Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004768 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 68 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से सुए अन्नया कयाइ जेणेव सेलगपुरे नगरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। सेलओ निग्गच्छइ। तए णं से सेलए सुयस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे सुयं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं जाव नवरं देवानुप्पिया! पंथगपामोक्खाइं पंच मंतिसयाइं आपुच्छामि, मंडुयं च कुमारं रज्जे ठावेमि। तओ पच्छा देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयामि। अहासुहं देवानुप्पिया। तए णं से सेलए राया सेलगपुरं नगरं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाण-साला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासने सण्णिसण्णे। तए णं से सेलए राया पंथगपामोक्खे पंच मंतिसए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मए सुयस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तए णं अहं देवानुप्पिया! संसारभउव्विग्गे भीए जम्मण-जर-मरणाणं सुयस्स अनगारस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयामि। तुब्भे णं देवानुप्पिया! किं करेह? किं ववसह? किं वा भे हियइच्छिए सामत्थे? तए णं ते पंथगपामोक्खा पंच मंतिसया सेलगं रायं एवं वयासी–जइ णं तुब्भे देवानुप्पिया! संसारभउव्विग्गा जाव पव्वयह, अम्हं णं देवानुप्पिया! के अन्ने आहारे वा आलंबे वा? अम्हे वि य णं देवानुप्पिया! संसारभउव्विग्गा जाव पव्वयामो। जहा णं देवानुप्पिया! अम्हं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य आपुच्छणि-ज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढी पमाणं आहारे आलंबणं चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए आलंबणभूए चक्खुभूए०, तहा णं पव्व-इयाण वि समाणाणं बहूसु कज्जेसु य जाव चक्खुभूए। तए णं से सेलगे पंथगपामोक्खे पंच मंतिसए एवं वयासी–जइ णं देवानुप्पिया! तुब्भे संसारभउव्विग्गा जाव पव्वयह, तं गच्छह णं देवानुप्पिया! सएसु-सएसु कुटुंबेसु जेट्ठपुत्ते कुटुंबमज्झे ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ दुरूढा समाणा मम अंतियं पाउब्भवह। ते वि तहेव पाउब्भवंति। तए णं से सेलए राया पंच मंतिसयाइं पाउब्भवमाणाइं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! मंडुयस्स कुमारस्स महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा मंडुयस्स कुमारस्स महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेंति। तए णं से सेलए राया बहूहिं गणनायगेहिं य जाव संधिवालेहि य सद्धिं संपरिवुडे मंडुयं कुमारं जाव रायाभिसेएणं अभिसिंचइ। तए णं से मंडुए राया जाए–महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ। तए णं से सेलए मंडुयं रायं आपुच्छइ। तए णं मंडुए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! सेलगपुरं नयरं आसिय-सित्त-सुइय-सम्मज्जिओवलित्तं जाव सुगंधवरगंधियं० गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं से मंडुए दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! सेलगस्स रन्नो महत्थं महग्घं महरिहं विउलं निक्खमणाभिसेयं [करेह?] जहेव मेहस्स तहेव नवरं–पउमावती देवी अग्गकेसे पडिच्छइ, सच्चेव पडिग्गहं गहाय सीयं दुरुहइ। अवसेसं तहेव जाव। तए णं से सेलगे सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणामेव सुए तेणामेव उवा-गच्छइ, उवागच्छित्ता सुयं अनगारं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ जाव पव्वइए। तए णं से सेलए अनगारे जाए जाव कम्मनिग्घायणट्ठाए एवं च णं विहरइ। तए णं से सेलए सुयस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से सुए सेलगस्स अनगारस्स ताइं पंथगपामोक्खाइं पंच अनगारसयाइं सीसत्ताए वियरइ। तए णं से सुए अन्नया कयाइ सेलगपुराओ नगराओ सुभूमिभागाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तए णं से सुए अनगारे अन्नया कयाइ तेणं अनगारसहस्सेणं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव पुंडरीयपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहइ, दुरुहित्ता मेघघणसन्निगासं देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता जाव संलेहणा-ज्झूसणा-ज्झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए पाओवगमणंणुवन्ने। तए णं से सुए बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसणाए छेदित्ता जाव केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे०। