Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007811 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 211 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] सव्वेवि एए पंचसइया, रायहानीओ उत्तरेणं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–रुप्पी वासहरपव्वए? रुप्पी वासहरपव्वए? गोयमा! रुप्पी णं वासहरपव्वए रुप्पी रुप्पपट्टे रुप्पिओभासे सव्वरुप्पामए। रुप्पी य इत्थ देवे पलिओवमट्ठिईए परिवसइ। से तेणट्ठेणं। कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे हेरण्णवए वासे पन्नत्ते? गोयमा! रुप्पिस्स उत्तरेणं, सिहरिस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेरण्णवए वासे पन्नत्ते। एवं जह चेव हेमवयं तह चेव हेरण्णवयंपि भाणियव्वं, नवरं–जीवा दाहिणेणं उत्तरेणं धनुपट्ठं अवसिट्ठं तं चेव। कहि णं भंते! हेरण्णवए वासे मालवंतपरियाए नामं वट्टवेयड्ढपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! सुवण्णकूलाए पच्चत्थिमेणं, रुप्पकूलाए पुरत्थिमेणं, एत्थ णं हेरण्णवयस्स वासस्स बहुमज्झ-देसभाए मालवंतपरियाए नामं वट्टवेयड्ढे पन्नत्ते। जह चेव सद्दावई तह चेव मालवंतपरियाए। अट्ठो, उप्पलाइं पउमाइं मालवंतप्पभाइं मालवंतवण्णाइं मालवंतवण्णाभाइं। पभासे य इत्थ देवे महिड्ढीए पलिओवमट्ठिईए परिवसइ। से एएणट्ठेणं। रायहानी उत्तरेणं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–हेरण्णवए वासे? हेरण्णवए वासे? गोयमा! हेरण्णवए णं वासे रुप्पि-सिहरीहिं वासहरपव्वएहिं दुहओ समुवगूढे निच्चं हिरण्णं दलयइ निच्चं हिरण्णं पगासइ। हेरण्णवए य इत्थ देवे परिवसइ। से एएणट्ठेणं। कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे सिहरी नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! हेरण्णवयस्स उत्तरेणं, एरावयस्स दाहिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं। एवं जह चेव चुल्लहिमवंतो तह चेव सिहरीवि नवरं–जीवा दाहिणेणं, धनुपट्ठं उत्तरेणं, अवसिट्ठं तं चेव। पुंडरीए दहे, सुवण्णकूला महानई दाहिणेणं नेयव्वा जहा रोहियंसा पुरत्थिमेणं गच्छइ। एवं जह चेव गंगा-सिंधूओ तह चेव रत्ता-रत्तवईओ नेयव्वाओ–पुरत्थिमेणं रत्ता, पच्चत्थिमेणं रत्तवई, अवसिट्ठं तं चेव, अपरिसेसु नेयव्वं। सिहरिम्मि णं भंते! वासहरपव्वए कइ कूडा पन्नत्ता? गोयमा! इक्कारस कूडा पन्नत्ता, तं जहा–सिद्धाययनकूडे सिहरिकूडे हेरण्णवयकूडे सुवण्णकूलाकूडे सुरादेवीकूडे रत्ताकूडे लच्छीकूडे रत्तवईकूडे इलादेवीकूडे एरवयकूडे तिगिच्छिकूडे। एवं सव्वेवि एते कूडा पंचसइया, रायहानीओ उत्तरेणं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सिहरिवासहरपव्वए? सिहरिवासहरपव्वए? गोयमा! सिहरिम्मि वासहरपव्वए बहवे कूडा सिहरिसंठाणसंठिया सव्वरयणामया सिहरी य इत्थ देवे जाव परिवसइ। से तेणट्ठेणं। कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे एरावए नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! सिहरिस्स उत्तरेणं, उत्तरलवणसमुद्दस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे एरावए नामं वासे पन्नत्ते–खाणुबहुले, कंटकबहुले, एवं जच्चेव भरहस्स वत्तव्वया सच्चेव सव्वा निरवसेसा नेयव्वा सओयवणा सनिक्खमणा सपरिनिव्वाणा, नवरं–एरावओ चक्कवट्टी, एरावओ देवो। से तेणट्ठेणं एरावए वासे-एरावए वासे। | ||
Sutra Meaning : | ये सभी कूट पाँच – पाँच सौ योजन ऊंचे हैं। उत्तर में इनकी राजधानियाँ है। भगवन् ! वह रुक्मी वर्षधर पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! रुक्मी वर्षधर पर्वत रजत – निष्पन्न रजत की ज्यों आभामय एवं सर्वथा रजतमय है। वहाँ पल्योपमस्थितिक रुक्मी नामक देव निवास करता है, इसलिए वह रुक्मी वर्षधर पर्वत कहा जाता है। भगवन् ! जम्बूद्वीप का हैरण्यवत क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! रुक्मी वर्षधर पर्वत के उत्तर में, शिखरी वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है। उसकी जीवा दक्षिण में है, धनु – पृष्ठभाग उत्तर में है। बाकी वर्णन हैमवत – सदृश है। हैरण्यवत क्षेत्र में माल्यवत्पर्याय वृत्तवैताढ्य पर्वत कहाँ है ? गौतम ! सुवर्णकूला महानदी के पश्चिम में, रूप्यकूला महानदी के पूर्व में हैरण्यवत क्षेत्र के बीचोंबीच है। शब्दापाती वृत्त वैताढ्य के समान माल्यवत्पर्याय है। वहाँ परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्ययुक्त प्रभास देव निवास करता है। इन कारणों से वह माल्यवत्पर्याय वृत्त वैताढ्य कहा जाता है। राजधानी उत्तर में है। हैरण्यवत क्षेत्र नाम किस कारण कहा जाता है ? गौतम ! हैरण्यवत क्षेत्र रुक्मी तथा शिखरी वर्षधर पर्वतों से दो ओर से घिरा हुआ है। वह नित्य हिरण्य – देता है, नित्य स्वर्ण प्रकाशित करता है, जो स्वर्णमय शिलापट्टक आदि के रूप में वहाँ यौगलिक मनुष्यों के शय्या, आसन आदि उपकरणों के रूप में उपयोग में आता है, वहाँ हैरण्यवत देव निवास करता है, इसलिए वह हैरण्यवत क्षेत्र कहा जाता है। भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् शिखरी वर्षधर कहाँ है ? गौतम ! हैरण्यवत के उत्तर में, ऐरावत के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में शिखरी वर्षधर पर्वत है। उसकी जीवा दक्षिण में है। उसका धनुपृष्ठभाग उत्तर में है बाकी वर्णन चुल्ल हिमवान् के अनुरूप है। उस पर पुण्डरीकद्रह है। उसके दक्षिण तोरण से सुवर्णकूला महानदी निकलती है। वह रोहितांशा की ज्यों पूर्वी लवणसमुद्र में मिलती है। रक्ता महानदी पूर्व में तथा रक्तवती पश्चिम में बहती है। शिखरी वर्षधर पर्वत के कितने कूट हैं ? गौतम ! ग्यारह – सिद्धायतनकूट, शिखरीकूट, हैरण्यवतकूट, सुवर्णकूलाकूट, सुरादेवीकूट, रक्ताकूट, लक्ष्मीकूट, रक्तावतीकूट, इलादेवीकूट, ऐरावतकूट, तिगिंच्छकूट। ये सभी कूट पाँच – पाँच सौ योजन ऊंचे हैं। इनके अधिष्ठातृ देवों की राजधानियाँ उत्तर में हैं। यह पर्वत शिखरी वर्षधर पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! शिखरी वर्षधर पर्वत पर बहुत से कूट उसी के – से आकार में अवस्थित हैं, वहाँ शिखरी देव निवास करता है, इस कारण शिखरी वर्षधर पर्वत कहा जाता है। भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् ऐरावत क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! शिखरी वर्षधर पर्वत के उत्तर में, उत्तरी लवणसमुद्र के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है। वह स्थाणु – बहुल है, कंटकबहुल है, इत्यादि वर्णन भरतक्षेत्र की ज्यों है। वहाँ ऐरावत नामक चक्रवर्ती होता है, ऐरावत नामक अधिष्ठातृ – देव हैं, इस कारण वह ऐरावत क्षेत्र कहा जाता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] savvevi ee pamchasaiya, rayahanio uttarenam. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–ruppi vasaharapavvae? Ruppi vasaharapavvae? Goyama! Ruppi nam vasaharapavvae ruppi ruppapatte ruppiobhase savvaruppamae. Ruppi ya ittha deve paliovamatthiie parivasai. Se tenatthenam. Kahi nam bhamte! Jambuddive dive herannavae vase pannatte? Goyama! Ruppissa uttarenam, siharissa dakkhinenam, puratthimalavanasamuddassa pachchatthimenam, pachchatthimalavanasamuddassa puratthimenam, ettha nam jambuddive dive herannavae vase pannatte. Evam jaha cheva hemavayam taha cheva herannavayampi bhaniyavvam, navaram–jiva dahinenam uttarenam dhanupattham avasittham tam cheva. Kahi nam bhamte! Herannavae vase malavamtapariyae namam vattaveyaddhapavvae pannatte? Goyama! Suvannakulae pachchatthimenam, ruppakulae puratthimenam, ettha nam herannavayassa vasassa bahumajjha-desabhae malavamtapariyae namam vattaveyaddhe pannatte. Jaha cheva saddavai taha cheva malavamtapariyae. Attho, uppalaim paumaim malavamtappabhaim malavamtavannaim malavamtavannabhaim. Pabhase ya ittha deve mahiddhie paliovamatthiie parivasai. Se eenatthenam. Rayahani uttarenam. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–herannavae vase? Herannavae vase? Goyama! Herannavae nam vase ruppi-siharihim vasaharapavvaehim duhao samuvagudhe nichcham hirannam dalayai nichcham hirannam pagasai. Herannavae ya ittha deve parivasai. Se eenatthenam. Kahi nam bhamte! Jambuddive dive sihari namam vasaharapavvae pannatte? Goyama! Herannavayassa uttarenam, eravayassa dahinenam, puratthimalavanasamuddassa pachchatthimenam, pachchatthimalavanasamuddassa puratthimenam. Evam jaha cheva chullahimavamto taha cheva siharivi navaram–jiva dahinenam, dhanupattham uttarenam, avasittham tam cheva. Pumdarie dahe, suvannakula mahanai dahinenam neyavva jaha rohiyamsa puratthimenam gachchhai. Evam jaha cheva gamga-simdhuo taha cheva ratta-rattavaio neyavvao–puratthimenam ratta, pachchatthimenam rattavai, avasittham tam cheva, aparisesu neyavvam. Siharimmi nam bhamte! Vasaharapavvae kai kuda pannatta? Goyama! Ikkarasa kuda pannatta, tam jaha–siddhayayanakude siharikude herannavayakude suvannakulakude suradevikude rattakude lachchhikude rattavaikude iladevikude eravayakude tigichchhikude. Evam savvevi ete kuda pamchasaiya, rayahanio uttarenam. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–siharivasaharapavvae? Siharivasaharapavvae? Goyama! Siharimmi vasaharapavvae bahave kuda siharisamthanasamthiya savvarayanamaya sihari ya ittha deve java parivasai. Se tenatthenam. Kahi nam bhamte! Jambuddive dive eravae namam vase pannatte? Goyama! Siharissa uttarenam, uttaralavanasamuddassa dakkhinenam, puratthimalavanasamuddassa pachchatthimenam, pachchatthimalavanasamuddassa puratthimenam, ettha nam jambuddive dive eravae namam vase pannatte–khanubahule, kamtakabahule, evam jachcheva bharahassa vattavvaya sachcheva savva niravasesa neyavva saoyavana sanikkhamana saparinivvana, navaram–eravao chakkavatti, eravao devo. Se tenatthenam eravae vase-eravae vase. