Sutra Navigation: Vipakasutra ( विपाकश्रुतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005509 | ||
Scripture Name( English ): | Vipakasutra | Translated Scripture Name : | विपाकश्रुतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 9 | Category : | Ang-11 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से एक्काई रट्ठकूडे सोलसहिं रोगायंकेहिं अभिभूए समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! विजयवद्धमाणे खेडे सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह–इहं खलु देवानुप्पिया! एक्काइस्स रट्ठकूडस्स सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउब्भूया, तं जहा–सासे जाव कोढे, तं जो णं इच्छइ देवानुप्पिया! वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुयपुत्तो वा तेगिच्छिओ वा तेगिच्छियपुत्तो वा एक्काइस्स रट्ठकूडस्स तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, तस्स णं एक्काई रट्ठकूडे विउलं अत्थसंप-याणं दलयइ। दोच्चं पि तच्चं पि उग्घोसेह, उग्घोसेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं विजयवद्धमाणे खेडे इमं एयारूवं उग्घोसणं सोच्चा निसम्म बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य सत्थकोसहत्थगया सएहिं-सएहिं गिहेहिंतो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता विजयवद्धमाणस्स खेडस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव एक्काई -रट्ठकूडस्स गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एक्काई रट्ठकूडस्स सरीरगं परामुसंति, परामुसित्ता तेसिं रोगायंकाणं निदाणं पुच्छंति, पुच्छित्ता एक्काई रट्ठकूडस्स बहूहिं अब्भंगेहि य उव्वट्टणाहि य सिणेहपाणेहि य वमनेहि य विरेयणेहि य सेयणेहि य अवद्दहणाहि य अवण्हाणेहि य अनुवासनाहि य बत्थिकम्मेहि य निरूहेहि य सिरावेहेहि य तच्छ णेहि य पच्छणेहि य सिरबत्थीहि य तप्पणाहि य पुडपागेहि य छल्लीहि य बल्लीहि य मूलेहि य कंदेहि य पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य ओसहेहि य भेसज्जेहि य इच्छंति तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, नो चेव णं संचाएंति उवसामित्तए। तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य जाहे नो संचाएंति तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्ताए, ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। तए णं एक्काई रट्ठकूडे वेज्ज पडियाइक्खिए परियारगपरिचत्ते निव्विण्णोसहभेसज्जे सोलसरोगायंकेहिं अभिभूए समाणे रज्जे य रट्ठे य कोसे य कोट्ठागारे य बले य वाहणे य, पुरे य अंतउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे रज्जं च रट्ठं च कोसं च कोट्ठागारं च बलं च वाहणं च पुरं च अंतेउरं च आसाएमाणे पत्थेमाणे पीहेमाणे अभिलसमाणे अट्टदुहट्टवसट्टे अड्ढाइज्जाइं वाससयाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं सागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ने। सेणं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव मियग्गामे नयरे विजयस्स खत्तियस्स मियाए देवीए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने तए णं तीसेम मियाए देवीए सरीरे वेयणा पाउब्भूया उज्जला विउला कक्कसा पगाढा चंडा दुक्खा तिव्वा दुरहियासा जप्पभिइं च णं मियापुत्ते दारए मियाए देवीए कुच्छिंसि गब्भत्ताए उववन्ने, तप्पभिइं च णं मियादेवी विजयस्स खत्तियस्स अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुन्ना अमणामा जाया यावि होत्था। तए णं तीसे मियाए देवीए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियाए जागरमाणीए इमे एयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पन्ने–एवं खलु अहं विजयस्स खत्तियस्स पुव्विं इट्ठा कंता पिया मणुन्ना मणामा धेज्जा वेसासिया अनुमया आसि। जप्पभिइं च णं मम इमे गब्भे कुच्छिंसि गब्भत्ताए उववन्ने, तप्पभिइं च णं अहं विजयस्स खत्तियस्स अनिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुन्ना अमणामा जाया यावि होत्था। नेच्छइ णं विजए खत्तिए मम नामं वा गोयं वा गिण्हित्तए, किमंग पुण दंसणं वा परिभोगं वा? तं सेयं खलु मम एयं गब्भं बहूहिं गब्भसाडणाहि य पाडणाहि य गालणाहि य मारणाहि य साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा मारित्तए वा–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता बहूणि खाराणि य कडुयाणि य तुवराणि य गब्भसाडणाणि य पाडणाणि य गालणाणि य मारणाणि य खायमाणी य पियमाणी य इच्छइ तं गब्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा मारित्तए वा, नो चेव णं से गब्भे सडइ वा पडइ वा गलइ वा मरइ वा। तए णं सा मियादेवी जाहे नो संचाएइ तं गब्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा मारित्तए वा ताहे संता तंता परितंता अकामिया असयंवसा तं गब्भं दुहंदुहेणं परिवहइ। तस्स णं दारगस्स गब्भगयस्स चेव अट्ठ नालीओ अब्भिंतरप्पवहाओ, अट्ठ नालीओ बाहिर-प्पवाहाओ, अट्ठ पूयप्पवहाओ, अट्ठ सोणियप्पवहाओ, दुवे दुवे कण्णंतरेसु, दुवे दुवे अच्छिअंतरेसु, दुवे दुवे नक्कंतरेसु, दुवे दुवे धमनिअंतरेसु अभिक्खणं-अभिक्खणं पूयं च सोणियं च परिसवमाणीओ-परिसवमाणीओ चेव चिट्ठंति। तस्स णं दारगस्स गब्भगयस्स चेव अग्गिए नामं वाही पाउब्भूए। जे णं से दारए आहारेइ, से णं खिप्पामेव विद्धंसमागच्छइ, पूयत्ताए य सोणियत्ताए य परिणमइ, तं पि य से पूयं च सोणियं च आहारेइ। तए णं सा मियादेवी अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया–जातिअंधे जातिमूए जातिबहिरे जातिपंगुले हुंडे य वायव्वे। नत्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी वा नासा वा। केवलं से तेसिं अंगो-वंगाणं आगिती आगितिमेत्ते। तए णं सा मियादेवी तं दारगं हुंडं अंधारूवं पासइ, पासित्ता भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया अम्मघाइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं देवानुप्पिया! तुमं एयं दारगं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झाहि। तए णं सा अम्मधाई मियादेवीए तहत्ति एयमट्ठं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव विजए खत्तिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु सामी! मियादेवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपु-ण्णाणं दारगं पयाया–जातिअंधे जातिमूए जातिबहिरे जातिपंगुले हुंडे य वायव्वे। नत्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी वा नासा वा। केवलं से तेसिं अंगोवंगाणं आगिती आगितिमेत्ते। तए णं सा मियादेवी तं दारगं हुंडं अंधारूवं पासइ, पासित्ता भीया तत्था तसिया उव्विगा संजायभया ममं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! एयं दारगं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झाहि। तं संदिसह णं सामी! तं दारगं अहं एगंते उज्झामि उदाहु मा। तए णं से विजए खत्तिए तीसे अम्मधाईए अंतिए एयमट्ठं सोच्चा तहेव संभंते उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव मियादेवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मियं देविं एवं वयासी–देवाणुप्पिए! तुब्भं पढमे गब्भे। तं जइ णं तुमं एयं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झसि, तो णं तुब्भं पया नो थिरा भविस्सइ, तो णं तुमं एयं दारगं रहस्सियगंसि भूमिधरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेण पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहराहि, तो णं तुब्भं पया थिरा भविस्सइ। तए णं सा मियादेवी विजयस्स खत्तियस्स तह त्ति एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दारगं रहस्सियंसि भूमिधरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ। एवं खलु गोयमा! मियापुत्ते दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | तदनन्तर उक्त सोलह प्रकार के भयंकर रोगों से खेद को प्राप्त वह एकादि नामक प्रान्ताधिपति सेवकों को