Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1018216 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Translated Chapter : |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 1516 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] ति भाणिऊणं चिंतिउं पवत्तो सो महापावयारी। जहा णं किं छिंदामि अहयं सहत्थेहिं तिलं तिलं सगत्तं किं वा णं तुंगगिरियडाओ पक्खिविउं दढं संचुन्नेमि इनमो अनंत-पाव संघाय समुदयं दुट्ठं किं वा णं गंतूण लोहयार सालाए सुतत्त लोह खंडमिव घन खंडाहिं चुण्णावेमि सुइरमत्ताणगं किं वा णं फालावेऊण मज्झोमज्झीए तिक्ख करवत्तेहिं अत्ताणगं पुणो संभरावेमि अंतो सुकड्ढिय तउय तंब कंसलोह लोणूससज्जियक्खारस्स किं वा णं सहत्थेणं छिंदामि उत्तमंगं किं वा णं पविसामि मयरहरं किं वा णं उभयरुक्खेसु अहोमुहं विणिबंधाविऊण-मत्ताणगं हेट्ठा पज्जलावेमि जलणं किं बहुना णिद्दहेमि कट्ठेहिं अत्ताणगं ति चिंतिऊणं जाव णं मसाणभूमीए, गोयमा विरइया महती चिई। ताहे सयल जण सन्निज्झं सुईरं निंदिऊण अत्ताणगं साहियं च सव्व लोगस्स। जहा णं मए एरिसं एरिसं कम्मं समा-यरियं ति भाणिऊण आरूढो चीयाए। जाव णं भवियव्वयाए निओगेणं तारिस दव्व चुन्न जोगाणुसंसट्ठे ते सव्वे वि दारु त्ति काऊणं फूइज्जमाणे वि अनेग पयारेहिं तहा वि णं पयलिए सिही। तओ य णं धिद्धिकारेणोवहओ सयल गोववयणेहिं जहा–भो भो पेच्छ पेच्छ हुयासणं पि न पज्जले पावकम्म कारिस्सं ति भाणिऊणं निद्धाडिए ते बेवि गोउलाओ। एयावसरम्मि उ अन्नासन्न सन्निवेसाओ आगए णं भत्तपाणं गहाय तेणेव मग्गेण उज्जाणा-भिमुहे मुनीण संघाडगे। तं च दट्ठूण अनुमग्गेणं गए ते बेवि पाविट्ठे। पत्ते य उज्जाणं। जाव णं पेच्छंति सयल गुणोह धारिं चउण्णाण समन्नियं बहु सीस-गण परिकिन्नं देविंदं नरिदं वंदिज्जमाण पायारविंदं सुगहिय नामधेज्जं जगानंदं णाम अनगारं। तं च दट्ठूणं चिंतियं तेहिं जहा नंदे मग्गामि विसोहि पयं एस महायसे त्ति चिंतिऊणं तओ पणाम पुव्वगेणं उवविट्ठे ते जहोइए भूमिभागे पुरओ गणहरस्स, भणिओ य सुज्जसिवो तेण गणहारिणा जहा णं भो भो देवानुप्पिया नीसल्लमालोएत्ताणं लघुं करेसुं सिग्घं असेस पाविट्ठ कम्म निट्ठवणं पायच्छित्तं। एसा उण आवन्नसत्ताए पाणयाए पायच्छित्तं नत्थि जाव णं नो पसूया। ताहे गोयमा सुमहच्चंत परम महासंवेगगए से णं सुज्जसिवे आजम्माओ नीसल्लालोयणं पयच्छिऊण जहोवइट्ठं घोरं सुदुक्करं महंतं पायच्छित्तं अनुचरित्ताणं। तओ अच्चंत-विसुद्ध परिणामो सामन्नमब्भुट्ठिऊणं छव्वीसं संवच्छरे तेरस य राइंदिए अच्चंत घोर वीरुग्ग कट्ठ दुक्कर तव संजमं समनुचरिऊणं जाव णं एग दु ति चउ पंच छम्मासिएहिं खमणेहिं खवेऊणं निप्पडिकम्म-सरीरत्ताए अप्पमाययाए सव्वत्थामेसु अनवरय महन्निसाणुसमयं सययं सज्झाय झाणाईसु णं णिद्दहिऊणं सेस कम्ममलं अउव्व करणेणं खवग सेढीए अंतगड केवली जाए सिद्धे य। | ||
Sutra Meaning : | ऐसा बोलकर महापाप कर्म करनेवाला वो सोचने लगा कि – क्या अब मैं शस्त्र के द्वारा मेरे गात्र को तिल – तिल जितने टुकड़े करके छेद कर डालूँ ? या तो ऊंचे पर्वत के शिखर से गिरकर अनन्त पाप समूह के ढ़ेर समान इस दुष्ट शरीर के टुकड़े कर दूँ ? या तो लोहार की शाला में जाकर अच्छी तरह से तपाकर लाल किए लोहे की तरह मोटे घण से कोई टीपे उस तरह लम्बे अरसे तक मेरे शरीर को टीपवाऊं ? या तो क्या मैं अच्छी तरह से मेरे शरीर के बीच में