Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1017521 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Translated Chapter : |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 821 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भयवं केरिस गुणजुत्तस्स णं गुरुणो गच्छनिक्खेवं कायव्वं गोयमा जे णं सुव्वए, जे णं सुसीले, जे णं दढव्वए, जे णं दढचारित्ते, जे णं अनिंदियंगे, जे णं अरहे, जे णं गयरागे, जे णं गयदोसे, जे णं निट्ठिय मोह मिच्छत्त मल कलंके, जे णं उवसंते, जे णं सुविण्णाय जगट्ठितीए, जे णं सुमहा वेरग्गमग्गमल्लीणे, जे णं इत्थिकहापडिनीए, जे णं भत्तकहापडिनीए, जे णं तेण कहा पडिनीए, जे णं रायकहा पडिनीए, जे णं जनवय कहा पडिनीए, जे णं अच्चंतमनुकंप सीले, जे णं परलोग-पच्चवायभीरू, जे णं कुसील पडिनीए, जे णं विण्णाय समय सब्भावे, जे णं गहिय समय पेयाले, जे णं अहन्निसानुसमयं ठिए खंतादि अहिंसा लक्खण दसविहे समणधम्मे, जे णं उज्जुत्ते अहन्निसानुसमयं दुवालसविहे तवोकम्मे, जे णं सुओवउत्ते सययं पंचसमितीसु, जे णं सुगत्ते सययं तीसु गुत्तीसुं, जे णं आराहगे स सत्तीए अट्ठारसण्हं सीलंग सहस्साणं, जे णं अविराहगे एगंतेणं स सत्तीए सत्तरस विहस्स णं संजमस्स, जे णं उस्सग्गरूई, जे णं तत्तरूई, जे णं सम सत्तु मित्त पक्खे, जे णं सत्त भय ट्ठाण विप्पमुक्के, जे णं अट्ठ मय ट्ठाण विप्पजढे, जे णं नवण्हं बंभचेर गुत्तीणं विराहणा भीरू, जे णं बहुसूए, जे णं आरिय कुलुप्पन्ने, जे णं अदीणे जे णं अकिविणे, जे णं अणालसिए, जे णं संजई वग्गस्स पडिवक्खे, जे णं सययं धम्मोवएस दायगे, जे णं सययं ओह सामायारी परूवगे, जे णं मेरावट्ठिए, जे णं असामायारी भीरू, जे णं आलोयनारिहे, जे णं पायच्छित्त दान पयच्छण-क्खमे, जे णं वंदन मंडलि विराहण जाणगे, जे णं पडिक्कमण मंडलि विराहण जाणगे, जे णं सज्जाय मंडलि विराहण जाणगे, जे णं वक्खाण मंडलि विराहण जाणगे, जे णं आलोयणा मंडलि विराहण जाणगे, जे णं उद्देस मंडलि विराहण जाणगे, जे णं समुद्देस मंडलि विराहण जाणगे, जे णं पव्वज्जा विराहण जाणगे, जे णं उवट्ठावणा विराहणा जाणगे, जे णं उद्देस समुद्देसाणुण्णा विराहण जाणगे, जे णं काल खेत्त दव्व भाव भावंतरंतर वियाणगे, जे णं काल खेत्त दव्व भावालंबन विप्प-मुक्के, जे णं स बाल वुड्ढ गिलाण सेह सिक्खग साहम्मिय अज्झावट्ठावण कुसले, जे णं परूवगे नाण दंसण चारित्त तवो गुणाणं जे णं चरए धरए पभावगे नाण दंसण चरित्त तवो गुणाणं जे णं दढसम्मत्ते, जे णं सययं अपरिसाई, जे णं धीइमा, जे णं गंभीरे, जे णं सुसोमलेसे जे णं दिनयरमिव अनभि-भवनीए तवतेएणं, जे णं सरीरोवरमे वि छक्काय समारंभ विवज्जी, जे णं सील तव दान भावनामय चउव्विह धम्मंतराय भीरू, जे णं सव्वा सायणा भीरू, जे णं इड्ढि रस सायगारव रोद्दट्टज्झाण विप्पमुक्के, जे णं सव्वावस्सगमुज्जुत्ते, जे णं सव्वावस्सगमुज्जुत्ते, जे णं सविसेस लद्धिजुत्ते, जे णं आवडिय पेल्लियामंतिओ वि णायरेज्जा अयज्जं, जे णं नो बहु निद्दो, जे णं नो बहु भोइ, जे णं सव्वावस्सग-सज्झाय ज्झाण पडिमाभिग्गह घोर परीसहोवसग्गेसु जिय परीसमे, जे णं सुपत्त संगह सीले, जे णं अपत्त परिट्ठावणविहिण्णू जे णं अणुद्धय बोंदी जे णं परसमय ससमय सम्मं वियाणगे जे णं कोह मान माया लोभ ममकारादि इतिहास खेड्ड कंदप्पनाहियवादविप्पमुक्के धम्मकहा संसार वास विसयाभिलासादीणं वेरग्गुप्पायगे पडिबोहगे भव्वसत्ताणं, से णं गच्छ निक्खेवण जोगो, से णं गणी, से णं