Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004183 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१६ |
Translated Chapter : |
शतक-१६ |
Section : | उद्देशक-८ लोक | Translated Section : | उद्देशक-८ लोक |
Sutra Number : | 683 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] केमहालए णं भंते! लोए पन्नत्ते? गोयमा! महतिमहालए लोए पन्नत्ते, जहा बारसमसए तहेव जाव असंखेज्जाओ जोयण-कोडाकोडीओ परिक्खेवेणं। लोयस्स णं भंते! पुरत्थिमिल्ले चरिमंते किं जीवा, जीवदेसा, जीवपदेसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपदेसा? गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि। जे जीवदेसा ते नियमं एगिंदियदेसा य, अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियस्स य देसे–एवं जहा दसमसए अग्गेयी दिसा तहेव, नवरं–देसेसु अनिंदियाण आ-इल्लविरहिओ। जे अरूवी अजीवा ते छव्विहा, अद्धासमयो नत्थि। सेसं तं चेव निरवसेसं। लोगस्स णं भंते! दाहिणिल्ले चरिमंते किं जीवा? एवं चेव। एवं पच्चत्थिमिल्ले वि, उत्तरिल्ले वि। लोगस्स णं भंते! उवरिल्ले चरिमंते किं जीवा–पुच्छा। गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि जाव अजीवपदेसा वि। जे जीवदेसा ते नियमं एगिंदियदेसा य अनिंदियदेसा य, अहवा एगिंदियदेसा य अनिंदियदेसा य बेइंदियस्स य देसे, अहवा एगिंदियदेसा य अनिंदियदेसा य बेइंदियाण य देसा, एवं मज्झिल्लविरहिओ जाव पंचिंदियाणं। जे जीवप्पदेसा ते नियमं एगिंदियप्पदेसा य अनिंदियप्पदेसा य, अहवा एगिंदियप्पदेसा य अनिंदियप्पदेसा य बेइंदियस्स पदेसा य, अहवा एगिंदियप्पदेसा य अनिंदियप्पदेसा य बेइंदियाण य पदेसा, एवं आदिल्लविरहिओ जाव पंचिंदियाणं। अजीवा जहा दसमसए तमाए तहेव निरवसेसं। लोगस्स णं भंते! हेट्ठिल्ले चरिमंते किं जीवा–पुच्छा। गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि जाव अजीवपदेसा वि, जे जीवदेसा ते नियमं एगिंदियदेसा, अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदि-यस्स देसे, अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियाण य देसा, एवं मज्झिल्लविरहिओ जाव अनिंदियाणं। पदेसा आइल्लविरहिया सव्वेसिं जहा पुरत्थिमिल्ले चरिमंते तहेव। अजीवा जहेव उवरिल्ले चरिमंते तहेव। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते किं जीवा पुच्छा। गोयमा! नो जीवा, एवं जहेव लोगस्स तहेव चत्तारि वि चरिमंता जाव उत्तरिल्ले, उवरिल्ले तहेव, जहा दसमसए विमला दिसा तहेव निरवसेसं। हेट्ठिल्ले चरिमंते जहेव लोगस्स हेट्ठिल्ले तहेव, नवरं–देसे पंचिंदिएसु तियभंगो त्ति सेसं तं चेव। एवं जहा रयणप्पभाए चत्तारि चरिमंता भणिया एवं सक्करप्पभाए वि। उवरिम-हेट्ठिल्ला जहा रयणप्पभाए हेट्ठिल्ले। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं सोहम्मस्स वि जाव अच्चुयस्स। गेवेज्जविमानाणं एवं चेव, नवरं–उवरिम-हेट्ठिल्लेसु चरिमंतेसु देसेसु पंचिंदियाण वि मज्झिल्ल विरहिओ चेव, सेसं तहेव। एवं जहा गेवेज्जविमाना तहा अनुत्तरविमाना वि, ईसिंपब्भारा वि। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! लोक कितना विशाल कहा गया है ? गौतम ! लोक अत्यन्त विशाल कहा गया है। इसकी समस्त वक्तव्यता बारहवें शतक अनुसार कहना। भगवन् ! क्या लोक के पूर्वीय चरमान्त में जीव हैं, जीवदेश हैं, जीवप्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं और अजीव के प्रदेश हैं ? गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, परन्तु जीव के देश हैं, जीव के प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं और अजीव के प्रदेश भी हैं। वहाँ जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं, अथवा एकेन्द्रिय जीवों के देश और द्वीन्द्रिय