Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000490 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा |
Section : | उद्देशक-१ | Translated Section : | उद्देशक-१ |
Sutra Number : | 490 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णवेज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णातं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसं-तस्स ओग्गहे, जाव साहम्मिया ‘एत्ता, ताव’ ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो। से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि? जे तत्थ साहम्मिया संभोइया समणुण्णा उवागच्छेज्जा, जे तेण सयमेसियाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा तेण ते साहम्मिया संभोइया समणुण्णा उवणिमंतेज्जा, नो चेव णं पर-पडियाए उगिज्झिय-उगिज्झिय उवणिमंतेज्जा। | ||
Sutra Meaning : | साधु पथिकशालाओं, आरामगृहों, गृहस्थ के घरों और परिव्राजकों के आवासों में जाकर पहले साधुओं के आवास योग्य क्षेत्र भलीभाँति देख – सोचकर अवग्रह की याचना करे। उस क्षेत्र या स्थान का जो स्वामी हो, या जो वहाँ का अधिष्ठाता हो उससे इस प्रकार अवग्रह की अनुज्ञा माँगे ‘‘आपकी ईच्छानुसार – जितने समय तक रहने की तथा जितने क्षेत्र में निवास करने की तुम आज्ञा दोगे, उतने समय तक, उतने क्षेत्र में हम निवास करेंगे। यहाँ जितने समय तक आप की अनुज्ञा है, उतनी अवधि तक जितने भी अन्य साधु आएंगे, उनके लिए भी जितने क्षेत्र – काल की अवग्रहानुज्ञा ग्रहण करेंगे वे भी उतने ही समय तक उतने ही क्षेत्र में ठहरेंगे, पश्चात् वे और हम विहार कर देंगे। अवग्रह के अनुज्ञापूर्वक ग्रहण कर लेने पर फिर वह साधु क्या करे ? वहाँ कोई साधर्मिक, साम्भोगिक एवं समनोज्ञ साधु अतिथि रूप में आ जाए तो वह साधु स्वयं अपने द्वारा गवेषणा करके लाये हुए अशनादि चतुर्विध आहार को उन साधर्मिक, सांभोगिक एवं समनोज्ञ साधुओं को उपनिमंत्रित करे, किन्तु अन्य साधु द्वारा या अन्य रुग्णादि साधु के लिए लाये आहारादि को लेकर उन्हें उपनिमंत्रित न करे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se agamtaresu va, aramagaresu va, gahavai-kulesu va, pariyavasahesu va anuvii oggaham jaejja, je tattha isare je tattha samahitthae, te oggaham anunnavejja. Kamam khalu auso! Ahalamdam ahaparinnatam vasamo, java auso, java ausam-tassa oggahe, java sahammiya ‘etta, tava’ oggaham oginhissamo, tena param viharissamo. Se kim puna tatthoggahamsi evoggahiyamsi? Je tattha sahammiya sambhoiya samanunna uvagachchhejja, je tena sayamesiyae asanam va panam va khaimam va saimam va tena te sahammiya sambhoiya samanunna uvanimamtejja, no cheva nam para-padiyae ugijjhiya-ugijjhiya uvanimamtejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Sadhu pathikashalaom, aramagrihom, grihastha ke gharom aura parivrajakom ke avasom mem jakara pahale sadhuom ke avasa yogya kshetra bhalibhamti dekha – sochakara avagraha ki yachana kare. Usa kshetra ya sthana ka jo svami ho, ya jo vaham ka adhishthata ho usase isa prakara avagraha ki anujnya mamge ‘‘apaki ichchhanusara – jitane samaya taka rahane ki tatha jitane kshetra mem nivasa karane ki tuma ajnya doge, utane samaya taka, utane kshetra mem hama nivasa karemge. Yaham jitane samaya taka apa ki anujnya hai, utani avadhi taka jitane bhi anya sadhu aemge, unake lie bhi jitane kshetra – kala ki avagrahanujnya grahana karemge ve bhi utane hi samaya taka utane hi kshetra mem thaharemge, pashchat ve aura hama vihara kara demge. Avagraha ke anujnyapurvaka grahana kara lene para phira vaha sadhu kya kare\? Vaham koi sadharmika, sambhogika evam samanojnya sadhu atithi rupa mem a jae to vaha sadhu svayam apane dvara gaveshana karake laye hue ashanadi chaturvidha ahara ko una sadharmika, sambhogika evam samanojnya sadhuom ko upanimamtrita kare, kintu anya sadhu dvara ya anya rugnadi sadhu ke lie laye aharadi ko lekara unhem upanimamtrita na kare. |