Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1006093 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Translated Section : | चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप |
Sutra Number : | 293 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] खीरोदण्णं समुद्दं घयवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव– से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–घयवरे दीवे? घयवरे दीवे? गोयमा! घयवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव विहरंति, नवरं–घयोदगपडिहत्थाओ पव्वतादो सव्वकनगमया, कनगकनगप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। से तेणट्ठेणं। जोतिसं संखेज्जं। घयवरण्णं दीवं घयोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव– से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–घयोदे समुद्दे? घयोदे समुद्दे? गोयमा! घयोदस्स णं समुद्दस्स उदए से जहानामए–सारइयस्स गोधयवरस्स मंडे सुकढिते उद्दाण? सव्ववीसंदिते विस्संते सल्लइ-कण्णियारपुप्फवण्णाभे वण्णेणं उववेते गंधेणं उववेते रसेणं उववेते फासेणं उववेते, आसादणिज्जे वीसादणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे विंहणिज्जे सव्विंदियगात पल्हायणिज्जे, भवेता-रूवे सिया? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, घयोदस्स णं समुद्दस्स उदए एत्तो इट्ठतराए चेव जाव मनामतराए चेव आसादे णं पन्नत्ते। कंतसुकंता यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। से तेणट्ठेणं। चंदादी तधेव। घयोदण्णं समुद्दं खोदवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव– से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–खोदवरे दीवे? खोदवरे दीवे? गोयमा! खोदवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ जाव विहरंति, नवरं–खोदोदगपडिहत्थाओ पव्वतगादी सव्ववेरुलियामया। सुप्पभमहप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। से तेणट्ठेणं। चंदादी संखेज्जा। खोदवरण्णं दीवं खोदोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव– से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–खोदोदे समुद्दे? खोदोदे समुद्दे? गोयमा! खोदोदस्स णं समुद्दस्स उदए से जहानामए–उच्छूणं जच्चाणं वरपुंडगाणं हरिताभाणं भेरुंडुच्छूण वा कालपोराणं हरिताल-पिंजराणं अवणीतमूलाणं तिभागणिव्वादितवाडाणं गंठिपरिसोधिताणं खोदरसे होज्ज वत्थपरिपूते चाउज्जातगसुवासिते अधियपत्थे लहुए वण्णेणं उववेते गंधेणं उववेते रसेणं उववेते फासेणं उववेते आसादणिज्जे वीसादणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिंहणिज्जे सव्विंदियागात-पल्हायणिज्जे, भवेतारूवे सिया? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, खोदोदस्स णं समुद्दस्स उदए एत्तो इट्ठतराए चेव जाव मनामतराए चेव आसादे णं पन्नत्ते पुण्ण-पुण्णप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–खोदोदे समुद्दे, खोदोदे समुद्दे। चंदादीण जधा पुक्खरोदस्स। | ||
Sutra Meaning : | वर्तुल और वलयाकार संस्थान – संस्थित घृतवर नामक द्वीप क्षीरोदसमुद्र को सब ओर से घेर कर स्थित है। वह समचक्रवाल संस्थान वाला है। उसका विस्तार और परिधि संख्यात लाख योजन की है। उसके प्रदेशों की स्पर्शना आदि से लेकर यह घृतवरद्वीप क्यों कहलाता है, यहाँ तक का वर्णन पूर्ववत्। गौतम ! घृतवरद्वीप में स्थान – स्थान पर बहुत – सी छोटी – छोटी बावड़ियाँ आदि हैं जो घृतोदक से भरी हुई हैं। वहाँ उत्पात पर्वत यावत् खडहड आदि पर्वत हैं, वे सर्वकंचनमय स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं। वहाँ कनक और कनकप्रभ नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। उसके ज्योतिष्कों की संख्या संख्यात – संख्यात