Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1018197 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Translated Chapter : |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 1497 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जाव णं पुव्व जाइ सरण पच्चएणं सा माहणी इयं वागरेइ ताव णं गोयमा पडिबुद्धमसेसं पि बंधुयणं बहु णागर जणो य। एयावसरम्मि उ गोयमा भणियं सुविदिय सोग्गइ पहेणं तेणं गोविंदमाहणेणं जहा णं– धि द्धिद्धि वंचिए एयावंतं कालं, जतो वयं मूढे अहो णु कट्ठमण्णाणं दुव्विन्नेयमभागधिज्जेहिं खुद्द-सत्तेहिं अदिट्ठ घोरुग्ग परलोग पच्चवाएहिं अतत्ताभिणिविट्ठ दिट्ठीहिं पक्खवाय मोह संधुक्किय माणसेहिं राग दोसो वहयबुद्धिहिं परं तत्तधम्मं अहो सज्जीवेणेव परिमुसिए एवइयं काल-समयं अहो किमेस णं परमप्पा भारिया छलेणासि उ मज्झ गेहे, उदाहु णं जो सो निच्छिओ मीमंसएहिं सव्वण्णू सोच्चि, एस सूरिए इव संसय-तिमिरावहारित्ता णं लोगावभासे मोक्ख मग्ग संदरिसणत्थं सयमेव पायडीहूए। अहो महाइसयत्थ-पसाहगाओ मज्झं दइयाए वायाओ भो भो जन्नयत्त विण्हुयत्त जन्नदेव विस्सामित्त सुमिच्चा-दओ मज्झं अंगया, अब्भुट्ठानारिहा ससुरासुरस्सा वि णं जगस्स एसा तुम्ह जणणि त्ति। भो भो पुरंदर पभितीओ खंडियाओ वियारह णं सोवज्झाय भारियाओ, जगत्तयाणंदाओ कसिण किव्विस णिद्दहण सीलाओ वायाओ। पसन्नोज्ज तुम्ह गुरू, आरोहणेक्क सीलाणं परमप्पं बलं, जजण जायण ज्झयणाइणा छक्कम्माभिसंगेणं तुरियं विणिज्जिणेह पंचेंदियाणि, परिच्चयह णं कोहाइए पावे, वियाणेह णं अमेज्झाइजंबाल पंक पडिपुण्णा असुती कलेवरे, पविसामो वणंतं। इच्चेवं अनेगेहिं वेरग्गजणणेहिं सुहासिएहिं वागरमाणं तं चोद्दस विज्जा ठाण पारगं भो गोयमा गोविंद माहणं सोऊण अच्चंत जम्म जरा मरण भीरुणो बहवे सप्पुरिसे सव्वुत्तमं धम्मं विमरिसिउं समारद्धे। तत्थ केइ वयंति जहा एस धम्मो पवरो। अन्ने भणंति जहा एस धम्मो पवरो। जाव णं सव्वेहिं पमाणीकया गोयमा सा जातीसरा माहणि त्ति। ताहे तीए य संपवक्खायमहिंसोवक्खियमसंदिद्धं खंताइ दसविहं समणधम्मं दिट्ठंत हेऊहिं च परमपच्चयं विनीयं तेसिं तु। तओ य ते तं माहणिं सव्वण्णूमिति काऊणं सुरइय कर कमलंजलिणो सम्मं पणमिऊणं गोयमा तीए माहणीए सद्धिं अदीनमाणसे बहवे नर नारि गणा चेच्चाणं सुहिय जण मित्त बंधु परिवग्ग गिह विहव सोक्खमप्प कालियं निक्खंते सासय सोक्ख सुहाहिलासिणो सुनिच्छियमाणसे समणत्तेण सयल गुणोह धारिणो चोद्दस पुव्वधरस्स चरिम सरीरस्स णं गुणंधर थविरस्स णं सयासे त्ति। एवं च ते गोयमा अच्चंत घोर वीर तव संजमाणुट्ठाण सज्झाय झाणाईसु णं असेस कम्मक्खयं काऊणं तीए माहणीए सम्मं विहुय रय मले सिद्धे गोविंदमाहणादओ नर-नारिगणे सव्वे वी महायसे | ||
Sutra Meaning : | पूर्वभव के जातिस्मरण होने से ब्राह्मणी से जब यह सुना तब हे गौतम ! समग्र बन्धुवर्ग और दूसरे कईं नगरजन को प्रतिबोध हुआ। हे गौतम ! उस अवसर पर सद्गति का मार्ग अच्छी तरह से मिला है। वैसे गोविंद ब्राह्मण ने कहा कि धिक्कार है मुझे, इतने अरसे तक हम बनते रहे, मूढ़ बने रहे, वाकई अज्ञान महाकष्ट है। निर्भागी – तुच्छ आत्मा को घोर उग्र परलोक विषयक निमित्त जिन्हें पता नहीं है, अन्य में आग्रहवाली बुद्धि करनेवाले, पक्षपात के मोहाग्नि को उत्तेजित करने के मानसवाले, राग – द्वेष से वध की गई