करवत के तीक्ष्ण दाँत से कटवाऊं और उसमें अच्छी तरह से ऊबाले हुए सीसे, ताम्र, काँस, लोह, लुण और उसनासाजी खार के रस डालूँ ? या फिर मेरे अपने हाथ से ही मेरा मस्तक छेद डालूँ ? या तो मैं – मगरमच्छ के घर में प्रवेश करूँ या फिर दो पेड़ के बीच मुझे रस्सी से बाँधकर लटकाकर नीचे मुँह और पाँव ऊपर हो उस तरह रखकर नीचे अग्नि जलाऊं ? ज्यादा क्या कहे ? मसाण भूमि में पहुँचकर काष्ठ की चिता में मेरे शरीर को जला डालूँ ? ऐसा सोचकर हे गौतम ! वहाँ बड़ी चित्ता बनवाई, उसके बाद समग्र लोक की मोजूदगी में लम्बे अरसे तक अपनी आत्मा की निन्दा करके सब लोगों को जाहिर किया कि मैंने न करने के लायक इस प्रकार का अप्कार्य किया है। ऐसा कहकर चिता पर आरूढ़ हुआ तब भवितव्यता योग से उस प्रकार के द्रव्य और चूर्णि के योग के संसर्ग से वो सब काष्ट हैं – ऐसा मानकर फूँकने के बावजूद कईं तरह के उपाय करने के बावजूद भी अग्नि न जला। तब फिर लोगोंने नफरत की कि यह अग्नि भी तुम्हें सहारा नहीं दे रहा। तुम्हारी पाप परिणति कितनी कठिन है, कि यह अग्नि भी नहीं जला रहा। ऐसा कहकर उन लोगों ने दोनों को गोकुल में से नीकाल बाहर किया। उस अवसर पर दूसरे नजदीकी गाँव में से भोजन पानी ग्रहण करके उसी मार्ग उद्यान के सन्मुख आनेवाले मुनि युगल को देखा। उन्हें देखकर उनके पीछे वो दोनों पापी गए। उद्यान में पहुँचे तो वहाँ सारे गुण समूह को धारण करनेवाले चार ज्ञानवाले काफी शिष्यगण से परिवरेल, देवेन्द्र और नरेन्द्र से चरणारविंद में नमन कराते, सुगृहीत नामवाले जगाणंद नाम के अणगार को देखा। उन्हें देखकर उन दोनों ने सोचा कि यह महायशवाले मुनिवर के पास मेरी विशुद्धि कैसे हो उसकी माँग करूँ। ऐसा सोचकर प्रणाम करने के पूर्वक उस गण को धारण करने वाले गच्छाधिपति के सामने यथायोग्य भूमि पर बैठा। उस गणस्वामीने सुज्ञशिव को कहा कि – अरे देवानुप्रिया शल्य रहित पाप की आलोचना जल्द करके समग्र पाप का अंत करनेवाले प्रायश्चित्त कर। यह बालिका तो गर्भवती होने से उसका प्रायश्चित्त नहीं है, कि जब तक उस बच्चे को जन्म नहीं देगी। हे गौतम ! उसके बाद अति महा संवेग की पराकाष्ठा पाया हुआ वो सुज्ञशिव जन्म से लेकर तमाम पापकर्म की निःशल्य आलोचना देकर (बताकर) गुरु महाराजाने बताए घोर अति दुष्कर बड़े प्रायश्चित्त का सेवन कर के उसके बाद अति विशुद्ध परिणाम युक्त श्रमनपन में पराक्रम करके छब्बीस साल और तेरह रात – दिन तक काफी घोर वीर उग्र कष्टकारी दुष्कर तपःसंयम यथार्थ पालन करके और एक, दो, तीन, चार, पाँच, छह मास तक लगातार एकसाथ उपवास करके शरीर की टापटीप या ममता किए बिना उसने सर्व स्थानक में अप्रमाद रहित हंमेशा रात – दिन हर समय स्वाध्याय ध्यानादिक में पराक्रम करके बाकी कर्ममल को भस्म करके अपूर्वकरण करके क्षपकश्रेणी लेकर अंतगड़ केवली होकर सिद्ध हुए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ti bhaniunam chimtium pavatto so mahapavayari. Jaha nam kim chhimdami ahayam sahatthehim tilam tilam sagattam kim va nam tumgagiriyadao pakkhivium dadham samchunnemi inamo anamta-pava samghaya samudayam duttham kim va nam gamtuna lohayara salae sutatta loha khamdamiva ghana khamdahim chunnavemi suiramattanagam kim va nam phalaveuna majjhomajjhie tikkha karavattehim attanagam puno sambharavemi