Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Sr No : | 1005724 | ||
Scripture Name( English ): | Rajprashniya | Translated Scripture Name : | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Translated Chapter : |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 24 | Category : | Upang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति, करेत्ता तं चेव भाणियव्वं जाव दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था। तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स आवड पच्चावड सेढि पसेढि सोत्थिय सोवत्थिय पूसमाणव वद्धमाणग मच्छंडा मगरंडा जारा मारा फुल्लावलि पउमपत्त सागरतरंग वसंतलता पउमलयभत्तिचित्तं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। एवं च एक्किक्कियाए नट्टविहीए समोसरणादिया एसा वत्तव्वया जाव दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था। तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स ईहामिअ उसभ तुरग नर मगर विहग वालग किन्नर रुरु सरभ चमर कुंजर वनलय पउमलयभत्तिचित्तं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। एगओवंकं, एगओखहं दुहओखहं, एगओचक्कवालं दुहओचक्कवालं चक्कद्धचक्कवालं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। चंदावलिपविभत्तिं च सूरावलिपविभत्तिं च वलयावलिपविभत्तिं च हंसावलिपविभत्तिं च एगावलिपविभत्तिं च तारावलिपविभत्तिं च मुत्तावलिपविभत्तिं च कनगावलिपविभत्तिं च रयणावलिपविभत्तिं च आवलिपविभत्तिं च नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। चंदुग्गमनपविभत्तिं च सूरुग्गमणपविभत्तिं च उग्गमनुग्गमनपविभत्तिं च नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। चंदागमनपविभत्तिं च सूरागमनपविभत्तिं च आगमनागमनपविभत्तिं च नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। चंदावरणपविभत्तिं च सूरावरणपविभत्तिं च आवरणावरणपविभत्तिं च नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। चंदत्थमणपविभत्तिं च सूरत्थमणपविभत्तिं च अत्थमणत्थमणपविभत्तिं च नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। चंदमंडलपविभत्तिं च सूरमंडलपविभत्तिं च नागमंडलपविभत्तिं च जक्खमंडलपविभत्तिं च भूतमंडलपविभत्तिं च रक्खस महोरग गंधव्वमंडलपविभत्तिं च मंडलपविभत्तिं च नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। उसभमंडलपविभत्तिं च सीहमंडलपविभत्तिं च, हयविलंबियं गयविलंबियं, हयविलसियं गयविलसियं, मत्तहयविलसियं मत्तगयविलसियं, मत्तहयविलंबियं मत्तगयविलंबियं दुयविलंबियं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। सागरपविभत्तिं च नागरपविभत्तिं च सागर नागरपविभत्तिं च नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। नंदापविभत्तिं च चंपापविभत्तिं च नंदा चंपापविभत्तिं च नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। मच्छंडापविभत्तिं च मयरंडापविभत्तिं च जारापविभत्तिं च मारापविभत्तिं च मच्छंडा मयरंडा जारा मारापविभत्तिं च नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। क त्ति ककारपविभत्तिं च ख त्ति खकारपविभत्तिं च ग त्ति गकारपविभत्तिं च घ त्ति धकारपविभत्तिं च ङ त्ति ङकारपविभत्तिं च ककार खकार गकार घकार ङकार पविभत्तिं च नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। एवं–चकारवग्गो वि। टकारवग्गो वि। तकारवग्गो वि। पकारवग्गो वि। असोयपल्लवपविभत्तिं च अंबपल्लवपविभत्तिं च जंबूपल्लवपविभत्तिं च कोसंबपल्लव-पविभत्तिं च पल्लवपविभत्तिं च नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। पउमलयापविभत्तिं च नागलयापविभत्तिं च असोगलयापविभत्तिं च चंपगलयापविभत्तिं च चूयलयापविभत्तिं च वणलयापविभत्तिं च वासंतियलयापविभत्तिं च अइमुत्तयलयापविभत्तिं च कुंदलयापविभत्तिं च सामलयापविभत्तिं च लयापविभत्तिं च नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। दुयं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। विलंबियं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। दुयविलंबियं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। अंचियं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। रिभियं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। अंचियरिभियं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। आरभडं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। भसोलं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। आरभडभसोलं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। उप्पायनिवायपसत्तं संकुचिय-पसारियं रियारियं भंतसंभंतं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति जाव दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था। तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स चरम-पुव्वभवनिबद्धं च चरमचवणनिबद्धं च चरमसाहरणनिबद्धं च चरमजम्मणनिबद्धं च चरम-अभिसेअ-निबद्धं च चरमबालभावनिबद्धं च चरमजोव्वणनिबद्धं च चरमकामभोगनिबद्धं च चरम-निक्खमण-निबद्धं च चरमतवचरणनिबद्धं च चरमणाणुप्पायनिबद्धं च चरमतित्थपवत्तणनिबद्धं च चरम-परिनिव्वाणनिबद्धं च चरमनिबद्धं च नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य चउव्विहं वाइत्तं वाएंति, तं जहा–ततं विततं घणं सुसिरं। तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ च चउव्विहं गेयं गायंति, तं जहा–उक्खित्तं पायंतं मंदायं रोइयावसाणं च। तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य चउव्विहं नट्टविहिं उवदंसेंति, तं जहा–अंचियं रिभियं आरभडं भसोलं च। तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य चउव्विहं अभिणयं अभिणेंति, तं जहा–दिट्ठंतियं पाडंतियं सामन्नओविणिवाइयं लोगमज्झावसाणियं च। तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य गोयमादियाणं समणाणं निग्गंथाणं दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवानुभावं दिव्वं बत्तीसइबद्ध नट्टविहिं उवदंसित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेंति, बद्धावेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। | ||
Sutra Meaning : | इसके बाद सभी देवकुमार और देवकुमारियाँ पंक्तिबद्ध होकर एक साथ मिले। सब एक साथ नीचे नमे और एक साथ ही अपना मस्तक ऊपर कर सीधे खड़े हुए। इसी क्रम से पुनः कर सीधे खड़े होकर नीचे नमे और फिर सीधे खड़े हुए। खड़े होकर एक साथ अलग – अलग फैल गए और फिर यथायोग्य नृत्य – गान आदि के उपकरणों – वाद्यों को लेकर एक साथ ही बजाने लगे, एक साथ ही गाने लगे और एक साथ नृत्य करने लगे। उनका संगीत इस प्रकार का था कि उर से उद्गत होने पर आदि में मन्द मन्द, मूर्च्छा में आने पर तार और कंठ स्थान में विशेष तार स्वर वाला था। इस तरह त्रिस्थान – समुद्गत वह संगीत त्रिसमय रेचक से रचित होने पर त्रिविध रूप था। संगीत की मधुर प्रतिध्वनि – गुंजारव में समस्त प्रेक्षागृह मण्डप गूँजने लगता था। गेय राग – रागनीके अनुरूप था। त्रिस्थान त्रिकरण से शुद्ध था। गूँजती हुई बांसुरी और वीणा के स्वरों से एक रूप मिला हुआ था। एक – दूसरे की बजती हथेली के स्वर का अनुसरण करता था। मुरज और कंशिका आदि वाद्यों की झंकारों तथा नर्तकों के पादक्षेप से बराबर मेल खाता था। वीणा के लय के अनुरूप था। वीणा आदि वाद्य धूनों का अनुकरण करने वाला था। कोयल की कुहू – कुहू जैसा मधुर तथा सर्व प्रकार से सम, सललित मनोहर, मृदु, रिभित पदसंचार युक्त, श्रोताओं को रतिकर, सुखान्त ऐसा उन नर्तकों का नृत्यसज्ज विशिष्ट प्रकार का उत्तमोत्तम संगीत था। मधुर संगीत – गान के साथ – साथ नृत्य करने वाले देवकुमार और कुमारिकाओं में से शंख, शृंग, शंखिका, खरमुखी, पेया पिरिपिरका के वादक उन्हें उद्धमानित करते, पणव और पटह पर आघात करते, भंभा और होरंभ पर टंकार मारते, भेरी झल्लरी और दुन्दुभि को ताड़ित करते, मुरज, मृदंग और नन्दीमृदंग का आलाप लेते, आलिंग कुस्तुम्ब, गोमुखी और मादल पर उत्ताडन करते, वीणा विपंची और वल्लकी को मूर्च्छित करते, महती वीणा कच्छ – पीवीणा और चित्रवीणा को कूटते, बद्धीस, सुघोषा, नन्दीघोष का सारण करते, भ्रामरी – षड् भ्रामरी और परिवादनी वीणा का स्फोटन करते, तूण, तुम्बवीणा का स्पर्श करते, आमोट झांझ कुम्भ और नकुल को खनखनाते, मृदंग – हुडुक्क – विचिक्की को धीमे से छूते, करड़ डिंडिम