Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005778 | ||
Scripture Name( English ): | Rajprashniya | Translated Scripture Name : | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Translated Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 78 | Category : | Upang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं केसी कुमारसमणे पएसिस्स रन्नो सूरियकंतप्पमुहाणं देवीणं तीसे य महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं परिकहेइ। तए णं से पएसी राया धम्मं सोच्चा निसम्म उट्ठाए उट्ठेति, केसिं कुमार-समणं वंदइ नमंसइ, जेणेव सेयविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–मा णं तुमं पएसी! पुव्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविज्जासि, जहा–से वनसंडेइ वा, नट्टसालाइ वा, इक्खुवाडेइ वा, खलवाडेइ वा कहं णं भंते! वनसंडे पुव्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवति? पएसी! जया णं वनसंडे पत्तिए पुप्फिए फलिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे चिट्ठइ, तया णं वनसंडे रमणिज्जे भवति। जया णं वनसंडे नो पत्तिए नो पुप्फिए नो फलिए नो हरियगरेरिज्जमाणे नो सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे चिट्ठइ तया णं जुण्णे झडे परिसडिय-पंडु-पत्ते सुक्करुक्खे इव मिलायमाणे चिट्ठइ, तया णं वनसंडे नो रमणिज्जे भवति। कहं णं भंते! नट्टसाला पुव्विं रमणिज्जा भवित्ता पच्छा अरमणिज्जा भवति? पएसी! जया णं नट्टसाला गिज्जइ वाइज्जइ नच्चिज्जइ अभिणिज्जइ हसिज्जइ रमिज्जइ, तया णं नट्टसाला रमणिज्जा भवइ। जया णं नट्टसाला नो गिज्जइ नो वाइज्जइ नो नच्चिज्जइ नो अभिणिज्जइ नो हसिज्जइ नो रमिज्जइ, तया णं नट्टसाला अरमणिज्जा भवइ। कहं णं भंते! इक्खुवाडे पुव्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवति? पएसी!? जया णं इक्खुवाडे छिज्जइ भिज्जइ लुज्जइ खज्जइ पिज्जइ दिज्जइ, तया णं इक्खुवाडे रमणिज्जे भवइ। जया णं इक्खुवाडे नो छिज्जइ नो भिज्जइ नो लज्जइ नो खज्जइ नो पिज्जइ नो दिज्जइ, तया णं इक्खुवाडे अरमणिज्जे भवइ। कहं णं भंते! खलवाडे पुव्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवति? पएसी!? जया णं खलवाडे उच्छुब्भइ उडुइज्जइ मलइज्जइ पुणिज्जइ खज्जइ पिज्जइ दिज्जइ, तया णं खलवाडे रमणिज्जे भवति। जया णं खलवाडे नो उच्छुब्भइ नो उडुइज्जइ नो मलइज्जइ नो पुणिज्जइ नो खज्जइ नो पिज्जइ नो दिज्जइ, तया णं खलवाडे अरमणिज्जे भवति। से तेणट्ठेणं पएसी! एवं वुच्चइ–मा णं तुमं पएसी! पुव्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविज्जासि, जहा –से वनसंडेइ वा नट्टसालाइ वा, इक्खुवाडेइ वा खलवाडेइ वा। तए णं पएसी केसिं कुमार-समणं एवं वयासी–णो खलु भंते! अहं पुव्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविस्सामि, जहा–से वनसंडेइ वा नट्टसालाइ वा, इक्खुवाडेइ वा खलवाडेइ वा,–अहं णं सेयवियापामोक्खाइं सत्तगामसहस्साइं चत्तारि भागे करिस्सामि–एगं भागं बलवाहनस्स दलइस्सामि, एगं भागं कोट्ठागारे छुभिस्सामि, एगं भागं अंतेउरस्स दलइस्सामि, एगेणं भागेणं महतिमहालियं कूडागारसालं करिस्सामि। तत्थ णं बहूहिं पुरिसेहिं दिण्णभइ-भत्त-वेयणेहिं विउलं असणं पाणं साइमं खाइमं उवक्खडावेत्ता बहूणं समण माहण भिक्खुयाणं पंथिय-पहियाणं परिभाएमाणे, बहूहिं सीलव्वय गुणव्वय वेरमण पच्चक्खाण पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सामि त्ति कट्टु जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् केशी कुमारश्रमण ने प्रदेशी राजा, सूर्यकान्ता आदि रानियों और उस अति विशाल परिषद् को