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् शुक परिव्राजक ने सुदर्शन से इस प्रकार कहा – ‘हे सुदर्शन ! चलें, हम तुम्हारे धर्माचार्य थावच्चा – पुत्र के समीप प्रकट हों – चलें और इन अर्थों को, हेतुओं को, प्रश्नों को, कारणों को तथा व्याकरणों को पूछें।’ अगर वह मेरे इन अर्थों, हेतुओं, प्रश्नों, कारणों और व्याकरणों का उत्तर देंगे तो मैं उन्हें वन्दना करूँगा, नमस्कार करूँगा और यदि वह मेरे इन अर्थों यावत् व्याकरणों को नहीं कहेंगे – मैं उन्हें इन्हीं अर्थों तथा हेतुओं आदि से निरुत्तर कर दूँगा। तत्पश्चात् वह शुक परिव्राजक, एक हजार परिव्राजकों के और सुदर्शन सेठ के साथ जहाँ नीलाशोक उद्यान था, और जहाँ थावच्चापुत्र अनगार थे, वहाँ आया। आकर थावच्चापुत्र से कहने लगा – ‘भगवन् ! तुम्हारी यात्रा चल रही है ? यापनीय है ? तुम्हारे अव्याबाध है ? और तुम्हारा प्रासुक विहार हो रहा है ? तब थावच्चापुत्र ने शुक परि – व्राजक के इस प्रकार कहने पर शुक से कहा – हे शुक ! मेरी यात्रा भी हो रही है, यापनीय भी वर्त रहा है, अव्याबाध भी है और प्रासुक विहार भी हो रहा है। तत्पश्चात् शुक ने थावच्चापुत्र से इस प्रकार कहा – ‘भगवन् ! आपकी यात्रा क्या है ? (थावच्चापुत्र) हे शुक! ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और संयम आदि योगों से जीवों की यतना करना हमारी यात्रा है। शुक – भगवन् ! यापनीय क्या है ? थावच्चापुत्र – शुक ! दो प्रकार का है – इन्द्रिय – यापनीय और नोइन्द्रिय – यापनीय। शुक – ‘इन्द्रिय – यापनीय किसे कहते हैं ?’ ‘शुक ! हमारी श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय बिना किसी उपद्रव के वशीभूत रहती हैं, यही हमारा इन्द्रिय – यापनीय है।’ शुक – ‘नो – इन्द्रिय – यापनीय क्या है ?’ ‘हे शुक! क्रोध, मान, माया और लोभ रूप कषाय क्षीण हो गए हों, उपशान्त हो गए हों, उदय में न आ रहे हों, यही हमारा नोइन्द्रिय – यापनीय कहलाता है।’ शुक ने कहा – ‘भगवन् ! अव्याबाध क्या है ?’ ‘हे शुक ! जो वात, पित्त, कफ और सन्निपात आदि सम्बन्धी विविध प्रकार के रोग और आतंक उदय में न आवें, वह हमारा अव्याबाध है।’ शुक – ‘भगवन् ! प्रासुक विहार क्या है ? हे शुक ! हम जो आराम में, उद्यान में, देवकुल में, सभा में तथा स्त्री, पशु और नपुंसक से रहित उपाश्रय में पडिहारी पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक आदि ग्रहण करके विचरते हैं, वह हमारा प्रासुक विहार है।’ शुक परिव्राजक ने प्रश्न किया – ‘भगवन् ! आपके लिए ‘सरिसवया’ भक्ष्य हैं या अभक्ष्य हैं ?’ थावच्चापुत्र ने कहा – ‘हे शुक ! भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी।’ शुक ने पुनः प्रश्न किया – यावत् ! किस अभिप्राय से ऐसा कहते हो कि ‘सरिसवया’ भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं ?’ थावच्चापुत्र ‘हे शुक ! ‘सरिसवया’ दो प्रकार के हैं। मित्र – सरिसवया और धान्य – सरिसवया। इनमें जो मित्र – सरिसवया है, वे तीन प्रकार के हैं। साथ जन्मे हुए, साथ बढ़े हुए और साथ – साथ धूल में खेले हुए। यह तीन प्रकार के मित्र – सरिसवया श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। जो धान्य – सरिसवया हैं, वे दो प्रकार के हैं। शस्त्रपरिणत और अशस्त्रपरिणत। उनमें जो अशस्त्रपरिणत हैं वे श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। जो शस्त्रपरिणत हैं, वे दो प्रकार के हैं। प्रासुक और अप्रासुक। हे शुक ! अप्रासुक भक्ष्य नहीं हैं। उनमें जो प्रासुक हैं, वे दो प्रकार के हैं। याचित और अयाचित। उनमें जो अयाचित है, वे अभक्ष्य हैं। उनमें जो याचित हैं, वे दो प्रकार के हैं। यथा – एषणीय और अनेषणीय। उनमें जो अनेषणीय हैं, वे अभक्ष्य हैं। जो एषणीय हैं, वे दो प्रकार के हैं – लब्ध और अलब्ध। उनमें जो अलब्ध हैं, वे अभक्ष्य हैं। जो लब्ध हैं वे निर्ग्रन्थों के लिए भक्ष्य हैं। ‘हे शुक ! इस अभिप्राय से सरिसवया भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं।’ इसी प्रकार ‘कुलत्था’ भी कहना, विशेषता इस प्रकार हैं – कुलत्था के दो भेद हैं – स्त्री – कुलत्था और धान्य – कुलत्था। स्त्री – कुलत्था तीन प्रकार की है। कुलवधू, कुलमाता और कुलपुत्री। ये अभक्ष्य हैं। धान्यकुलत्था भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं इत्यादि। मास सम्बन्धी प्रश्नोत्तर भी इसी प्रकार जानना। विशेषता इस प्रकार है – मास तीन प्रकार के हैं। कालमास, अर्थमास और धान्मास। इनमें से कालमास बारह प्रकार के हैं। श्रावण यावत् आषाढ़, वे सब अभक्ष्य हैं। अर्थमास दो प्रकार के हैं – चाँदी का माशा और सोने का माशा। वे भी अभक्ष्य हैं। धान्मास भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं; शुक परिव्राजक ने पुनः प्रश्न किया – ‘आप एक हैं ? आप दो हैं ? आप अनेक हैं ? आप अक्षय हैं ? आप अव्यय हैं ? आप अवस्थित हैं ? आप भूत, भाव और भावी वाले हैं ?’ ‘हे शुक ! मैं द्रव्य की अपेक्षा से एक हूँ, क्योंकि जीव द्रव्य एक ही है। ज्ञान और दर्शन की अपेक्षा से मैं दो भी हूँ। प्रदेशों की अपेक्षा से मैं अक्षय भी हूँ, अव्यय भी हूँ, अवस्थित भी हूँ। उपयोग की अपेक्षा से अनेक भूत, भाव और भावि भी हूँ। थावच्चापुत्र के उत्तर से शुक परिव्राजक को प्रतिबोध प्राप्त हुआ। उसने थावच्चापुत्र को वन्दना की, नमस्कार किया। इस प्रकार कहा – ’भगवन् ! मैं आपके पास केवली प्ररूपित धर्म सूनने की अभिलाषा करता हूँ। तत्पश्चात् शुक परिव्राजक थावच्चापुत्र से धर्मकथा सून कर और उसे हृदय में धारण करके इस प्रकार बोला – ‘भगवन् ! मैं एक हजार परिव्राजकों के साथ देवानुप्रिय के निकट मुण्डित होकर प्रव्रजित होना चाहता हूँ।’ थावच्चापुत्र अनगार बोले – ‘देवानुप्रिय ! जिस प्रकार सुख उपजे वैसा करो।’ यह सूनकर यावत् उत्तरपूर्व दिशा में जाकर शुक परिव्राजक ने त्रिदंड आदि उपकरण यावत् गेरू से रंगे वस्त्र एकान्त में उतार डाले। अपने ही हाथ से शिखा उखाड़ ली। उखाड़ कर जहाँ थावच्चापुत्र अनगार थे, वहाँ आया। वन्दन – नमस्कार किया, वन्दन – नमस्कार करके मुण्डित होकर यावत् थावच्चापुत्र अनगार के निकट दीक्षित हो गया। फिर सामायिक से आरम्भ करके चौदह पूर्वों का अध्ययन किया। तत्पश्चात् थावच्चापुत्रने शुक को १००० अनगार शिष्य के रूप में प्रदान किए। तत्पश्चात् थावच्चापुत्र अनगार सौगंधिका नगरी से और नीलाशोक उद्यान से बाहर नीकले। नीकलकर जनपदविहार अर्थात् विभिन्न देशों में विचरण करने लगे। तत्पश्चात् वह थावच्चापुत्र हजार साधुओं के साथ जहाँ पुण्डरीक – शत्रुंजय पर्वत था, वहाँ आए। धीरे – धीरे पुण्डरीक पर्वत पर आरूढ़ हुए। उन्होंने मेघघटा के समान श्याम और जहाँ देवों का आगमन होता था, ऐसे पृथ्वीशिलापट्टक का प्रतिलेखन किया। प्रतिलेखन करके संलेखना धारण कर आहार – पानी का त्याग कर उस शिलापट्टक पर आरूढ़ होकर यावत् पादपोपगमन अनशन ग्रहण किया। वह थावच्चापुत्र बहुत वर्षों तक श्रामण्यपर्याय पाल कर, ऐसे मां की संलेखना करके साट भक्तों का अनशन करके यावत् केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त करके सिद्ध हुए, वृद्ध हुए, समस्त कर्मों से मुक्त हुए, संसार का अन्त किया, परिनिर्वाण प्राप्त किया तथा सर्व दुःखों से मुक्त हुए। तत्पश्चात् शुक अनगार किसी समय जहाँ शैलकपुर नगर था और जहाँ सुभूमिभाग नामक उद्यान था, वहीं पधारे। उन्हें वन्दना करने के लिए परीषद् नीकली। शैलक राजा भी नीकला। धर्मोपदेश सूनकर उसे प्रतिबोध प्राप्त हुआ। विशेष यह कि राजा ने निवेदन किया – हे देवानुप्रिय ! मैं पंथक आदि पाँच सौ मंत्रियों से पूछ लूँ – उनकी अनुमति ले लूँ और मंडुक कुमार को राज्य पर स्थापित कर दूँ। उसके पश्चात् आप देवानुप्रिय के समीप मुंडित होकर गृहवास से नीकलकर अनगार – दीक्षा अंगीकार करूँगा। यह सूनकर, शुक अनगार ने कहा – ‘जैसे सुख उपजे वैसा करो।’ तत्पश्चात् शैलक राजा ने शैलकपुर नगर में प्रवेश किया। जहाँ अपना घर था और उप – स्थानशाला थी, वहाँ आया। आकर सिंहासन पर आसीन हुआ। तत्पश्चात् शैलक राजा ने पंथक आदि पाँच सौ मंत्रियों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा – ‘हे देवानुप्रिय ! मैंने शुक अनगार से धर्म सूना है और उस धर्म की मैंने ईच्छा की है। वह धर्म मुझे रुचा है। अत एव हे देवानुप्रियो ! मैं संसार के भय से उद्विग्न होकर दीक्षा ग्रहण कर रहा हूँ। देवानुप्रियो ! तुम क्या करोगे ? कहाँ रहोगे ? तुम्हारा हित और अभीष्ट क्या है ? अथवा तुम्हारी हार्दिक ईच्छा क्या है ?’ तब वे पंथक आदि मंत्री शैलक राजा से इस प्रकार कहने लगे – ‘हे देवानुप्रिय ! यदि आप संसार के भय से उद्विग्न होकर यावत् प्रव्रजित होना चाहते हैं, तो हे देवानुप्रिय ! हमारा दूसरा आधार कौन है ? हमारा आलंबन कौन है ? अत एव हे देवानुप्रिय ! हम भी संसार के भय से उद्विग्न होकर दीक्षा अंगीकार करेंगे। हे देवानुप्रिय ! जैसे आप यहाँ गृहावस्था में बहुत से कार्यों में, कुटुम्ब सम्बन्धी विषयों में, मन्त्रणाओं में, गुप्त एवं रहस्यमय बातों में, कोई भी निश्चय करने में एक और बार – बार पूछने योग्य है, मेढ़ी, प्रमाण, आधार, आलंबन और चक्षुरूप – मार्गदर्शक हैं, मेढ़ी प्रमाण आधार आलंबन एवं नेत्र समान है यावत् आप मार्गदर्शक हैं, उसी प्रकार दीक्षित होकर भी आप बहुत – से कार्यों में यावत् चक्षुभूत होंगे। तत्पश्चात् शैलक राजा ने पंथक प्रभृति पाँच सौं मंत्रियों से इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रियो ! यदि तुम संसार के भय से उद्विग्न हुए हो, यावत् दीक्षा ग्रहण करना चाहते हो तो, देवानुप्रियो ! जाओ और अपने – अपने कुटुम्बों में अपने – अपने ज्येष्ठ पुत्रों को कुटुम्ब के मध्य में स्थापित करके अर्थात् परिवार का समस्त उत्तरदायित्व उन्हें सौंप कर हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिविकाओं पर आरूढ़ होकर मेरे समीप प्रकट होओ।’ यह सूनकर पाँच सौ मंत्री अपने – अपने घर चले गए और राजा के आदेशानुसार कार्य करके शिबिकाओं पर आरूढ़ होकर वापिस राजा के पास प्रकट हुए – आ पहुँचे। तत्पश्चात् शैलक राजा ने पाँच सौ मंत्रियों को अपने पास आया देखा। देखकर हृष्ट – तुष्ट होकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रियो ! शीघ्र ही मंडुक कुमार के महान् अर्थ वाले राज्याभिषेक की तैयारी करो।’ कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा ही किया। शैलक राजा ने राज्याभिषेक किया। मंडुक कुमार राजा हो गया, यावत् सुखपूर्वक विचरने लगा। तत्पश्चात् शैलक ने मंडुक राजा से दीक्षा लेने की आज्ञा मांगी। तब मंडुक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा – ‘शीघ्र ही शैलकपुर नगर को स्वच्छ और सिंचित करके सुगंध की बट्टी के समान करो और कराओ। ऐसा करके और कराकर यह आज्ञा मुझे वापिस सौंपो अर्थात् आज्ञानुसार कार्य हो जाने की मुझे सूचना दो।’ तत्पश्चात् मंडुक राजाने दुबारा कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा – ‘शीघ्र ही शैलक महाराजा के महान् अर्थवाले यावत् दीक्षाभिषेक की तैयारी करो।’ जैसे मेघकुमार के प्रकरणमें प्रथम अध्ययन में कहा था, उसी प्रकार यहाँ भी कहना। विशेषता यह है कि पद्मावती देवी ने शैलक के अग्रकेश ग्रहण किये। सभी दीक्षार्थी प्रतिग्रह – पात्र आदि ग्रहण करके शिबिका पर आरूढ़ हुए। शेष वर्णन पूर्ववत् समझना। यावत् राजर्षि शैलक ने दीक्षित होकर सामायिक से आरम्भ करके ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। अध्ययन करके बहुत से उपवास आदि तपश्चरण करते हुए विचरने लगे। तत्पश्चात् शुक अनगार ने शैलक अनगार को पंथक प्रभृति पाँच सौ अनगार शिष्य के रूप में प्रदान किये। फिर शुक मुनि किसी समय शैलकपुर नगर से और सुभूमि – भाग उद्यान से बाहर नीकले। नीकलकर जनपदों में विचरने लगे। तत्पश्चात् वह शुक अनगार एक बार किसी समय एक हजार अनगारों के साथ अनुक्रम से विचरते हुए, ग्रामानुग्राम विहार करते हुए अपना अन्तिम समय समीप आया जानकर पुंडरीक पर्वत पर पधारे। यावत् केवलज्ञान केवलदर्शन प्राप्त करके सिद्ध यावत् दुःखों रहित हो गए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se sue annaya kayai jeneva selagapure nagare jeneva subhumibhage ujjane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Parisa niggaya. Selao niggachchhai. Tae nam se selae suyassa amtie dhammam sochcha nisamma hatthatutthe suyam tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–saddahami nam bhamte! Niggamtham pavayanam java navaram devanuppiya! Pamthagapamokkhaim pamcha mamtisayaim apuchchhami, mamduyam cha kumaram rajje thavemi. Tao pachchha devanuppiyanam amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvayami. Ahasuham devanuppiya. Tae nam se selae raya selagapuram nagaram anuppavisai, anuppavisitta jeneva sae gihe jeneva bahiriya uvatthana-sala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sihasane sannisanne. Tae nam se selae raya pamthagapamokkhe pamcha mamtisae saddavei, saddavetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Mae suyassa amtie dhamme nisamte, se vi ya me dhamme ichchhie padichchhie abhiruie. Tae nam aham devanuppiya! Samsarabhauvvigge bhie jammana-jara-marananam suyassa anagarassa amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvayami. Tubbhe nam devanuppiya! Kim kareha? Kim vavasaha? Kim va bhe