Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004159
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-१५ गोशालक

Translated Chapter :

शतक-१५ गोशालक

Section : Translated Section :
Sutra Number : 659 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले सन्निवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिति। तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कवालभावं जोव्वणगमणुप्पत्तं पडिरूवएणं सुक्केणं, पडिरूवएणं विनएणं, पडिरूवयस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलइस्सति। सा णं तस्स भारिया भविस्सति–इट्ठा कंता जाव अणुमया, भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया, चेलपेडा इव सुसंपरिग्गहिया, रयणकरंडओ विव सुसारक्खिया, सुसंगोविया, मा णं सीयं, मा णं उण्हं जाव परिसहो-वसग्गा फुसंतु। तए णं सा दारिया अन्नदा कदायि गुव्विणी ससुरकुलाओ कुलघरं निज्जमाणी अंतरा दवग्गिजालाभिहया काल-मासे कालं किच्चा दाहिणिल्लेसु अग्गिकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिति। से णं तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, लभित्ता केवलं बोहिं बुज्झिहिति, बुज्झिता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइहिति। तत्थ वि य णं विराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा दाहिणिल्लीसु असुरकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिति। से णं तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता माणुसं विग्गहं लभिहिति, लभित्ता केवलं बोहिं बुज्झिहिति, बुज्झित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइहिति। तत्थ वि य णं विराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा दाहिणिल्लेसु नागकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिति। से णं तओहिंतो अनंतरं एवं एएणं अभिलावेणं दाहिणिल्लेसु सुवण्णकुमारेसु, एवं विज्जुकुमारेसु, एवं अग्गिकुमारवज्जं जाव दाहिणिल्लेसु थणियकुमारेसु। से णं तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति लभित्ता केवलं बोहिं बुज्झिहिति, बुज्झित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइहिति। तत्थ वि य णं विराहियसामण्णे जोइसिएसु देवेसु उववज्जिहिति। से णं तओहिंतो अनंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, लभित्ता केवलं बोहिं बुज्झिहिति, बुज्झित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइहिति। तत्थ वि य णं अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिति से णं तओहिंतो अनंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति। तत्थ वि णं अविराहिय-सामण्णे कालमासे कालं किच्चा सणंकुमारे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिति। से णं तओहिंतो एवं जहा सणंकुमारे तहा बंभलोए, महासुक्के, आणए, आरणे। से णं तओहिंतो अनंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, लभित्ता केवलं बोहिं बुज्झि-हिति, बुज्झित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइहिति। तत्थ वि य णं अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा सव्वट्ठसिद्धे महाविमाने देवत्ताए उववज्जिहिति। से णं तओहिंतो अनंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे जाइं इमाइं कुलाइं भवंति–अड्ढाइं जाव अपरिभूयाइं, तहप्पगारेसु कुलेसु पुत्तत्ताए पच्चायाहिति, एवं जहा ओववाइए दढप्पइण्णवत्तव्वया सच्चेववत्तव्वया निरवसेसा भाणियव्वा जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जिहिति। तए णं से दढप्पइण्णे केवली अप्पणो तीतद्धं आभोएहिइ, आभोएत्ता समणे निग्गंथे सद्दावेहिति, सद्दावेत्ता एवं वदिहिइ–एवं खलु अहं अज्जो! इओ चिरातीयाए अद्धाए गोसाले नामं मंखलिपुत्ते होत्था–समणघायए जाव छउमत्थे चेव काल-गए, तम्मूलगं च णं अहं अज्जो अनादीयं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अनुपरियट्टिए, तं मा णं अज्जो! तुब्भं केयि भवतु आयरिय-पडिनीए उवज्झायपडिनीए आयरियउवज्झायाणं अयसकारए अवण्णकारए अकित्तिकारए, मा णं से वि एवं चेव अनादीयं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टिहिति, जहा णं अहं। तए णं ते समणा निग्गंथा दढप्पइण्णस्स केवलिस्स अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभ-उव्विग्गा दढप्पइण्णं केवलिं वंदिहिंति नमंसिहिंति, वंदित्ता नमंसित्ता तस्स ठाणस्स आलोएहिंति पडिक्कमिहिंति निंदिहिंति जाव अहारियं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जिहिंति। तए णं से दढप्पइण्णे केवली बहूइं वासाइं केवलिपरियागं पाउणिहिति, पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं जाणेत्ता भत्तं पच्चक्खाहिति, एवं जहा ओववाइए जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिति। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ।
Sutra Meaning : वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत्‌ काल करके इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विन्ध्य – पर्वत के पादमूल में बेभेल सन्निवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका के रूप में उत्पन्न होगा। वह कन्या जब बाल्यावस्था का त्याग करके यौवनवय को प्राप्त होगी, तब उसके माता – पिता उचित शुल्क और उचित विनय द्वारा पति को भार्या के रूप में अर्पण करेंगे। वह उसकी भार्या होगी। वह इष्ट, कान्त, यावत्‌ अनुमत, बहुमूल्य सामान के पिटारे के समान, तेल की कुप्पी के समान अत्यन्त सुरक्षित, वस्त्र की पेटी के समान सुसंगृहीत, रत्न के पिटारे के समान सुरक्षित तथा शीत, उष्ण यावत्‌ परीषह उपसर्ग उसे स्पर्श न करें, इस दृष्टि से अत्यन्त संगोपित होगी। वह ब्राह्मण – पुत्री गर्भवती होगी और एक दिन किसी समय अपने ससुराल से पीहर ले जाई जाती हुई मार्ग में दावाग्नि की ज्वाला से पीड़ित होकर काल के अवसर में काल करके दक्षिण दिशा के अग्निकुमार देवों में देवरूप में उत्पन्न होगी। वहाँ से च्यवकर वह मनुष्य शरीर को प्राप्त करेगा। फिर वह केवलबोधि (सम्यक्त्व) प्राप्त करेगा। तत्पश्चात्‌ मुण्डित होकर अगारवास का परित्याग करके अनगार धर्म को प्राप्त करेगा। किन्तु वहाँ श्रामण्य की विराधना करके काल के अवसर में काल करके दक्षिण दिशा के असुरकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगा। वहाँ से च्यवकर वह मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, फिर केवलबोधि आदि पूर्ववत्‌, यावत्‌ प्रव्रजित होकर चारित्र की विराधना करके काल के समय में काल करके दक्षिणनिकाय के नागकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगा। वहाँ से च्यवकर वह मनुष्यशरीर प्राप्त करेगा, इत्यादि पूर्ववत्‌। दक्षिणनिकाय सुपर्णकुमार देवों में उत्पन्न होगा, फिर दक्षिणनिकाय के विद्युत्कुमार देवों में उत्पन्न होगा, इसी प्रकार अग्निकुमार देवों को छोड़कर यावत्‌ के स्तनितकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगा। वह वहाँ से यावत्‌ नीकलकर मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, यावत्‌ श्रामण्य की विराधना करके ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होगा। वह वहाँ से च्यवकर मनुष्य – शरीर प्राप्त करेगा, फिर केवलबोधि (सम्यक्त्व) प्राप्त करेगा। यावत्‌ चारित्र की विराधना किये बिना काल के अवसरमें काल करके सौधर्मकल्पमें देव रूपमें उत्पन्न होगा। वहाँ से च्यवकर मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, केवलबोधि भी प्राप्त करेगा। वहाँ भी चारित्र की विराधना किये बिना काल कर ईशान देवलोक में देवरूपमें उत्पन्न होगा। वहाँ से च्यवकर मनुष्य – शरीर प्राप्त करेगा, केवलबोधि प्राप्त करेगा। वहाँ भी चारित्र की विराधना किये बिना काल करके सनत्कुमार कल्पमें देवरूपमें उत्पन्न होगा। वहाँ से च्यवकर, सनत्कुमार के देवलोक के समान ब्रह्मलोक, महाशुक्र, आनत, आरण देवलोकोंमें उत्पत्ति के विषय में कहना चाहिए। वहाँ से च्यवकर वह मनुष्य होगा, यावत्‌ चारित्र की विराधना किये बिना काल करके सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देव के रूप में उत्पन्न होगा वहाँ से बिना अन्तर के च्यवकर महाविदेहक्षेत्र में, जो ये कुल हैं, जैसे कि – आढ्य यावत्‌ अपराभूत कुल; तथाप्रकार के कुलों में पुरुष रूप से उत्पन्न होगा। दृढ़प्रतिज्ञ के समान यावत्‌ – उत्तम केवलज्ञान – केवलदर्शन उत्पन्न होगा। तदनन्तर (गोशालक का जीव) दृढ़प्रतिज्ञ केवली अतीत काल को उपयोगपूर्वक देखेंगे। अतीतकाल – निरीक्षण कर वे श्रमण – निर्ग्रन्थों को कहेंगे – हे आर्यो ! मैं आज से चिरकाल पहले गोशालक नामक मंखलिपुत्र था। मैंने श्रमणों की घात की थी। यावत्‌ छद्मस्थ अवस्था में ही कालधर्म को प्राप्त हो गया था। आर्यो ! उसी महापाप – मूलक मैं अनादि – अनन्त और दीर्घमार्ग वाले चारगति रूप संसार – कान्तार में बारबार पर्यटन करता रहा। इसलिए हे आर्यो ! तुम में से कोई भी आचार्य – प्रत्यनीक, उपाध्याय – प्रत्यनीक आचार्य और उपाध्याय के अपयश करने वाले, अवर्णवाद करने वाले और अकीर्ति करनेवाले मत होना, संसाराटवीमें परिभ्रमण मत करना। उस समय दृढ़प्रतिज्ञ केवली से यह बात सूनकर और अवधारण कर वे श्रमणनिग्रन्थ भयभीत होंगे, त्रस्त होंगे, और संसार के भय से उद्विग्न होकर दृढ़प्रतिज्ञ केवली को वन्दन – नमस्कार करेंगे। वे उस स्थान की आलोचना और निन्दना करेंगे यावत्‌ तपश्चरण स्वीकार करेंगे। दृढ़प्रतिज्ञ केवली बहुत वर्षों तक केवलज्ञानी – पर्याय का पालन करेंगे, अंत में भक्तप्रत्याख्यान करेंगे यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] iheva jambuddive dive bharahe vase vimjjhagiripayamule bebhele sannivese mahanakulamsi dariyattae pachchayahiti. Tae nam tam dariyam ammapiyaro ummukkavalabhavam jovvanagamanuppattam padiruvaenam sukkenam, padiruvaenam vinaenam, padiruvayassa bhattarassa bhariyattae dalaissati. Sa nam tassa bhariya bhavissati–ittha kamta java anumaya, bhamdakaramdagasamana tellakela iva susamgoviya, chelapeda iva susampariggahiya, rayanakaramdao viva susarakkhiya, susamgoviya, ma nam siyam, ma nam unham java parisaho-vasagga phusamtu. Tae nam sa dariya annada kadayi guvvini sasurakulao kulagharam nijjamani amtara davaggijalabhihaya kala-mase kalam kichcha dahinillesu aggikumaresu devesu devattae uvavajjihiti. Se nam taohimto anamtaram uvvattitta manussam viggaham labhihiti, labhitta kevalam bohim bujjhihiti, bujjhita mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaihiti. Tattha vi ya nam virahiyasamanne