यावत् धर्मकथा सूनाई। इसके बाद प्रदेशी राजा धर्मदेशना सून कर और उसे हृदय में धारण करके अपने आसन से उठा एवं केशी कुमारश्रमण को वन्दन – नमस्कार किया। सेयविया नगरी की ओर चलने के लिए उद्यत हुआ। केशी कुमारश्रमण ने प्रदेशी राजा से कहा – जैसे वनखण्ड अथवा नाट्यशाला अथवा इक्षुवाड अथवा खलवाड पूर्व में रमणीय होकर पश्चात् अरमणीय हो जाते हैं, उस प्रकार तुम पहले रमणीय होकर बाद में अरमणीय मत हो जाना। भदन्त ! यह कैसे कि वनखण्ड आदि पूर्व में रमणीय होकर बाद में अरमणीय हो जाते हैं ? प्रदेशी ! वनखण्ड जब तक हरे – भरे पत्तों, पुष्पों, फलों से सम्पन्न और अतिशय सुहावनी सघन छाया एवं हरियाली से व्याप्त होता है तब तक अपनी शोभा से अतीव – अतीव सुशोभित होता हुआ रमणीय लगता है। लेकिन वही वनखण्ड पत्तों, फूलों, फलों और नाममात्र की भी हरियाली नहीं रहने से हराभरा, देदीप्यमान न होकर कुरूप, भयावना दिखने लगता है तब सूखे वृक्ष की तरह छाल – पत्तों के जीर्ण – शीर्ण हो जाने, झर जाने, सड़ जाने, पीले और म्लान हो जाने से रमणीय नहीं रहता है। इसी प्रकार नाट्यशाला भी जब तक संगीत – गान होता रहता है, बाजे बजते रहते हैं, नृत्य होते रहते हैं, लोगों के हास्य से व्याप्त रहती है और विविध प्रकार की रमतें होती रहती हैं तब तक रमणीय लगती है, किन्तु जब उसी नाट्यशाला में गीत नहीं गाये जा रहे हों यावत् क्रीड़ाएं नहीं हो रही हों, तब वही नाट्यशाला असुहावनी हो जाती है। इसी तरह प्रदेशी ! जब तक इक्षुवाड़ में ईख कटती हो, टूटती हो, पेरी जाती हो, लोग उसका रस पीते हों, कोई उसे लेते – देते हों, तब तक वह इक्षुवाड़ रमणीय लगता है। लेकिन जब उसी इक्षुवाड़ में ईख न कटती हो आदि तब वही मन को अरमणीय, अनिष्टकर लगने लगती है। इसी प्रकार प्रदेशी ! जब तक खलवाड़ में धान्य के ढ़ेर लगे रहते हैं, उड़ावनी होती रहती है, धान्य का मर्दन होता रहता है, तिल आदि पेरे जाते हैं, लोग एक साथ मिलकर भोजन खाते – पीते, देते – लेते हैं, तब तक वह रमणीय मालूम होता है, लेकिन जब धान्य के ढ़ेर आदि नहीं रहते तब वही अरमणीय दिखने लगता है। इसीलिए हे प्रदेशी ! मैंने यह कहा है कि तुम पहले रमणीय होकर बाद में अरमणीय मत हो जाना, जैसे कि वनखण्ड आदि हो जाते हैं। तब प्रदेशी राजा ने निवेदन किया – भदन्त ! आप द्वारा दिये गये वनखण्ड यावत् खलवाड़ के उदाहरणों की तरह मैं पहले रमणीय होकर बाद में अरमणीय नहीं बनूँगा। क्योंकि मैंने यह विचार किया है कि सेयविया नगरी आदि सात हजार ग्रामों के चार विभाग करूँगा। उनमें से एक भाग राज्य की व्यवस्था और रक्षण के लिए बल और वाहन के लिए दूँगा, एक भाग प्रजा के पालन हेतु कोठार में अन्न आदि के लिए रखूँगा, एक भाग अंतःपुर के निर्वाह और रक्षा के लिए दूँगा और शेष एक भाग से एक विशाल कूटाकार शाला बनवाऊंगा और फिर बहुत से पुरुषों को भोजन, वेतन और दैनिक मजदूरी पर नियुक्त कर प्रतिदिन विपुल मात्रा में अशन, पान, खादिम, स्वादिम रूप चारों प्रकार का आहार बनवाकर अनेक श्रमणों, माहनों, भिक्षुओं, यात्रियों और पथिकों को देते हुए एवं शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान, पोषधोपवास आदि यावत् अपना जीवनयापन करूँगा, ऐसा कहकर जिस दिशा से आया था, वापस उसी ओर लौट गया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam kesi kumarasamane paesissa ranno suriyakamtappamuhanam devinam tise ya mahatimahaliyae mahachchaparisae chaujjamam dhammam parikahei. Tae nam se paesi raya dhammam sochcha nisamma utthae uttheti, kesim kumara-samanam vamdai namamsai, jeneva seyaviya nagari teneva