hiyaichchhie samatthe? Tae nam te pamthagapamokkha pamcha mamtisaya selagam rayam evam vayasi–jai nam tubbhe devanuppiya! Samsarabhauvvigga java pavvayaha, amham nam devanuppiya! Ke anne ahare va alambe va? Amhe vi ya nam devanuppiya! Samsarabhauvvigga java pavvayamo. Jaha nam devanuppiya! Amham bahusu kajjesu ya karanesu ya kudumbesu ya mamtesu ya gujjhesu ya rahassesu ya nichchhaesu ya apuchchhani-jje padipuchchhanijje, medhi pamanam ahare alambanam chakkhu, medhibhue pamanabhue aharabhue alambanabhue chakkhubhue0, taha nam pavva-iyana vi samananam bahusu kajjesu ya java chakkhubhue. Tae nam se selage pamthagapamokkhe pamcha mamtisae evam vayasi–jai nam devanuppiya! Tubbhe samsarabhauvvigga java pavvayaha, tam gachchhaha nam devanuppiya! Saesu-saesu kutumbesu jetthaputte kutumbamajjhe thavetta purisasahassavahinio siyao durudha samana mama amtiyam paubbhavaha. Te vi taheva paubbhavamti. Tae nam se selae raya pamcha mamtisayaim paubbhavamanaim pasai, pasitta hatthatutthe kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Mamduyassa kumarassa mahattham mahaggham mahariham viulam rayabhiseyam uvatthaveha. Tae nam te kodumbiyapurisa mamduyassa kumarassa mahattham mahaggham mahariham viulam rayabhiseyam uvatthavemti. Tae nam se selae raya bahuhim gananayagehim ya java samdhivalehi ya saddhim samparivude mamduyam kumaram java rayabhiseenam abhisimchai. Tae nam se mamdue raya jae–mahayahimavamta-mahamta-malaya-mamdara-mahimdasare java rajjam pasasemane viharai. Tae nam se selae mamduyam rayam apuchchhai. Tae nam mamdue raya kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Selagapuram nayaram asiya-sitta-suiya-sammajjiovalittam java sugamdhavaragamdhiyam0 gamdhavattibhuyam kareha ya karaveha ya, eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam se mamdue dochcham pi kodumbiyapurise evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Selagassa ranno mahattham mahaggham mahariham viulam nikkhamanabhiseyam [kareha?] jaheva mehassa taheva navaram–paumavati devi aggakese padichchhai, sachcheva padiggaham gahaya siyam duruhai. Avasesam taheva java. Tae nam se selage sayameva pamchamutthiyam loyam karei, karetta jenameva sue tenameva uva-gachchhai, uvagachchhitta suyam anagaram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai java pavvaie. Tae nam se selae anagare jae java kammanigghayanatthae evam cha nam viharai. Tae nam se selae suyassa taharuvanam theranam amtie samaiyamaiyaim ekkarasa amgaim ahijjai, ahijjitta bahuhim chauttha-chhatthatthama-dasama-duvalasehim masaddhamasakhamanehim appanam bhavemane viharai. Tae nam se sue selagassa anagarassa taim pamthagapamokkhaim pamcha anagarasayaim sisattae viyarai. Tae nam se sue annaya kayai selagapurao nagarao subhumibhagao ujjanao padinikkhamai, padinikkhamitta bahiya janavayaviharam viharai. Tae nam se sue anagare annaya kayai tenam anagarasahassenam saddhim samparivude puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane suhamsuhenam viharamane jeneva pumdariyapavvae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta pumdariyam pavvayam saniyam-saniyam duruhai, duruhitta meghaghanasannigasam devasannivayam pudhavisilapattayam padilehei, padilehetta java samlehana-jjhusana-jjhusie bhattapana-padiyaikkhie paovagamanamnuvanne. Tae nam se sue bahuni vasani samannapariyagam paunitta, masiyae samlehanae attanam jjhusitta, satthim bhattaim anasanae chheditta java kevalavarananadamsanam samuppadetta tao pachchha siddhe buddhe mutte amtagade parinivvude savvadukkhappahine0. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat shuka parivrajaka ne sudarshana se isa prakara kaha – ‘he sudarshana ! Chalem, hama tumhare dharmacharya thavachcha – putra ke samipa prakata hom – chalem aura ina arthom ko, hetuom ko, prashnom ko, karanom ko tatha vyakaranom ko puchhem.’ agara vaha mere ina arthom, hetuom, prashnom, karanom aura vyakaranom ka uttara demge to maim unhem vandana karumga, namaskara karumga aura yadi vaha mere ina arthom yavat vyakaranom ko nahim kahemge – maim unhem inhim arthom tatha hetuom adi se niruttara kara dumga. Tatpashchat vaha shuka parivrajaka, eka hajara parivrajakom ke aura sudarshana setha ke satha jaham nilashoka udyana tha, aura jaham thavachchaputra anagara the, vaham aya. Akara thavachchaputra se kahane laga – ‘bhagavan ! Tumhari yatra chala rahi hai\? Yapaniya hai\? Tumhare avyabadha hai\? Aura tumhara prasuka vihara ho raha hai\? Taba thavachchaputra ne shuka pari – vrajaka ke isa prakara kahane para shuka se kaha – he shuka ! Meri yatra bhi ho rahi hai, yapaniya bhi varta raha hai, avyabadha bhi hai aura prasuka vihara bhi ho raha hai. Tatpashchat shuka ne thavachchaputra se isa prakara kaha – ‘bhagavan ! Apaki yatra kya hai\? (thavachchaputra) he shuka! Jnyana, darshana, charitra, tapa aura samyama adi yogom se jivom ki yatana karana hamari yatra hai. Shuka – bhagavan ! Yapaniya kya hai\? Thavachchaputra – shuka ! Do prakara ka hai – indriya – yapaniya aura noindriya – yapaniya. Shuka – ‘indriya – yapaniya kise kahate haim\?’ ‘shuka ! Hamari shrotrendriya, chakshurindriya, ghranendriya, rasanendriya aura sparshanendriya bina kisi upadrava ke vashibhuta rahati haim, yahi hamara indriya – yapaniya hai.’ shuka – ‘no – indriya – yapaniya kya hai\?’ ‘he shuka! Krodha, mana, maya aura lobha rupa kashaya kshina ho gae hom, upashanta ho gae hom, udaya mem na a rahe hom, yahi hamara noindriya – yapaniya kahalata hai.’ shuka ne kaha – ‘bhagavan ! Avyabadha kya hai\?’ ‘he shuka ! Jo vata, pitta, kapha aura sannipata adi sambandhi vividha prakara ke roga aura atamka udaya mem na avem, vaha hamara avyabadha hai.’ shuka – ‘bhagavan ! Prasuka vihara kya hai\? He shuka ! Hama jo arama mem, udyana mem, devakula mem, sabha mem tatha stri, pashu aura napumsaka se rahita upashraya mem padihari pitha, phalaka, shayya, samstaraka adi grahana karake vicharate haim, vaha hamara prasuka vihara hai.’ Shuka parivrajaka ne prashna kiya – ‘bhagavan ! Apake lie ‘sarisavaya’ bhakshya haim ya abhakshya haim\?’ thavachchaputra ne kaha – ‘he shuka ! Bhakshya bhi haim aura abhakshya bhi.’ shuka ne punah prashna kiya – yavat ! Kisa abhipraya se aisa kahate ho ki ‘sarisavaya’ bhakshya bhi haim aura abhakshya bhi haim\?’ thavachchaputra ‘he shuka ! ‘sarisavaya’ do prakara ke haim. Mitra – sarisavaya aura dhanya – sarisavaya. Inamem jo mitra – sarisavaya hai, ve tina prakara ke haim. Satha janme hue, satha barhe hue aura satha – satha dhula mem khele hue. Yaha tina prakara ke mitra – sarisavaya shramana nirgranthom ke lie abhakshya haim. Jo dhanya – sarisavaya haim, ve do prakara ke haim. Shastraparinata aura ashastraparinata. Unamem jo ashastraparinata haim ve shramana nirgranthom ke lie abhakshya haim. Jo shastraparinata haim, ve do prakara ke haim. Prasuka aura aprasuka. He shuka ! Aprasuka bhakshya nahim haim. Unamem jo prasuka haim, ve do prakara ke haim. Yachita aura ayachita. Unamem jo ayachita hai, ve abhakshya haim. Unamem jo yachita haim, ve do prakara ke haim. Yatha – eshaniya aura aneshaniya. Unamem jo aneshaniya haim, ve abhakshya haim. Jo eshaniya haim, ve do prakara ke haim – labdha aura alabdha. Unamem jo alabdha haim, ve abhakshya haim. Jo labdha haim ve nirgranthom ke lie bhakshya haim. ‘he shuka ! Isa abhipraya se sarisavaya bhakshya bhi haim aura abhakshya bhi haim.’ Isi prakara ‘kulattha’ bhi kahana, visheshata isa prakara haim – kulattha ke do bheda haim – stri – kulattha aura dhanya – kulattha. Stri – kulattha tina prakara ki hai. Kulavadhu, kulamata aura kulaputri. Ye abhakshya haim. Dhanyakulattha bhakshya bhi haim aura abhakshya bhi haim ityadi. Masa sambandhi prashnottara bhi isi prakara janana. Visheshata isa prakara hai – masa tina prakara ke haim. Kalamasa, arthamasa aura dhanmasa. Inamem se kalamasa baraha prakara ke haim. Shravana yavat asharha, ve saba abhakshya haim. Arthamasa do prakara ke haim – chamdi ka masha aura sone ka masha. Ve bhi abhakshya haim. Dhanmasa bhakshya bhi haim aura abhakshya bhi haim; Shuka parivrajaka ne punah prashna kiya – ‘apa eka haim\? Apa do haim\? Apa aneka haim\? Apa akshaya haim\? Apa avyaya haim\? Apa avasthita haim\? Apa bhuta, bhava aura bhavi vale haim\?’ ‘he shuka ! Maim dravya ki apeksha se eka hum, kyomki jiva dravya eka hi hai. Jnyana aura darshana ki apeksha se maim do bhi hum. Pradeshom ki apeksha se maim akshaya bhi hum, avyaya bhi hum, avasthita bhi hum. Upayoga ki apeksha se aneka bhuta, bhava aura bhavi bhi hum. Thavachchaputra ke uttara se shuka parivrajaka ko pratibodha prapta hua. Usane thavachchaputra ko vandana ki, namaskara kiya. Isa prakara kaha – ’bhagavan ! Maim apake pasa kevali prarupita dharma sunane ki abhilasha karata hum. Tatpashchat shuka parivrajaka thavachchaputra se dharmakatha suna kara aura use hridaya mem dharana karake isa prakara bola – ‘bhagavan ! Maim eka hajara parivrajakom ke satha devanupriya ke nikata mundita hokara pravrajita hona chahata hum.’ thavachchaputra anagara bole – ‘devanupriya ! Jisa prakara sukha upaje vaisa karo.’ yaha sunakara yavat uttarapurva disha mem jakara shuka parivrajaka ne tridamda adi upakarana yavat geru se ramge vastra ekanta mem utara dale. Apane hi hatha se shikha ukhara li. Ukhara kara jaham thavachchaputra anagara the, vaham aya. Vandana – namaskara kiya, vandana – namaskara karake mundita hokara yavat thavachchaputra anagara ke nikata dikshita ho gaya. Phira samayika se arambha karake chaudaha purvom ka adhyayana kiya. Tatpashchat thavachchaputrane shuka ko 1000 anagara shishya ke rupa mem pradana kie. Tatpashchat thavachchaputra anagara saugamdhika nagari se aura nilashoka udyana se bahara nikale. Nikalakara janapadavihara arthat vibhinna deshom mem vicharana karane lage. Tatpashchat vaha thavachchaputra hajara sadhuom ke satha jaham pundarika – shatrumjaya parvata tha, vaham ae. Dhire – dhire pundarika parvata para arurha hue. Unhomne meghaghata ke samana shyama aura jaham devom ka agamana hota tha, aise prithvishilapattaka ka pratilekhana kiya. Pratilekhana karake samlekhana dharana kara ahara – pani ka tyaga kara usa shilapattaka para arurha hokara yavat padapopagamana anashana grahana kiya. Vaha thavachchaputra bahuta varshom taka shramanyaparyaya pala kara, aise mam ki samlekhana karake sata bhaktom ka anashana karake yavat kevalajnyana aura kevaladarshana prapta karake siddha hue, vriddha hue, samasta karmom se mukta hue, samsara ka anta kiya, parinirvana prapta kiya tatha sarva duhkhom se mukta hue. Tatpashchat shuka anagara kisi samaya jaham shailakapura nagara tha aura jaham subhumibhaga namaka udyana tha, vahim padhare. Unhem vandana karane ke lie parishad nikali. Shailaka raja bhi nikala. Dharmopadesha sunakara use pratibodha prapta hua. Vishesha yaha ki raja ne nivedana kiya – he devanupriya ! Maim pamthaka adi pamcha sau mamtriyom se puchha lum – unaki anumati le lum aura mamduka kumara ko rajya para sthapita kara dum. Usake pashchat apa devanupriya ke samipa mumdita hokara grihavasa se nikalakara anagara – diksha amgikara karumga. Yaha sunakara, shuka anagara ne kaha – ‘jaise sukha upaje vaisa karo.’ tatpashchat shailaka raja ne shailakapura nagara mem pravesha kiya. Jaham apana ghara tha aura upa – sthanashala thi, vaham aya. Akara simhasana para asina hua. Tatpashchat shailaka raja ne pamthaka adi pamcha sau mamtriyom ko bulaya. Bulakara isa prakara kaha – ‘he devanupriya ! Maimne shuka anagara se dharma suna hai aura usa dharma ki maimne ichchha ki hai. Vaha dharma mujhe rucha hai. Ata eva he devanupriyo ! Maim samsara ke bhaya se udvigna hokara diksha grahana kara raha hum. Devanupriyo ! Tuma kya karoge\? Kaham rahoge\? Tumhara hita aura abhishta kya hai\? Athava tumhari hardika ichchha kya hai\?’ taba ve pamthaka adi mamtri shailaka raja se isa prakara kahane lage – ‘he devanupriya ! Yadi apa samsara ke bhaya se udvigna hokara yavat pravrajita hona chahate haim, to he devanupriya ! Hamara dusara adhara kauna hai\? Hamara alambana kauna hai\? Ata eva he devanupriya ! Hama bhi samsara ke bhaya se udvigna hokara diksha amgikara karemge. He devanupriya ! Jaise apa yaham grihavastha mem bahuta se karyom mem, kutumba sambandhi vishayom mem, mantranaom mem, gupta evam rahasyamaya batom mem, koi bhi nishchaya karane mem eka aura bara – bara puchhane yogya hai, merhi, pramana, adhara, alambana aura chakshurupa – margadarshaka haim, merhi pramana adhara alambana evam netra samana hai yavat apa margadarshaka haim, usi prakara dikshita hokara bhi apa bahuta – se karyom mem yavat chakshubhuta homge. Tatpashchat shailaka raja ne pamthaka prabhriti pamcha saum mamtriyom se isa prakara kaha – he devanupriyo ! Yadi tuma samsara ke bhaya se udvigna hue ho, yavat diksha grahana karana chahate ho to, devanupriyo ! Jao aura apane – apane kutumbom mem apane – apane jyeshtha putrom ko kutumba ke madhya mem sthapita karake arthat parivara ka samasta uttaradayitva unhem saumpa kara hajara purushom dvara vahana karane yogya shivikaom para arurha hokara mere samipa prakata hoo.’ yaha sunakara pamcha sau mamtri apane – apane ghara chale gae aura raja ke adeshanusara karya karake shibikaom para arurha hokara vapisa raja ke pasa prakata hue – a pahumche. Tatpashchat shailaka raja ne pamcha sau mamtriyom ko apane pasa aya dekha. Dekhakara hrishta – tushta hokara kautumbika purushom ko bulaya. Bulakara isa prakara kaha – ‘devanupriyo ! Shighra hi mamduka kumara ke mahan artha vale rajyabhisheka ki taiyari karo.’ kautumbika purushom ne vaisa hi kiya. Shailaka raja ne rajyabhisheka kiya. Mamduka kumara raja ho gaya, yavat sukhapurvaka vicharane laga. Tatpashchat shailaka ne mamduka raja se diksha lene ki ajnya mamgi. Taba mamduka raja ne kautumbika purushom ko bulaya. Bulakara isa prakara kaha – ‘shighra hi shailakapura nagara ko svachchha aura simchita karake sugamdha ki batti ke samana karo aura karao. Aisa karake aura karakara yaha ajnya mujhe vapisa saumpo arthat ajnyanusara karya ho jane ki mujhe suchana do.’ Tatpashchat mamduka rajane dubara kautumbika purushom ko bulaya. Bulakara isa prakara kaha – ‘shighra hi shailaka maharaja ke mahan arthavale yavat dikshabhisheka ki taiyari karo.’ jaise meghakumara ke prakaranamem prathama adhyayana mem kaha tha, usi prakara yaham bhi kahana. Visheshata yaha hai ki padmavati devi ne shailaka ke agrakesha grahana kiye. Sabhi diksharthi pratigraha – patra adi grahana karake shibika para arurha hue. Shesha varnana purvavat samajhana. Yavat rajarshi shailaka ne dikshita hokara samayika se arambha karake gyaraha amgom ka adhyayana kiya. Adhyayana karake bahuta se upavasa adi tapashcharana karate hue vicharane lage. Tatpashchat shuka anagara ne shailaka anagara ko pamthaka prabhriti pamcha sau anagara shishya ke rupa mem pradana kiye. Phira shuka muni kisi samaya shailakapura nagara se aura subhumi – bhaga udyana se bahara nikale. Nikalakara janapadom mem vicharane lage. Tatpashchat vaha shuka anagara eka bara kisi samaya eka hajara anagarom ke satha anukrama se vicharate hue, gramanugrama vihara karate hue apana antima samaya samipa aya janakara pumdarika parvata para padhare. Yavat kevalajnyana kevaladarshana prapta karake siddha yavat duhkhom rahita ho gae. |