Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005849 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 49 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से किं तं मनुस्सा? मनुस्सा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संमुच्छिममनुस्सा य गब्भवक्कंतियमनुस्सा य। कहि णं भंते! संमुच्छिममनुस्सा संमुच्छंति? गोयमा! अंतो मनुस्सखेत्ते जाव अंतोमुहुत्ताउया चेव कालं करेंति। तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तिन्नि सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए। संघयण संठाण कसाय सण्णा लेसा जहा बेइंदियाणं, इंदिया पंच, समुग्घाया तिन्नि, असन्नी, नपुंसगा, अपज्जत्तीओ पंच, दिट्ठिदंसण अन्नाण जोग उवओगा जहा पुढविकाइयाणं, आधारो जहा बेइंदियाणं, उववातो नेरइय देव तेउ वाउ असंखाउवज्जो, अंतोमुहुत्तं ठिती, समोहतावि असमोहतावि मरंति, कहिं गच्छंति? नेरइय देव असंखेज्जाउवज्जेसु, दुआगतिया दुगतिया, परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता समणाउसो! से तं संमुच्छिममनुस्सा। से किं तं गब्भवक्कंतियमनुस्सा? गब्भवक्कंतियमनुस्सा तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–कम्म-भूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा। एवं मनुस्सभेदो भाणियव्वो जहा पन्नवणाए जाव छउमत्था य केवली य। ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तेसिं णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! पंच सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए जाव कम्मए सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं। छच्चेव संघयणी, छच्चेव संठिया। ते णं भंते! जीवा किं कोहकसाई जाव लोभकसाई? अकसाई? गोयमा! सव्वेवि। ते णं भंते! जीवा किं आहारसण्णोवउत्ता जाव नोसण्णोवउत्ता? गोयमा! सव्वेवि। ते णं भंते! जीवा किं कण्हलेसा जाव अलेसा? गोयमा! सव्वेवि। सोइंदियोवउत्ता जाव नोइंदियोवउत्तावि, सत्त समुग्घाया, तं जहा–वेयणा-समुग्घाए जाव केवलिसमुग्घाए। सन्नीवि नोसन्नीनोअसन्नीवि, इत्थिवेयावि जाव अवेयावि, पंच पज्जत्ती पंच अपज्जत्ती तिविहावि दिट्ठी, चत्तारि दंसणा, नाणी वि अन्नाणी वि–जे नाणी ते अत्थेगतिया दुनाणी अत्थेगतिया तिनाणी अत्थेगतिया चउनाणी अत्थेगतिया एगनाणी जे दुन्नाणी ते नियमा आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी य, जे तिन्नाणी ते आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी य, अहवा आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी मणपज्जवनाणी य, जे चउनाणी ते नियमा आभिनिबोहिय नाणी सुयनाणी ओहिनाणी मनपज्जवनाणी य, जे एगनाणी ते नियमा केवलनाणी, एवं अन्नाणीवि दुअन्नाणी तिअन्नाणी। मनजोगीवि वइकायजोगीवि अजोगीवि। दुविहे उवओगे। आहारो छद्दिसिं उववाओ अहेसत्तम तेउवाउअसंखेज्जवासाउयवज्जेहिं। ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। दुविहावि मरंति। उव्वट्टित्ता नेरइयाइसु जाव अनुत्तरोववाइएसु, अत्थेगतिया सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति। ते णं भंते! जीवा कतिगतिया कतिआगतिया पन्नत्ता? गोयमा! पंचगतिया चउआगतिया, परित्ता संखेज्जा पन्नत्ता। सेत्तं मनुस्सा। | ||
Sutra Meaning : | मनुष्य का क्या स्वरूप है ? मनुष्य दो प्रकार के हैं, यथा – सम्मूर्च्छिम मनुष्य और गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य। भगवन् ! सम्मूर्च्छिम मनुष्य कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! मनुष्य क्षेत्र के अन्दर होते हैं, यावत् अन्तमुहूर्त्त की आयु में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। भन्ते ! उन जीवों के कितने शरीर होते हैं ? गौतम ! तीन – औदारिक, तैजस और कार्मण। गर्भज मनुष्यों का क्या स्वरूप है ? गौतम ! गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के हैं, कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तर्द्वीपज। इस प्रकार मनुष्यों के भेद प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार कहना और पूरी वक्तव्यता यावत् छद्मस्थ और केवली पर्यन्त। ये मनुष्य संक्षेप से पर्याप्त और अपर्याप्त रूप से दो प्रकार के हैं। भन्ते ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! पाँच – औदारिक यावत् कार्मण। उनकी शरीरावगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट से तीन कोस की है। उनके छह संहनन और छह संस्थान होते हैं। भन्ते ! वे जीव, क्या क्रोधकषाय वाले यावत् लोभकषाय वाले या अकषाय हैं ? गौतम ! सब तरह के हैं। भगवन् ! वे जीव क्या आहारसंज्ञा वाले यावत् लोभसंज्ञावाले या नोसंज्ञावाले हैं ? गौतम ! सब तरह के