paharettha gamanae. Tae nam kesi kumarasamane paesim rayam evam vayasi–ma nam tumam paesi! Puvvim ramanijje bhavitta pachchha aramanijje bhavijjasi, jaha–se vanasamdei va, nattasalai va, ikkhuvadei va, khalavadei va Kaham nam bhamte! Vanasamde puvvim ramanijje bhavitta pachchha aramanijje bhavati? Paesi! Jaya nam vanasamde pattie pupphie phalie hariyagarerijjamane sirie aiva-aiva uvasobhemane chitthai, taya nam vanasamde ramanijje bhavati. Jaya nam vanasamde no pattie no pupphie no phalie no hariyagarerijjamane no sirie aiva-aiva uvasobhemane chitthai taya nam junne jhade parisadiya-pamdu-patte sukkarukkhe iva milayamane chitthai, taya nam vanasamde no ramanijje bhavati. Kaham nam bhamte! Nattasala puvvim ramanijja bhavitta pachchha aramanijja bhavati? Paesi! Jaya nam nattasala gijjai vaijjai nachchijjai abhinijjai hasijjai ramijjai, taya nam nattasala ramanijja bhavai. Jaya nam nattasala no gijjai no vaijjai no nachchijjai no abhinijjai no hasijjai no ramijjai, taya nam nattasala aramanijja bhavai. Kaham nam bhamte! Ikkhuvade puvvim ramanijje bhavitta pachchha aramanijje bhavati? Paesi!? Jaya nam ikkhuvade chhijjai bhijjai lujjai khajjai pijjai dijjai, taya nam ikkhuvade ramanijje bhavai. Jaya nam ikkhuvade no chhijjai no bhijjai no lajjai no khajjai no pijjai no dijjai, taya nam ikkhuvade aramanijje bhavai. Kaham nam bhamte! Khalavade puvvim ramanijje bhavitta pachchha aramanijje bhavati? Paesi!? Jaya nam khalavade uchchhubbhai uduijjai malaijjai punijjai khajjai pijjai dijjai, taya nam khalavade ramanijje bhavati. Jaya nam khalavade no uchchhubbhai no uduijjai no malaijjai no punijjai no khajjai no pijjai no dijjai, taya nam khalavade aramanijje bhavati. Se tenatthenam paesi! Evam vuchchai–ma nam tumam paesi! Puvvim ramanijje bhavitta pachchha aramanijje bhavijjasi, jaha –se vanasamdei va nattasalai va, ikkhuvadei va khalavadei va. Tae nam paesi kesim kumara-samanam evam vayasi–no khalu bhamte! Aham puvvim ramanijje bhavitta pachchha aramanijje bhavissami, jaha–se vanasamdei va nattasalai va, ikkhuvadei va khalavadei va,–aham nam seyaviyapamokkhaim sattagamasahassaim chattari bhage karissami–egam bhagam balavahanassa dalaissami, egam bhagam kotthagare chhubhissami, egam bhagam amteurassa dalaissami, egenam bhagenam mahatimahaliyam kudagarasalam karissami. Tattha nam bahuhim purisehim dinnabhai-bhatta-veyanehim viulam asanam panam saimam khaimam uvakkhadavetta bahunam samana mahana bhikkhuyanam pamthiya-pahiyanam paribhaemane, bahuhim silavvaya gunavvaya veramana pachchakkhana posahovavasehim appanam bhavemane viharissami tti kattu jameva disim paubbhue tameva disim padigae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat keshi kumarashramana ne pradeshi raja, suryakanta adi raniyom aura usa ati vishala parishad ko yavat dharmakatha sunai. Isake bada pradeshi raja dharmadeshana suna kara aura use hridaya mem dharana karake apane asana se utha evam keshi kumarashramana ko vandana – namaskara kiya. Seyaviya nagari ki ora chalane ke lie udyata hua. Keshi kumarashramana ne