Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004094
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-१३

Translated Chapter :

शतक-१३

Section : उद्देशक-९ अनगारवैक्रिय Translated Section : उद्देशक-९ अनगारवैक्रिय
Sutra Number : 594 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–से जहानामए केइ पुरिसे केयाघडियं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे वि भावियप्पा केयाघडियाकिच्चहत्थगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? हंता उप्पएज्जा। अनगारे णं भंते! भावियप्पा केवतियाइं पभू केयाघडियाकिच्चहत्थगयाइं रूवाइं विउव्वित्तए? गोयमा! से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव अनगारे वि भावि-अप्पा वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ जाव पभू णं गोयमा! अनगारे णं भाविअप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं इत्थिरूवेहिं आइण्णं वितिकिण्णं उवत्थडं संथडं फुडं अवगाढावगाढं करेत्तए। एस णं गोयमा! अनगारस्स भाविअप्पणो अयमेयारूवे विसए, विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विउव्विंसु वा विउव्वति वा विउव्विस्सति वा। से जहानामए केइ पुरिसे हिरण्णपेलं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे वि भावियप्पा हिरण्णपेलहत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? सेसं तं चेव एवं सुवण्णपेलं, एवं रयणपेलं, वइरपेलं, वत्थपेलं, आभरणपेलं, एवं वियलकडं, सुंबकडं, चम्मकडं, कंबलकडं, एवं अयभारं, तंबभारं, तउयभारं, सोसगभारं, हिरण्णभारं, सुवण्णभारं, वइरभारं। से जहानामए वग्गुलो सिया, दो वि पाए उल्लंबिया-उल्लंबिया उड्ढंपादा अहोसिरा चिट्ठेज्जा, एवामेव अनगारे वि भाविअप्पा वग्गुलीकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? एवं जण्णोवइयवत्तव्वया भाणियव्वा जाव विउव्विस्सति वा। से जहानामए जलोया सिया, उदगंसि कायं उव्विहिया-उव्विहिया गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे, सेसं जहा वग्गुलीए। से जहानामए बीयंबीयगसउणे सिया, दो वि पाए समतुरंगेमाणे-समतुरंगेमाणे गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे, सेसं तं चेव। से जहानामए पक्खिविरालए सिया, रुक्खाओ रुक्खं डेवेमाणे-डेवेमाणे गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे, सेस तं चेव। से जहानामए जीवंजीवगसउणे सिया, दो वि पाए समतुरंगेमाणे-समतुरंगेमाणे गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे, सेसं तं चेव। से जहानामए हंसे सिया, तीराओ तीरं अभिरममाणे-अभिरममाणे गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे वि भाविअप्पा हंसकिच्चगएणं अप्पाणेणं, तं चेव। से जहानामए समुद्दवायसए सिया, बीईओ बीइं डेवेमाणे-डेवेमाणे गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे, तहेव। से जहानामए केइ पुरिसे चक्कं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे वि भाविअप्पा चक्कहत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं, सेसं जहा केयाघडियाए। एवं छत्तं, एवं चम्मं। से जहानामए केइ पुरिसे रयणं गहाय गच्छेज्जा, एवं चेव। एवं वइरं, वेरुलियं जाव रिट्ठं। एवं उप्पलहत्थगं, एवं पउमहत्थगं, कुमुदहत्थगं, नलिणहत्थगं, सुभगहत्थगं, सुगंधियहत्थगं, पोंडरीयहत्थगं, महापोंडरीयहत्थगं, सयपत्तहत्थगं, से जहानामए केइ पुरिसे सहस्सपत्तगं गहाय गच्छेज्जा, एवं चेव। से जहानामए केइ पुरिसे भिसं अवद्दालिय-अवद्दालिय गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे वि भिसकिच्चगएणं