बुलाकर कहता है – ‘‘देवानुप्रियो ! तुम जाओ और विजयवर्द्धमान खेट के शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, महापथ और साधारण मार्ग पर जाकर अत्यन्त ऊंचे स्वरों से इस तरह घोषणा करो – ‘हे देवानुप्रियो ! एकादि प्रान्तपति के शरीर में श्वास, कास, यावत् कोढ़ नामक १६ भयङ्कर रोगांतक उत्पन्न हुए हैं। यदि कोई वैद्य या वैद्यपुत्र, ज्ञायक या ज्ञायक – पुत्र, चिकित्सक या चिकित्सक – पुत्र उन सोलह रोगांतकों में से किसी एक भी रोगांतक को उपशान्त करे तो एकादि राष्ट्रकूट उसको बहुत सा धन प्रदान करेगा।’ इस प्रकार दो तीन बार उद्घोषणा करके मेरी इस आज्ञा के यथार्थ पालन की मुझे सूचना दो।’ उन कौटुम्बिक पुरुषों – सेवकों ने आदेशानुसार कार्य सम्पन्न करके उसे सूचना दी। तदनन्तर उस विजयवर्द्धमान खेट में इस प्रकार की उद्घोषणा को सूनकर तथा अवधारण करके अनेक वैद्य, वैद्यपुत्र, ज्ञायक, ज्ञायकपुत्र, चिकित्सक, चिकित्सकपुत्र अपने अपने शस्त्रकोष को हाथ में लेकर अपने अपने घरों से नीकलकर एकादि प्रान्ताधिपति के घर आते हैं। एकादि राष्ट्रकूट के शरीर का संस्पर्श करते हैं, निदान की पृच्छा करते हैं और एकादि राष्ट्रकूट के इन सोलह रोगांतकों में से किसी एक रोगांतक को शान्त करने के लिए अनेक प्रकार के अभ्यंगन, उद्वर्तन, स्नेहपान, वमन, विरेचन, स्वेदन, अवदहन, अवस्नान, अनुवासन, निरूह, बस्तिकर्म, शिरोवेध, तक्षण, प्रतक्षण, शिरोबस्ति, तर्पण, पुटपाक, छल्ली, मूलकन्द, शिलिका, गुटिका, औषध और भेषज्य आदि के प्रयोग से प्रयत्न करते हैं परन्तु उपर्युक्त अनेक प्रकार के प्रयोगात्मक उपचारों से इन सोलह रोगों में से किसी एक रोग को भी उपशान्त करने में समर्थ न हो सके ! जब उन वैद्यों व वैद्यपुत्रादि से उन १६ रोगान्तकों में से एक भी रोग का उपशमन न हो सका तब वे वैद्य व वैद्यपुत्रादि श्रान्त तान्त, तथा परितान्त से खेदित होकर जिधर से आए थे उधर ही चल दिए। इस प्रकार वैद्यों के द्वारा प्रत्याख्यात होकर सेवकों द्वारा परित्यक्त होकर औषध और भैषज्य से निर्विण्ण विरक्त, सोलह रोगांतकों से परेशान, राज्य, राष्ट्र, यावत् अन्तःपुर – रणवास में मूर्च्छित – आसक्त एवं राज्य व राष्ट्र का आस्वादन, प्रार्थना, स्पृहा और अभिलाषा करता हुआ एकादि प्रान्तपति व्यथित, दुखार्त्त और वशार्त्त होने से परतंत्र जीवन व्यतीत करके २५० वर्ष की सम्पूर्ण आयु को भोगकर यथासमय काल करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नारकों में नारकरूप से उत्पन्न हुआ। तदनन्तर वह एकादि का जीव भवस्थिति संपूर्ण होने पर नरक से नीकलते ही इस मृगाग्राम नगर में विजय क्षत्रिय की मृगादेवी नाम की रानी की कुक्षि में पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। मृगादेवी के उदर में उत्पन्न होने पर मृगादेवी के शरीर में उज्ज्वल यावत् ज्वलन्त व जाज्वल्यमान वेदना उत्पन्न हुई। जिस दिन से मृगापुत्र बालक मृगादेवी के उदर में गर्भरूप से उत्पन्न हुआ, तबसे लेकर वह मृगादेवी विजय नामक क्षत्रिय को अनिष्ट, अमनोहर, अप्रिय, अमनोज्ञ – असुन्दर और अप्रिय हो गई। तदनन्तर किसी काल में मध्यरात्रि के समय कुटुम्बचिन्ता से जागती हुई उस मृगादेवी के हृदय में यह अध्य – वसाय उत्पन्न हुआ कि मैं पहले तो विजय क्षत्रिय को इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और अत्यन्त मनगमती, ध्येय, चिन्तनीय, विश्वसनीय, व सम्माननीय थी परन्तु जबसे मेरी कुक्षि में यह गर्भस्थ जीव गर्भ के रूप में उत्पन्न हुआ तबसे विजय क्षत्रिय को मैं अप्रिय यावत् मन से अग्राह्य हो गई हूँ। इस समय विजय क्षत्रिय मेरे नाम तथा गोत्र को ग्रहण करना – अरे स्मरण करना भी नहीं चाहते ! तो फिर दर्शन व परिभोग – भोगविलास की तो बात ही क्या है ? अतः मेरे लिये यही श्रेयस्कर है कि मैं इस गर्भ को अनेक प्रकार की शातना, पातना, गालना, व मारणा से नष्ट कर दूँ। इस प्रकार विचार करके गर्भपात के लिए गर्भ को गिर देने वाली क्षारयुक्त, कड़वी, कसैली, औषधियों