Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004809 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 109 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सव्वदेवाणं आसणाइं चलेंति, समोसढा धम्मं सुणेंति, सुणेत्ता जेणेव नंदीसरे दीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अट्ठाहियं महिमं करेंति, करेत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। कुंभए वि निग्गच्छइ। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेट्ठपुत्ते रज्जे ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीयाओ सीयाओ दुरूढा समाणा सव्विड्ढीए जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति जाव पज्जुवासंति। तए णं मल्ली अरहा तीसे महइमहालियाए परिसाए, कुंभगस्स रन्नो, तेसिं च जियसत्तु-पामोक्खाणं छण्हं राईणं धम्मं परिकहेइ। परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। कुंभए समणोवासए जाव पडिगए, पभावई य। तए णं जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो धम्मं सोच्चा निसम्म एवं वयासी–आलित्तए णं भंते! लोए, पलित्तए णं भंते! लोए, आलित्त-पलित्तए णं भंते! लोए जराए मरणेण य जाव पव्वइया जाव चोद्दसपुव्विणो। अणंते वरनाणदंसणे केवले समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धा। तए णं मल्ली अरहा सहस्संववनाओ उज्जाणाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। मल्लिस्स णं अरहओ भिसगपामोक्खा अट्ठावीसं गणा अट्ठावीसं गणहरा होत्था। मल्लिस्स णं अरहओ चत्तालीसं समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था, बंधुमइपामोक्खाओ पणपन्नं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था, सावयाणं एगा सयसाहस्सी चुलसीइं सहस्सा, सावियाणं तिन्नि सयसाहस्सीओ पण्णट्ठिं च सहस्सा, छस्सया चोद्दसपुव्वीणं, वीसं सया ओहिनाणीणं, बत्तीसं सया केवलनाणीणं, पणतीसं सया वेउव्वियाणं, अट्ठसया मनपज्जवनाणीणं, चोद्दससया वाईणं, वीसं सया अनुत्तरोववाइयाणं। मल्लिस्स य अरहओ दुविहा अंतकरभूमी होत्था, तं जहा–जुगंतकरभूमी परियायंतकरभूमी य। जाव वीसइमाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकरभूमी दुवासपरियाए अंतमकासी। मल्ली णं अरहा पणुवीसं धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं, वण्णेणं पियंगुसामे समचउरंससंठाणे वज्जरिसहनारायसंघयणे मज्झदेसे सुहंसुहेणं विहरित्ता जेणेव सम्मेए पव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सम्मेयसेलसिहरे पाओवगमणंणुवन्ने। मल्ली णं अरहा एगं वाससयं अगारवासमज्झे पणपण्णं वाससहस्साइं वाससयऊणाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता पणपण्णं वाससहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता जे से गिम्हाणं पढमे मासी दोच्चे पक्खे चेत्तसुद्धे, तस्स णं चेत्तसुद्धस्स चउत्थीए पक्खेण भरणीए नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं अद्धरत्तकालसमयंसि पंचहिं अज्जियासएहिं–अब्भिंतरियाए परिसाए, पंचहिं अनगारसएहिं–बाहिरियाए परिसाए, मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं वग्घारियपाणी पाए साहट्टु खीणे वेयणिज्जे आउए नामगोए सिद्धे। एवं परिनिव्वाणमहिमा भाणियव्वा जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए, नंदीसरे अट्ठाहियाओ पडिगयाओ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। | ||