amto sukaddhiya tauya tamba kamsaloha lonusasajjiyakkharassa kim va nam sahatthenam chhimdami uttamamgam kim va nam pavisami mayaraharam kim va nam ubhayarukkhesu ahomuham vinibamdhaviuna-mattanagam hettha pajjalavemi jalanam kim bahuna niddahemi katthehim attanagam ti chimtiunam java nam masanabhumie, goyama viraiya mahati chii. Tahe sayala jana sannijjham suiram nimdiuna attanagam sahiyam cha savva logassa. Jaha nam mae erisam erisam kammam sama-yariyam ti bhaniuna arudho chiyae. Java nam bhaviyavvayae niogenam tarisa davva chunna joganusamsatthe te savve vi daru tti kaunam phuijjamane vi anega payarehim taha vi nam payalie sihi. Tao ya nam dhiddhikarenovahao sayala govavayanehim jaha–bho bho pechchha pechchha huyasanam pi na pajjale pavakamma karissam ti bhaniunam niddhadie te bevi goulao. Eyavasarammi u annasanna sannivesao agae nam bhattapanam gahaya teneva maggena ujjana-bhimuhe munina samghadage. Tam cha datthuna anumaggenam gae te bevi pavitthe. Patte ya ujjanam. Java nam pechchhamti sayala gunoha dharim chaunnana samanniyam bahu sisa-gana parikinnam devimdam naridam vamdijjamana payaravimdam sugahiya namadhejjam jaganamdam nama anagaram. Tam cha datthunam chimtiyam tehim jaha namde maggami visohi payam esa mahayase tti chimtiunam tao panama puvvagenam uvavitthe te jahoie bhumibhage purao ganaharassa, bhanio ya sujjasivo tena ganaharina jaha nam bho bho devanuppiya nisallamaloettanam laghum karesum siggham asesa pavittha kamma nitthavanam payachchhittam. Esa una avannasattae panayae payachchhittam natthi java nam no pasuya. Tahe goyama sumahachchamta parama mahasamvegagae se nam sujjasive ajammao nisallaloyanam payachchhiuna jahovaittham ghoram sudukkaram mahamtam payachchhittam anucharittanam. Tao achchamta-visuddha parinamo samannamabbhutthiunam chhavvisam samvachchhare terasa ya raimdie achchamta ghora virugga kattha dukkara tava samjamam samanuchariunam java nam ega du ti chau pamcha chhammasiehim khamanehim khaveunam nippadikamma-sarirattae appamayayae savvatthamesu anavaraya mahannisanusamayam sayayam sajjhaya jhanaisu nam niddahiunam sesa kammamalam auvva karanenam khavaga sedhie amtagada kevali jae siddhe ya. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Aisa bolakara mahapapa karma karanevala vo sochane laga ki – kya aba maim shastra ke dvara mere gatra ko tila – tila jitane tukare karake chheda kara dalum\? Ya to umche parvata ke shikhara se girakara ananta papa samuha ke rhera samana isa dushta sharira ke tukare kara dum\? Ya to lohara ki shala mem jakara achchhi taraha se tapakara lala kie lohe ki taraha mote ghana se koi tipe usa taraha lambe arase taka mere sharira ko tipavaum\? Ya to kya maim achchhi taraha se mere sharira ke bicha mem karavata ke tikshna damta se katavaum aura usamem achchhi taraha se ubale hue