Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004112 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१४ |
Translated Chapter : |
शतक-१४ |
Section : | उद्देशक-५ अग्नि | Translated Section : | उद्देशक-५ अग्नि |
Sutra Number : | 612 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] नेरइए णं भंते! अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? गोयमा! अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा? गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–विग्गहगतिसमावन्नगा य, अविग्गहगतिसमावन्नगा य। तत्थ णं जे से विग्गहगति-समावन्नए नेरइए से णं अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा। से णं त्थ ज्झियाएज्जा? नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। तत्थ णं जे से अविग्गहगतिसमावन्नए नेरइए से णं अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं नो वीइवएज्जा। से तेणट्ठेणं जाव नो वीइवएज्जा। असुरकुमारे णं भंते! अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? गोयमा! अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा। से केणट्ठेणं जाव नो वीइवएज्जा? गोयमा! असुरकुमारा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–विग्गहगतिसमावन्नगा य, अविग्गहगति-समावन्नगा य। तत्थ णं जे से विग्गहगतिसमावन्नए असुरकुमारे से णं–एवं जहेव नेरइए जाव कमइ। तत्थ णं जे से अविग्गहगतिसमावन्नए असुरकुमारे से णं अत्थेग-तिए अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा। जे णं वीइवएज्जा से णं तत्थ ज्झियाएज्जा? नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। से तेणट्ठेणं। एवं जाव थणियकुमारा। एगिंदिया जहा नेरइया। बेइंदिया णं भंते! अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? जहा असुरकुमारे तहा बेइंदि-एवि, नवरं– जे णं वीइवएज्जा से णं तत्थ ज्झियाएज्जा? हंता ज्झियाएज्जा। सेसं तं चेव। एवं जाव चउरिंदिए। पंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? गोयमा! अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा। से केणट्ठेणं? गोयमा! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– विग्गहगतिसमावन्नगा य, अविग्गह-गतिसमावन्नगा य। विग्गहगतिसमावन्नए जहेव नेरइए जाव नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। अविग्गह-गतिसमावन्नगा पंचिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–इड्ढिप्पत्ता य, अणिड्ढिप्पत्ता य। तत्थ णं जे से इड्ढिप्पत्ते पंचिंदियतिरिक्खजोणिए से णं अत्थेगतिए अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा। जे णं वीइवएज्जा से णं तत्थ ज्झियाएज्जा? नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। तत्थ णं जे से अणिड्ढिप्पत्ते पंचिंदियतिरिक्खजोणिए से णं अत्थेगतिए अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा। जे णं वीइवएज्जा से णं तत्थ ज्झियाएज्जा? हंता ज्झियाएज्जा। से तेणट्ठेणं जाव नो वीइवएज्जा। एवं मनुस्से वि। वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिए जहा असुरकुमारे। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! नैरयिक जीव अग्निकाय के मध्य में होकर जा सकता है ? गौतम ! कोई नैरयिक जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। भगवन् ! यह किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के हैं यथा – विग्रह गति – समापन्नक और अविग्रहगति – समापन्नक। उनमें से जो विग्रहगति – समापन्नक नैरयिक हैं, वे अग्निकाय के मध्य में होकर जा सकते हैं। भगवन् ! क्या वे अग्नि से जल जाते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि उन पर अग्निरूप शस्त्र नहीं चल सकता। उनमें से जो अविग्रहगति समापन्नक नैरयिक हैं वे अग्निकाय के मध्य में होकर नहीं जा सकते, इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कोइ नैरयिक जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। भगवन् ! असुरकुमार देव अग्निकाय के मध्य में होकर जा सकते हैं ? गौतम ! कोई जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! असुरकुमार दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा – विग्रहगति – समापन्नक और अविग्रहगति – समापन्नक। उनमें से जो विग्रहगति – समापन्नक असुरकुमार हैं, वे नैरयिकों के समान हैं, यावत् उन पर अग्नि – शस्त्र असर नहीं कर सकता। उनमें जो अविग्रहगति – समापन्नक असुर – कुमार हैं, उनमें से कोई अग्नि के मध्य में होकर जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। जो अग्नि के मध्य में होकर