Sutra Meaning : | उस काल और उस समय में सब देवों के आसन चलायमान हुए। तब वे सब देव वहाँ आए, सबने धर्मोपदेश श्रवण किया। नन्दीश्वर द्वीप में जाकर अष्टाह्निका महोत्सव किया। फिर जिस दिशा में प्रकट हुए थे, उसी दिशा में लौट गए। कुम्भ राजा भी वन्दना करने के लिए नीकला। तत्पश्चात् वे जितशत्रु वगैरह छहों राजा अपने – अपने ज्येष्ठ पुत्रों को राज्य पर स्थापित करके, हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिबिकाओं पर आरूढ़ होकर समस्त ऋद्धि के साथ यावत् गीत – वादिंत्र के शब्दों के साथ जहाँ मल्ली अरहंत थे, यावत् वहाँ आकर उनकी उपासना करने लगे। तत्पश्चात् मल्ली अरहंत ने उस बड़ी भारी परीषद् को, कुम्भ राजा को और उन जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं को धर्म का उपदेश दिया। परीषद् जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा में लौट गई। कुम्भ राजा श्रमणोपासक हुआ। वह भी लौट गया। रानी प्रभावती श्रमणोपासिका हुई। वह भी वापिस चली गई। तत्पश्चात् जितशत्रु आदि छहों राजाओं ने धर्म को श्रवण करके कहा – भगवन् ! यह संसार जरा और मरण से आदीप्त है, प्रदीप्त है और आदीप्त प्रदीप्त है, इत्यादि कहकर यावत् वे दीक्षित हो गए। चौदह पूर्वों के ज्ञानी हुए, फिर अनन्त केवल – दर्शन प्राप्त करके यावत् सिद्ध हुए। तत्पश्चात् मल्ली अरहंत समस्राम्रवन उद्यान से बाहर नीकले। नीकलकर जनपदों में विहार करने लगे। मल्ली अरहंत के भिषक आदि अट्ठाईस गण और अट्ठाईस गणधर थे। मल्ली अरहंत की चालीस हजार साधुओं की उत्कृष्ट सम्पदा थी। बंधुमती आदि पचपन हजार आर्यिकाओं की सम्पदा थी। मल्ली अरहंत की एक लाख चौरासी हजार श्रावकों की उत्कृष्ट सम्पदा थी। मल्ली अरहंत की तीन लाख पैंसठ हजार श्राविकाओं की उत्कृष्ट सम्पदा थी। मल्ली अरहंत की छह सौ चौदह पूर्वी साधुओं की, दो हजार अवधिज्ञानी, बत्तीस सौ केवलज्ञानी, पैंतीस सौ वैक्रियलब्धिधारों, आठ सौ मनःपर्यवज्ञानी, चौदह सौ वादी और बीस सौ अनुत्तरौपपातिक साधुओं की सम्पदा थी। मल्ली अरहंत के तीर्थ में दो प्रकार की अन्तकर भूमि हुई। युगान्तकर भूमि और पर्यायान्तकर भूमि। इनमें से शिष्य – प्रशिष्य आदि बीस पुरुषों रूप युगों तक युगान्तकर भूमि हुई, और दो वर्ष का पर्याय होने पर पर्यायान्त – कर भूमि हुई। मल्ली अरहंत पच्चीस धनुष ऊंचे थे। उनके शरीर का वर्ण प्रियंगु के समान था। सम – चतुरस्र संस्थान और वज्रऋषभनाराच संहनन था। वह मध्यदेश में सुखे – सुखे विचरकर जहाँ सम्मेद पर्वत था, वहाँ आकर उन्होंने सम्मेदशैल के शिखर पर पादोपगमन अनशन अंगीकार कर लिया। मल्ली अरहंत एक सौ वर्ष गृहवास में रहे। सौ वर्ष कम पचपन हजार वर्ष केवली – पर्याय पालकर, कुल पचपन हजार वर्ष की आयु भोगकर ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास, दूसरे पक्ष चैत्र मास के शुक्लपक्ष की चौथ तिथि में, भरणी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर, अर्द्धरात्रि के समय, आभ्यन्तर परीषद् की पाँच सौ साध्वीयों और बाह्य परीषद् के पाँच सौ साधुओं के साथ, निर्जल एक मास के अनशनपूर्वक दोनों हाथ लम्बे रखकर, वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र इन चार कर्मों के क्षीण होने पर सिद्ध हुए। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में वर्णित निर्वाण महोत्सव कहना। फिर देवों नन्दीश्वरद्वीप में जाकर अष्टाह्निक महोत्सव करके वापस लौटे। इस प्रकार ही, हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने आठवे ज्ञाताध्ययन का यह अर्थ प्ररूपण किया है। मैंने जो सूना, वही कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam savvadevanam asanaim chalemti, samosadha dhammam sunemti, sunetta jeneva namdisare dive teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta atthahiyam mahimam karemti, karetta jameva disim paubbhuya tameva disim padigaya. Kumbhae vi niggachchhai. Tae nam te jiyasattupamokkha chhappi rayano jetthaputte rajje thavetta purisasahassavahiniyao siyao durudha samana savviddhie jeneva malli araha teneva uvagachchhamti java pajjuvasamti. Tae nam malli araha tise mahaimahaliyae parisae, kumbhagassa ranno, tesim cha jiyasattu-pamokkhanam chhanham rainam dhammam parikahei. Parisa jameva disim paubbhuya tameva disim padigaya. Kumbhae samanovasae java padigae, pabhavai ya. Tae nam jiyasattupamokkha chhappi rayano dhammam sochcha nisamma evam vayasi–alittae nam bhamte! Loe, palittae nam bhamte! Loe, alitta-palittae nam bhamte! Loe jarae maranena ya java pavvaiya java choddasapuvvino. Anamte varananadamsane kevale samuppadetta tao pachchha siddha. Tae nam malli araha sahassamvavanao ujjanao nikkhamai, nikkhamitta bahiya janavayaviharam viharai. Mallissa nam arahao bhisagapamokkha atthavisam gana atthavisam ganahara hottha. Mallissa nam arahao chattalisam samanasahassio ukkosiya samanasampaya hottha, bamdhumaipamokkhao panapannam ajjiyasahassio ukkosiya ajjiyasampaya hottha, savayanam ega sayasahassi chulasiim sahassa, saviyanam tinni sayasahassio pannatthim cha sahassa, chhassaya choddasapuvvinam, visam saya ohinaninam, battisam saya kevalananinam, panatisam saya veuvviyanam, atthasaya manapajjavananinam, choddasasaya vainam, visam saya anuttarovavaiyanam. Mallissa ya arahao duviha amtakarabhumi hottha, tam jaha–jugamtakarabhumi pariyayamtakarabhumi ya. Java visaimao purisajugao jugamtakarabhumi duvasapariyae amtamakasi. Malli nam araha panuvisam dhanuim uddham uchchattenam, vannenam piyamgusame samachauramsasamthane vajjarisahanarayasamghayane majjhadese suhamsuhenam viharitta jeneva sammee pavvae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sammeyaselasihare paovagamanamnuvanne. Malli nam araha egam vasasayam agaravasamajjhe panapannam vasasahassaim vasasayaunaim kevalipariyagam paunitta panapannam vasasahassaim savvauyam palaitta je se gimhanam padhame masi dochche pakkhe chettasuddhe, tassa nam chettasuddhassa chautthie pakkhena bharanie nakkhattenam jogamuvagaenam addharattakalasamayamsi pamchahim ajjiyasaehim–abbhimtariyae parisae, pamchahim anagarasaehim–bahiriyae parisae, masienam bhattenam apanaenam vagghariyapani pae sahattu khine veyanijje aue namagoe siddhe. Evam parinivvanamahima bhaniyavva jaha jambuddivapannattie, namdisare atthahiyao padigayao. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam atthamassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura usa samaya mem saba devom ke asana chalayamana hue. Taba ve saba deva vaham ae, sabane dharmopadesha shravana kiya. Nandishvara dvipa mem jakara ashtahnika mahotsava kiya. Phira jisa disha mem prakata hue the, usi disha mem lauta gae. Kumbha raja bhi vandana karane ke lie nikala. Tatpashchat ve jitashatru vagairaha chhahom raja apane – apane jyeshtha putrom ko rajya para sthapita karake, hajara