Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004229 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१८ |
Translated Chapter : |
शतक-१८ |
Section : | उद्देशक-३ माकंदी पुत्र | Translated Section : | उद्देशक-३ माकंदी पुत्र |
Sutra Number : | 729 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से मागंदियपुत्ते अनगारे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– अनगारस्स णं भंते! भावियप्पणो सव्वं कम्मं वेदेमाणस्स सव्वं कम्मं निज्जरेमाणस्स सव्वं मारं मरमाणस्स सव्वं सरीरं विप्पजहमाणस्स, चरिमं कम्मं वेदेमाणस्स चरिमं कम्मं निज्जरेमाणस्स चरिमं मारं मरमाणस्स चरिमं सरीरं विप्पजहमाणस्स, मारणंतियं कम्मं वेदेमाणस्स मारणंतियं कम्मं निज्जरेमाणस्स मारणंतियं मारं मरमाणस्स मारणंतियं सरीरं विप्पजहमाणस्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पन्नत्ता समणाउसो! सव्वं लोगं पि णं ते ओगाहित्ता णं चिट्ठंति? हंता मागंदियपुत्ता! अनगारस्स णं भावियप्पणो सव्वं कम्मं वेदेमाणस्स जाव जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पन्नत्ता समणाउसो! सव्व लोगं पि णं ते ओगाहित्ता णं चिट्ठंति। छउमत्थे णं भंते! मनुस्से तेसिं निज्जरापोग्गलाणं किंचि आणत्तं वा नाणत्तं वा ओमत्तं वा तुच्छत्तं वा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा जाणइ-पासइ? मागंदियपुत्ता! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–छउमत्थे णं मनुस्से तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि आणत्तं वा नाणत्तं वा ओमत्तं वा तुच्छत्तं वा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा जाणइ-पासइ? मागंदियपुत्ता! देवे वि य णं अत्थेगइए जे णं तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि आणत्तं वा नाणत्तं वा ओमत्तं वा तुच्छत्तं वा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा जाणइ-पासइ। से तेणट्ठेणं मागंदियपुत्ता! एवं वुच्चइ–छउमत्थे णं मनुस्से तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि आणत्तं वा नाणत्तं वा ओमत्तं वा तुच्छत्तं वा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा जाणइ-पासइ, सुहुमा णं ते पोग्गला पन्नत्ता समणाउसो! सव्वलोगं पि य णं ते ओगाहित्ता चिट्ठंति। नेरइया णं भंते! ते निज्जरापोग्गले किं जाणंति-पासंति? आहारेंति? उदाहु न जाणंति न पासंति, न आहारेंति? मागंदियपुत्ता! नेरइया णं ते निज्जरापोग्गले न जाणंति न पासंति, आहारेंति। एवं जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिया। मनुस्सा णं भंते! ते निज्जरापोग्गले किं जाणंति-पासंति? आहारेंति? उदाहु न जाणंति न पासंति, न आहारेंति? मागंदियपुत्ता! अत्थेगइया जाणंति-पासंति, आहारेंति। अत्थेगइया न जाणंति न पासंति, आहारेंति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइया जाणंति-पासंति, आहारेंति? अत्थेगइया न जाणंति न पासंति, आहारेंति मागंदियपुत्ता! मनुस्सा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सण्णिभूया य, असण्णिभूया य। तत्थ णं जे ते असण्णिभूया ते णं न जाणंति न पासंति, आहारेंति। तत्थ णं जे ते सण्णिभूया ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–उवउत्ता य, अणुवउत्ता य। तत्थ णं जे ते अनुवउत्ता ते णं न जाणंति, न पासंति, आहारेंति। तत्थ णं जे ते उवउत्ता ते णं जाणंति-पासंति, आहारेंति। से तेणट्ठेणं मागंदियपुत्ता! एवं वुच्चइ–अत्थेगइया न जाणंति न पासंति, आहारेंति। अत्थेगइया जाणंति-पासंति, आहारेंति। वाणमंतर-जोइसिया जहा नेरइया। वेमाणिया णं भंते! ते निज्जरापोग्गले किं जाणंति-पासंति? आहारेंति? अमायिसम्मदिट्ठीउवव-न्नगा य। तत्थ णं जे ते मायिमिच्छदिट्ठीउववन्नगा ते णं न जाणंति न पासंति, आहारेंति। तत्थ णं जे ते अमायिसम्मदिट्ठीउववन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अनंतरोववन्नगा य परंपरोववन्नगा य। तत्थ णं जे ते अनंतरोववन्नगा ते णं न जाणंति न पासंति, आहारेंति। तत्थ णं जे ते परंपरोववन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य, अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जे ते अपज्जत्तगा ते णं न जाणंति न पासंति, आहारेंति। तत्थ णं जे ते पज्जत्तगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–उवउत्ता य, अणुवउत्ता य। तत्थ णं जे ते अणुवउत्ता ते णं न जाणंति न पासंति, आहारेंति। तत्थ णं जे ते उवउत्ता ते णं जाणंति-पासंति, आहारेंति। से तेणट्ठेणं मागंदियपुत्ता! एवं वुच्चइ–अत्थेगइया न जाणंति न पासंति, आहारेंति। अत्थेगइया जाणंति-पासंति, आहारेंति। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् माकन्दिपुत्र अनगार अपने स्थान से उठे और श्रमण भगवान महावीर के पास आए। उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया और इस प्रकार पूछा – ‘भगवन् ! सभी कर्मों को वेदते हुए, सर्व कर्मों की निर्जरा करते हुए, समस्त मरणों से मरते हुए, सर्वशरीर को छोड़ते हुए तथा चरम कर्म को वेदते हुए, चरम कर्म की निर्जरा करते हुए, चरम मरण से मरते हुए, चरमशरीर को छोड़ते हुए एवं मारणान्तिक कर्म को वेदते हुए, निर्जरा करते हुए, मारणान्तिक मरण से मरते हुए, मारणान्तिक शरीर को छोड़ते हुए भावितात्मा अनगार के जो चरमनिर्जरा के पुद्गल हैं, क्या वे पुद्गल सूक्ष्म कहे गए हैं ? हे आयुष्मन् श्रमणप्रवर ! क्या वे पुद्गल समग्र लोक का अवगाहन करके रहे हुए हैं ? हाँ, माकन्दिपुत्र ! तथाकथित भावितात्मा अनगार के यावत् वे चरम निर्जरा के पुद्गल समग्र लोक का अवगाहन करके रहे हुए हैं। भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य उन निर्जरा – पुद्गलों के अन्यत्व और नानात्व को जानता – देखता है ? हे माकन्दिपुत्र ! प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम इन्द्रियोद्देशक के अनुसार वैमानिक तक जानना चाहिए। यावत् – इनमें जो उपयोगयुक्त हैं, वे जानते, देखते और आहाररूप में ग्रहण करते हैं, इस कारण से हे माकन्दिपुत्र ! यह कहा जाता है कि यावत् जो उपयोगरहित हैं, वे उन पुद्गलों को जानते – देखते नहीं, किन्तु उन्हें आहरण – ग्रहण करते हैं, इस प्रकार निक्षेप कहना चाहिए। भगवन् ! क्या नैरयिक उन निर्जरा पुद्गलों को नहीं जानते, नहीं देखते, किन्तु ग्रहण करते हैं ? हाँ, करते हैं, इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों तक जानना। भगवन् ! क्या मनुष्य उन निर्जरा पुद्गलों को जानते – देखते हैं और ग्रहण करते हैं, अथवा वे नहीं जानते – देखते, और नहीं आहरण करते हैं ? गौतम ! कईं मनुष्य उन पुद्गलों को जानते – देखते हैं और ग्रहण करते हैं, कईं मनुष्य नहीं जानते – देखते, किन्तु उन्हें ग्रहण करते हैं। भगवन् ! आप यह किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! मनुष्य दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा – संज्ञीभूत और असंज्ञीभूत। उनमें जो असंज्ञीभूत हैं, वे नहीं जानते – देखते, किन्तु ग्रहण करते हैं। जो संज्ञीभूत मनुष्य हैं, वे दो प्रकार के हैं, यथा – उपयोगयुक्त और उपयोगरहित। उनमें जो उपयोगरहित हैं वे उन पुद्गलों को नहीं जानते – देखते, किन्तु ग्रहण करते हैं। मगर जो उपयोगयुक्त हैं, वे जानते – देखते हैं, और ग्रहण करते हैं। इस कारण से, हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि कोई मनुष्य नहीं जानते – देखते, किन्तु आहाररूप से ग्रहण करते हैं, तथा कईं जानते – देखते हैं और ग्रहण करते हैं।’ वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों का कथन नैरयिकों के समान जानना चाहिए। भगवन् ! वैमानिक देव उन निर्जरा पुद्गलों को जानते – देखते और उनका आहरण करते हैं या नहीं करते हैं? गौतम ! मनुष्यों के समान समझना। वैमानिक देव दो प्रकार के हैं। यथा – मायी – मिथ्यादृष्टि – उपपन्नक और अमायी – सम्यग्दृष्टि – उपपन्नक। जो मायी – मिथ्यादृष्टि – उपपन्नक हैं, वे नहीं जानते – देखते, किन्तु ग्रहण करते हैं, तथा जो अमायी – सम्यग्दृष्टि – उपपन्नक हैं, वे भी दो प्रकार के हैं, यथा – अनन्तरोपपन्नक और परम्परोपपन्नक। जो अनन्त – रोपपन्नक होते हैं, वे नहीं जानते – देखते, किन्तु ग्रहण करते हैं तथा जो परम्परोपपन्नक हैं, वे दो प्रकार के हैं, यथा – पर्याप्तक और अपर्याप्तक। उनमें जो अपर्याप्यतक हैं, वे उन पुद्गलों को नहीं जानते – देखते, किन्तु ग्रहण करते हैं। उनमें जो पर्याप्तक हैं, वे दो प्रकार के हैं; यथा – उपयोगयुक्त और उपयोगरहित। उनमें से जो उपयोगरहित हैं, वे नहीं जानते – देखते, किन्तु ग्रहण करते हैं। [जो उपयोगयुक्त हैं, वे जानते – देखते हैं और ग्रहण करते हैं।] | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se magamdiyaputte anagare utthae utthei, utthetta jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhati, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram vamdati namamsati, vamditta namamsitta evam vayasi– Anagarassa nam bhamte! Bhaviyappano savvam kammam vedemanassa savvam kammam nijjaremanassa savvam maram maramanassa savvam sariram vippajahamanassa, charimam kammam vedemanassa charimam kammam nijjaremanassa charimam maram maramanassa charimam sariram vippajahamanassa, maranamtiyam kammam vedemanassa maranamtiyam kammam nijjaremanassa maranamtiyam maram maramanassa maranamtiyam sariram vippajahamanassa je charima nijjarapoggala suhuma nam te poggala pannatta samanauso! Savvam logam pi nam te ogahitta nam chitthamti? Hamta magamdiyaputta! Anagarassa nam bhaviyappano savvam kammam vedemanassa java je charima nijjarapoggala suhuma nam te poggala pannatta samanauso! Savva logam pi nam te ogahitta nam chitthamti. Chhaumatthe nam bhamte! Manusse tesim nijjarapoggalanam kimchi anattam va nanattam va omattam va tuchchhattam va garuyattam va lahuyattam va janai-pasai? Magamdiyaputta! No inatthe samatthe. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–chhaumatthe nam manusse tesim nijjarapoggalanam no kimchi anattam va nanattam va omattam va tuchchhattam va garuyattam va lahuyattam va janai-pasai? Magamdiyaputta! Deve vi ya nam atthegaie je nam tesim nijjarapoggalanam no kimchi anattam va nanattam va omattam va tuchchhattam va garuyattam va lahuyattam va janai-pasai. Se tenatthenam magamdiyaputta! Evam vuchchai–chhaumatthe nam manusse tesim nijjarapoggalanam no kimchi anattam va nanattam va omattam va tuchchhattam va garuyattam va lahuyattam va janai-pasai, suhuma nam te poggala pannatta samanauso! Savvalogam pi ya nam te ogahitta chitthamti. Neraiya nam bhamte! Te nijjarapoggale kim janamti-pasamti? Aharemti? Udahu na janamti na pasamti, na aharemti? Magamdiyaputta! Neraiya nam te nijjarapoggale na janamti na pasamti, aharemti. Evam java pamchimdiyatirikkhajoniya. Manussa nam bhamte! Te nijjarapoggale kim janamti-pasamti? Aharemti? Udahu na janamti na pasamti, na aharemti? Magamdiyaputta! Atthegaiya janamti-pasamti, aharemti. Atthegaiya na janamti na pasamti, aharemti. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–atthegaiya janamti-pasamti, aharemti? Atthegaiya na janamti na pasamti, aharemti Magamdiyaputta! Manussa duviha pannatta, tam jaha–sannibhuya ya, asannibhuya ya. Tattha nam je te asannibhuya te nam na janamti na pasamti, aharemti. Tattha nam je te sannibhuya te duviha pannatta, tam jaha–uvautta ya, anuvautta ya. Tattha nam je te anuvautta te nam na janamti, na pasamti, aharemti. Tattha nam je te uvautta te nam janamti-pasamti, aharemti. Se tenatthenam magamdiyaputta! Evam vuchchai–atthegaiya na janamti na pasamti, aharemti. Atthegaiya janamti-pasamti, aharemti. Vanamamtara-joisiya jaha neraiya. Vemaniya nam bhamte! Te nijjarapoggale kim janamti-pasamti? Aharemti? Amayisammaditthiuvava-nnaga ya. Tattha nam je te mayimichchhaditthiuvavannaga te nam na janamti na pasamti, aharemti. Tattha nam je te amayisammaditthiuvavannaga te duviha pannatta, tam jaha–anamtarovavannaga ya paramparovavannaga ya. Tattha nam je te anamtarovavannaga te nam na janamti na pasamti, aharemti. Tattha nam je te paramparovavannaga te duviha pannatta, tam jaha–pajjattaga ya, apajjattaga ya. Tattha nam je te apajjattaga te nam na janamti na pasamti, aharemti. Tattha nam je te pajjattaga te duviha pannatta, tam jaha–uvautta ya, anuvautta ya. Tattha nam je te anuvautta te nam na janamti na pasamti, aharemti. Tattha nam je te uvautta te nam janamti-pasamti, aharemti. Se tenatthenam magamdiyaputta! Evam vuchchai–atthegaiya na janamti na pasamti, aharemti. Atthegaiya janamti-pasamti, aharemti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat makandiputra anagara apane