Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004180 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१६ |
Translated Chapter : |
शतक-१६ |
Section : | उद्देशक-६ स्वप्न | Translated Section : | उद्देशक-६ स्वप्न |
Sutra Number : | 680 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं हयपंतिं वा गयपंतिं वा नरपंतिं वा किन्नरपंतिं वा किंपुरिसपंतिं वा महोरग-पंतिं वा गंधव्वपंतिं वा वसभपंतिं वा पासमाणे पासति, द्रुहमाणे द्रुहति, द्रूढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं दामिणिं पाईणपडिणायतं दुहओ समुद्दे पुट्ठं पासमाणे पासति, संवेल्लेमाणे संवेल्लेइ, संवेल्लियमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं रज्जुं पाईणपडिणायतं दुहओ लोगंते पुट्ठं पासमाणे पासति, छिंदमाणे छिंदति छिन्नमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं किण्हसुत्तगं वा नीलसुत्तगं वा लोहियसुत्तगं वा हालिद्दसुत्तगं वा सुक्किलसु-त्तगं वा पासमाणे पासति, उग्गोवेमाणे उग्गोवेति, उग्गोवितमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं अयरासिं वा तंवरासिं वा तउयरासिं वा सीसगरासिं वा पासमाणे पासति, दुरुहमाणे दुरुहति, दुरूढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झंति, दोच्चे भवग्गहणे सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं हिरण्णरासिं वा सुवण्णरासिं वा रयणरासिं वा वइररासिं वा पासमाणे पासति दुरुहमाणे दुरुहति, दुरूढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं तणरासिं वा कट्ठरासिं वा पत्तरासिं वा तयरासिं वा तुसरासिं वा भुसरासिं वा गोमयरासिं वा अवकररासिं वा पासमाणे पासति, विक्खिरमाणे विक्खिरति, विक्खिण्णमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्व-दुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं सरथंभं वा वीरणथंभं वा वंसीमूलथंभं वा वल्लीमूलथंभं वा पासमाणे पासति, उम्मूलेमाणे उम्मूलेति, उम्मूलितमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदु-क्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं खीरकुंभं वा दधिकुंभं वा घयकुंभं वा मधुकुंभं वा पासमाणे पासति, उप्पाडेमाणे उप्पाडेति, उप्पाडितमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं सुरावियडकुंभं वा सोवीरवियडकुंभं वा तेल्लकुंभं वा वसाकुंभं वा पासमाणे पासति, भिंदमाणे भिंदति, भिन्नमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, दोच्चे भवग्गहणे सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं पउमसरं कुसुमियं पासमाणे पासति, ओगाहमाणे ओगाहति, ओगाढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं सागरं उम्मीवीयीसहस्सकलियं पासमाणे पासति, तरमाणे तरति, तिण्ण-मिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं भवणं सव्वरयणामयं पासमाणे पासति, अनुप्पविसमाणे अनुप्पविसति, अनुप्पविट्ठमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं विमाणं सव्वरयणामयं पासमाणे पासति, दुरुहमाणे दुरुहति, दुरुढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। | ||
Sutra Meaning : | कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में एक महान् अश्वपंक्ति, गजपंक्ति अथवा यावत् वृषभ – पंक्ति का अवलोकन करता हुआ देखे, और उस पर चढ़ने का प्रयत्न करता हुआ चढ़े तथा अपने आपको उस पर चढ़ा हुआ माने ऐसा स्वप्न देखकर तुरन्त जागृत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, समुद्र को दोनों ओर से छूती हुई, पूर्व से पश्चिम तक विस्तृत एक बड़ी रस्सी को देखने का प्रयत्न करता हुआ देखे, अपने दोनों हाथों से उसे समेटता हुआ समेटे, फिर अनुभव करे कि मैंने स्वयं रस्सी को समेट लिया है, ऐसा स्वप्न देखकर तत्काल जागृत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, दोनों ओर लोकान्त को स्पर्श की हुई तथा पूर्व – पश्चिम लम्बी एक बड़ी रस्सी को देखता हुआ देखे, उसे काटने का प्रयत्न करता हुआ काट डाले। (फिर) मैंने उसे काट दिया, ऐसा स्वयं अनुभव करे, ऐसा स्वप्न देखकर तत्काल जाग जाए तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, एक बड़े काले सूत को या सफेद सूत को देखता हुआ देखे, और उसके उलझे हुए पिण्ड को सुलझाता हुआ सुलझा देता है और मैंने उसे सुलझाया है, ऐसा स्वयं को माने, ऐसा स्वप्न देखकर शीघ्र ही जागृत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, एक