purushom dvara vahana ki jane vali shibikaom para arurha hokara samasta riddhi ke satha yavat gita – vadimtra ke shabdom ke satha jaham malli arahamta the, yavat vaham akara unaki upasana karane lage. Tatpashchat malli arahamta ne usa bari bhari parishad ko, kumbha raja ko aura una jitashatru prabhriti chhahom rajaom ko dharma ka upadesha diya. Parishad jisa disha se ai thi, usi disha mem lauta gai. Kumbha raja shramanopasaka hua. Vaha bhi lauta gaya. Rani prabhavati shramanopasika hui. Vaha bhi vapisa chali gai. Tatpashchat jitashatru adi chhahom rajaom ne dharma ko shravana karake kaha – bhagavan ! Yaha samsara jara aura marana se adipta hai, pradipta hai aura adipta pradipta hai, ityadi kahakara yavat ve dikshita ho gae. Chaudaha purvom ke jnyani hue, phira ananta kevala – darshana prapta karake yavat siddha hue. Tatpashchat malli arahamta samasramravana udyana se bahara nikale. Nikalakara janapadom mem vihara karane lage. Malli arahamta ke bhishaka adi atthaisa gana aura atthaisa ganadhara the. Malli arahamta ki chalisa hajara sadhuom ki utkrishta sampada thi. Bamdhumati adi pachapana hajara aryikaom ki sampada thi. Malli arahamta ki eka lakha chaurasi hajara shravakom ki utkrishta sampada thi. Malli arahamta ki tina lakha paimsatha hajara shravikaom ki utkrishta sampada thi. Malli arahamta ki chhaha sau chaudaha purvi sadhuom ki, do hajara avadhijnyani, battisa sau kevalajnyani, paimtisa sau vaikriyalabdhidharom, atha sau manahparyavajnyani, chaudaha sau vadi aura bisa sau anuttaraupapatika sadhuom ki sampada thi. Malli arahamta ke tirtha mem do prakara ki antakara bhumi hui. Yugantakara bhumi aura paryayantakara bhumi. Inamem se shishya – prashishya adi bisa purushom rupa yugom taka yugantakara bhumi hui, aura do varsha ka paryaya hone para paryayanta – kara bhumi hui. Malli arahamta pachchisa dhanusha umche the. Unake sharira ka varna priyamgu ke samana tha. Sama – chaturasra samsthana aura vajrarishabhanaracha samhanana tha. Vaha madhyadesha mem sukhe – sukhe vicharakara jaham sammeda parvata tha, vaham akara unhomne sammedashaila ke shikhara para padopagamana anashana amgikara kara liya. Malli arahamta eka sau varsha grihavasa mem rahe. Sau varsha kama pachapana hajara varsha kevali – paryaya palakara, kula pachapana hajara varsha ki ayu bhogakara grishma ritu ke prathama masa, dusare paksha chaitra masa ke shuklapaksha ki chautha tithi mem, bharani nakshatra ke satha chandrama ka yoga hone para, arddharatri ke samaya, abhyantara parishad ki pamcha sau sadhviyom aura bahya parishad ke pamcha sau sadhuom ke satha, nirjala eka masa ke anashanapurvaka donom hatha lambe rakhakara, vedaniya, ayu, nama aura gotra ina chara karmom ke kshina hone para siddha hue. Jambudvipa prajnyapti mem varnita nirvana mahotsava kahana. Phira devom nandishvaradvipa mem jakara ashtahnika mahotsava karake vapasa laute. Isa prakara hi, he jambu ! Shramana bhagavana mahavira ne athave jnyatadhyayana ka yaha artha prarupana kiya hai. Maimne jo suna, vahi kahata hum. |