Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005710 | ||
Scripture Name( English ): | Rajprashniya | Translated Scripture Name : | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Translated Chapter : |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 10 | Category : | Upang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं ते आभिओगिया देवा समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरत्थिम दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरंति, तं जहा–रयनाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजनाणं अंजनं-पुलगाणं रयनाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेंति, परिसाडेत्ता अहासुहुमे पोग्गले परियायंति, परियाइत्ता दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संवट्टयवाए विउव्वंति, ... ...से जहानामए–भइयदारए सिया तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पायंके थिरग्गहत्थे दढपाणि पाय पिट्ठंतरोरुपरिणए घण णिचिय वट्टवलियखंधे चम्मेट्ठग दुधण मुट्ठिय समाहय निचियगत्ते उरस्सबलसमण्णागए तलजमलजुयलबाहू लंघण पवण जइण पमद्दणसमत्थे छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले मेधावी निउणसिप्पो-वगए एगं महं दंडसंपुच्छणिं वा सलागाहत्थगं वा वेणुसलाइयं वा गहाय रायंगणं वा रायंतेउरं वा आरामं वा उज्जाणं वा देवउलं वा सभं वा पवं वा अतुरियमचवलमसंभंतं निरंतरं सुनिउणं सव्वतो समंता संपमज्जेज्जा, एवामेव तेवि सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा संवट्टयवाए विउव्वंति, विउव्वित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वतो समंता जोयणपरिमंडलं जं किंचि तणं वा पत्तं वा कट्ठं वा सक्करं वा असुइं अचोक्खं पूइयं दुब्भिगंधं तं सव्वं आहुणिय-आहुणिय एगंते एडेंति, एडित्ता खिप्पामेव उवसमंति, उवसमित्ता– दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता अब्भवद्दलए विउव्वंति, से जहानामए– भइयदारगे सिया तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए एगं महं दसवारगं वा दगथालगं वा दगकलसगं वा दगकुंभगं वा गहाय आरामं वा उज्जाणं वा देवउलं वा सभं वा पवं वा अतुरिय-मचवलसंभंतं निरंतरं सुनिउणं सव्वतो समंता आवरिसेज्जा, एवामेव तेवि सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा अब्भवद्दलए विउव्वंति, विउव्वित्ता खिप्पामेव पतणतणायंति, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव विज्जुयायंति, विज्जुयाइत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वओ समंता जोयण-परिमंडलं नच्चोदगं नातिमट्टियं तं पविरल-फुसियं रयरेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगंधोदगं वासं वासंति, वासेत्ता निहयरयं णट्ठरयं भट्ठरयं उवसंतरयं पसंतरयं करेंति, करेत्ता खिप्पामेव उवसामंति, उवसामित्ता– तच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता पुप्फवद्दलए विउव्वंति, से जहानामए–मालागारदारए सिया तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए एगं महं पुप्फछज्जियं वा पुप्फ-पडलगं वा पुप्फचंगेरियं वा गहाय रायंगणं वा रायंतेउरं वा आरामं वा उज्जाणं वा देवउलं वा सभं वा पवं वा अतुरियमचवलमसंभंतं निरंतरं सुनिउणं सव्वतो समंता कयग्गहगहियकरयलपब्भट्ठविप्प-मुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेज्जा, एवामेव ते सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा पुप्फवद्दलए विउव्वंति, विउव्वित्ता खिप्पामेव पतणतणायंति, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव विज्जुयायंति, विज्जुयाइत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमंडलं जलयथलयभासुरप्पभूयस्स बेंटट्ठाइस्स दसद्धवण्णकुसुमस्स जण्णुस्सेहपमाणमेत्तिं ओहिं वासं वासंति, वासित्ता कालागरु पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क धूव मघमघेंत गंधुद्धुयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूतं दिव्वं सुरवराभिगमणजोग्गं करेंति य कारवेंति य करेत्ता य कारवेत्ता य खिप्पामेव उवसामंति, ... ...उवसामित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ अंबसालवनाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए जवणाए सिग्घाए उद्धूयाए दिव्वाए देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झंमज्झेणं वीईवयमाणा-वीईवयमाणा जेणेव सोहम्मे कप्पे जेणेव सूरियाभे विमाने जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। | ||