बड़ी लोहराशि, तांबे की राशि, कथीर की राशि, अथवा शीशे की राशि देखने का प्रयत्न करता हुआ देखे उस पर चढ़ता हुआ चढ़े तथा अपने आपको चढ़ा हुआ माने। ऐसा स्वप्न देखकर तत्काल जागृत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में एक महान् चाँदी का ढेर, सोने का ढेर, रत्नों का ढेर अथवा वज्रों का ढेर देखता हुआ देखे, उस पर चढ़ता हुआ चढ़े, अपने आपको उस पर चढ़ा हुआ माने, ऐसा स्वप्न देखकर तत्क्षण जागृत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, एक महान तृणराशि तथा तेजो – निसर्ग नामक पन्द्रहवें शतक के अनुसार यावत् कचरे का ढेर देखता हुआ देखे, उसे बिखेरता हुआ बिखेर दे, और मैंने बिखेर दिया है, ऐसा स्वयं को माने, ऐसा स्वप्न देखकर तत्काल जागृत हो तो वह यावत् सब दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, एक महान् सर – स्तम्भ, वीरण – स्तम्भ, वंशीमूल – स्तम्भ अथवा वल्ली – मूल – स्तम्भ को देखता हुआ देखे, उसे उखाड़ता हुआ उखाड़ फेंके तथा ऐसा माने कि मैंने इनको उखाड़ फेंका है, ऐसा स्वप्न देखकर तत्काल जागृत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, एक महान् क्षीरकुम्भ, दधिकुम्भ, घृतकुम्भ, अथवा मधुकुम्भ देखता हुआ देखे और उसे उठाता हुआ उठाए तथा ऐसा माने कि स्वयं मैंने उसे उठा लिया है, ऐसा स्वप्न देखकर तत्काल जागृत हो तो वह व्यक्ति उसी भव में सिद्ध, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, एक महान् सुरारूप जल का कुम्भ, सौवीर रूप जल कुम्भ, तेलकुम्भ अथवा वसा का कुम्भ देखता हुआ देखे, फोड़ता हुआ उसे फोड़ डाले तथा मैंने उसे स्वयं फोड़ डाला है, ऐसा माने, ऐसा स्वप्न देखकर शीघ्र जागृत हो तो वह दो भव में मोक्ष जाता है, यावत् सब दुःखों का अन्त कर डालता है। कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, एक महान् कुसुमित पद्मसरोवर को देखता हुआ देखे, उसमें अवगाहन (प्रवेश) करता हुआ अवगाहन करे तथा स्वयं मैंने इसमें अवगाहन किया है, ऐसा अनुभव करे तथा इस प्रकार का स्वप्न देखकर तत्काल जागृत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, तरंगों और कल्लोलों से व्याप्त एक महासागर को देखता हुआ देखे, तथा तरता हुआ पार कर ले, एवं मैंने इसे स्वयं पार किया है, ऐसा माने, इस प्रकार का स्वप्न देखकर शीघ्र जागृत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, सर्वरत्नमय एक महा – भवन देखता हुआ देखे, उसमें प्रविष्ट होता हुआ प्रवेश करे तथा मैं इसमें प्रविष्ट हो गया हूँ, ऐसा माने, इस प्रकार का स्वप्न देखकर शीघ्र जागृत हो तो, वह उसी भव में सिद्ध – बुद्ध – मुक्त हो जाता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देता है। कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, सर्वरत्नमय एक महान् विमान को देखता हुआ देखता है, उस पर चढ़ता हुआ चढ़ता है, तथा मैं इस पर चढ़ गया हूँ, ऐसा स्वयं अनुभव करता है, ऐसा स्वप्न देखकर तत्क्षण जागृत होता है, तो वह व्यक्ति उसी भव में सिद्ध – बुद्ध – मुक्त हो जाता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] itthi va purise va suvinamte egam maham hayapamtim va gayapamtim va narapamtim va kinnarapamtim va kimpurisapamtim va mahoraga-pamtim va gamdhavvapamtim va vasabhapamtim va pasamane pasati, druhamane druhati, drudhamiti appanam mannati, takkhanameva bujjhati, teneva bhavaggahanenam sijjhati java savvadukkhanam amtam kareti. Itthi va purise va suvinamte egam maham daminim painapadinayatam duhao samudde puttham pasamane pasati, samvellemane samvellei, samvelliyamiti appanam mannati, takkhanameva bujjhati, teneva bhavaggahanenam sijjhati java savvadukkhanam amtam kareti. Itthi va purise va suvinamte egam maham rajjum painapadinayatam duhao logamte puttham pasamane pasati, chhimdamane chhimdati chhinnamiti appanam mannati, takkhanameva bujjhati, teneva bhavaggahanenam sijjhati java savvadukkhanam amtam kareti. Itthi va purise va suvinamte egam maham kinhasuttagam va nilasuttagam va lohiyasuttagam va haliddasuttagam va sukkilasu-ttagam va pasamane pasati, uggovemane uggoveti, uggovitamiti appanam mannati, takkhanameva bujjhati, teneva bhavaggahanenam sijjhati java savvadukkhanam