Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004781 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 81 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं महब्बलवज्जाणं छण्हं देवाणं देसूणाइं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। महब्बलस्स देवस्स य पडिपुण्णाइं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। तए णं ते महब्बलवज्जा छप्पि देवा जयंताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अनंतरं च यं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विसुद्धपिइमाइवंसेसु रायकुलेसु पत्तेयं-पत्तेयं कुमारत्ताए पच्चायाया, तं जहा– पडिबुद्धी इक्खागराया, चंदच्छाए अंगराया, संखे कासिराया, रुप्पी कुणालाहिवई, अदीनसत्तू कुरुराया, जियसत्तू पंचालाहिवई। तए णं से महब्बले देवे तिहिं नाणेहिं समग्गे उच्चट्ठाणगएसुं गहेसुं, सोमासु दिसासु वितिमिरासु विसुद्धासु, जइएसु सउणेसु, पयाहिणाणुकूलंसि भूमिसप्पिंसि मारुयंसि पवायंसि, निप्फण्ण-सस्स-मेइणीयंसि कालंसि पमुइय-पक्कीलिएसु जण-वएसु अद्धरत्तकालसमयंसि अस्सिणीनक्खत्तेणं जोगमुवागएणं जे से हेमंताणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे, तस्स णं फग्गुणसुद्धस्स चउत्थीपक्खेणं जयंताओ विमाणाओ बत्तीसं सागरोवमठिइयाओ अनंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे भारहे वासे मिहिलाए रायहाणीए कुंभस्स रन्नो पभावतीए देवीए कुच्छिंसि आहारवक्कंतीए भववक्कंतीए सरीरवक्कंतीए गब्भत्ताए वक्कंते। जं रयणिं च णं महब्बले देवे पभावतीए देवीए कुच्छिंसि गब्भत्ताए वक्कंते, तं रयणिं च णं सा पभावती देवी चोद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा। भत्तार-कहणं। सुमिणपाढगपुच्छा जाव विपुलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ। तए णं तीसे पभावईए देवीए तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमेयारूवे डोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ धम्मयाओ जाओ णं जल-थलय-भासरप्पभूएणं दसद्धवण्णेणं मल्लेणं अत्थुय-पच्चत्थुयंसि सयणिज्जंसि सण्णिसण्णाओ निवण्णा-ओ य विहरंति, एगं च महं सिरिदामगंडं पाडल-मल्लिय- चंपग- असोग- पुन्नाग- नाग- मरुगय- दमणग- अनीज्जकीज्जय- पउरं परमसुह-फासं दरिसणिज्जं महया गंधद्धणिं मुयंतं अग्घायमाणीओ डोहलं विणेंति। तए णं तीसे पभावईए इमं एयारूवं डोहलं पाउब्भूयं पासित्ता अहासण्णिहिया वाणमंतरा देवा खिप्पामेव जल-थलय-भासरप्पभूयं दसद्धवण्णं मल्लं कुंभग्गसो य भारग्गसो य कुंभस्स रन्नो भवणंसि साहरंति, एगं च णं महं सिरिदामगंडं जाव गंधद्धणिं मुयंतं उवणेंति। तए णं सा पभावई देवी जल-थलय-भासरप्पभूएणं दसद्धवण्णेणं मल्लेणं दोहलं विणेइ। तए णं सा पभावई देवी पसत्थदोहला सम्मानियदोहला विणीयदोहला संपुण्णदोहला संपत्तदोहला विउलाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं पच्चणुभवमाणी विहरइ। तए णं सा पभावई देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं? जे से हेमंताणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे मग्गसिरसुद्धे, तस्स णं एक्कारसीए पुव्वरत्ता-वरत्तकालसमयंसि अस्सिणीनक्खत्तेणं जोगमुवागएणं? उच्चट्ठाणगएसुं गहेसुं जाव पमुइय-पक्की-लिएसु जनवएसु आरोयारोयं एगुणवीसइमं तित्थयरं पयाया। | ||
Sutra Meaning : | उस जयन्त विमान में कितनेक देवों की बत्तीस सागरोपम की स्थिति कही गई है। उनमें से महाबल को छोड़कर दूसरे छह देवों की कुछ कम बत्तीस सागरोपम की स्थिति और महाबल देव की पूर बत्तीस सागरोपम की स्थिति हुई। तत्पश्चात् महाबल देव के सिवाय छहों देव जयन्त देवलोक से, देव सम्बन्धी आयु का क्षय होने से, स्थिति का क्षय होने से और भव का क्षय होने से, अन्तर रहित, शरीर का त्याग करके इसी जम्बूद्वीप में, भरत वर्ष में विशुद्ध माता – पिता के वंश वाले राजकुलों में, अलग – अलग कुमार के रूप में उत्पन्न हुए। प्रतिबुद्धि इक्ष्वाकु देश का राजा हुआ। चंद्रच्छाय