गणहरे, से णं तित्थे, से णं तित्थयरे, से णं अरहा, से णं केवली, से णं जिणे, से णं तित्थुब्भासगे, से णं वंदे, से णं पुज्जे, से णं नमंसणिज्जे, से णं दट्ठव्वे, से णं परमपवित्ते, से णं परमकल्लाणे, से णं परममंगल्ले, से णं सिद्धी, से णं मुत्ती, से णं सिवे, से णं मोक्खे, से णं ताया, से णं संमग्गे, से णं गती, से णं सरन्ने, से णं सिद्धे, मुत्ते पारगए देवदेवे। एयस्स णं गोयमा गण-निक्खेवं कुज्जा, एयस्स णं गणनिक्खेवं कारवेज्जा, एयस्स णं गणनिक्खेवणं समनुजाणेज्जा। अन्नहा णं गोयमा आणाभंगे। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवंत ! कैसे गुणयुक्त गुरु हो तो उसके लिए गच्छ का निक्षेप कर सकते हैं ? हे गौतम ! जो अच्छे व्रतवाले, सुन्दर शीलवाले, दृढ़ व्रतवाले, दृढ़ चारित्रवाले, आनन्दित शरीर के अवयववाले, पूजने के लायक, राग रहित, द्वेष रहित, बड़े मिथ्यात्व के मल के कलंक जिसके चले गए हैं वैसे, जो उपशान्त हैं, जगत की दशा को अच्छी तरह से पहचानते हो, काफी महान वैराग में लीन हो, जो स्त्रीकथा के खिलाफ हो, जो भोजन विषयक कथा के प्रत्यनीक हो, जो चोर विषयक कथा के खिलाफ हो, जो काफी अनुकम्पा करने के स्वभाववाले हो, जो परलोक का नुकसान करनेवाले ऐसे पापकार्य करने से डरनेवाले, जो कुशील के खिलाफ हो, शास्त्र के रहस्य के जानकार हो, ग्रहण किए गए शास्त्र में सारवाले, रात – दिन हर एक समय क्षमा आदि अहिंसा लक्षणवाले दश तरह के श्रमण धर्म में रहे हो, बारह तरह के तप में उद्यमवाले हो, हंमेशा पाँच समिति और तीन गुप्ति में उपयोगवाले हो, जो अपनी शक्ति के अनुसार अठ्ठारह हजार शीलांग की आराधना करते हो, १७ तरह के संयम की विराधना न करते हो, जो उत्सर्ग मार्ग की रुचिवाले हो, तत्त्व की रूचिवाले हो, जो शत्रु और मित्र दोनों पक्ष के प्रति समान भाववाले हो, जो इहलोक – परलोक आदि साँत तरह के भयस्थान से विप्रमुक्त हो, आँठ तरह के मदस्थान का जिन्होंने सर्वथा त्याग किया हो, नौ तरह की ब्रह्मचर्य की गुप्ति की विराधना से भयमुक्त, बहुश्रुत ज्ञान के धारक, आर्य कुल में जन्मे हुए, किसी भी प्रसंग में दीनताभाव रहित, क्रोध न करनेवाले, आलस रहित, अप्रमादी, संयती वर्ग के आवागमन के विरोधी, निरंतर सतत धर्मोपदेश के दाता, सतत ओघ सामाचारी के प्ररूपक, साधुत्व की मर्यादा में रहने वाले, असामाचारी के भयमुक्त, आलोचना योग्य प्रायश्चित्त दान में समर्थ, वन्दनादि आदि सातों मांडली के विराधना के ज्ञाता, बडी दीक्षा – उपस्थापना योगादि क्रिया के उद्देश – समुद्देश की विराधना के ज्ञाता हो। जो काल – क्षेत्र – द्रव्य – भाव और अन्य भावान्तरो के ज्ञाता हो, जो कालादि आलंबन कारणों से मुक्त हो, जो बालसाधु, वृद्धसाधु, ग्लान, नवदीक्षित आदि को संयम में प्रवर्ताने में कुशल हो, जो ज्ञान – दर्शन – चारित्र आदि गुणों की प्ररूपणा करते हो, उनका पालन और धारण करते हो, प्रभावक हो, दृढ सम्यक्त्ववाले हो, जो खेदरहित हो, धीरजवाले हो, गंभीर हो, अतीशय सौम्यलेश्यायुक्त हो, किसी से पराभाव पाने वाले न हो, छ काय जीव समारंभ से सर्वथा मुक्त हो, धर्म में अन्तराय करने से भयभीत हो, सर्व आशातना से डरने वाले हो, जो ऋद्धि आदि गारव और रौद्र एवं आर्त्तध्यान से मुक्त हो, जो सर्व आवश्यक क्रिया करने में उद्यमी एवं वशेष प्रकार से लब्धियुक्त हो। जो अकस्मात् प्रसंग में भी, किसी की प्रेरणा हो या कोई निमंत्रण करे तो भी अकार्य आचरण न करे, ज्यादा निद्रा या ज्यादा