Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005857 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 57 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] इत्थीणं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–वणस्सइकालो। एवं सव्वासिं तिरिक्खित्थीणं। मनुस्सित्थीए खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अनंतं कालं–जाव अवड्ढपोग्गलपरियट्टं देसूणं। एवं जाव पुव्वविदेह अवरविदेहियाओ। अकम्मभूमिगमनुस्सित्थीणं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ? गोयमा! जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। एवं जाव अंतरदीवियाओ। देवित्थियाणं सव्वासिं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! स्त्री के पुनः स्त्री होने में कितने काल का अन्तर होता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल अर्थात् वनस्पतिकाल। ऐसा सब तिर्यंचस्त्रियों में कहना। मनुष्यस्त्रियों का अन्तर क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल यावत् देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्तन। इसी प्रकार यावत् पूर्वविदेह और पश्चिमविदेह की मनुष्यस्त्रियों को जानना। भन्ते ! अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियों का अन्तर कितना है ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य अन्त – मुहूर्त्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल। संहरण की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल। इस प्रकार यावत् अन्तर्द्वीपों की स्त्रियों का अन्तर कहना। सभी देवस्त्रियों का अन्तर जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] itthinam bhamte! Kevatiyam kalam amtaram hoi? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam anamtam kalam–vanassaikalo. Evam savvasim tirikkhitthinam. Manussitthie khettam paduchcha jahannenam amtomuhuttam ukkosenam vanassaikalo. Dhammacharanam paduchcha jahannenam ekkam samayam ukkosenam anamtam kalam–java avaddhapoggalapariyattam desunam. Evam java puvvavideha avaravidehiyao. Akammabhumigamanussitthinam bhamte! Kevatiyam kalam amtaram hoi? Goyama! Jammanam paduchcha jahannenam dasavasasahassaim amtomuhuttamabbhahiyaim, ukkosenam vanassaikalo. Samharanam paduchcha jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassaikalo. Evam java amtaradiviyao. Devitthiyanam savvasim jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassaikalo. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Stri ke punah stri hone mem kitane kala ka antara hota hai\? Gautama ! Jaghanya se antamuhurtta aura utkarsha se anantakala arthat vanaspatikala. Aisa saba tiryamchastriyom mem kahana. Manushyastriyom ka antara kshetra ki apeksha jaghanya se antamuhurtta aura utkrishta vanaspatikala. Dharmacharana ki apeksha jaghanya eka samaya aura utkrishta anantakala yavat deshona apardhapudgalaparavartana. Isi prakara yavat purvavideha aura pashchimavideha ki manushyastriyom ko janana. Bhante ! Akarmabhumika manushyastriyom ka antara kitana hai\? Gautama ! Janma ki apeksha jaghanya anta – muhurtta adhika dasa hajara varsha aura utkarsha se vanaspatikala. Samharana ki apeksha se jaghanya antamuhurtta aura utkrishta vanaspatikala. Isa prakara yavat antardvipom ki striyom ka antara kahana. Sabhi devastriyom ka antara jaghanya se antamuhurtta aura utkarsha se vanaspatikala hai. |