अंगदेश का राजा हुआ, शंख कासीदेव का राजा हुआ, रुक्मि कुणालदेश का राजा हुआ, अदीनशत्रु कुरुदेश का राजा हुआ, जितशत्रु पंचाल देश का राजा हुआ। वह महाबल देव तीन ज्ञानों से युक्त होकर, जब समस्त ग्रह उच्च स्थान पर रहे थे, सभी दिशाएं सौम्य, वितिमिर और विशुद्ध थीं, शकुन विजयकारक थे, वायु दक्षिण की ओर चल रहा था और वायु अनुकूल था, पृथ्वी का धान्य निष्पन्न हो गया था, लोग अत्यन्त हर्षयुक्त होकर क्रीड़ा कर रहे थे, ऐसे समय में अर्द्ध रात्रि के अवसर पर अश्विनी नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ योग होने पर, हेमन्त ऋतु के चौथे मास, आठवें पक्ष, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में, चतुर्थी तिथि के पश्चात् भाग में बत्तीस सागरोपम की स्थिति वाले जयन्त नामक विमान से, अनन्तर शरीर त्याग कर, इसी जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र में, मिथिला राजधानी में, कुंभ राजा की प्रभावती देवी की कूंख में देवगति सम्बन्धी आहार का त्याग करके, वैक्रिय शरीर का त्याग करके एवं देवभव का त्याग करके गर्भ के रूप में उत्पन्न हुआ। उस रात्रि में प्रभावती देवी वास भवन में, शय्या पर यावत् अर्द्ध रात्रि के समय जब न गहरी सोई थी न जाग रही थी, तब प्रधान, कल्याणरूप, उपद्रवरहित, धन्य, मांगलिक और सश्रीक चौदह महास्वप्न देख कर जागी। वे चौदह स्वप्न इस प्रकार है – गज, वृषभ, सिंह, अभिषेक, पुष्पमाला, चन्द्रमा, सूर्य, ध्वजा, कुम्भ, पद्मयुक्त सरोवर, सागर, विमान, रत्नों की राशि और धूमरहित अग्नि। पश्चात् प्रभावती रानी जहाँ राजा कुम्भ थे, वहाँ आई। पति से स्वप्नों का वृत्तान्त कहा। कुम्भ राजा ने स्वप्नपाठकों को बुलाकर स्वप्नों का फल पूछा। यावत् प्रभावती देवी हर्षित एवं संतुष्ट होकर विचरने लगी। तत्पश्चात् प्रभावती देवी को तीन मास बराबर पूर्ण हुए तो इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ – वे माताएं धन्य हैं जो जल और थल मैं उत्पन्न हुए देदीप्यमान, अनेक पंचरंगे पुष्पों से आच्छादित और पुनः पुनः आच्छादित की हुई शय्या पर सुखपूर्वक बैठी हुई और सुख से सोई हुई विचरती हैं तथा पाटला, मालती, चम्पा, अशोक, पुंनाग के फूलों, मरुवा के पत्तों, दमनक के फूलों, निर्दोष शतपत्रिका के फूलों एवं कोरंट के उत्तम पत्तों से गूँथे हुए, परम – सुखदायक स्पर्श वाले, देखने में सुन्दर तथा अत्यन्त सौरभ छोड़ने वाले श्रीदामकण्ड के समूह को सूँघती हुई अपना दोहद पूर्ण करती हैं। तत्पश्चात् प्रभावती देवी को इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ देखकर – जानकर समीपवर्ती वाणव्यन्तर देवों ने शीघ्र ही जल और थल में उत्पन्न हुए यावत् पाँच वर्ण वाले पुष्प, कुम्भों और भारों के प्रमाण में अर्थात् बहुत से पुष्प कुम्भ राजा के भवन में लाकर पहुँचा दिए। इसके अतिरिक्त सुखप्रद एवं सुगन्ध फैलाता हुआ एक श्रीदामकण्ड भी लाकर पहुँचा दिया। तत्पश्चात् प्रभावती देवी ने जल और थल में उत्पन्न देदीप्यमान पंचवर्ण के फूलों की माला से अपना दोहला पूर्ण किया। तब प्रभावती देवी प्रशस्तदोहला होकर विचरने लगी। प्रभावती देवी ने नौ मास और साढ़े सात दिवस पूर्ण होने पर, हेमन्त ऋतु के प्रथम मास में, दूसरे पक्ष में अर्थात् मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में, एकादशी के दिन, मध्य रात्रि में, अश्विनी नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ योग होने पर, सभी ग्रहों के उच्च स्थान पर स्थित होने पर, ऐसे समय में, आरोग्य – आरोग्यपूर्वक उन्नीसवें तीर्थंकर को जन्म दिया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tattha nam atthegaiyanam devanam battisam sagarovamaim thii pannatta. Tattha nam mahabbalavajjanam chhanham devanam desunaim battisam sagarovamaim thii. Mahabbalassa devassa ya padipunnaim battisam sagarovamaim thii. Tae nam te mahabbalavajja chhappi deva jayamtao