जीव का एक देश है। इत्यादि सब भंग दसवें शतक में कथित आग्नेयी दिशा अनुसार जानना। विशेषता यह है कि ‘बहुत देशों के विषय में अनिन्द्रियों से सम्बन्धित प्रथम भंग नहीं कहना, तथा वहाँ जो अरूपी अजीव हैं, वे छह प्रकार के कहे गए हैं। वहाँ काल नहीं है। भगवन् ! क्या लोक के दक्षिणी चरमान्त में जीव हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। गौतम ! पूर्ववत्। इसी प्रकार पश्चिमी और उत्तरी चरमान्त समझना। भगवन् ! लोक के उपरिम चरमान्त में जीव हैं, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, किन्तु जीव के देश हैं, यावत् अजीव के प्रदेश भी हैं। जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रियों के देश और अनिन्द्रियों के देश हैं। अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के देश तथा द्वीन्द्रिय का एक देश है, अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के देश तथा द्वीन्द्रियों के देश हैं। इस प्रकार बीच के भंग को छोड़कर द्विकसंयोगी सभी भंग यावत् पंचेन्द्रिय तक कहना चाहिए। यहाँ जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं और अनिन्द्रियों के प्रदेश हैं। अथवा एकेन्द्रियों के प्रदेश, अनिन्द्रियों के प्रदेश और एक द्वीन्द्रिय के प्रदेश हैं। अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के प्रदेश तथा द्वीन्द्रियों के प्रदेश हैं। इस प्रकार प्रथम भंग के अतिरिक्त शेष सभी भंग यावत् पंचेन्द्रियों तक कहना। दशवें शतक में कथित तमादिशा अनुसार यहाँ पर अजीवों को कहना। भगवन् ! क्या लोक के अधस्तन चरमान्त में जीव हैं ? गौतम वहाँ जीव नहीं हैं, किन्तु जीव के देश हैं, यावत् अजीव के प्रदेश भी हैं। जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रियों के देश हैं, अथवा एकेन्द्रियों के देश और द्वीन्द्रिय का एक देश है। अथवा एकेन्द्रियों के देश और द्वीन्द्रियों के देश हैं। इस प्रकार बीच के भंग को छोड़कर शेष भंग, यावत् – अनीन्द्रियों तक कहना। सभी प्रदेशों के विषय में आदि के भंग को छोड़कर पूर्वीय – चरमान्त के अनुसार कहना। अजीवों के विषय में उपरितन चरमान्त के समान जानना। भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वीय चरमान्त में जीव हैं ? गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं। लोक के चार चरमान्तों के समान रत्नप्रभापृथ्वी के चार चरमान्तों के विषय में यावत् उत्तरीय चरमान्त तक कहना चाहिए। रत्नप्रभा के उपरितन चरमान्त के विषय में, दसवें शतक में विमला दिशा के समान कहना। रत्नप्रभापृथ्वी के अधस्तन चरमान्त की वक्तव्यता लोक के अधस्तन चरमान्त के समान कहना। विशेषता यह है कि जीवदेश के विषय में पंचेन्द्रियों के तीन भंग कहने चाहिए। रत्नप्रभापृथ्वी के चार चरमान्तों के अनुसार शर्कराप्रभापृथ्वी के भी चार चरमान्तों को कहना तथा रत्नप्रभापृथ्वी के अधस्तन चरमान्त के समान, शर्कराप्रभापृथ्वी के उपरितन एवं अधस्तन चरमान्त जानना। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के चरमान्तों में कहना। इसी प्रकार सौधर्म देवलोक से लेकर अच्युत देवलोक तक कहना चाहिए। ग्रैवेयक विमानों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेषता यह है कि इनमें उपरितन और अधस्तन चरमान्तों के विषय में, जीवदेशों के सम्बन्ध में पंचेन्द्रियों में भी बीच का भंग नहीं कहना चाहिए। शेष पूर्ववत्। जिस प्रकार ग्रैवेयकों के चरमान्तों के विषय में कहा गया, उसी प्रकार अनुत्तरविमानों तथा ईषत्प्राग्भारापृथ्वी के चरमान्तों के विषय में कहना चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] kemahalae nam bhamte! Loe pannatte? Goyama! Mahatimahalae loe pannatte, jaha barasamasae taheva