का भक्षण तथा पान करती हुई उस गर्भ के शातन, पातन, गालन व मारण करने की ईच्छा करती है। परन्तु वह गर्भ उपर्युक्त सभी उपायों से भी नाश को प्राप्त नहीं हुआ। तब वह मृगादेवी शरीर से श्रान्त, मन से दुःखित तथा शरीर और मन से खिन्न होती हुई ईच्छा न रहते हुए भी विवशता के कारण अत्यन्त दुःख के साथ गर्भ वहन करने लगी। गर्भगत उस बालक की आठ नाड़ियाँ अन्दर की ओर और आठ नाड़ियाँ बाहर की ओर बह रही थी। उनमें प्रथम आठ नाड़ियों से रुधिर बह रहा था। इन सोलह नाड़ियों में से दो नाड़ियाँ कर्ण – विवरों में, दो – दो नाड़ियाँ नेत्र – विवरों में, दो – दो नासिकाविवरों में तथा दो – दो धमनियों में बार – बार पीव व लोहू बहा रही थी। गर्भ में ही उस बालक को भस्मक नामक व्याधि उत्पन्न हो गयी थी, जिसके कारण वह बालक जो कुछ खाता, वह शीघ्र ही भस्म हो जाता था, तब वह तत्काल पीव व शोणित के रूप में परिणत हो जाता था। तदनन्तर वह बालक उस पीव व शोणित को भी खा जाता था। तत्पश्चात् नौ मास परिपूर्ण होने के अनन्तर मृगादेवी ने एक बालक को जन्म दिया जो जन्म से अन्धा और अवयवों की आकृति मात्र रखने वाला था। तदनन्तर विकृत, बेहूदे अंगोपांग वाले तथा अन्धरूप उस बालक को मृगादेवी ने देखा और देखकर भय, त्रास, उद्विग्नता और व्याकुलता को प्राप्त हुई। उसने तत्काल धायमाता को बुलाकर कहा – तुम जाओ और इस बालक को ले जाकर एकान्त में किसी कूड़े – कचरे के ढ़ेर पर फेंक आओ। उस धायमाता ने मृगादेवी के इस कथन को ‘बहुत अच्छा’ कहकर स्वीकार किया और वह जहाँ विजय नरेश थे वहाँ पर आई और दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार कहने लगी – ‘हे स्वामिन ! पूरे नव मास हो जाने पर मृगादेवी ने एक जन्मान्ध यावत् अवयवों की आकृति मात्र रखने वाले बालक को जन्म दिया है। उस हुण्ड बेहूदे अवयववाले, विकृतांग, व जन्मान्ध बालक को देखकर मृगादेवी भयभीत हुई और मुझे बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा – तुम जाओ और इस बालक को ले जाकर एकान्त में किसी कूड़े – कचरे के ढ़ेर पर फेंक आओ। अतः हे स्वामिन ! आप ही मुझे बतलाएं कि मैं उसे एकान्त में ले जाकर फेंक आऊं या नहीं ? उसके बाद वह विजय नरेश उस धायमाता के पास से यह सारा वृत्तान्त सूनकर सम्भ्रान्त होकर जैसे ही बैठे थे उठकर खड़े हो गए। जहाँ रानी मृगादेवी थी, वहाँ आए और मृगादेवी से कहने लगे – ‘हे देवानुप्रिये ! तुम्हारा यह प्रथम गर्भ है, यदि तुम इसको कूड़े – कचरे के ढेर पर फिकवा दोगी तो तुम्हारी भावी प्रजा – सन्तान स्थिर न रहेगी। अतः तुम इस बालक को गुप्त भूमिगृह में रखकर गुप्त रूप से भक्तपानादि के द्वारा इसका पालन – पोषण करो। ऐसा करने से तुम्हारी भावी सन्तति स्थिर रहेगी। तदनन्तर वह मृगादेवी विजय क्षत्रिय के इस कथन को स्वीकृतिसूचक ‘तथेति’ ऐसा कहकर विनम्र भाव से स्वीकार करती है और उस बालक को गुप्त भूमिगृह में स्थापित कर गुप्तरूप से आहारपानादि के द्वारा पालन – पोषण करती हुई समय व्यतीत करने लगी। भगवान महावीर स्वामी फरमाते हैं – हे गौतम ! यह मृगापुत्र दारक अपने पूर्वजन्मोपार्जित कर्मों का प्रत्यक्ष रूप से फलानु – भव करता हुआ इस तरह समय – यापन कर रहा है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se ekkai ratthakude solasahim rogayamkehim abhibhue samane kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Vijayavaddhamane khede simghadaga tiga chaukka chachchara chaummuha mahapahapahesu mahaya-mahaya saddenam ugghosemana-ugghosemana evam vayaha–iham khalu devanuppiya! Ekkaissa ratthakudassa sariragamsi solasa rogayamka paubbhuya, tam jaha–sase java kodhe, tam jo nam ichchhai devanuppiya! Vejjo va vejjaputto va januo va januyaputto va tegichchhio va tegichchhiyaputto va ekkaissa ratthakudassa tesim solasanham rogayamkanam egamavi rogayamkam uvasamittae, tassa nam ekkai ratthakude viulam atthasampa-yanam