जाता है, क्या वह जल जाता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि उस पर अग्नि आदि शस्त्र का असर नहीं होता। इसी कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कोई असुरकुमार जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। इसी प्रकार स्तनितकुमार देव तक कहना। एकेन्द्रियों के विषय में नैरयिकों के समान कहना। भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव अग्निकाय के मध्य में से होकर जा सकते हैं ? असुरकुमारों के अनुसार द्वीन्द्रियों के विषय में कहना। परन्तु इतनी विशेषता है – भगवन् ! जो द्वीन्द्रिय जीव अग्नि के बीच में होकर जाते हैं, वे जल जाते हैं ? हाँ, वे जल जाते हैं। शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार का कथन चतुरिन्द्रिय तक करना। भगवन् ! पञ्चेन्द्रिय – तिर्यग्योनिक जीव अग्नि के मध्य में होकर जा सकते हैं ? गौतम ! कोई जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! पंचेन्द्रिय – तिर्यग्योनिक जीव दो प्रकार के हैं, यथा – विग्रहगति समापन्नक और अविग्रहगति समापन्नक। जो विग्रहगति समापन्नक पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक हैं, उनका कथन नैरयिक के समान जानना, यावत् उन पर शस्त्र असर नहीं करता। अविग्रहसमापन्नक पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक दो प्रकार के हैं – ऋद्धिप्राप्त और अनृद्धिप्राप्त। जो ऋद्धिप्राप्त, पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक हैं, उनमें से कोई अग्नि के मध्य में होकर जाता है और कोई नहीं जाता है। जो अग्नि में होकर जाता है, क्या वह जल जाता है ? यह अर्थ समर्थ नहीं, क्योंकि उस पर शस्त्र असर नहीं करता। परन्तु जो ऋद्धि – अप्राप्त पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक हैं, उनमें से भी कोई अग्नि में होकर जाता है और कोई नहीं जाता है। जो अग्नि में से होकर जाता है, क्या वह जल जाता है ? हाँ, वह जल जाता है। इसी कारण हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि कोई अग्नि में से होकर जाता है और कोई नहीं जाता है। इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी कहना। वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों के विषय में असुर – कुमारों के समान कहना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] neraie nam bhamte! Aganikayassa majjhammajjhenam viivaejja? Goyama! Atthegatie viivaejja, atthegatie no viivaejja. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–atthegatie viivaejja, atthegatie no viivaejja? Goyama! Neraiya duviha pannatta, tam jaha–viggahagatisamavannaga ya, aviggahagatisamavannaga ya. Tattha nam je se viggahagati-samavannae neraie se nam aganikayassa majjhammajjhenam viivaejja. Se nam ttha jjhiyaejja? No inatthe samatthe, no khalu tattha sattham kamai. Tattha nam je se aviggahagatisamavannae neraie se nam aganikayassa majjhammajjhenam no viivaejja. Se tenatthenam java no viivaejja. Asurakumare nam bhamte! Aganikayassa majjhammajjhenam viivaejja? Goyama! Atthegatie viivaejja, atthegatie no viivaejja. Se kenatthenam java no viivaejja? Goyama! Asurakumara duviha pannatta, tam jaha–viggahagatisamavannaga ya, aviggahagati-samavannaga ya. Tattha nam je se viggahagatisamavannae asurakumare se nam–evam jaheva neraie java kamai. Tattha nam je se aviggahagatisamavannae asurakumare se nam atthega-tie aganikayassa majjhammajjhenam viivaejja, atthegatie no viivaejja. Je nam viivaejja se nam tattha jjhiyaejja? No inatthe samatthe, no khalu tattha sattham kamai. Se tenatthenam. Evam java thaniyakumara. Egimdiya jaha neraiya. Beimdiya nam bhamte! Aganikayassa majjhammajjhenam viivaejja? Jaha asurakumare taha beimdi-evi, navaram– je nam viivaejja se nam tattha jjhiyaejja? Hamta jjhiyaejja. Sesam tam cheva. Evam java chaurimdie. Pamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Aganikayassa majjhammajjhenam viivaejja? Goyama! Atthegatie viivaejja, atthegatie no viivaejja. Se kenatthenam? Goyama! Pamchimdiyatirikkhajoniya duviha pannatta, tam jaha– viggahagatisamavannaga ya, aviggaha-gatisamavannaga ya. Viggahagatisamavannae jaheva neraie java no khalu tattha sattham kamai. Aviggaha-gatisamavannaga pamchimdiyatirikkhajoniya duviha pannatta, tam jaha–iddhippatta ya, aniddhippatta ya. Tattha nam je se iddhippatte pamchimdiyatirikkhajonie se nam atthegatie aganikayassa majjhammajjhenam viivaejja, atthegatie no viivaejja. Je nam viivaejja se nam tattha jjhiyaejja? No inatthe samatthe, no khalu tattha sattham kamai. Tattha nam je se aniddhippatte pamchimdiyatirikkhajonie se nam atthegatie aganikayassa majjhammajjhenam viivaejja, atthegatie no viivaejja. Je nam viivaejja se nam tattha jjhiyaejja? Hamta jjhiyaejja. Se tenatthenam java no viivaejja. Evam manusse vi. Vanamamtara-joisiya-vemanie jaha asurakumare. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Nairayika jiva agnikaya ke madhya mem hokara ja sakata hai\? Gautama ! Koi nairayika ja sakata hai aura koi nahim ja sakata. Bhagavan ! Yaha kisa karana se kahate haim\? Gautama ! Nairayika do prakara ke haim yatha – vigraha gati – samapannaka aura avigrahagati – samapannaka. Unamem se jo vigrahagati – samapannaka nairayika haim, ve agnikaya ke madhya mem hokara ja sakate haim. Bhagavan ! Kya ve agni se jala jate haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai, kyomki una para agnirupa shastra nahim chala sakata. Unamem se jo avigrahagati samapannaka nairayika haim ve agnikaya ke madhya mem hokara nahim ja sakate, isalie he gautama ! Aisa kaha jata hai ki koi nairayika ja sakata hai aura koi nahim ja sakata. Bhagavan ! Asurakumara deva agnikaya ke madhya mem hokara ja sakate haim\? Gautama ! Koi ja sakata hai aura koi nahim ja sakata. Bhagavan ! Kisa karana se aisa kaha jata hai\? Gautama ! Asurakumara do prakara ke kahe gae haim, yatha – vigrahagati – samapannaka aura avigrahagati – samapannaka. Unamem se jo vigrahagati – samapannaka asurakumara haim, ve nairayikom ke samana haim, yavat una para agni – shastra asara nahim kara sakata. Unamem jo avigrahagati – samapannaka asura – kumara haim, unamem se koi agni ke madhya mem hokara ja sakata hai aura koi nahim ja sakata. Jo agni ke madhya mem hokara jata hai, kya vaha jala jata hai\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai, kyomki usa para agni adi shastra ka asara nahim hota. Isi karana he gautama ! Aisa kaha jata hai ki koi asurakumara ja sakata hai aura koi nahim ja sakata. Isi prakara stanitakumara deva taka kahana. Ekendriyom ke vishaya mem nairayikom ke samana kahana. Bhagavan ! Dvindriya jiva agnikaya ke madhya mem se hokara ja sakate haim\? Asurakumarom ke anusara dvindriyom ke vishaya mem kahana. Parantu itani visheshata hai – bhagavan ! Jo dvindriya jiva agni ke bicha mem hokara jate haim, ve jala jate haim\? Ham, ve jala jate haim. Shesha purvavat. Isi prakara ka kathana chaturindriya taka karana. Bhagavan ! Panchendriya – tiryagyonika jiva agni ke madhya mem hokara ja sakate haim\? Gautama ! Koi ja sakata hai aura koi nahim ja sakata. Bhagavan ! Aisa kyom kaha jata hai\? Gautama ! Pamchendriya – tiryagyonika jiva do prakara ke haim, yatha – vigrahagati samapannaka aura avigrahagati samapannaka. Jo vigrahagati samapannaka pamchendriya – tiryamchayonika haim, unaka kathana nairayika ke samana janana, yavat una para shastra asara nahim karata. Avigrahasamapannaka pamchendriya – tiryamchayonika do prakara ke haim – riddhiprapta aura anriddhiprapta. Jo riddhiprapta, pamchendriya – tiryamchayonika haim, unamem se koi agni ke madhya mem hokara jata hai aura koi nahim jata hai. Jo agni mem hokara jata hai, kya vaha jala jata hai\? Yaha artha samartha nahim, kyomki usa para shastra asara nahim karata. Parantu jo riddhi – aprapta pamchendriya – tiryamchayonika haim, unamem se bhi koi agni mem hokara jata hai aura koi nahim jata hai. Jo agni mem se hokara jata hai, kya vaha jala jata hai\? Ham, vaha jala jata hai. Isi karana he gautama ! Aisa kaha gaya hai ki koi agni mem se hokara jata hai aura koi nahim jata hai. Isi prakara manushya ke vishaya mem bhi kahana. Vanavyantarom, jyotishkom aura vaimanikom ke vishaya mem asura – kumarom ke samana kahana. |