किणित और कडम्ब को बजाते, दर्दरक, दर्दरिका कुस्तुंबुरु, कलशिका मड्ड को जोर – जोर से ताड़ित करते, तल, ताल कांस्यताल को धीरे से ताड़ित करते, रिंगिरिसका लत्तिका, मकरिका और शिशुमारिका का घट्टन करते तथा वंशी, वेणु वाली परिल्ली तथा बद्धकों को फूंकते थे। इस प्रकार वे सभी अपने – अपने वाद्यों को बजा रहे थे। इस प्रकार का वह वाद्य सहजरित दिव्य संगीत दिव्य वादन और दिव्य नृत्य आश्चर्यकारी होने से अद्भुत, शृंगाररसोपेत होने से शृंगाररूप, परिपूर्ण गुण – युक्त होने से उदार, दर्शकों के मनोनुकूल होने से मनोज्ञ था कि जिससे वह मनमोहक गीत, मनोहर नृत्य और मनोहर वाद्यवादन सभी के चित्त का आक्षेपक था। दर्शकों के कहकहों के कोलाहल से नाट्यशाला को गूँजा रहा था। इस प्रकार से वे देवकुमार और कुमारिकाएं दिव्य देवक्रीड़ा में प्रवृत्त हो रहे थे। तत्पश्चात् उस दिव्य नृत्यक्रीड़ा में प्रवृत्त उन देवकुमारों और कुमारिकाओं ने श्रमण भगवान महावीर एवं गौतमादि श्रमण निर्ग्रन्थों के समक्ष स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण, इन आठ मंगल द्रव्यों का आकार रूप दिव्य नाट्य दिखलाया। तत्पश्चात् दूसरी नाट्यविधि दिखाने के लिए वे देवकुमार और देवकुमारियाँ एकत्रित हुई और दिव्य देवरमण में प्रवृत्त होने पर्यन्त की पूर्वोक्त समस्त वक्तव्यता का वर्णन करना। तदनन्तर उन देवकुमारों और देवकुमारियों ने श्रमण भगवान महावीर के सामने आवर्त, प्रत्यावर्त, श्रेणि, प्रश्रेणि, स्वस्तिक, सौवस्तिक, पुष्प, माणवक, वर्ध – मानक, मत्स्यादण्ड, मकराण्डक, जार, मार, पुष्पावलि, पद्मपत्र, सागरतरंग, वासन्तीलता और पद्मलता के आकार की रचनारूप दिव्य नाट्यविधि का अभिनय करके बतलाया। इसी प्रकार से उन देवकुमारों और देवकुमारियों के एक साथ मिलने से लेकर दिव्य देवक्रीड़ा में प्रवृत्त होने तक की समस्त वक्तव्यता पूर्ववत्। तदनन्तर उन सभी देवकुमारों और देवकुमारियों ने श्रमण भगवान के समक्ष ईहामृग, वृषभ, तुरग, नर, मगर, विहग, व्याल, किन्नर, रुरु, सरभ, चमर, कुंजर, वनलता और पद्मलता की आकृति – रचना – रूप दिव्य नाट्य – विधि का अभिनय दिखाया। इसके बाद उन देवकुमारों और देवकुमारियों ने एकतोवक्र, एकतश्चक्रवाल, द्विघात – श्चक्रवाल ऐसी चक्रार्ध – चक्रवाल नामक दिव्य नाट्यविधि का अभिनय दिखाया। इसी प्रकार अनुक्रम से उन्होंने चन्द्रावलि, सूर्यावलि, वलयावलि, हंसावलि, एकावलि, तारावलि, मुक्तावलि, कनकावलि और रत्नावलि की प्रकृष्ट – विशिष्ट रचनाओं से युक्त दिव्य नाट्यविधि का अभिनय प्रदर्शित किया। तत्पश्चात् उन देवकुमारों और देवकुमारियों ने उक्त क्रम से चन्द्रोद्गमप्रविभक्ति, सूर्योद्गमप्रविभक्ति युक्त दिव्य नाट्यविधि को दिखाया। इसके अनन्तर उन्होंने चन्द्रागमन, सूर्यागमन की रचना वाली दिव्य नाट्यविधि का अभिनय किया। तत्पश्चात् चन्द्रावरण, सूर्यावरण, आवरणावरण नामक दिव्य नाट्यविधि को प्रदर्शित किया। इसके बाद चन्द्र के अस्त होने, सूर्य के अस्त होने की रचना से युक्त अस्तमयनप्रविभक्ति नामक नाट्यविधि का अभिनय किया। तदनन्तर चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल, नागमण्डल, यक्षमण्डल, भूतमण्डल, राक्षसमण्डल, महोरगमण्डल और गन्धर्वमण्डल की रचना से युक्त मण्डलप्रविभक्ति नामक नाट्य अभिनय प्रदर्शित किया। तत्पश्चात् वृषभमण्डल, सिंहमण्डल की ललित गति अश्व गति, और गज की विलम्बित गति, अश्व और हस्ती की विलसित गति, मत्त अश्व और मत्त गज की विलसित गति, मत्त अश्व की विलम्बित गति, मत्त हस्ती की विलम्बित गति से युक्त द्रुतविलम्बित प्रविभक्ति नामक दिव्य नाट्यविधि का प्रदर्शन किया। इसके बाद सागर प्रविभक्ति, नगर प्रविभक्ति से युक्त सागर – नागर – प्रविभक्ति नामक अपूर्व नाट्यविधि का अभिनय दिखाया। तत्पश्चात् नन्दाप्रविभक्ति, चम्पा प्रविभक्ति, नन्दा – चम्पा प्रविभक्ति नामक दिव्यनाट्य का अभिनय दिखाया। तत्पश्चात् मत्स्याण्डक, मकराण्डक, जार, मार की आकृतियों की सुरचना से युक्त मत्स्याण्ड – मकराण्ड – जार – मार प्रविभक्ति नामक दिव्यनाट्यविधि दिखलाई। तदनन्तर उन देवकुमारों और देवकुमारियों ने क्रमशः ककारप्रविभक्ति, खकार, गकार, धकार और ङकार – प्रविभक्ति, इस प्रकार के वर्ग