Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1004751
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Section : Translated Section :
Sutra Number : 51 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से धने सत्थवाहे अन्नया कयाइं लहुसयंसि रायावराहंसि संपलित्ते जाए यावि होत्था। तए णं ते नगरगुत्तिया धनं सत्थवाहं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव चारए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चारगं अनुप्पवेसंति, अनुप्पवेसित्ता विजएणं तक्करेणं सद्धिं एगयओ हडिबंधनं करेंति। तए णं सा भद्दा भारिया कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं उवक्खडेइ, भोयणपिडयं करेइ, करेत्ता भोयणाइं पक्खिवइ, लंछिय-मुद्दियं करेइ, करेत्ता एगं च सुरभि वारिपडिपुण्णं दगवारयं करेइ, करेत्ता पंथयं दासचेडयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! इमं विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं गहाय चारगसालाए धनस्स सत्थवाहस्स उवणेहि। तए णं से पंथए भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे तं भोयणपिडयं तं च सुरभिवरवारि-पडिपुण्णं दगवारयं गेण्हइ, गेण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्ख-मित्ता रायगिहं नगरं मज्झंमज्झेणं जेणेव चारगसाला जेणेव धने सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणपिडयं ठवेइ, ठवेत्ता उल्लंछेइ, उल्लंछेत्ता भोयणं गेण्हइ, गेण्हित्ता भायणाइं ठावइ, ठावित्ता हत्थसोयं दलयइ, दलइत्ता धनं सत्थवाहं तेणं विपुलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं परिवेसेइ। तए णं से विजए तक्करे धनं सत्थवाहं एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! ममं एयाओ विपुलाओ असन-पान-खाइम-साइमाओ संविभागं करेहि। तए णं से धने सत्थवाहे विजयं तक्करं एवं वयासी–अवियाइं अहं विजया! एयं विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं कायाण वा सुणगाण वा दलएज्जा, उक्कुरुडियाए वा णं छड्डेज्जा, नो चेव णं तव पुत्तधायगस्स पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडनीयस्स पच्चामित्तस्स एत्तो विपुलाओ असन-पान-खाइम-साइमाओ संविभागं करेज्जामि। तए णं से धने सत्थवाहे तं विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं आहारेइ, तं पंथयं पडिविसज्जेइ। तए णं से पंथए दासचेडए तं भोयणपिडगं गिण्हइ, गिण्हित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। तए णं तस्स धनस्स सत्थवाहस्स तं विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं आहारियस्स समाणस्स उच्चार-पासवणे णं उव्वाहित्था। तए णं से धने सत्थवाहे विजयं तक्करं एवं वयासी–एहि ताव विजया! एगंतमवक्कमामो जेणं अहं उच्चार-पासवणं परिट्ठवेमि। तए णं से विजए तक्करे धनं सत्थवाहं एवं वयासी–तुज्झं देवानुप्पिया! विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं आहारियस्स अत्थि उच्चारे वा पासवणे वा, ममं णं देवानुप्पिया! इमेहिं बहूहिं कसप्पहारेहि य छिवापहारेहि य लयापहारेहि य तण्हाए य छुहाए य परज्झमाणस्स नत्थि केइ उच्चारे वा पासवणे वा। तं छंदेणं तुमं देवानुप्पिया! एगंते अवक्कमित्ता उच्चार-पासवणं परिट्ठवेहि। तए णं से धने सत्थवाहे विजएणं तक्करेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से धने सत्थवाहे मुहुत्तंतरस्स बलियतरागं उच्चार-पासवणेणं उव्वाहिज्जमाणे विजयं तक्करं एवं वयासी–एहि ताव विजया! एगंतमवक्कमामो जेणं अहं उच्चार-पासवणं परिट्ठवेमि। तए णं से विजए तक्करे धनं सत्थवाहं एवं वयासी–जइ णं तुमं देवानुप्पिया! ताओ विपुलाओ असन-पान-खाइम-साइमाओ संविभागं करेहि, तओहं तुमेहिं सद्धिं एगंतं अवक्कमामि। तए णं से धने सत्थवाहे विजयं तक्करं एवं वयासी– अहं णं तुब्भं ताओ विपुलाओ असन-पान-खाइम-साइमाओ संविभागं करिस्सामि। तए णं से विजए तक्करे धनस्स सत्थवाहस्स एयमट्ठं पडिसुणेइ। तए णं से धने सत्थवाहे विजएण तक्करेण सद्धिं एगंते अवक्कमइ, उच्चारपासवणं परिट्ठवेइ, आयंते चोक्खे परमसुइभूए तमेव ठाणं उवसंकमित्ता णं विहरइ। तए णं सा भद्दा कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं उवक्खडेइ, भोयणपिडयं करेइ, करेत्ता भोयणाइं पक्खिवइ, लंछिय-मुद्दियं करेइ, करेत्ता एगं च सुरभि वारिपडिपुण्णं दगवारयं करेइ, करेत्ता पंथयं दासचेडयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! इमं विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं गहाय चारगसालाए धनस्स सत्थवाहस्स उवणेहि। तए णं से पंथए भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे तं भोयणपिडयं तं च सुरभिवरवारिपडिपुण्णं दगवारयं गेण्हइ, गेण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता रायगिहं नगरं मज्झंमज्झेणं जेणेव चारगसाला जेणेव धने सत्थ वाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणपिडयं ठवेइ, ठवेत्ता उल्लंछेइ, उल्लंछेत्ता भोयणं गेण्हइ, गेण्हित्ता भायणाइं ठावइ, ठावित्ता हत्थसोयं दलयइ, दलइत्ता धनं सत्थवाहं तेणं विपुलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं परिवेसेइ। तए णं से धने सत्थवाहे विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलाओ असन-पान-खाइम-साइमाओ संविभागं करेइ। तए णं से धने सत्थवाहे पंथगं दासचेडयं विसज्जेइ। तए णं से पंथए भोयणपिडयं गहाय चारगाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव भद्दा सत्थवाही तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भद्दं सत्थवाहिं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिए! धने सत्थवाहे तव पुत्तघायगस्स अरिस्स वेरियस्स पडणीयस्स० पच्चामित्तस्स ताओ विपुलाओ असन-पान-खाइम-साइमाओ संविभागं करेइ।
Sutra Meaning : तत्पश्चात्‌ किसी समय धन्य सार्थवाह को चुगलखोरों ने छोटा – सा राजकीय अपराध लगा दिया। तब नगर – रक्षकों ने धन्य सार्थवाह को गिरफ्तार कर लिया। कारागार में ले गए। कारागार में प्रवेश कराया और विजय चोर के साथ एक ही बेड़ी में बांध दिया। भद्रा आर्या ने अगले दिन यावत्‌ सूर्य के जाज्वल्यमान होने पर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन तैयार किया। भोजन तैयार करके भोजन रखने का पिटक ठीक – ठाक किया और उसमें भोजन के पात्र रख दिए। फिर उस पिटक को लांछित और मुद्रित कर दिया। सुगंधित जल से परिपूर्ण छोटा – सा घड़ा तैयार किया। फिर पंथक दास चेटक को आवाज दी और कहा – ‘हे देवानुप्रिय ! तू जा। यह विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम लेकर कारागार में धन्य सार्थवाह के पास ले जा।’ तत्पश्चात्‌ पंथक ने भद्रा सार्थवाही के इस प्रकार कहने पर हृष्ट – तुष्ट होकर उस भोजन – पिटक को और उत्तम सुगंधित जल से परिपूर्ण घट को ग्रहण किया। राजगृह के मध्यमार्ग में हदोरक जहाँ कारागार था और जहाँ धन्य सार्थवाह था, वहाँ पहुँचा। भोजन का पिटक रख दिया। उसे लांछन और मुद्रा से रहित किया। फिर भोजन के पात्र लिए, उन्हें धोया और फिर हाथ धोने का पानी दिया। धन्य सार्थवाह को वह विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन परोसा। उस समय विजय चोर ने धन्य सार्थवाह से कहा – ‘देवानुप्रिय ! तुम मुझे इस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन में से संविभाग करो।’ तब धन्य सार्थवाह ने उत्तर में विजय चोर से कहा – ‘हे विजय ! भले ही मैं यह विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम काकों और कुत्तों को दे दूँगा अथवा उकरड़े में फैंक दूँगा परन्तु तुझ पुत्रघातक, पुत्रहन्ता, शत्रु, वैरी, प्रतिकूल आचरण करने वाले एवं प्रत्यमित्र – को इस अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य में से संविभाग नहीं करूँगा।’ इसके बाद धन्य सार्थवाह ने उस विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का आहार किया। आहार करके पंथक को लौटा दिया – रवाना कर दिया। पंथक दास चेटक ने भोजन का वह पिटक लिया और लेकर जिस ओर से आया था, उसी ओर लौट गया। विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन करने के कारण धन्य सार्थवाह को मल – मूत्र की बाधा उत्पन्न हुई। तब धन्य सार्थवाह ने विजय चोर से कहा – विजय ! चलो, एकान्त में चलें, जिससे मैं मलमूत्र का त्याग कर सकूँ। तब विजय चोर ने धन्य सार्थवाह से कहा – देवानुप्रिय ! तुमने विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का आहार किया है, अत एव तुम्हें मल और मूत्र की बाधा उत्पन्न हुई है। मैं तो इन बहुत चाबुकों के प्रहारों से यावत्‌ लता के प्रहारों से तथा प्यास और भूख से पीड़ित हो रहा हूँ। मुझे मल – मूत्र की बाधा नहीं है। जाने की ईच्छा हो तो तुम्हीं एकान्त में जाकर मल – मूत्र का त्याग करो। धन्य सार्थवाह विजय चोर के इस प्रकार कहने पर मौन रह गया। इसके बाद थोड़ी देर में धन्य सार्थवाह उच्चार – प्रस्रवण की अति तीव्र बाधा से पीड़ित होता हुआ विजय चोर से फिर कहने लगा – विजय, चलो, यावत्‌ एकान्त में चलें। तब विजय चोर ने धन्य सार्थवाह से कहा – देवानुप्रिय ! यदि तुम उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से संविभाग करो अर्थात्‌ मुझे हिस्सा देना स्वीकार करो तो मैं तुम्हारे साथ एकान्त में चलूँ। धन्य सार्थवाह ने विजय से कहा – मैं तुम्हें विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से संविभाग करूँगा – तत्पश्चात्‌ विजय ने धन्य सार्थवाह के इस अर्थ को स्वीकार किया। फिर विजय, धन्य सार्थवाह के साथ एकान्तमें गया। धन्य सार्थवाह ने मल – मूत्र परित्याग किया। जल से स्वच्छ और परम शुचि हुआ। लौटकर अपने स्थान पर आया। तत्पश्चात्‌ भद्रा सार्थवाही ने दूसरे दिन सूर्य के देदीप्यमान होने पर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार करके पंथक के साथ भेजा। यावत्‌ पंथक ने धन्य को जिमाया। तब धन्य सार्थवाह ने विजय चोर को उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से भाग दिया। तत्पश्चात्‌ धन्य सार्थवाह ने पंथक दास चेटक को रवाना कर दिया। पंथक भोजन – पिटक लेकर कारागार से बाहर नीकला। नीकलकर राजगृह नगर के बीचों – बीच होकर जहाँ अपना घर था और जहाँ भद्रा आर्या थी वहाँ पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने भद्रा सार्थवाही से कहा – देवानुप्रिय! धन्य सार्थवाह ने तुम्हारे पुत्र के घातक यावत्‌ दुश्मन को उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से हिस्सा दिया है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se dhane satthavahe annaya kayaim lahusayamsi rayavarahamsi sampalitte jae yavi hottha. Tae nam te nagaraguttiya dhanam satthavaham genhamti, genhitta jeneva charae teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta charagam anuppavesamti, anuppavesitta vijaenam takkarenam saddhim egayao hadibamdhanam karemti. Tae nam sa bhadda bhariya kallam