Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004172 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१६ |
Translated Chapter : |
शतक-१६ |
Section : | उद्देशक-४ जावंतिय | Translated Section : | उद्देशक-४ जावंतिय |
Sutra Number : | 672 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी– जावतियं णं भंते! अन्नगिलायए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरइया वासेण वा वासेहिं वा वाससएण वा खवयंति? नो इणट्ठे समट्ठे। जावतियं णं भंते! चउत्थभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरइया वाससएण वा वाससएहिं वा वाससहस्सेण वा खवयंति? नो इणट्ठे समट्ठे। जावतियं णं भंते! छट्ठभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरइया वाससहस्सेण वा वाससहस्सेहिं वा वाससयसहस्सेण वा खवयंति? नो इणट्ठे समट्ठे। जावतिय णं भंते! अट्ठमभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरइया वाससयसहस्सेण वा वाससयसहस्सेहिं वा वासकोडीए वा खवयंति? नो इणट्ठे समट्ठे। जावतिय णं भंते! दसमभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरइया वासकोडीए वा वासकोडीहिं वा वासकोडाकोडीए वा खवयंति? नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जावतियं अन्नगिलायए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरइया वासेण वा वासेहिं वा वाससएण वा नो खवयंति, जावतियं चउत्थभत्तिए–एवं तं चेव पुव्वभणियं उच्चारेयव्वं जाव वासकोडाकोडीए वा नो खवयंति? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे जुण्णे जराजज्जरियदेहे सिढिलतयावलितरंग- संपिणद्धगत्ते पविरल-परिसडिय-दंतसेढी उण्हाभिहए तण्हाभिहए आउरे ज्झुसिए पिवासिए दुब्बले किलंते एगं महं कोसंबगंडियं सुक्कं जडिलं गंठिल्लं चिक्कणं वाइद्धं अपत्तियं मुंडेण परसुणा अक्कमेज्जा, तए णं से पुरिसे महंताइं-महंताइं सद्दाइं करेइ, नो महंताइं-महंताइं दलाइं अवद्दालेइ, एवामेव गोयमा! नेरइयाणं पावाइं कम्माइं गाढीकयाइं, चिक्कणीकयाइं, सिलिट्ठीकयाइं, खिलीभूताइं भवंति। संपगाढं पि य णं ते वेदनं वेदेमाणा नो महानिज्जरा नो महापज्जवसाणा भवंति। से जहानामए केइ पुरिसे अहिकरणिं आउडेमाणे महया-महया सद्देणं, महया-महया घोसेनं, महया-महया परंपराघाएणं नो संचाएइ, तीसे अहिगरणीए केइ अहाबायरे पोग्गले परिसाडित्तए, एवामेव गोयमा! नेरइयाणं पावाइं कम्माइं गाढीकयाइं, चिक्कणीकयाइं, सिलट्ठीकयाइं खलीभूताइं भवंति। संपगाढं पि य णं ते वेदनं वेदेमाणा नो महानिज्जरा नो महापज्जवसाणा भवंति। से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे बलवं जाव मेहावी निउणसिप्पोवगए एगं महं सामलि-गंडियं उल्लं अजडिलं अगंठिल्लं अचिक्कणं अवाबइद्धं सपत्तियं तिक्खेण परसुणा अक्कमेज्जा, तए णं से पुरिसे नो महंताइं-महंताइं सद्दाइं करेति, महंताइ-महंताइं दलाइं अवद्दालेति, एवामेव गोयमा! समणाणं निग्गंथाणं अहाबादराइं कम्माइं सिढिलीकयाइं, निट्ठियाइं कयाइं, विप्परिणामियाइं खिप्पामेव परिविद्धत्थाइं भवंति जावतियं तावतियं पि णं ते वेदनं वेदेमाणा महानिज्जरा महापज्जवसाणा भवंति। से जहा वा केइ पुरिसे सुक्कतणहत्थगं जायतेयंसि पक्खिवेज्जा–से नूनं गोयमा! से सुक्के तणहत्थगए जायतेयंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव मसमसाविज्जति? हंता मसमसाविज्जति। एवामेव गोयमा! समणाणं निग्गंथाणं अहाबायराइं कम्माइं, सिढिलीकयाइं, निट्ठियाइं कयाइं, विप्परिणामियाइं खिप्पामेव विद्धत्थाइं भवंति। जावतियं तावतियं पि णं ते वेदनं वेदेमाणा महानिज्जरा महापज्जवसाणा भवंति। से जहानामए केइ पुरिसे तत्तंसि अयकवल्लंसि उदगबिंदुं पक्खिवेज्जा, से नूनं गोयमा! से उदगबिंदु तत्तंसि अयकवल्लंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव विद्धंसमागच्छइ? हंता विद्धंसमागच्छइ। एवामेव गोयमा! समणाणं निग्गंथाणं अहाबायराइं कम्माइं सिढिलीकयाइं, निट्ठियाइं कयाइं, विप्परिणामियाइं खिप्पामेव विद्धत्थाइं भवंति। जावतियं तावतियं पि णं ते वेदनं वेदेमाणा महानिज्जरा महापज्जवसाणा भवंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जावतियं अन्नगिलायए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति तं चेव जाव वासकोडाकोडीए वा नो खवयंति। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | राजगृह नगर में यावत् पूछा – भगवन् ! अन्नग्लायक श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव एक वर्ष में, अनेक वर्षों में अथवा सौ वर्षों में क्षय कर देते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। भगवन् ! चतुर्थ भक्त करने वाले श्रमण – निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों से नैरयिक जीव सौ वर्षों में, अनेक सौ वर्षों में या एक हजार वर्षों में खपाते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। भगवन् ! षष्ठभक्त करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव एक हजार वर्षों में, अनेक हजार वर्षों में, अथवा एक लाख वर्षों में क्षय कर पाता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। भगवन् ! अष्टमभक्त करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव एक लाख वर्षों में, अनेक लाख वर्षों में या एक करोड़ वर्षों में क्षय कर पाता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। भगवन् ! दशमभक्त करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव, एक करोड़ वर्षों में, अनेक करोड़ वर्षों में या कोटाकोटी वर्षों में क्षय कर पाता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! जैसे कोई वृद्ध पुरुष है। वृद्धावस्था के कारण उसका शरीर जर्जरित हो गया है। चमड़ी शिथिल होने से सिकुड़कर सलवटों से व्याप्त है। दाँतों की पंक्ति में बहुत – से दाँत गिर जाने से थोड़े – से दाँत रह गए हैं, जो गर्मी से व्याकुल है, प्यास से पीड़ित है, जो आतुर, भूखा, प्यासा, दुर्बल और क्लान्त है। वह वृद्ध पुरुष एक बड़ी कोशम्बवृक्ष की सूखी, टेढ़ी, मेढ़ी, गाँठ – गठीली, चिकनी, बांकी, निराधार रही हुई गण्डिका पर एक कुण्ठित कुल्हाड़े से जोर – जोर से शब्द करता हुआ प्रहार करे, तो भी वह उस लकड़ी के बड़े – बड़े टुकड़े नहीं कर सकता, इसी प्रकार हे गौतम ! नैरयिक जीवों ने अपने पापकर्म गाढ़ किए हैं, चिकने किए हैं, इत्यादि छठे शतक के अनुसार यावत् – वे महापर्यवसान वाले नहीं होते। जिस प्रकार कोई पुरुष एहरन पर घन की चोट मारता हुआ, जोर – जोर से शब्द करता हुआ, (एहरन के स्थूल पुद्गलों को तोड़ने में समर्थ नहीं होता, इसी प्रकार नैरयिक जीव भी गाढ़ कर्म वाले होते हैं), इसलिए वे यावत् महापर्यवसान वाले नहीं होते। जिस प्रकार कोई पुरुष तरुण है, बलवान है, यावत् मेधावी, निपुण और शिल्पकार है, वह एक बड़े शाल्मली वृक्ष की गीली, अजटिल, अगंठित, चिकनाई से रहित, सीधी और आधार पर टिकी गण्डिका पर तीक्ष्ण कुल्हाड़े से प्रहार करे तो जोर – जोर से शब्द किये बिना ही आसानी से उसके बड़े – बड़े टुकड़े कर देता है। इसी प्रकार हे गौतम ! जिन श्रमण निर्ग्रन्थों ने अपने कर्म यथा – स्थूल, शिथिल यावत् निष्ठित किये हैं, यावत् वे कर्म शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। और वे श्रमण निर्ग्रन्थ यावत् महापर्यवसान वाले होते हैं। हे गौतम! जैसे कोई पुरुष सूखे हुए घास के पूले को यावत् अग्नि में डाले तो वह शीघ्र ही जल जाता है, इसी प्रकार श्रमण निर्ग्रन्थों के यथाबादर कर्म भी शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। जैसे कोई पुरुष, पानी की बूँद को तपाये हुए लोहे के कड़ाह पर डाले तो वह शीघ्र ही नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार श्रमण निर्ग्रन्थों के भी यथाबादर कर्म शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। छठे शतक के अनुसार यावत् वे महापर्यवसान वाले होते हैं। इसीलिए हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि अन्नग्लायक श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों का क्षय करता है, इत्यादि, यावत् उतने कर्मों का नैरयिक जीव कोटाकोटी वर्षों में भी क्षय नहीं कर पाते। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] rayagihe java evam vayasi– Javatiyam nam bhamte! Annagilayae samane niggamthe kammam nijjareti evatiyam kammam naraesu neraiya vasena va vasehim va vasasaena va khavayamti? No inatthe samatthe. Javatiyam nam bhamte! Chautthabhattie samane niggamthe kammam nijjareti evatiyam kammam naraesu neraiya vasasaena va vasasaehim va vasasahassena va khavayamti? No inatthe samatthe. Javatiyam nam bhamte! Chhatthabhattie samane niggamthe kammam nijjareti evatiyam kammam naraesu neraiya vasasahassena va vasasahassehim va vasasayasahassena va khavayamti? No inatthe samatthe. Javatiya nam bhamte! Atthamabhattie samane niggamthe kammam nijjareti evatiyam kammam naraesu neraiya vasasayasahassena va vasasayasahassehim va vasakodie va khavayamti? No inatthe samatthe. Javatiya nam bhamte! Dasamabhattie samane niggamthe kammam nijjareti evatiyam kammam naraesu neraiya vasakodie va vasakodihim va vasakodakodie va khavayamti? No inatthe samatthe. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–javatiyam annagilayae samane niggamthe kammam nijjareti evatiyam kammam naraesu neraiya vasena va vasehim va vasasaena va no khavayamti, javatiyam chautthabhattie–evam tam cheva puvvabhaniyam uchchareyavvam java vasakodakodie va no khavayamti? Goyama! Se jahanamae kei purise junne jarajajjariyadehe sidhilatayavalitaramga- sampinaddhagatte pavirala-parisadiya-damtasedhi unhabhihae tanhabhihae aure jjhusie pivasie dubbale kilamte egam maham kosambagamdiyam sukkam jadilam gamthillam chikkanam vaiddham apattiyam mumdena parasuna akkamejja, tae nam se purise mahamtaim-mahamtaim saddaim karei, no mahamtaim-mahamtaim dalaim avaddalei, evameva goyama! Neraiyanam pavaim kammaim gadhikayaim, chikkanikayaim, silitthikayaim, khilibhutaim bhavamti. Sampagadham pi ya nam te vedanam vedemana no mahanijjara no mahapajjavasana bhavamti. Se jahanamae kei purise ahikaranim audemane mahaya-mahaya saddenam, mahaya-mahaya ghosenam, mahaya-mahaya paramparaghaenam no samchaei, tise ahigaranie kei ahabayare poggale parisadittae, evameva goyama! Neraiyanam pavaim kammaim gadhikayaim, chikkanikayaim, silatthikayaim khalibhutaim bhavamti. Sampagadham pi ya nam te vedanam vedemana no mahanijjara no mahapajjavasana bhavamti. Se jahanamae kei purise tarune balavam java mehavi niunasippovagae egam maham samali-gamdiyam ullam ajadilam agamthillam achikkanam avabaiddham sapattiyam tikkhena parasuna akkamejja, tae nam se purise no mahamtaim-mahamtaim saddaim kareti, mahamtai-mahamtaim dalaim avaddaleti, evameva goyama! Samananam niggamthanam ahabadaraim kammaim sidhilikayaim, nitthiyaim kayaim, vipparinamiyaim khippameva parividdhatthaim bhavamti javatiyam tavatiyam pi nam te vedanam vedemana mahanijjara mahapajjavasana bhavamti. Se jaha va kei purise sukkatanahatthagam jayateyamsi pakkhivejja–se nunam goyama! Se sukke tanahatthagae jayateyamsi pakkhitte samane khippameva masamasavijjati? Hamta masamasavijjati. Evameva goyama! Samananam niggamthanam ahabayaraim kammaim, sidhilikayaim, nitthiyaim kayaim, vipparinamiyaim khippameva viddhatthaim bhavamti. Javatiyam tavatiyam pi nam te vedanam vedemana mahanijjara mahapajjavasana bhavamti. Se jahanamae kei purise tattamsi ayakavallamsi udagabimdum pakkhivejja, se nunam goyama! Se udagabimdu tattamsi ayakavallamsi pakkhitte samane khippameva viddhamsamagachchhai? Hamta viddhamsamagachchhai. Evameva goyama! Samananam niggamthanam ahabayaraim kammaim sidhilikayaim, nitthiyaim kayaim, vipparinamiyaim khippameva viddhatthaim bhavamti. Javatiyam tavatiyam pi nam te vedanam vedemana mahanijjara mahapajjavasana bhavamti. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–javatiyam annagilayae samane niggamthe kammam nijjareti tam cheva java vasakodakodie va no khavayamti. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti java viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Rajagriha nagara mem yavat puchha – bhagavan ! Annaglayaka shramana nirgrantha jitane karmom ki nirjara karata hai, kya utane karma narakom mem nairayika jiva eka varsha mem, aneka varshom mem athava sau varshom mem kshaya kara dete haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim. Bhagavan ! Chaturtha bhakta karane vale shramana – nirgrantha jitane karmom ki nirjara karata hai, kya utane karma narakom se nairayika jiva sau varshom mem, aneka sau varshom mem ya eka hajara varshom mem khapate haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim. Bhagavan ! Shashthabhakta karane vala shramana nirgrantha jitane karmom ki nirjara karata hai, kya utane karma narakom mem nairayika jiva eka hajara varshom mem, aneka hajara varshom mem, athava eka lakha varshom mem kshaya kara pata hai\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim. Bhagavan ! Ashtamabhakta karane vala shramana nirgrantha jitane karmom ki nirjara karata hai, kya utane karma narakom mem nairayika jiva eka lakha varshom mem, aneka lakha varshom mem ya eka karora varshom mem kshaya kara pata hai\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim. Bhagavan ! Dashamabhakta karane vala shramana nirgrantha jitane karmom ki nirjara karata hai, kya utane karma narakom mem nairayika jiva, eka karora varshom mem, aneka karora varshom mem ya kotakoti varshom mem kshaya kara pata hai\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim. Bhagavan ! Aisa kisa karana se kaha jata hai\? Gautama ! Jaise koi vriddha purusha hai. Vriddhavastha ke karana usaka sharira jarjarita ho gaya hai. Chamari shithila hone se sikurakara salavatom se vyapta hai. Damtom ki pamkti mem bahuta – se damta gira jane se thore – se damta raha gae haim, jo garmi se vyakula hai, pyasa se pirita hai, jo atura, bhukha, pyasa, durbala aura klanta hai. Vaha vriddha purusha eka bari koshambavriksha ki sukhi, terhi, merhi, gamtha – gathili, chikani, bamki, niradhara rahi hui gandika para eka kunthita kulhare se jora – jora se shabda karata hua prahara kare, to bhi vaha usa lakari ke bare – bare tukare nahim kara sakata, isi prakara he gautama ! Nairayika jivom ne apane papakarma garha kie haim, chikane kie haim, ityadi chhathe shataka ke anusara yavat – ve mahaparyavasana vale nahim hote. Jisa prakara koi purusha eharana para ghana ki chota marata hua, jora – jora se shabda karata hua, (eharana ke sthula pudgalom ko torane mem samartha nahim hota, isi prakara nairayika jiva bhi garha karma vale hote haim), isalie ve yavat mahaparyavasana vale nahim hote. Jisa prakara koi purusha taruna hai, balavana hai, yavat medhavi, nipuna aura shilpakara hai, vaha eka bare shalmali vriksha ki gili, ajatila, agamthita, chikanai se rahita, sidhi aura adhara para tiki gandika para tikshna kulhare se prahara kare to jora – jora se shabda kiye bina hi asani se usake bare – bare tukare kara deta hai. Isi prakara he gautama ! Jina shramana nirgranthom ne apane karma yatha – sthula, shithila yavat nishthita kiye haim, yavat ve karma shighra hi nashta ho jate haim. Aura ve shramana nirgrantha yavat mahaparyavasana vale hote haim. He gautama! Jaise koi purusha sukhe hue ghasa ke pule ko yavat agni mem dale to vaha shighra hi jala jata hai, isi prakara shramana nirgranthom ke yathabadara karma bhi shighra hi nashta ho jate haim. Jaise koi purusha, pani ki bumda ko tapaye hue lohe ke karaha para dale to vaha shighra hi nashta ho jati hai, usi prakara shramana nirgranthom ke bhi yathabadara karma shighra hi nashta ho jate haim. Chhathe shataka ke anusara yavat ve mahaparyavasana vale hote haim. Isilie he gautama ! Aisa kaha gaya hai ki annaglayaka shramana nirgrantha jitane karmom ka kshaya karata hai, ityadi, yavat utane karmom ka nairayika jiva kotakoti varshom mem bhi kshaya nahim kara pate. He bhagavan ! Yaha isi prakara hai, bhagavan ! Yaha isi prakara hai. |