dalayai. Dochcham pi tachcham pi ugghoseha, ugghosetta eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa java tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam vijayavaddhamane khede imam eyaruvam ugghosanam sochcha nisamma bahave vejja ya vejjaputta ya januya ya januyaputta ya tegichchhiya ya tegichchhiyaputta ya satthakosahatthagaya saehim-saehim gihehimto padinikkhamamti, padinikkhamitta vijayavaddhamanassa khedassa majjhammajjhenam jeneva ekkai -ratthakudassa gihe teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta ekkai ratthakudassa sariragam paramusamti, paramusitta tesim rogayamkanam nidanam puchchhamti, puchchhitta ekkai ratthakudassa bahuhim abbhamgehi ya uvvattanahi ya sinehapanehi ya vamanehi ya vireyanehi ya seyanehi ya avaddahanahi ya avanhanehi ya anuvasanahi ya batthikammehi ya niruhehi ya siravehehi ya tachchha nehi ya pachchhanehi ya sirabatthihi ya tappanahi ya pudapagehi ya chhallihi ya ballihi ya mulehi ya kamdehi ya pattehi ya pupphehi ya phalehi ya biehi ya siliyahi ya guliyahi ya osahehi ya bhesajjehi ya ichchhamti tesim solasanham rogayamkanam egamavi rogayamkam uvasamittae, no cheva nam samchaemti uvasamittae. Tae nam te bahave vejja ya vejjaputta ya januya ya januyaputta ya tegichchhiya ya tegichchhiyaputta ya jahe no samchaemti tesim solasanham rogayamkanam egamavi rogayamkam uvasamittae, tahe samta tamta paritamta jameva disam paubbhuya tameva disam padigaya. Tae nam ekkai ratthakude vejja padiyaikkhie pariyaragaparichatte nivvinnosahabhesajje solasarogayamkehim abhibhue samane rajje ya ratthe ya kose ya kotthagare ya bale ya vahane ya, pure ya amtaure ya muchchhie gadhie giddhe ajjhovavanne rajjam cha rattham cha kosam cha kotthagaram cha balam cha vahanam cha puram cha amteuram cha asaemane patthemane pihemane abhilasamane attaduhattavasatte addhaijjaim vasasayaim paramaum palaitta kalamase kalam kichcha imise rayanappabhae pudhavie ukkosenam sagarovamatthiiesu neraiesu neraiyattae uvavanne. Senam tao anamtaram uvvattitta iheva miyaggame nayare vijayassa khattiyassa miyae devie kuchchhimsi puttattae uvavanne Tae nam tisema miyae devie sarire veyana paubbhuya ujjala viula kakkasa pagadha chamda dukkha tivva durahiyasa jappabhiim cha nam miyaputte darae miyae devie kuchchhimsi gabbhattae uvavanne, tappabhiim cha nam miyadevi vijayassa khattiyassa anittha akamta appiya amanunna amanama jaya yavi hottha. Tae nam tise miyae devie annaya kayai puvvarattavarattakalasamayamsi kudumbajagariyae jagaramanie ime eyaruve ajjhatthie chimtie kappie patthie manogae samkappe samuppanne–evam khalu aham vijayassa khattiyassa puvvim ittha kamta piya manunna manama dhejja vesasiya anumaya asi. Jappabhiim cha nam mama ime gabbhe kuchchhimsi gabbhattae uvavanne, tappabhiim cha nam aham vijayassa khattiyassa anittha akamta appiya amanunna amanama jaya yavi hottha. Nechchhai nam vijae khattie mama namam va goyam va ginhittae, kimamga puna damsanam va paribhogam va? Tam seyam khalu mama eyam gabbham bahuhim gabbhasadanahi ya padanahi ya galanahi ya maranahi ya sadittae va padittae va galittae va marittae va–evam sampehei, sampehetta bahuni kharani ya kaduyani ya tuvarani ya gabbhasadanani ya padanani ya galanani ya maranani ya khayamani ya piyamani ya ichchhai tam gabbham sadittae va padittae va galittae va marittae va, no cheva nam