Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004730 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 30 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु-महया जणसद्दे इ वा जाव बहवे उग्गा भोगा० रायगिहस्स नगरस्स मज्झंमज्झेणं एगदिसिं एगाभिमुहा निग्गच्छंति। इमं च णं मेहे कुमारे उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं जाव मानुस्सए कामभोगे भुंजमाणे रायमग्गं च ओलोएमाणे-ओलोएमाणे एवं च णं विहरइ। तए णं से मेहे कुमारे ते बहवे उग्गे भोगे जाव एगदिसाभिमुहे निग्गच्छमाणे पासइ, पासित्ता कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–किण्णं भो देवानुप्पिया! अज्ज रायगिहे नगरे इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा एवं–रुद्द-सिव-वेसमण-नाग-जक्ख-भूय-तलाय-रुक्ख-चेइय-पव्वयमहे इ वा उज्जाण-गिरिजत्ता इ वा? जओ णं बहवे उग्गा भोगा जाव एगदिसिं एगाभिमुहा निग्गच्छंति। तए णं से कंचुइज्जपुरिसे समणस्स भगवओ महावीरस्स गहियागमणपवित्तीए मेहं कुमारं एवं वयासी–नो खलु देवानुप्पिया! अज्ज रायगिहे नयरे इंदमहे इ वा जाव गिरिजत्ता इ वा जं णं एए उग्गा भोगा जाव एगदिसिं एगाभिमुहा निग्गच्छंति एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इह चेव रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से मेहे कुमारे कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह। तहत्ति उवणेंति। तए णं से मेहे ण्हाए जाव सव्वालंकारविभूसिए चाउग्घंटं आसरहं दुरूढे समाणे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भड-चडगर-वंद-परियाल-संपरिवुडे रायगिहस्स नयरस्स मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स छत्ताइच्छत्तं पडागाइपडागं विज्जाहर-चारणे जंभए य देवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता चाउग्घंटाओ आसरहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ। तं जहा–१. सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए २. अचित्ताणं दव्वाणं अविउसरणयाए ३. एगसाडिय-उत्तरासंगकरणेणं ४. चक्खुफासे अंजलिपग्गहेणं ५. मणसो एगत्तीकरणेणं। जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स नच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे पंजलिउडे अभिमुहे विनएणं पज्जुवासइ। तए णं समणे भगवं महावीरे मेहस्स कुमारस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए मज्झगए विचित्तं धम्ममाइक्खइ जह जीवा बज्झंति, मुच्चंति जहा य संकिलिस्संति। धम्मकहा भाणियव्वा जाव परिसा पडिगया। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् राजगृह नगर में शृंगाटक – सिंघाड़े के आकार के मार्ग, तिराहे, चौराहे, चत्वर, चतुर्मुख पथ, महापथ आदि में बहुत से लोगों का शोर होने लगा। यावत् बहुतेरे उग्रकुल के, भोगकुल के तथा अन्य सभी लोग यावत् राजगृहनगर के मध्यभागमें होकर एक ही दिशामें, एक ही ओर मुख कर नीकलने लगे उस समय मेघकुमार अपने प्रासाद पर था। मानो मृदंगों का मुख फूट रहा हो, उस प्रकार गायन किये जा रहा था। यावत् मनुष्य सम्बन्धी कामभोग भोग रहा था और राजमार्ग का अवलोकन करता – करता विचर रहा था। तब वह मेघकुमार उन उग्रकुलीन भोगकुलीन यावत् सब लोगों को एक ही दिशा में मुख किये जाते देखता है। देखकर कंचुकी पुरुष को बुलाता है और बुलाकर कहता है – हे देवानुप्रिय ! क्या आज राजगृह नगर में इन्द्र – महोत्सव है ? स्कंद का महोत्सव है ? या रुद्र, शिव, वैश्रमण, नाग, यक्ष, भूत, नदी, तड़ाग, वृक्ष, चैत्य, पर्वत, उद्यान या गिरि की यात्रा है ? जिससे बहुत से उग्र – कुल तथा भोग – कुल आदि के सब लोग एक ही दिशा में और एक ही ओर मुख करके नीकल रहे हैं ? तब उस कंचुकी पुरुषने श्रमण भगवान महावीर स्वामी के आगमन का वृत्तान्त जानकर मेघकुमार को इस प्रकार कहा – देवानुप्रिय ! आज राजगृह नगर में इन्द्रमहोत्सव या यावत् गिरियात्रा आदि नहीं है कि जिसके निमित्त यह सब जा रहे हैं। परन्तु देवानुप्रिय ! श्रमण भगवान महावीर धर्म – तीर्थ का आदि करने वाले, तीर्थ की स्थापना करने वाले यहाँ आए हैं, पधार चूके हैं, समवसृत हुए हैं और इसी राजगृह नगर में, गुणशील चैत्य में यथायोग्य अवग्रह की याचना करके विचर रहे हैं। मेघकुमार कंचुकी पुरुष से यह बात सूनकर एवं हृदय में धारण करके, हृष्ट – तुष्ट होता हुआ कौटुम्बिक पुरुषों को बुलवाता है और बुलवाकर इस प्रकार कहता है – हे देवानुप्रियों ! शीघ्र ही चार घंटाओं वाले अश्वरथ को जोत कर उपस्थित करो। वे कौटुम्बिक पुरुष ‘बहुत अच्छा’ कहकर रथ जोत लाते हैं। तत्पश्चात् मेघकुमार ने स्नान किया। सर्व अलंकारों से विभूषित हुआ। फिर चार घंटावाले