Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000494 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा |
Section : | उद्देशक-२ | Translated Section : | उद्देशक-२ |
Sutra Number : | 494 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा अंबवणं उवागच्छित्तए, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुजाणावेज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो। से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि? अह भिक्खू इच्छेज्जा अंबं भोत्तए वा, [पायए वा?] सेज्जं पुण अंबं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं अंबं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण अंबं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा–संताणगं अतिरिच्छछिन्नं अवोच्छिन्नं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण अंबं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा अंबभित्तगं वा, अंबपेसियं वा, अंबचोयगं वा, अंबसालगं वा, अंबडगलं वा भोत्तए वा, पायए वा। सेज्जं पुण जाणेज्जा–अंबभित्तगं वा जाव अंबडगलं वा सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा–अंबभित्तगं वा जाव अंबडगलं वा अप्पंडं अप्पाणं अप्पबीयं अप्प-हरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवोच्छिन्नं-अफासुयं अनेसणिज्जं ति मण्ण-माणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा अंबभित्तगं वा जाव अंबडगलं वा अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा उच्छुवणं उवागच्छित्तए, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुजाणावेज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो। से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि? अह भिक्खू इच्छेज्जा उच्छुं भोत्तए वा, पायए वा। सेज्जं [पुण?] उच्छुं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं उच्छुं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उच्छुं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवोच्छिन्नं–अफासुयं अणेस-णिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उच्छुं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा अंतरुच्छुयं वा, उच्छुगंडियं वा, उच्छुचोयगं वा, उच्छुसालगं वा, उच्छु-डगलं वा भोत्तए वा, पायए वा। सेज्जं पुण जाणेज्जा–अंतरुच्छुयं वा जाव डगलं वा सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा–अंतरुच्छुयं वा जाव डगलं वा अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्प-हरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवोच्छिन्नं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मण्ण-माणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा–अंतरुच्छुयं वा जाव डगलं वा अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्प-हरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा ल्हसुणवणं उवागच्छित्तए, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुजाणावेज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो। से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि? अह भिक्खू इच्छेज्जा ल्हसुणं भोत्तए वासेज्जं पुण ल्हसुणं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-म क्कडा संताणगं तहप्पगारं ल्हसुणं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ल्हसुणं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवोच्छिन्नं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ल्हसुणं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा ल्हसुणं वा, ल्हसुण-कंदं वा, ल्हसुण-चोयगं वा, ल्हसुण-णालगं वा भोत्तए वा, पायए वा। सेज्जं पुण जाणेज्जा–ल्हसुणं वा जाव ल्हसुण-णालगं वा सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा–ल्हसुणं वा जाव ल्हसुण-णालगं वा अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवोच्छिन्नं–अफासुय अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा–ल्हसुणं वा जाव ल्हसुण-णालगं वा अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। | ||
Sutra Meaning : | वह साधु या साध्वी आम के वन में ठहरना चाहे तो उस आम्रवन का जो स्वामी या अधिष्ठाता हो, उससे अवग्रह की अनुज्ञा प्राप्त करे उतने समय तक, उतने नियत क्षेत्र में आम्रवन में ठहरेंगे, इसी बीच हमारे समागत साधर्मिक भी इसी का अनुसरण करेंगे। अवधि पूर्ण होने के पश्चात् यहाँ से विहार कर जाएंगे। उस आम्रवन में अवग्रहानुज्ञा ग्रहण करके ठहरने पर क्या करे ? यदि साधु आम खाना या उसका रस पीना चाहता है, तो वहाँ के आम यदि अण्डों यावत् मकड़ी के जलों से युक्त देखे – जाने तो उस प्रकार के आम्रफलों को अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर ग्रहण न करे। यदि साधु या साध्वी उस आम्रवन के आमों को ऐसे जाने कि वे हैं तो अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित, किन्तु वे तीरछे कटे हुए नहीं है, न खण्डित हैं तो उन्हें अप्रासुक एवं अनैषणीय मानकर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे। यदि साधु या साध्वी यह जाने कि आम अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं, साथ ही तीरछे कटे हुए हैं और खण्डित हैं, तो उन्हें प्रासुक और एषणीय जानकर प्राप्त होने पर ग्रहण करे। यदि साधु या साध्वी आम का आधा भाग, आम की पेशी, आम की छाल या आम का गिरि, आम का रस, या आम के बारीक टुकड़े खाना – पीना चाहे, किन्तु वह यह जाने कि वह आम का अर्ध भाग यावत् आम के बारीक टुकड़े अंडों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त हैं तो उन्हें अप्रासुक एवं अनैषणीय मानकर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे। यदि साधु या साध्वी यह जाने कि आम का आधा भाग यावत् आम के छोटे बारीक टुकड़े अंडों यावत् मकड़ी के जालों से तो रहित हैं, किन्तुं वे तीरछे कटे हुए नहीं हैं, और न ही खण्डित हैं तो उन्हें भी अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर ग्रहण न करे। यदि साधु या साध्वी यह जान ले कि आम की आधी फाँक से लेकर आम के छोटे बारीक टुकड़े तक अंडों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं, तीरछे कटे हुए भी हैं और खण्डित भी हैं तो उसको प्रासुक एवं एषणीय मानकर प्राप्त होने पर ग्रहण कर ले। वह साधु या साध्वी यदि इक्षुवन में ठहरना चाहे तो जो वहाँ का स्वामी या उसके द्वारा नियुक्त अधिकारी हो, उससे क्षेत्र – काल की सीमा खोलकर अवग्रह की अनुज्ञा ग्रहण करके वहाँ निवास करे। उस इक्षुवन की अवग्र – हानुज्ञा ग्रहण करने से क्या प्रयोजन ? यदि वहाँ रहते हुए साधु कदाचित् ईख खाना या उसका रस पीना चाहे तो पहले यह जान ले कि वे ईख अंडों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त तो नहीं है ? यदि वैसे हों तो साधु उन्हें अप्रासुक अनैषणीय जानकर छोड़ दे। यदि वे अंडों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त तो नहीं हैं, किन्तु तीरछे कटे हुए या टुकड़े – टुकड़े किये हुए नहीं है, तब भी उन्हें पूर्ववत् जानकर न ले। यदि साधु को यह प्रतीति हो जाए कि वे ईख अंडों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं, तीरछे कटे हुए तथा टुकड़े – टुकड़े किये हुए हैं तो उन्हें प्रासुक एवं एषणीय जानकर प्राप्त होने पर वह ले सकता है। यह सारा वर्णन आम्रवन की तरह समझना चाहिए। यदि साधु या साध्वी ईख के पर्व का मध्यभाग, ईख की गँड़ेरी, ईख का छिलका या ईख के अन्दर का गर्भ, ईख की छाल या रस, ईख के छोटे – छोटे बारीक टुकड़े, खाना या पीना चाहे व पहले वह जान जाए कि वह ईख के पर्व का मध्यभाग यावत् ईख के छोटे – छोटे बारीक टुकड़े अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त हैं, तो उस प्रकार के उन इक्षु – अवयवों को अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर ग्रहण न करे। साधु साध्वी यदि यह जाने कि वह ईख के पर्व का मध्यभाग यावत् ईख के छोटे – छोटे कोमल टुकड़े अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से तो रहित हैं, किन्तु तीरछे कटे हुए नहीं है, तो उन्हें पूर्ववत् जानकर ग्रहण न करे, यदि वे इक्षु – अवयव अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं तथा तीरछे कटे हुए भी हैं तो उन्हें प्रासुक एवं एषणीय जानकर मिलने पर वह ग्रहण कर सकता है। यदि साधु या साध्वी (किसी कारणवश) लहसून के वन पर ठहरना चाहे तो पूर्वोक्त विधि से अवग्रहानुज्ञा ग्रहण करके रहे। किसी कारणवश लहसून खाना चाहे तो पूर्व सूत्रवत् पूर्वोक्त विधिवत् ग्रहण कर सकता है। इसके तीनों आलापक पूर्व सूत्रवत् समझना। यदि साधु या साध्वी (किसी कारणवश) लहसून, लहसून का कंद, लहसून की छाल या छिलका या रस अथवा लहसून के गर्भ का आवरण खाना – पीना चाहे और उसे ज्ञात हो जाए कि यह लहसून यावत् लहसून का बीज अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त है, यावत् मकड़ी के जालों से रहित है, किन्तु तीरछा कटा हुआ नहीं तो भी उसे न ले, यदि तीरछा कटा हुआ हो तो पूर्ववत् प्रासुक एवं एषणीय जानकर मिलने पर ले सकता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhikkhu va bhikkhuni va abhikamkhejja ambavanam uvagachchhittae, je tattha isare, je tattha samahitthae, te oggaham anujanavejja. Kamam khalu auso! Ahalamdam ahaparinnayam vasamo, java auso, java ausamtassa oggaho, java sahammiya etta, tava oggaham oginhissamo, tena param viharissamo. Se kim puna tattha oggahamsi evoggahiyamsi? Aha bhikkhu ichchhejja ambam bhottae va, [payae va?] Sejjam puna ambam janejja–saamdam sapanam sabiyam sahariyam sausam saudayam sauttimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam, tahappagaram ambam–aphasuyam anesanijjam ti mannamane labhe samte no padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna ambam janejja–appamdam appapanam appabiyam appahariyam apposam appudayam apputtimga-panaga-daga-mattiya-makkada–samtanagam atirichchhachhinnam avochchhinnam–aphasuyam anesanijjam ti mannamane labhe samte no padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna ambam janejja–appamdam appapanam appabiyam appahariyam apposam appudayam apputtimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam tirichchhachchhinnam