pauppabhae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte vipulam asanam panam khaimam saimam uvakkhadei, bhoyanapidayam karei, karetta bhoyanaim pakkhivai, lamchhiya-muddiyam karei, karetta egam cha surabhi varipadipunnam dagavarayam karei, karetta pamthayam dasachedayam saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Imam vipulam asanam panam khaimam saimam gahaya charagasalae dhanassa satthavahassa uvanehi. Tae nam se pamthae bhaddae satthavahie evam vutte samane hatthatutthe tam bhoyanapidayam tam cha surabhivaravari-padipunnam dagavarayam genhai, genhitta sayao gihao padinikkhamai, padinikkha-mitta rayagiham nagaram majjhammajjhenam jeneva charagasala jeneva dhane satthavahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta bhoyanapidayam thavei, thavetta ullamchhei, ullamchhetta bhoyanam genhai, genhitta bhayanaim thavai, thavitta hatthasoyam dalayai, dalaitta dhanam satthavaham tenam vipulenam asana-pana-khaima-saimenam parivesei. Tae nam se vijae takkare dhanam satthavaham evam vayasi–tubbhe nam devanuppiya! Mamam eyao vipulao asana-pana-khaima-saimao samvibhagam karehi. Tae nam se dhane satthavahe vijayam takkaram evam vayasi–aviyaim aham vijaya! Eyam vipulam asanam panam khaimam saimam kayana va sunagana va dalaejja, ukkurudiyae va nam chhaddejja, no cheva nam tava puttadhayagassa puttamaragassa arissa veriyassa padaniyassa pachchamittassa etto vipulao asana-pana-khaima-saimao samvibhagam karejjami. Tae nam se dhane satthavahe tam vipulam asanam panam khaimam saimam aharei, tam pamthayam padivisajjei. Tae nam se pamthae dasachedae tam bhoyanapidagam ginhai, ginhitta jameva disim paubbhue tameva disim padigae. Tae nam tassa dhanassa satthavahassa tam vipulam asanam panam khaimam saimam ahariyassa samanassa uchchara-pasavane nam uvvahittha. Tae nam se dhane satthavahe vijayam takkaram evam vayasi–ehi tava vijaya! Egamtamavakkamamo jenam aham uchchara-pasavanam paritthavemi. Tae nam se vijae takkare dhanam satthavaham evam vayasi–tujjham devanuppiya! Vipulam asanam panam khaimam saimam ahariyassa atthi uchchare va pasavane va, mamam nam devanuppiya! Imehim bahuhim kasappaharehi ya chhivapaharehi ya layapaharehi ya tanhae ya chhuhae ya parajjhamanassa natthi kei uchchare va pasavane va. Tam chhamdenam tumam devanuppiya! Egamte avakkamitta uchchara-pasavanam paritthavehi. Tae nam se dhane satthavahe vijaenam takkarenam evam vutte samane tusinie samchitthai. Tae nam se dhane satthavahe muhuttamtarassa baliyataragam uchchara-pasavanenam uvvahijjamane vijayam takkaram evam vayasi–ehi tava vijaya! Egamtamavakkamamo jenam aham uchchara-pasavanam paritthavemi. Tae nam se vijae takkare dhanam satthavaham evam vayasi–jai nam tumam devanuppiya! Tao vipulao asana-pana-khaima-saimao samvibhagam karehi, taoham tumehim saddhim egamtam avakkamami. Tae nam se dhane satthavahe vijayam takkaram evam vayasi– aham nam tubbham tao vipulao asana-pana-khaima-saimao samvibhagam karissami. Tae nam se vijae takkare dhanassa satthavahassa eyamattham padisunei. Tae nam se dhane satthavahe vijaena takkarena saddhim