Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004176
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-१६

Translated Chapter :

शतक-१६

Section : उद्देशक-५ गंगदत्त Translated Section : उद्देशक-५ गंगदत्त
Sutra Number : 676 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–गंगदत्तस्स णं भंते! देवस्स सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवानुभावे कहिं गते? कहिं अनुप्पविट्ठे? गोयमा! सरीरं गए, सरीरं अनुप्पविट्ठे, कूडागारसालादिट्ठंतो जाव सरीरं अनुप्पविट्ठे। अहो णं भंते! गंगदत्ते देवे महिड्ढिए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे। गंगदत्तेणं भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी सा दिव्वा देवज्जुती से दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? किण्णा पत्ते? किण्णा अभिसमन्नागए? पुव्वभवे के आसी? किं नामए वा? किं वा गोत्तेणं? कयरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहानीए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आगरंसि वा आसमंसि वा संबाहंसि वा सन्निवेसंसि वा? किं वा दच्चा? किं वा भोच्चा? किं वा किच्चा? किं वा समायरित्ता? कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म जण्णं गंगदत्तेणं देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी सा दिव्वा देवज्जुती से दिव्वे देवानुभागे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए? गोयमादी! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। सहसंबवने उज्जाणे–वण्णओ। तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे गंगदत्ते नाम गाहावती परिवसति–अड्ढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए। तेणं कालेणं तेणं समएणं मुनिसुव्वए अरहा आदिगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी आगासगएणं चक्केणं, आगासगएणं छत्तेणं, आगासियाहिं चामराहिं, आगास-फालियामएणं सपायवीढेणं सीहासणेणं, धम्मज्झएणं पुरओ पकड्ढिज्जमाणेणं-पकड्ढिज्जमाणेणं सीसगणसंपरिवुडे पुव्वा-णुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव हत्थिणाउरे नगरे जेणेव सहसंबवने उज्जाणे जाव विहरति। परिसा निग्गया जाव पज्जुवासति। तए णं से गंगदत्ते गाहावती इमोसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठतुट्ठे ण्हाए कयबलिकम्मे जाव अप्पमहग्घाभरणालंकि-यसरीरे साओ गिहाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता पायविहारचारेणं हत्थिणापुरं नगरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छति, निग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवने उज्जाणे जेणेव मुणिसुव्वए अरहा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मुणिसुव्वयं अरहं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासति। तए णं मुणिसुव्वए अरहा गंगदत्तस्स गाहावतिस्स तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्मं परिकहेइ जाव परिसा पडिगया। तए णं से गंगदत्ते गाहावती मुनिसुव्वयस्स अरहओ अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे उट्ठाए उट्ठेति, उट्ठेत्ता मुणि सुव्वयं अरहं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वदह, जं नवरं देवानुप्पिया! जेट्ठपुत्तं कुडुंबे ठावेमि, तए णं अहं देवानुप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयामि। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं। तए णं से गंगदत्ते गाहावई मुनिसुव्वएणं अरहया एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे मुणिसुव्वयं अरहं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता मुनिसुव्वयस्स अरहओ अंतियाओ सहसंबवणाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता, जेणेव हत्थिणापुरे नगरे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता विउलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमंतेति, आमंतेत्ता तओ पच्छा ण्हाए जहा पूरणे जाव जेट्ठपुत्तं कुडुंबे ठावेति। तं मित्त-नाइ-नियग -सयण-संबंधि-परियणं जेट्ठपुत्तं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता पुरिससहस्स-वाहणिं सीयं द्रुहति, द्रुहित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं जेट्ठपुत्तेण य समणुगम्म-माणमग्गे