प्रविभक्ति नाम की दिव्य नाट्यविधियों का प्रदर्शन किया। इसी तरह से चकार – छकार – जकार – झकार – ञकार की रचना करके चकारवर्गप्रविभक्ति नामक दिव्य नाट्यविधि का अभिनय दिखाया। पश्चात् क्रमशः ट – ठ – ड – ढ – ण के आकार की सुरचना द्वारा टकारवर्ग – प्रविभक्ति नामक नाट्यविधि का प्रदर्शन किया। टकारवर्ग के अनन्तर तकार – थकार – दकार – धकार – नकार की रचना करके तकारवर्ग – प्रविभक्ति नामक नाट्यविधि को दिखलाया। तकारवर्ग के अनन्तर प, फ, ब, भ, म के आकार की रचना करके पकारवर्ग – प्रविभक्ति नामकी दिव्य नाट्यविधि का अभिनय दिखाया। तत्पश्चात् अशोकपल्लव, आम्रपल्लव, जम्बूपल्लव, कोशाम्रपल्लव, पल्लवप्रविभक्ति नामक दिव्य नाट्य – विधि प्रदर्शित की। तदनन्तर पद्मलता यावत् श्यामलता प्रविभक्ति नामक नाट्याभिनय प्रदर्शित किया। इसके पश्चात् द्रुत, विलम्बित, द्रुतविलंबित, अंचित, रिभित, अंचितरिभित, आरभट, भसोल और आरभटभसोल नामक नाट्यविधि प्रदर्शित की। तदनन्तर उत्पात निपात, संकुचित – प्रसारित भय और हर्षवश शरीर के अंगोपांगों को सिकोड़ना और फैलाना, भ्रान्त और संभ्रान्त सम्बन्धी क्रियाओं विषयक दिव्य नाट्य – अभिनय दिखाया। तदनन्तर वे देवकुमार और देवकुमारियाँ एक साथ एक स्थान पर एकत्रित हुए यावत् दिव्य देवरमत में प्रवृत्त हो गए। तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर के पूर्व भवों सम्बन्धी चरित्र से निबद्ध एवं वर्तमान जीवन सम्बन्धी, च्यवनचरित्रनिबद्ध, गर्भसंहरणचरित्रनिबद्ध, जन्मचरित्रनिबद्ध, जन्माभिषेक, बालक्रीड़ानिबद्ध, यौवन – चरित्रनिबद्ध, अभिनिष्क्रमण – निबद्ध, तपश्चरण निबद्ध, ज्ञानोत्पाद चरित्र – निबद्ध, तीर्थ – प्रवर्तन चरित्र से सम्बन्धित, परिनिर्वाण चरित्रनिबद्ध तथा चरम चरित्र निबद्ध नामक अंतिम दिव्य नाट्य – अभिनय का प्रदर्शन किया। तत्पश्चात् सभी देवकुमारों और देवकुमारियों ने इन चतुर्विध वादिंत्रों को बजाया। अनन्तर उन ने उत्क्षिप्त, पादान्त, मंदक और रोचितावसान रूप चार प्रकार का संगीत गाया। तत्पश्चात् उन ने अंचित, रिभित, आरभट एवं भसोल इन चार प्रकार की नृत्यविधियों को दिखाया। तत्पश्चात् उन ने चार प्रकार के अभिनय प्रदर्शित किये, यथा – दार्ष्टान्तिक, प्रात्यंतिक, सामान्यतोविनिपातनिक और अन्तर्मध्यावसानिक। तत्पश्चात् उन सभी देवकुमारों और देवकुमारियों ने गौतम आदि श्रमण निर्ग्रन्थों को दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवद्युति, दिव्य देवानुभाव प्रदर्शक बत्तीस प्रकार की दिव्य नाट्यविधियों को दिखाकर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार आदक्षिण – प्रदक्षिणा की। वन्दन – नमस्कार करने के पश्चात् जहाँ अपना अधिपति सूर्याभदेव था वहाँ आए। दोनों हाथ जोड़कर सिर पर आवर्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके सूर्याभदेव को ‘जय विजय’ से बधाया और आज्ञा वापस सौंपी। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam te bahave devakumara ya devakumario ya samameva samosaranam karemti, karetta tam cheva bhaniyavvam java divve devaramane pavatte yavi hottha. Tae nam te bahave devakumara ya devakumario ya samanassa bhagavao mahavirassa avada pachchavada sedhi pasedhi sotthiya sovatthiya pusamanava vaddhamanaga machchhamda magaramda jara mara phullavali paumapatta sagarataramga vasamtalata paumalayabhattichittam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Evam cha ekkikkiyae nattavihie samosaranadiya esa vattavvaya java divve devaramane pavatte yavi hottha. Tae nam te bahave devakumara ya devakumariyao ya samanassa bhagavao mahavirassa ihamia usabha turaga nara magara vihaga valaga kinnara ruru sarabha chamara kumjara vanalaya paumalayabhattichittam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Egaovamkam, egaokhaham duhaokhaham, egaochakkavalam duhaochakkavalam chakkaddhachakkavalam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Chamdavalipavibhattim cha suravalipavibhattim cha valayavalipavibhattim cha hamsavalipavibhattim