Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004769 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 69 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य तुच्छेहि य लूहेहि य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कंतेहि य पमाणाइक्कंतेहि य निच्चं पाणभोयणेहि य पयइ-सुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया –उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा। कंडु-दाह-पित्तज्जर-परिगयसरीरे यावि विहरइ। तए णं से सेलए तेणं रोयायंकेणं सुक्के भुक्खे जाए यावि होत्था। तए णं से सेलए अन्नया कयाइ पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव सेल-गपुरे नयरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। मंडुओ वि निग्गओ सेलगं अनगारं वंदइ नमंसइ पज्जुवासइ। तए णं से मंडुए राया सेलगस्स अनगारस्स सरीरगं सुक्कं भुक्खं सव्वाबाहं सरोगं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–अहण्णं भंते! तुब्भं अहापवत्तेहिं तेगिच्छिएहिं अहापवत्तेणं ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणेणं तेगिच्छं आउट्टावेमि। तुब्भे णं भंते! मम जाणसालासु समोसरह, फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं ओगिण्हित्ताणं विहरइ। तए णं से सेलए अनगारे मंडुयस्स रन्नो एयमट्ठं तह त्ति पडिसुणेइ। तए णं से मंडुए सेलगं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। तए णं से सेलए कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते स-भंड-मत्तोवगरणमायाए पंथगपामोक्खेहिं पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं सेलगपुर-मणुप्पविसइ, अनुपविसित्ता जेणेव मंडुयस्स रन्नो जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं ओगिण्हित्ताणं विहरइ। तए णं से मंडुए तेगिच्छिए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! सेलगस्स फासु-एसणिज्जेणं ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणेणं तेगिच्छं आउट्टेह। तए णं ते तेगिच्छिया मंडुएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठा सेलगस्स अहापवत्तेहिं ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणेहिं तेगिच्छं आउट्टेंति, मज्जपाणगं च से उवदिसंति। तए णं तस्स सेलगस्स अहापवत्तेहिं ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणेहिं मज्जपाणएण य से रोगायंके उवसंते यावि होत्था–हट्ठे गल्लसरीरे जाए ववगयरोगायंके। तए णं से सेलए तंसि रोगायंकंसि उवसंतंसि समाणंसि तंसि विपुले असन-पान-खाइम-साइमे मज्जपाणए य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववन्ने ओसन्ने ओसन्नविहारी, पासत्थे पासत्थविहारी कुसीले कुसीलविहारी पमत्ते पमत्तविहारी संसत्ते संसत्तविहारी उउबद्ध-पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए पमत्ते यावि विहरइ, नो संचाएइ फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं पच्चप्पिणित्ता मंडुयं च रायं आपुच्छित्ता बहिया जनवयविहारं विहरित्तए। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् प्रकृति से सुकुमार और सुखभोग के योग्य शैलक राजर्षि के शरीर में सदा अन्त, प्रान्त, तुच्छ, रूक्ष, अरस, विरस, ठंडा – गरम, कालातिक्रान्त और प्रमाणातिक्रान्त भोजन – पान मिलने के कारण वेदना उत्पन्न हो गई। वह वेदना उत्कट यावत् विपुल, कठोर, प्रगाढ़, प्रचंड एवं दुस्सह थी। उनका शरीर खुजली और दाह उत्पन्न करने वाले पित्तज्वर से व्याप्त हो गया। तब वह शैलक राजर्षि उस रोगांतक से शुष्क हो गए। तत्पश्चात् शैलक राजर्षि किसी समय अनुक्रम से विचरते हुए यावत् जहाँ सुभूमिभाग नामक उद्यान था, वहाँ आकर विचरने लगे। उन्हें वन्दन करने के लिए परीषद् नीकली। मंडुक राजा भी नीकला। शैलक अनगार को सब ने वन्दन किया, नमस्कार किया। उपासना की। उस समय मंडुक राजा ने शैलक अनगार का शरीर शुष्क, निस्तेज यावत् सब प्रकार की पीड़ा से आक्रान्त और रोगयुक्त देखा। देखकर इस प्रकार कहा – ‘भगवन् मैं आपकी साधु के योग्य चिकित्सकों से, साधु के योग्य औषध और भेषज के द्वारा भोजन – पान द्वारा चिकित्सा कराना चाहता हूँ। भगवन्! आप मेरी यानशाला में पधारिए और प्रासुक एवं एषणीय पीठ, फलक, शय्या तथा संस्तारक ग्रहण करके विचरिए। तत्पश्चात् शैलक