Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Sr No : | 1004179 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१६ |
Translated Chapter : |
शतक-१६ |
Section : | उद्देशक-६ स्वप्न | Translated Section : | उद्देशक-६ स्वप्न |
Sutra Number : | 679 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसि इमे दस महासुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तं जहा– १. एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुविणे पराजियं पासित्ता णं पडिबुद्धे। २. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ३. एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ४. एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ५. एगं च णं महं सेयं गोवग्गं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमियं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ७. एगं च णं महं सागरं उम्मीवीयीसहस्सकलियं भूयाहिं तिण्णं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ८. एगं च णं महं दिणयरं तेयसा जलंतं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ९. एगं च णं महं हरिवेरुलियवण्णाभेणं नियगेणं अंतेणं माणुसुत्तरं पव्वयं सव्वओ समंता आवेढियं परिवेढियं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। १०. एगं च णं महं मंदरे पव्वए मंदरचूलियाए उवरिं सीहासणवरगयं अप्पाणं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। १. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुविणे पराजियं पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणेणं भगवया महावीरेणं मोहणिज्जे मूलाओ उग्घाइए। २. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे सुक्कज्झाणोवगए विहरति। ३. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे विचित्तं ससमयपरसमइयं दुवालसंगं गणिपिडगं आघवेति पन्नवेति परूवेति दंसेति निदंसेति उवदंसेति, तं जहा–आयारं, सूयगडं जाव दिट्ठिवायं। ४. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे दुविहे धम्मे पन्नवेति, तं जहा–अगारधम्मं वा, अनगारधम्मं वा। ५. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं सेयं गोवग्गं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणस्स भगवओ महावीरस्स चाउव्वण्णाइण्णे समणसंघे, तं जहा–समणा, समणीओ, सावया, सावियाओ। ६. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमियं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे चउव्विहे देवे पन्नवेति, तं जहा–भवनवासी, वाणमंतरे, जोतिसिए, वेमाणिए। ७. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं सागरं उम्मीवीयीसहस्सकलियं भूयाहिं तिण्णं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणेणं भगवया महावीरेणं अनादीए अणवदग्गे दीहमद्धे चाउरंते संसारकंतारे तिण्णे। ८. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं दिणयरं तेयसा जलंतं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अनंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवल-वरनाणदंसणे समुप्पन्ने। ९. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं हरिवेरुलियवण्णाभेणं नियगेणं अंतेणं माणुसुत्तरं पव्वयं सव्वओ समंता आवेढियं परिवेढियं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणस्स भगवओ महा-वीरस्स ओराला कित्ति-वण्ण-सद्द-सिलोया सदेवमनुयासुरे लोए परिभमंति–इति खलु समणे भगवं महावीरे, इति खलु समणे भगवं महावीरे। १०. जण्णं समणे भगवं महावीरे मंदरे पव्वए मंदरचूलियाए उवरिं सीहासणवरगयं अप्पाणं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे सदेवमनुयासुराए परिसाए मज्झगए केवली धम्मं आघवेति पन्नवेति परूवेति दंसेति निदंसेति उवदंसेति। | ||