Sutra Meaning : | तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर के इस कथन को सूनकर उन आभियोगिक देवों ने हर्षित यावत् विकसितहृदय होकर भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया। वे उत्तर – पूर्व दिग्भाग में गए। वहाँ जाकर उन्होंने वैक्रिय समुद्घात किया और संख्यात योजन का दण्ड बनाया जो कर्केतन यावत् रिष्टरत्नमय था और उन रत्नों के यथाबादर पुद्गलों को अलग किया। दुबारा वैक्रिय समुद्घात करके, जैसे – कोई तरुण, बलवान, युगवान, युवा नीरोग, स्थिर पंजे वाला, पूर्णरूप से दृढ़ पुष्ट हाथ पैर पृष्ठान्तर वाला, अतिशय निचित परिपुष्ट मांसल गोल कंधोंवाला, चर्मेष्टक, मुद्गर और मुक्कों की मार से सघन, पुष्ट सुगठित शरीर वाला, आत्मशक्ति सम्पन्न, युगपत् उत्पन्न तालवृक्षयुगलके समान सीधी लम्बी और पुष्ट भुजाओं वाला, लांघने – कूदने – वेगपूर्वक गमन एवं मर्दन करनेमें समर्थ, कलाविज्ञ, दक्ष, पटु, कुशल, मेधावी एवं कार्यनिपुण भृत्यदारक सीकों से बनी या मूठवाली अथवा बाँस की सीकों से बनी बुहारी लेकर राजप्रांगण, अन्तःपुर, देवकुल, सभा, प्याऊ, आराम को बिना किसी घबराहट चपलता सम्भ्रम और आकुलता के निपुणतापूर्वक चारों तरफ से प्रमार्जित करता है, वैसे ही सूर्याभदेव के उन आभियोगिक देवोंने भी संवर्तक वायु विकुर्वणा की। आसपास चारों ओर एक योजन भूभागमें जो कुछ भी घास पत्ते आदि थे उन सभी को चुन – चुनकर एकान्त स्थानमें ले जा कर फैंक दिया और शीघ्र ही अपने कार्य से निवृत्त हुए। इसके पश्चात् उन आभियोगिक देवों ने दुबारा वैक्रिय समुद्घात किया। जैसे कोई तरुण यावत् कार्यकुशल सींचने वाला नौकर जल से भरे एक बड़े घड़े, वारक को लेकर आराम – फुलवारी यावत् परव को बिना किसी उतावली के यावत् सब तरफ से सींचता है, इसी प्रकार से सूर्याभदेव के उन आभियोगिक देवों ने आकाश में घुमड़ – घुमड़कर गरजने वाले और बिजलियों की चमचमाहट से युक्त मेघों की विक्रिया की और चारों ओर एक योजन प्रमाण गोलाकार भूमि में इस प्रकार से सुगन्धित गंधोदक बरसाया कि जिससे न भूमि जलबहुल हुई, न कीचड़ हुआ। इस प्रकार की मेघ वर्षा करके उस स्थान को निहितरज, भ्रष्टरज, उपशांतरज, प्रशांतरज वाला बना दिया। ऐसा करके वे अपने कार्य से विरत हुए। तदनन्तर उन आभियोगिक देवों ने तीसरी बार वैक्रिय समुद्घात करके जैसे कोई तरुण यावत् कार्यकुशल मालाकारपुत्र एक बड़ी पुष्पछादिका, पुष्पपटलक, अथवा पुष्पचंगेरिका से कचग्रहवत् फूलों को हाथ में लेकर छोड़े गए पंचरंगे पुष्पपुंजों को बिखेर कर रज – प्रांगण यावत् परव को सब तरफ से समलंकृत कर देता है उसी प्रकार से पुष्पवर्षक बादलों की विकुर्वणा की। वे अभ्र – बादलों की तरह गरजने लगे, यावत् योजन प्रमाण गोलाकार भूभाग में दीप्तिमान जलज और स्थलज पंचरंगे पुष्पों को प्रभूत मात्रा में इस तरह बरसाया कि सर्वत्र उनकी ऊंचाई एक हाथ प्रमाण हो गई एवं डंडियाँ नीचे और पंखुडियाँ ऊपर रहीं। पुष्पवर्षा करने के पश्चात् मनमोहक सुगन्ध वाले काले अगर, श्रेष्ठ कुन्दरुष्क, तरुष्क – लोभान और धूप को जलाया। उनकी मनमोहक सुगन्ध से सारा प्रदेश महकने लगा, श्रेष्ठ सुगन्ध के कारण सुगन्ध की गुटिका जैसा बन गया। दिव्य एवं श्रेष्ठ देवों के अभिगमन योग्य हो गया। इस प्रकार स्वयं करके और दूसरों से करवा करके उन्होंने अपने कार्य को पूर्ण किया इसके पश्चात् वे आभियोगिक देव श्रमण भगवान महावीर के पास आए। श्रमण भगवान महावीर को तीन बार यावत् वंदन नमस्कार कर, आम्रशालवन चैत्य से नीकले, उत्कृष्ट गति से यावत् चलते – चलते जहाँ सौधर्म स्वर्ग था, सूर्याभ विमान था, सुधर्मा सभा थी और उसमें भी जहाँ सूर्याभदेव था वहाँ आए और दोनों हाथ जोड़ आवर्त पूर्वक मस्तक पर अंजलि करके जय विजय घोष से सूर्याभदेव का अभिनन्दन करके आज्ञा को वापस लौटाया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam te abhiogiya deva samanenam bhagavaya mahavirenam evam vutta samana hatthatuttha-chittamanamdiya piimana paramasomanassiya harisavasavisappamanahiyaya samanam bhagavam mahaviram vamdamti namamsamti, vamditta namamsitta uttarapuratthima disibhagam avakkamamti, avakkamitta veuvviyasamugghaenam samohannamti, samohanitta samkhejjaim joyanaim damdam nisiramti, tam jaha–rayananam vairanam veruliyanam lohiyakkhanam masaragallanam hamsagabbhanam pulaganam sogamdhiyanam joirasanam amjananam amjanam-pulaganam