है। उक्त घृतवरद्वीप को घृतोद नामक समुद्र चारों ओर से घेरकर स्थित है। वह गोल और वलय की आकृति से संस्थित है। वह समचक्रवाल संस्थान वाला है। पूर्ववत् द्वार, प्रदेशस्पर्शना, जीवोत्पत्ति और नाम का प्रयोजन जानना। यावत् – घृतोदसमुद्र का पानी गोघृत के मंड के जैसा श्रेष्ठ है। यह गोघृतमंड फूले हुए सल्लकी, कनेर के फूल, सरसों के फूल, कोरण्ट की माला की तरह पीले वर्ण का होता है, स्निग्धता के गुण से युक्त होता है, अग्नि – संयोग से चमकवाला होता है, यह निरुपहत और विशिष्ट सुन्दरता से युक्त होता है, अच्छी तरह जमाये हुए दहीं को अच्छी तरह मथित करने पर प्राप्त मक्खन को उसी समय तपाये जाने पर, अच्छी तरह उकाले जाने पर उसे अन्यत्र न ले जाते हुए उसी स्थान पर तत्काल छानकर कचरे आदि के उपशान्त होने पर उस पर जो थर जम जाती, वह जैसे अधिक सुगन्ध से सुगन्धित, मनोहर, मधुर – परिणाम वाली और दर्शनीय होती है, वह पथ्यरूप, निर्मल और सुखोपभोग्य होती है, वह घृतोद का पानी इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मन को तृप्त करने वाला है। वहाँ कान्त और सुकान्त नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। शेष पूर्ववत् यावत् वहाँ संख्यात तारागण – कोटीकोटी शोभित होती थी, शोभित होती हैं और शोभित होंगी। गोल और वलयाकार क्षोदवर नाम का द्वीप घृतोदसमुद्र को सब ओर से घेरे हुए स्थित है, आदि पूर्ववत्। क्षोदवरद्वीप में जगह – जगह छोटी – छोटी बावड़ियाँ आदि हैं जो क्षोदोदग से परिपूर्ण हैं। वहाँ उत्पात पर्वत आदि हैं जो सर्ववैडूर्यरत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं। वहाँ सुप्रभ और महाप्रभ नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। इस कारण यह क्षोदवरद्वीप कहा जाता है। यहाँ संख्यात – संख्यात चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारागण कोटाकोटी हैं। इस क्षोदवरद्वीप को क्षोदोद नाम का समुद्र सब ओर से घेरे हुए है। यह गोल और वलयाकार है यावत् संख्यात लाख योजन का विष्कम्भ और परिधि वाला है आदि पूर्ववत्। हे गौतम ! क्षोदोदसमुद्र का पानी जातिवंत श्रेष्ठ इक्षुरस से भी अधिक इष्ट यावत् मन को तृप्ति देने वाला है। वह इक्षुरस स्वादिष्ट, गाढ़, प्रशस्त, विश्रान्त, स्निग्ध और सुकुमार भूमिभाग में निपुण कृषिकार द्वारा काष्ठ के सुन्दर विशिष्ट हल से जोती गई भूमि में जिस इक्षु का आरोपण किया गया है और निपुण पुरुष के द्वारा जिसका संरक्षण किया गया हो, तृणरहित भूमि में जिसकी वृद्धि हुई हो और इससे जो निर्मल एवं पककर विशेष रूप से मोटी हो गई हो और मधुररस से जो युक्त बन गई हो, शीतकाल के जन्तुओं के उपद्रव से रहित हो, ऊपर और नीचे की जड़ का भाग नीकाल कर और उसकी गाँठों को भी अलग कर बलवंत बैलों द्वारा यंत्र से नीकाला गया हो तथा वस्त्र से छाना गया हो और सुगंधित द्रव्यों से युक्त किया गया हो, अधिक पथ्यकारी तथा शुभ वर्ण गंध रस स्पर्श से समन्वित हो, ऐसे इक्षुरस भी अधिक इष्टतर यावत् मन को तृप्ति करने वाला है। पूर्ण और पूर्णभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव यहाँ रहते हैं। इस कारण यह क्षोदोदसमुद्र कहा जाता है। यावत् वहाँ संख्यात – संख्यात चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारागण – कोटीकोटी शोभित थे, शोभित हैं और शोभित होंगे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] khirodannam samuddam ghayavare namam dive vatte valayagarasamthanasamthite savvato samamta samparikkhittanam chitthati java– Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchati–ghayavare dive? Ghayavare dive? Goyama! Ghayavare nam dive tatthatattha dese tahimtahim bahuio khuddakhuddiyao java viharamti, navaram–ghayodagapadihatthao pavvatado