devalogao aukkhaenam bhavakkhaenam thitikkhaenam anamtaram cha yam chaitta iheva jambuddive dive bharahe vase visuddhapiimaivamsesu rayakulesu patteyam-patteyam kumarattae pachchayaya, tam jaha– Padibuddhi ikkhagaraya, Chamdachchhae amgaraya, Samkhe kasiraya, Ruppi kunalahivai, Adinasattu kururaya, Jiyasattu pamchalahivai. Tae nam se mahabbale deve tihim nanehim samagge uchchatthanagaesum gahesum, somasu disasu vitimirasu visuddhasu, jaiesu saunesu, payahinanukulamsi bhumisappimsi maruyamsi pavayamsi, nipphanna-sassa-meiniyamsi kalamsi pamuiya-pakkiliesu jana-vaesu addharattakalasamayamsi assininakkhattenam jogamuvagaenam je se hemamtanam chautthe mase atthame pakkhe, tassa nam phaggunasuddhassa chautthipakkhenam jayamtao vimanao battisam sagarovamathiiyao anamtaram chayam chaitta iheva jambuddive bharahe vase mihilae rayahanie kumbhassa ranno pabhavatie devie kuchchhimsi aharavakkamtie bhavavakkamtie sariravakkamtie gabbhattae vakkamte. Jam rayanim cha nam mahabbale deve pabhavatie devie kuchchhimsi gabbhattae vakkamte, tam rayanim cha nam sa pabhavati devi choddasa mahasumine pasitta nam padibuddha. Bhattara-kahanam. Suminapadhagapuchchha java vipulaim bhogabhogaim bhumjamani viharai. Tae nam tise pabhavaie devie tinham masanam bahupadipunnanam imeyaruve dohale paubbhue–dhannao nam tao dhammayao jao nam jala-thalaya-bhasarappabhuenam dasaddhavannenam mallenam atthuya-pachchatthuyamsi sayanijjamsi sannisannao nivanna-o ya viharamti, egam cha maham siridamagamdam padala-malliya- champaga- asoga- punnaga- naga- marugaya- damanaga- anijjakijjaya- pauram paramasuha-phasam darisanijjam mahaya gamdhaddhanim muyamtam agghayamanio dohalam vinemti. Tae nam tise pabhavaie imam eyaruvam dohalam paubbhuyam pasitta ahasannihiya vanamamtara deva khippameva jala-thalaya-bhasarappabhuyam dasaddhavannam mallam kumbhaggaso ya bharaggaso ya kumbhassa ranno bhavanamsi saharamti, egam cha nam maham siridamagamdam java gamdhaddhanim muyamtam uvanemti. Tae nam sa pabhavai devi jala-thalaya-bhasarappabhuenam dasaddhavannenam mallenam dohalam vinei. Tae nam sa pabhavai devi pasatthadohala sammaniyadohala viniyadohala sampunnadohala sampattadohala viulaim manussagaim bhogabhogaim pachchanubhavamani viharai. Tae nam sa pabhavai devi navanham masanam bahupadipunnanam addhatthamana ya raimdiyanam viikkamtanam? Je se hemamtanam padhame mase dochche pakkhe maggasirasuddhe, tassa nam ekkarasie puvvaratta-varattakalasamayamsi assininakkhattenam jogamuvagaenam? Uchchatthanagaesum gahesum java pamuiya-pakki-liesu janavaesu aroyaroyam egunavisaimam titthayaram payaya. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa jayanta vimana mem kitaneka devom ki battisa sagaropama ki sthiti kahi gai hai. Unamem se mahabala ko chhorakara dusare chhaha devom ki kuchha kama battisa sagaropama ki sthiti aura mahabala deva ki pura battisa sagaropama ki sthiti hui. Tatpashchat mahabala deva ke sivaya chhahom deva jayanta devaloka se, deva sambandhi ayu ka kshaya hone se, sthiti ka kshaya hone se aura bhava ka kshaya hone se, antara rahita, sharira ka tyaga karake isi jambudvipa mem, bharata varsha mem vishuddha mata – pita ke vamsha vale rajakulom mem, alaga – alaga kumara ke rupa mem utpanna hue. Pratibuddhi ikshvaku desha ka raja hua. Chamdrachchhaya amgadesha ka raja hua, shamkha kasideva