Sutra Navigation: Vipakasutra ( विपाकश्रुतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005506 | ||
Scripture Name( English ): | Vipakasutra | Translated Scripture Name : | विपाकश्रुतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 6 | Category : | Ang-11 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से भगवं गोयमे तं जाइअंधं पुरिसं पासइ, पासित्ता जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्न कोऊहल्ले उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी– अत्थि णं भंते! केइ पुरिसे जाइअंधे जायअंधारूवे? हंता अत्थि। कहं णं भंते! से पुरिसे जाइअंधे जायअंधारूवे? एवं खलु गोयमा! इहेव मियग्गामे नयरे विजयस्स खत्तियस्स पुत्ते मियादेवीए अत्तए मियापुत्ते नामं दारए जाइअंधे जायअंधारूवे। नत्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी वा नासा वा केवलं से तेसिं अंगोवंगाणं आगिती आगितिमेत्ते। तए णं सा मियादेवी तं मियापुत्तं दारगं रहस्सियंसि भूमिधरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ। तए णं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! अहं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मियापुत्तं दारगं पासित्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! तए णं से भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाण हट्ठतुट्ठे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतर-पलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-सोहेमाणे जेणेव मियग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मियग्गामं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव मियादेवीए गिहे तेणेव उवागच्छइ। तए णं सा मियादेवी भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस विसप्पमाणहियया आसनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता सत्तट्ठपयाइं अनुगच्छइ, अनुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेइ, वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–संदिसंतु णं देवानुप्पिया! किमागमणप्पओयणं? तए णं से भगवं गोयमे मियं देविं एवं वयासी–अहं णं देवाणुप्पिए! तव पुत्तं पासिउं हव्वमागए। तए णं सा मियादेवी मियापुत्तस्स दारगस्स अणुमग्गजायए चत्तारि पुत्ते सव्वालंकारविभूसिए करेइ, करेत्ता भगवओ गोयमस्स पाएसु पाडेइ, पाडेत्ता एवं वयासी–एए णं भंते! मम पुत्ते पासह। तए णं से भगवं गोयमे मियं देविं एवं वयासी–नो खलु देवाणुप्पिए! अहं एए तव पुत्ते पासिउं हव्वमागए। तत्थ णं जे से तव जेट्ठे पुत्ते मियापुत्ते दारए जाइअंधे जायअंधारूवे, जं णं तुमं रहस्सियंसि भूमिधरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरसि, तं णं अहं पासिउं हव्वमागए। तए णं सा मियादेवी भगवं गोयमं एवं वयासी–से के णं गोयमा! से तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा, जेणं एसमट्ठे मम ताव रहस्सीकए तुब्भं हव्वमक्खाए, जओ णं तुब्भे जाणह? तए णं भगवं गोयमे मियं देविं एवं वयासी–एवं खलु देवाणुप्पिए! मम धम्मायरिए समणे भगवं महावीरे तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा, जेणं एसमट्ठे तव ताव रहस्सीकए मम हव्वमक्खाते, जओ णं अहं जाणामि। जावं च णं मियादेवी भगवया गोयमेण सद्धिं एयमट्ठं संलवइ, तावं च णं मियापुत्तस्स दारगस्स भत्तवेला जाया यावि होत्था। तए णं सा मियादेवी भगवं गोयमं एवं वयासी–तुब्भे णं भंते! इहं चेव चिट्ठह, जो णं अहं तुब्भं मियापुत्तं दारगं उवदसेमि त्ति कट्टु जेणेव भत्तघरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वत्थपरियट्टयं