabhi ke vishaya mem pamchendriya – tiryamchayonika uddeshaka anusara kahana chahie. Visheshata yaha ki parimana aura adhyavasayom ki bhinnata prithvikayika ke isi uddeshaka mem kahe anusara samajhani chahie. Shesha purvavat. Bhagavan ! Yadi ve (manushya) devom se akara utpanna hote haim, to bhavanavasi devom se akara utpanna hote haim, yavat vaimanika devom se akara\? Gautama ! Ve bhavanavasi yavat vaimanika devom se bhi akara utpanna hote haim. Bhagavan ! Yadi ve, bhavanavasi devom se akara utpanna hote haim, to kya ve asurakumara – bhavanavasi devom se akara utpanna hote haim, athava yavat stanitakumara devom se utpanna hote haim\? Gautama ! Ve asurakumara yavat stanitakumara bhavanavasi devom se akara utpanna hote haim. Bhagavan ! Asurakumara bhavanavasi deva kitane kala ki sthiti vale manushyom mem utpanna hota hai? Gautama ! Vaha jaghanya masaprithaktva aura utkrishta purvakoti ki sthitivale manushyom mem utpanna hota hai. Pamchendriya – tiryamchayonika uddeshaka anusara yaham bhi kahani chahie. Vishesha yaha hai ki jisa prakara vaham jaghanya antarmuhurtta ki sthiti vale tiryamcha mem utpanna hone ka kaha hai, usi prakara yaham masaprithaktva ki sthitivale manushyom mem utpanna hone ka kathana karana chahie. Isake parimana mem jaghanya eka, do, tina aura utkrishta samkhyata utpanna hote haim, shesha saba purvakathitanusara janana chahie. Isi prakara ishana deva taka vaktavyata kahani chahie tatha ye visheshataem bhi janani chahie. Jaise pamchendriya – tiryamchayonika uddeshaka anusara sanatkumara se lekara sahasrara taka ke deva ke sambandha mem kahana chahie. Vishesha yaha ki parimana – jaghanya eka, do ya tina aura utkrishta samkhyata utpanna hote haim. Unaki utpatti jaghanya varshaprithaktva aura utkrishta purvakoti varsha ki sthiti vale manushyom mem hoti hai. Samvedha – (jaghanya) varsha – prithaktva (utkrishta) purvakoti varsha se karana chahie Sanatkumara mem svayam ki utkrishta sthiti ko chara guna karane para aththaisa sagaropama hota hai. Mahendra mem kuchha adhika aththaisa sagaropama hota hai. Brahmaloka mem 40 sagaropama, lantaka mem chhappana sagaropama, mahashukra mem arasatha sagaropama tatha sahasrara mem bahattara sagaropama hai. Yaha utkrishta sthiti kahi gai hai. Jaghanya sthiti ko bhi chara guni karani chahie. Bhagavan ! Anatadeva kitane kala ki sthiti vale manushyom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya varsha – prithaktva ki aura utkrishta purvakotivarsha ki. Bhagavan ! Ve (manushya) eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Sahasrara devom anusara kahana. Parantu inaki avagahana, sthiti aura anubandha ke vishaya mem bhinnata janana. Bhava ki apeksha se – jaghanya do bhava aura utkrishta chhaha bhava grahana karate haim tatha kala ki apeksha se – jaghanya varshaprithaktva adhika atharaha sagaropama aura utkrishta tina purvakoti adhika sattavana sagaropama. Isi prakara nau hi gamakom mem janana. Vishesha yaha hai ki inaki sthiti, anubandha aura samvedha bhinna – bhinna janana. Isi prakara achyutadeva taka janana. Vishesha yaha hai ki inaki sthiti, anubandha aura samvedha, bhinna – bhinna janane. Pranatadeva ki sthiti ko tina guni karane para satha sagaropama, aranadeva ki sthati 63 sagaropama aura achyutadeva ki sthiti chhasatha 66 sagaropama ki ho jati hai. Bhagavan ! Yadi ve manushya kalpatita – vaimanika devom se akara utpanna hote haim to kya graiveyaka – kalpatita devom se akara utpanna hote haim, athava