Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1016980 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
Translated Chapter : |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
Section : | उद्देशक-२ | Translated Section : | उद्देशक-२ |
Sutra Number : | 280 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Gatha | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [गाथा] तस्सुदया बहुभवग्गहणे जत्थ जत्थोववज्जती। तत्थ तत्थ स हम्मंतो मारिज्जंतो भमे सया॥ | ||
Sutra Meaning : | जहाँ – जहाँ वो उत्पन्न होता है वहाँ – वहाँ कईं भव – वन में हंमेशा मरनेवाला, पीटनेवाला, कूटनेवाला हंमेशा भ्रमण करता है। जो किसी प्राणी के या कीड़े तितली आदि जीव के अंग उपांग आँख, कान, नासिका, कमर, हड्डियाँ आदि शरीर के अवयव को तोड़ दे, अगर तुड़वा दे या ऐसा करनेवाले को अच्छा माने तो वो किए कर्म के उदय से घाणी – चक्की या वैसे यंत्र में जैसे तल पीले जाए वैसे वो भी चक या वैसे यंत्र में पीला जाएगा। इस तरह एक, दो, तीन, बीस, तीस या सो, हजार, लाख नहीं लेकिन संख्याता भव तक दुःख की परम्परा प्राप्त करेगा। सूत्र – २८०–२८३ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [gatha] tassudaya bahubhavaggahane jattha jatthovavajjati. Tattha tattha sa hammamto marijjamto bhame saya. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jaham – jaham vo utpanna hota hai vaham – vaham kaim bhava – vana mem hammesha maranevala, pitanevala, kutanevala hammesha bhramana karata hai. Jo kisi prani ke ya kire titali adi jiva ke amga upamga amkha, kana, nasika, kamara, haddiyam adi sharira ke avayava ko tora de, agara turava de ya aisa karanevale ko achchha mane to vo kie karma ke udaya se ghani – chakki ya vaise yamtra mem jaise tala pile jae vaise vo bhi chaka ya vaise yamtra mem pila jaega. Isa taraha eka, do, tina, bisa, tisa ya so, hajara, lakha nahim lekina samkhyata bhava taka duhkha ki parampara prapta karega. Sutra – 280–283 |