vochchhinnam–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va abhikamkhejja ambabhittagam va, ambapesiyam va, ambachoyagam va, ambasalagam va, ambadagalam va bhottae va, payae va. Sejjam puna janejja–ambabhittagam va java ambadagalam va saamdam sapanam sabiyam sahariyam sausam saudayam sauttimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam–aphasuyam anesanijjam ti mannamane labhe samte no padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna janejja–ambabhittagam va java ambadagalam va appamdam appanam appabiyam appa-hariyam apposam appudayam apputtimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam atirichchhachchhinnam avochchhinnam-aphasuyam anesanijjam ti manna-mane labhe samte no padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna janejja ambabhittagam va java ambadagalam va appamdam appapanam appabiyam appahariyam apposam appudayam apputtimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam tirichchhachchhinnam vochchhinnam–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va abhikamkhejja uchchhuvanam uvagachchhittae, je tattha isare, je tattha samahitthae, te oggaham anujanavejja. Kamam khalu auso! Ahalamdam ahaparinnayam vasamo, java auso, java ausamtassa oggaho, java sahammiya etta, tava oggaham oginhissamo, tena param viharissamo. Se kim puna tattha oggahamsi evoggahiyamsi? Aha bhikkhu ichchhejja uchchhum bhottae va, payae va. Sejjam [puna?] uchchhum janejja–saamdam sapanam sabiyam sahariyam sausam saudayam sauttimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam, tahappagaram uchchhum–aphasuyam anesanijjam ti mannamane labhe samte no padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna uchchhum janejja–appamdam appapanam appabiyam appahariyam apposam appudayam apputtimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam atirichchhachchhinnam avochchhinnam–aphasuyam anesa-nijjam ti mannamane labhe samte no padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna uchchhum janejja–appamdam appapanam appabiyam appahariyam apposa appudayam apputtimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam tirichchhachchhinnam vochchhinnam–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va abhikamkhejja amtaruchchhuyam va, uchchhugamdiyam va, uchchhuchoyagam va, uchchhusalagam va, uchchhu-dagalam va bhottae va, payae va. Sejjam puna janejja–amtaruchchhuyam va java dagalam va saamdam sapanam sabiyam sahariyam sausam saudayam sauttimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam–aphasuyam anesanijjam ti mannamane labhe samte no padigahejja. 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Aha bhikkhu ichchhejja lhasunam bhottae vasejjam puna lhasunam janejja–saamdam sapanam sabiyam sahariyam sausam saudayam sauttimga-panaga-daga-mattiya-ma kkada samtanagam tahappagaram lhasunam–aphasuyam anesanijjam ti mannamane labhe samte no padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna lhasunam janejja–appamdam appanam appabiyam appahariyam apposam appudayam apputtimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam atirichchhachchhinnam avochchhinnam–aphasuyam anesanijjam ti mannamane labhe samte no padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna lhasunam janejja–appamdam appapanam appabiyam appahariyam apposam appudayam apputtimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam tirichchhachchhinnam vochchhinnam–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va abhikamkhejja lhasunam va, lhasuna-kamdam va, lhasuna-choyagam va, lhasuna-nalagam va bhottae va, payae va. Sejjam puna janejja–lhasunam va java lhasuna-nalagam va saamdam sapanam sabiyam sahariyam sausam saudayam sauttimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam–aphasuyam anesanijjam ti mannamane labhe samte no padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna janejja–lhasunam va java lhasuna-nalagam va appamdam appapanam appabiyam appahariyam apposam appudayam apputtimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam atirichchhachchhinnam avochchhinnam–aphasuya anesanijjam ti mannamane labhe samte no padigahejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna janejja–lhasunam va java lhasuna-nalagam va appamdam appapanam appabiyam appahariyam apposam appudayam apputtimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam tirichchhachchhinnam vochchhinnam–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vaha sadhu ya sadhvi ama ke vana mem thaharana chahe to