भोजन न करते हो, सर्व आवश्यक, स्वाध्याय, ध्यान, प्रतिमा, अभिग्रह, घोर परीषह – उपसर्ग को जीतनेवाले हो, उत्तम पात्र के संग्रही, अपाज्ञ को परठने की विधि के ज्ञाता, अखंडीत देहयुक्त, परमत एवं स्वमत के ज्ञाता, क्रोधादि कषाय, अहंकार, ममत्व, क्रीडा, कंदर्प आदि से सर्वथा मुक्त, धर्मकथा कहनेवाले, विषयाभिलास आदि में वैराग्य उत्पन्न करनेवाले, भव्यात्मा को प्रतिबोध करनेवाले एवं – गच्छ के भार को स्थापन करने के योग्य, दो गण के स्वामी हैं। गण को धारण करनेवाले, तीर्थ स्वरूप, तीर्थ करनेवाले, अर्हन्त, केवली, जिन, तीर्थ की प्रभावना करनेवाले, वंदनीय, पूजनीय, नमंसरणीय (नमस्कार करने के लायक) है। दर्शनीय है। परम पवित्र, परम कल्याण स्वरूप हैं, वो परम मंगल रूप है, वो सिद्धि (की कारण) है, मुक्ति है, मोक्ष है। शिव है। रक्षण करनेवाले है, सिद्ध है, मुक्त है, पार पाए हुए है, देव है, देव के भी देव है, हे गौतम ! इस तरह के गुणवाले हो, उसके लिए गण की स्थापना करना, करवाना और निक्षेप करण की अनुमोदना करना, अन्यथा हे गौतम ! आज्ञा का भंग होता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhayavam kerisa gunajuttassa nam guruno gachchhanikkhevam kayavvam goyama je nam suvvae, je nam susile, je nam dadhavvae, je nam dadhacharitte, je nam animdiyamge, je nam arahe, je nam gayarage, je nam gayadose, je nam nitthiya moha michchhatta mala kalamke, je nam uvasamte, je nam suvinnaya jagatthitie, je nam sumaha veraggamaggamalline, je nam itthikahapadinie, je nam bhattakahapadinie, je nam tena kaha padinie, je nam rayakaha padinie, je nam janavaya kaha padinie, je nam achchamtamanukampa sile, je nam paraloga-pachchavayabhiru, je nam kusila padinie, Je nam vinnaya samaya sabbhave, je nam gahiya samaya peyale, je nam ahannisanusamayam thie khamtadi ahimsa lakkhana dasavihe samanadhamme, je nam ujjutte ahannisanusamayam duvalasavihe tavokamme, je nam suovautte sayayam pamchasamitisu, je nam sugatte sayayam tisu guttisum, je nam arahage sa sattie attharasanham silamga sahassanam, je nam avirahage egamtenam sa sattie sattarasa vihassa nam samjamassa, je nam ussaggarui, je nam tattarui, je nam sama sattu mitta pakkhe, je nam satta bhaya tthana vippamukke, je nam attha maya tthana vippajadhe, je nam navanham bambhachera guttinam virahana bhiru, Je nam bahusue, je nam ariya kuluppanne, je nam adine je nam akivine, je nam analasie, je nam samjai vaggassa padivakkhe, je nam sayayam dhammovaesa dayage, je nam sayayam oha samayari paruvage, je nam meravatthie, je nam asamayari bhiru, je nam aloyanarihe, je nam payachchhitta dana payachchhana-kkhame, je nam vamdana mamdali virahana janage, je nam padikkamana mamdali virahana janage, je nam sajjaya mamdali virahana janage, je nam vakkhana mamdali virahana janage, je nam aloyana mamdali virahana janage, je nam uddesa mamdali virahana janage, je nam samuddesa mamdali virahana janage, je nam pavvajja virahana janage, je nam uvatthavana virahana janage, je nam uddesa samuddesanunna virahana janage, Je nam kala khetta davva