java asamkhejjao joyana-kodakodio parikkhevenam. Loyassa nam bhamte! Puratthimille charimamte kim jiva, jivadesa, jivapadesa, ajiva, ajivadesa, ajivapadesa? Goyama! No jiva, jivadesa vi, jivapadesa vi, ajiva vi, ajivadesa vi, ajivapadesa vi. Je jivadesa te niyamam egimdiyadesa ya, ahava egimdiyadesa ya beimdiyassa ya dese–evam jaha dasamasae aggeyi disa taheva, navaram–desesu animdiyana a-illavirahio. Je aruvi ajiva te chhavviha, addhasamayo natthi. Sesam tam cheva niravasesam. Logassa nam bhamte! Dahinille charimamte kim jiva? Evam cheva. Evam pachchatthimille vi, uttarille vi. Logassa nam bhamte! Uvarille charimamte kim jiva–puchchha. Goyama! No jiva, jivadesa vi java ajivapadesa vi. Je jivadesa te niyamam egimdiyadesa ya animdiyadesa ya, ahava egimdiyadesa ya animdiyadesa ya beimdiyassa ya dese, ahava egimdiyadesa ya animdiyadesa ya beimdiyana ya desa, evam majjhillavirahio java pamchimdiyanam. Je jivappadesa te niyamam egimdiyappadesa ya animdiyappadesa ya, ahava egimdiyappadesa ya animdiyappadesa ya beimdiyassa padesa ya, ahava egimdiyappadesa ya animdiyappadesa ya beimdiyana ya padesa, evam adillavirahio java pamchimdiyanam. Ajiva jaha dasamasae tamae taheva niravasesam. Logassa nam bhamte! Hetthille charimamte kim jiva–puchchha. Goyama! No jiva, jivadesa vi java ajivapadesa vi, je jivadesa te niyamam egimdiyadesa, ahava egimdiyadesa ya beimdi-yassa dese, ahava egimdiyadesa ya beimdiyana ya desa, evam majjhillavirahio java animdiyanam. Padesa aillavirahiya savvesim jaha puratthimille charimamte taheva. Ajiva jaheva uvarille charimamte taheva. Imise nam bhamte! Rayanappabhae pudhavie puratthimille charimamte kim jiva puchchha. Goyama! No jiva, evam jaheva logassa taheva chattari vi charimamta java uttarille, uvarille taheva, jaha dasamasae vimala disa taheva niravasesam. Hetthille charimamte jaheva logassa hetthille taheva, navaram–dese pamchimdiesu tiyabhamgo tti sesam tam cheva. Evam jaha rayanappabhae chattari charimamta bhaniya evam sakkarappabhae vi. Uvarima-hetthilla jaha rayanappabhae hetthille. Evam java ahesattamae. Evam sohammassa vi java achchuyassa. Gevejjavimananam evam cheva, navaram–uvarima-hetthillesu charimamtesu desesu pamchimdiyana vi majjhilla virahio cheva, sesam taheva. Evam jaha gevejjavimana taha anuttaravimana vi, isimpabbhara vi. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Loka kitana vishala kaha gaya hai\? Gautama ! Loka atyanta vishala kaha gaya hai. Isaki samasta vaktavyata barahavem shataka anusara kahana. Bhagavan ! Kya loka ke purviya charamanta mem jiva haim, jivadesha haim, jivapradesha haim, ajiva haim, ajiva ke desha haim aura ajiva ke pradesha haim\? Gautama ! Vaham jiva nahim haim, parantu jiva ke desha haim, jiva ke pradesha haim, ajiva haim, ajiva ke desha haim aura ajiva ke pradesha bhi haim. Vaham jo jiva ke desha haim, ve niyamatah ekendriya jivom ke desha haim, athava ekendriya jivom ke desha aura dvindriya jiva ka eka desha hai. Ityadi saba bhamga dasavem shataka mem kathita agneyi disha anusara janana. Visheshata yaha hai ki ‘bahuta deshom ke vishaya mem anindriyom se sambandhita prathama bhamga nahim kahana, tatha vaham