Sutra Meaning : | श्रमण भगवान महावीर अपने छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में इन दस महास्वप्नों को देखकर जागृत हुए। (१) एक महान घोर और तेजस्वी रूप वाले ताड़वृक्ष के समान लम्बे पिशाच को स्वप्न में पराजित किया। (२) श्वेत पाँखों वाले एक महान् पुंस्कोकिल का स्वप्न। (३) चित्र – विचित्र पंखों वाले पुंस्कोकिल का स्वप्न। (४) स्वप्न में सर्व – रत्नमय एक महान् मालायुगल को देखा। (५) स्वप्न में श्वेतवर्ण के एक महान् गोवर्ग को देखा, प्रतिबद्ध हुए। (६) चारों ओर से पुष्पित एक महान् पद्मसरोवर का स्वप्न। (७) सहस्त्रों तरंगों और कल्लोलों से सुशोभित एक महा – सागर को अपनी भुजाओं से तिरे। (८) अपने तेज से जाज्वल्यमान एक महान् सूर्य का स्वप्न। (९) एक महान् मानुषोत्तर पर्वत को नील वैडूर्य मणि के समान अपने अन्तर भाग में चारों ओर से आवेष्टित – परिवेष्टित देखा। (१०) महान् मन्दर पर्वत की मन्दर – चूलिका पर श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठे हुए अपने आपको देखकर जागृत हुए। श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम स्वप्न में जो एक महान् भयंकर और तेजस्वी रूप वाले ताड़वृक्षसम लम्बे पिशाच को पराजित किया हुआ देखा, उसका फल यह हुआ कि श्रमण भगवान महावीर ने मोहनीय कर्म को समूल नष्ट किया। दूसरे स्वप्न में श्वेत पंख वाले एक महान् पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि भगवान महावीर शुक्लध्यान प्राप्त करके विचरे। तीसरे स्वप्न में चित्र – विचित्र पंखों वाले एक पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह हुआ कि श्रमण भगवान महावीर ने स्वसमय – परसमय के विविध – विचारयुक्त द्वादशांग गणिपिटक का कथन किया, प्रज्ञप्त किया, प्ररूपित किया, दिखलाया, निदर्शित किया और उपदर्शित किया। यथा – आचार सूत्रकृत् यावत् दृष्टिवाद। चौथे स्वप्न में एक सर्वरत्नमय महान् मालायुगल को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान महावीर ने दो प्रकार का धर्म बतलाया। यथा – अगार – धर्म और अनगार – धर्म। पाँचवे स्वप्न में एक श्वेत महान् गोवर्ग देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान महावीर के (चार प्रकार का) संघ हुआ, यथा – श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्राविका। छठे स्वप्न में एक कुसुमित पद्मसरोवर को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान महावीर ने चार प्रकार के देवों की प्ररूपणा की, यथा – भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। सातवें स्वप्न में हजारों तरंगों और कल्लोलों से व्याप्त एक महासागर को अपनी भुजाओं से तिरा हुआ देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी अनादि – अनन्त यावत् संसार – कान्तार को पार कर गए। आठवें स्वप्न में तेज से जाज्वल्यमान एक महान् दीवाकर को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी को अनन्त, अनुत्तर, निरावरण, निर्व्याघात, समग्र और प्रतिपूर्ण श्रेष्ठ केवलज्ञान – केवलदर्शन उत्पन्न हुआ। नौंवे स्वप्न में एक महान मानुषोत्तर पर्वत को नील वैडूर्यमणि के समान अपनी आंतों से चारों ओर आवेष्टित – परिवेष्टित किया हुआ देखा, उसका फल यह कि देवलोक, असुरलोक और मनुष्यलोक में, श्रमण भगवान महावीर स्वामी केवलज्ञान – दर्शन के धारक हैं, इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर स्वामी उदार कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लोक को प्राप्त हुए। दसवें स्वप्न में एक महान् मेरुपर्वत की मन्दर – चूलिका पर अपने आपको सिंहासन पर बैठे हुए देखकर जागृत हुए, उसका फल यह कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने केवलज्ञानी होकर देवों, मनुष्यों और असुरों की परीषद् के मध्य में धर्मोपदेश दिया यावत् (धर्म) उपदर्शित किया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] samane bhagavam mahavire chhaumatthakaliyae amtimaraiyamsi ime dasa mahasuvine pasitta nam padibuddhe, tam jaha– 1. Egam cha nam maham ghoraruvadittadharam talapisayam suvine parajiyam pasitta nam padibuddhe. 2. Egam cha nam maham sukkilapakkhagam pumsakoilagam suvine pasitta nam padibuddhe. 