Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004732 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 32 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तुमं सि णं जाया! अम्हं एगे पुत्ते इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अनुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय-उस्सासिए हियय-णंदि-जणणे उंबरपुप्फं व दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए? नो खलु जाया! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पओगं संहित्तए। तं भुंजाहि ताव जाया! विपुले मानुस्सए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो। तओ पच्छा अम्हेहिं कालगएहिं परिणयवए वड्ढिय-कुलवंसतंतु-कज्जम्मि निरावयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइस्ससि। तए णं से मेहे कुमारे अम्मापिऊहिं एवं वुत्ते समाणे अम्मापियरो एवं वयासी–तहेव णं तं अम्मो! जहेव णं तुब्भे ममं एवं वयह–तुमं सि णं जाया! अम्हं एगे पुत्ते इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अनुमए भंडकरं-डगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय-उस्सासिए हियय-णंदि-जणणे उंबरपुप्फं व दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए? नो खलु जाया! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पओगं सहित्तए। तं भुंजाहि ताव जाया! विपुले मानुस्सए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो। तओ पच्छा, अम्हेहिं कालगएहिं परिणयवए वड्ढिय-कुलवंसतंतु-कज्जम्मि निरावयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइस्ससि। एवं खलु अम्मयाओ! मानुस्सए भवे अधुवे अणितिए असासए वसणसओवद्दवाभिभूते विज्जुलयाचंचले अणिच्चे जलबुब्बुयसमाणे कुसग्गजलबिंदुसन्निभे संज्झब्भरागसरिसे सुविण-दंसणोवमे सडण-पडण-विद्धंसण-धम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे। से के णं जाणइ अम्मयाओ! के पुव्विं गमणाए के पच्छा गमणाए? तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए। तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी–इमाओ ते जाया! सरिसियाओ सरित्तयाओ सरिव्वयाओ सरिस-लावण्ण-रूव-जोव्वण-गुणोववेयाओ सरिसेहिंतो रायकुलेहिंतो आणिल्लियाओ भारियाओ। तं भुंजाहि णं जाया! एयाहिं सद्धिं विउले मानुस्सए कामभोगे। पच्छा भुत्तभोगे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइस्ससि। तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरं एवं वयासी–तहेव णं तं अम्मयाओ! जं णं तुब्भे ममं एवं वयह–इमाओ ते जाया! सरिसियाओ सरित्तयाओ सरिव्वयाओ सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण-गुणोववेयाओ सरिसेहिंतो रायकुलेहिंतो आणिल्लियाओ भारियाओ। तं भुंजाहि णं जाया! एयाहिं सद्धिं विउले मणुस्सए कामभोगे। पच्छा भुत्तभोगे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइस्ससि। एवं खलु अम्मयाओ! मानुस्सगा कामभोगा असुई वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा दुरुय-उस्सास-नीसासा दुरुय-मुत्त-पुरीस-पूय-बहुपडिपुण्णा उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्क-सोणियसंभवा अधुवा अनितिया असासया सडण-पडण-विद्धंसणधम्मा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जा। से के णं जाणइ अम्मयाओ! के पुव्विं गमणाए के पच्छा गमणाए? तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तइ। तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी–इमे य ते जाया! अज्जय-पज्जय-पिउपज्जयागए सुबहू हिरण्णे य सुवण्णे य कंसे य दूसे य मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्त-रयण-संतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पगामं दाउं पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं। तं अनुहोही ताव जाया। विपुलं मानुस्सगं इड्ढिसक्कारसमुदयं। तओ पच्छा अनुभूय- कल्लाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइस्ससि। तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरं एवं वयासी–तहेव णं तं अम्मयाओ! जं णं तुब्भे ममं एवं वयह–इमे ते जाया! अज्जग-पज्जग-पिउपज्जयागए सुबहू हिरण्णे य सुवण्णे य कंसे य दूसे य मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमाओ कुल-वंसाओ पगामं दाउं पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं। तं अणुहोही ताव जाया। विपुलं मानुस्सगं इड्ढिसक्कारसमुदयं। तओ पच्छा अनुभूयकल्लाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइस्ससि। एवं खलु अम्मयाओ! हिरण्णे य जाव सावएज्जे य अग्गिसाहिए चोरसाहिए रायसाहिए दाइयसाहिए मच्चुसाहिए, अग्गिसामन्ने चोरसामन्ने रायसामन्ने दाइय-सामन्ने मच्चुसामन्ने सडण-पडण-विद्धंसणधम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे। से के णं जाणइ अम्मयाओ! के पुव्विं गमणाए के पच्छा गमणाए? तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए। | ||
Sutra Meaning : | हे पुत्र ! तू हमारा इकलौता बेटा है। तू हमें इष्ट है, कान्त है, प्रिय है, मनोज्ञ है, मणाम है तथा धैर्य और विश्राम का स्थान है। कार्य करने में सम्मत है, बहुत कार्य करने में बहुत माना हुआ है और कार्य करने के पश्चात् भी अनुमत है। आभूषणों की पेटी के समान है। मनुष्यजाति में उत्तम होने के कारण रत्न है। रत्न रूप है। जीवने की उच्छ्वास के समान है। हमारे हृदय में आनन्द उत्पन्न करने वाला है। गूलर के फूल के समान तेरा नाम श्रवण करना भी दुर्लभ है तो फिर दर्शन की तो बात ही क्या है ? हे पुत्र ! हम क्षणभर के लिए भी तेरा वियोग सहन नहीं करना चाहते। अत एव हे पुत्र ! प्रथम तो जब तक हम जीवित हैं, तब तक मनुष्य सम्बन्धी विपुल काम – भोगों को भोग। फिर जब हम कालगत हो जाएं और तू परिपक्व उम्र का हो जाए – तेरी युवावस्था पूर्ण हो जाए, कुल – वंश रूप तंतु का कार्य वृद्धि को प्राप्त हो जाए, जब सांसारिक कार्य की अपेक्षा न रहे, उस समय तू श्रमण भगवान महावीर के पास मुण्डित होकर, गृहस्थी का त्याग करके प्रव्रज्या अंगीकार कर लेना। तत्पश्चात् माता – पिता के इस प्रकार कहने पर मेघकुमार ने माता – पिता से कहा – ‘हे माता – पिता ! आप मुझसे यह जो कहते हैं कि – हे पुत्र ! तुम हमारे इकलौते पुत्र हो, इत्यादि पूर्ववत्, यावत् सांसारिक कार्य से निरपेक्ष होकर श्रमण भगवान महावीर के समीप प्रव्रजित होना – सो ठीक है, परन्तु हे माता – पिता ! यह मनुष्यभव ध्रुव नहीं है, नियत नहीं है, यह अशाश्वत है तथा सैकड़ों व्यसनों एवं उपद्रवों से व्याप्त है, बिजली की चमक के समान चंचल है, अनित्य है, जल के बुलबुले के समान है, दूब की नोंक पर लटकने वाले जलबिन्दु के समान है, सन्ध्या समय के बादलों की लालीमा के सदृश है, स्वप्नदर्शन के समान है – अभी है और अभी नहीं है, कुष्ठ आदि से सड़ने, तलवार आदि से कने और क्षीण होने के स्वभाव वाला है तथा आगे या पीछे अवश्य ही त्याग करने योग्य है। इसके अतिरिक्त कौन जानता है कि कौन पहले जाएगा और कौन पीछे जाएगा ? हे माता – पिता ! मैं आपकी आज्ञा प्राप्त करके श्रमण भगवान महावीर के निकट यावत् प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहता हूँ।’ तत्पश्चात् माता – पिता ने मेघकुमार से इस प्रकार कहा – ‘हे पुत्र ! यह तुम्हारी भार्याएं समान शरीर वाली, समान त्वचा वाली, समान वय वाली, समान लावण्य, रूप, यौवन और गुणों से सम्पन्न तथा समान राजकुलों से लाई हुई हैं। अत एव हे पुत्र ! इनके साथ विपुल मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों को भोगो। तदनन्तर भुक्तभोग होकर श्रमण भगवान महावीर के निकट यावत् दीक्षा ले लेना। तत्पश्चात् मेघकुमार ने माता – पिता से इस प्रकार कहा – ‘हे माता – पिता ! आप मुझे यह जो कहते हैं कि – ‘हे पुत्र ! तेरी ये भार्याएं समान शरीर वाली हैं इत्यादि, यावत् इनके साथ भोग भोगकर श्रमण भगवान महावीर के समीप दीक्षा ले लेना; सो ठीक है, किन्तु हे माता – पिता ! मनुष्यों के ये कामभोग अशाश्वत हैं, इनमें से वमन झरता है, पित्त, कफ, शुक्र तथा शोणित झरता है। ये गंदे उच्छ्वास – निःश्वास वाले हैं, खराब मूत्र, मल और पीव से परिपूर्ण है, मल, मूत्र, कफ, नासिका – मल, वमन, पित्त, शुक्र और शोणित से उत्पन्न होने वाले हैं। यह ध्रुव नहीं, नियत नहीं, शाश्वत नहीं है, सड़ने, पड़ने और विध्वंस होने के स्वभाव वाले हैं और पहले या पीछे अवश्य ही त्याग करने योग्य है। हे माता – पिता ! कौन जानता है कि पहले कौन जाएगा और पीछे कौन जाएगा ? अत एव हे माता – पिता ! मैं यावत् अभी दीक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ।’ तत्पश्चात् माता – पिता ने मेघकुमार से इस प्रकार कहा – हे पुत्र ! तुम्हारे पितामह, पिता के पितामह और पिता के प्रपितामह से आया हुआ यह बहुत – सा हिरण्य, सुवर्ण, कांसा, दूष्य – वस्त्र, मणि, मोती, शंख, सिला, मूँगा, लाल – रत्न आदि सारभूत द्रव्य विद्यमान है। यह इतना है कि सात पीढ़ियों तक भी समाप्त न हो। इसका तुम खूब दान करो, स्वयं भोग करो और बाँटो। हे पुत्र ! यह जितना मनुष्यसम्बन्धी ऋद्धि – सत्कार का समुदान है, उतना सब तुम भोगो। उसके बाद अनुभूत – कल्याण होकर श्रमण भगवान महावीर के समक्ष दीक्षा ग्रहण कर लेना। तत्पश्चात् मेघकुमार ने माता – पिता से कहा – आप जो कहते हैं सो ठीक है कि – ‘हे पुत्र ! यह दादा, पड़दादा और पिता के पड़दादा से आया हुआ यावत् उत्तम द्रव्य है, इसे भोगो और फिर अनुभूत – कल्याण होकर दीक्षा ले लेना, परन्तु हे माता – पिता ! यह हिरण्य सुवर्ण यावत् स्वापतेय (द्रव्य) सब अग्निसाध्य है – इसे अग्नि भस्म कर सकती है, चोर चूरा सकता है, राजा अपहरण कर सकता है, हिस्सेदार बँटवारा कर सकते हैं और मृत्यु आने पर वह अपना नहीं रहता है। इसी प्रकार यह द्रव्य अग्नि के लिए समान है, अर्थात् जैसे द्रव्य उसके स्वामी का है, उसी प्रकार अग्नि का भी है और इसी तरह चोर, राजा, भागीदार और मृत्यु के लिए भी सामान्य है। यह सड़ने, पड़ने और विध्वस्त होने के स्वभाव वाला है। पश्चात् या पहले अवश्य त्याग करने योग्य है। हे माता – पिता ! किसे ज्ञात है कि पहले कौन जाएगा और पीछे कौन जाएगा ? अत एव मैं यावत् दीक्षा अंगीकार करना चाहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tumam si nam jaya! Amham ege putte itthe kamte pie manunne maname thejje vesasie sammae bahumae anumae bhamdakaramdagasamane rayane rayanabhue jiviya-ussasie hiyaya-namdi-janane umbarapuppham va dullahe savanayae, kimamga puna pasanayae? No khalu jaya! Amhe ichchhamo khanamavi vippaogam samhittae. Tam bhumjahi tava jaya! Vipule manussae kamabhoge java tava vayam jivamo. Tao pachchha amhehim kalagaehim parinayavae vaddhiya-kulavamsatamtu-kajjammi niravayakkhe samanassa bhagavao mahavirassa amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaissasi. Tae