savvakanagamaya, kanagakanagappabha yattha do deva mahiddhiya java paliovamatthitiya parivasamti. Se tenatthenam. Jotisam samkhejjam. Ghayavarannam divam ghayode namam samudde vatte valayagarasamthanasamthite savvato samamta samparikkhittanam chitthati java– Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchati–ghayode samudde? Ghayode samudde? Goyama! Ghayodassa nam samuddassa udae se jahanamae–saraiyassa godhayavarassa mamde sukadhite uddana? Savvavisamdite vissamte sallai-kanniyarapupphavannabhe vannenam uvavete gamdhenam uvavete rasenam uvavete phasenam uvavete, asadanijje visadanijje divanijje dappanijje mayanijje vimhanijje savvimdiyagata palhayanijje, bhaveta-ruve siya? Goyama! No inatthe samatthe, ghayodassa nam samuddassa udae etto itthatarae cheva java manamatarae cheva asade nam pannatte. Kamtasukamta yattha do deva mahiddhiya java paliovamatthitiya parivasamti. Se tenatthenam. Chamdadi tadheva. Ghayodannam samuddam khodavare namam dive vatte valayagarasamthanasamthite savvato samamta samparikkhittanam chitthati java– Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchati–khodavare dive? Khodavare dive? Goyama! Khodavare nam dive tatthatattha dese tahimtahim bahuio khuddakhuddiyao vavio java viharamti, navaram–khododagapadihatthao pavvatagadi savvaveruliyamaya. Suppabhamahappabha yattha do deva mahiddhiya java paliovamatthitiya parivasamti. Se tenatthenam. Chamdadi samkhejja. Khodavarannam divam khodode namam samudde vatte valayagarasamthanasamthite savvato samamta samparikkhittanam chitthati java– Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchati–khodode samudde? Khodode samudde? Goyama! Khododassa nam samuddassa udae se jahanamae–uchchhunam jachchanam varapumdaganam haritabhanam bherumduchchhuna va kalaporanam haritala-pimjaranam avanitamulanam tibhaganivvaditavadanam gamthiparisodhitanam khodarase hojja vatthaparipute chaujjatagasuvasite adhiyapatthe lahue vannenam uvavete gamdhenam uvavete rasenam uvavete phasenam uvavete asadanijje visadanijje divanijje dappanijje mayanijje bimhanijje savvimdiyagata-palhayanijje, bhavetaruve siya? Goyama! No inatthe samatthe, khododassa nam samuddassa udae etto itthatarae cheva java manamatarae cheva asade nam pannatte punna-punnappabha yattha do deva mahiddhiya java paliovamatthitiya parivasamti. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchati–khodode samudde, khodode samudde. Chamdadina jadha pukkharodassa. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vartula aura valayakara samsthana – samsthita ghritavara namaka dvipa kshirodasamudra ko saba ora se ghera kara sthita hai. Vaha samachakravala samsthana vala hai. Usaka vistara aura paridhi samkhyata lakha yojana ki hai. Usake pradeshom ki sparshana adi se lekara yaha ghritavaradvipa kyom kahalata hai, yaham taka ka varnana purvavat. Gautama ! Ghritavaradvipa mem sthana – sthana para bahuta – si chhoti – chhoti bavariyam adi haim jo ghritodaka se bhari hui haim. Vaham utpata parvata yavat khadahada adi parvata haim, ve sarvakamchanamaya svachchha yavat pratirupa haim. Vaham kanaka aura kanakaprabha nama ke do maharddhika deva rahate haim. Usake jyotishkom ki samkhya samkhyata – samkhyata hai. Ukta