Sutra Navigation: Samavayang ( समवयांग सूत्र )

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Sr No : 1003316
Scripture Name( English ): Samavayang Translated Scripture Name : समवयांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

समवाय प्रकीर्णक

Translated Chapter :

समवाय प्रकीर्णक

Section : Translated Section :
Sutra Number : 216 Category : Ang-04
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] से किं तं सूयगडे? सूयगडे णं ससमया सूइज्जंति परसमया सूइज्जंति ससमयपरसमया सूइज्जंति जीवा सूइज्जंति अजीवा सूइज्जंति जीवाजीवा सूइ ज्जंति लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति। सूयगडे णं जीवाजीव-पुण्ण-पावासव-संवर-निज्जर-बंध-मोक्खावसाणा पयत्था सूइज्जंति, समणाणं अचिरकालपव्वइयाणं कुसमय-मोह-मोह-मइमोहियाणं संदेहजाय-सहजबुद्धि-परिणाम-संसइयाणं पावकर-मइलमइ-गुण-विसोहणत्थं आसीतस्स किरिया वादिसतस्स चउरासीए वेनइय-वाईणं–तिण्हं तेसट्ठाणं अकिरियवाईणं, सत्तट्ठीए अन्नाणियवाईणं, बत्तीसाए वेनइयवाईणं–तिण्हं तेसट्ठाणं अन्नदिट्ठियसयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविज्जति। नाणादिट्ठंतवयण-निस्सारं सुट्ठु दरिसयंता विविहवित्थरानुगम-परमस-ब्भाव-गुण-विसिट्ठा मोक्खपहोयारगा उदारा अन्नाणतमंध-कारदुग्गेसु दीवभूता सोवाणा चेव सिद्धिसुगइधरुत्तमस्स निक्खोभ-निप्पकंपा सुत्तत्था। सूयगडस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ। से णं अंगट्ठयाए दोच्चे अंगे दो सुयक्खंधा तेवीसं अज्झयणा तेत्तीसं उद्देसनकाला तेत्तीसं समुद्देसनकाला छत्तीसं पदसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अनंता गमा अनंता पज्जवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कडा निबद्धा निकाइया जिनपन्नत्ता भावा आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति। से एवं आया एवं णाया एवं विन्नाया एवं चरण-करण-परूवणया आघविज्जति पन्नविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति। सेत्तं सूयगडे।
Sutra Meaning : सूत्रकृत क्या है – उसमें क्या वर्णन है ? सूत्रकृत के द्वारा स्वसमय सूचित किये जाते हैं, पर – समय सूचित किये जाते हैं, स्वसमय और परसमय सूचित किये जाते हैं, जीव सूचित किये जाते हैं, अजीव सूचित किये जाते हैं, जीव और अजीव सूचित किये जाते हैं, लोक सूचित किया जाता है, अलोक सूचित किया जाता है और लोकअलोक सूचित किया जाता है। सूत्रकृत के द्वारा जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष तक के सभी पदार्थ सूचित किये जाते हैं। जो श्रमण अल्पकाल में ही प्रव्रजित हैं जिनकी बुद्धि खोटे समयों या सिद्धांतों के सूनने से मोहित है, जिनके हृदय तत्त्व के विषय में सन्देह के उत्पन्न होने से आन्दोलित हो रहे हैं और सहज बुद्धि का परि – णमन संशय को प्राप्त हो रहा है, उनकी पाप उपार्जन करने वाली मलिन मति के दुर्गुणों के शोधन करने के लिए क्रियावादियों के एक सौ अस्सी, अक्रियावादियों के चौरासी, अज्ञानवादियों के सड़संठ और विनयवादियों के बत्तीस, इन सब तीन सौ तिरेसठ अन्यवादियों का व्यूह अर्थात्‌ निराकरण करके स्व – समय (जैन सिद्धान्त) स्थापित किया जाता है। नाना प्रकार के दृष्टान्तपूर्ण युक्तियुक्त वचनों के द्वारा पर – मत के वचनों की भलीभाँति से निःसारता दिखलाते हुए, तथा सत्पद – प्ररूपणा आदि अनेक अनुयोग द्वारों के द्वारा जीवादि तत्त्वों को विविध प्रकार से विस्तारानुगम कर परम सद्‌भावगुण – विशिष्ट, मोक्षमार्ग