बुद्धिवाले, यह आदि दोषवाले को इस उत्तम धर्म समझना काफी मुश्किल होता है। वाकई इतने अरसे तक मेरी आत्मा बनती रही। यह महान् आत्मा भार्या होने के बहाने से मेरे घर में उत्पन्न हुई। लेकिन निश्चय से उसके बारे में सोचा जाए तो सर्वज्ञ आचार्य की तरह इस संशय समान अँधेरे को दूर करनेवाले, लोक को प्रकाशित करनेवाले, बड़े मार्ग को सम्यक् तरीके से बताने के लिए ही खुद प्रकट हुए हैं। अरे, महा अतिशयवाले अर्थ की साधना करनेवाली मेरी प्रिया के वचन हैं। अरे यज्ञदत्त ! विष्णुदत्त ! यज्ञदेव ! विश्वामित्र ! सोम ! आदित्य आदि मेरे पुत्र, देव और असुर सहित पूरे जगत को यह तुम्हारी माता आदर और वंदन करने के लायक हैं। अरे ! पुरन्दर आदि छात्र ! इस उपाध्याय की भार्याने तीन जगत को आनन्द देनेवाले, सारे पापकर्म को जलाकर भस्म करने के स्वभाववाली वाणी बताई उसे सोचो। गुरु की आराधना करने में अपूर्व स्वभाववाले तुम पर आज गुरु प्रसन्न हुए हैं। श्रेष्ठ आत्मबलवाले, यज्ञ करने – करवाने के लिए अध्ययन करना, करवाना, षट्कर्म करने के अनुराग से तुम पर गुरु प्रसन्न हुए हैं। तो अब तुम पाँच इन्द्रिय को जल्द से जीत लो। पापी ऐसे क्रोधानिक कषाय का त्याग करो। विष्ठा, अशुचि, मलमूत्र और आदि के कीचड़ युक्त गर्भावास से लेकर प्रसूति जन्म मरण आदि अवस्था कैसे प्राप्त होती है। वो तुम सब समझो। ऐसे काफी वैराग उत्पन्न करवानेवाले सुभाषित बताए ऐसे चौदह विद्या के पारगामी गोविंद ब्राह्मण को सुनकर काफी जन्म – जरा, मरण से भयभीत कईं सत्पुरुष धर्म की सोचने लगे। तब कुछ लोग ऐसा कहने लगे कि यह धर्म श्रेष्ठ है, प्रवर धर्म है। ऐसा दूसरे लोग भी कहने लगे। हे गौतम ! यावत् हर एक लोगों ने यह ब्राह्मणी जाति स्मरणवाली है ऐसे प्रमाणभूत माना। उसके बाद ब्राह्मणीने अहिंसा लक्षणवाले निःसन्देह क्षमा आदि दश तरह के श्रमणधर्म को आशय – दृष्टान्त कहने के पूर्वक उन्हें परम श्रद्धा पैदा हो उस तरह से समझाया। उसके बाद उस ब्राह्मणी को यह सर्वज्ञ है ऐसा मानकर हस्तकमल की सुन्दर अंजली रचकर सम्मान से अच्छी तरह से प्रणाम करके हे गौतम ! उस ब्राह्मणी के साथ दीनतारहित मानसवाले कईं नर – नारी वर्गने अल्पकाल सुख देनेवाले ऐसे परिवार, स्वजन, मित्र, बन्धु, परिवार, घर, वैभव आदि का त्याग करके शाश्वत मोक्षसुख के अभिलाषी काफी निश्चित दृढ़ मनवाले, श्रमणपन के सभी गुण को धारण करनेवाले, चौदह – पूर्वधर, चरम शरीरवाले, तद्भवमुक्तिगामी ऐसे गणधर स्थविर के पास प्रव्रज्या अंगीकार की। हे गौतम ! इस प्रकार वो काफी घोर, वीर, तप, संयम के अनुष्ठान के सेवन स्वाध्याय ध्यानादिक में प्रवृत्ति करते – करते सारे कर्म का क्षय करके उस ब्राह्मणी के साथ कर्मरज फेंककर गोविंद ब्राह्मण आदि कईं नर और नारीगण ने सिद्धि पाई। वो सब महायशस्वी बने इस प्रकार कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] java nam puvva jai sarana pachchaenam sa mahani iyam vagarei tava nam goyama padibuddhamasesam pi bamdhuyanam bahu nagara jano ya. Eyavasarammi u goyama bhaniyam suvidiya soggai pahenam tenam govimdamahanenam jaha nam– dhi ddhiddhi vamchie eyavamtam kalam, jato vayam mudhe aho nu katthamannanam duvvinneyamabhagadhijjehim khudda-sattehim adittha ghorugga paraloga pachchavaehim