sthana se uthe aura shramana bhagavana mahavira ke pasa ae. Unhomne shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya aura isa prakara puchha – ‘bhagavan ! Sabhi karmom ko vedate hue, sarva karmom ki nirjara karate hue, samasta maranom se marate hue, sarvasharira ko chhorate hue tatha charama karma ko vedate hue, charama karma ki nirjara karate hue, charama marana se marate hue, charamasharira ko chhorate hue evam maranantika karma ko vedate hue, nirjara karate hue, maranantika marana se marate hue, maranantika sharira ko chhorate hue bhavitatma anagara ke jo charamanirjara ke pudgala haim, kya ve pudgala sukshma kahe gae haim\? He ayushman shramanapravara ! Kya ve pudgala samagra loka ka avagahana karake rahe hue haim\? Ham, makandiputra ! Tathakathita bhavitatma anagara ke yavat ve charama nirjara ke pudgala samagra loka ka avagahana karake rahe hue haim. Bhagavan ! Kya chhadmastha manushya una nirjara – pudgalom ke anyatva aura nanatva ko janata – dekhata hai\? He makandiputra ! Prajnyapanasutra ke prathama indriyoddeshaka ke anusara vaimanika taka janana chahie. Yavat – inamem jo upayogayukta haim, ve janate, dekhate aura ahararupa mem grahana karate haim, isa karana se he makandiputra ! Yaha kaha jata hai ki yavat jo upayogarahita haim, ve una pudgalom ko janate – dekhate nahim, kintu unhem aharana – grahana karate haim, isa prakara nikshepa kahana chahie. Bhagavan ! Kya nairayika una nirjara pudgalom ko nahim janate, nahim dekhate, kintu grahana karate haim\? Ham, karate haim, isi prakara pamchendriya tiryagyonikom taka janana. Bhagavan ! Kya manushya una nirjara pudgalom ko janate – dekhate haim aura grahana karate haim, athava ve nahim janate – dekhate, aura nahim aharana karate haim\? Gautama ! Kaim manushya una pudgalom ko janate – dekhate haim aura grahana karate haim, kaim manushya nahim janate – dekhate, kintu unhem grahana karate haim. Bhagavan ! Apa yaha kisa karana se kahate haim\? Gautama ! Manushya do prakara ke kahe gae haim, yatha – samjnyibhuta aura asamjnyibhuta. Unamem jo asamjnyibhuta haim, ve nahim janate – dekhate, kintu grahana karate haim. Jo samjnyibhuta manushya haim, ve do prakara ke haim, yatha – upayogayukta aura upayogarahita. Unamem jo upayogarahita haim ve una pudgalom ko nahim janate – dekhate, kintu grahana karate haim. Magara jo upayogayukta haim, ve janate – dekhate haim, aura grahana karate haim. Isa karana se, he gautama ! Aisa kaha gaya hai ki koi manushya nahim janate – dekhate, kintu ahararupa se grahana karate haim, tatha kaim janate – dekhate haim aura grahana karate haim.’ vanavyantara aura jyotishka devom ka kathana nairayikom ke samana janana chahie. Bhagavan ! Vaimanika deva una nirjara pudgalom ko janate – dekhate aura unaka aharana karate haim ya nahim karate haim? Gautama ! Manushyom ke samana samajhana. Vaimanika deva do prakara ke haim. Yatha – mayi – mithyadrishti – upapannaka aura amayi – samyagdrishti – upapannaka. Jo mayi – mithyadrishti – upapannaka haim, ve nahim janate – dekhate, kintu grahana karate haim, tatha jo amayi – samyagdrishti – upapannaka haim, ve bhi do prakara ke haim, yatha – anantaropapannaka aura paramparopapannaka. Jo ananta – ropapannaka hote haim, ve nahim janate – dekhate, kintu grahana karate haim tatha jo paramparopapannaka haim, ve do prakara ke haim, yatha – paryaptaka aura aparyaptaka. Unamem jo aparyapyataka haim, ve una pudgalom ko nahim janate – dekhate, kintu grahana karate haim. Unamem jo paryaptaka haim, ve do prakara ke haim; yatha – upayogayukta aura upayogarahita. Unamem se jo upayogarahita haim, ve nahim janate – dekhate, kintu grahana karate haim. [jo upayogayukta haim, ve janate – dekhate haim aura grahana karate haim.] |