sise, tamra, kamsa, loha, luna aura usanasaji khara ke rasa dalum\? Ya phira mere apane hatha se hi mera mastaka chheda dalum\? Ya to maim – magaramachchha ke ghara mem pravesha karum ya phira do pera ke bicha mujhe rassi se bamdhakara latakakara niche mumha aura pamva upara ho usa taraha rakhakara niche agni jalaum\? Jyada kya kahe\? Masana bhumi mem pahumchakara kashtha ki chita mem mere sharira ko jala dalum\? Aisa sochakara he gautama ! Vaham bari chitta banavai, usake bada samagra loka ki mojudagi mem lambe arase taka apani atma ki ninda karake saba logom ko jahira kiya ki maimne na karane ke layaka isa prakara ka apkarya kiya hai. Aisa kahakara chita para arurha hua taba bhavitavyata yoga se usa prakara ke dravya aura churni ke yoga ke samsarga se vo saba kashta haim – aisa manakara phumkane ke bavajuda kaim taraha ke upaya karane ke bavajuda bhi agni na jala. Taba phira logomne napharata ki ki yaha agni bhi tumhem sahara nahim de raha. Tumhari papa parinati kitani kathina hai, ki yaha agni bhi nahim jala raha. Aisa kahakara una logom ne donom ko gokula mem se nikala bahara kiya. Usa avasara para dusare najadiki gamva mem se bhojana pani grahana karake usi marga udyana ke sanmukha anevale muni yugala ko dekha. Unhem dekhakara unake pichhe vo donom papi gae. Udyana mem pahumche to vaham sare guna samuha ko dharana karanevale chara jnyanavale kaphi shishyagana se parivarela, devendra aura narendra se charanaravimda mem namana karate, sugrihita namavale jaganamda nama ke anagara ko dekha. Unhem dekhakara una donom ne socha ki yaha mahayashavale munivara ke pasa meri vishuddhi kaise ho usaki mamga karum. Aisa sochakara pranama karane ke purvaka usa gana ko dharana karane vale gachchhadhipati ke samane yathayogya bhumi para baitha. Usa ganasvamine sujnyashiva ko kaha ki – are devanupriya shalya rahita papa ki alochana jalda karake samagra papa ka amta karanevale prayashchitta kara. Yaha balika to garbhavati hone se usaka prayashchitta nahim hai, ki jaba taka usa bachche ko janma nahim degi. He gautama ! Usake bada ati maha samvega ki parakashtha paya hua vo sujnyashiva janma se lekara tamama papakarma ki nihshalya alochana dekara (batakara) guru maharajane batae ghora ati dushkara bare prayashchitta ka sevana kara ke usake bada ati vishuddha parinama yukta shramanapana mem parakrama karake chhabbisa sala aura teraha rata – dina taka kaphi ghora vira ugra kashtakari dushkara tapahsamyama yathartha palana karake aura eka, do, tina, chara, pamcha, chhaha masa taka lagatara ekasatha upavasa karake sharira ki tapatipa ya mamata kie bina usane sarva sthanaka mem apramada rahita hammesha rata – dina hara samaya svadhyaya dhyanadika mem parakrama karake baki karmamala ko bhasma karake apurvakarana karake kshapakashreni lekara amtagara kevali hokara siddha hue. |