Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011137 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग) |
Translated Chapter : |
6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग) |
Section : | 8. परीषह-जय (तितिक्षा सूत्र) | Translated Section : | 8. परीषह-जय (तितिक्षा सूत्र) |
Sutra Number : | 135 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | दश वैकालिक । ४.२६; तुलना: मोक्षपाहुड । ६२ | ||
Mool Sutra : | सुहसायगस्स समणस्स, सायाउलगस्स निगामसाइस्स। उच्छेलणापहोअस्स, दुल्लहा सु गई तारिसगस्स ।। | ||
Sutra Meaning : | जो श्रमण केवल अपने शरीर के सुखों का ही स्वादिया है, और उन सुखों के लिए सदा आकुल-व्याकुल रहता है, खूब खा पीकर सो जाता है और सदा हाथ-पाँव आदि धोने में ही लगा रहता है, उसे सुगति दुर्लभ है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Suhasayagassa samanassa, sayaulagassa nigamasaissa. Uchchhelanapahoassa, dullaha su gai tarisagassa\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo shramana kevala apane sharira ke sukhom ka hi svadiya hai, aura una sukhom ke lie sada akula-vyakula rahata hai, khuba kha pikara so jata hai aura sada hatha-pamva adi dhone mem hi laga rahata hai, use sugati durlabha hai. |