jo arupi ajiva haim, ve chhaha prakara ke kahe gae haim. Vaham kala nahim hai. Bhagavan ! Kya loka ke dakshini charamanta mem jiva haim\? Ityadi purvavat prashna. Gautama ! Purvavat. Isi prakara pashchimi aura uttari charamanta samajhana. Bhagavan ! Loka ke uparima charamanta mem jiva haim, ityadi purvavat prashna. Gautama ! Vaham jiva nahim haim, kintu jiva ke desha haim, yavat ajiva ke pradesha bhi haim. Jo jiva ke desha haim, ve niyamatah ekendriyom ke desha aura anindriyom ke desha haim. Athava ekendriyom ke aura anindriyom ke desha tatha dvindriya ka eka desha hai, athava ekendriyom ke aura anindriyom ke desha tatha dvindriyom ke desha haim. Isa prakara bicha ke bhamga ko chhorakara dvikasamyogi sabhi bhamga yavat pamchendriya taka kahana chahie. Yaham jo jiva ke pradesha haim, ve niyamatah ekendriyom ke pradesha haim aura anindriyom ke pradesha haim. Athava ekendriyom ke pradesha, anindriyom ke pradesha aura eka dvindriya ke pradesha haim. Athava ekendriyom ke aura anindriyom ke pradesha tatha dvindriyom ke pradesha haim. Isa prakara prathama bhamga ke atirikta shesha sabhi bhamga yavat pamchendriyom taka kahana. Dashavem shataka mem kathita tamadisha anusara yaham para ajivom ko kahana. Bhagavan ! Kya loka ke adhastana charamanta mem jiva haim\? Gautama vaham jiva nahim haim, kintu jiva ke desha haim, yavat ajiva ke pradesha bhi haim. Jo jiva ke desha haim, ve niyamatah ekendriyom ke desha haim, athava ekendriyom ke desha aura dvindriya ka eka desha hai. Athava ekendriyom ke desha aura dvindriyom ke desha haim. Isa prakara bicha ke bhamga ko chhorakara shesha bhamga, yavat – anindriyom taka kahana. Sabhi pradeshom ke vishaya mem adi ke bhamga ko chhorakara purviya – charamanta ke anusara kahana. Ajivom ke vishaya mem uparitana charamanta ke samana janana. Bhagavan ! Kya isa ratnaprabhaprithvi ke purviya charamanta mem jiva haim\? Gautama ! Vaham jiva nahim haim. Loka ke chara charamantom ke samana ratnaprabhaprithvi ke chara charamantom ke vishaya mem yavat uttariya charamanta taka kahana chahie. Ratnaprabha ke uparitana charamanta ke vishaya mem, dasavem shataka mem vimala disha ke samana kahana. Ratnaprabhaprithvi ke adhastana charamanta ki vaktavyata loka ke adhastana charamanta ke samana kahana. Visheshata yaha hai ki jivadesha ke vishaya mem pamchendriyom ke tina bhamga kahane chahie. Ratnaprabhaprithvi ke chara charamantom ke anusara sharkaraprabhaprithvi ke bhi chara charamantom ko kahana tatha ratnaprabhaprithvi ke adhastana charamanta ke samana, sharkaraprabhaprithvi ke uparitana evam adhastana charamanta janana. Isi prakara yavat adhahsaptamaprithvi ke charamantom mem kahana. Isi prakara saudharma devaloka se lekara achyuta devaloka taka kahana chahie. Graiveyaka vimanom ke vishaya mem bhi isi prakara kahana chahie. Visheshata yaha hai ki inamem uparitana aura adhastana charamantom ke vishaya mem, jivadeshom ke sambandha mem pamchendriyom mem bhi bicha ka bhamga nahim kahana chahie. Shesha purvavat. Jisa prakara graiveyakom ke charamantom ke vishaya mem kaha gaya, usi prakara anuttaravimanom tatha ishatpragbharaprithvi ke charamantom ke vishaya mem kahana chahie. |