Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011136 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग) |
Translated Chapter : |
6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग) |
Section : | 7. वैराग्य-सूत्र (संन्यास-योग) | Translated Section : | 7. वैराग्य-सूत्र (संन्यास-योग) |
Sutra Number : | 134 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | समयसार । १९३ | ||
Mool Sutra : | उवभोगमिंदियेहिं, दव्वाणमचेदणाणमिदराणं। जं कुणदि सम्मदिट्ठी, तं सव्वं णिज्जरणिमित्तं ।। | ||
Sutra Meaning : | सम्यग्दृष्टि की ही यह कोई अकथनीय महिमा है, कि जो जो भी चेतन या अचेतन द्रव्य वह अपनी इन्द्रियों के द्वारा भोगता है, वह वह उसके लिए बन्धनकारी न होकर निर्जरा का निमित्त हो जाता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Uvabhogamimdiyehim, davvanamachedananamidaranam. Jam kunadi sammaditthi, tam savvam nijjaranimittam\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Samyagdrishti ki hi yaha koi akathaniya mahima hai, ki jo jo bhi chetana ya achetana dravya vaha apani indriyom ke dvara bhogata hai, vaha vaha usake lie bandhanakari na hokara nirjara ka nimitta ho jata hai. |