Sutra Navigation: Upasakdashang ( उपासक दशांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005125 | ||
Scripture Name( English ): | Upasakdashang | Translated Scripture Name : | उपासक दशांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-२ कामदेव |
Translated Chapter : |
अध्ययन-२ कामदेव |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 25 | Category : | Ang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से दिव्वे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभि त्तए वा विपरिणामेत्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनि-क्खमित्ता दिव्वं सप्परूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं देवरूवं विउव्वइ–हार-विराइय-वच्छं कडग-तुडिय-थंभियभुयं अंगय-कुंडल-मट्ठ-गंड-कण्णपीढधारिं विचित्तहत्थाभरणं विचित्त-माला-मउलि-मउडं कल्लाणग-पवरवत्थपरिहियं कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणं भासुरबोंदिं पलंब-वनमालधरं दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं रूवेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघाएणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुईए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दसदिसाओ उज्जोवेमाणं पभासेमाणं पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं–दिव्वं देवरूवं विउव्वित्ता कामदेवस्स समणोवासयस्स पोसहसालं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिंखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी– हंभो! कामदेवा! समणोवासया! धण्णेसि णं तुमं देवानुप्पिया! पुण्णेसि णं तुमं देवानुप्पिया! कयत्थेसि णं तुमं देवानुप्पिया! कयलक्खणेसि णं तुमं देवानुप्पिया! सुलद्धे णं तव देवानुप्पिया! मानुस्सए जम्मजीवियफले, जस्स णं तव निग्गंथे पावयणे इमेयारूवे पडिवत्ती लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया। एवं खलु देवानुप्पिया! सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासणे दाहिणड्ढलोगाहिवई बत्तीस-विमान-सयसहस्साहिवई एरावणवाहणे सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे आलइयमालमउडे नव-हेम-चारु-चित्त-चंचल-कुंडल-विलि-हिज्जमाणगंडे भासुरबोंदी पलंबवणमाले सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे सभाए सोहम्माए सक्कंसि सीहासणंसि चउरासीईए सामाणियसाहस्सीणं तायत्तीसाए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अनियाणं, सत्तण्हं अनियाहिवईणं, चउण्हं चउरासीणं आयरक्ख-देवसाहस्सीणं, अन्नेसिं च बहूणं देवाण य देवीण य मज्झगए एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पन्नवेइ, एवं परूवेइ– एवं खलु देवा! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए कामदेवे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए बंभचारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्तिं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। नो खलु से सक्के केणइ देवेण वा दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा। तए णं अहं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो एयमट्ठं असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे इहं हव्वमागए। तं अहो णं देवानुप्पियाणं इड्ढी जुई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए। तं दिट्ठा णं देवानुप्पियाणं इड्ढी जुई बलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए। तं खामेमि णं देवानुप्पिया! खमंतु णं देवानुप्पिया! खंतुमरिहंति णं देवानुप्पिया! नाइं भुज्जो करणयाए त्ति कट्टु पायवडिए पंजलिउडे एयमट्ठं भुज्जो-भुज्जो खामेइ, खामेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए, तामेव दिसं पडिगए। तए णं से कामदेवे समणोवासए निरुवसग्गमिति कट्टु पडिमं पारेइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | सर्प रूपधारी देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भय देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर सर्राटे के साथ उसके शरीर पर चढ़ गया। पीछले भाग से उसके गले में तीन लपेट लगा दिए। लपेट लगाकर अपने तीखे, झहरीले दाँतों से उसकी छाती पर डंक मारा। श्रमणोपासक कामदेव ने उस तीव्र वेदना को सहनशीलता के साथ झेला। सर्प रूपधारी देव ने जब देखा – श्रमणोपासक कामदेव निर्भय है, वह उसे निर्ग्रन्थ – प्रवचन से विचलित, क्षुभित एवं विपरिणामित नहीं कर सका है तो श्रान्त, क्लान्त और खिन्न होकर वह धीरे – धीरे पीछे हटा। पोषध – शाला से बाहर नीकला। देव – मायाजनित सर्प – रूप का त्याग किया। फ़िर उसने उत्तम, दिव्य देव – रूप धारण किया उस देव के वक्षःस्थल पर हार सुशोभित हो रहा था यावत् दिशाओं को उद्योतित, प्रभासित, दर्शनीय, मनोज्ञ, प्रतिरूप