bhava bhavamtaramtara viyanage, je nam kala khetta davva bhavalambana vippa-mukke, je nam sa bala vuddha gilana seha sikkhaga sahammiya ajjhavatthavana kusale, je nam paruvage nana damsana charitta tavo gunanam je nam charae dharae pabhavage nana damsana charitta tavo gunanam je nam dadhasammatte, je nam sayayam aparisai, je nam dhiima, je nam gambhire, je nam susomalese je nam dinayaramiva anabhi-bhavanie tavateenam, je nam sarirovarame vi chhakkaya samarambha vivajji, Je nam sila tava dana bhavanamaya chauvviha dhammamtaraya bhiru, je nam savva sayana bhiru, je nam iddhi rasa sayagarava roddattajjhana vippamukke, je nam savvavassagamujjutte, je nam savvavassagamujjutte, je nam savisesa laddhijutte, je nam avadiya pelliyamamtio vi nayarejja ayajjam, je nam no bahu niddo, je nam no bahu bhoi, je nam savvavassaga-sajjhaya jjhana padimabhiggaha ghora parisahovasaggesu jiya parisame, je nam supatta samgaha sile, je nam apatta paritthavanavihinnu je nam anuddhaya bomdi je nam parasamaya sasamaya sammam viyanage Je nam koha mana maya lobha mamakaradi itihasa khedda kamdappanahiyavadavippamukke dhammakaha samsara vasa visayabhilasadinam veragguppayage padibohage bhavvasattanam, se nam gachchha nikkhevana jogo, se nam gani, se nam ganahare, se nam titthe, se nam titthayare, se nam araha, se nam kevali, se nam jine, se nam titthubbhasage, se nam vamde, se nam pujje, se nam namamsanijje, se nam datthavve, se nam paramapavitte, se nam paramakallane, se nam paramamamgalle, Se nam siddhi, se nam mutti, se nam sive, se nam mokkhe, se nam taya, se nam sammagge, se nam gati, se nam saranne, se nam siddhe, mutte paragae devadeve. Eyassa nam goyama gana-nikkhevam kujja, eyassa nam gananikkhevam karavejja, eyassa nam gananikkhevanam samanujanejja. Annaha nam goyama anabhamge. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavamta ! Kaise gunayukta guru ho to usake lie gachchha ka nikshepa kara sakate haim\? He gautama ! Jo achchhe vratavale, sundara shilavale, drirha vratavale, drirha charitravale, anandita sharira ke avayavavale, pujane ke layaka, raga rahita, dvesha rahita, bare mithyatva ke mala ke kalamka jisake chale gae haim vaise, jo upashanta haim, jagata ki dasha ko achchhi taraha se pahachanate ho, kaphi mahana vairaga mem lina ho, jo strikatha ke khilapha ho, jo bhojana vishayaka katha ke pratyanika ho, jo chora vishayaka katha ke khilapha ho, jo kaphi anukampa karane ke svabhavavale ho, jo paraloka ka nukasana karanevale aise papakarya karane se daranevale, jo kushila ke khilapha ho, shastra ke rahasya ke janakara ho, grahana kie gae shastra mem saravale, rata – dina hara eka samaya kshama adi ahimsa lakshanavale dasha taraha ke shramana dharma mem rahe ho, baraha taraha ke tapa mem udyamavale ho, hammesha pamcha samiti aura tina gupti mem upayogavale ho, jo apani shakti ke anusara aththaraha hajara shilamga ki aradhana