Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004910 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१८ सुंसमा |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१८ सुंसमा |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 210 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से चिलाए चोरसेनावई अन्नया कयाइ विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता ते पंच चोरसए आमंतेइ तओ पच्छा ण्हाए कयबलिकम्मे भोयणमंडवंसि तेहि पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं सुरं च मज्जं च मंसं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ, जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूव-पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! रायगिहे नयरे धने नामं सत्थवाहे सड्ढे। तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अनुमग्गजाइया सुंसुमा नामं दारिया–अहीना जाव सुरूवा। तं गच्छामो णं देवानुप्पिया! धनस्स सत्थवाहस्स गिहं विलुपामो। तुब्भं विपुले धन-कनग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाले ममं सुंसुमा दारिया। तए णं ते पंच चोरसया चिलायस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति। तए णं ते चिलाए चोरसेनावई तेहिं पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं अल्लं चम्मं दुरुहइ, दुरुहित्ता पच्चावरण्ह-कालसमयंसि पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं सन्नद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवए उप्पीलिय-सरासण-पट्टिए पिणद्ध-गेविज्जे आविद्ध-विमल-वरचिंधपट्टे गहियाउह-पहरणे माइय-गोमुहिएहिं फलएहिं, निक्किट्ठाहिं असिलट्ठीहिं, अंसगएहिं तोणेहिं, सज्जीवेहिं धणूहिं, समुक्खित्तेहिं सरेहिं, समुल्लालियाहिं दाहाहिं, ओसारियाहिं ऊरुघंटियाहिं, छिप्पतूरेहिं वज्जमाणेहिं महया-महया उक्किट्ठ-सीहनाय-बोल-कलकलरवेणं पक्खुभिय-महासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणा सीहगुहाओ चोरपल्लीओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता रायगिहस्स अदूरसामंते एगं महं गहणं अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता दिवसं खवेमाणा चिट्ठंति। तए णं से चिलाए चोरसेनावई अद्धरत्त-कालसमयंसि निसंत-पडिनिसंतंसि पंचहिं चोर-सएहिं सद्धिं माइय-गोमुहिएहिं फलएहिं जाव मूइयाहिं ऊरुघंटियाहिं जेणेव रायगिहे नयरे पुरत्थिमिल्ले दुवारे तेणेव उवागच्छइ, उदगवत्थिं परामुसइ आयंते चोक्खे परमसुइभूए तालुग्घाडणि विज्जं आवाहेइ, आवाहेत्ता रायगिहस्स दुवारकवाडे उदएणं अच्छोडेइ, अच्छोडेत्ता कवाडं विहाडेइ, विहाडेत्ता रायगिहं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणे-उग्घोसेमाणे एवं वयासी– एवं खलु अहं देवानुप्पिया! चिलाए नामं चोरसेनावई पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागए धनस्स सत्थवाहस्स गिहं घाउकामे। तं जे णं नवियाए माउयाए दुद्धं पाउकामे, से णं निगच्छउ त्ति कट्टु जेणेव धनस्स सत्थवाहस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धनस्स गिहं विहाडेइ। तए णं से धने चिलाएणं चोरसेनावइणा पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं गिहं धाइज्जमाणं पासइ, पासित्ता भीए तत्थे तसिए उव्विग्गे संजायभए पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं एगंतं अवक्कमइ। तए णं से चिलाए चोरसेनावई धनस्स सत्थवाहस्स गिहं घाएइ, घाएत्ता सुबहुं धन-कनग-रयण- मणि-मोत्तिय- संख-सिलप्पवाल- रत्तरयण- संत-सार- सावएज्जं सुंसुमं च दारियं गेण्हइ, गेण्हित्ता रायगिहाओ पडिनिक्खमई, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सीहगुहा तेणेव पहारेत्थ गमणाए। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् चिलात चोरसेनापति ने एक बार किसी समय विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवा कर पाँच सौ चोरों को आमंत्रित किया। फिर स्नान तथा बलिकर्म करके भोजन – मंडप में उन पाँच सौ चोरों के साथ विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का तथा सूरा प्रसन्ना नामक मदिराओं का आस्वादन, विस्वादन, वितरण एवं परिभोग करने लगा। भोजन कर चूकने के पश्चात् पाँच सौ चोरों का विपुल धूप, पुष्प, गंध, माला और अलंकार से सत्कार किया, सम्मान किया। उनसे इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रियो ! राजगृह नगर में धन्य नामक धनाढ्य सार्थवाह है। उसकी पुत्री, भद्रा की आत्मजा और पाँच पुत्रों के पश्चात् जन्मी हुई सुंसुमा नाम की लड़की है। वह परिपूर्ण इन्द्रियों वाली यावत् सुन्दर रूप वाली है। तो देवानुप्रियो ! हम लोग चलें और धन्य सार्थवाह का घर लूंटे। उस लूट में मिलने वाला विपुल धन, कनक, यावत् शिला, मूँगा वगैरह तुम्हारा होगा, सुंसुमा लड़की मेरी होगी।’ तब उन पाँच सौ चोरों ने चोरसेनापति चिलात की बात अंगीकार की। तत्पश्चात् चिलात चोरसेनापति उन पाँच सौ चोरों के साथ आर्द्र चर्म पर बैठा। फिर दिन के अंतिम प्रहर में पाँच सौ चोरों के साथ कवच धारण करके तैयार हुआ। उसने आयुध और प्रहरण ग्रहण किए। कोमल गोमुखित – फलक धारण किए। तलवारें म्यानों से बाहर नीकाल लीं। कन्धों पर तर्कश धारण किए। धनुष जीवायुक्त कर लिए। बाण बाहर नीकाल लिए। बर्छियाँ और भाले उछालने लगे। जंघाओं पर बाँधी हुई घंटिकाएं लटका दीं। शीघ्र बाजे बजने लगे। बड़े – बड़े उत्कृष्ट सिंहनाद और बोलों की कल – कल ध्वनि से ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे महासमुद्र का खलखल शब्द हो रहा हो। इस प्रकार शोर करते हुए वे सिंहगुफा नामक चोरपल्ली से बाहर नीकले। राजगृह नगर आकर राजगृह नगर से कुछ दूर एक सघन वन में घूस गए। वहाँ घूसकर शेष रहे दिन को समाप्त करने लगे – तत्पश्चात् चोरसेनापति चिलात आधी रात के समय, जब सब जगह शान्ति और सूनसान हो गया था, पाँच सौ चोरों के साथ, रींछ आदि के बालों से सहित होने के कारण कोमल गोमुखित, छाती से बाँध कर यावत् जाँघों पर घूघरे लटका कर राजगृह नगर के पूर्व दिशा के दरवाजे पर पहुँचा। उसने जल की मशक ली। उसमें से जल को एक अंजलि लेकर आचमन किया, स्वच्छ हुआ, पवित्र हुआ, फिर ताला खोलने की विद्या का आवाहन करके राजगृह नगर के किवाड़ों पर पानी छिड़का। किवाड़ उघाड़ लिए। तत्पश्चात् राजगृह के भीतर प्रवेश करके ऊंचे – ऊंचे शब्दों से आघोषणा करते – करते इस प्रकार बोला – ‘देवानुप्रियो ! मैं चिलात नामक चोरसेनापति, पाँच सौ चौरों के साथ, सिंहगुफा नामक चोर – पल्ली से, धन्य सार्थवाह का घर लूटने के लिए यहाँ आया हूँ। जो नवीन माता का दूध पीना चाहता हो, वह नीकलकर मेरे सामने आवे।’ इस प्रकार कहकर वह धन्य सार्थवाह के घर आया। आकर उसने धन्य सार्थवाह का घर उघाड़ा। धन्य सार्थवाह ने देखा कि पाँच सै चोरों के साथ चिलात चोरसेनापति के द्वारा घर लूटा जा रहा है। यह देखकर वह भयभीत हो गया, घबरा गया और अपने पाँचों पुत्रों के साथ एकान्त में चला गया – छिप गया। तत्पश्चात् चोर सेनापति चिलात ने धन्य सार्थवाह को लूटा। बहुत सारा धन, कनक यावत् स्वापतेय तथा सुंसुमा दारिका को लेकर वह राजगृह से बाहर नीकलकर जिधर सिंहगुफा थी, उसी ओर जाने के लिए उद्यत हुआ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se chilae chorasenavai annaya kayai vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavetta te pamcha chorasae amamtei tao pachchha nhae kayabalikamme bhoyanamamdavamsi tehi pamchahim chorasaehim saddhim vipulam asana-pana-khaima-saimam