nam se mehe kumare ammapiuhim evam vutte samane ammapiyaro evam vayasi–taheva nam tam ammo! Jaheva nam tubbhe mamam evam vayaha–tumam si nam jaya! Amham ege putte itthe kamte pie manunne maname thejje vesasie sammae bahumae anumae bhamdakaram-dagasamane rayane rayanabhue jiviya-ussasie hiyaya-namdi-janane umbarapuppham va dullahe savanayae, kimamga puna pasanayae? No khalu jaya! Amhe ichchhamo khanamavi vippaogam sahittae. Tam bhumjahi tava jaya! Vipule manussae kamabhoge java tava vayam jivamo. Tao pachchha, amhehim kalagaehim parinayavae vaddhiya-kulavamsatamtu-kajjammi niravayakkhe samanassa bhagavao mahavirassa amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaissasi. Evam khalu ammayao! Manussae bhave adhuve anitie asasae vasanasaovaddavabhibhute vijjulayachamchale anichche jalabubbuyasamane kusaggajalabimdusannibhe samjjhabbharagasarise suvina-damsanovame sadana-padana-viddhamsana-dhamme pachchha puram cha nam avassavippajahanijje. Se ke nam janai ammayao! Ke puvvim gamanae ke pachchha gamanae? Tam ichchhami nam ammayao! Tubbhehim abbhanunnae samane samanassa bhagavao mahavirassa amtie mumde bhavitta nam agarao anagariyam pavvaittae. Tae nam tam meham kumaram ammapiyaro evam vayasi–imao te jaya! Sarisiyao sarittayao sarivvayao sarisa-lavanna-ruva-jovvana-gunovaveyao sarisehimto rayakulehimto anilliyao bhariyao. Tam bhumjahi nam jaya! Eyahim saddhim viule manussae kamabhoge. Pachchha bhuttabhoge samanassa bhagavao mahavirassa amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaissasi. Tae nam se mehe kumare ammapiyaram evam vayasi–taheva nam tam ammayao! Jam nam tubbhe mamam evam vayaha–imao te jaya! Sarisiyao sarittayao sarivvayao sarisalavanna-ruva-jovvana-gunovaveyao sarisehimto rayakulehimto anilliyao bhariyao. Tam bhumjahi nam jaya! Eyahim saddhim viule manussae kamabhoge. Pachchha bhuttabhoge samanassa bhagavao mahavirassa amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaissasi. Evam khalu ammayao! Manussaga kamabhoga asui vamtasava pittasava khelasava sukkasava soniyasava duruya-ussasa-nisasa duruya-mutta-purisa-puya-bahupadipunna uchchara-pasavana-khela-simghanaga-vamta-pitta-sukka-soniyasambhava adhuva anitiya asasaya sadana-padana-viddhamsanadhamma pachchha puram cha nam avassavippajahanijja. Se ke nam janai ammayao! Ke puvvim gamanae ke pachchha gamanae? Tam ichchhami nam ammayao! Tubbhehim abbhanunnae samane samanassa bhagavao mahavirassa amtie mumde bhavitta nam agarao anagariyam pavvaittai. Tae nam tam meham kumaram ammapiyaro evam vayasi–ime ya te jaya! Ajjaya-pajjaya-piupajjayagae subahu hiranne ya suvanne ya kamse ya duse ya mani-mottiya-samkha-sila-ppavala-ratta-rayana-samtasara-savaejje ya alahi java asattamao kulavamsao pagamam daum pagamam bhottum pagamam paribhaeum. Tam anuhohi tava jaya. Vipulam manussagam iddhisakkarasamudayam. Tao pachchha anubhuya- kallane samanassa bhagavao mahavirassa amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaissasi. Tae nam se mehe kumare ammapiyaram evam vayasi–taheva