के अवतारक, सम्यग्दर्शनादि में प्राणियों के प्रवर्तक, सकल – सूत्रअर्थसम्बन्धी दोषों से रहित, समस्त सद्‌गुणों से रहित, उदार, प्रगाढ़ अन्धकारमयी दुर्गों में दीपकस्वरूप, सिद्धि और सुगतिरूपी उत्तम गृह के लिए सोपान के समान, प्रवादियों के विक्षोभ से रहित निष्प्रकम्प सूत्र और अर्थ सूचित किये जाते हैं। सूत्रकृताङ्ग की वाचनाएं परिमित हैं, अनुयोगद्वार संख्यात हैं, प्रतिपत्तियाँ संख्यात हैं, वेढ़ संख्यात हैं, श्लोक संख्यात हैं, और निर्युक्तियाँ संख्यात हैं। अंगों की अपेक्षा यह दूसरा अंग है। इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं, तेईस अध्ययन हैं, तैंतीस उद्देशनकाल हैं, तैंतीस समुद्देशनकाल हैं, पद – परिमाण से छत्तीस हजार पद हैं, संख्यात अक्षर, अनन्तगम और अनन्त पर्याय हैं। परिमित त्रस और अनन्त स्थावर जीवों का तथा नित्य, अनित्य सूत्र में साक्षात कथित एवं निर्युक्ति आदि द्वारा सिद्ध जिनेन्द्र भगवान द्वारा प्ररूपित पदार्थों का सामान्य – विशेष रूप में कथन किया गया है, नाम, स्थापना आदि भेद करके प्रज्ञापन किया है, नामादि के स्वरूप का कथन करके प्ररूपण किया गया है, उपमाओं द्वारा दर्शित किया गया है, हेतु दृष्टान्त आदि देकर निदर्शित किया गया है और उपनय – निगमन द्वारा उपदर्शित किए गए हैं। इस अंग का अध्ययन करे अध्येता ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है। इस अंग में चरण (मूल गुणों) तथा करण (उत्तर गुणों) का कथन किया गया है, प्रज्ञापना और प्ररूपणा की गई है। उनका निदर्शन और उपदर्शन कराया गया है यह सूत्रकृताङ्ग का परिचय है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] se kim tam suyagade? Suyagade nam sasamaya suijjamti parasamaya suijjamti sasamayaparasamaya suijjamti jiva suijjamti ajiva suijjamti jivajiva sui jjamti loge suijjati aloge suijjati logaloge suijjati. Suyagade nam jivajiva-punna-pavasava-samvara-nijjara-bamdha-mokkhavasana payattha suijjamti, samananam achirakalapavvaiyanam kusamaya-moha-moha-maimohiyanam samdehajaya-sahajabuddhi-parinama-samsaiyanam pavakara-mailamai-guna-visohanattham asitassa kiriya vadisatassa chaurasie venaiya-vainam–tinham tesatthanam akiriyavainam, sattatthie annaniyavainam, battisae venaiyavainam–tinham tesatthanam annaditthiyasayanam vuham kichcha sasamae thavijjati. Nanaditthamtavayana-nissaram sutthu darisayamta vivihavittharanugama-paramasa-bbhava-guna-visittha mokkhapahoyaraga udara annanatamamdha-karaduggesu divabhuta sovana cheva siddhisugaidharuttamassa nikkhobha-nippakampa suttattha. Suyagadassa nam paritta vayana samkhejja anuogadara samkhejjao padivattio samkhejja vedha samkhejja siloga samkhejjao nijjuttio. Se nam amgatthayae dochche amge do suyakkhamdha tevisam ajjhayana tettisam uddesanakala tettisam samuddesanakala chhattisam padasahassaim payaggenam, samkhejja akkhara anamta gama anamta pajjava paritta tasa anamta thavara sasaya kada nibaddha nikaiya jinapannatta bhava aghavijjamti pannavijjamti paruvijjamti damsijjamti nidamsijjamti uvadamsijjamti. Se evam aya evam naya evam vinnaya evam charana-karana-paruvanaya aghavijjati pannavijjati paruvijjati damsijjati nidamsijjati uvadamsijjati. Settam suyagade.
