Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )

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Sr No : 1005963
Scripture Name( English ): Jivajivabhigam Translated Scripture Name : जीवाभिगम उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

Translated Chapter :

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

Section : द्वीप समुद्र Translated Section : द्वीप समुद्र
Sutra Number : 163 Category : Upang-03
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महई एगा पउमवरवेदिया पन्नत्ता, सा णं पउमवर वेदिया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धनुसयाइं विक्खंभेणं, जगतीसमिया परिक्खेवेणं सव्वरयणामई अच्छा जाव पडिरूवा। तीसे णं पउमवरवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते, तं जहा–वइरामया नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया फलगा लोहितक्खमईओ सूईओ वइरामया संधी नानामणिमया कलेवरा नानामणिमया कलेवरसंघाडा नानामणिमया रूवा नानामणिमया रूवसंघाडा अंकामया पक्खा पक्खवाहाओ जोतिरसामया वंसा वंसकवेल्लुया रययामईओ पट्टियाओ जातरूवमईओ ओहाडणीओ वइरामईओ उवरिपुंछणीओ सव्वसेयरययामए छादने। सा णं पउमवरवेइया एगमेगेणं हेमजालेणं एगमेगेणं गवक्खजालेणं एगमेगेणं खिंखिणि-जालेणं एगमेगेणं घंटाजालेणं एगमेगेणं मुत्ताजालेणं एगमेगेणं मणिजालेणं एगमेगेणं कनगजालेणं एगमेगेणं रयणजालेणं एगमेगेणं पउमजालेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। ते णं जाला तवणिज्जलंबूसगा सुवण्णपयरगमंडिया नानामणिरयणविविहहारद्धहार-उवसोभितसमुदया ईसिं अन्नमन्नमसंपत्ता पुव्वावरदाहिणुत्तरागतेहिं वाएहिं मंदायंमंदायं एज्जमाणा-एज्जमाणा पलंबमाणा-पलंबमाणा पझंझमाणा-पझंझमाणा तेणं ओरालेणं मणुन्नेणं मनोहरेणं कण्णमननेव्वुतिकरेणं सद्देणं सव्वतो समंता आपूरेमाणाआपूरेमाणा सिरीए अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठंति। तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहवे हयसंघाडा गयसंघाडा नरसंघाडा किन्नरसंघाडा किंपुरिससंघाडा महोरगसंघाडा गंधव्वसंघाडा उसभसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्ठा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहवे हयपंतीओ तहेव जाव पडिरूवाओ। एवं हयवीहीओ जाव पडिरूवाओ। एवं हयमिहुणाइं जाव पडिरूवाइं। तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहवे पउमलयाओ नागलयाओ, एवं असोगचंपगचूयवणवासंतियअतिमुत्तगकुंदसामलयाओ निच्चं कुसुमियाओ निच्चं माइयाओ निच्चं लवइयाओ निच्चं थवइयाओ निच्चं गुलइयाओ निच्चं गोच्छियाओ निच्चं जमलियाओ निच्चं जुवलियाओ निच्चं विणमियाओ निच्चं पणमियाओ निच्चं सुविभत्तपिंडिमंजरिवडेंसगधरीओ निच्चं कुसुमियमाइयलवइयथवइयगुलइयगोच्छियजमलियजुवलियविनमियपणमियसुविभत्तपिंडिमंजरि वडेंसगधरीओ सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पउमवरवेइया-पउमवरवेइया? गोयमा! पउमवरवेइयाए तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं वेदियासु वेदियावाहासु वेदियापुंडतरेसु खंभेसु खंभबाहासु खंभसीसेसु खंभपुंडतरेसु सूईसु सुईमुहेसु सूईफलएसु सूईपुडंतरेसु पक्खेसु पक्खबाहासु पक्खपेरंतेसु बहूइं उप्पलाइं पउमाइं जाव सहस्सपत्ताइं सव्वरयणामयाइं अच्छाइं सण्हाइं लण्हाइं घट्ठाइं मट्ठाइं नीरयाइं निम्मलाइं निप्पंकाइं निक्कंकडच्छायाइं सप्पभाइं समिरीयाइं सउज्जोयाइं पासादीयाइं दरिसणिज्जाइं अभिरूवाइं पडिरूवाइं महता वासिक्कच्छत्तसमाणाइं पन्नत्ताइं समणाउसो! से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पउमवरवेदिया-पउमवरवेदिया। पउमवरवेइया णं भंते! किं सासया? असासया? गोयमा! सिय सासया, सिय असासया। