Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000493 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा |
Section : | उद्देशक-२ | Translated Section : | उद्देशक-२ |
Sutra Number : | 493 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा, अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णविज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया ‘एत्ता, ताव’ ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो। से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि? जे तत्थ समनाण वा माहनाण वा छत्तए वा, मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, नालिया वा, चेलं वा, चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्म-छेदणए वा, तं नो अंतोहिंतो बाहिं णीणेज्जा, बहियाओ वा नो अंतो पवेसेज्जा, नो सुत्तं वा णं पडिबोहेज्जा, नो तेसिं किंचि अप्पत्तियं पडिनीयं करेज्जा। | ||
Sutra Meaning : | साधु धर्मशाला आदि स्थानों में जाकर, ठहरने के स्थान को देखभाल कर विचारपूर्वक अवग्रह की याचना करे। वह अवग्रह की अनुज्ञा माँगते हुए उक्त स्थान के स्वामी या अधिष्ठाता से कहे कि आपकी ईच्छानुसार – जितने समय तक और जितने क्षेत्र में निवास करने की आप हमें अनुज्ञा देंगे, उतने समय तक और उतने ही क्षेत्र में हम ठहरेंगे। हमारे जितने भी साधर्मिक साधु यहाँ आएंगे, उनके निवास के लिए भी जितने काल और जितने क्षेत्र तक इस स्थान में ठहरने की आपकी अनुज्ञा होगी, उतने काल और क्षेत्र में वे ठहरेंगे। नियत अवधि के पश्चात् वे और हम यहाँ से विहार कर देंगे। उक्त स्थान के अवग्रह की अनुज्ञा प्राप्त हो जाने पर साधु उसमें निवास करते समय क्या करे ? वहाँ (ठहरे हुए) शाक्यादि श्रमणों या ब्राह्मणों के दण्ड, छत्र, यावत् चर्मच्छेदनक आदि उपकरण पड़े हों, उन्हें वह भीतर से बाहर न नीकाले और न ही बाहर से अन्दर रखे, तथा किसी सोए हुए श्रमण या ब्राह्मण को न जगाए। उनके साथ किंचित् मात्र भी अप्रीतिजनक या प्रतिकूल व्यवहार न करे, जिससे उनके हृदय को आघात पहुँचे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se agamtaresu va, aramagaresu va, gahavai-kulesu va, pariyavasahesu va, anuvii oggaham jaejja, je tattha isare, je tattha samahitthae, te oggaham anunnavijja. Kamam khalu auso! Ahalamdam ahaparinnayam vasamo, java auso, java ausamtassa oggaho, java sahammiya ‘etta, tava’ oggaham oginhissamo, tena param viharissamo. Se kim puna tattha oggahamsi evoggahiyamsi? Je tattha samanana va mahanana va chhattae va, mattae va, damdae va, latthiya va, bhisiya va, naliya va, chelam va, chilimili va, chammae va, chammakosae va, chamma-chhedanae va, tam no amtohimto bahim ninejja, bahiyao va no amto pavesejja, no suttam va nam padibohejja, no tesim kimchi appattiyam padiniyam karejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Sadhu dharmashala adi sthanom mem jakara, thaharane ke sthana ko dekhabhala kara vicharapurvaka avagraha ki yachana kare. Vaha avagraha ki anujnya mamgate hue ukta sthana ke svami ya adhishthata se kahe ki apaki ichchhanusara – jitane samaya taka aura jitane kshetra mem nivasa karane ki apa hamem anujnya demge, utane samaya taka aura utane hi kshetra mem hama thaharemge. Hamare jitane bhi sadharmika sadhu yaham aemge, unake nivasa ke lie bhi jitane kala aura jitane kshetra taka isa sthana mem thaharane ki apaki anujnya hogi, utane kala aura kshetra mem ve thaharemge. Niyata avadhi ke pashchat ve aura hama yaham se vihara kara demge. Ukta sthana ke avagraha ki anujnya prapta ho jane para sadhu usamem nivasa karate samaya kya kare\? Vaham (thahare hue) shakyadi shramanom ya brahmanom ke danda, chhatra, yavat charmachchhedanaka adi upakarana pare hom, unhem vaha bhitara se bahara na nikale aura na hi bahara se andara rakhe, tatha kisi soe hue shramana ya brahmana ko na jagae. Unake satha kimchit matra bhi apritijanaka ya pratikula vyavahara na kare, jisase unake hridaya ko aghata pahumche. |