kalamase kalam kichcha dahinillisu asurakumaresu devesu devattae uvavajjihiti. Se nam taohimto anamtaram uvvattitta manusam viggaham labhihiti, labhitta kevalam bohim bujjhihiti, bujjhitta mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaihiti. Tattha vi ya nam virahiyasamanne kalamase kalam kichcha dahinillesu nagakumaresu devesu devattae uvavajjihiti. Se nam taohimto anamtaram evam eenam abhilavenam dahinillesu suvannakumaresu, evam vijjukumaresu, evam aggikumaravajjam java dahinillesu thaniyakumaresu. Se nam taohimto anamtaram uvvattitta manussam viggaham labhihiti labhitta kevalam bohim bujjhihiti, bujjhitta mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaihiti. Tattha vi ya nam virahiyasamanne joisiesu devesu uvavajjihiti. Se nam taohimto anamtaram chayam chaitta manussam viggaham labhihiti, labhitta kevalam bohim bujjhihiti, bujjhitta mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaihiti. Tattha vi ya nam avirahiyasamanne kalamase kalam kichcha sohamme kappe devattae uvavajjihiti Se nam taohimto anamtaram chayam chaitta manussam viggaham labhihiti. Tattha vi nam avirahiya-samanne kalamase kalam kichcha sanamkumare kappe devattae uvavajjihiti. Se nam taohimto evam jaha sanamkumare taha bambhaloe, mahasukke, anae, arane. Se nam taohimto anamtaram chayam chaitta manussam viggaham labhihiti, labhitta kevalam bohim bujjhi-hiti, bujjhitta mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaihiti. Tattha vi ya nam avirahiyasamanne kalamase kalam kichcha savvatthasiddhe mahavimane devattae uvavajjihiti. Se nam taohimto anamtaram chayam chaitta mahavidehe vase jaim imaim kulaim bhavamti–addhaim java aparibhuyaim, tahappagaresu kulesu puttattae pachchayahiti, evam jaha ovavaie dadhappainnavattavvaya sachchevavattavvaya niravasesa bhaniyavva java kevalavarananadamsane samuppajjihiti. Tae nam se dadhappainne kevali appano titaddham abhoehii, abhoetta samane niggamthe saddavehiti, saddavetta evam vadihii–evam khalu aham ajjo! Io chiratiyae addhae gosale namam mamkhaliputte hottha–samanaghayae java chhaumatthe cheva kala-gae, tammulagam cha nam aham ajjo anadiyam anavadaggam dihamaddham chauramtasamsarakamtaram anupariyattie, tam ma nam ajjo! Tubbham keyi bhavatu ayariya-padinie uvajjhayapadinie ayariyauvajjhayanam ayasakarae avannakarae akittikarae, ma nam se vi evam cheva anadiyam anavadaggam dihamaddham chauramtam samsarakamtaram anupariyattihiti, jaha nam aham. Tae nam te samana niggamtha dadhappainnassa kevalissa amtiyam eyamattham sochcha nisamma bhiya tattha tasiya samsarabha-uvvigga dadhappainnam kevalim vamdihimti namamsihimti, vamditta namamsitta tassa thanassa aloehimti padikkamihimti nimdihimti java ahariyam payachchhittam tavokammam padivajjihimti. Tae nam se dadhappainne kevali bahuim vasaim kevalipariyagam paunihiti, paunitta appano ausesam janetta bhattam pachchakkhahiti, evam jaha ovavaie java savvadukkhanamamtam kahiti. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti java viharai.