हैं। भगवन्! वे जीव कृष्णलेश्यावाले यावत् शुक्ललेश्या वाले या अलेश्या वाले हैं ? गौतम ! सब तरह के हैं। वे श्रोत्रेन्द्रिय उपयोग वाले यावत् स्पर्शनेन्द्रिय उपयोग और नोइन्द्रिय उपयोग वाले हैं। उनमें सब समुद्घात पाये जाते हैं, वे संज्ञी भी हैं, नोसंज्ञी – असंज्ञी भी हैं। वे स्त्रीवेद वाले भी हैं, पुंवेद, नपुंसकवेद वाले भी हैं और अवेदी भी हैं। इनमें पाँच पर्याप्तियाँ और पाँच अपर्याप्तियाँ होती हैं। इनमें तीनों दृष्टियाँ पाई जाती हैं। चार दर्शन पाये जाते हैं। ये ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं वे दो, तीन, चार और एक ज्ञान वाले होते हैं। जो दो ज्ञान वाले हैं, वे नियम से मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी हैं, जो तीन ज्ञानवाले हैं वे मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी हैं अथवा मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और मनःपर्यवज्ञानी हैं। जो चार ज्ञानवाले हैं वे नियम से मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्यवज्ञान वाले हैं। जो एक ज्ञानवाले हैं वे नियम से केवलज्ञानवाले हैं। इसी प्रकार जो अज्ञानी हैं वे दो अज्ञान वाले या तीन अज्ञान वाले हैं। वे मनयोगी, वचनयोगी, काययोगी और अयोगी भी हैं। उनमें दोनों प्रकार का – साकार – अनाकार उपयोग होता है। उनका छहों दिशाओं से आहार होता है। वे सातवें नरक को छोड़कर शेष सब नरकों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंख्यात वर्षायु को छोड़कर शेष सब तिर्यंचों से भी उत्पन्न होते हैं, अकर्मभूमिज, अन्तर्द्वीपज और असंख्यात वर्षायुवालों को छोड़कर शेष मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं और सब देवों से आ कर भी उत्पन्न होते हैं। उनकी जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। ये दोनों प्रकार के मरण से मरते हैं। ये यहाँ से मरकर नैरयिकों में यावत् अनुत्तरोपपातिक देवों में भी उत्पन्न होते हैं और कोई सिद्ध होते हैं यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं। भगवन् ! ये जीव कितनी गतिवाले और आगतिवाले कहे गये हैं ? गौतम ! पाँच गतिवाले और चार आगतिवाले हैं। ये प्रत्येकशरीरी और संख्यात हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se kim tam manussa? Manussa duviha pannatta, tam jaha–sammuchchhimamanussa ya gabbhavakkamtiyamanussa ya. Kahi nam bhamte! Sammuchchhimamanussa sammuchchhamti? Goyama! Amto manussakhette java amtomuhuttauya cheva kalam karemti. Tesi nam bhamte! Jivanam kati sariraga pannatta? Goyama! Tinni sariraga pannatta, tam jaha–oralie teyae kammae. Samghayana samthana kasaya sanna lesa jaha beimdiyanam, imdiya pamcha, samugghaya tinni, asanni, napumsaga, apajjattio pamcha, ditthidamsana annana joga uvaoga jaha pudhavikaiyanam, adharo jaha beimdiyanam, uvavato neraiya deva teu vau asamkhauvajjo, amtomuhuttam thiti, samohatavi asamohatavi maramti, kahim gachchhamti? Neraiya deva asamkhejjauvajjesu, duagatiya dugatiya, paritta asamkhejja pannatta samanauso! Se tam sammuchchhimamanussa. Se kim tam gabbhavakkamtiyamanussa? Gabbhavakkamtiyamanussa tiviha pannatta, tam jaha–kamma-bhumaga akammabhumaga amtaradivaga. Evam manussabhedo bhaniyavvo jaha pannavanae java chhaumattha ya kevali ya. Te samasao duviha pannatta, tam jaha–pajjattaga ya apajjattaga ya. Tesim nam bhamte! Jivanam kati sariraga pannatta? Goyama! Pamcha sariraga pannatta, tam jaha–oralie java kammae sarirogahana jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam tinni gauyaim. Chhachcheva samghayani, chhachcheva samthiya. Te nam bhamte! Jiva kim kohakasai java lobhakasai? Akasai? Goyama! Savvevi. Te nam bhamte! Jiva kim aharasannovautta java nosannovautta? Goyama! Savvevi. Te nam bhamte! Jiva kim kanhalesa java alesa? Goyama! Savvevi. Soimdiyovautta java noimdiyovauttavi, satta samugghaya, tam jaha–veyana-samugghae java kevalisamugghae. Sannivi nosanninoasannivi, itthiveyavi java aveyavi, pamcha pajjatti pamcha apajjatti tivihavi ditthi, chattari damsana, nani vi annani vi–je nani te atthegatiya dunani atthegatiya tinani atthegatiya chaunani atthegatiya eganani je dunnani te niyama abhinibohiyanani suyanani ya, je tinnani te abhinibohiyanani suyanani ohinani ya, ahava abhinibohiyanani suyanani