cha egavalipavibhattim cha taravalipavibhattim cha muttavalipavibhattim cha kanagavalipavibhattim cha rayanavalipavibhattim cha avalipavibhattim cha namam divvam nattavihim uvadamsemti. Chamduggamanapavibhattim cha suruggamanapavibhattim cha uggamanuggamanapavibhattim cha namam divvam nattavihim uvadamsemti. Chamdagamanapavibhattim cha suragamanapavibhattim cha agamanagamanapavibhattim cha namam divvam nattavihim uvadamsemti. Chamdavaranapavibhattim cha suravaranapavibhattim cha avaranavaranapavibhattim cha namam divvam nattavihim uvadamsemti. Chamdatthamanapavibhattim cha suratthamanapavibhattim cha atthamanatthamanapavibhattim cha namam divvam nattavihim uvadamsemti. Chamdamamdalapavibhattim cha suramamdalapavibhattim cha nagamamdalapavibhattim cha jakkhamamdalapavibhattim cha bhutamamdalapavibhattim cha rakkhasa mahoraga gamdhavvamamdalapavibhattim cha mamdalapavibhattim cha namam divvam nattavihim uvadamsemti. Usabhamamdalapavibhattim cha sihamamdalapavibhattim cha, hayavilambiyam gayavilambiyam, hayavilasiyam gayavilasiyam, mattahayavilasiyam mattagayavilasiyam, mattahayavilambiyam mattagayavilambiyam duyavilambiyam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Sagarapavibhattim cha nagarapavibhattim cha sagara nagarapavibhattim cha namam divvam nattavihim uvadamsemti. Namdapavibhattim cha champapavibhattim cha namda champapavibhattim cha namam divvam nattavihim uvadamsemti. Machchhamdapavibhattim cha mayaramdapavibhattim cha jarapavibhattim cha marapavibhattim cha machchhamda mayaramda jara marapavibhattim cha namam divvam nattavihim uvadamsemti. Ka tti kakarapavibhattim cha kha tti khakarapavibhattim cha ga tti gakarapavibhattim cha gha tti dhakarapavibhattim cha nga tti ngakarapavibhattim cha kakara khakara gakara ghakara ngakara pavibhattim cha namam divvam nattavihim uvadamsemti. Evam–chakaravaggo vi. Takaravaggo vi. Takaravaggo vi. Pakaravaggo vi. Asoyapallavapavibhattim cha ambapallavapavibhattim cha jambupallavapavibhattim cha kosambapallava-pavibhattim cha pallavapavibhattim cha namam divvam nattavihim uvadamsemti. Paumalayapavibhattim cha nagalayapavibhattim cha asogalayapavibhattim cha champagalayapavibhattim cha chuyalayapavibhattim cha vanalayapavibhattim cha vasamtiyalayapavibhattim cha aimuttayalayapavibhattim cha kumdalayapavibhattim cha samalayapavibhattim cha layapavibhattim cha namam divvam nattavihim uvadamsemti. Duyam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Vilambiyam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Duyavilambiyam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Amchiyam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Ribhiyam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Amchiyaribhiyam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Arabhadam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Bhasolam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Arabhadabhasolam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Uppayanivayapasattam samkuchiya-pasariyam riyariyam bhamtasambhamtam namam divvam nattavihim uvadamsemti. Tae nam te bahave devakumara ya devakumario ya samameva samosaranam karemti java divve devaramane pavatte yavi hottha. Tae nam te bahave devakumara ya devakumario ya samanassa bhagavao mahavirassa charama-puvvabhavanibaddham cha charamachavananibaddham cha charamasaharananibaddham cha charamajammananibaddham cha charama-abhisea-nibaddham cha charamabalabhavanibaddham cha charamajovvananibaddham cha charamakamabhoganibaddham cha