nam tam ammayao! Jam nam tubbhe mamam evam vayaha–ime te jaya! Ajjaga-pajjaga-piupajjayagae subahu hiranne ya suvanne ya kamse ya duse ya mani-mottiya-samkha-sila-ppavala-rattarayana-samtasara-savaejje ya alahi java asattamao kula-vamsao pagamam daum pagamam bhottum pagamam paribhaeum. Tam anuhohi tava jaya. Vipulam manussagam iddhisakkarasamudayam. Tao pachchha anubhuyakallane samanassa bhagavao mahavirassa amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaissasi. Evam khalu ammayao! Hiranne ya java savaejje ya aggisahie chorasahie rayasahie daiyasahie machchusahie, aggisamanne chorasamanne rayasamanne daiya-samanne machchusamanne sadana-padana-viddhamsanadhamme pachchha puram cha nam avassavippajahanijje. Se ke nam janai ammayao! Ke puvvim gamanae ke pachchha gamanae? Tam ichchhami nam ammayao! Tubbhehim abbhanunnae samane samanassa bhagavao mahavirassa amtie mumde bhavitta nam agarao anagariyam pavvaittae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He putra ! Tu hamara ikalauta beta hai. Tu hamem ishta hai, kanta hai, priya hai, manojnya hai, manama hai tatha dhairya aura vishrama ka sthana hai. Karya karane mem sammata hai, bahuta karya karane mem bahuta mana hua hai aura karya karane ke pashchat bhi anumata hai. Abhushanom ki peti ke samana hai. Manushyajati mem uttama hone ke karana ratna hai. Ratna rupa hai. Jivane ki uchchhvasa ke samana hai. Hamare hridaya mem ananda utpanna karane vala hai. Gulara ke phula ke samana tera nama shravana karana bhi durlabha hai to phira darshana ki to bata hi kya hai\? He putra ! Hama kshanabhara ke lie bhi tera viyoga sahana nahim karana chahate. Ata eva he putra ! Prathama to jaba taka hama jivita haim, taba taka manushya sambandhi vipula kama – bhogom ko bhoga. Phira jaba hama kalagata ho jaem aura tu paripakva umra ka ho jae – teri yuvavastha purna ho jae, kula – vamsha rupa tamtu ka karya vriddhi ko prapta ho jae, jaba samsarika karya ki apeksha na rahe, usa samaya tu shramana bhagavana mahavira ke pasa mundita hokara, grihasthi ka tyaga karake pravrajya amgikara kara lena. Tatpashchat mata – pita ke isa prakara kahane para meghakumara ne mata – pita se kaha – ‘he mata – pita ! Apa mujhase yaha jo kahate haim ki – he putra ! Tuma hamare ikalaute putra ho, ityadi purvavat, yavat samsarika karya se nirapeksha hokara shramana bhagavana mahavira ke samipa pravrajita hona – so thika hai, parantu he mata – pita ! Yaha manushyabhava dhruva nahim hai, niyata nahim hai, yaha ashashvata hai tatha saikarom vyasanom evam upadravom se vyapta hai, bijali ki chamaka ke samana chamchala hai, anitya hai, jala ke bulabule ke samana hai, duba ki nomka para latakane vale jalabindu ke samana hai, sandhya samaya ke badalom ki lalima ke sadrisha hai, svapnadarshana ke samana hai – abhi hai aura abhi nahim hai, kushtha adi se sarane, talavara adi se kane aura kshina hone ke svabhava vala hai tatha age ya pichhe avashya hi tyaga karane yogya hai. Isake atirikta kauna janata hai ki kauna pahale jaega aura kauna pichhe jaega\? He mata – pita ! Maim apaki ajnya prapta karake shramana bhagavana mahavira ke nikata yavat pravrajya amgikara karana chahata hum.’ Tatpashchat mata – pita ne meghakumara se isa prakara kaha – ‘he putra ! Yaha tumhari bharyaem samana sharira vali, samana tvacha vali, samana vaya vali, samana lavanya, rupa, yauvana aura gunom se sampanna tatha samana rajakulom se lai hui haim. Ata eva he putra ! Inake satha vipula manushya sambandhi kamabhogom ko bhogo. Tadanantara bhuktabhoga hokara shramana bhagavana mahavira ke nikata yavat diksha le lena. Tatpashchat meghakumara ne mata – pita se isa prakara kaha – ‘he mata – pita ! Apa mujhe yaha jo kahate haim ki – ‘he putra ! Teri ye bharyaem samana sharira vali haim ityadi, yavat inake satha bhoga bhogakara shramana bhagavana mahavira ke samipa diksha le lena; so thika hai, kintu he mata – pita ! Manushyom ke ye kamabhoga ashashvata haim, inamem se vamana jharata hai, pitta, kapha, shukra tatha shonita jharata hai. Ye gamde uchchhvasa – nihshvasa vale haim, kharaba mutra, mala aura piva se paripurna hai, mala, mutra, kapha, nasika – mala, vamana, pitta, shukra aura shonita se utpanna hone vale haim. Yaha dhruva nahim, niyata nahim, shashvata nahim hai, sarane, parane aura vidhvamsa hone ke svabhava vale haim aura pahale ya pichhe avashya hi tyaga karane yogya hai. He mata – pita ! Kauna janata hai ki pahale kauna jaega aura pichhe kauna jaega\? Ata eva he mata – pita ! Maim yavat abhi diksha grahana karana chahata hum.’ Tatpashchat mata – pita ne meghakumara se isa prakara kaha – he putra ! Tumhare pitamaha, pita ke pitamaha aura pita ke prapitamaha se aya hua yaha bahuta – sa hiranya, suvarna, kamsa, dushya – vastra, mani, moti, shamkha, sila, mumga, lala – ratna adi sarabhuta dravya vidyamana hai. Yaha itana hai ki sata pirhiyom taka bhi samapta na ho. Isaka tuma khuba dana karo, svayam bhoga karo aura bamto. He putra ! Yaha jitana manushyasambandhi riddhi – satkara ka samudana hai, utana saba tuma bhogo. Usake bada anubhuta – kalyana hokara shramana bhagavana mahavira ke samaksha diksha grahana kara lena. Tatpashchat meghakumara ne mata – pita se kaha – apa jo kahate haim so thika hai ki – ‘he putra ! Yaha dada, paradada aura pita ke paradada se aya hua yavat uttama dravya hai, ise bhogo aura phira anubhuta – kalyana hokara diksha le lena, parantu he mata – pita ! Yaha hiranya suvarna yavat svapateya (dravya) saba agnisadhya hai – ise agni bhasma kara sakati hai, chora chura sakata hai, raja apaharana kara sakata hai, hissedara bamtavara kara sakate haim aura mrityu ane para vaha apana nahim rahata hai. Isi prakara yaha dravya agni ke lie samana hai, arthat jaise dravya usake svami ka hai, usi prakara agni ka bhi hai aura isi taraha chora, raja, bhagidara aura mrityu ke lie bhi samanya hai. Yaha sarane, parane aura vidhvasta hone ke svabhava vala hai. Pashchat ya pahale avashya tyaga karane yogya hai. He mata – pita ! Kise jnyata hai ki pahale kauna jaega aura pichhe kauna jaega\? Ata eva maim yavat diksha amgikara karana chahata hum. |