अनगार ने मंडुक राजा के इस अर्थ को ‘ठीक है’ ऐसा कहकर स्वीकार किया और राजा वन्दना – नमस्कार करके जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में लौट गया। तत्पश्चात् वह शैलक राजर्षि कल प्रभात होने पर, सूर्योदय हो जाने के पश्चात् सहस्ररश्मि सूर्य के देदीप्यमान होने पर भंडमात्र और उपकरण लेकर पंथक प्रभृति पाँच सौ मुनियों के साथ शैलकपुर में प्रविष्ट हुए। प्रवेश करके जहाँ मंडुक राजा की यानशाला थी, उधर आए। आकर प्रासुक पीठ फलक शय्या संस्तारक ग्रहण करके विचरने लगे। तत्पश्चात् मंडुक राजा ने चिकित्सकों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार – ‘देवानुप्रियो ! तुम शैलक राजर्षि की प्रासुक और एषणीय औषध, भेषज एवं भोजन – पान से चिकित्सा करो।’ तब चिकित्सक मंडुक राजा के इस प्रकार कहने पर हृष्ट – तुष्ट हुए। उन्होंने साधु के योग्य औषध, भेषज एवं भोजन – पान से चिकित्सा की और मद्यपान करने की सलाह दी। तत्पश्चात् साधु के योग्य औषध, भेषज, भोजन – पान से तथा मद्यपान करने से शैलक राजर्षि का रोग – आतंक शान्त हो गया। वह हृष्ट – तुष्ट यावत् बलवान् शरीर वाले हो गए। उनके रोगान्तक पूरी तरह दूर हो गए। तत्पश्चात् शैलक राजर्षि उस रोगांतक के उपशान्त हो जाने पर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में तथा मद्यपान में मूर्छित, मत्त, गृद्ध और अत्यन्त आसक्त हो गए। वह अवसन्न – आलसी, अवसन्नविहारी इसी प्रकार पार्श्वस्थ तथा पार्श्वस्थविहारी कुशील और प्रमत्तविहारी, संसक्त तथा संसक्तविहारी हो गए। शेष काल में भी शय्या – संस्तारक के लिए पीठ – फलक रखने वाले प्रमादी हो गए। वह प्रासुक तथा एषणीय पीठ फलक आदि को वापस देकर और मंडुक राजा से अनुमति लेकर बाहर जनपद – विहार करने में असमर्थ हो गए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam tassa selagassa rayarisissa tehim amtehi ya pamtehi ya tuchchhehi ya luhehi ya arasehi ya virasehi ya siehi ya unhehi ya kalaikkamtehi ya pamanaikkamtehi ya nichcham panabhoyanehi ya payai-sukumalassa suhochiyassa sariragamsi veyana paubbhuya –ujjala viula kakkhada pagadha chamda dukkha durahiyasa. Kamdu-daha-pittajjara-parigayasarire yavi viharai. Tae nam se selae tenam royayamkenam sukke bhukkhe jae yavi hottha. Tae nam se selae annaya kayai puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane suhamsuhenam viharamane jeneva sela-gapure nayare jeneva subhumibhage ujjane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Parisa niggaya. Mamduo vi niggao selagam anagaram vamdai namamsai pajjuvasai. Tae nam se mamdue raya selagassa anagarassa sariragam sukkam bhukkham savvabaham sarogam pasai, pasitta evam vayasi–ahannam bhamte! Tubbham ahapavattehim tegichchhiehim ahapavattenam osaha-bhesajja-bhattapanenam tegichchham auttavemi. Tubbhe nam bhamte! Mama janasalasu samosaraha, phasu-esanijjam pidha-phalaga-sejja-samtharagam oginhittanam viharai. Tae nam se selae anagare mamduyassa ranno eyamattham taha tti padisunei. Tae nam se mamdue selagam vamdai namamsai, vamditta namamsitta jameva disim paubbhue tameva disim padigae. Tae nam se selae kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte sa-bhamda-mattovagaranamayae pamthagapamokkhehim pamchahim anagarasaehim saddhim selagapura-manuppavisai, anupavisitta jeneva mamduyassa ranno janasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta phasu-esanijjam pidha-phalaga-sejja-samtharagam oginhittanam viharai. Tae nam se mamdue tegichchhie saddavei, saddavetta evam vayasi–tubbhe nam devanuppiya! Selagassa phasu-esanijjenam osaha-bhesajja-bhattapanenam tegichchham autteha. Tae nam te tegichchhiya mamduenam ranna evam vutta samana hatthatuttha selagassa ahapavattehim osaha-bhesajja-bhattapanehim tegichchham auttemti, majjapanagam cha se uvadisamti. Tae nam tassa selagassa ahapavattehim osaha-bhesajja-bhattapanehim majjapanaena