amtam kareti. Itthi va purise va suvinamte egam maham ayarasim va tamvarasim va tauyarasim va sisagarasim va pasamane pasati, duruhamane duruhati, durudhamiti appanam mannati, takkhanameva bujjhamti, dochche bhavaggahane sijjhati java savvadukkhanam amtam kareti. Itthi va purise va suvinamte egam maham hirannarasim va suvannarasim va rayanarasim va vairarasim va pasamane pasati duruhamane duruhati, durudhamiti appanam mannati, takkhanameva bujjhati, teneva bhavaggahanenam sijjhati java savvadukkhanam amtam kareti. Itthi va purise va suvinamte egam maham tanarasim va kattharasim va pattarasim va tayarasim va tusarasim va bhusarasim va gomayarasim va avakararasim va pasamane pasati, vikkhiramane vikkhirati, vikkhinnamiti appanam mannati, takkhanameva bujjhati, teneva bhavaggahanenam sijjhati java savva-dukkhanam amtam kareti. Itthi va purise va suvinamte egam maham sarathambham va viranathambham va vamsimulathambham va vallimulathambham va pasamane pasati, ummulemane ummuleti, ummulitamiti appanam mannati, takkhanameva bujjhati, teneva bhavaggahanenam sijjhati java savvadu-kkhanam amtam kareti. Itthi va purise va suvinamte egam maham khirakumbham va dadhikumbham va ghayakumbham va madhukumbham va pasamane pasati, uppademane uppadeti, uppaditamiti appanam mannati, takkhanameva bujjhati, teneva bhavaggahanenam sijjhati java savvadukkhanam amtam kareti. Itthi va purise va suvinamte egam maham suraviyadakumbham va soviraviyadakumbham va tellakumbham va vasakumbham va pasamane pasati, bhimdamane bhimdati, bhinnamiti appanam mannati, takkhanameva bujjhati, dochche bhavaggahane sijjhati java savvadukkhanam amtam kareti. Itthi va purise va suvinamte egam maham paumasaram kusumiyam pasamane pasati, ogahamane ogahati, ogadhamiti appanam mannati, takkhanameva bujjhati, teneva bhavaggahanenam sijjhati java savvadukkhanam amtam kareti. Itthi va purise va suvinamte egam maham sagaram ummiviyisahassakaliyam pasamane pasati, taramane tarati, tinna-miti appanam mannati, takkhanameva bujjhati, teneva bhavaggahanenam sijjhati java savvadukkhanam amtam kareti. Itthi va purise va suvinamte egam maham bhavanam savvarayanamayam pasamane pasati, anuppavisamane anuppavisati, anuppavitthamiti appanam mannati, takkhanameva bujjhati, teneva bhavaggahanenam sijjhati java savvadukkhanam amtam kareti. Itthi va purise va suvinamte egam maham vimanam savvarayanamayam pasamane pasati, duruhamane duruhati, durudhamiti appanam mannati, takkhanameva bujjhati, teneva bhavaggahanenam sijjhati java savvadukkhanam amtam kareti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Koi stri ya purusha svapna ke anta mem eka mahan ashvapamkti, gajapamkti athava yavat vrishabha – pamkti ka avalokana karata hua dekhe, aura usa para charhane ka prayatna karata hua charhe tatha apane apako usa para charha hua mane aisa svapna dekhakara turanta jagrita ho to vaha usi bhava mem siddha hota hai, yavat sabhi duhkhom ka anta karata hai. Koi stri ya purusha svapna ke anta mem, samudra ko donom ora se chhuti hui, purva se pashchima taka vistrita eka bari rassi ko dekhane ka prayatna karata hua dekhe, apane donom hathom se use sametata hua samete, phira anubhava kare ki maimne svayam rassi ko sameta liya hai, aisa svapna dekhakara tatkala jagrita ho, to vaha usi bhava mem siddha hota hai, yavat sabhi duhkhom ka anta karata hai. Koi stri ya purusha, svapna ke anta mem, donom ora lokanta ko sparsha ki hui tatha purva – pashchima lambi eka bari rassi ko dekhata hua dekhe, use katane ka prayatna karata hua kata dale. (phira) maimne use kata diya, aisa svayam anubhava kare, aisa svapna dekhakara tatkala jaga jae to vaha usi bhava mem siddha hota hai, yavat sarva duhkhom ka anta karata hai. Koi stri ya purusha svapna