atattabhinivittha ditthihim pakkhavaya moha samdhukkiya manasehim raga doso vahayabuddhihim param tattadhammam aho sajjiveneva parimusie evaiyam kala-samayam aho kimesa nam paramappa bhariya chhalenasi u majjha gehe, udahu nam jo so nichchhio mimamsaehim savvannu sochchi, esa surie iva samsaya-timiravaharitta nam logavabhase mokkha magga samdarisanattham sayameva payadihue. Aho mahaisayattha-pasahagao majjham daiyae vayao bho bho jannayatta vinhuyatta jannadeva vissamitta sumichcha-dao majjham amgaya, abbhutthanariha sasurasurassa vi nam jagassa esa tumha janani tti. Bho bho puramdara pabhitio khamdiyao viyaraha nam sovajjhaya bhariyao, jagattayanamdao kasina kivvisa niddahana silao vayao. Pasannojja tumha guru, arohanekka silanam paramappam balam, jajana jayana jjhayanaina chhakkammabhisamgenam turiyam vinijjineha pamchemdiyani, parichchayaha nam kohaie pave, viyaneha nam amejjhaijambala pamka padipunna asuti kalevare, pavisamo vanamtam. Ichchevam anegehim veraggajananehim suhasiehim vagaramanam tam choddasa vijja thana paragam bho goyama govimda mahanam souna achchamta jamma jara marana bhiruno bahave sappurise savvuttamam dhammam vimarisium samaraddhe. Tattha kei vayamti jaha esa dhammo pavaro. Anne bhanamti jaha esa dhammo pavaro. Java nam savvehim pamanikaya goyama sa jatisara mahani tti. Tahe tie ya sampavakkhayamahimsovakkhiyamasamdiddham khamtai dasaviham samanadhammam ditthamta heuhim cha paramapachchayam viniyam tesim tu. Tao ya te tam mahanim savvannumiti kaunam suraiya kara kamalamjalino sammam panamiunam goyama tie mahanie saddhim adinamanase bahave nara nari gana chechchanam suhiya jana mitta bamdhu parivagga giha vihava sokkhamappa kaliyam nikkhamte sasaya sokkha suhahilasino sunichchhiyamanase samanattena sayala gunoha dharino choddasa puvvadharassa charima sarirassa nam gunamdhara thavirassa nam sayase tti. Evam cha te goyama achchamta ghora vira tava samjamanutthana sajjhaya jhanaisu nam asesa kammakkhayam kaunam tie mahanie sammam vihuya raya male siddhe govimdamahanadao nara-narigane savve vi mahayase | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Purvabhava ke jatismarana hone se brahmani se jaba yaha suna taba he gautama ! Samagra bandhuvarga aura dusare kaim nagarajana ko pratibodha hua. He gautama ! Usa avasara para sadgati ka marga achchhi taraha se mila hai. Vaise govimda brahmana ne kaha ki dhikkara hai mujhe, itane arase taka hama banate rahe, murha bane rahe, vakai ajnyana mahakashta hai. Nirbhagi – tuchchha atma ko ghora ugra paraloka vishayaka nimitta jinhem pata nahim hai, anya mem agrahavali buddhi karanevale, pakshapata ke mohagni ko uttejita karane ke manasavale, raga – dvesha se vadha ki gai buddhivale, yaha adi doshavale ko isa uttama dharma samajhana kaphi mushkila