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सिय सासया? सिय असासया? गोयमा! दव्वट्ठयाए सासया, वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहिं असासया। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– सिय सासया, सिय असासया। पउमवरवेइया णं भंते! कालओ केवच्चिरं होति? गोयमा! न कयावि नासि न कयावि नत्थि न कयावि न भविस्सति। भुविं च भवति य भविस्सति य धुवा नियया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया निच्चा पउमवरवेदिया।
Sutra Meaning : उस जगती के ऊपर ठीक मध्यभाग में एक विशाल पद्मवरवेदिका है। वह पद्मवरवेदिका आधा योजन ऊंची और पाँच सौ धनुष विस्तारवाली है। वह सर्वरत्नमय है। उसकी परिधि जगती के मध्यभाग की परिधि के बराबर है। यह पद्मवरवेदिका सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है, यावत्‌ अभिरूप, प्रतिरूप है। उसके नेम वज्ररत्न के बने हुए हैं, उसके मूलपाद रिष्टरत्न के बने हुए हैं, इसके स्तम्भ वैडूर्यरत्न के हैं, उसके फलक सोने चाँदी के हैं, उसकी संधियाँ वज्रमय हैं, लोहिताक्षरत्न की बनी उसकी सूचियाँ हैं। यहाँ जो मनुष्यादि शरीर के चित्र बने हैं वे अनेक प्रकार की मणियों के बने हुए हैं तथा स्त्री – पुरुष युग्म की जोड़ी के चित्र भी अनेकविध मणियों के बने हुए हैं। मनुष्यचित्रों के अतिरिक्त चित्र अनेक प्रकार की मणियों के बने हुए हैं। अनेक जीवों की जोड़ी के चित्र भी विविध मणियों के बने हैं। उसके पक्ष अंकरत्नों के बने हैं। बड़े बड़े पृष्ठवंश ज्योतिरत्न नामक रत्न के हैं। बड़े वंशों को स्थिर रखने के लिए उनकी दोनों ओर तिरछे रूप में लगाये गये बाँस भी ज्योतिरत्न के हैं। बाँसों के ऊपर छप्पर पर दी जाने वाली लम्बी लकड़ी की पट्टिकाएं चाँदी की बनी हैं। कंभाओं को ढ़ांकने के लिए उनके ऊपर जो ओहाडणियाँ हैं वे सोने की हैं और पुंछनियाँ वज्ररत्न की हैं, पुञ्छनी के ऊपर और कवेलू के नीचे का आच्छादन श्वेत चाँदी का बना हुआ है। वह पद्मवरवेदिका कहीं पूरी तरह सोने के लटकते हुए मालासमूह से, कहीं गवाक्ष की आकृति के रत्नों के लटकते मालासमूह से, कहीं किंकणी और कहीं बड़ी घंटियों के आकार की मालाओं से, कहीं मोतियों की लटकती मालाओं से, कहीं मणियों की मालाओं से, कहीं सोने की मालाओं से, कहीं रत्नमय पद्म की आकृति वाली मालाओं से सब दिशा – विदिशाओं में व्याप्त हैं। वे मालाएं तपे हुए स्वर्ण के लम्बूसग वाली हैं, सोने के पतरे से मंडित हैं, नाना प्रकार के मणिरत्नों के विविध हार – अर्धहारों से सुशोभित हैं, ये एक दूसरी से कुछ ही दूरी पर हैं, पूर्व – पश्चिम – उत्तर – दक्षिण दिशा से आगत वायु से मन्द – मन्द रूप से हिल रही हैं, कंपित हो रही हैं, लम्बी – लम्बी फैल रही हैं, परस्पर टकराने से शब्दायमान हो रही हैं। उन मालाओं से नीकला हुआ शब्द जोरदार होकर भी मनोज्ञ, मनोहर और श्रोताओं के कान एवं मन को सुख देने वाला होता है। वे मालाएं मनोज्ञ शब्दों से सब दिशाओं एवं विदिशाओं को आपूरित करती हुई श्री से अतीव सुशोभित हो रही हैं। उस पद्मवरवेदिका के अलग – अलग स्थानों पर कहीं पर अनेक घोड़ों की जोड़, हाथी की जोड़, नर, किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गन्धर्व और बैलों की जोड़ उत्कीर्ण हैं जो सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत्‌ प्रतिरूप हैं। उस पद्म – वरवेदिका के अलग – अलग स्थानों पर कहीं घोड़ों की पंक्तियाँ यावत्‌ कहीं बैलों की पंक्तियाँ आदि उत्कीर्ण हैं जो सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत्‌ प्रतिरूप हैं। उस पद्मवरवेदिका के अलग – अलग स्थानों पर कहीं घोड़ों की वीथियां यावत्‌ कहीं बैलों की वीथियां उत्कीर्ण हैं जो सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ यावत्‌ प्रतिरूप हैं। उस पद्मवरवेदिकाके अलग – अलग स्थानों पर कहीं घोड़ों के मिथुनक यावत्‌ बैलों के मिथुनक उत्कीर्ण हैं जो सर्वरत्नमय यावत्‌ प्रतिरूप हैं। उस पद्मवरवेदिका में स्थान – स्थान पर बहुत – सी पद्मलता, नागलता, अशोकलता, चम्पकलता, चूतवनलता, वासंतीलता, अतिमुक्तकलता, कुंदलता, श्यामलता नित्य कुसुमित रहती हैं यावत्‌ सुविभक्त एवं विशिष्ट मंजरी रूप मुकुट को धारण करनेवाली हैं। ये लताएं सर्वरत्नमय हैं, श्लक्ष्ण हैं, मृदु हैं, घृष्ट हैं, मृष्ट हैं, नीरज हैं, निर्मल हैं, निष्पंक हैं, निष्कलंक छविवाली हैं, प्रभामय हैं, किरणमय हैं, उद्योतमय हैं, प्रसन्नता पैदा करने वाली हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं। हे भगवन्‌ ! पद्मवरवेदिका को पद्मवरवेदिका क्यों कहा जाता है ? गौतम ! पद्मवर – वेदिका में स्थान – स्थान पर वेदिकाओं में, वेदिका के आजू – बाजू में, दो वेदिकाओं के बीच के स्थानों में, स्तम्भों के आसपास, स्तम्भों के ऊपरी भाग पर, दो स्तम्भों के बीच के अन्तरों में, दो पाटियों को जोड़नेवाली सूचियों पर, सूचियों के मुखों पर, सूचियों के नीचे और ऊपर, दो सूचियों के अन्तरों में, वेदिका के पक्षों में, पक्षों के एक देश में, दो पक्षों के अन्तराल में बहुत सारे उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र आदि विविध कमल विद्यमान हैं। वे कमल सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत्‌ अभिरूप हैं, प्रतिरूप हैं। ये सब कमल वर्षाकाल के समय लगाये गये बड़े छद्म के आकार के हैं। हे आयुष्मन्‌ श्रमण ! इस कारण से पद्मवर – वेदिका को पद्मवरवेदिका कहा जाता है। हे भगवन्‌ ! पद्मवरवेदिका शाश्वत है या अशाश्वत है ? गौतम ! वह कथञ्चित्‌ शाश्व हैं और कथञ्चित्‌ अशाश्वत हैं। हे भगवन्‌ ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा शाश्वत है और वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्शपर्यायों से अशाश्वत हैं। इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि पद्मवरवेदिका कथञ्चित्‌ शाश्वत हैं और कथञ्चित्‌ अशाश्वत हैं। हे भगवन्‌ ! पद्मवरवेदिका काल की अपेक्षा कब तक रहने वाली है ? गौतम ! वह ‘कभी नहीं थी’ ऐसा नहीं है, ‘कभी नहीं है’ ऐसा नहीं है, ‘कभी नहीं रहेगी’ ऐसा नहीं है। वह थी, है और सदा रहेंगी। वश ध्रुव है, नियत है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है और नित्य है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tise nam jagatie uppim bahumajjhadesabhae, ettha nam mahai ega paumavaravediya pannatta, sa nam paumavara vediya addhajoyanam uddham uchchattenam, pamcha dhanusayaim vikkhambhenam, jagatisamiya parikkhevenam savvarayanamai achchha java padiruva. Tise nam paumavaraveiyae ayameyaruve vannavase pannatte, tam jaha–vairamaya nema ritthamaya paitthana veruliyamaya khambha