करेइ, करेत्ता कट्ठसगडियं गिण्हइ, गिण्हित्ता विउलस्स असण पाण खाइम साइमस्स भरेइ, भरेत्ता तं कट्ठसगडियं अनुकड्ढमाणी-अनुकड्ढमाणी जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासी–एह णं भंते! तुब्भे मए सद्धिं अनुगच्छह, जा णं अहं तुब्भं मियापुत्त दारगं उव-दंसेमि। तए णं से भगवं गोयमे मियं देविं पिट्ठओ समणुगच्छइ। तए णं सा मियादेवी तं कट्ठसगडियं अनुकड्ढमाणी-अनुकड्ढमाणी जेणेव भूमिधरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चउप्पुडणं वत्थेणं मुहं बंधमाणी भगवं गोयमं एवं वयासी–तुब्भे वि णं भंते! मुहपोत्तियाए मुहं बंधह। तए णं से भगवं गोयमे मियादेवीए एवं वुत्ते समाणे मुहपोत्तियाए मुहं बंधेइ। तए णं सा मियादेवी परंमुही भूमिधरस्स दुवारं विहाडेइ। तए णं गंधे निग्गच्छइ, से जहानामए–अहिमडे इ वा गोमडे इ वा सुणहमडे इ वा मज्जारमडे इ वा मनुस्समडे इ वा महिसमडे इ वा मूसगमडे इ वा आसमडे इ वा हत्थिमडे इ वा सीहमडे इ वा वग्घमडे इ वा विगमडे इ वा दीविगमडे इ वा मय कुहिय विणट्ठ दुरभिवावण्ण दुब्भिगंधे किमिजालाउलसंसत्ते असुइ विलीण विगय बीभत्सदरिसणिज्जे भवेयारूवे सिया? नो इणट्ठे समट्ठे। एत्तो अणिट्ठतराए चेव अकंततराए चेव अप्पियतराए चेव अमणुण्णतराए चेव अमणामतराए चेव गंधे पन्नत्ते। तए णं से मियापुत्ते दारए तस्स विउलस्स असण पाण खाइम साइमस्स गंधेणं अभिभूए समाणे तंसि विउलंसि असण पाण खाइम साइमंसि मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे तं विउलं असण पाण खाइम साइमं आसएणं आहारेइ, आहारेत्ता खिप्पामेव विद्धंसेइ, विद्धंसेत्ता तओ पच्छा पूयत्ताए य सोणियत्ताए य पारिणामेइ, तं पि य णं पूयं च सोणियं च आहारेइ। तए णं भगवओ गोयमस्स तं मियापुत्तं दारगं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अहो णं इमे दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फल-वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा। पचक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेदिति त्ति कट्टु मियं देविं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता मियाए देवीए गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता मियग्गामं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु अहं तुब्भेहिं अब्भणुन्नाए समाणे मियग्गामं नयरं मज्झं-मज्झेणं अनुप्पविसामि, जेणेव मियाए देवीए गिहे तेणेव उवागए। तए णं सा मियादेवी ममं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठा, तं चेव सव्वं जाव पूयं च सोणियं च आहारेइ। तए णं मम इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अहो णं इमे दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान महावीर के प्रधान शिष्य इन्द्रभूति नाम के अनगार भी वहाँ बिराजमान थे। गौतमस्वामी ने उस जन्मान्ध पुरुष को देखा। जातश्रद्ध गौतम इस प्रकार बोले – ‘अहो भगवन् ! क्या कोई ऐसा पुरुष भी है कि जो जन्मान्ध व जन्मान्धरूप हो ?’ भगवान ने कहा – ‘हाँ, है !’ ‘हे प्रभो ! वह पुरुष कहाँ है ?’ भगवान ने कहा – ‘हे गौतम ! इसी मृगाग्राम नगर में विजयनरेश का पुत्र और मृगादेवी का आत्मज मृगा – पुत्र नाम का बालक है, जो जन्मतः अन्धा तथा जन्मान्धरूप है। उसके हाथ, पैर, चक्षु आदि अङ्गोपाङ्ग भी नहीं है। मात्र उन अङ्गोंपाङ्गों के आकार ही हैं। उसकी माता मृगादेवी उसका पालन – पोषण सावधानी पूर्वक छिपे – छिपे कर रही है। तदनन्तर भगवान गौतम ने भगवान महावीर स्वामी के चरणों में वन्दन – नमस्कार किया। उनसे बिनती की – ‘हे प्रभो ! यदि आपकी अनुज्ञा प्राप्त हो तो मैं मृगापुत्र को देखना चाहता हूँ।’ भगवान ने फरमाया – ‘गौतम ! जैसे तुम्हें सुख उपजे वैसा करो।’ तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर के द्वारा आज्ञा प्राप्त कर प्रसन्न व सन्तुष्ट हुए श्री गौतमस्वामी भगवान के पास से नीकले। विवेकपूर्वक भगवान गौतम स्वामी जहाँ मृगाग्राम नगर था वहाँ आकर नगर में प्रवेश किया। क्रमशः जहाँ मृगादेवी का घर था, गौतम स्वामी वहाँ पहुँच गए। तदनन्तर उस मृगादेवी ने भगवान गौतमस्वामी को आते हुए देखा और देखकर हर्षित प्रमुदित हुई, इस प्रकार कहने लगी – ‘भगवन् ! आपके पधारने का क्या प्रयोजन है ?’ गौतम स्वामी ने कहा – ‘हे देवानुप्रिये ! मैं तुम्हारे पुत्र को देखने आया हूँ !’ तब मृगादेवी ने मृगापुत्र के पश्चात् उत्पन्न हुए चार पुत्रों को वस्त्र – भूषणादि से अलंकृत करके गौतमस्वामी के चरणों में रखा और कहा – ‘भगवन् ! ये मेरे पुत्र हैं; इन्हें आप देख लीजिए।’ भगवान गौतम मृगादेवी से बोले – हे देवानुप्रिये ! मैं तुम्हारे इन पुत्रों को देखने के लिए यहाँ नहीं आया हूँ, किन्तु तुम्हारा जो ज्येष्ठ पुत्र मृगापुत्र है, जो जन्मान्ध व जन्मान्धरूप है, तथा जिसको तुमने एकान्त भूमिगृह में गुप्तरूप से सावधानी पूर्वक रखा है और छिपे – छिपे खानपान आदि के द्वारा जिसके पालन – पोषण में सावधान रह रही हो, उसी को देखने मैं यहाँ आया हूँ। यह सुनकर मृगादेवी ने गौतम से निवेदन किया कि – वे कौन तथारूप ऐसे ज्ञानी व तपस्वी हैं, जिन्होंने मेरे द्वारा एकान्त गुप्त रखी यह बात आपको यथार्थरूप में बता दी। जिससे आपने यह गुप्त रहस्य सरलता से जान लिया ? तब भगवान गौतम स्वामी ने कहा – हे भद्रे ! मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान महावीर ने ही मुझे यह रहस्य बताया है। जिस समय मृगादेवी भगवान गौतमस्वामी के साथ वार्तालाप कर रही थी उसी समय मृगापुत्र दारक के भोजन का समय हो गया। तब मृगादेवी ने भगवान गौतमस्वामी से निवेदन किया – ‘भगवन् ! आप यहीं ठहरीये, मैं अभी मृगापुत्र बालक को दिखलाती हूँ।’ इतना कहकर वह जहाँ भोजनालय था, वहाँ आकर वस्त्र – परिवर्तन करती है। लकड़े की गाड़ी ग्रहण करती है और उसमें योग्य परिमाण में अशन, पान, खादिम व स्वादिम आहार भरती है। तदनन्तर उस काष्ठ – शकट को खींचती हुई जहाँ भगवान गौतमस्वामी थे वहाँ आकर निवेदन करती है – ‘प्रभो ! आप मेरे पीछे पधारें। मैं आपको मृगापुत्र दारक बताती हूँ।’ गौतमस्वामी मृगादेवी के पीछे – पीछे चलने लगे। तत्पश्चात् वह मृगादेवी उस काष्ठ – शकट को खींचती – खींचती भूमिगृह आकर चार पड़ वाले वस्त्र से मुँह को बाँधकर भगवान गौतमस्वामी से निवेदन करने लगी – ‘हे भगवन् ! आप भी मुँह को बाँध लें।’ मृगादेवी द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर भगवान गौतमस्वामी ने भी मुख – वस्त्रिका से मुख को बाँध लिया। तत्पश्चात् मृगादेवी ने पराङ्मुख होकर जब उस भूमिगृह के दरवाजे को खोला उसमें से दुर्गन्ध नीकलने लगी। वह गन्ध मरे हुए सर्प यावत् उससे भी अधिक अनिष्ट थी। तदनन्तर उस महान अशन, पान, खादिम, स्वादिम के सुगन्ध से आकृष्ट व मूर्च्छित हुए उस मृगापुत्र ने मुख से आहार किया। शीघ्र ही वह नष्ट हो गया, वह आहार तत्काल पीव व रुधिर के रूप में परिवर्तित हो गया। मृगापुत्र दारक ने पीव व रुधिर रूप में परिवर्तित उस आहार का वमन कर दिया। वह बालक अपने ही द्वारा वमन किये हुए उस पीव व रुधिर को भी खा गया। मृगापुत्र दारक की ऐसी दशा को देखकर भगवान गौतमस्वामी के मन में ये विकल्प उत्पन्न हुए – अहो ! यह बालक पूर्वजन्मों के दुश्चीर्ण व दुष्प्रतिक्रान्त अशुभ पापकर्मों के पापरूप फल को पा रहा है। नरक व नारकी तो मैंने नहीं देखे, परन्तु यह मृगापुत्र सचमुच नारकीय वेदनाओं का अनुभव करता हुआ प्रतीत हो रहा है। इन्हीं विचारों से आक्रान्त होते हुए भगवान गौतम ने मृगादेवी से पूछकर कि अब मैं जा रहा हूँ, उसके घर से प्रस्थान किया। मृगाग्राम नगर के मध्यभाग से चलकर जहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी बिराजमान थे; वहाँ पधारकर प्रदक्षिणा करके वन्दन तथा नमस्कार किया और इस प्रकार बोले – भगवन् ! आपश्री से आज्ञा प्राप्त करके मृगाग्राम नगर के मध्यभाग से चलता हुआ जहाँ मृगादेवी का घर था वहाँ में पहुँचा। मुझे आते हुए देखकर मृगादेवी हृष्ट तुष्ट हुई यावत् पीव व शोणित – रक्त का आहार करते हुए मृगापुत्र को देखकर मेरे मन में यह विचार उत्पन्न हुआ – अहह ! यह बालक पूर्वजन्मोपार्जित महापापकर्मों का फल भोगता हुआ बीभत्स जीवन बिता रहा है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa jetthe amtevasi imdabhui namam anagare java samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam se bhagavam goyame tam jaiamdham purisam pasai, pasitta jayasaddhe jayasamsae jayakouhalle, uppannasaddhe uppannasamsae uppannakouhalle, samjayasaddhe samjayasamsae samjayakouhalle, samuppannasaddhe samuppannasamsae samuppanna kouhalle utthae utthei, utthetta jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta nachchasanne naidure sussusamane namamsamane abhimuhe vinaenam pamjaliude pajjuvasamane evam vayasi– atthi nam bhamte! Kei purise jaiamdhe jayaamdharuve? Hamta atthi. Kaham nam bhamte! Se purise jaiamdhe jayaamdharuve? Evam khalu goyama! Iheva miyaggame nayare vijayassa khattiyassa putte miyadevie attae miyaputte namam darae jaiamdhe jayaamdharuve. Natthi nam tassa daragassa hattha va paya va kanna va achchhi va nasa va kevalam se tesim amgovamganam agiti agitimette. Tae nam sa miyadevi tam miyaputtam daragam rahassiyamsi bhumidharamsi rahassienam bhattapanenam padijagaramani-padijagaramani viharai. Tae nam se bhagavam goyame samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–ichchhami nam bhamte! Aham tubbhehim abbhanunnae samane miyaputtam daragam pasittae. Ahasuham devanuppiya! Tae nam se bhagavam goyame samanenam bhagavaya mahavirenam abbhanunnae samana hatthatutthe samanassa bhagavao mahavirassa amtiyao padinikkhamai, padinikkhamitta aturiyamachavalamasambhamte jugamtara-paloyanae ditthie purao riyam sohemane-sohemane jeneva miyaggame nayare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta miyaggamam nayaram majjhammajjhenam jeneva miyadevie gihe teneva uvagachchhai. Tae nam sa miyadevi bhagavam goyamam ejjamanam pasai, pasitta hatthatuttha chittamanamdiya piimana paramasomanassiya harisavasa visappamanahiyaya asanao abbhutthei, abbhutthetta sattatthapayaim anugachchhai, anugachchhitta tikkhutto ayahina payahinam karei, vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–samdisamtu nam devanuppiya! Kimagamanappaoyanam? Tae nam se bhagavam goyame miyam devim evam vayasi–aham nam devanuppie! Tava puttam pasium havvamagae. Tae nam sa miyadevi miyaputtassa daragassa anumaggajayae chattari putte savvalamkaravibhusie karei, karetta bhagavao goyamassa paesu padei, padetta evam vayasi–ee nam bhamte! Mama putte pasaha. Tae nam se bhagavam goyame miyam devim evam vayasi–no khalu devanuppie! Aham