ka raja hua, rukmi kunaladesha ka raja hua, adinashatru kurudesha ka raja hua, jitashatru pamchala desha ka raja hua. Vaha mahabala deva tina jnyanom se yukta hokara, jaba samasta graha uchcha sthana para rahe the, sabhi dishaem saumya, vitimira aura vishuddha thim, shakuna vijayakaraka the, vayu dakshina ki ora chala raha tha aura vayu anukula tha, prithvi ka dhanya nishpanna ho gaya tha, loga atyanta harshayukta hokara krira kara rahe the, aise samaya mem arddha ratri ke avasara para ashvini nakshatra ka chandrama ke satha yoga hone para, hemanta ritu ke chauthe masa, athavem paksha, phalguna masa ke shukla paksha mem, chaturthi tithi ke pashchat bhaga mem battisa sagaropama ki sthiti vale jayanta namaka vimana se, anantara sharira tyaga kara, isi jambudvipa mem bharatakshetra mem, mithila rajadhani mem, kumbha raja ki prabhavati devi ki kumkha mem devagati sambandhi ahara ka tyaga karake, vaikriya sharira ka tyaga karake evam devabhava ka tyaga karake garbha ke rupa mem utpanna hua. Usa ratri mem prabhavati devi vasa bhavana mem, shayya para yavat arddha ratri ke samaya jaba na gahari soi thi na jaga rahi thi, taba pradhana, kalyanarupa, upadravarahita, dhanya, mamgalika aura sashrika chaudaha mahasvapna dekha kara jagi. Ve chaudaha svapna isa prakara hai – gaja, vrishabha, simha, abhisheka, pushpamala, chandrama, surya, dhvaja, kumbha, padmayukta sarovara, sagara, vimana, ratnom ki rashi aura dhumarahita agni. Pashchat prabhavati rani jaham raja kumbha the, vaham ai. Pati se svapnom ka vrittanta kaha. Kumbha raja ne svapnapathakom ko bulakara svapnom ka phala puchha. Yavat prabhavati devi harshita evam samtushta hokara vicharane lagi. Tatpashchat prabhavati devi ko tina masa barabara purna hue to isa prakara ka dohada utpanna hua – ve mataem dhanya haim jo jala aura thala maim utpanna hue dedipyamana, aneka pamcharamge pushpom se achchhadita aura punah punah achchhadita ki hui shayya para sukhapurvaka baithi hui aura sukha se soi hui vicharati haim tatha patala, malati, champa, ashoka, pumnaga ke phulom, maruva ke pattom, damanaka ke phulom, nirdosha shatapatrika ke phulom evam koramta ke uttama pattom se gumthe hue, parama – sukhadayaka sparsha vale, dekhane mem sundara tatha atyanta saurabha chhorane vale shridamakanda ke samuha ko sumghati hui apana dohada purna karati haim. Tatpashchat prabhavati devi ko isa prakara ka dohada utpanna hua dekhakara – janakara samipavarti vanavyantara devom ne shighra hi jala aura thala mem utpanna hue yavat pamcha varna vale pushpa, kumbhom aura bharom ke pramana mem arthat bahuta se pushpa kumbha raja ke bhavana mem lakara pahumcha die. Isake atirikta sukhaprada evam sugandha phailata hua eka shridamakanda bhi lakara pahumcha diya. Tatpashchat prabhavati devi ne jala aura thala mem utpanna dedipyamana pamchavarna ke phulom ki mala se apana dohala purna kiya. Taba prabhavati devi prashastadohala hokara vicharane lagi. Prabhavati devi ne nau masa aura sarhe sata divasa purna hone para, hemanta ritu ke prathama masa mem, dusare paksha mem arthat margashirsha masa ke shukla paksha mem, ekadashi ke dina, madhya ratri mem, ashvini nakshatra ka chandrama ke satha yoga hone para, sabhi grahom ke uchcha sthana para sthita hone para, aise samaya mem, arogya – arogyapurvaka unnisavem tirthamkara ko janma diya. |