suvannaruppamaya phalaga lohitakkhamaio suio vairamaya samdhi nanamanimaya kalevara nanamanimaya kalevarasamghada nanamanimaya ruva nanamanimaya ruvasamghada amkamaya pakkha pakkhavahao jotirasamaya vamsa vamsakavelluya rayayamaio pattiyao jataruvamaio ohadanio vairamaio uvaripumchhanio savvaseyarayayamae chhadane. Sa nam paumavaraveiya egamegenam hemajalenam egamegenam gavakkhajalenam egamegenam khimkhini-jalenam egamegenam ghamtajalenam egamegenam muttajalenam egamegenam manijalenam egamegenam kanagajalenam egamegenam rayanajalenam egamegenam paumajalenam savvato samamta samparikkhitta. Te nam jala tavanijjalambusaga suvannapayaragamamdiya nanamanirayanavivihaharaddhahara-uvasobhitasamudaya isim annamannamasampatta puvvavaradahinuttaragatehim vaehim mamdayammamdayam ejjamana-ejjamana palambamana-palambamana pajhamjhamana-pajhamjhamana tenam oralenam manunnenam manoharenam kannamananevvutikarenam saddenam savvato samamta apuremanaapuremana sirie ativa uvasobhemana-uvasobhemana chitthamti. Tise nam paumavaraveiyae tatthatattha dese tahimtahim bahave hayasamghada gayasamghada narasamghada kinnarasamghada kimpurisasamghada mahoragasamghada gamdhavvasamghada usabhasamghada savvarayanamaya achchha sanha lanha ghattha mattha niraya nimmala nippamka nikkamkadachchhaya sappabha samiriya saujjoya pasaiya darisanijja abhiruva padiruva. Tise nam paumavaraveiyae tatthatattha dese tahimtahim bahave hayapamtio taheva java padiruvao. Evam hayavihio java padiruvao. Evam hayamihunaim java padiruvaim. Tise nam paumavaraveiyae tatthatattha dese tahimtahim bahave paumalayao nagalayao, evam asogachampagachuyavanavasamtiyaatimuttagakumdasamalayao nichcham kusumiyao nichcham maiyao nichcham lavaiyao nichcham thavaiyao nichcham gulaiyao nichcham gochchhiyao nichcham jamaliyao nichcham juvaliyao nichcham vinamiyao nichcham panamiyao nichcham suvibhattapimdimamjarivademsagadhario nichcham kusumiyamaiyalavaiyathavaiyagulaiyagochchhiyajamaliyajuvaliyavinamiyapanamiyasuvibhattapimdimamjari vademsagadhario savvarayanamaio achchhao java padiruvao. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–paumavaraveiya-paumavaraveiya? Goyama! Paumavaraveiyae tatthatattha dese tahimtahim vediyasu vediyavahasu vediyapumdataresu khambhesu khambhabahasu khambhasisesu khambhapumdataresu suisu suimuhesu suiphalaesu suipudamtaresu pakkhesu pakkhabahasu pakkhaperamtesu bahuim uppalaim paumaim java sahassapattaim savvarayanamayaim achchhaim sanhaim lanhaim ghatthaim matthaim nirayaim nimmalaim nippamkaim nikkamkadachchhayaim sappabhaim samiriyaim saujjoyaim pasadiyaim darisanijjaim abhiruvaim padiruvaim mahata vasikkachchhattasamanaim pannattaim samanauso! Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–paumavaravediya-paumavaravediya. Paumavaraveiya nam bhamte! Kim sasaya? Asasaya? Goyama! Siya sasaya, siya asasaya. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–siya sasaya? Siya asasaya? Goyama! Davvatthayae sasaya, vannapajjavehim gamdhapajjavehim rasapajjavehim phasapajjavehim asasaya. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai– siya sasaya, siya asasaya. Paumavaraveiya nam bhamte! Kalao kevachchiram hoti? Goyama! Na kayavi nasi na kayavi natthi na kayavi na bhavissati. Bhuvim cha bhavati ya bhavissati ya dhuva niyaya sasaya akkhaya avvaya avatthiya nichcha paumavaravediya.