Sutra Meaning Transliteration : Vaham bhi shastra se vadha hone para yavat kala karake isi jambudvipa ke bharatakshetra mem vindhya – parvata ke padamula mem bebhela sannivesha mem brahmanakula mem balika ke rupa mem utpanna hoga. Vaha kanya jaba balyavastha ka tyaga karake yauvanavaya ko prapta hogi, taba usake mata – pita uchita shulka aura uchita vinaya dvara pati ko bharya ke rupa mem arpana karemge. Vaha usaki bharya hogi. Vaha ishta, kanta, yavat anumata, bahumulya samana ke pitare ke samana, tela ki kuppi ke samana atyanta surakshita, vastra ki peti ke samana susamgrihita, ratna ke pitare ke samana surakshita tatha shita, ushna yavat parishaha upasarga use sparsha na karem, isa drishti se atyanta samgopita hogi. Vaha brahmana – putri garbhavati hogi aura eka dina kisi samaya apane sasurala se pihara le jai jati hui marga mem davagni ki jvala se pirita hokara kala ke avasara mem kala karake dakshina disha ke agnikumara devom mem devarupa mem utpanna hogi. Vaham se chyavakara vaha manushya sharira ko prapta karega. Phira vaha kevalabodhi (samyaktva) prapta karega. Tatpashchat mundita hokara agaravasa ka parityaga karake anagara dharma ko prapta karega. Kintu vaham shramanya ki viradhana karake kala ke avasara mem kala karake dakshina disha ke asurakumara devom mem devarupa se utpanna hoga. Vaham se chyavakara vaha manushya sharira prapta karega, phira kevalabodhi adi purvavat, yavat pravrajita hokara charitra ki viradhana karake kala ke samaya mem kala karake dakshinanikaya ke nagakumara devom mem devarupa se utpanna hoga. Vaham se chyavakara vaha manushyasharira prapta karega, ityadi purvavat. Dakshinanikaya suparnakumara devom mem utpanna hoga, phira dakshinanikaya ke vidyutkumara devom mem utpanna hoga, isi prakara agnikumara devom ko chhorakara yavat ke stanitakumara devom mem devarupa se utpanna hoga. Vaha vaham se yavat nikalakara manushya sharira prapta karega, yavat shramanya ki viradhana karake jyotishka devom mem utpanna hoga. Vaha vaham se chyavakara manushya – sharira prapta karega, phira kevalabodhi (samyaktva) prapta karega. Yavat charitra ki viradhana kiye bina kala ke avasaramem kala karake saudharmakalpamem deva rupamem utpanna hoga. Vaham se chyavakara manushya sharira prapta karega, kevalabodhi bhi prapta karega. Vaham bhi charitra ki viradhana kiye bina kala kara ishana devaloka mem devarupamem utpanna hoga. Vaham se chyavakara manushya – sharira prapta karega, kevalabodhi prapta karega. Vaham bhi charitra ki viradhana kiye bina kala karake sanatkumara kalpamem devarupamem utpanna hoga. Vaham se chyavakara, sanatkumara ke devaloka ke samana brahmaloka, mahashukra, anata, arana devalokommem utpatti ke vishaya mem kahana chahie. Vaham se chyavakara vaha manushya hoga, yavat charitra ki viradhana kiye bina kala karake sarvarthasiddha mahavimana mem deva ke rupa mem utpanna hoga Vaham se bina antara ke chyavakara mahavidehakshetra mem, jo ye kula haim, jaise ki – adhya yavat aparabhuta kula; tathaprakara ke kulom mem purusha rupa se utpanna hoga. Drirhapratijnya ke samana yavat – uttama kevalajnyana – kevaladarshana utpanna hoga. Tadanantara (goshalaka ka jiva) drirhapratijnya kevali atita kala ko upayogapurvaka dekhemge. Atitakala – nirikshana kara ve shramana – nirgranthom ko kahemge – he aryo ! Maim aja se chirakala pahale goshalaka namaka mamkhaliputra tha. Maimne shramanom ki ghata ki thi. Yavat chhadmastha avastha mem hi kaladharma ko prapta ho gaya tha. Aryo ! Usi mahapapa – mulaka maim anadi – ananta aura dirghamarga vale charagati rupa samsara – kantara mem barabara paryatana karata raha. Isalie he aryo ! Tuma mem se koi bhi acharya – pratyanika, upadhyaya – pratyanika acharya aura upadhyaya ke apayasha karane vale, avarnavada karane vale aura akirti karanevale mata hona, samsaratavimem paribhramana mata karana. Usa samaya drirhapratijnya kevali se yaha bata sunakara aura avadharana kara ve shramananigrantha bhayabhita homge, trasta homge, aura samsara ke bhaya se udvigna hokara drirhapratijnya kevali ko vandana – namaskara karemge. Ve usa sthana ki alochana aura nindana karemge yavat tapashcharana svikara karemge. Drirhapratijnya kevali bahuta varshom taka kevalajnyani – paryaya ka palana karemge, amta mem bhaktapratyakhyana karemge yavat sarva duhkhom ka anta karemge. He bhagavan ! Yaha isi prakara hai.