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Ye sabhi kuta pamcha – pamcha sau yojana umche haim. Uttara mem inaki rajadhaniyam hai. Bhagavan ! Vaha rukmi varshadhara parvata kyom kaha jata hai\? Gautama ! Rukmi varshadhara parvata rajata – nishpanna rajata ki jyom abhamaya evam sarvatha rajatamaya hai. Vaham palyopamasthitika rukmi namaka deva nivasa karata hai, isalie vaha rukmi varshadhara parvata kaha jata hai. Bhagavan ! Jambudvipa ka hairanyavata kshetra kaham hai\? Gautama ! Rukmi varshadhara parvata ke uttara mem, shikhari varshadhara parvata ke dakshina mem, purvi lavanasamudra ke pashchima mem tatha pashchimi lavanasamudra ke purva mem hai. Usaki jiva dakshina mem hai, dhanu – prishthabhaga uttara mem hai. Baki varnana haimavata – sadrisha hai. Hairanyavata kshetra mem malyavatparyaya vrittavaitadhya parvata kaham hai\? Gautama ! Suvarnakula mahanadi ke pashchima mem, rupyakula mahanadi ke purva mem hairanyavata kshetra ke bichombicha hai. Shabdapati vritta vaitadhya ke samana malyavatparyaya hai. Vaham parama riddhishali, eka palyopama ayushyayukta prabhasa deva nivasa karata hai. Ina karanom se vaha malyavatparyaya vritta vaitadhya kaha jata hai. Rajadhani uttara mem hai. Hairanyavata kshetra nama kisa karana kaha jata hai\? Gautama ! Hairanyavata kshetra rukmi tatha shikhari varshadhara parvatom se do ora se ghira hua hai. Vaha nitya hiranya – deta hai, nitya svarna prakashita karata hai, jo svarnamaya shilapattaka adi ke rupa mem vaham yaugalika manushyom ke shayya, asana adi upakaranom ke rupa mem upayoga mem ata hai, vaham hairanyavata deva nivasa karata hai, isalie vaha hairanyavata kshetra kaha jata hai. Bhagavan ! Jambudvipa ke antargat shikhari varshadhara kaham hai\? Gautama ! Hairanyavata ke uttara mem, airavata ke dakshina mem, purvi lavanasamudra ke pashchima mem tatha pashchimi lavanasamudra ke purva mem shikhari varshadhara parvata hai. Usaki jiva dakshina mem hai. Usaka dhanuprishthabhaga uttara mem hai baki varnana chulla himavan ke anurupa hai. Usa para pundarikadraha hai. Usake dakshina torana se suvarnakula mahanadi nikalati hai. Vaha rohitamsha ki jyom purvi lavanasamudra mem milati hai. Rakta mahanadi purva mem tatha raktavati pashchima mem bahati hai. Shikhari varshadhara parvata ke kitane kuta haim\? Gautama ! Gyaraha – siddhayatanakuta, shikharikuta, hairanyavatakuta, suvarnakulakuta, suradevikuta, raktakuta, lakshmikuta, raktavatikuta, iladevikuta, airavatakuta, tigimchchhakuta. Ye sabhi kuta pamcha – pamcha sau yojana umche haim. Inake adhishthatri devom ki rajadhaniyam uttara mem haim. Yaha parvata shikhari varshadhara parvata kyom kaha jata hai\? Gautama ! Shikhari varshadhara parvata para bahuta se kuta usi ke – se akara mem avasthita haim, vaham shikhari deva nivasa karata hai, isa karana shikhari varshadhara parvata kaha jata hai. Bhagavan ! Jambudvipa ke antargat airavata kshetra kaham hai\? Gautama ! Shikhari varshadhara parvata ke uttara mem, uttari lavanasamudra ke dakshina mem, purvi lavanasamudra ke pashchima mem tatha pashchimi lavanasamudra ke purva mem hai. Vaha sthanu – bahula hai, kamtakabahula hai, ityadi varnana bharatakshetra ki jyom hai. Vaham airavata namaka chakravarti hota hai, airavata namaka adhishthatri – deva haim, isa karana vaha airavata kshetra kaha jata hai. |