rayananam jayaruvanam amkanam phalihanam ritthanam ahabayare poggale parisademti, parisadetta ahasuhume poggale pariyayamti, pariyaitta dochcham pi veuvviyasamugghaenam samohannamti, samohanitta samvattayavae viuvvamti,.. ..Se jahanamae–bhaiyadarae siya tarune balavam jugavam juvane appayamke thiraggahatthe dadhapani paya pitthamtaroruparinae ghana nichiya vattavaliyakhamdhe chammetthaga dudhana mutthiya samahaya nichiyagatte urassabalasamannagae talajamalajuyalabahu lamghana pavana jaina pamaddanasamatthe chhee dakkhe pattatthe kusale medhavi niunasippo-vagae egam maham damdasampuchchhanim va salagahatthagam va venusalaiyam va gahaya rayamganam va rayamteuram va aramam va ujjanam va devaulam va sabham va pavam va aturiyamachavalamasambhamtam niramtaram suniunam savvato samamta sampamajjejja, evameva tevi suriyabhassa devassa abhiogiya deva samvattayavae viuvvamti, viuvvitta samanassa bhagavao mahavirassa savvato samamta joyanaparimamdalam jam kimchi tanam va pattam va kattham va sakkaram va asuim achokkham puiyam dubbhigamdham tam savvam ahuniya-ahuniya egamte edemti, editta khippameva uvasamamti, uvasamitta– Dochcham pi veuvviyasamugghaenam samohannamti, samohanitta abbhavaddalae viuvvamti, se jahanamae– bhaiyadarage siya tarune java niunasippovagae egam maham dasavaragam va dagathalagam va dagakalasagam va dagakumbhagam va gahaya aramam va ujjanam va devaulam va sabham va pavam va aturiya-machavalasambhamtam niramtaram suniunam savvato samamta avarisejja, evameva tevi suriyabhassa devassa abhiogiya deva abbhavaddalae viuvvamti, viuvvitta khippameva patanatanayamti, patanatanaitta khippameva vijjuyayamti, vijjuyaitta samanassa bhagavao mahavirassa savvao samamta joyana-parimamdalam nachchodagam natimattiyam tam pavirala-phusiyam rayarenuvinasanam divvam surabhigamdhodagam vasam vasamti, vasetta nihayarayam nattharayam bhattharayam uvasamtarayam pasamtarayam karemti, karetta khippameva uvasamamti, uvasamitta– Tachcham pi veuvviyasamugghaenam samohannamti, samohanitta pupphavaddalae viuvvamti, se jahanamae–malagaradarae siya tarune java niunasippovagae egam maham pupphachhajjiyam va puppha-padalagam va pupphachamgeriyam va gahaya rayamganam va rayamteuram va aramam va ujjanam va devaulam va sabham va pavam va aturiyamachavalamasambhamtam niramtaram suniunam savvato samamta kayaggahagahiyakarayalapabbhatthavippa-mukkenam dasaddhavannenam kusumenam pupphapumjovayarakaliyam karejja, evameva te suriyabhassa devassa abhiogiya deva pupphavaddalae viuvvamti, viuvvitta khippameva patanatanayamti, patanatanaitta khippameva vijjuyayamti, vijjuyaitta samanassa bhagavao mahavirassa savvao samamta joyanaparimamdalam jalayathalayabhasurappabhuyassa bemtatthaissa dasaddhavannakusumassa jannussehapamanamettim ohim vasam vasamti, vasitta kalagaru pavarakumdurukka turukka dhuva maghamaghemta gamdhuddhuyabhiramam sugamdhavaragamdhagamdhiyam gamdhavattibhutam divvam suravarabhigamanajoggam karemti ya karavemti ya karetta ya karavetta ya khippameva uvasamamti,.. ..Uvasamitta jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahinam payahinam karemti, karetta vamdamti namamsamti, vamditta namamsitta samanassa bhagavao mahavirassa amtiyao ambasalavanao cheiyao padinikkhamamti, padinikkhamitta tae ukkitthae turiyae chavalae chamdae javanae sigghae uddhuyae divvae devagaie tiriyamasamkhejjanam divasamuddanam majjhammajjhenam viivayamana-viivayamana jeneva sohamme kappe jeneva suriyabhe vimane jeneva sabha suhamma jeneva suriyabhe deve teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta suriyabham devam karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavemti, vaddhavetta tamanattiyam pachchappinamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tadanantara shramana bhagavana mahavira ke isa