3. Egam cha nam maham chittavichittapakkhagam pumsakoilagam suvine pasitta nam padibuddhe. 4. Egam cha nam maham damadugam savvarayanamayam suvine pasitta nam padibuddhe. 5. Egam cha nam maham seyam govaggam suvine pasitta nam padibuddhe. 6. Egam cha nam maham paumasaram savvao samamta kusumiyam suvine pasitta nam padibuddhe. 7. Egam cha nam maham sagaram ummiviyisahassakaliyam bhuyahim tinnam suvine pasitta nam padibuddhe. 8. Egam cha nam maham dinayaram teyasa jalamtam suvine pasitta nam padibuddhe. 9. Egam cha nam maham hariveruliyavannabhenam niyagenam amtenam manusuttaram pavvayam savvao samamta avedhiyam parivedhiyam suvine pasitta nam padibuddhe. 10. Egam cha nam maham mamdare pavvae mamdarachuliyae uvarim sihasanavaragayam appanam suvine pasitta nam padibuddhe. 1. Jannam samane bhagavam mahavire egam maham ghoraruvadittadharam talapisayam suvine parajiyam pasitta nam padibuddhe, tannam samanenam bhagavaya mahavirenam mohanijje mulao ugghaie. 2. Jannam samane bhagavam mahavire egam maham sukkilapakkhagam pumsakoilagam suvine pasitta nam padibuddhe, tannam samane bhagavam mahavire sukkajjhanovagae viharati. 3. Jannam samane bhagavam mahavire egam maham chittavichittapakkhagam pumsakoilagam suvine pasitta nam padibuddhe, tannam samane bhagavam mahavire vichittam sasamayaparasamaiyam duvalasamgam ganipidagam aghaveti pannaveti paruveti damseti nidamseti uvadamseti, tam jaha–ayaram, suyagadam java ditthivayam. 4. Jannam samane bhagavam mahavire egam maham damadugam savvarayanamayam suvine pasitta nam padibuddhe, tannam samane bhagavam mahavire duvihe dhamme pannaveti, tam jaha–agaradhammam va, anagaradhammam va. 5. Jannam samane bhagavam mahavire egam maham seyam govaggam suvine pasitta nam padibuddhe, tannam samanassa bhagavao mahavirassa chauvvannainne samanasamghe, tam jaha–samana, samanio, savaya, saviyao. 6. Jannam samane bhagavam mahavire egam maham paumasaram savvao samamta kusumiyam suvine pasitta nam padibuddhe, tannam samane bhagavam mahavire chauvvihe deve pannaveti, tam jaha–bhavanavasi, vanamamtare, jotisie, vemanie. 7. Jannam samane bhagavam mahavire egam maham sagaram ummiviyisahassakaliyam bhuyahim tinnam suvine pasitta nam padibuddhe, tannam samanenam bhagavaya mahavirenam anadie anavadagge dihamaddhe chauramte samsarakamtare tinne. 8. Jannam samane bhagavam mahavire egam maham dinayaram teyasa jalamtam suvine pasitta nam padibuddhe, tannam samanassa bhagavao mahavirassa anamte anuttare nivvaghae niravarane kasine padipunne kevala-varananadamsane samuppanne. 9. Jannam samane bhagavam mahavire egam maham hariveruliyavannabhenam niyagenam amtenam manusuttaram pavvayam savvao samamta avedhiyam parivedhiyam suvine pasitta nam padibuddhe, tannam samanassa bhagavao maha-virassa orala kitti-vanna-sadda-siloya sadevamanuyasure loe paribhamamti–iti khalu samane bhagavam mahavire, iti khalu samane bhagavam mahavire. 10. Jannam samane bhagavam mahavire mamdare pavvae mamdarachuliyae uvarim sihasanavaragayam appanam suvine pasitta nam padibuddhe, tannam samane bhagavam mahavire sadevamanuyasurae parisae majjhagae kevali dhammam aghaveti pannaveti paruveti damseti nidamseti uvadamseti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Shramana bhagavana mahavira apane chhadmastha kala ki antima ratri mem ina dasa mahasvapnom ko dekhakara jagrita hue. (1) eka mahana ghora aura tejasvi rupa vale taravriksha ke samana lambe pishacha