किया। वैसा कर श्रमणोपासक कामदेव की पोषधशाला में प्रविष्ट हुआ। प्रविष्ट होकर आकाश में अवस्थित हो छोटी – छोटी घण्टिकाओं से युक्त पाँच वर्णों के उत्तम वस्त्र धारण किए हुए वह श्रमणोपासक कामदेव से यों बोला – श्रमणोपासक कामदेव ! देवानुप्रिय ! तुम धन्य हो, पुण्यशाली हो, कृत – कृत्य हो, कृतलक्षण – वाले हो। देवानुप्रिय ! तुम्हें निर्ग्रन्थ – प्रवचन में ऐसी प्रतिपत्ति – विश्वास – आस्था सुलब्ध है, सुप्राप्त है, स्वायत्त है, निश्चय ही तुमने मनुष्य – जन्म और जीवन का सुफल प्राप्त कर लिया। देवानुप्रिय ! बात यों हुई – शक्र – देवेन्द्र – देवराज – इन्द्रासन पर स्थित होते हुए चौरासी हजार सामानिक देवों यावत् बहुत से अन्य देवों और देवियों के बीच यों आख्यात, भाषित, प्रज्ञप्त या प्ररूपित किया – कहा। देवो ! जम्बू द्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में, चंपा नगरी में श्रमणोपासक कामदेव पोषधशाला में पोषध स्वीकार किए, ब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ कुश के बिछौने पर अवस्थित हुआ श्रमण भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति के अनुरूप उपासनारत है। कोई देव, दानव, गन्धर्व द्वारा निर्ग्रन्थ – प्रवचन से यह विचलित, क्षुभित तथा विपरिणामित नहीं किया जा सकता। शक्र, देवेन्द्र, देवराज के इस कथन में मुझे श्रद्धा, प्रतीति – नहीं हुआ। वह मुझे अरुचिकर लगा। मैं शीघ्र यहाँ आया। देवानुप्रिय ! जो ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य, पुरुषोचित पराक्रम तुम्हें उपलब्ध – प्राप्त तथा अभिसमन्वागत – है, वह सब मैंने देखा। देवानुप्रिय ! मैं तुमसे क्षमा – याचना करता हूँ। मुझे क्षमा करो। आप क्षमा करने में समर्थ हैं। मैं फिर कभी ऐसा नहीं करूँगा। यों कहकर पैरों में पड़कर, उसने हाथ जोड़कर बार – बार क्षमा – याचना की। जिस दिशा से आय था, उसी दिशा की ओर चला गया। तब श्रमणोपासक कामदेव ने यह जानकर कि अब उपसर्ग – विघ्न नहीं रहा है, अपनी प्रतिमा का पारण – समापन किया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se divve sapparuve kamadevam samanovasayam abhiyam atattham anuvviggam akhubhiyam achaliyam asambhamtam tusiniyam dhammajjhanovagayam viharamanam pasai, pasitta jahe no samchaei kamadevam samanovasayam niggamthao pavayanao chalittae va khobhi ttae va viparinamettae va, tahe samte tamte paritamte saniyam-saniyam pachchosakkai, pachchosakkitta posahasalao padinikkhamai, padini-kkhamitta divvam sapparuvam vippajahai, vippajahitta egam maham divvam devaruvam viuvvai–hara-viraiya-vachchham kadaga-tudiya-thambhiyabhuyam amgaya-kumdala-mattha-gamda-kannapidhadharim vichittahatthabharanam vichitta-mala-mauli-maudam kallanaga-pavaravatthaparihiyam kallanagapavaramallanulevanam bhasurabomdim palamba-vanamaladharam divvenam vannenam divvenam gamdhenam divvenam ruvenam divvenam phasenam divvenam samghaenam divvenam samthanenam divvae iddhie divvae juie divvae pabhae divvae chhayae divvae achchie divvenam teenam divvae lesae dasadisao ujjovemanam pabhasemanam pasaiyam darisanijjam abhiruvam padiruvam–divvam devaruvam viuvvitta kamadevassa samanovasayassa posahasalam anuppavisai, anuppavisitta amtalikkhapadivanne sakhimkhiniyaim pamchavannaim vatthaim pavara parihie kamadevam samanovasayam evam vayasi– hambho! Kamadeva! Samanovasaya! Dhannesi nam tumam devanuppiya! Punnesi nam tumam devanuppiya! Kayatthesi nam tumam devanuppiya! Kayalakkhanesi nam tumam devanuppiya! Suladdhe nam tava devanuppiya! Manussae jammajiviyaphale, jassa nam tava niggamthe pavayane imeyaruve padivatti laddha patta abhisamannagaya. Evam khalu devanuppiya! Sakke devimde devaraya vajjapani puramdare sayakkau sahassakkhe maghavam pagasasane dahinaddhalogahivai battisa-vimana-sayasahassahivai eravanavahane surimde arayambara-vatthadhare alaiyamalamaude nava-hema-charu-chitta-chamchala-kumdala-vili-hijjamanagamde bhasurabomdi palambavanamale sohamme kappe sohammavademsae vimane sabhae sohammae sakkamsi sihasanamsi chaurasiie samaniyasahassinam tayattisae tavattisaganam, chaunham logapalanam, atthanham aggamahisinam saparivaranam, tinham parisanam, sattanham aniyanam, sattanham aniyahivainam, chaunham chaurasinam ayarakkha-devasahassinam, annesim cha bahunam devana ya devina ya majjhagae evamaikkhai, evam bhasai, evam pannavei, evam paruvei– Evam khalu deva! Jambuddive dive bharahe vase