se gabbhe sadai va padai va galai va marai va. Tae nam sa miyadevi jahe no samchaei tam gabbham sadittae va padittae va galittae va marittae va tahe samta tamta paritamta akamiya asayamvasa tam gabbham duhamduhenam parivahai. Tassa nam daragassa gabbhagayassa cheva attha nalio abbhimtarappavahao, attha nalio bahira-ppavahao, attha puyappavahao, attha soniyappavahao, duve duve kannamtaresu, duve duve achchhiamtaresu, duve duve nakkamtaresu, duve duve dhamaniamtaresu abhikkhanam-abhikkhanam puyam cha soniyam cha parisavamanio-parisavamanio cheva chitthamti. Tassa nam daragassa gabbhagayassa cheva aggie namam vahi paubbhue. Je nam se darae aharei, se nam khippameva viddhamsamagachchhai, puyattae ya soniyattae ya parinamai, tam pi ya se puyam cha soniyam cha aharei. Tae nam sa miyadevi annaya kayai navanham masanam bahupadipunnanam daragam payaya–jatiamdhe jatimue jatibahire jatipamgule humde ya vayavve. Natthi nam tassa daragassa hattha va paya va kanna va achchhi va nasa va. Kevalam se tesim amgo-vamganam agiti agitimette. Tae nam sa miyadevi tam daragam humdam amdharuvam pasai, pasitta bhiya tattha tasiya uvvigga samjayabhaya ammaghaim saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam devanuppiya! Tumam eyam daragam egamte ukkurudiyae ujjhahi. Tae nam sa ammadhai miyadevie tahatti eyamattham padisunei, padisunetta jeneva vijae khattie teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–evam khalu sami! Miyadevi navanham masanam bahupadipu-nnanam daragam payaya–jatiamdhe jatimue jatibahire jatipamgule humde ya vayavve. Natthi nam tassa daragassa hattha va paya va kanna va achchhi va nasa va. Kevalam se tesim amgovamganam agiti agitimette. Tae nam sa miyadevi tam daragam humdam amdharuvam pasai, pasitta bhiya tattha tasiya uvviga samjayabhaya mamam saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Eyam daragam egamte ukkurudiyae ujjhahi. Tam samdisaha nam sami! Tam daragam aham egamte ujjhami udahu ma. Tae nam se vijae khattie tise ammadhaie amtie eyamattham sochcha taheva sambhamte utthae utthei, utthetta jeneva miyadevi teneva uvagachchhai, uvagachchhitta miyam devim evam vayasi–devanuppie! Tubbham padhame gabbhe. Tam jai nam tumam eyam egamte ukkurudiyae ujjhasi, to nam tubbham paya no thira bhavissai, to nam tumam eyam daragam rahassiyagamsi bhumidharamsi rahassienam bhattapanena padijagaramani-padijagaramani viharahi, to nam tubbham paya thira bhavissai. Tae nam sa miyadevi vijayassa khattiyassa taha tti eyamattham vinaenam padisunei, padisunetta tam daragam rahassiyamsi bhumidharamsi rahassienam bhattapanenam padijagaramani-padijagaramani viharai. Evam khalu goyama! Miyaputte darae pura porananam duchchinnanam duppadikkamtanam asubhanam pavanam kadanam kammanam pavagam phalavittivisesam pachchanubhavamane viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tadanantara ukta solaha prakara ke bhayamkara rogom se kheda ko prapta vaha ekadi namaka prantadhipati sevakom ko bulakara kahata hai – ‘‘devanupriyo ! Tuma jao aura vijayavarddhamana kheta ke shrimgataka, trika, chatushka, chatvara, mahapatha aura sadharana marga para jakara atyanta umche svarom se isa taraha ghoshana karo – ‘he devanupriyo ! Ekadi prantapati ke sharira mem shvasa, kasa, yavat korha namaka 16 bhayankara rogamtaka utpanna hue haim. Yadi koi vaidya ya vaidyaputra, jnyayaka ya jnyayaka – putra, chikitsaka ya chikitsaka – putra una solaha rogamtakom mem se kisi eka bhi rogamtaka ko upashanta kare to ekadi rashtrakuta usako bahuta sa dhana pradana karega.’ isa prakara do tina bara udghoshana karake meri isa ajnya ke yathartha palana ki mujhe suchana do.’ una kautumbika purushom – sevakom ne adeshanusara karya sampanna karake use suchana di. Tadanantara usa vijayavarddhamana kheta mem isa prakara ki udghoshana ko sunakara tatha avadharana karake aneka vaidya, vaidyaputra, jnyayaka, jnyayakaputra, chikitsaka, chikitsakaputra apane apane shastrakosha ko hatha mem lekara apane apane gharom se nikalakara ekadi prantadhipati ke ghara ate haim. Ekadi rashtrakuta ke sharira ka samsparsha karate haim, nidana ki prichchha karate haim aura ekadi rashtrakuta ke ina solaha rogamtakom mem se kisi eka rogamtaka ko shanta karane ke lie aneka prakara ke abhyamgana, udvartana, snehapana, vamana, virechana, svedana, avadahana, avasnana, anuvasana, niruha, bastikarma, shirovedha, takshana, pratakshana, shirobasti, tarpana, putapaka, chhalli, mulakanda, shilika, gutika, aushadha aura bheshajya adi ke prayoga se prayatna karate haim parantu uparyukta aneka prakara ke prayogatmaka upacharom se ina solaha rogom mem se kisi eka roga ko bhi upashanta karane mem samartha na ho sake ! Jaba una vaidyom va vaidyaputradi se una 16 rogantakom mem se eka bhi roga ka upashamana na ho saka taba ve vaidya va vaidyaputradi shranta tanta, tatha paritanta se khedita hokara jidhara se ae the udhara hi chala die. Isa prakara vaidyom ke dvara pratyakhyata hokara sevakom dvara parityakta hokara aushadha aura bhaishajya se nirvinna virakta, solaha rogamtakom se pareshana, rajya, rashtra, yavat antahpura – ranavasa mem murchchhita – asakta evam rajya va rashtra ka asvadana, prarthana, spriha aura abhilasha karata hua ekadi prantapati vyathita, dukhartta aura vashartta hone se paratamtra jivana vyatita karake 250 varsha ki sampurna ayu ko bhogakara yathasamaya kala karake isa ratnaprabha prithvi mem utkrishta eka sagaropama ki sthiti vale narakom mem narakarupa se utpanna hua. Tadanantara vaha ekadi ka jiva bhavasthiti sampurna hone para naraka se nikalate hi isa mrigagrama nagara mem vijaya kshatriya ki mrigadevi nama ki rani ki kukshi mem putrarupa mem utpanna hua. Mrigadevi ke udara mem utpanna hone para mrigadevi ke sharira mem ujjvala yavat jvalanta va jajvalyamana vedana utpanna hui. Jisa dina se mrigaputra balaka mrigadevi ke udara mem garbharupa se utpanna hua, tabase lekara vaha mrigadevi vijaya namaka kshatriya ko anishta, amanohara, apriya, amanojnya – asundara aura apriya ho gai. Tadanantara kisi kala mem madhyaratri ke samaya kutumbachinta se jagati hui usa mrigadevi ke hridaya mem yaha adhya – vasaya utpanna hua ki maim pahale to vijaya kshatriya ko ishta, kanta, priya, manojnya aura atyanta managamati, dhyeya, chintaniya, vishvasaniya, va sammananiya thi parantu jabase meri kukshi mem yaha garbhastha jiva garbha ke rupa mem utpanna hua tabase vijaya kshatriya ko maim apriya yavat mana se agrahya ho gai hum. Isa samaya vijaya kshatriya mere nama tatha gotra ko grahana karana – are smarana karana bhi nahim chahate ! To phira darshana va paribhoga – bhogavilasa ki to bata hi kya hai\? Atah mere liye yahi shreyaskara hai ki maim isa garbha ko aneka prakara ki