egamte avakkamai, uchcharapasavanam paritthavei, ayamte chokkhe paramasuibhue tameva thanam uvasamkamitta nam viharai. Tae nam sa bhadda kallam pauppabhae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte vipulam asanam panam khaimam saimam uvakkhadei, bhoyanapidayam karei, karetta bhoyanaim pakkhivai, lamchhiya-muddiyam karei, karetta egam cha surabhi varipadipunnam dagavarayam karei, karetta pamthayam dasachedayam saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Imam vipulam asanam panam khaimam saimam gahaya charagasalae dhanassa satthavahassa uvanehi. Tae nam se pamthae bhaddae satthavahie evam vutte samane hatthatutthe tam bhoyanapidayam tam cha surabhivaravaripadipunnam dagavarayam genhai, genhitta sayao gihao padinikkhamai, padinikkhamitta rayagiham nagaram majjhammajjhenam jeneva charagasala jeneva dhane sattha vahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta bhoyanapidayam thavei, thavetta ullamchhei, ullamchhetta bhoyanam genhai, genhitta bhayanaim thavai, thavitta hatthasoyam dalayai, dalaitta dhanam satthavaham tenam vipulenam asana-pana-khaima-saimenam parivesei. Tae nam se dhane satthavahe vijayassa takkarassa tao vipulao asana-pana-khaima-saimao samvibhagam karei. Tae nam se dhane satthavahe pamthagam dasachedayam visajjei. Tae nam se pamthae bhoyanapidayam gahaya charagao padinikkhamai, padinikkhamitta rayagiham nayaram majjhammajjhenam jeneva sae gihe jeneva bhadda satthavahi teneva uvagachchhai, uvagachchhitta bhaddam satthavahim evam vayasi–evam khalu devanuppie! Dhane satthavahe tava puttaghayagassa arissa veriyassa padaniyassa0 pachchamittassa tao vipulao asana-pana-khaima-saimao samvibhagam karei.
Sutra Meaning Transliteration : Tatpashchat kisi samaya dhanya sarthavaha ko chugalakhorom ne chhota – sa rajakiya aparadha laga diya. Taba nagara – rakshakom ne dhanya sarthavaha ko giraphtara kara liya. Karagara mem le gae. Karagara mem pravesha karaya aura vijaya chora ke satha eka hi beri mem bamdha diya. Bhadra arya ne agale dina yavat surya ke jajvalyamana hone para vipula ashana, pana, khadima aura svadima bhojana taiyara kiya. Bhojana taiyara karake bhojana rakhane ka pitaka thika – thaka kiya aura usamem bhojana ke patra rakha die. Phira usa pitaka ko lamchhita aura mudrita kara diya. Sugamdhita jala se paripurna chhota – sa ghara taiyara kiya. Phira pamthaka dasa chetaka ko avaja di aura kaha – ‘he devanupriya ! Tu ja. Yaha vipula ashana, pana, khadima aura svadima lekara karagara mem dhanya sarthavaha ke pasa le ja.’ Tatpashchat pamthaka ne bhadra sarthavahi ke isa prakara kahane para hrishta – tushta hokara usa bhojana – pitaka ko aura uttama sugamdhita jala se paripurna ghata ko grahana kiya. Rajagriha ke madhyamarga mem hadoraka jaham karagara tha aura jaham dhanya sarthavaha tha, vaham pahumcha. Bhojana ka pitaka rakha diya. Use lamchhana aura mudra se rahita kiya. Phira bhojana ke patra lie, unhem dhoya aura phira hatha dhone ka pani diya. Dhanya sarthavaha ko vaha vipula ashana, pana, khadima aura svadima bhojana parosa. Usa samaya vijaya