charama-nikkhamana-nibaddham cha charamatavacharananibaddham cha charamananuppayanibaddham cha charamatitthapavattananibaddham cha charama-parinivvananibaddham cha charamanibaddham cha namam divvam nattavihim uvadamsemti. Tae nam te bahave devakumara ya devakumario ya chauvviham vaittam vaemti, tam jaha–tatam vitatam ghanam susiram. Tae nam te bahave devakumara ya devakumariyao cha chauvviham geyam gayamti, tam jaha–ukkhittam payamtam mamdayam roiyavasanam cha. Tae nam te bahave devakumara ya devakumariyao ya chauvviham nattavihim uvadamsemti, tam jaha–amchiyam ribhiyam arabhadam bhasolam cha. Tae nam te bahave devakumara ya devakumariyao ya chauvviham abhinayam abhinemti, tam jaha–ditthamtiyam padamtiyam samannaovinivaiyam logamajjhavasaniyam cha. Tae nam te bahave devakumara ya devakumariyao ya goyamadiyanam samananam niggamthanam divvam deviddhim divvam devajutim divvam devanubhavam divvam battisaibaddha nattavihim uvadamsitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahinam payahinam karemti, karetta vamdamti namamsamti, vamditta namamsitta jeneva suriyabhe deve teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta suriyabham devam karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam baddhavemti, baddhavetta eyamanattiyam pachchappinamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isake bada sabhi devakumara aura devakumariyam pamktibaddha hokara eka satha mile. Saba eka satha niche name aura eka satha hi apana mastaka upara kara sidhe khare hue. Isi krama se punah kara sidhe khare hokara niche name aura phira sidhe khare hue. Khare hokara eka satha alaga – alaga phaila gae aura phira yathayogya nritya – gana adi ke upakaranom – vadyom ko lekara eka satha hi bajane lage, eka satha hi gane lage aura eka satha nritya karane lage. Unaka samgita isa prakara ka tha ki ura se udgata hone para adi mem manda manda, murchchha mem ane para tara aura kamtha sthana mem vishesha tara svara vala tha. Isa taraha tristhana – samudgata vaha samgita trisamaya rechaka se rachita hone para trividha rupa tha. Samgita ki madhura pratidhvani – gumjarava mem samasta prekshagriha mandapa gumjane lagata tha. Geya raga – raganike anurupa tha. Tristhana trikarana se shuddha tha. Gumjati hui bamsuri aura vina ke svarom se eka rupa mila hua tha. Eka – dusare ki bajati hatheli ke svara ka anusarana karata tha. Muraja aura kamshika adi vadyom ki jhamkarom tatha nartakom ke padakshepa se barabara mela khata tha. Vina ke laya ke anurupa tha. Vina adi vadya dhunom ka anukarana karane vala tha. Koyala ki kuhu – kuhu jaisa madhura tatha sarva prakara se sama, salalita manohara, mridu, ribhita padasamchara yukta, shrotaom ko ratikara, sukhanta aisa una nartakom ka nrityasajja vishishta prakara ka uttamottama samgita tha. Madhura samgita – gana ke satha – satha nritya karane vale devakumara aura kumarikaom mem se shamkha, shrimga, shamkhika, kharamukhi, peya piripiraka ke vadaka unhem uddhamanita karate, panava aura pataha para aghata karate, bhambha aura horambha para tamkara marate, bheri jhallari aura dundubhi ko tarita karate, muraja, mridamga aura nandimridamga ka alapa lete, alimga kustumba, gomukhi aura madala para uttadana karate, vina vipamchi aura vallaki ko murchchhita karate, mahati vina kachchha – pivina aura chitravina ko kutate, baddhisa, sughosha, nandighosha ka sarana karate, bhramari – shad bhramari aura parivadani vina ka sphotana karate, tuna, tumbavina ka sparsha karate, amota jhamjha kumbha aura nakula ko khanakhanate, mridamga – hudukka – vichikki ko dhime se chhute, karara dimdima kinita aura kadamba ko bajate, dardaraka, dardarika kustumburu, kalashika madda ko jora – jora se tarita karate, tala, tala kamsyatala ko dhire se tarita karate, rimgirisaka lattika, makarika aura shishumarika ka ghattana karate tatha vamshi, venu vali parilli tatha baddhakom ko phumkate the. Isa prakara ve sabhi apane – apane vadyom ko baja rahe the. Isa prakara ka vaha vadya sahajarita divya samgita divya vadana aura divya nritya ashcharyakari hone se adbhuta, shrimgararasopeta hone se shrimgararupa, paripurna guna – yukta hone se udara, darshakom ke manonukula hone se manojnya tha ki jisase vaha manamohaka gita, manohara nritya aura manohara vadyavadana sabhi ke chitta ka akshepaka tha. Darshakom ke kahakahom ke kolahala se natyashala ko gumja raha tha. Isa prakara se ve devakumara aura kumarikaem divya devakrira mem pravritta ho rahe the. Tatpashchat usa divya nrityakrira mem pravritta una devakumarom aura kumarikaom ne shramana bhagavana mahavira evam gautamadi shramana nirgranthom ke samaksha svastika, shrivatsa, nandavarta, vardhamanaka, bhadrasana, kalasha, matsya aura darpana, ina atha mamgala dravyom ka akara rupa divya natya dikhalaya. Tatpashchat dusari natyavidhi dikhane ke lie ve devakumara aura devakumariyam ekatrita hui aura divya devaramana mem pravritta hone paryanta ki purvokta samasta vaktavyata ka varnana karana. Tadanantara una devakumarom aura devakumariyom ne shramana bhagavana mahavira ke samane avarta, pratyavarta, shreni, prashreni, svastika, sauvastika, pushpa, manavaka, vardha – manaka, matsyadanda, makarandaka, jara, mara, pushpavali, padmapatra, sagarataramga, vasantilata aura padmalata ke akara ki rachanarupa divya natyavidhi ka abhinaya karake batalaya. Isi prakara se una devakumarom aura devakumariyom ke eka satha milane se lekara divya devakrira mem pravritta hone taka ki samasta vaktavyata purvavat. Tadanantara una sabhi devakumarom aura devakumariyom ne shramana bhagavana ke samaksha ihamriga, vrishabha, turaga, nara, magara, vihaga, vyala, kinnara, ruru, sarabha, chamara, kumjara, vanalata aura padmalata ki akriti – rachana – rupa divya natya – vidhi ka abhinaya dikhaya. Isake bada una devakumarom aura devakumariyom ne ekatovakra, ekatashchakravala, dvighata – shchakravala aisi chakrardha – chakravala namaka divya natyavidhi ka abhinaya dikhaya. Isi prakara anukrama se unhomne chandravali, suryavali, valayavali, hamsavali, ekavali, taravali, muktavali, kanakavali aura ratnavali ki prakrishta – vishishta rachanaom se yukta divya natyavidhi ka abhinaya pradarshita kiya. Tatpashchat una devakumarom aura devakumariyom ne ukta krama se chandrodgamapravibhakti, suryodgamapravibhakti yukta divya natyavidhi ko dikhaya. Isake anantara unhomne chandragamana, suryagamana ki rachana vali divya natyavidhi ka abhinaya kiya. Tatpashchat chandravarana, suryavarana, avaranavarana namaka divya natyavidhi ko pradarshita kiya. Isake bada chandra ke asta hone, surya ke asta hone ki rachana se yukta astamayanapravibhakti namaka natyavidhi ka abhinaya kiya. Tadanantara chandramandala, suryamandala, nagamandala, yakshamandala, bhutamandala, rakshasamandala, mahoragamandala aura gandharvamandala ki rachana se yukta mandalapravibhakti namaka natya abhinaya pradarshita kiya. Tatpashchat vrishabhamandala, simhamandala ki lalita gati ashva gati, aura gaja ki vilambita gati, ashva aura hasti ki vilasita gati, matta ashva aura matta gaja ki vilasita gati, matta ashva ki