Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004359
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-२४

Translated Chapter :

शतक-२४

Section : उद्देशक-२२ थी २४ देव Translated Section : उद्देशक-२२ थी २४ देव
Sutra Number : 859 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] जोइसिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो? भेदो जाव सण्णिपंचिंदियतिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असण्णिपंचिंदियतिरिक्ख। जइ सण्णि किं संखेज्ज? असंखेज्ज? गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय। असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए जोतिसिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमवाससयसहस्स-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा, अवसेसं जहा असुरकुमारुद्देसए, नवरं–ठिती जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तहेव, नवरं –कालादेसेणं जहन्नेणं दो अट्ठभागपलिओवमाइं, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं वाससयसहस्समब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं वि अट्ठभागपलिओवमट्ठितीएसु। एस चेव वत्तव्वया, नवरं–कालादेसेणं जाणेज्जा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–ठिती जहन्नेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। कालादेसेणं जहन्नेणं दो पलिओवमाइं दोहिं वाससयसहस्सेहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं वाससयसहस्समब्भहियाइं। सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमट्ठितीएसु, उक्कोसेण वि अट्ठभागपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एस चेव वत्तव्वया, नवरं–ओगाहणा जहन्नेण धनुपुहत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगाइं अट्ठारसधनुसयाइं। ठिती जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेण वि अट्ठभागपलिओवमं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तहेव। कालादेसेणं जहन्नेणं दो अट्ठभागपलिओवमाइं, उक्कोसेण वि दो अट्ठभागपलिओवमाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। जहन्नकालट्ठितियस्स एस चेव एक्को गमो। सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, सा चेव ओहिया वत्तव्वया, नवरं–ठिती जहन्नेणं तिन्नि पलिओवमाइं, उक्कोसेण वि तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तं चेव। एवं पच्छिमा तिन्नि गमगा नेयव्वा, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। एते सत्त गमगा। जइ संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदिय? संखेज्जवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणाणं तहेव नव वि गमा भाणियव्वा, नवरं–जोतिसिय-ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तहेव निरवसेसं। जह मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? भेदो तहेव जाव– असंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए जोइसिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? एवं जहा असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियस्स जोइसिएसु चेव उववज्जमाणस्स सत्त गमगा तहेव मनुस्साण वि, नवरं –ओगाहणाविसेसो पढमेसु तिसु गमएसु ओगाहणा जहन्नेणं सातिरेगाइं नव धनुसयाइं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं। मज्झिमगमए जहन्नेणं सातिरेगाइं नव धनुसयाइं, उक्कोसेणं वि सातिरेगाइं नव धनुसयाइं। पच्छिमेसु तिसु गमएसु जहन्नेणं तिन्नि गाउयाइं, उक्कोसेणं वि तिन्नि गाउयाइं। सेसं तहेव निरवसेसं जाव संवेहो त्ति। जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो? संखेज्जवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववज्ज-माणाणं तहेव नव गमगा भाणियव्वा, नवरं–जोतिसियठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव निरवसेसं। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! ज्योतिष्क देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम! तिर्यंचों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, यावत्‌ – वे संज्ञी – पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी पंचेन्द्रिय से नहीं। भगवन्‌ ! यदि वे संज्ञी – पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात – वर्ष से ? गौतम ! वे संख्यातवर्ष की और असंख्यातवर्ष की आयु वाले से उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक, कितने काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की। शेष असुरकुमार – उद्देशक के अनुसार जानना। विशेष यह है कि उसकी स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। अनुबन्ध भी इसी प्रकार होता है। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से जघन्य दो आठवें भाग और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक चार पल्योपम। यदि वह, जघन्य काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के आठवे भाग की स्थिति वाले ज्योतिष्कों में उत्पन्न होता है, इत्यादि कहना चाहिए। विशेष यह कि कालादेश (भिन्न) जानना चाहिए। यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न हो, तो यही कहना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति जघन्य एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी समझना, कालादेश से – जघन्य दो लाख वर्ष अधिक दो पल्योपम और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक चार पल्योपम। यदि वह (संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंच) स्वयं जघन्यकाल की स्थिति वाला हो और ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के आठवे भाग