manapajjavanani ya, je chaunani te niyama abhinibohiya nani suyanani ohinani manapajjavanani ya, je eganani te niyama kevalanani, evam annanivi duannani tiannani. Manajogivi vaikayajogivi ajogivi. Duvihe uvaoge. Aharo chhaddisim uvavao ahesattama teuvauasamkhejjavasauyavajjehim. Thiti jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam tinni paliovamaim. Duvihavi maramti. Uvvattitta neraiyaisu java anuttarovavaiesu, atthegatiya sijjhamti bujjhamti muchchamti parininivvayamti savvadukkhanam amtam karemti. Te nam bhamte! Jiva katigatiya katiagatiya pannatta? Goyama! Pamchagatiya chauagatiya, paritta samkhejja pannatta. Settam manussa. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Manushya ka kya svarupa hai\? Manushya do prakara ke haim, yatha – sammurchchhima manushya aura garbhavyutkrantika manushya. Bhagavan ! Sammurchchhima manushya kaham utpanna hote haim\? Gautama ! Manushya kshetra ke andara hote haim, yavat antamuhurtta ki ayu mem mrityu ko prapta ho jate haim. Bhante ! Una jivom ke kitane sharira hote haim\? Gautama ! Tina – audarika, taijasa aura karmana. Garbhaja manushyom ka kya svarupa hai\? Gautama ! Garbhaja manushya tina prakara ke haim, karmabhumija, akarmabhumija aura antardvipaja. Isa prakara manushyom ke bheda prajnyapanasutra ke anusara kahana aura puri vaktavyata yavat chhadmastha aura kevali paryanta. Ye manushya samkshepa se paryapta aura aparyapta rupa se do prakara ke haim. Bhante ! Una jivom ke kitane sharira haim\? Gautama ! Pamcha – audarika yavat karmana. Unaki shariravagahana jaghanya se amgula ka asamkhyatavam bhaga aura utkrishta se tina kosa ki hai. Unake chhaha samhanana aura chhaha samsthana hote haim. Bhante ! Ve jiva, kya krodhakashaya vale yavat lobhakashaya vale ya akashaya haim\? Gautama ! Saba taraha ke haim. Bhagavan ! Ve jiva kya aharasamjnya vale yavat lobhasamjnyavale ya nosamjnyavale haim\? Gautama ! Saba taraha ke haim. Bhagavan! Ve jiva krishnaleshyavale yavat shuklaleshya vale ya aleshya vale haim\? Gautama ! Saba taraha ke haim. Ve shrotrendriya upayoga vale yavat sparshanendriya upayoga aura noindriya upayoga vale haim. Unamem saba samudghata paye jate haim, ve samjnyi bhi haim, nosamjnyi – asamjnyi bhi haim. Ve striveda vale bhi haim, pumveda, napumsakaveda vale bhi haim aura avedi bhi haim. Inamem pamcha paryaptiyam aura pamcha aparyaptiyam hoti haim. Inamem tinom drishtiyam pai jati haim. Chara darshana paye jate haim. Ye jnyani bhi haim aura ajnyani bhi haim. Jo jnyani haim ve do, tina, chara aura eka jnyana vale hote haim. Jo do jnyana vale haim, ve niyama se matijnyani aura shrutajnyani haim, jo tina jnyanavale haim ve matijnyani, shrutajnyani, avadhijnyani haim athava matijnyani, shrutajnyani aura manahparyavajnyani haim. Jo chara jnyanavale haim ve niyama se matijnyani, shrutajnyani, avadhijnyani aura manahparyavajnyana vale haim. Jo eka jnyanavale haim ve niyama se kevalajnyanavale haim. Isi prakara jo ajnyani haim ve do ajnyana vale ya tina ajnyana vale haim. Ve manayogi, vachanayogi, kayayogi aura ayogi bhi haim. Unamem donom prakara ka – sakara – anakara upayoga hota hai. Unaka chhahom dishaom se ahara hota hai. Ve satavem naraka ko chhorakara shesha saba narakom se akara utpanna hote haim, asamkhyata varshayu ko chhorakara shesha saba tiryamchom se bhi utpanna hote haim, akarmabhumija, antardvipaja aura asamkhyata varshayuvalom ko chhorakara shesha manushyom se bhi utpanna hote haim aura saba devom se a kara bhi utpanna hote haim. Unaki jaghanya sthiti antamuhurtta aura utkrishta tina palyopama ki hoti hai. Ye donom prakara ke marana se marate haim. Ye yaham se marakara nairayikom mem yavat anuttaropapatika devom mem bhi utpanna hote haim aura koi siddha hote haim yavat saba duhkhom ka anta karate haim. Bhagavan ! Ye jiva kitani gativale aura agativale kahe gaye haim\? Gautama ! Pamcha gativale aura chara agativale haim. Ye pratyekashariri aura samkhyata haim. |