Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1017393 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Translated Chapter : |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 693 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भयवं किमेस वासेज्जा गोयमा अत्थेगे जे णं वासेज्जा, अत्थेगे जे णं नो वासेज्जा से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं गोयमा अत्थेगे जे णं वासेज्जा अत्थेगे जे णं नो वासेज्जा। गोयमा अत्थेगे जे णं आणाए ठिए अत्थेगे जे णं आणा विराहगे। जे णं आणा ठिए से णं सम्मद्दंसण नाण चरित्ताराहगे। जे णं सम्मद्दंसण नाण चरित्ताराहगे से णं गोयमा अच्चंत विऊ सुपवरकम्मुज्जए मोक्खमग्गे। जे य उ णं आणा विराहगे से णं अनंताणुबंधी कोहे, से णं अनंतानुबंधी माने, से णं अनंतानुबंधी कइयवे, से णं अनंताणुबंधी लोभे, जे णं अनंतानुबंधी कोहाइकसाय चउक्के से णं घन राग दोस मोह मिच्छत्त पुंजे। जे णं घन राग दोस मोह मिच्छत्त पुंजे, से णं अनुत्तरे घोर संसारे समुद्दे। जे णं अनुत्तर घोर संसार समुद्दे, से णं पुणो पुणो जम्मं पुणो पुणो जरा, पुणो पुणो मच्चू। जे णं पुणो पुणो जम्म जरा मरणे, से णं पुणो पुणो बहू भवंतर परावत्ते, जे णं पुणो पुणो बहू भवंतर-परावत्ते, से णं पुणो पुणो चुलसीइ जोणि लक्खमाहिंडणं। जे णं पुणो पुणो चुलसीइ जोणि लक्खमाहिंडणं से णं पुणो पुणो सुदूसहे घोर तिमिसंधयारे रुहिर चिलिच्चिल्ले वसा पूय वंत पित्त सिंभ चिक्खल्ल दुग्गंधासुइ चिलीण जंवाल केस किव्विस खरंट पडिपुन्ने अनिट्ठ उव्वियणिज्ज अइघोर चंडमहारोद्ददुक्खदारुणे गब्भ परंपरा पवेसे। जे णं पुणो पुणो दारुणे गब्भ-परंपरा पवेसे से णं दुक्खे, से णं केसे, से णं रोगायंके, से णं सोग संतावुव्वेयगे। जे णं दुक्ख केस रोगायंक सोग संतावुव्वेयगे, से णं अनिव्वुत्ती। जे णं अनिव्वुत्ती, से णं जहिट्ठ-मणोरहाणं असंपत्ती। जे णं जहिट्ठमणोरहाणं असंपत्ती, से णं ताव पंचप्पयार अंत-राय कम्मोदए। जत्थ णं पंचप्पयार अंतराय कम्मोदए तत्थ णं सव्व दुक्खाणं अग्गणीभूए पढमे ताव दारिद्दे। जे णं दारिद्दे से णं अयसब्भक्खाण अकित्ती कलंकरासीणं मेलाव-गागमे। जे णं अयसब्भक्खाण अकित्ती कलंक रासीणं मेलावगागमे, से णं सयल जण लज्जणिज्जे निंदणिज्जे गरहणिज्जे खिंसणिज्जे दुगुंछणिज्जे सव्व परिभूए जीविए। जे णं सव्व परिभूए जीविए, से णं सम्मद्दंसण नाण चारित्ताइगुणेहिं सुदूरयरेणं विप्पमुक्के चेव मनुय-जम्मे, अन्नहा वा सव्व परिभूए चेव न भवेज्जा। जे णं सम्म द्दंसण नाण चारित्ताइ गुणेहिं सुदूरयरेणं विप्पमुक्के चेव न भवे, से णं अनिरुद्धा-सवदारत्ते चेव। जे णं अनिरुद्धासवदारत्ते चेव से णं बहल थूल पावकम्माययणे। जे णं बहल थूल पाव कम्माययणे, से णं बंधे, से णं बंधी, से णं गुत्ती, से णं चारगे, से णं सव्वमकल्लाणममंगल जाले, दुव्विमोक्खे कक्खड घन बद्ध पुट्ठ निकाइए कम्म गंठि। जे णं कक्खड घन बद्ध पुट्ठ निकाइय कम्म गंठी, से णं एगिंदियत्ताए बेइंदियत्ताए, तेइंदियत्ताए, चउरिंदियत्ताए, पंचेंदियत्ताए नारय तिरिच्छ कुमाणुसेसुं अनेगविहं सारीर मानसं दुक्खमनुभवमाणे णं वेइयव्वे। एएणं अट्ठेणं गोयमा एवं वुच्चइ जहा अत्थेगे जे णं वासेज्जा, अत्थेगे जे णं नो वासेज्जा। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवंत ! क्या उसमें रहकर इस गुरुवास का सेवन होता है ? हे गौतम ! हा, किसी साधु यकीनन उसमें रहकर गुरुकुल वास सेवन करते हैं और कुछ ऐसे भी होते हैं कि जो वैसे गच्छ में वास न करे। हे भगवंत ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि – कोई वास करे और कोई वास नहीं करते ? हे गौतम ! एक आत्मा आज्ञा का आराधक है और एक आज्ञा का विराधक है। जो गुरु की आज्ञा में रहा है वो – सम्यग्दर्शन – ज्ञान चारित्र का आराधक है, और वो हे गौतम ! अत्यंत ज्ञानी कईं प्रकार के मोक्षमार्ग में उद्यम करनेवाले हैं, जो गुरु की आज्ञा के अनुसार नहीं चलता, आज्ञा की विराधना करता है, वे अनन्तानुबन्धी क्रोध, माया, मान, लोभवाले चार कषाय युक्त होते है, वे राग, द्वेष, मोह और मिथ्यात्व के पूँजवाले होते हैं, जो गहरे राग, द्वेष, मोह मिथ्यात्व के ढ़गवाले होते हैं वो उपमा न दे सके वैसे घोर संसार सागर में भटकते रहते हैं। अनुत्तर घोर संसार सागर में भटकनेवाले की फिर से जन्म, जरा, मोत फिर जन्म, बुढ़ापा, मौत पाकर कईं भव का परावर्तन करना पड़ता है। और फिर उसमें ८४ लाख योनि में बार – बार पैदा होना पड़ता है। और फिर बार – बार अति दुःसह घोर गहरे काले अंधकारवाले, लहूँ से लथपथ चरबी, परु, उल्टी, पित्त, कफ के कीचड़वाले, बदबूवाले, अशुचि बहनेवाले गर्भ की चारों ओर लीपटनेवाले ओर फेफड़े, विष्ठा, पेशाब आदि से भरे अनिष्ट, उद्वेग करनेवाले, अति घोर, चंड़, रौद्र दुःख से भयानक ऐसे गर्भ की परम्परा में प्रवेश करना वाकई में दुःख है, क्लेश है, वो रोग और आतंक है, वो शोक, संताप और उद्वेग करनेवाले हैं, वो अशान्ति करवानेवाले हैं, अशान्ति करवानेवाले होने से यथास्थिति इष्ट मनोरथ की अप्राप्ति करवानेवाले हैं, यथास्थिति इष्ट मनोरथ की प्राप्ति न होने से उसको पाँच तरह के अंतराय कर्म का उदय होता है। जहाँ पाँच तरह के कर्म का उदय होता है, उसमें सर्व दुःख के अग्रभूत ऐसा प्रथम दारिद्र्य पैदा होता है, जिसे दारिद्र होता है वहाँ अपयश, झूठे आरोप लगाना, अपकीर्ति कलंक आदि कईं दुःखों के ढ़ग इकट्ठे होते हैं। उस तरह के दुःख का योग हो तब सकल लोगों से शर्मींदा करनेवाले, निंदनीय, गर्हणीय, अवर्णवाद करवानेवाले, दुर्गंछा करवानेवाले, सर्व से पराभव पाए वैसे जीवितवाला होता है तब सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र आदि गुण उनसे काफी दूर होते हैं, और मानव जन्म व्यर्थ जाता है या धर्म से सर्वथा हार जाता है। तो सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र आदि गुण से अति विप्रमुक्त होते हैं यानि वो आश्रव द्वार को रोक नहीं सकता। वो आश्रव द्वार को बन्द नहीं कर सकता, वो काफी बड़े पाप कर्म का निवासभूत बनता है। जो काफी बड़े पापकर्म का निवासभूत बनता है, वो कर्म का बँधक बनता है। बँधक हुआ यानि कैदखाने में कैदी की तरह पराधीन होता है, यानि सर्व अकल्याण अमंगल की झाल में फँसता है, यहाँ से छूटना काफी मुश्किल होता है क्योंकि कईं कर्कश गहरे बद्ध स्पृष्ट निकाचित सेवन कर्म की ग्रंथि तोड़ नहीं सकते, उस कारण से एकेन्द्रियपन में बेइन्द्रियपन में, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रियपन में, नारकी, तिर्यंच कुमानवपन आदि में कईं तरह के शारीरिक, मानसिक दुःख भुगतने पड़ते हैं। अशाता भुगतनी पड़ती है। इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि – ऐसी कुछ आत्माएं होती है कि जो वैसे गीतार्थ के गच्छ में रहकर गुरुकुलवास सेवन करते हैं और कुछ सेवन नहीं करते। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhayavam kimesa vasejja goyama atthege je nam vasejja, atthege je nam no vasejja se bhayavam kenam atthenam evam vuchchai jaha nam goyama atthege je nam vasejja atthege je nam no vasejja. Goyama atthege je nam anae thie atthege je nam ana virahage. Je nam ana thie se nam sammaddamsana nana charittarahage. Je nam sammaddamsana nana charittarahage se nam goyama achchamta viu supavarakammujjae mokkhamagge. Je ya u nam ana virahage se nam anamtanubamdhi kohe, se nam anamtanubamdhi mane, se nam anamtanubamdhi kaiyave, se nam anamtanubamdhi lobhe, je nam anamtanubamdhi kohaikasaya chaukke se nam ghana raga dosa moha michchhatta pumje. Je nam ghana raga dosa moha michchhatta pumje, se nam anuttare ghora samsare samudde. Je nam anuttara ghora samsara samudde, se nam puno puno jammam puno puno jara, puno puno machchu. Je nam puno puno jamma jara marane, se nam puno puno bahu bhavamtara paravatte, je nam puno puno bahu bhavamtara-paravatte, se nam puno puno chulasii joni lakkhamahimdanam. Je nam puno puno chulasii joni lakkhamahimdanam se nam puno puno sudusahe ghora timisamdhayare ruhira chilichchille vasa puya vamta pitta simbha chikkhalla duggamdhasui chilina jamvala kesa kivvisa kharamta padipunne anittha uvviyanijja aighora chamdamaharoddadukkhadarune gabbha parampara pavese. Je nam puno puno darune gabbha-parampara pavese se nam dukkhe, se nam kese, se nam rogayamke, se nam soga samtavuvveyage. Je nam dukkha kesa rogayamka soga samtavuvveyage, se nam anivvutti. Je nam anivvutti, se nam jahittha-manorahanam asampatti. Je nam jahitthamanorahanam asampatti, se nam tava pamchappayara amta-raya kammodae. Jattha nam pamchappayara amtaraya kammodae tattha nam savva dukkhanam agganibhue padhame tava daridde. Je nam daridde se nam ayasabbhakkhana akitti kalamkarasinam melava-gagame. Je nam ayasabbhakkhana akitti kalamka rasinam melavagagame, se nam sayala jana lajjanijje nimdanijje garahanijje khimsanijje dugumchhanijje savva paribhue jivie. Je nam savva paribhue jivie, se nam sammaddamsana nana charittaigunehim sudurayarenam vippamukke cheva manuya-jamme, annaha va savva paribhue cheva na bhavejja. Je nam samma ddamsana nana charittai gunehim sudurayarenam vippamukke cheva na bhave, se nam aniruddha-savadaratte cheva. Je nam aniruddhasavadaratte cheva se nam bahala thula pavakammayayane. Je nam bahala thula pava kammayayane, se nam bamdhe, se nam bamdhi, se nam gutti, se nam charage, se nam savvamakallanamamamgala jale, duvvimokkhe kakkhada ghana baddha puttha nikaie kamma gamthi. Je nam kakkhada ghana baddha puttha nikaiya kamma gamthi, se nam egimdiyattae beimdiyattae, teimdiyattae, chaurimdiyattae, pamchemdiyattae naraya tirichchha kumanusesum anegaviham sarira manasam dukkhamanubhavamane nam veiyavve. Eenam atthenam goyama evam vuchchai jaha atthege je nam vasejja, atthege je nam no vasejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavamta ! Kya usamem rahakara isa guruvasa ka sevana hota hai\? He gautama ! Ha, kisi sadhu yakinana usamem rahakara gurukula vasa sevana karate haim aura kuchha aise bhi hote haim ki jo vaise gachchha mem vasa na kare. He bhagavamta ! Aisa kisa karana se kaha jata hai ki – koi vasa kare aura koi vasa nahim karate\? He gautama ! Eka atma ajnya ka aradhaka hai aura eka ajnya ka viradhaka hai. Jo guru ki