Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )

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Sr No : 1005850
Scripture Name( English ): Jivajivabhigam Translated Scripture Name : जीवाभिगम उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

द्विविध जीव प्रतिपत्ति

Translated Chapter :

द्विविध जीव प्रतिपत्ति

Section : Translated Section :
Sutra Number : 50 Category : Upang-03
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] से किं तं देवा? देवा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–भवनवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया। एवं भेदो भाणियव्वो जहा पन्नवणाए। ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तेसि णं तओ सरीरगा–वेउव्विए तेयए कम्मए। ओगाहणा दुविहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं, सरीरगा छण्हं संघयणाणं असंघयणी–नेवट्ठी नेव छिरा नेव ण्हारू। जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुन्ना मणामा ते तेसिं सरीरसंघायत्ताए परिणमंति। किंसंठिया? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते णं समचउरंससंठिया पन्नत्ता। तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया ते णं नाणासंठाणसंठिया पन्नत्ता। चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णा, छ लेस्साओ, पंच इंदिया, पंच समुग्घाया, सन्नीवि असन्नीवि, इत्थिवेदावि पुरिसवेदावि नो नपुंसगवेया, पज्जत्तीओअपज्जत्तीओ पंच, दिट्ठी तिन्नि, तिन्नि दंसणा, नाणीवि अन्नाणीवि–जे नाणी ते नियमा तिन्नाणी, अन्नाणी भयणाए, दुविहे उवओगे, तिविहे जोगे, आहारो नियमा छद्दिसिं, ओसन्नकारणं पडुच्च वण्णओ हालिद्दसुक्किलाइं जाव आहारमाहारेंति, उववाओ तिरियमनुस्सेसु, ठिती जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं, दुविहावि मरंति, उव्वट्टित्ता नो नेरइएसु गच्छंति, तिरियमनुस्सेसु जहासंभवं, नो देवेसु गच्छंति, दुगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता। से तं देवा। से तं पंचेंदिया। सेत्तं ओराला तसा पाणा।
Sutra Meaning : देव क्या है ? देव चार प्रकार के, यथा – भवनवासी, वानव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक। भवनवासी देव क्या हैं ? भवनवासी देव दस प्रकार के कहे हैं – असुरकुमार यावत्‌ स्तनितकुमार। वाणव्यन्तर क्या हैं ? (प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार) देवों के भेद कहने चाहिए। यावत्‌ वे संक्षेप से पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से दो प्रकार के हैं उन के तीन शरीर होते हैं – वैक्रिय, तैजस और कार्मण। अवगाहना दो प्रकार की होती है – भवधारणीय और उत्तरवैक्रियिकी। इनमें जो भवधारणीय है वह जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट सात हाथ की है। उत्तरवैक्रियिकी जघन्य से अंगुल का संख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट एक लाख योजन की है। देवों के शरीर छह संहननों में से किसी संहनन के नहीं होते हैं, क्योंकि उनमें न हड्डी होती है न शिरा और न स्नायु हैं, इसलिए संहनन नहीं होता। जो पुद्‌गल इष्ट कांत यावत्‌ मन को आह्लादकारी होते हैं उनके शरीर रूप में एकत्रित हो जाते हैं – परिणत हो जाते हैं। भगवन्‌ ! देवों का संस्थान क्या है ? गौतम ! संस्थान दो प्रकार के हैं – भवधारणीय और उत्तर – वैक्रियिक। उनमें जो भवधारणीय हैं वह समचतुरस्रसंस्थान हैं और जो उत्तरवैक्रियिक हैं वह नाना आकार का है। देवों में चार कषाय, चार संज्ञाएं, छह लेश्याएं, पाँच इन्द्रियाँ, पाँच समुद्‌घात होते हैं। वे संज्ञी भी हैं और असंज्ञी भी हैं। वे स्त्रीवेद वाले, पुरुषवेद वाले हैं, नपुंसकवेद वाले नहीं हैं। उनमें पाँच पर्याप्तियाँ ऑर पाँच अपर्याप्तियाँ होती हैं। उनमें तीन दृष्टियाँ, तीन दर्शन होते हैं। वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी। जो ज्ञानी हैं वे नियम से तीन ज्ञानवाले हैं और अज्ञानी हैं वे भजना से तीन अज्ञानवाले हैं। उनमें साकार अनाकार दोनों उपयोग पाये जाते हैं। तीनों योग होते हैं। आहार नियम से छहों दिशाओं के पुद्‌गलों को ग्रहण करता है। प्रायः करके पीले और सफेद शुभ वर्ण के यावत्‌ शुभगंध, शुभरस, शुभस्पर्श वाले पुद्‌गलों का आहार करते हैं। वे तिर्यंच और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। उनकी स्थिति जघन्य से १०००० वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है। वे मारणान्तिकसमुद्‌घात से समवहत और असमवहत होकर भी मरते हैं। वहाँ से च्युत होकर तिर्यंचों और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। वे दो गतिवाले, दो आगतिवाले, प्रत्येक – शरीरी और असंख्यात हैं।