chora ne dhanya sarthavaha se kaha – ‘devanupriya ! Tuma mujhe isa vipula ashana, pana, khadima aura svadima bhojana mem se samvibhaga karo.’ taba dhanya sarthavaha ne uttara mem vijaya chora se kaha – ‘he vijaya ! Bhale hi maim yaha vipula ashana, pana, khadima aura svadima kakom aura kuttom ko de dumga athava ukarare mem phaimka dumga parantu tujha putraghataka, putrahanta, shatru, vairi, pratikula acharana karane vale evam pratyamitra – ko isa ashana, pana, khadya aura svadya mem se samvibhaga nahim karumga.’ Isake bada dhanya sarthavaha ne usa vipula ashana, pana, khadya aura svadya ka ahara kiya. Ahara karake pamthaka ko lauta diya – ravana kara diya. Pamthaka dasa chetaka ne bhojana ka vaha pitaka liya aura lekara jisa ora se aya tha, usi ora lauta gaya. Vipula ashana, pana, khadima aura svadima bhojana karane ke karana dhanya sarthavaha ko mala – mutra ki badha utpanna hui. Taba dhanya sarthavaha ne vijaya chora se kaha – vijaya ! Chalo, ekanta mem chalem, jisase maim malamutra ka tyaga kara sakum. Taba vijaya chora ne dhanya sarthavaha se kaha – devanupriya ! Tumane vipula ashana, pana, khadima aura svadima ka ahara kiya hai, ata eva tumhem mala aura mutra ki badha utpanna hui hai. Maim to ina bahuta chabukom ke praharom se yavat lata ke praharom se tatha pyasa aura bhukha se pirita ho raha hum. Mujhe mala – mutra ki badha nahim hai. Jane ki ichchha ho to tumhim ekanta mem jakara mala – mutra ka tyaga karo. Dhanya sarthavaha vijaya chora ke isa prakara kahane para mauna raha gaya. Isake bada thori dera mem dhanya sarthavaha uchchara – prasravana ki ati tivra badha se pirita hota hua vijaya chora se phira kahane laga – vijaya, chalo, yavat ekanta mem chalem. Taba vijaya chora ne dhanya sarthavaha se kaha – devanupriya ! Yadi tuma usa vipula ashana, pana, khadima aura svadima mem se samvibhaga karo arthat mujhe hissa dena svikara karo to maim tumhare satha ekanta mem chalum. Dhanya sarthavaha ne vijaya se kaha – maim tumhem vipula ashana, pana, khadima aura svadima mem se samvibhaga karumga – tatpashchat vijaya ne dhanya sarthavaha ke isa artha ko svikara kiya. Phira vijaya, dhanya sarthavaha ke satha ekantamem gaya. Dhanya sarthavaha ne mala – mutra parityaga kiya. Jala se svachchha aura parama shuchi hua. Lautakara apane sthana para aya. Tatpashchat bhadra sarthavahi ne dusare dina surya ke dedipyamana hone para vipula ashana, pana, khadima aura svadima taiyara karake pamthaka ke satha bheja. Yavat pamthaka ne dhanya ko jimaya. Taba dhanya sarthavaha ne vijaya chora ko usa vipula ashana, pana, khadima aura svadima mem se bhaga diya. Tatpashchat dhanya sarthavaha ne pamthaka dasa chetaka ko ravana kara diya. Pamthaka bhojana – pitaka lekara karagara se bahara nikala. Nikalakara rajagriha nagara ke bichom – bicha hokara jaham apana ghara tha aura jaham bhadra arya thi vaham pahumcha. Vaham pahumchakara usane bhadra sarthavahi se kaha – devanupriya! Dhanya sarthavaha ne tumhare putra ke ghataka yavat dushmana ko usa vipula ashana, pana, khadima aura svadima mem se hissa diya hai.