Sutra Meaning Transliteration : Usa jagati ke upara thika madhyabhaga mem eka vishala padmavaravedika hai. Vaha padmavaravedika adha yojana umchi aura pamcha sau dhanusha vistaravali hai. Vaha sarvaratnamaya hai. Usaki paridhi jagati ke madhyabhaga ki paridhi ke barabara hai. Yaha padmavaravedika sarvaratnamaya hai, svachchha hai, yavat abhirupa, pratirupa hai. Usake nema vajraratna ke bane hue haim, usake mulapada rishtaratna ke bane hue haim, isake stambha vaiduryaratna ke haim, usake phalaka sone chamdi ke haim, usaki samdhiyam vajramaya haim, lohitaksharatna ki bani usaki suchiyam haim. Yaham jo manushyadi sharira ke chitra bane haim ve aneka prakara ki maniyom ke bane hue haim tatha stri – purusha yugma ki jori ke chitra bhi anekavidha maniyom ke bane hue haim. Manushyachitrom ke atirikta chitra aneka prakara ki maniyom ke bane hue haim. Aneka jivom ki jori ke chitra bhi vividha maniyom ke bane haim. Usake paksha amkaratnom ke bane haim. Bare bare prishthavamsha jyotiratna namaka ratna ke haim. Bare vamshom ko sthira rakhane ke lie unaki donom ora tirachhe rupa mem lagaye gaye bamsa bhi jyotiratna ke haim. Bamsom ke upara chhappara para di jane vali lambi lakari ki pattikaem chamdi ki bani haim. Kambhaom ko rhamkane ke lie unake upara jo ohadaniyam haim ve sone ki haim aura pumchhaniyam vajraratna ki haim, punchhani ke upara aura kavelu ke niche ka achchhadana shveta chamdi ka bana hua hai. Vaha padmavaravedika kahim puri taraha sone ke latakate hue malasamuha se, kahim gavaksha ki akriti ke ratnom ke latakate malasamuha se, kahim kimkani aura kahim bari ghamtiyom ke akara ki malaom se, kahim motiyom ki latakati malaom se, kahim maniyom ki malaom se, kahim sone ki malaom se, kahim ratnamaya padma ki akriti vali malaom se saba disha – vidishaom mem vyapta haim. Ve malaem tape hue svarna ke lambusaga vali haim, sone ke patare se mamdita haim, nana prakara ke maniratnom ke vividha hara – ardhaharom se sushobhita haim, ye eka dusari se kuchha hi duri para haim, purva – pashchima – uttara – dakshina disha se agata vayu se manda – manda rupa se hila rahi haim, kampita ho rahi haim, lambi – lambi phaila rahi haim, paraspara takarane se shabdayamana ho rahi haim. Una malaom se nikala hua shabda joradara hokara bhi manojnya, manohara aura shrotaom ke kana evam mana ko sukha dene vala hota hai. Ve malaem manojnya shabdom se saba dishaom evam vidishaom ko apurita karati hui shri se ativa sushobhita ho rahi haim. Usa padmavaravedika ke alaga – alaga sthanom