karate ho, 17 taraha ke samyama ki viradhana na karate ho, jo utsarga marga ki ruchivale ho, tattva ki ruchivale ho, jo shatru aura mitra donom paksha ke prati samana bhavavale ho, jo ihaloka – paraloka adi samta taraha ke bhayasthana se vipramukta ho, amtha taraha ke madasthana ka jinhomne sarvatha tyaga kiya ho, nau taraha ki brahmacharya ki gupti ki viradhana se bhayamukta, bahushruta jnyana ke dharaka, arya kula mem janme hue, kisi bhi prasamga mem dinatabhava rahita, krodha na karanevale, alasa rahita, apramadi, samyati varga ke avagamana ke virodhi, niramtara satata dharmopadesha ke data, satata ogha samachari ke prarupaka, sadhutva ki maryada mem rahane vale, asamachari ke bhayamukta, alochana yogya prayashchitta dana mem samartha, vandanadi adi satom mamdali ke viradhana ke jnyata, badi diksha – upasthapana yogadi kriya ke uddesha – samuddesha ki viradhana ke jnyata ho. Jo kala – kshetra – dravya – bhava aura anya bhavantaro ke jnyata ho, jo kaladi alambana karanom se mukta ho, jo balasadhu, vriddhasadhu, glana, navadikshita adi ko samyama mem pravartane mem kushala ho, jo jnyana – darshana – charitra adi gunom ki prarupana karate ho, unaka palana aura dharana karate ho, prabhavaka ho, dridha samyaktvavale ho, jo khedarahita ho, dhirajavale ho, gambhira ho, atishaya saumyaleshyayukta ho, kisi se parabhava pane vale na ho, chha kaya jiva samarambha se sarvatha mukta ho, dharma mem antaraya karane se bhayabhita ho, sarva ashatana se darane vale ho, jo riddhi adi garava aura raudra evam arttadhyana se mukta ho, jo sarva avashyaka kriya karane mem udyami evam vashesha prakara se labdhiyukta ho. Jo akasmat prasamga mem bhi, kisi ki prerana ho ya koi nimamtrana kare to bhi akarya acharana na kare, jyada nidra ya jyada bhojana na karate ho, sarva avashyaka, svadhyaya, dhyana, pratima, abhigraha, ghora parishaha – upasarga ko jitanevale ho, uttama patra ke samgrahi, apajnya ko parathane ki vidhi ke jnyata, akhamdita dehayukta, paramata evam svamata ke jnyata, krodhadi kashaya, ahamkara, mamatva, krida, kamdarpa adi se sarvatha mukta, dharmakatha kahanevale, vishayabhilasa adi mem vairagya utpanna karanevale, bhavyatma ko pratibodha karanevale evam – gachchha ke bhara ko sthapana karane ke yogya, do gana ke svami haim. Gana ko dharana karanevale, tirtha svarupa, tirtha karanevale, arhanta, kevali, jina, tirtha ki prabhavana karanevale, vamdaniya, pujaniya, namamsaraniya (namaskara karane ke layaka) hai. Darshaniya hai. Parama pavitra, parama kalyana svarupa haim, vo parama mamgala rupa hai, vo siddhi (ki karana) hai, mukti hai, moksha hai. Shiva hai. Rakshana karanevale hai, siddha hai, mukta hai, para pae hue hai, deva hai, deva ke bhi deva hai, he gautama ! Isa taraha ke gunavale ho, usake lie gana ki sthapana karana, karavana aura nikshepa karana ki anumodana karana, anyatha he gautama ! Ajnya ka bhamga hota hai. |