ee tava putte pasium havvamagae. Tattha nam je se tava jetthe putte miyaputte darae jaiamdhe jayaamdharuve, jam nam tumam rahassiyamsi bhumidharamsi rahassienam bhattapanenam padijagaramani-padijagaramani viharasi, tam nam aham pasium havvamagae. Tae nam sa miyadevi bhagavam goyamam evam vayasi–se ke nam goyama! Se taharuve nani va tavassi va, jenam esamatthe mama tava rahassikae tubbham havvamakkhae, jao nam tubbhe janaha? Tae nam bhagavam goyame miyam devim evam vayasi–evam khalu devanuppie! Mama dhammayarie samane bhagavam mahavire taharuve nani va tavassi va, jenam esamatthe tava tava rahassikae mama havvamakkhate, jao nam aham janami. Javam cha nam miyadevi bhagavaya goyamena saddhim eyamattham samlavai, tavam cha nam miyaputtassa daragassa bhattavela jaya yavi hottha. Tae nam sa miyadevi bhagavam goyamam evam vayasi–tubbhe nam bhamte! Iham cheva chitthaha, jo nam aham tubbham miyaputtam daragam uvadasemi tti kattu jeneva bhattagharae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta vatthapariyattayam karei, karetta katthasagadiyam ginhai, ginhitta viulassa asana pana khaima saimassa bharei, bharetta tam katthasagadiyam anukaddhamani-anukaddhamani jeneva bhagavam goyame teneva uvagachchhai, uvagachchhitta bhagavam goyamam evam vayasi–eha nam bhamte! Tubbhe mae saddhim anugachchhaha, ja nam aham tubbham miyaputta daragam uva-damsemi. Tae nam se bhagavam goyame miyam devim pitthao samanugachchhai. Tae nam sa miyadevi tam katthasagadiyam anukaddhamani-anukaddhamani jeneva bhumidharae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta chauppudanam vatthenam muham bamdhamani bhagavam goyamam evam vayasi–tubbhe vi nam bhamte! Muhapottiyae muham bamdhaha. Tae nam se bhagavam goyame miyadevie evam vutte samane muhapottiyae muham bamdhei. Tae nam sa miyadevi parammuhi bhumidharassa duvaram vihadei. Tae nam gamdhe niggachchhai, se jahanamae–ahimade i va gomade i va sunahamade i va majjaramade i va manussamade i va mahisamade i va musagamade i va asamade i va hatthimade i va sihamade i va vagghamade i va vigamade i va divigamade i va maya kuhiya vinattha durabhivavanna dubbhigamdhe kimijalaulasamsatte asui vilina vigaya bibhatsadarisanijje bhaveyaruve siya? No inatthe samatthe. Etto anitthatarae cheva akamtatarae cheva appiyatarae cheva amanunnatarae cheva amanamatarae cheva gamdhe pannatte. Tae nam se miyaputte darae tassa viulassa asana pana khaima saimassa gamdhenam abhibhue samane tamsi viulamsi asana pana khaima saimamsi muchchhie gadhie giddhe ajjhovavanne tam viulam asana pana khaima saimam asaenam aharei, aharetta khippameva viddhamsei, viddhamsetta tao pachchha puyattae ya soniyattae ya parinamei, tam pi ya nam puyam cha soniyam cha aharei. Tae nam bhagavao goyamassa tam miyaputtam daragam pasitta ayameyaruve ajjhatthie chimtie kappie patthie manogae samkappe samuppajjittha–aho nam ime darae pura porananam duchchinnanam duppadikkamtanam asubhanam pavanam kadanam kammanam pavagam phala-vittivisesam pachchanubhavamane viharai. Na me dittha naraga va neraiya va. Pachakkham khalu ayam purise