shatana, patana, galana, va marana se nashta kara dum. Isa prakara vichara karake garbhapata ke lie garbha ko gira dene vali ksharayukta, karavi, kasaili, aushadhiyom ka bhakshana tatha pana karati hui usa garbha ke shatana, patana, galana va marana karane ki ichchha karati hai. Parantu vaha garbha uparyukta sabhi upayom se bhi nasha ko prapta nahim hua. Taba vaha mrigadevi sharira se shranta, mana se duhkhita tatha sharira aura mana se khinna hoti hui ichchha na rahate hue bhi vivashata ke karana atyanta duhkha ke satha garbha vahana karane lagi. Garbhagata usa balaka ki atha nariyam andara ki ora aura atha nariyam bahara ki ora baha rahi thi. Unamem prathama atha nariyom se rudhira baha raha tha. Ina solaha nariyom mem se do nariyam karna – vivarom mem, do – do nariyam netra – vivarom mem, do – do nasikavivarom mem tatha do – do dhamaniyom mem bara – bara piva va lohu baha rahi thi. Garbha mem hi usa balaka ko bhasmaka namaka vyadhi utpanna ho gayi thi, jisake karana vaha balaka jo kuchha khata, vaha shighra hi bhasma ho jata tha, taba vaha tatkala piva va shonita ke rupa mem parinata ho jata tha. Tadanantara vaha balaka usa piva va shonita ko bhi kha jata tha. Tatpashchat nau masa paripurna hone ke anantara mrigadevi ne eka balaka ko janma diya jo janma se andha aura avayavom ki akriti matra rakhane vala tha. Tadanantara vikrita, behude amgopamga vale tatha andharupa usa balaka ko mrigadevi ne dekha aura dekhakara bhaya, trasa, udvignata aura vyakulata ko prapta hui. Usane tatkala dhayamata ko bulakara kaha – tuma jao aura isa balaka ko le jakara ekanta mem kisi kure – kachare ke rhera para phemka ao. Usa dhayamata ne mrigadevi ke isa kathana ko ‘bahuta achchha’ kahakara svikara kiya aura vaha jaham vijaya naresha the vaham para ai aura donom hatha jorakara isa prakara kahane lagi – ‘he svamina ! Pure nava masa ho jane para mrigadevi ne eka janmandha yavat avayavom ki akriti matra rakhane vale balaka ko janma diya hai. Usa hunda behude avayavavale, vikritamga, va janmandha balaka ko dekhakara mrigadevi bhayabhita hui aura mujhe bulaya. Bulakara isa prakara kaha – tuma jao aura isa balaka ko le jakara ekanta mem kisi kure – kachare ke rhera para phemka ao. Atah he svamina ! Apa hi mujhe batalaem ki maim use ekanta mem le jakara phemka aum ya nahim\? Usake bada vaha vijaya naresha usa dhayamata ke pasa se yaha sara vrittanta sunakara sambhranta hokara jaise hi baithe the uthakara khare ho gae. Jaham rani mrigadevi thi, vaham ae aura mrigadevi se kahane lage – ‘he devanupriye ! Tumhara yaha prathama garbha hai, yadi tuma isako kure – kachare ke dhera para phikava dogi to tumhari bhavi praja – santana sthira na rahegi. Atah tuma isa balaka ko gupta bhumigriha mem rakhakara gupta rupa se bhaktapanadi ke dvara isaka palana – poshana karo. Aisa karane se tumhari bhavi santati sthira rahegi. Tadanantara vaha mrigadevi vijaya kshatriya ke isa kathana ko svikritisuchaka ‘tatheti’ aisa kahakara vinamra bhava se svikara karati hai aura usa balaka ko gupta bhumigriha mem sthapita kara guptarupa se aharapanadi ke dvara palana – poshana karati hui samaya vyatita karane lagi. Bhagavana mahavira svami pharamate haim – he gautama ! Yaha mrigaputra daraka apane purvajanmoparjita karmom ka pratyaksha rupa se phalanu – bhava karata hua isa taraha samaya – yapana kara raha hai. |