anuttaraupapatika devom se\? Gautama ! Donom prakara ke kalpatita devom se. Yadi ve graiveyaka – kalpatita devom se akara utpanna hote haim, to kya ve adhastana – adhastana graiveyaka – kalpatita devom se akara utpanna hote haim, athava yavat uparitana – uparitana graiveyaka se\? Gautama ! Ve adhastana – adhastana yavat uparitana – uparitana graiveyaka kalpatita devom se bhi akara utpanna hote haim. Bhagavan ! Graiveyaka deva kitane kala ki sthiti vale manushyom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya varshaprithaktva ki aura utkrishta purvakotivarsha ki sthiti vale manushyom mem utpanna hota hai. Shesha anatadeva ke samana janana. Vishesha yaha hai ki he gautama ! Usake ekamatra bhavadharaniya sharira hota hai. Avagahana – jaghanya amgula ke asamkhyatave bhaga ki aura utkrishta do ratni ki hoti hai. Kevala bhavadharaniya sharira samachaturasrasamsthana se yukta kaha gaya hai. Pamcha samudghata pae jate haim. Yatha – vedana – samudghata yavat taijasa – samudghata. Kintu unhomne vaikriya – samudghata aura taijasa – samudghata kabhi kie nahim, karate bhi nahim aura karemge bhi nahim. Sthiti aura anubandha jaghanya baisa sagaropama aura utkrishta ikatisa sagaropama hota hai. Kaladesha se – jaghanya varshaprithaktva – adhika baisa sagaropama aura utkrishta tina purvakoti – adhika 93 sagaropama. Shesha athom gamakom mem bhi isi prakara janana. Parantu sthiti aura samvedha bhinna samajhana. Bhagavan ! Yadi ve (manushya), anuttaraupapatika kalpatita – vaimanikom se akara utpanna hote haim, to kya ve vijaya yavat sarvarthasiddha vaimanika devom se akara utpanna hote haim\? Gautama ! Ve vijaya yavat sarvarthasiddha anuttara vimanavasi devom se akara utpanna hote haim. Bhagavan ! Vijaya, vaijayanta, jayanta aura aparajita deva kitane kala ki sthiti vale manushyom mem utpanna hote haim\? Gautama ! Graiveyaka devom ke anusara kahana. Avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatave bhaga aura utkrishta eka ratni. Samyagdrishti hote haim, jnyani hote haim, niyama se tina jnyana hote haim, yatha – abhinibodhikajnyana, shrutajnyana aura avadhijnyana. Sthiti jaghanya ikatisa sagaropama ki aura utkrishta 33 sagaropama ki hoti hai. Bhavadesha se – ve jaghanya do bhava aura utkrishta chara bhava karate haim. Kaladesha se – jaghanya varshaprithaktva adhika ikatisa sagaropama aura utkrishta do purvakoti adhika chhiyasatha sagaropama. Isi prakara shesha atha gamaka kahana. Vishesha yaha ki inake sthiti, anubandha aura samvedha bhinna – bhinna janana. Bhagavan ! Sarvarthasiddha deva kitane kala sthitivale manushyommem utpanna hote haim? (gautama !) vijayadi deva – sambandhi vaktavyata kahana. Inaki sthiti ajaghanya – anutkrishta 33 sagaropama hai. Isi prakara anubandha bhi janana. Bhavadesha se – do bhava tatha kaladesha se – jaghanya varshaprithaktva adhika 33 sagaropama aura utkrishta bhi. [prathama gamaka] yadi sarvartha siddha anuttaraupapatika deva jaghanya kala sthitivale manushyommem utpanna ho to usake vishaya mem yahi vaktavyata. Kala – desha se jaghanya aura utkrishta varshaprithaktva – adhika taimtisa sagaropama. Yadi vaha utkrishtakala ki sthiti vale manushyom mem utpanna hom to, usake sambandha mem yahi vaktavyata. Vishesha yaha hai ki kaladesha se – jaghanya aura utkrishta purvakoti – adhika taimtisa sagaropama. Yaham tina him gamaka kahana. Shesha chhaha gamaka nahim kahe jate. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai.’ |