nirayapadiruviyam veyanam vediti tti kattu miyam devim apuchchhai, apuchchhitta miyae devie gihao padinikkhamai, padinikkhamitta miyaggamam nayaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–evam khalu aham tubbhehim abbhanunnae samane miyaggamam nayaram majjham-majjhenam anuppavisami, jeneva miyae devie gihe teneva uvagae. Tae nam sa miyadevi mamam ejjamanam pasai, pasitta hattha, tam cheva savvam java puyam cha soniyam cha aharei. Tae nam mama imeyaruve ajjhatthie chimtie kappie patthie manogae samkappe samuppajjittha–aho nam ime darae pura porananam duchchinnanam duppadikkamtanam asubhanam pavanam kadanam kammanam pavagam phalavittivisesam pachchanubhavamane viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala tatha usa samaya mem shramana bhagavana mahavira ke pradhana shishya indrabhuti nama ke anagara bhi vaham birajamana the. Gautamasvami ne usa janmandha purusha ko dekha. Jatashraddha gautama isa prakara bole – ‘aho bhagavan ! Kya koi aisa purusha bhi hai ki jo janmandha va janmandharupa ho\?’ bhagavana ne kaha – ‘ham, hai !’ ‘he prabho ! Vaha purusha kaham hai\?’ bhagavana ne kaha – ‘he gautama ! Isi mrigagrama nagara mem vijayanaresha ka putra aura mrigadevi ka atmaja mriga – putra nama ka balaka hai, jo janmatah andha tatha janmandharupa hai. Usake hatha, paira, chakshu adi angopanga bhi nahim hai. Matra una angompangom ke akara hi haim. Usaki mata mrigadevi usaka palana – poshana savadhani purvaka chhipe – chhipe kara rahi hai. Tadanantara bhagavana gautama ne bhagavana mahavira svami ke charanom mem vandana – namaskara kiya. Unase binati ki – ‘he prabho ! Yadi apaki anujnya prapta ho to maim mrigaputra ko dekhana chahata hum.’ bhagavana ne pharamaya – ‘gautama ! Jaise tumhem sukha upaje vaisa karo.’ Tatpashchat shramana bhagavana mahavira ke dvara ajnya prapta kara prasanna va santushta hue shri gautamasvami bhagavana ke pasa se nikale. Vivekapurvaka bhagavana gautama svami jaham mrigagrama nagara tha vaham akara nagara mem pravesha kiya. Kramashah jaham mrigadevi ka ghara tha, gautama svami vaham pahumcha gae. Tadanantara usa mrigadevi ne bhagavana gautamasvami ko ate hue dekha aura dekhakara harshita pramudita hui, isa prakara kahane lagi – ‘bhagavan ! Apake padharane ka kya prayojana hai\?’ gautama svami ne kaha – ‘he devanupriye ! Maim tumhare putra ko dekhane aya hum !’ taba mrigadevi ne mrigaputra ke pashchat utpanna hue chara putrom ko vastra – bhushanadi se alamkrita karake gautamasvami ke charanom mem rakha aura kaha – ‘bhagavan ! Ye mere putra haim; inhem apa dekha lijie.’ bhagavana gautama mrigadevi se bole – he devanupriye ! Maim tumhare ina putrom ko dekhane ke lie yaham nahim aya hum, kintu tumhara jo jyeshtha putra mrigaputra hai, jo janmandha va janmandharupa hai, tatha jisako tumane ekanta bhumigriha mem guptarupa se savadhani purvaka rakha hai aura chhipe – chhipe khanapana adi ke dvara jisake palana – poshana mem savadhana raha rahi ho, usi ko dekhane maim yaham aya hum. Yaha sunakara mrigadevi ne gautama se nivedana kiya ki – ve kauna tatharupa aise jnyani