सव्विड्ढीए जाव दुंदुहि-निग्घोसनादितरवेणं हत्थिणागपुरं मज्झंमज्झेणं निग्ग-च्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवने उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता छत्तादिते तित्थगरातिसए पासति। एवं जहा उद्दायणे जाव सयमेव आभरणे ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेति, करेत्ता जेणेव मुणिसुव्वए अरहा एवं जहेव उद्दायणे तहेव पव्वइए, तहेव एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ जाव मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेइ, ज्झूसेत्ता सट्ठिं भत्ताइं अनसनाए छेदेति, छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाने उववायसभाए देवसयणिज्जंसि जाव गंगदत्तदेवत्ताए उववन्ने। तए णं से गंगदत्ते देवे अहुणोववन्नमेत्तए समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तभावं गच्छति, [तं जहा–आहारपज्ज-त्तीए जाव भासा-मणपज्जत्तीए] एवं खलु गोयमा! गंगदत्तेणं देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी सा दिव्वा देवज्जुती से दिव्वे देवाणुभागे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए। गंगदत्तस्स णं भंते! देवस्स केवतियं कालं ठिति पन्नत्ता? गोयमा! सत्तरस सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। गंगदत्ते णं भंते! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
Sutra Meaning : भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर से यावत्‌ पूछा – ‘भगवन्‌ ! गंगदत्त देव की वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति यावत्‌ कहाँ गई, कहाँ प्रविष्ट हो गई ?’ गौतम ! यावत्‌ उस गंगदत्त देव के शरीर में गई और शरीर में ही अनुप्रविष्ट हो गई। यहाँ कूटाकारशाला का दृष्टान्त, यावत्‌ वह शरीर में अनुप्रविष्ट हुई, (तक समझना चाहिए।) (गौतम – ) अहो ! भगवन्‌ ! गंगदत्त देव महर्द्धिक यावत्‌ महासुखसम्पन्न है ! भगवन्‌ ! गंगदत्त देव को वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति कैसे उपलब्ध हुई ? यावत्‌ जिससे गंगदत्त देव ने वह दिव्य देव – ऋद्धि उपलब्ध, प्राप्त और यावत्‌ अभिसमन्वागत की ? श्रमण भगवान महावीर ने कहा – ‘गौतम ! बात ऐसी है कि उस काल उस समय में इसी जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में हस्तिनापुर नामका नगर था। वहाँ सहस्रा – म्रवन नामक उद्यान था। उस हस्तिनापुर नगर में गंगदत्त गाथापति रहता था। वह आढ्य यावत्‌ अपराभूत था। उस काल उस समय में धर्म कि आदि करने वाले यावत्‌ सर्वज्ञ सर्वदर्शी आकाशगत चक्रसहित यावत्‌ देवों द्वारा खींचे जाते हुए धर्मध्वजयुक्त, शिष्यगण से संपरिवृत्त होकर अनुक्रम से विचरते हुए और ग्रामानुग्राम जाते हुए, यावत्‌ मुनिसुव्रत अर्हन्त यावत्‌ सहस्राम्रवन उद्यान में पधारे, यावत्‌ यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके विचरने लगे। परीषद्‌ वन्दना करने के लिए आई यावत्‌ पर्युपासना करने लगी। जब गंगदत्त गाथापति ने भगवान मुनिसुव्रत स्वामी के पदार्पण की बात सूनी तो वह अतीव हर्षित और सन्तुष्ट हुआ। उसने स्नान और बलिकर्म किया, यावत्‌ शरीर को अलंकृत करके वह अपने घर से नीकला और पैदल चलकर हस्तिनापुर नगर के मध्य में से होता हुआ सहस्राम्रवन उद्यान में अर्हन्त भगवान मुनिसुव्रत स्वामी विराजमान थे, वहाँ पहुँचा। तीर्थंकर मुनिसुव्रत प्रभु को तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा करके यावत्‌ तीन प्रकार की पर्युपासना विधि से पर्युपासना करने लगा। अर्हन्त मुनिसुव्रत स्वामी ने गंगदत्त गाथापति को और महती परीषद्‌को धर्मकथा कही। यावत्‌ परीषद्‌ लौट गई। तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी से धर्म सूनकर और अवधारण करके गंगदत्त गाथापति हृष्ट – तुष्ट होकर खड़ा हुआ और भगवान को वन्दन – नमस्कार करके इस प्रकार बोला – ‘भगवन्‌ ! मैं निर्ग्रन्थ – प्रवचन पर श्रद्धा करता हूँ यावत्‌ आपने जो कुछ कहा, उस पर श्रद्धा करता हूँ। देवानुप्रिय ! मैं अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंप दूँगा, फिर आप देवानुप्रिय के समीप मुण्डित यावत्‌ प्रव्रजित होना चाहता हूँ।’ हे देवानुप्रिय ! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो, वैसा करो; परन्तु धर्मकार्य में विलम्ब मत करो। अर्हत्‌ मुनिसुव्रत स्वामी द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर वह गंगदत्त गाथापति हृष्ट – तुष्ट हुआ सहस्राम्रवन उद्यान से नीकला, और हस्तिनापुर नगर में जहाँ अपना घर था, वहाँ आया। घर आकर उसने विपुल अशन – पान यावत्‌ तैयार करवाया। फिर अपने मित्र, ज्ञातिजन, स्वजन आदि को आमंत्रित किया। फिर पूरण सेठ के समान अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब ( – कार्य) में स्थापित किया। तत्पश्चात्‌ अपने मित्र, ज्ञातिजन, स्वजन आदि तथा ज्येष्ठ पुत्र से अनुमति लेकर हजार पुरुषों द्वारा उठाने योग्य शिबिका पर चढ़ा और अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन यावत्‌ परिवार एवं ज्येष्ठ पुत्र द्वारा अनुगमन किया जाता हुआ, सर्वऋद्धि के साथ यावत्‌ वाद्यों के आघोषपूर्वक हस्तिनापुर नगर के मध्य में होकर सहस्राम्रवन उद्यान के निकट आया छत्र आदि तीर्थंकर भगवान के अतिशय देखकर यावत्‌ उदायन राजा के समान यावत्‌ स्वयमेव आभूषण उतारे; फिर स्वयमेव पंचमुष्टिक लोच किया। इसके पश्चात्‌ तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी के पास जाकर उदायन राजा के समान प्रव्रज्या ग्रहण की, यावत्‌ उसी के समान (गंगदत्त अनगार ने) ग्यारह अंगों का अध्ययन किया यावत्‌ एक मास की संलेखना से साठ – भक्त अनशन का छेदन किया और फिर आलोचना – प्रतिक्रमण करके समाधि को प्राप्त होकर काल के अवसर में काल करके महाशुक्रकल्प में महासामान्य नामक विमान की उपपात – सभा की देवशय्या में यावत्‌ गंगदत्त देव के रूप में उत्पन्न हुआ। तत्पश्चात्‌ तत्काल उत्पन्न वह गंगदत्त देव पंचविध पर्याप्तियों से पर्याप्त बना। यथा – आहारपर्याप्ति यावत्‌ भाषा – मनःपर्याप्ति। इस प्रकार हे गौतम ! गंगदत्त देव ने वह दिव्य देव – ऋद्धि यावत्‌ पूर्वोक्त प्रकार से उपलब्ध, प्राप्त यावत्‌ अभिमुख की है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] bhamteti! Bhagavam goyame samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–gamgadattassa nam bhamte! Devassa sa divva deviddhi divva devajjuti divve devanubhave kahim gate? Kahim anuppavitthe? Goyama! Sariram gae, sariram anuppavitthe, kudagarasaladitthamto java sariram anuppavitthe. Aho nam bhamte! Gamgadatte deve mahiddhie mahajjuie mahabbale mahayase mahesakkhe. Gamgadattenam bhamte! Devenam sa divva deviddhi sa divva devajjuti se divve devanubhage kinna laddhe? Kinna patte? Kinna abhisamannagae? Puvvabhave ke asi? Kim namae va? Kim va gottenam? Kayaramsi va gamamsi va nagaramsi va nigamamsi va rayahanie va khedamsi va kabbadamsi va madambamsi va pattanamsi va donamuhamsi va agaramsi va asamamsi va sambahamsi va sannivesamsi va? Kim va dachcha? Kim va bhochcha? Kim va kichcha? Kim va samayaritta? Kassa va taharuvassa samanassa va mahanassa va amtie egamavi ariyam dhammiyam suvayanam sochcha nisamma jannam gamgadattenam devenam sa divva deviddhi sa divva devajjuti se divve devanubhage laddhe patte abhisamannagae? Goyamadi! Samane bhagavam mahavire bhagavam goyamam evam vayasi–evam khalu goyama! Tenam kalenam tenam samaenam iheva jambuddive dive bharahe vase hatthinapure namam nagare hottha–vannao. Sahasambavane ujjane–vannao. Tattha nam hatthinapure nagare gamgadatte nama gahavati parivasati–addhe java bahujanassa aparibhue. Tenam kalenam tenam samaenam munisuvvae araha adigare java savvannu savvadarisi agasagaenam chakkenam, agasagaenam chhattenam, agasiyahim chamarahim, agasa-phaliyamaenam sapayavidhenam sihasanenam, dhammajjhaenam purao pakaddhijjamanenam-pakaddhijjamanenam sisaganasamparivude puvva-nupuvvim charamane gamanugamam duijjamane suhamsuhenam viharamane jeneva hatthinaure nagare jeneva sahasambavane ujjane java viharati. Parisa niggaya java pajjuvasati. Tae nam se gamgadatte gahavati imose kahae laddhatthe samane hatthatutthe nhae kayabalikamme java appamahagghabharanalamki-yasarire sao gihao padinikkhamati, padinikkhamitta payaviharacharenam hatthinapuram nagaram