ya se rogayamke uvasamte yavi hottha–hatthe gallasarire jae vavagayarogayamke. Tae nam se selae tamsi rogayamkamsi uvasamtamsi samanamsi tamsi vipule asana-pana-khaima-saime majjapanae ya muchchhie gadhie giddhe ajjhovavanne osanne osannavihari, pasatthe pasatthavihari kusile kusilavihari pamatte pamattavihari samsatte samsattavihari uubaddha-pidha-phalaga-sejja-samtharae pamatte yavi viharai, no samchaei phasu-esanijjam pidha-phalaga-sejja-samtharayam pachchappinitta mamduyam cha rayam apuchchhitta bahiya janavayaviharam viharittae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat prakriti se sukumara aura sukhabhoga ke yogya shailaka rajarshi ke sharira mem sada anta, pranta, tuchchha, ruksha, arasa, virasa, thamda – garama, kalatikranta aura pramanatikranta bhojana – pana milane ke karana vedana utpanna ho gai. Vaha vedana utkata yavat vipula, kathora, pragarha, prachamda evam dussaha thi. Unaka sharira khujali aura daha utpanna karane vale pittajvara se vyapta ho gaya. Taba vaha shailaka rajarshi usa rogamtaka se shushka ho gae. Tatpashchat shailaka rajarshi kisi samaya anukrama se vicharate hue yavat jaham subhumibhaga namaka udyana tha, vaham akara vicharane lage. Unhem vandana karane ke lie parishad nikali. Mamduka raja bhi nikala. Shailaka anagara ko saba ne vandana kiya, namaskara kiya. Upasana ki. Usa samaya mamduka raja ne shailaka anagara ka sharira shushka, nisteja yavat saba prakara ki pira se akranta aura rogayukta dekha. Dekhakara isa prakara kaha – ‘bhagavan maim apaki sadhu ke yogya chikitsakom se, sadhu ke yogya aushadha aura bheshaja ke dvara bhojana – pana dvara chikitsa karana chahata hum. Bhagavan! Apa meri yanashala mem padharie aura prasuka evam eshaniya pitha, phalaka, shayya tatha samstaraka grahana karake vicharie. Tatpashchat shailaka anagara ne mamduka raja ke isa artha ko ‘thika hai’ aisa kahakara svikara kiya aura raja vandana – namaskara karake jisa disha se aya tha, usi disha mem lauta gaya. Tatpashchat vaha shailaka rajarshi kala prabhata hone para, suryodaya ho jane ke pashchat sahasrarashmi surya ke dedipyamana hone para bhamdamatra aura upakarana lekara pamthaka prabhriti pamcha sau muniyom ke satha shailakapura mem pravishta hue. Pravesha karake jaham mamduka raja ki yanashala thi, udhara ae. Akara prasuka pitha phalaka shayya samstaraka grahana karake vicharane lage. Tatpashchat mamduka raja ne chikitsakom ko bulaya. Bulakara isa prakara – ‘devanupriyo ! Tuma shailaka rajarshi ki prasuka aura eshaniya aushadha, bheshaja evam bhojana – pana se chikitsa karo.’ taba chikitsaka mamduka raja ke isa prakara kahane para hrishta – tushta hue. Unhomne sadhu ke yogya aushadha, bheshaja evam bhojana – pana se chikitsa ki aura madyapana karane ki salaha di. Tatpashchat sadhu ke yogya aushadha, bheshaja, bhojana – pana se tatha madyapana karane se shailaka rajarshi ka roga – atamka shanta ho gaya. Vaha hrishta – tushta yavat balavan sharira vale ho gae. Unake rogantaka puri taraha dura ho gae. Tatpashchat shailaka rajarshi usa rogamtaka ke upashanta ho jane para vipula ashana, pana, khadima aura svadima mem tatha madyapana mem murchhita, matta, griddha aura atyanta asakta ho gae. Vaha avasanna – alasi, avasannavihari isi prakara parshvastha tatha parshvasthavihari kushila aura pramattavihari, samsakta tatha samsaktavihari ho gae. Shesha kala mem bhi shayya – samstaraka ke lie pitha – phalaka rakhane vale pramadi ho gae. Vaha prasuka tatha eshaniya pitha phalaka adi ko vapasa dekara aura mamduka raja se anumati lekara bahara janapada – vihara karane mem asamartha ho gae. |