kathana ko sunakara una abhiyogika devom ne harshita yavat vikasitahridaya hokara bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya. Ve uttara – purva digbhaga mem gae. Vaham jakara unhomne vaikriya samudghata kiya aura samkhyata yojana ka danda banaya jo karketana yavat rishtaratnamaya tha aura una ratnom ke yathabadara pudgalom ko alaga kiya. Dubara vaikriya samudghata karake, jaise – koi taruna, balavana, yugavana, yuva niroga, sthira pamje vala, purnarupa se drirha pushta hatha paira prishthantara vala, atishaya nichita paripushta mamsala gola kamdhomvala, charmeshtaka, mudgara aura mukkom ki mara se saghana, pushta sugathita sharira vala, atmashakti sampanna, yugapat utpanna talavrikshayugalake samana sidhi lambi aura pushta bhujaom vala, lamghane – kudane – vegapurvaka gamana evam mardana karanemem samartha, kalavijnya, daksha, patu, kushala, medhavi evam karyanipuna bhrityadaraka sikom se bani ya muthavali athava bamsa ki sikom se bani buhari lekara rajapramgana, antahpura, devakula, sabha, pyau, arama ko bina kisi ghabarahata chapalata sambhrama aura akulata ke nipunatapurvaka charom tarapha se pramarjita karata hai, vaise hi suryabhadeva ke una abhiyogika devomne bhi samvartaka vayu vikurvana ki. Asapasa charom ora eka yojana bhubhagamem jo kuchha bhi ghasa patte adi the una sabhi ko chuna – chunakara ekanta sthanamem le ja kara phaimka diya aura shighra hi apane karya se nivritta hue. Isake pashchat una abhiyogika devom ne dubara vaikriya samudghata kiya. Jaise koi taruna yavat karyakushala simchane vala naukara jala se bhare eka bare ghare, varaka ko lekara arama – phulavari yavat parava ko bina kisi utavali ke yavat saba tarapha se simchata hai, isi prakara se suryabhadeva ke una abhiyogika devom ne akasha mem ghumara – ghumarakara garajane vale aura bijaliyom ki chamachamahata se yukta meghom ki vikriya ki aura charom ora eka yojana pramana golakara bhumi mem isa prakara se sugandhita gamdhodaka barasaya ki jisase na bhumi jalabahula hui, na kichara hua. Isa prakara ki megha varsha karake usa sthana ko nihitaraja, bhrashtaraja, upashamtaraja, prashamtaraja vala bana diya. Aisa karake ve apane karya se virata hue. Tadanantara una abhiyogika devom ne tisari bara vaikriya samudghata karake jaise koi taruna yavat karyakushala malakaraputra eka bari pushpachhadika, pushpapatalaka, athava pushpachamgerika se kachagrahavat phulom ko hatha mem lekara chhore gae pamcharamge pushpapumjom ko bikhera kara raja – pramgana yavat parava ko saba tarapha se samalamkrita kara deta hai usi prakara se pushpavarshaka badalom ki vikurvana ki. Ve abhra – badalom ki taraha garajane lage, yavat yojana pramana golakara bhubhaga mem diptimana jalaja aura sthalaja pamcharamge pushpom ko prabhuta matra mem isa taraha barasaya ki sarvatra unaki umchai eka hatha pramana ho gai evam damdiyam niche aura pamkhudiyam upara rahim. Pushpavarsha karane ke pashchat manamohaka sugandha vale kale agara, shreshtha kundarushka, tarushka – lobhana aura dhupa ko jalaya. Unaki manamohaka sugandha se sara pradesha mahakane laga, shreshtha sugandha ke karana sugandha ki gutika jaisa bana gaya. Divya evam shreshtha devom ke abhigamana yogya ho gaya. Isa prakara svayam karake aura dusarom se karava karake unhomne apane karya ko purna kiya Isake pashchat ve abhiyogika deva shramana bhagavana mahavira ke pasa ae. Shramana bhagavana mahavira ko tina bara yavat vamdana namaskara kara, amrashalavana chaitya se nikale, utkrishta gati se yavat chalate – chalate jaham saudharma svarga tha, suryabha vimana tha, sudharma sabha thi aura usamem bhi jaham suryabhadeva tha vaham ae aura donom hatha jora avarta purvaka mastaka para amjali karake jaya vijaya ghosha se suryabhadeva ka abhinandana karake ajnya ko vapasa lautaya. |