suram cha majjam cha mamsam cha sidhum cha pasannam cha asaemane visaemane paribhaemane paribhumjemane viharai, jimiyabhuttuttaragae te pamcha chorasae vipulenam dhuva-puppha-gamdha-mallalamkarenam sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta evam vayasi– Evam khalu devanuppiya! Rayagihe nayare dhane namam satthavahe saddhe. Tassa nam dhuya bhaddae attaya pamchanham puttanam anumaggajaiya sumsuma namam dariya–ahina java suruva. Tam gachchhamo nam devanuppiya! Dhanassa satthavahassa giham vilupamo. Tubbham vipule dhana-kanaga-rayana-mani-mottiya-samkha-sila-ppavale mamam sumsuma dariya. Tae nam te pamcha chorasaya chilayassa eyamattham padisunemti. Tae nam te chilae chorasenavai tehim pamchahim chorasaehim saddhim allam chammam duruhai, duruhitta pachchavaranha-kalasamayamsi pamchahim chorasaehim saddhim sannaddha-baddha-vammiya-kavae uppiliya-sarasana-pattie pinaddha-gevijje aviddha-vimala-varachimdhapatte gahiyauha-paharane maiya-gomuhiehim phalaehim, nikkitthahim asilatthihim, amsagaehim tonehim, sajjivehim dhanuhim, samukkhittehim sarehim, samullaliyahim dahahim, osariyahim urughamtiyahim, chhippaturehim vajjamanehim mahaya-mahaya ukkittha-sihanaya-bola-kalakalaravenam pakkhubhiya-mahasamuddaravabhuyam piva karemana sihaguhao chorapallio padinikkhamamti, padinikkhamitta jeneva rayagihe nayare teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta rayagihassa adurasamamte egam maham gahanam anuppavisamti, anuppavisitta divasam khavemana chitthamti. Tae nam se chilae chorasenavai addharatta-kalasamayamsi nisamta-padinisamtamsi pamchahim chora-saehim saddhim maiya-gomuhiehim phalaehim java muiyahim urughamtiyahim jeneva rayagihe nayare puratthimille duvare teneva uvagachchhai, udagavatthim paramusai ayamte chokkhe paramasuibhue talugghadani vijjam avahei, avahetta rayagihassa duvarakavade udaenam achchhodei, achchhodetta kavadam vihadei, vihadetta rayagiham anuppavisai, anuppavisitta mahaya-mahaya saddenam ugghosemane-ugghosemane evam vayasi– evam khalu aham devanuppiya! Chilae namam chorasenavai pamchahim chorasaehim saddhim sihaguhao chorapallio iham havvamagae dhanassa satthavahassa giham ghaukame. Tam je nam naviyae mauyae duddham paukame, se nam nigachchhau tti kattu jeneva dhanassa satthavahassa gihe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta dhanassa giham vihadei. Tae nam se dhane chilaenam chorasenavaina pamchahim chorasaehim saddhim giham dhaijjamanam pasai, pasitta bhie tatthe tasie uvvigge samjayabhae pamchahim puttehim saddhim egamtam avakkamai. Tae nam se chilae chorasenavai dhanassa satthavahassa giham ghaei, ghaetta subahum dhana-kanaga-rayana- mani-mottiya- samkha-silappavala- rattarayana- samta-sara- savaejjam sumsumam cha dariyam genhai, genhitta rayagihao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva sihaguha teneva paharettha gamanae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat chilata chorasenapati ne eka bara kisi samaya vipula ashana, pana, khadya aura svadya taiyara karava kara pamcha sau chorom ko amamtrita kiya. Phira snana tatha balikarma karake bhojana – mamdapa mem una pamcha sau chorom ke satha vipula