Sutra Meaning Transliteration : Sutrakrita kya hai – usamem kya varnana hai\? Sutrakrita ke dvara svasamaya suchita kiye jate haim, para – samaya suchita kiye jate haim, svasamaya aura parasamaya suchita kiye jate haim, jiva suchita kiye jate haim, ajiva suchita kiye jate haim, jiva aura ajiva suchita kiye jate haim, loka suchita kiya jata hai, aloka suchita kiya jata hai aura lokaaloka suchita kiya jata hai. Sutrakrita ke dvara jiva, ajiva, punya, papa, asrava, samvara, nirjara, bandha aura moksha taka ke sabhi padartha suchita kiye jate haim. Jo shramana alpakala mem hi pravrajita haim jinaki buddhi khote samayom ya siddhamtom ke sunane se mohita hai, jinake hridaya tattva ke vishaya mem sandeha ke utpanna hone se andolita ho rahe haim aura sahaja buddhi ka pari – namana samshaya ko prapta ho raha hai, unaki papa uparjana karane vali malina mati ke durgunom ke shodhana karane ke lie kriyavadiyom ke eka sau assi, akriyavadiyom ke chaurasi, ajnyanavadiyom ke sarasamtha aura vinayavadiyom ke battisa, ina saba tina sau tiresatha anyavadiyom ka vyuha arthat nirakarana karake sva – samaya (jaina siddhanta) sthapita kiya jata hai. Nana prakara ke drishtantapurna yuktiyukta vachanom ke dvara para – mata ke vachanom ki bhalibhamti se nihsarata dikhalate hue, tatha satpada – prarupana adi aneka anuyoga dvarom ke dvara jivadi tattvom ko vividha prakara se vistaranugama kara parama sadbhavaguna – vishishta, mokshamarga ke avataraka, samyagdarshanadi mem praniyom ke pravartaka, sakala – sutraarthasambandhi doshom se rahita, samasta sadgunom se rahita, udara, pragarha andhakaramayi durgom mem dipakasvarupa, siddhi aura sugatirupi uttama griha ke lie sopana ke samana, pravadiyom ke vikshobha se rahita nishprakampa sutra aura artha suchita kiye jate haim. Sutrakritanga ki vachanaem parimita haim, anuyogadvara samkhyata haim, pratipattiyam samkhyata haim, verha samkhyata haim, shloka samkhyata haim, aura niryuktiyam samkhyata haim. Amgom ki apeksha yaha dusara amga hai. Isake do shrutaskandha haim, teisa adhyayana haim, taimtisa uddeshanakala haim, taimtisa samuddeshanakala haim, pada – parimana se chhattisa hajara pada haim, samkhyata akshara, anantagama aura ananta paryaya haim. Parimita trasa aura ananta sthavara jivom ka tatha nitya, anitya sutra mem sakshata kathita evam niryukti adi dvara siddha jinendra bhagavana dvara prarupita padarthom ka samanya – vishesha rupa mem kathana kiya gaya hai, nama, sthapana adi bheda karake prajnyapana kiya hai, namadi ke svarupa ka kathana karake prarupana kiya gaya hai, upamaom dvara darshita kiya gaya hai, hetu drishtanta adi dekara nidarshita kiya gaya hai aura upanaya – nigamana dvara upadarshita kie gae haim. Isa amga ka adhyayana kare adhyeta jnyata aura vijnyata ho jata hai. Isa amga mem charana (mula gunom) tatha karana (uttara gunom) ka kathana kiya gaya hai, prajnyapana aura prarupana ki gai hai. Unaka nidarshana aura upadarshana karaya gaya hai yaha sutrakritanga ka parichaya hai.