pradeshi raja se kaha – jaise vanakhanda athava natyashala athava ikshuvada athava khalavada purva mem ramaniya hokara pashchat aramaniya ho jate haim, usa prakara tuma pahale ramaniya hokara bada mem aramaniya mata ho jana. Bhadanta ! Yaha kaise ki vanakhanda adi purva mem ramaniya hokara bada mem aramaniya ho jate haim\? Pradeshi ! Vanakhanda jaba taka hare – bhare pattom, pushpom, phalom se sampanna aura atishaya suhavani saghana chhaya evam hariyali se vyapta hota hai taba taka apani shobha se ativa – ativa sushobhita hota hua ramaniya lagata hai. Lekina vahi vanakhanda pattom, phulom, phalom aura namamatra ki bhi hariyali nahim rahane se harabhara, dedipyamana na hokara kurupa, bhayavana dikhane lagata hai taba sukhe vriksha ki taraha chhala – pattom ke jirna – shirna ho jane, jhara jane, sara jane, pile aura mlana ho jane se ramaniya nahim rahata hai. Isi prakara natyashala bhi jaba taka samgita – gana hota rahata hai, baje bajate rahate haim, nritya hote rahate haim, logom ke hasya se vyapta rahati hai aura vividha prakara ki ramatem hoti rahati haim taba taka ramaniya lagati hai, kintu jaba usi natyashala mem gita nahim gaye ja rahe hom yavat kriraem nahim ho rahi hom, taba vahi natyashala asuhavani ho jati hai. Isi taraha pradeshi ! Jaba taka ikshuvara mem ikha katati ho, tutati ho, peri jati ho, loga usaka rasa pite hom, koi use lete – dete hom, taba taka vaha ikshuvara ramaniya lagata hai. Lekina jaba usi ikshuvara mem ikha na katati ho adi taba vahi mana ko aramaniya, anishtakara lagane lagati hai. Isi prakara pradeshi ! Jaba taka khalavara mem dhanya ke rhera lage rahate haim, uravani hoti rahati hai, dhanya ka mardana hota rahata hai, tila adi pere jate haim, loga eka satha milakara bhojana khate – pite, dete – lete haim, taba taka vaha ramaniya maluma hota hai, lekina jaba dhanya ke rhera adi nahim rahate taba vahi aramaniya dikhane lagata hai. Isilie he pradeshi ! Maimne yaha kaha hai ki tuma pahale ramaniya hokara bada mem aramaniya mata ho jana, jaise ki vanakhanda adi ho jate haim. Taba pradeshi raja ne nivedana kiya – bhadanta ! Apa dvara diye gaye vanakhanda yavat khalavara ke udaharanom ki taraha maim pahale ramaniya hokara bada mem aramaniya nahim banumga. Kyomki maimne yaha vichara kiya hai ki seyaviya nagari adi sata hajara gramom ke chara vibhaga karumga. Unamem se eka bhaga rajya ki vyavastha aura rakshana ke lie bala aura vahana ke lie dumga, eka bhaga praja ke palana hetu kothara mem anna adi ke lie rakhumga, eka bhaga amtahpura ke nirvaha aura raksha ke lie dumga aura shesha eka bhaga se eka vishala kutakara shala banavaumga aura phira bahuta se purushom ko bhojana, vetana aura dainika majaduri para niyukta kara pratidina vipula matra mem ashana, pana, khadima, svadima rupa charom prakara ka ahara banavakara aneka shramanom, mahanom, bhikshuom, yatriyom aura pathikom ko dete hue evam shilavrata, gunavrata, viramana, pratyakhyana, poshadhopavasa adi yavat apana jivanayapana karumga, aisa kahakara jisa disha se aya tha, vapasa usi ora lauta gaya. |