ko svapna mem parajita kiya. (2) shveta pamkhom vale eka mahan pumskokila ka svapna. (3) chitra – vichitra pamkhom vale pumskokila ka svapna. (4) svapna mem sarva – ratnamaya eka mahan malayugala ko dekha. (5) svapna mem shvetavarna ke eka mahan govarga ko dekha, pratibaddha hue. (6) charom ora se pushpita eka mahan padmasarovara ka svapna. (7) sahastrom taramgom aura kallolom se sushobhita eka maha – sagara ko apani bhujaom se tire. (8) apane teja se jajvalyamana eka mahan surya ka svapna. (9) eka mahan manushottara parvata ko nila vaidurya mani ke samana apane antara bhaga mem charom ora se aveshtita – pariveshtita dekha. (10) mahan mandara parvata ki mandara – chulika para shreshtha simhasana para baithe hue apane apako dekhakara jagrita hue. Shramana bhagavana mahavira ne prathama svapna mem jo eka mahan bhayamkara aura tejasvi rupa vale taravrikshasama lambe pishacha ko parajita kiya hua dekha, usaka phala yaha hua ki shramana bhagavana mahavira ne mohaniya karma ko samula nashta kiya. Dusare svapna mem shveta pamkha vale eka mahan pumskokila ko dekhakara jagrita hue, usaka phala yaha hai ki bhagavana mahavira shukladhyana prapta karake vichare. Tisare svapna mem chitra – vichitra pamkhom vale eka pumskokila ko dekhakara jagrita hue, usaka phala yaha hua ki shramana bhagavana mahavira ne svasamaya – parasamaya ke vividha – vicharayukta dvadashamga ganipitaka ka kathana kiya, prajnyapta kiya, prarupita kiya, dikhalaya, nidarshita kiya aura upadarshita kiya. Yatha – achara sutrakrit yavat drishtivada. Chauthe svapna mem eka sarvaratnamaya mahan malayugala ko dekhakara jagrita hue, usaka phala yaha hai ki shramana bhagavana mahavira ne do prakara ka dharma batalaya. Yatha – agara – dharma aura anagara – dharma. Pamchave svapna mem eka shveta mahan govarga dekhakara jagrita hue, usaka phala yaha hai ki shramana bhagavana mahavira ke (chara prakara ka) samgha hua, yatha – shramana, shramani, shravaka aura shravika. Chhathe svapna mem eka kusumita padmasarovara ko dekhakara jagrita hue, usaka phala yaha hai ki shramana bhagavana mahavira ne chara prakara ke devom ki prarupana ki, yatha – bhavanavasi, vanavyantara, jyotishka aura vaimanika. Satavem svapna mem hajarom taramgom aura kallolom se vyapta eka mahasagara ko apani bhujaom se tira hua dekhakara jagrita hue, usaka phala yaha hai ki shramana bhagavana mahavira svami anadi – ananta yavat samsara – kantara ko para kara gae. Athavem svapna mem teja se jajvalyamana eka mahan divakara ko dekhakara jagrita hue, usaka phala yaha ki shramana bhagavana mahavira svami ko ananta, anuttara, niravarana, nirvyaghata, samagra aura pratipurna shreshtha kevalajnyana – kevaladarshana utpanna hua. Naumve svapna mem eka mahana manushottara parvata ko nila vaiduryamani ke samana apani amtom se charom ora aveshtita – pariveshtita kiya hua dekha, usaka phala yaha ki devaloka, asuraloka aura manushyaloka mem, shramana bhagavana mahavira svami kevalajnyana – darshana ke dharaka haim, isa prakara shramana bhagavana mahavira svami udara kirti, varna, shabda aura shloka ko prapta hue. Dasavem svapna mem eka mahan meruparvata ki mandara – chulika para apane apako simhasana para baithe hue dekhakara jagrita hue, usaka phala yaha ki shramana bhagavana mahavira svami ne kevalajnyani hokara devom, manushyom aura asurom ki parishad ke madhya mem dharmopadesha diya yavat (dharma) upadarshita kiya. |