ke anta mem, eka bare kale suta ko ya sapheda suta ko dekhata hua dekhe, aura usake ulajhe hue pinda ko sulajhata hua sulajha deta hai aura maimne use sulajhaya hai, aisa svayam ko mane, aisa svapna dekhakara shighra hi jagrita ho, to vaha usi bhava mem siddha hota hai, yavat sarva duhkhom ka anta karata hai. Koi stri ya purusha svapna ke anta mem, eka bari loharashi, tambe ki rashi, kathira ki rashi, athava shishe ki rashi dekhane ka prayatna karata hua dekhe usa para charhata hua charhe tatha apane apako charha hua mane. Aisa svapna dekhakara tatkala jagrita ho, to vaha usi bhava mem siddha hota hai, yavat sarva duhkhom ka anta karata hai. Koi stri ya purusha svapna ke anta mem eka mahan chamdi ka dhera, sone ka dhera, ratnom ka dhera athava vajrom ka dhera dekhata hua dekhe, usa para charhata hua charhe, apane apako usa para charha hua mane, aisa svapna dekhakara tatkshana jagrita ho, to vaha usi bhava mem siddha hota hai, yavat saba duhkhom ka anta karata hai. Koi stri ya purusha svapna ke anta mem, eka mahana trinarashi tatha tejo – nisarga namaka pandrahavem shataka ke anusara yavat kachare ka dhera dekhata hua dekhe, use bikherata hua bikhera de, aura maimne bikhera diya hai, aisa svayam ko mane, aisa svapna dekhakara tatkala jagrita ho to vaha yavat saba duhkhom ka anta karata hai. Koi stri ya purusha, svapna ke anta mem, eka mahan sara – stambha, virana – stambha, vamshimula – stambha athava valli – mula – stambha ko dekhata hua dekhe, use ukharata hua ukhara phemke tatha aisa mane ki maimne inako ukhara phemka hai, aisa svapna dekhakara tatkala jagrita ho to vaha usi bhava mem siddha hota hai, yavat sarva duhkhom ka anta karata hai. Koi stri ya purusha, svapna ke anta mem, eka mahan kshirakumbha, dadhikumbha, ghritakumbha, athava madhukumbha dekhata hua dekhe aura use uthata hua uthae tatha aisa mane ki svayam maimne use utha liya hai, aisa svapna dekhakara tatkala jagrita ho to vaha vyakti usi bhava mem siddha, yavat sarva duhkhom ka anta karata hai. Koi stri ya purusha svapna ke anta mem, eka mahan surarupa jala ka kumbha, sauvira rupa jala kumbha, telakumbha athava vasa ka kumbha dekhata hua dekhe, phorata hua use phora dale tatha maimne use svayam phora dala hai, aisa mane, aisa svapna dekhakara shighra jagrita ho to vaha do bhava mem moksha jata hai, yavat saba duhkhom ka anta kara dalata hai. Koi stri ya purusha, svapna ke anta mem, eka mahan kusumita padmasarovara ko dekhata hua dekhe, usamem avagahana (pravesha) karata hua avagahana kare tatha svayam maimne isamem avagahana kiya hai, aisa anubhava kare tatha isa prakara ka svapna dekhakara tatkala jagrita ho to vaha usi bhava mem siddha hota hai, yavat saba duhkhom ka anta karata hai. Koi stri ya purusha svapna ke anta mem, taramgom aura kallolom se vyapta eka mahasagara ko dekhata hua dekhe, tatha tarata hua para kara le, evam maimne ise svayam para kiya hai, aisa mane, isa prakara ka svapna dekhakara shighra jagrita ho to vaha usi bhava mem siddha hota hai, yavat sarva duhkhom ka anta karata hai. Koi stri ya purusha, svapna ke anta mem, sarvaratnamaya eka maha – bhavana dekhata hua dekhe, usamem pravishta hota hua pravesha kare tatha maim isamem pravishta ho gaya hum, aisa mane, isa prakara ka svapna dekhakara shighra jagrita ho to, vaha usi bhava mem siddha – buddha – mukta ho jata hai, yavat sarva duhkhom ka anta kara deta hai. Koi stri ya purusha svapna ke anta mem, sarvaratnamaya eka mahan vimana ko dekhata hua dekhata hai, usa para charhata hua charhata hai, tatha maim isa para charha gaya hum, aisa svayam anubhava karata hai, aisa svapna dekhakara tatkshana jagrita hota hai, to vaha vyakti usi bhava mem siddha – buddha – mukta ho jata hai, yavat saba duhkhom ka anta karata hai. |