की स्थिति वाले ज्योतिष्कों में उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इस विषय में पूर्वोक्त वक्तव्यता जानना। विशेष यह कि अवगाहना जघन्य धनुषपृथक्त्व और उत्कृष्ट सातिरेक अठारह सौ धनुष की होती है। स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के आठवें भाग की होती है। अनुबन्ध भी इसी प्रकार समझना। कालादेश से – जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के दो आठवें भाग तक। जघन्यकाल की स्थिति वाले के लिए यह एक ही गमक होता है। यदि वह स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और ज्योतिष्कों में उत्पन्न हो, तो औघिक गमक के समान वक्तव्यता जानना। विशेष यह कि स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की। अनुबन्ध भी इसी प्रकार जानना। इसी प्रकार अन्तिम तीन गमक जानने चाहिए। विशेष यह कि स्थिति और संवेध (भिन्न) समझना। भगवन्‌ ! यदि वह (ज्योतिष्क देव) संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंच से आकर उत्पन्न हो तो ? यहाँ असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचों के समान नौ ही गमक जानने चाहिए। विशेष यह कि ज्योतिष्क की स्थिति और संवेध भिन्न जानना चाहिए। यदि वे मनुष्यों से आकर उत्पन्न हों तो? (गौतम !) पूर्वोक्त संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंच के समान जानना चाहिए। पूर्ववत्‌ मनुष्यों के भेदों का उल्लेख करना चाहिए। भगवन्‌ ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य कितने काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होता है ? (गौतम !) ज्योतिष्कों में उत्पन्न होने वाले असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंच के सात गमक अनुसार मनुष्य के विषय में भी समझना। प्रथम के तीन गमकों में अवगाहना की विशेषता है। जघन्य सातिरेक नौ सौ धनुष और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है। मध्य के तीन गमक में जघन्य और उत्कृष्ट सातिरेक नौ सौ धनुष होती है तथा अन्तिम तीन गमकों में जघन्य और उत्कृष्ट तीन गाऊ होती है। शेष संवेध तक पूर्ववत्‌ जानना चाहिए। यदि वह संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्य से आकर उत्पन्न होता है, तो ? असुर – कुमारों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों के गमकों के समान यहाँ नौ गमक कहने चाहिए। किन्तु ज्योतिष्क देवों की स्थिति और संवेध (भिन्न) जानना। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Mool Sutra Transliteration : [sutra] joisiya nam bhamte! Kaohimto uvavajjamti–kim neraiehimto? Bhedo java sannipamchimdiyatirikkha-joniehimto uvavajjamti, no asannipamchimdiyatirikkha. Jai sanni kim samkhejja? Asamkhejja? Goyama! Samkhejjavasauya, asamkhejjavasauya. Asamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie jotisiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam atthabhagapaliovamatthitiesu, ukkosenam paliovamavasasayasahassa-tthitiesu uvavajjejja, avasesam jaha asurakumaruddesae, navaram–thiti jahannenam atthabhagapaliovamam, ukkosenam tinni paliovamaim. Evam anubamdho vi. Sesam taheva, navaram –kaladesenam jahannenam do atthabhagapaliovamaim, ukkosenam chattari paliovamaim vasasayasahassamabbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno jahannenam atthabhagapaliovamatthitiesu, ukkosenam vi atthabhagapaliovamatthitiesu. Esa cheva vattavvaya, navaram–kaladesenam janejja. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno, esa cheva vattavvaya, navaram–thiti jahannenam paliovamam vasasayasahassamabbhahiyam, ukkosenam tinni paliovamaim. Evam anubamdho vi. Kaladesenam jahannenam do paliovamaim dohim vasasayasahassehim abbhahiyaim, ukkosenam chattari paliovamaim vasasayasahassamabbhahiyaim. So cheva appana jahannakalatthitio jao jahannenam atthabhagapaliovamatthitiesu, ukkosena vi atthabhagapaliovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Esa cheva vattavvaya, navaram–ogahana jahannena dhanupuhattam, ukkosenam satiregaim attharasadhanusayaim. Thiti jahannenam atthabhagapaliovamam, ukkosena vi atthabhagapaliovamam. Evam anubamdho vi. Sesam taheva. Kaladesenam jahannenam do atthabhagapaliovamaim, ukkosena vi do atthabhagapaliovamaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Jahannakalatthitiyassa esa cheva ekko gamo. So cheva appana ukkosakalatthitio jao, sa cheva ohiya vattavvaya, navaram–thiti jahannenam tinni paliovamaim, ukkosena vi tinni paliovamaim. Evam anubamdho vi. Sesam tam cheva. Evam pachchhima tinni gamaga neyavva, navaram–thitim samveham cha janejja. Ete satta gamaga. Jai samkhejjavasauyasannipamchimdiya? Samkhejjavasauyanam jaheva asurakumaresu uvavajjamananam taheva nava vi gama bhaniyavva, navaram–jotisiya-thitim samveham cha janejja. Sesam taheva niravasesam. Jaha manussehimto uvavajjamti? Bhedo taheva java– Asamkhejjavasauyasannimanusse nam bhamte! Je bhavie joisiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Evam jaha asamkhejjavasauyasannipamchimdiyassa joisiesu cheva uvavajjamanassa satta gamaga taheva manussana vi, navaram –ogahanaviseso padhamesu tisu gamaesu ogahana jahannenam satiregaim nava dhanusayaim, ukkosenam tinni gauyaim. Majjhimagamae jahannenam satiregaim nava dhanusayaim, ukkosenam vi satiregaim nava dhanusayaim. Pachchhimesu tisu gamaesu jahannenam tinni gauyaim, ukkosenam vi tinni gauyaim. Sesam taheva niravasesam java samveho tti. Jai samkhejjavasauyasannimanussehimto? Samkhejjavasauyanam jaheva asurakumaresu uvavajja-mananam taheva nava gamaga bhaniyavva, navaram–jotisiyathitim samveham cha janejja. Sesam tam cheva niravasesam. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Jyotishka deva kaham se akara utpanna hote haim\? Kya ve nairayikom se akara utpanna hote haim\? Gautama! Tiryamchom aura manushyom se akara utpanna hote haim, yavat – ve samjnyi – pamchendriya – tiryamchayonikom se akara utpanna hote haim, asamjnyi pamchendriya se nahim. Bhagavan ! Yadi ve samjnyi – pamchendriya tiryamchom se akara utpanna hote haim, to kya ve samkhyatavarsha ki ayu vale samjnyi pamchendriya – tiryamchom se akara utpanna hote haim, athava asamkhyata – varsha se\? Gautama ! Ve samkhyatavarsha ki aura asamkhyatavarsha ki ayu vale se utpanna hote haim. Bhagavan ! Asamkhyata varsha ki ayu vala samjnyi pamchendriya – tiryamchayonika, kitane kala ki sthiti vale jyotishka devom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya palyopama ke athavem bhaga ki aura utkrishta eka lakha varsha adhika eka palyopama ki. Shesha asurakumara – uddeshaka ke anusara janana. Vishesha yaha hai ki usaki sthiti jaghanya palyopama ke athavem bhaga aura utkrishta tina palyopama ki hoti hai. Anubandha bhi isi prakara hota hai. Vishesha yaha hai ki kala ki apeksha se jaghanya do athavem bhaga aura utkrishta eka lakha varsha adhika chara palyopama. Yadi vaha, jaghanya kala ki sthiti vale jyotishka devom mem utpanna ho, to jaghanya aura utkrishta palyopama ke athave bhaga ki sthiti vale jyotishkom mem utpanna hota hai, ityadi kahana chahie. Vishesha yaha ki kaladesha (bhinna) janana chahie. Yadi vaha utkrishta kala ki sthiti vale jyotishka devom mem utpanna ho, to yahi kahana chahie. Vishesha yaha hai ki sthiti jaghanya eka lakha varsha adhika eka palyopama ki aura utkrishta tina palyopama ki hoti hai. Isi prakara anubandha bhi samajhana, kaladesha se – jaghanya do lakha varsha adhika do palyopama aura utkrishta eka lakha varsha adhika chara palyopama. Yadi vaha (samjnyi pamchendriya – tiryamcha) svayam jaghanyakala ki sthiti vala ho aura jyotishka devom mem utpanna ho, to jaghanya aura utkrishta palyopama ke athave bhaga ki sthiti vale jyotishkom mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Gautama ! Isa vishaya mem purvokta vaktavyata janana. Vishesha yaha ki avagahana jaghanya dhanushaprithaktva aura utkrishta satireka atharaha sau dhanusha ki hoti hai. Sthiti jaghanya aura utkrishta palyopama ke athavem bhaga ki hoti hai. Anubandha bhi isi prakara samajhana. Kaladesha se – jaghanya aura utkrishta palyopama ke do athavem bhaga taka. Jaghanyakala ki sthiti vale ke lie yaha eka hi gamaka hota hai. Yadi vaha svayam utkrishta kala ki sthiti vala ho aura jyotishkom mem utpanna ho, to aughika gamaka ke samana vaktavyata janana. Vishesha yaha ki sthiti jaghanya aura utkrishta tina palyopama ki. Anubandha bhi isi prakara janana. Isi prakara antima tina gamaka janane chahie. Vishesha yaha ki sthiti aura samvedha (bhinna) samajhana. Bhagavan ! Yadi vaha (jyotishka deva) samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi pamchendriya – tiryamcha se akara utpanna ho to\? Yaham asurakumarom mem utpanna hone vale samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi pamchendriya – tiryamchom ke samana nau hi gamaka janane chahie. Vishesha yaha ki jyotishka ki sthiti aura samvedha bhinna janana chahie. Yadi ve manushyom se akara utpanna hom to? (gautama !) purvokta samjnyi pamchendriya – tiryamcha ke samana janana chahie. Purvavat manushyom ke bhedom ka ullekha karana chahie. Bhagavan ! Asamkhyata varsha ki ayu vala samjnyi manushya kitane kala ki sthiti vale jyotishka devom mem utpanna hota hai\? (gautama !) jyotishkom mem utpanna hone vale asamkhyeya varshayushka samjnyi pamchendriya – tiryamcha ke sata gamaka anusara manushya ke vishaya mem bhi samajhana. Prathama ke tina gamakom mem avagahana ki visheshata hai. Jaghanya satireka nau sau dhanusha aura utkrishta tina gau ki hoti hai. Madhya ke tina gamaka mem jaghanya aura utkrishta satireka nau sau dhanusha hoti hai tatha antima tina gamakom mem jaghanya aura utkrishta tina gau hoti hai. Shesha samvedha taka purvavat janana chahie. Yadi vaha samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi manushya se akara utpanna hota hai, to\? Asura – kumarom mem utpanna hone vale samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi manushyom ke gamakom ke samana yaham nau gamaka kahane chahie. Kintu jyotishka devom ki sthiti aura samvedha (bhinna) janana. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai.’