majjhammajjhenam niggachchhati, niggachchhitta jeneva sahasambavane ujjane jeneva munisuvvae araha teneva uvagachchhai, uvagachchhitta munisuvvayam araham tikkhutto ayahina-payahinam karei java tivihae pajjuvasanae pajjuvasati. Tae nam munisuvvae araha gamgadattassa gahavatissa tise ya mahatimahaliyae parisae dhammam parikahei java parisa padigaya. Tae nam se gamgadatte gahavati munisuvvayassa arahao amtiyam dhammam sochcha nisamma hatthatutthe utthae uttheti, utthetta muni suvvayam araham vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–saddahami nam bhamte! Niggamtham pavayanam java se jaheyam tubbhe vadaha, jam navaram devanuppiya! Jetthaputtam kudumbe thavemi, tae nam aham devanuppiyanam amtiyam mumde bhavitta agarao anagariyam pavvayami. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham. Tae nam se gamgadatte gahavai munisuvvaenam arahaya evam vutte samane hatthatutthe munisuvvayam araham vamdai namamsai, vamditta namamsitta munisuvvayassa arahao amtiyao sahasambavanao ujjanao padinikkhamati, padinikkhamitta, jeneva hatthinapure nagare jeneva sae gihe teneva uvagachchhati, uvagachchhitta viulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadaveti, uvakkhadavetta mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam amamteti, amamtetta tao pachchha nhae jaha purane java jetthaputtam kudumbe thaveti. Tam mitta-nai-niyaga -sayana-sambamdhi-pariyanam jetthaputtam cha apuchchhai, apuchchhitta purisasahassa-vahanim siyam druhati, druhitta mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanenam jetthaputtena ya samanugamma-manamagge savviddhie java dumduhi-nigghosanaditaravenam hatthinagapuram majjhammajjhenam nigga-chchhai, niggachchhitta jeneva sahasambavane ujjane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta chhattadite titthagaratisae pasati. Evam jaha uddayane java sayameva abharane omuyai, omuitta sayameva pamchamutthiyam loyam kareti, karetta jeneva munisuvvae araha evam jaheva uddayane taheva pavvaie, taheva ekkarasa amgaim ahijjai java masiyae samlehanae attanam jjhusei, jjhusetta satthim bhattaim anasanae chhedeti, chhedetta aloiya-padikkamte samahipatte kalamase kalam kichcha mahasukke kappe mahasamane vimane uvavayasabhae devasayanijjamsi java gamgadattadevattae uvavanne. Tae nam se gamgadatte deve ahunovavannamettae samane pamchavihae pajjattie pajjattabhavam gachchhati, [tam jaha–aharapajja-ttie java bhasa-manapajjattie] evam khalu goyama! Gamgadattenam devenam sa divva deviddhi sa divva devajjuti se divve devanubhage laddhe patte abhisamannagae. Gamgadattassa nam bhamte! Devassa kevatiyam kalam thiti pannatta? Goyama! Sattarasa sagarovamaim thiti pannatta. Gamgadatte nam bhamte! Deve tao devalogao aukkhaenam bhavakkhaenam thiikkhaenam anamtaram chayam chaitta kahim gachchhihiti? Kahim uvavajjihiti? Goyama! Mahavidehe vase sijjhihiti java savvadukkhanam amtam kahiti. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavana gautama ne shramana bhagavana mahavira se yavat puchha – ‘bhagavan ! Gamgadatta deva ki vaha divya devarddhi, divya devadyuti yavat kaham gai, kaham pravishta ho gai\?’ gautama ! Yavat usa gamgadatta deva ke sharira mem gai aura sharira mem hi anupravishta ho gai. Yaham kutakarashala ka drishtanta, yavat vaha sharira mem anupravishta hui, (taka samajhana chahie.) (gautama – ) aho ! Bhagavan ! Gamgadatta deva maharddhika yavat mahasukhasampanna hai ! Bhagavan ! Gamgadatta deva ko vaha divya devarddhi, divya devadyuti kaise upalabdha hui\? Yavat jisase gamgadatta deva ne vaha divya deva – riddhi upalabdha, prapta aura yavat abhisamanvagata ki\? Shramana bhagavana mahavira ne kaha – ‘gautama ! Bata aisi hai ki usa kala usa samaya mem isi jambudvipa mem, bharatavarsha mem hastinapura namaka nagara tha. Vaham sahasra – mravana namaka udyana tha. Usa hastinapura nagara mem gamgadatta gathapati rahata tha. Vaha adhya yavat aparabhuta tha. Usa kala usa samaya mem dharma ki adi karane vale yavat sarvajnya sarvadarshi akashagata chakrasahita yavat devom dvara khimche jate hue dharmadhvajayukta, shishyagana se samparivritta hokara anukrama se vicharate hue aura gramanugrama jate hue, yavat munisuvrata arhanta yavat sahasramravana udyana mem padhare, yavat yathayogya avagraha grahana karake vicharane lage. Parishad vandana karane ke lie ai yavat paryupasana karane lagi. Jaba gamgadatta gathapati ne bhagavana munisuvrata svami ke padarpana ki bata suni to vaha ativa harshita aura santushta hua. Usane snana aura balikarma kiya, yavat sharira ko alamkrita karake vaha apane ghara se nikala aura paidala chalakara hastinapura nagara ke madhya mem se hota hua sahasramravana udyana mem arhanta bhagavana munisuvrata svami virajamana the, vaham pahumcha. Tirthamkara munisuvrata prabhu ko tina bara dahini ora se pradakshina karake yavat tina prakara ki paryupasana vidhi se paryupasana karane laga. Arhanta munisuvrata svami ne gamgadatta gathapati ko aura mahati parishadko dharmakatha kahi. Yavat parishad lauta gai. Tirthamkara shri munisuvrata svami se dharma sunakara aura avadharana karake gamgadatta gathapati hrishta – tushta hokara khara hua aura bhagavana ko vandana – namaskara karake isa prakara bola – ‘bhagavan ! Maim nirgrantha – pravachana para shraddha karata hum yavat apane jo kuchha kaha, usa para shraddha karata hum. Devanupriya ! Maim apane jyeshtha putra ko kutumba ka bhara saumpa dumga, phira apa devanupriya ke samipa mundita yavat pravrajita hona chahata hum.’ he devanupriya ! Jisa prakara tumhem sukha ho, vaisa karo; parantu dharmakarya mem vilamba mata karo. Arhat munisuvrata svami dvara isa prakara kahe jane para vaha gamgadatta gathapati hrishta – tushta hua sahasramravana udyana se nikala, aura hastinapura nagara mem jaham apana ghara tha, vaham aya. Ghara akara usane vipula ashana – pana yavat taiyara karavaya. Phira apane mitra, jnyatijana, svajana adi ko amamtrita kiya. Phira purana setha ke samana apane jyeshtha putra ko kutumba ( – karya) mem sthapita kiya. Tatpashchat apane mitra, jnyatijana, svajana adi tatha jyeshtha putra se anumati lekara hajara purushom dvara uthane yogya shibika para charha aura apane mitra, jnyati, svajana yavat parivara evam jyeshtha putra dvara anugamana kiya jata hua, sarvariddhi ke satha yavat vadyom ke aghoshapurvaka hastinapura nagara ke madhya mem hokara sahasramravana udyana ke nikata aya chhatra adi tirthamkara bhagavana ke atishaya dekhakara yavat udayana raja ke samana yavat svayameva abhushana utare; phira svayameva pamchamushtika locha kiya. Isake pashchat tirthamkara munisuvrata svami ke pasa jakara udayana raja ke samana pravrajya grahana ki, yavat usi ke samana (gamgadatta anagara ne) gyaraha amgom ka adhyayana kiya yavat eka masa ki samlekhana se satha – bhakta anashana ka chhedana kiya aura phira alochana – pratikramana karake samadhi ko prapta hokara kala ke avasara mem kala karake mahashukrakalpa mem mahasamanya namaka vimana ki upapata – sabha ki devashayya mem yavat gamgadatta deva ke rupa mem utpanna hua. Tatpashchat tatkala utpanna vaha gamgadatta deva pamchavidha paryaptiyom se paryapta bana. Yatha – aharaparyapti yavat bhasha – manahparyapti. Isa prakara he gautama ! Gamgadatta deva ne vaha divya deva – riddhi yavat purvokta prakara se upalabdha, prapta yavat abhimukha ki hai.