champae nayarie kamadeve samanovasae posahasalae posahie bambhachari ummukkamanisuvanne vavagayamalavannagavilevane nikkhittasatthamusale ege abie dabbhasamtharovagae samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammapannattim uvasampajjitta nam viharai. No khalu se sakke kenai devena va danavena va jakkhena va rakkhasena va kinnarena va kimpurisena va mahoragena va gamdhavvena va niggamthao pavayanao chalittae va khobhittae va viparinamettae va. Tae nam aham sakkassa devimdassa devaranno eyamattham asaddahamane apattiyamane aroemane iham havvamagae. Tam aho nam devanuppiyanam iddhi jui jaso balam viriyam purisakkara-parakkame laddhe patte abhisamannagae. Tam dittha nam devanuppiyanam iddhi jui balam viriyam purisakkara-parakkame laddhe patte abhisamannagae. Tam khamemi nam devanuppiya! Khamamtu nam devanuppiya! Khamtumarihamti nam devanuppiya! Naim bhujjo karanayae tti kattu payavadie pamjaliude eyamattham bhujjo-bhujjo khamei, khametta jameva disam paubbhue, tameva disam padigae. Tae nam se kamadeve samanovasae niruvasaggamiti kattu padimam parei. Tenam kalenam tenam samaenam samane bhagavam mahavire java jeneva champa nayari, jeneva punnabhadde cheie, teneva uvagachchhai uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Sarpa rupadhari deva ne jaba shramanopasaka kamadeva ko nirbhaya dekha to vaha atyanta kruddha hokara sarrate ke satha usake sharira para charha gaya. Pichhale bhaga se usake gale mem tina lapeta laga die. Lapeta lagakara apane tikhe, jhaharile damtom se usaki chhati para damka mara. Shramanopasaka kamadeva ne usa tivra vedana ko sahanashilata ke satha jhela. Sarpa rupadhari deva ne jaba dekha – shramanopasaka kamadeva nirbhaya hai, vaha use nirgrantha – pravachana se vichalita, kshubhita evam viparinamita nahim kara saka hai to shranta, klanta aura khinna hokara vaha dhire – dhire pichhe hata. Poshadha – shala se bahara nikala. Deva – mayajanita sarpa – rupa ka tyaga kiya. Fira usane uttama, divya deva – rupa dharana kiya Usa deva ke vakshahsthala para hara sushobhita ho raha tha yavat dishaom ko udyotita, prabhasita, darshaniya, manojnya, pratirupa kiya. Vaisa kara shramanopasaka kamadeva ki poshadhashala mem pravishta hua. Pravishta hokara akasha mem avasthita ho chhoti – chhoti ghantikaom se yukta pamcha varnom ke uttama vastra dharana kie hue vaha shramanopasaka kamadeva se yom bola – shramanopasaka kamadeva ! Devanupriya ! Tuma dhanya ho, punyashali ho, krita – kritya ho, kritalakshana – vale ho. Devanupriya ! Tumhem nirgrantha – pravachana mem aisi pratipatti – vishvasa – astha sulabdha hai, suprapta hai, svayatta hai, nishchaya hi tumane manushya – janma aura jivana ka suphala prapta kara liya. Devanupriya ! Bata yom hui – shakra – devendra – devaraja – indrasana para sthita hote hue chaurasi hajara samanika devom yavat bahuta se anya devom aura deviyom ke bicha yom akhyata, bhashita, prajnyapta ya prarupita kiya – kaha. Devo ! Jambu dvipa ke antargata bharatakshetra mem, champa nagari mem shramanopasaka kamadeva poshadhashala mem poshadha svikara kie, brahmacharya ka palana karata hua kusha ke bichhaune para avasthita hua shramana bhagavana mahavira ke pasa amgikrita dharma – prajnyapti ke anurupa upasanarata hai. Koi deva, danava, gandharva dvara nirgrantha – pravachana se yaha vichalita, kshubhita tatha viparinamita nahim kiya ja sakata. Shakra, devendra, devaraja ke isa kathana mem mujhe shraddha, pratiti – nahim hua. Vaha mujhe aruchikara laga. Maim shighra yaham aya. Devanupriya ! Jo riddhi, dyuti, yasha, bala, virya, purushochita parakrama tumhem upalabdha – prapta tatha abhisamanvagata – hai, vaha saba maimne dekha. Devanupriya ! Maim tumase kshama – yachana karata hum. Mujhe kshama karo. Apa kshama karane mem samartha haim. Maim phira kabhi aisa nahim karumga. Yom kahakara pairom mem parakara, usane hatha jorakara bara – bara kshama – yachana ki. Jisa disha se aya tha, usi disha ki ora chala gaya. Taba shramanopasaka kamadeva ne yaha janakara ki aba upasarga – vighna nahim raha hai, apani pratima ka parana – samapana kiya. |