usa amravana ka jo svami ya adhishthata ho, usase avagraha ki anujnya prapta kare utane samaya taka, utane niyata kshetra mem amravana mem thaharemge, isi bicha hamare samagata sadharmika bhi isi ka anusarana karemge. Avadhi purna hone ke pashchat yaham se vihara kara jaemge. Usa amravana mem avagrahanujnya grahana karake thaharane para kya kare\? Yadi sadhu ama khana ya usaka rasa pina chahata hai, to vaham ke ama yadi andom yavat makari ke jalom se yukta dekhe – jane to usa prakara ke amraphalom ko aprasuka evam anaishaniya janakara grahana na kare. Yadi sadhu ya sadhvi usa amravana ke amom ko aise jane ki ve haim to andom yavat makari ke jalom se rahita, kintu ve tirachhe kate hue nahim hai, na khandita haim to unhem aprasuka evam anaishaniya manakara prapta hone para bhi grahana na kare. Yadi sadhu ya sadhvi yaha jane ki ama andom yavat makari ke jalom se rahita haim, satha hi tirachhe kate hue haim aura khandita haim, to unhem prasuka aura eshaniya janakara prapta hone para grahana kare. Yadi sadhu ya sadhvi ama ka adha bhaga, ama ki peshi, ama ki chhala ya ama ka giri, ama ka rasa, ya ama ke barika tukare khana – pina chahe, kintu vaha yaha jane ki vaha ama ka ardha bhaga yavat ama ke barika tukare amdom yavat makari ke jalom se yukta haim to unhem aprasuka evam anaishaniya manakara prapta hone para bhi grahana na kare. Yadi sadhu ya sadhvi yaha jane ki ama ka adha bhaga yavat ama ke chhote barika tukare amdom yavat makari ke jalom se to rahita haim, kintum ve tirachhe kate hue nahim haim, aura na hi khandita haim to unhem bhi aprasuka evam anaishaniya janakara grahana na kare. Yadi sadhu ya sadhvi yaha jana le ki ama ki adhi phamka se lekara ama ke chhote barika tukare taka amdom yavat makari ke jalom se rahita haim, tirachhe kate hue bhi haim aura khandita bhi haim to usako prasuka evam eshaniya manakara prapta hone para grahana kara le. Vaha sadhu ya sadhvi yadi ikshuvana mem thaharana chahe to jo vaham ka svami ya usake dvara niyukta adhikari ho, usase kshetra – kala ki sima kholakara avagraha ki anujnya grahana karake vaham nivasa kare. Usa ikshuvana ki avagra – hanujnya grahana karane se kya prayojana\? Yadi vaham rahate hue sadhu kadachit ikha khana ya usaka rasa pina chahe to pahale yaha jana le ki ve ikha amdom yavat makari ke jalom se yukta to nahim hai\? Yadi vaise hom to sadhu unhem aprasuka anaishaniya janakara chhora de. Yadi ve amdom yavat makari ke jalom se yukta to nahim haim, kintu tirachhe kate hue ya tukare – tukare kiye hue nahim hai, taba bhi unhem purvavat janakara na le. Yadi sadhu ko yaha pratiti ho jae ki ve ikha amdom yavat makari ke jalom se rahita haim, tirachhe kate hue tatha tukare – tukare kiye hue haim to unhem prasuka evam eshaniya janakara prapta hone para vaha le sakata hai. Yaha sara varnana amravana ki taraha samajhana chahie. Yadi sadhu ya sadhvi ikha ke parva ka madhyabhaga, ikha ki gamreri, ikha ka chhilaka ya ikha ke andara ka garbha, ikha ki chhala ya rasa, ikha ke chhote – chhote barika tukare, khana ya pina chahe va pahale vaha jana jae ki vaha ikha ke parva ka madhyabhaga yavat ikha ke chhote – chhote barika tukare andom yavat makari ke jalom se yukta haim, to usa prakara ke una ikshu – avayavom ko aprasuka evam anaishaniya janakara grahana na kare. Sadhu sadhvi yadi yaha jane ki vaha ikha ke parva ka madhyabhaga yavat ikha ke chhote – chhote komala tukare andom yavat makari ke jalom se to rahita haim, kintu tirachhe kate hue nahim hai, to unhem purvavat janakara grahana na kare, yadi ve ikshu – avayava andom yavat makari ke jalom se rahita haim tatha tirachhe kate hue bhi haim to unhem prasuka evam eshaniya janakara milane para vaha grahana kara sakata hai. Yadi sadhu ya sadhvi (kisi karanavasha) lahasuna ke vana para thaharana chahe to purvokta vidhi se avagrahanujnya grahana karake rahe. Kisi karanavasha lahasuna khana chahe to purva sutravat purvokta vidhivat grahana kara sakata hai. Isake tinom alapaka purva sutravat samajhana. Yadi sadhu ya sadhvi (kisi karanavasha) lahasuna, lahasuna ka kamda, lahasuna ki chhala ya chhilaka ya rasa athava lahasuna ke garbha ka avarana khana – pina chahe aura use jnyata ho jae ki yaha lahasuna yavat lahasuna ka bija andom yavat makari ke jalom se yukta hai, yavat makari ke jalom se rahita hai, kintu tirachha kata hua nahim to bhi use na le, yadi tirachha kata hua ho to purvavat prasuka evam eshaniya janakara milane para le sakata hai. |