ghritavaradvipa ko ghritoda namaka samudra charom ora se gherakara sthita hai. Vaha gola aura valaya ki akriti se samsthita hai. Vaha samachakravala samsthana vala hai. Purvavat dvara, pradeshasparshana, jivotpatti aura nama ka prayojana janana. Yavat – ghritodasamudra ka pani goghrita ke mamda ke jaisa shreshtha hai. Yaha goghritamamda phule hue sallaki, kanera ke phula, sarasom ke phula, koranta ki mala ki taraha pile varna ka hota hai, snigdhata ke guna se yukta hota hai, agni – samyoga se chamakavala hota hai, yaha nirupahata aura vishishta sundarata se yukta hota hai, achchhi taraha jamaye hue dahim ko achchhi taraha mathita karane para prapta makkhana ko usi samaya tapaye jane para, achchhi taraha ukale jane para use anyatra na le jate hue usi sthana para tatkala chhanakara kachare adi ke upashanta hone para usa para jo thara jama jati, vaha jaise adhika sugandha se sugandhita, manohara, madhura – parinama vali aura darshaniya hoti hai, vaha pathyarupa, nirmala aura sukhopabhogya hoti hai, vaha ghritoda ka pani isase bhi adhika ishtatara yavat mana ko tripta karane vala hai. Vaham kanta aura sukanta nama ke do maharddhika deva rahate haim. Shesha purvavat yavat vaham samkhyata taragana – kotikoti shobhita hoti thi, shobhita hoti haim aura shobhita homgi. Gola aura valayakara kshodavara nama ka dvipa ghritodasamudra ko saba ora se ghere hue sthita hai, adi purvavat. Kshodavaradvipa mem jagaha – jagaha chhoti – chhoti bavariyam adi haim jo kshododaga se paripurna haim. Vaham utpata parvata adi haim jo sarvavaiduryaratnamaya yavat pratirupa haim. Vaham suprabha aura mahaprabha nama ke do maharddhika deva rahate haim. Isa karana yaha kshodavaradvipa kaha jata hai. Yaham samkhyata – samkhyata chandra, surya, graha, nakshatra aura taragana kotakoti haim. Isa kshodavaradvipa ko kshododa nama ka samudra saba ora se ghere hue hai. Yaha gola aura valayakara hai yavat samkhyata lakha yojana ka vishkambha aura paridhi vala hai adi purvavat. He gautama ! Kshododasamudra ka pani jativamta shreshtha ikshurasa se bhi adhika ishta yavat mana ko tripti dene vala hai. Vaha ikshurasa svadishta, garha, prashasta, vishranta, snigdha aura sukumara bhumibhaga mem nipuna krishikara dvara kashtha ke sundara vishishta hala se joti gai bhumi mem jisa ikshu ka aropana kiya gaya hai aura nipuna purusha ke dvara jisaka samrakshana kiya gaya ho, trinarahita bhumi mem jisaki vriddhi hui ho aura isase jo nirmala evam pakakara vishesha rupa se moti ho gai ho aura madhurarasa se jo yukta bana gai ho, shitakala ke jantuom ke upadrava se rahita ho, upara aura niche ki jara ka bhaga nikala kara aura usaki gamthom ko bhi alaga kara balavamta bailom dvara yamtra se nikala gaya ho tatha vastra se chhana gaya ho aura sugamdhita dravyom se yukta kiya gaya ho, adhika pathyakari tatha shubha varna gamdha rasa sparsha se samanvita ho, aise ikshurasa bhi adhika ishtatara yavat mana ko tripti karane vala hai. Purna aura purnabhadra nama ke do maharddhika deva yaham rahate haim. Isa karana yaha kshododasamudra kaha jata hai. Yavat vaham samkhyata – samkhyata chandra, surya, graha, nakshatra aura taragana – kotikoti shobhita the, shobhita haim aura shobhita homge. |