अश्वरथ पर आरूढ़ हुआ। कोरंटवृक्ष के फूलों की मालावाला छत्र धारण किया। सुभटों के विपुल समूहवाले परिवार से घिरा हुआ, राजगृह नगर के बीचों – बीच होकर नीकला। जहाँ गुणशील नामक चैत्य था, वहाँ आया। श्रमण भगवान महावीर स्वामी के छत्र पर छत्र और पताकाओं पर पताका आदि अतिशयों को देखा तथा विद्याधरों, चारण मुनियों और जृंभक देवों को नीचे उतरते एवं ऊपर चढ़ते देखा। यह सब देखकर चार घंटा वाले अश्वरथ से नीचे ऊतरा। पाँच प्रकार के अभिगम करके श्रमण भगवान महावीर के सन्मुख चला। वह पाँच अभिगम उस प्रकार हैं – सचित्त द्रव्यों का त्याग। अचित्त द्रव्यों का अत्याग। एक शाटिका उत्तरासंग। भगवान पर दृष्टि पड़ते ही दोनों हाथ जोड़ना। मन को एकाग्र करना। जहाँ भगवान् महावीर थे, वहाँ आया। श्रमण भगवान महावीर की दक्षिण दिशा से आरम्भ करके प्रदक्षिणा की। भगवान को स्तुति रूप वन्दन किया और काय से नमस्कार किया। श्रमण भगवान महावीर के अत्यन्त समीप नहीं और अति दूर भी नहीं, ऐसे समुचित स्थान पर बैठकर धर्मोपदेश सूनने की ईच्छा करता हुआ, नमस्कार करता हुआ, दोनों हाथ जोड़े, सन्मुख रहकर विनयपूर्वक प्रभु की उपासना करने लगा। तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर ने मेघकुमार को और उस महती परिषद् को परिषद् के मध्य में स्थित होकर विचित्र प्रकार के श्रुतधर्म और चारित्रधर्म का कथन किया। जिस प्रकार जीव कर्मों से बद्ध होते हैं, जिस प्रकार मुक्त होते हैं और जिस प्रकार संक्लेश को प्राप्त होते हैं, यावत् धर्मदेशना सूनकर परिषद् वापिस लौट गई। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam rayagihe nayare simghadaga-taga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapahapahesu-mahaya janasadde i va java bahave ugga bhoga0 rayagihassa nagarassa majjhammajjhenam egadisim egabhimuha niggachchhamti. Imam cha nam mehe kumare uppim pasayavaragae phuttamanehim muimgamatthaehim java manussae kamabhoge bhumjamane rayamaggam cha oloemane-oloemane evam cha nam viharai. Tae nam se mehe kumare te bahave ugge bhoge java egadisabhimuhe niggachchhamane pasai, pasitta kamchuijjapurisam saddavei, saddavetta evam vayasi–kinnam bho devanuppiya! Ajja rayagihe nagare imdamahe i va khamdamahe i va evam–rudda-siva-vesamana-naga-jakkha-bhuya-talaya-rukkha-cheiya-pavvayamahe i va ujjana-girijatta i va? Jao nam bahave ugga bhoga java egadisim egabhimuha niggachchhamti. Tae nam se kamchuijjapurise samanassa bhagavao mahavirassa gahiyagamanapavittie meham kumaram evam vayasi–no khalu devanuppiya! Ajja rayagihe nayare imdamahe i va java girijatta i va jam nam ee ugga bhoga java egadisim egabhimuha niggachchhamti evam khalu devanuppiya! Samane bhagavam mahavire aigare titthagare ihamagae iha sampatte iha samosadhe iha cheva rayagihe nagare gunasilae cheie ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam se mehe kumare kamchuijjapurisassa amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatutthe kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Chaugghamtam asaraham juttameva uvatthaveha. Tahatti uvanemti. Tae nam se mehe nhae java savvalamkaravibhusie chaugghamtam asaraham durudhe samane sakoramtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam mahaya bhada-chadagara-vamda-pariyala-samparivude rayagihassa nayarassa majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jenameva gunasilae cheie tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta samanassa bhagavao mahavirassa chhattaichchhattam padagaipadagam vijjahara-charane jambhae ya deve ovayamane uppayamane pasai, pasitta chaugghamtao asarahao pachchoruhai, pachchoruhitta samanam bhagavam mahaviram pamchavihenam abhigamenam abhigachchhai. Tam jaha–1. Sachittanam davvanam viusaranayae 2. Achittanam davvanam aviusaranayae 3. Egasadiya-uttarasamgakaranenam 4. Chakkhuphase amjalipaggahenam 5. Manaso egattikaranenam. Jenameva samane bhagavam mahavire tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta samanassa bhagavao mahavirassa nachchasanne naidure sussusamane namamsamane pamjaliude abhimuhe vinaenam pajjuvasai. Tae nam samane bhagavam mahavire mehassa kumarassa tise ya mahaimahaliyae parisae majjhagae vichittam dhammamaikkhai jaha jiva bajjhamti, muchchamti jaha ya samkilissamti. Dhammakaha bhaniyavva java parisa padigaya. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat rajagriha nagara mem shrimgataka – simghare ke akara ke marga, tirahe, chaurahe, chatvara, chaturmukha patha, mahapatha adi mem bahuta se logom ka shora hone laga. Yavat bahutere ugrakula ke, bhogakula ke tatha anya sabhi loga yavat rajagrihanagara ke madhyabhagamem hokara eka hi dishamem, eka hi ora mukha kara nikalane lage usa samaya meghakumara apane prasada para tha. Mano mridamgom ka mukha phuta raha ho, usa prakara gayana kiye ja raha tha. Yavat manushya sambandhi kamabhoga bhoga raha tha aura rajamarga ka avalokana karata – karata vichara raha tha. Taba vaha meghakumara una ugrakulina bhogakulina yavat saba logom ko eka hi disha mem mukha kiye jate dekhata hai. Dekhakara kamchuki purusha ko bulata hai aura bulakara kahata hai – he devanupriya ! Kya aja rajagriha nagara mem indra – mahotsava hai\? Skamda ka mahotsava hai\? Ya rudra, shiva, vaishramana, naga, yaksha, bhuta, nadi, taraga, vriksha, chaitya, parvata, udyana ya giri ki yatra hai\? Jisase bahuta se ugra – kula tatha bhoga – kula adi ke saba loga eka hi disha mem aura eka hi ora mukha karake nikala rahe haim\? Taba usa kamchuki purushane shramana bhagavana mahavira svami ke agamana ka vrittanta janakara meghakumara ko isa prakara kaha – devanupriya ! Aja rajagriha nagara mem indramahotsava ya yavat giriyatra adi nahim hai ki jisake nimitta yaha saba ja rahe haim. Parantu devanupriya ! Shramana bhagavana mahavira dharma – tirtha ka adi karane vale, tirtha ki sthapana karane vale yaham ae haim, padhara chuke haim, samavasrita hue haim aura isi rajagriha nagara mem, gunashila chaitya mem yathayogya avagraha ki yachana karake vichara rahe haim. Meghakumara kamchuki purusha se yaha bata sunakara evam hridaya mem dharana karake, hrishta – tushta hota hua kautumbika purushom ko bulavata hai aura bulavakara isa prakara kahata hai – he devanupriyom ! Shighra hi chara ghamtaom vale ashvaratha ko jota kara upasthita karo. Ve kautumbika purusha ‘bahuta achchha’ kahakara ratha jota late haim. Tatpashchat meghakumara ne snana kiya. Sarva alamkarom se vibhushita hua. Phira chara ghamtavale ashvaratha para arurha hua. Koramtavriksha ke phulom ki malavala chhatra dharana kiya. Subhatom ke vipula samuhavale parivara se ghira hua, rajagriha nagara ke bichom – bicha hokara nikala. Jaham gunashila namaka chaitya tha, vaham aya. Shramana bhagavana mahavira svami ke chhatra para chhatra aura patakaom para pataka adi atishayom ko dekha tatha vidyadharom, charana muniyom aura jrimbhaka devom ko niche utarate evam upara charhate dekha. Yaha saba dekhakara chara ghamta vale ashvaratha se niche utara. Pamcha prakara ke abhigama karake shramana bhagavana mahavira ke sanmukha chala. Vaha pamcha abhigama usa prakara haim – sachitta dravyom ka tyaga. Achitta dravyom ka atyaga. Eka shatika uttarasamga. Bhagavana para drishti parate hi donom hatha jorana. Mana ko ekagra karana. Jaham bhagavan mahavira the, vaham aya. Shramana bhagavana mahavira ki dakshina disha se arambha karake pradakshina ki. Bhagavana ko stuti rupa vandana kiya aura kaya se namaskara kiya. Shramana bhagavana mahavira ke atyanta samipa nahim aura ati dura bhi nahim, aise samuchita sthana para baithakara dharmopadesha sunane ki ichchha karata hua, namaskara karata hua, donom hatha jore, sanmukha rahakara vinayapurvaka prabhu ki upasana karane laga. Tatpashchat shramana bhagavana mahavira ne meghakumara ko aura usa mahati parishad ko parishad ke madhya mem sthita hokara vichitra prakara ke shrutadharma aura charitradharma ka kathana kiya. Jisa prakara jiva karmom se baddha hote haim, jisa prakara mukta hote haim aura jisa prakara samklesha ko prapta hote haim, yavat dharmadeshana sunakara parishad vapisa lauta gai. |