hota hai. Vakai itane arase taka meri atma banati rahi. Yaha mahan atma bharya hone ke bahane se mere ghara mem utpanna hui. Lekina nishchaya se usake bare mem socha jae to sarvajnya acharya ki taraha isa samshaya samana amdhere ko dura karanevale, loka ko prakashita karanevale, bare marga ko samyak tarike se batane ke lie hi khuda prakata hue haim. Are, maha atishayavale artha ki sadhana karanevali meri priya ke vachana haim. Are yajnyadatta ! Vishnudatta ! Yajnyadeva ! Vishvamitra ! Soma ! Aditya adi mere putra, deva aura asura sahita pure jagata ko yaha tumhari mata adara aura vamdana karane ke layaka haim. Are ! Purandara adi chhatra ! Isa upadhyaya ki bharyane tina jagata ko ananda denevale, sare papakarma ko jalakara bhasma karane ke svabhavavali vani batai use socho. Guru ki aradhana karane mem apurva svabhavavale tuma para aja guru prasanna hue haim. Shreshtha atmabalavale, yajnya karane – karavane ke lie adhyayana karana, karavana, shatkarma karane ke anuraga se tuma para guru prasanna hue haim. To aba tuma pamcha indriya ko jalda se jita lo. Papi aise krodhanika kashaya ka tyaga karo. Vishtha, ashuchi, malamutra aura adi ke kichara yukta garbhavasa se lekara prasuti janma marana adi avastha kaise prapta hoti hai. Vo tuma saba samajho. Aise kaphi vairaga utpanna karavanevale subhashita batae aise chaudaha vidya ke paragami govimda brahmana ko sunakara kaphi janma – jara, marana se bhayabhita kaim satpurusha dharma ki sochane lage. Taba kuchha loga aisa kahane lage ki yaha dharma shreshtha hai, pravara dharma hai. Aisa dusare loga bhi kahane lage. He gautama ! Yavat hara eka logom ne yaha brahmani jati smaranavali hai aise pramanabhuta mana. Usake bada brahmanine ahimsa lakshanavale nihsandeha kshama adi dasha taraha ke shramanadharma ko ashaya – drishtanta kahane ke purvaka unhem parama shraddha paida ho usa taraha se samajhaya. Usake bada usa brahmani ko yaha sarvajnya hai aisa manakara hastakamala ki sundara amjali rachakara sammana se achchhi taraha se pranama karake he gautama ! Usa brahmani ke satha dinatarahita manasavale kaim nara – nari vargane alpakala sukha denevale aise parivara, svajana, mitra, bandhu, parivara, ghara, vaibhava adi ka tyaga karake shashvata mokshasukha ke abhilashi kaphi nishchita drirha manavale, shramanapana ke sabhi guna ko dharana karanevale, chaudaha – purvadhara, charama shariravale, tadbhavamuktigami aise ganadhara sthavira ke pasa pravrajya amgikara ki. He gautama ! Isa prakara vo kaphi ghora, vira, tapa, samyama ke anushthana ke sevana svadhyaya dhyanadika mem pravritti karate – karate sare karma ka kshaya karake usa brahmani ke satha karmaraja phemkakara govimda brahmana adi kaim nara aura narigana ne siddhi pai. Vo saba mahayashasvi bane isa prakara kahata hum. |