ashana, pana, khadima aura svadima ka tatha sura prasanna namaka madiraom ka asvadana, visvadana, vitarana evam paribhoga karane laga. Bhojana kara chukane ke pashchat pamcha sau chorom ka vipula dhupa, pushpa, gamdha, mala aura alamkara se satkara kiya, sammana kiya. Unase isa prakara kaha – ‘devanupriyo ! Rajagriha nagara mem dhanya namaka dhanadhya sarthavaha hai. Usaki putri, bhadra ki atmaja aura pamcha putrom ke pashchat janmi hui sumsuma nama ki laraki hai. Vaha paripurna indriyom vali yavat sundara rupa vali hai. To devanupriyo ! Hama loga chalem aura dhanya sarthavaha ka ghara lumte. Usa luta mem milane vala vipula dhana, kanaka, yavat shila, mumga vagairaha tumhara hoga, sumsuma laraki meri hogi.’ taba una pamcha sau chorom ne chorasenapati chilata ki bata amgikara ki. Tatpashchat chilata chorasenapati una pamcha sau chorom ke satha ardra charma para baitha. Phira dina ke amtima prahara mem pamcha sau chorom ke satha kavacha dharana karake taiyara hua. Usane ayudha aura praharana grahana kie. Komala gomukhita – phalaka dharana kie. Talavarem myanom se bahara nikala lim. Kandhom para tarkasha dharana kie. Dhanusha jivayukta kara lie. Bana bahara nikala lie. Barchhiyam aura bhale uchhalane lage. Jamghaom para bamdhi hui ghamtikaem lataka dim. Shighra baje bajane lage. Bare – bare utkrishta simhanada aura bolom ki kala – kala dhvani se aisa pratita hone laga jaise mahasamudra ka khalakhala shabda ho raha ho. Isa prakara shora karate hue ve simhagupha namaka chorapalli se bahara nikale. Rajagriha nagara akara rajagriha nagara se kuchha dura eka saghana vana mem ghusa gae. Vaham ghusakara shesha rahe dina ko samapta karane lage – tatpashchat chorasenapati chilata adhi rata ke samaya, jaba saba jagaha shanti aura sunasana ho gaya tha, pamcha sau chorom ke satha, rimchha adi ke balom se sahita hone ke karana komala gomukhita, chhati se bamdha kara yavat jamghom para ghughare lataka kara rajagriha nagara ke purva disha ke daravaje para pahumcha. Usane jala ki mashaka li. Usamem se jala ko eka amjali lekara achamana kiya, svachchha hua, pavitra hua, phira tala kholane ki vidya ka avahana karake rajagriha nagara ke kivarom para pani chhiraka. Kivara ughara lie. Tatpashchat rajagriha ke bhitara pravesha karake umche – umche shabdom se aghoshana karate – karate isa prakara bola – ‘Devanupriyo ! Maim chilata namaka chorasenapati, pamcha sau chaurom ke satha, simhagupha namaka chora – palli se, dhanya sarthavaha ka ghara lutane ke lie yaham aya hum. Jo navina mata ka dudha pina chahata ho, vaha nikalakara mere samane ave.’ isa prakara kahakara vaha dhanya sarthavaha ke ghara aya. Akara usane dhanya sarthavaha ka ghara ughara. Dhanya sarthavaha ne dekha ki pamcha sai chorom ke satha chilata chorasenapati ke dvara ghara luta ja raha hai. Yaha dekhakara vaha bhayabhita ho gaya, ghabara gaya aura apane pamchom putrom ke satha ekanta mem chala gaya – chhipa gaya. Tatpashchat chora senapati chilata ne dhanya sarthavaha ko luta. Bahuta sara dhana, kanaka yavat svapateya tatha sumsuma darika ko lekara vaha rajagriha se bahara nikalakara jidhara simhagupha thi, usi ora jane ke lie udyata hua. |