para kahim para aneka ghorom ki jora, hathi ki jora, nara, kinnara, kimpurusha, mahoraga, gandharva aura bailom ki jora utkirna haim jo sarvaratnamaya haim, svachchha haim yavat pratirupa haim. Usa padma – varavedika ke alaga – alaga sthanom para kahim ghorom ki pamktiyam yavat kahim bailom ki pamktiyam adi utkirna haim jo sarvaratnamaya haim, svachchha haim yavat pratirupa haim. Usa padmavaravedika ke alaga – alaga sthanom para kahim ghorom ki vithiyam yavat kahim bailom ki vithiyam utkirna haim jo sarvaratnamaya haim, svachchha yavat pratirupa haim. Usa padmavaravedikake alaga – alaga sthanom para kahim ghorom ke mithunaka yavat bailom ke mithunaka utkirna haim jo sarvaratnamaya yavat pratirupa haim. Usa padmavaravedika mem sthana – sthana para bahuta – si padmalata, nagalata, ashokalata, champakalata, chutavanalata, vasamtilata, atimuktakalata, kumdalata, shyamalata nitya kusumita rahati haim yavat suvibhakta evam vishishta mamjari rupa mukuta ko dharana karanevali haim. Ye lataem sarvaratnamaya haim, shlakshna haim, mridu haim, ghrishta haim, mrishta haim, niraja haim, nirmala haim, nishpamka haim, nishkalamka chhavivali haim, prabhamaya haim, kiranamaya haim, udyotamaya haim, prasannata paida karane vali haim, darshaniya haim, abhirupa haim aura pratirupa haim. He bhagavan ! Padmavaravedika ko padmavaravedika kyom kaha jata hai\? Gautama ! Padmavara – vedika mem sthana – sthana para vedikaom mem, vedika ke aju – baju mem, do vedikaom ke bicha ke sthanom mem, stambhom ke asapasa, stambhom ke upari bhaga para, do stambhom ke bicha ke antarom mem, do patiyom ko joranevali suchiyom para, suchiyom ke mukhom para, suchiyom ke niche aura upara, do suchiyom ke antarom mem, vedika ke pakshom mem, pakshom ke eka desha mem, do pakshom ke antarala mem bahuta sare utpala, padma, kumuda, nalina, subhaga, saugandhika, pundarika, mahapundarika, shatapatra, sahasrapatra adi vividha kamala vidyamana haim. Ve kamala sarvaratnamaya haim, svachchha haim yavat abhirupa haim, pratirupa haim. Ye saba kamala varshakala ke samaya lagaye gaye bare chhadma ke akara ke haim. He ayushman shramana ! Isa karana se padmavara – vedika ko padmavaravedika kaha jata hai. He bhagavan ! Padmavaravedika shashvata hai ya ashashvata hai\? Gautama ! Vaha kathanchit shashva haim aura kathanchit ashashvata haim. He bhagavan ! Aisa kyom kaha jata hai\? Gautama ! Dravya ki apeksha shashvata hai aura varna, rasa, gandha aura sparshaparyayom se ashashvata haim. Isalie he gautama ! Aisa kaha jata hai ki padmavaravedika kathanchit shashvata haim aura kathanchit ashashvata haim. He bhagavan ! Padmavaravedika kala ki apeksha kaba taka rahane vali hai\? Gautama ! Vaha ‘kabhi nahim thi’ aisa nahim hai, ‘kabhi nahim hai’ aisa nahim hai, ‘kabhi nahim rahegi’ aisa nahim hai. Vaha thi, hai aura sada rahemgi. Vasha dhruva hai, niyata hai, shashvata hai, akshaya hai, avyaya hai, avasthita hai aura nitya hai.