vilambita gati, matta hasti ki vilambita gati se yukta drutavilambita pravibhakti namaka divya natyavidhi ka pradarshana kiya. Isake bada sagara pravibhakti, nagara pravibhakti se yukta sagara – nagara – pravibhakti namaka apurva natyavidhi ka abhinaya dikhaya. Tatpashchat nandapravibhakti, champa pravibhakti, nanda – champa pravibhakti namaka divyanatya ka abhinaya dikhaya. Tatpashchat matsyandaka, makarandaka, jara, mara ki akritiyom ki surachana se yukta matsyanda – makaranda – jara – mara pravibhakti namaka divyanatyavidhi dikhalai. Tadanantara una devakumarom aura devakumariyom ne kramashah kakarapravibhakti, khakara, gakara, dhakara aura ngakara – pravibhakti, isa prakara ke varga pravibhakti nama ki divya natyavidhiyom ka pradarshana kiya. Isi taraha se chakara – chhakara – jakara – jhakara – nyakara ki rachana karake chakaravargapravibhakti namaka divya natyavidhi ka abhinaya dikhaya. Pashchat kramashah ta – tha – da – dha – na ke akara ki surachana dvara takaravarga – pravibhakti namaka natyavidhi ka pradarshana kiya. Takaravarga ke anantara takara – thakara – dakara – dhakara – nakara ki rachana karake takaravarga – pravibhakti namaka natyavidhi ko dikhalaya. Takaravarga ke anantara pa, pha, ba, bha, ma ke akara ki rachana karake pakaravarga – pravibhakti namaki divya natyavidhi ka abhinaya dikhaya. Tatpashchat ashokapallava, amrapallava, jambupallava, koshamrapallava, pallavapravibhakti namaka divya natya – vidhi pradarshita ki. Tadanantara padmalata yavat shyamalata pravibhakti namaka natyabhinaya pradarshita kiya. Isake pashchat druta, vilambita, drutavilambita, amchita, ribhita, amchitaribhita, arabhata, bhasola aura arabhatabhasola namaka natyavidhi pradarshita ki. Tadanantara utpata nipata, samkuchita – prasarita bhaya aura harshavasha sharira ke amgopamgom ko sikorana aura phailana, bhranta aura sambhranta sambandhi kriyaom vishayaka divya natya – abhinaya dikhaya. Tadanantara ve devakumara aura devakumariyam eka satha eka sthana para ekatrita hue yavat divya devaramata mem pravritta ho gae. Tatpashchat shramana bhagavana mahavira ke purva bhavom sambandhi charitra se nibaddha evam vartamana jivana sambandhi, chyavanacharitranibaddha, garbhasamharanacharitranibaddha, janmacharitranibaddha, janmabhisheka, balakriranibaddha, yauvana – charitranibaddha, abhinishkramana – nibaddha, tapashcharana nibaddha, jnyanotpada charitra – nibaddha, tirtha – pravartana charitra se sambandhita, parinirvana charitranibaddha tatha charama charitra nibaddha namaka amtima divya natya – abhinaya ka pradarshana kiya. Tatpashchat sabhi devakumarom aura devakumariyom ne ina chaturvidha vadimtrom ko bajaya. Anantara una ne utkshipta, padanta, mamdaka aura rochitavasana rupa chara prakara ka samgita gaya. Tatpashchat una ne amchita, ribhita, arabhata evam bhasola ina chara prakara ki nrityavidhiyom ko dikhaya. Tatpashchat una ne chara prakara ke abhinaya pradarshita kiye, yatha – darshtantika, pratyamtika, samanyatovinipatanika aura antarmadhyavasanika. Tatpashchat una sabhi devakumarom aura devakumariyom ne gautama adi shramana nirgranthom ko divya devariddhi, divya devadyuti, divya devanubhava pradarshaka battisa prakara ki divya natyavidhiyom ko dikhakara shramana bhagavana mahavira ko tina bara adakshina – pradakshina ki. Vandana – namaskara karane ke pashchat jaham apana adhipati suryabhadeva tha vaham ae. Donom hatha jorakara sira para avartapurvaka mastaka para amjali karake suryabhadeva ko ‘jaya vijaya’ se badhaya aura ajnya vapasa saumpi. |