va tapasvi haim, jinhomne mere dvara ekanta gupta rakhi yaha bata apako yathartharupa mem bata di. Jisase apane yaha gupta rahasya saralata se jana liya\? Taba bhagavana gautama svami ne kaha – he bhadre ! Mere dharmacharya shramana bhagavana mahavira ne hi mujhe yaha rahasya bataya hai. Jisa samaya mrigadevi bhagavana gautamasvami ke satha vartalapa kara rahi thi usi samaya mrigaputra daraka ke bhojana ka samaya ho gaya. Taba mrigadevi ne bhagavana gautamasvami se nivedana kiya – ‘bhagavan ! Apa yahim thahariye, maim abhi mrigaputra balaka ko dikhalati hum.’ itana kahakara vaha jaham bhojanalaya tha, vaham akara vastra – parivartana karati hai. Lakare ki gari grahana karati hai aura usamem yogya parimana mem ashana, pana, khadima va svadima ahara bharati hai. Tadanantara usa kashtha – shakata ko khimchati hui jaham bhagavana gautamasvami the vaham akara nivedana karati hai – ‘prabho ! Apa mere pichhe padharem. Maim apako mrigaputra daraka batati hum.’ gautamasvami mrigadevi ke pichhe – pichhe chalane lage. Tatpashchat vaha mrigadevi usa kashtha – shakata ko khimchati – khimchati bhumigriha akara chara para vale vastra se mumha ko bamdhakara bhagavana gautamasvami se nivedana karane lagi – ‘he bhagavan ! Apa bhi mumha ko bamdha lem.’ mrigadevi dvara isa prakara kahe jane para bhagavana gautamasvami ne bhi mukha – vastrika se mukha ko bamdha liya. Tatpashchat mrigadevi ne parangmukha hokara jaba usa bhumigriha ke daravaje ko khola usamem se durgandha nikalane lagi. Vaha gandha mare hue sarpa yavat usase bhi adhika anishta thi. Tadanantara usa mahana ashana, pana, khadima, svadima ke sugandha se akrishta va murchchhita hue usa mrigaputra ne mukha se ahara kiya. Shighra hi vaha nashta ho gaya, vaha ahara tatkala piva va rudhira ke rupa mem parivartita ho gaya. Mrigaputra daraka ne piva va rudhira rupa mem parivartita usa ahara ka vamana kara diya. Vaha balaka apane hi dvara vamana kiye hue usa piva va rudhira ko bhi kha gaya. Mrigaputra daraka ki aisi dasha ko dekhakara bhagavana gautamasvami ke mana mem ye vikalpa utpanna hue – aho ! Yaha balaka purvajanmom ke dushchirna va dushpratikranta ashubha papakarmom ke paparupa phala ko pa raha hai. Naraka va naraki to maimne nahim dekhe, parantu yaha mrigaputra sachamucha narakiya vedanaom ka anubhava karata hua pratita ho raha hai. Inhim vicharom se akranta hote hue bhagavana gautama ne mrigadevi se puchhakara ki aba maim ja raha hum, usake ghara se prasthana kiya. Mrigagrama nagara ke madhyabhaga se chalakara jaham shramana bhagavana mahavira svami birajamana the; vaham padharakara pradakshina karake vandana tatha namaskara kiya aura isa prakara bole – bhagavan ! Apashri se ajnya prapta karake mrigagrama nagara ke madhyabhaga se chalata hua jaham mrigadevi ka ghara tha vaham mem pahumcha. Mujhe ate hue dekhakara mrigadevi hrishta tushta hui yavat piva va shonita – rakta ka ahara karate hue mrigaputra ko dekhakara mere mana mem yaha vichara utpanna hua – ahaha ! Yaha balaka purvajanmoparjita mahapapakarmom ka phala bhogata hua bibhatsa jivana bita raha hai. |