ajnya mem raha hai vo – samyagdarshana – jnyana charitra ka aradhaka hai, aura vo he gautama ! Atyamta jnyani kaim prakara ke mokshamarga mem udyama karanevale haim, jo guru ki ajnya ke anusara nahim chalata, ajnya ki viradhana karata hai, ve anantanubandhi krodha, maya, mana, lobhavale chara kashaya yukta hote hai, ve raga, dvesha, moha aura mithyatva ke pumjavale hote haim, jo gahare raga, dvesha, moha mithyatva ke rhagavale hote haim vo upama na de sake vaise ghora samsara sagara mem bhatakate rahate haim. Anuttara ghora samsara sagara mem bhatakanevale ki phira se janma, jara, mota phira janma, burhapa, mauta pakara kaim bhava ka paravartana karana parata hai. Aura phira usamem 84 lakha yoni mem bara – bara paida hona parata hai. Aura phira bara – bara ati duhsaha ghora gahare kale amdhakaravale, lahum se lathapatha charabi, paru, ulti, pitta, kapha ke kicharavale, badabuvale, ashuchi bahanevale garbha ki charom ora lipatanevale ora phephare, vishtha, peshaba adi se bhare anishta, udvega karanevale, ati ghora, chamra, raudra duhkha se bhayanaka aise garbha ki parampara mem pravesha karana vakai mem duhkha hai, klesha hai, vo roga aura atamka hai, vo shoka, samtapa aura udvega karanevale haim, vo ashanti karavanevale haim, ashanti karavanevale hone se yathasthiti ishta manoratha ki aprapti karavanevale haim, yathasthiti ishta manoratha ki prapti na hone se usako pamcha taraha ke amtaraya karma ka udaya hota hai. Jaham pamcha taraha ke karma ka udaya hota hai, usamem sarva duhkha ke agrabhuta aisa prathama daridrya paida hota hai, jise daridra hota hai vaham apayasha, jhuthe aropa lagana, apakirti kalamka adi kaim duhkhom ke rhaga ikatthe hote haim. Usa taraha ke duhkha ka yoga ho taba sakala logom se sharmimda karanevale, nimdaniya, garhaniya, avarnavada karavanevale, durgamchha karavanevale, sarva se parabhava pae vaise jivitavala hota hai taba samyagdarshana jnyana charitra adi guna unase kaphi dura hote haim, aura manava janma vyartha jata hai ya dharma se sarvatha hara jata hai. To samyagdarshana jnyana charitra adi guna se ati vipramukta hote haim yani vo ashrava dvara ko roka nahim sakata. Vo ashrava dvara ko banda nahim kara sakata, vo kaphi bare papa karma ka nivasabhuta banata hai. Jo kaphi bare papakarma ka nivasabhuta banata hai, vo karma ka bamdhaka banata hai. Bamdhaka hua yani kaidakhane mem kaidi ki taraha paradhina hota hai, yani sarva akalyana amamgala ki jhala mem phamsata hai, yaham se chhutana kaphi mushkila hota hai kyomki kaim karkasha gahare baddha sprishta nikachita sevana karma ki gramthi tora nahim sakate, usa karana se ekendriyapana mem beindriyapana mem, teindriya, chaurindriya, pamchendriyapana mem, naraki, tiryamcha kumanavapana adi mem kaim taraha ke sharirika, manasika duhkha bhugatane parate haim. Ashata bhugatani parati hai. Isa karana se he gautama ! Aisa kaha jata hai ki – aisi kuchha atmaem hoti hai ki jo vaise gitartha ke gachchha mem rahakara gurukulavasa sevana karate haim aura kuchha sevana nahim karate. |