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] se kim tam deva? Deva chauvviha pannatta, tam jaha–bhavanavasi vanamamtara joisiya vemaniya. Evam bhedo bhaniyavvo jaha pannavanae. Te samasao duviha pannatta, tam jaha–pajjattaga ya apajjattaga ya. Tesi nam tao sariraga–veuvvie teyae kammae. Ogahana duviha–bhavadharanijja ya uttaraveuvviya ya. Tattha nam jasa bhavadharanijja sa jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam satta rayanio. Tattha nam jasa uttaraveuvviya sa jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam, ukkosenam joyanasayasahassam, sariraga chhanham samghayananam asamghayani–nevatthi neva chhira neva nharu. Je poggala ittha kamta piya subha manunna manama te tesim sarirasamghayattae parinamamti. Kimsamthiya? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–bhavadharanijja ya uttaraveuvviya ya. Tattha nam jete bhavadharanijja te nam samachauramsasamthiya pannatta. Tattha nam jete uttaraveuvviya te nam nanasamthanasamthiya pannatta. Chattari kasaya, chattari sanna, chha lessao, pamcha imdiya, pamcha samugghaya, sannivi asannivi, itthivedavi purisavedavi no napumsagaveya, pajjattioapajjattio pamcha, ditthi tinni, tinni damsana, nanivi annanivi–je nani te niyama tinnani, annani bhayanae, duvihe uvaoge, tivihe joge, aharo niyama chhaddisim, osannakaranam paduchcha vannao haliddasukkilaim java aharamaharemti, uvavao tiriyamanussesu, thiti jahannenam dasa vasasahassaim, ukkosenam tettisam sagarovamaim, duvihavi maramti, uvvattitta no neraiesu gachchhamti, tiriyamanussesu jahasambhavam, no devesu gachchhamti, dugatiya duagatiya, paritta asamkhejja pannatta. Se tam deva. Se tam pamchemdiya. Settam orala tasa pana.
Sutra Meaning Transliteration : Deva kya hai\? Deva chara prakara ke, yatha – bhavanavasi, vanavyamtara, jyotishka aura vaimanika. Bhavanavasi deva kya haim\? Bhavanavasi deva dasa prakara ke kahe haim – asurakumara yavat stanitakumara. Vanavyantara kya haim\? (prajnyapana sutra ke anusara) devom ke bheda kahane chahie. Yavat ve samkshepa se paryapta aura aparyapta ke bheda se do prakara ke haim Una ke tina sharira hote haim – vaikriya, taijasa aura karmana. Avagahana do prakara ki hoti hai – bhavadharaniya aura uttaravaikriyiki. Inamem jo bhavadharaniya hai vaha jaghanya se amgula ka asamkhyatavam bhaga aura utkrishta sata hatha ki hai. Uttaravaikriyiki jaghanya se amgula ka samkhyatavam bhaga aura utkrishta eka lakha yojana ki hai. Devom ke sharira chhaha samhananom mem se kisi samhanana ke nahim hote haim, kyomki unamem na haddi hoti hai na shira aura na snayu haim, isalie samhanana nahim hota. Jo pudgala ishta kamta yavat mana ko ahladakari hote haim unake sharira rupa mem ekatrita ho jate haim – parinata ho jate haim. Bhagavan ! Devom ka samsthana kya hai\? Gautama ! Samsthana do prakara ke haim – bhavadharaniya aura uttara – vaikriyika. Unamem jo bhavadharaniya haim vaha samachaturasrasamsthana haim aura jo uttaravaikriyika haim vaha nana akara ka hai. Devom mem chara kashaya, chara samjnyaem, chhaha leshyaem, pamcha indriyam, pamcha samudghata hote haim. Ve samjnyi bhi haim aura asamjnyi bhi haim. Ve striveda vale, purushaveda vale haim, napumsakaveda vale nahim haim. Unamem pamcha paryaptiyam ora pamcha aparyaptiyam hoti haim. Unamem tina drishtiyam, tina darshana hote haim. Ve jnyani bhi hote haim aura ajnyani bhi. Jo jnyani haim ve niyama se tina jnyanavale haim aura ajnyani haim ve bhajana se tina ajnyanavale haim. Unamem sakara anakara donom upayoga paye jate haim. Tinom yoga hote haim. Ahara niyama se chhahom dishaom ke pudgalom ko grahana karata hai. Prayah karake pile aura sapheda shubha varna ke yavat shubhagamdha, shubharasa, shubhasparsha vale pudgalom ka ahara karate haim. Ve tiryamcha aura manushyom se akara utpanna hote haim. Unaki sthiti jaghanya se 10000 varsha aura utkrishta temtisa sagaropama ki hai. Ve maranantikasamudghata se samavahata aura asamavahata hokara bhi marate haim. Vaham se chyuta hokara tiryamchom aura manushyom mem utpanna hote haim. Ve do gativale, do agativale, pratyeka – shariri aura asamkhyata haim.