अप्पाणेणं तं चेव। से जहानामए मुणालिया सिया, उदगंसि कायं उम्मज्जिया-उम्मज्जिया चिट्ठेज्जा, एवामेव, सेसं जहा वग्गुलीए। से जहानामए वनसंडे सिया–किण्हे किण्होभासे जाव महामेहनिकुरंबभूए, पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे, एवामेव अनगारे वि भाविअप्पा वणसंडकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? सेसं तं चेव। से जहानामए पुक्खरणी सिया–चउक्कोणा, समतीरा, अणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजला जाव सद्दुन्नइयमहुरसरणादिया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, एवामेव अनगारे वि भाविअप्पा पोक्खरणीकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? हंता उप्पएज्जा। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा केवतियाइं पभू पोक्खरणीकिच्चगयाइं रूवाइं विउव्वित्तए? सेसं तं चेव जाव विउव्विस्सति वा। से भंते! किं मायी विउव्वति? अमायी विउव्वति? गोयमा! मायी विउव्वति, नो अमायी विउव्वति। मायी णं तस्स ठाणस्स अनालोइय पडिक्कंते कालं करेइ, नत्थि तस्स आराहणा। अमायी णं तस्स ठाणस्स आलोइय-पडिक्कंते कालं करेइ, अत्थि तस्स आराहणा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ।
Sutra Meaning : राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! जैसे कोई पुरुष रस्सी से बंधी हुई घटिका लेकर चलता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी रस्सी से बंधी हुई घटिका स्वयं हाथ में लेकर ऊंचे आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! उड़ सकता है। भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार रस्सी से बंधी हुई घटिका हाथ में ग्रहण करने रूप कितने रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? गौतम ! तृतीय शतक में जैसे युवती – युवक के हस्तग्रहण का दृष्टान्त देकर समझाया है, वैसे ही यहाँ समझना। यावत्‌ यह उसकी शक्तिमात्र है। सम्प्राप्ति द्वारा कभी इतने रूपों की विक्रिया की नहीं, करता नहीं, करेगा नहीं। भगवन्‌ ! जैसे कोई पुरुष हिरण्य की मंजूषा लेकर चलता है, वैसे ही, क्या भावितात्मा अनगार भी हिरण्य – मंजूषा हाथ में लेकर स्वयं ऊंचे आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! पूर्ववत्‌ समझना। इसी प्रकार स्वर्णमंजूषा, रत्नमंजूषा, वज्रमंजूषा, वस्त्रमंजूषा एवं आभरणमंजूषा इत्यादि पूर्ववत्‌। इसी प्रकार बाँस की चटाई, वीरणघास की चटाई, चमड़े की चटाई य खाट आदि एवं कम्बल का बिछौना इत्यादि प्रश्नोत्तर पूर्ववत्‌ कहना। इसी प्रकार लोहे का भार, तांबे का भार, कलई का भार, शीशे का भार, हिरण्य का भार, सोने का भार और वज्र का भार इत्यादि पूर्ववत्‌ प्रश्नोत्तर कहना। भगवन्‌ ! जैसे कोई वग्गुलीपक्षी अपने दोनों पैर लटका – लटका कर पैरों को ऊपर और शिर को नीचा किये रहती है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी उक्त चमगादड़ की तरह अपने रूप की विकुर्वणा करके स्वयं ऊंचे आकाश में ऊड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! वह ऊड़ सकता है। इसी प्रकार यज्ञोपवित – सम्बन्धी वक्तव्यता भी कहनी चाहिए। (भगवन्‌ !) जैसे कोई जलौका अपने शरीर को उत्प्रेरित करके पानी में चलती है; क्या उसी प्रकार भावि – तात्मा अनगार भी इत्यादि प्रश्न पूर्ववत्‌। (गौतम !) वग्गुलीपक्षी के समान जानना चाहिए। भगवन्‌ ! जैसे कोई बीजंबीज पक्षी अपने दोनों पैरों को घोड़े की तरह एक हाथ उठाता – उठाता हुआ गमन करता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी इत्यादि प्रश्न पूर्ववत्‌ ! (हाँ, गौतम ! ऊड़ सकता है), शेष पूर्ववत्‌। (भगवन्‌ !) जिस प्रकार कोई पक्षीबिडालक एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष को लांघता – लांघता जाता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी इत्यादि प्रश्न। (हाँ, गौतम ! ऊड़ सकता है।) शेष पूर्ववत्‌। (भगवन्‌ !) जैसे कोई जीवंजीवक पक्षी अपने दोनों पैरों को घोड़े के समान एक साथ उठाता – उठाता गमन करता है; क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी इत्यादि प्रश्न पूर्ववत्‌। (हाँ, गौतम ! ऊड़ सकता है) शेष पूर्ववत्‌। (भगवन्‌ !) जैसे कोई हंस एक किनारे से दूसरे किनारे पर क्रीड़ा करता – करता चला जाता है, क्या वैसे ही भावितात्मा अनगार भी हंसवत्‌ विकुर्वणा करके गगन में ऊड़ सकता है ? (हाँ, गौतम ! ऊड़ सकता है) शेष पूर्ववत्‌ (भगवन्‌ !) जैसे कोई समुद्रवायस एक लहर से दूसरी लहर का अतिक्रमण करता – करता चला जाता है, क्या वैसे ही भावितात्मा अनगार भी इत्यादि प्रश्न। पूर्ववत्‌ समझना। (भगवन्‌ !) जैसे कोई पुरुष हाथ में चक्र लेकर चलता है, क्या वैसे ही भावितात्मा अनगार भी तदनुसार विकुर्वणा करके चक्र हाथ में लेकर स्वयं ऊंचे आकाश में ऊड़ सकता है ? (हाँ, गौतम !) सभी कथन रज्जुबद्ध – घटिका के समान जानना चाहिए। इसी प्रकार छत्र और चर्म के सम्बन्ध में भी कथन करना। (भगवन्‌ !) जैसे कोई पुरुष रत्न लेकर गमन करता है, (क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी इत्यादि पूर्ववत्‌ प्रश्न)। (गौतम !) पूर्ववत्‌। इसी प्रकार वज्र, वैडूर्य यावत्‌ रिष्टरत्न तक पूर्ववत्‌ कहना। इसी प्रकार उत्पल हाथ में लेकर, पद्म हाथ में लेकर एवं कुमुद हाथ में लेकर तथा जैसे कोई पुरुष यावत्‌ सहस्त्रपत्र हाथ में लेकर गमन करता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी इत्यादि पूर्ववत्‌ प्रश्न। (हाँ, गौतम !) पूर्ववत्‌ जानना। जिस प्रकार कोई पुरुष कमल की डंडी को तोड़ता – तोड़ता चलता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी स्वयं इस प्रकार के रूप की विकुर्वणा करके ऊंचे आकाश में ऊड़ सकता है ? (हाँ, गौतम!) शेष पूर्ववत्‌। जैसे कोई मृणालिका हो और वह अपने शरीर को पानी में डुबाए रखती है तथा उसका मुख बाहर बहता है; क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी इत्यादि पूर्ववत्‌ प्रश्न। (हाँ, गौतम !) शेष कथन वग्गुली के समान जानना। (भगवन्‌ !) जिस प्रकार कोई वनखण्ड हो, जो काला, काले प्रकाश वाला, नीला, नीले आभास वाला, हरा, हरे आभास वाला यावत्‌ महामेघसमूह के समान प्रसन्नतादायक, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप हो; क्या इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी – स्वयं वनखण्ड के समान विकुर्वणा करके ऊंचे आकाश में ऊड़ सकता है ? (हाँ, गौतम !) शेष पूर्ववत्‌। (भगवन्‌ !) जैसे कोई पुष्करिणी हो, जो चतुष्कोण और समतीर हो तथा अनुक्रम से जो शीतल गंभीर जल से सुशोभित हो, यावत्‌ विविध पक्षियों के मधुर स्वर – नाद आदि से युक्त हो तथा प्रसन्नतादायिनी, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हो, क्या इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी उस पुष्करिणी के समान रूप की विकुर्वणा करके स्वयं ऊंचे आकाश में ऊड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! वह ऊड़ सकता है। भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार पुष्करिणी के समान कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? (हे गौतम !) शेष पूर्ववत्‌। भगवन्‌ ! क्या (पूर्वोक्त) विकुर्वणा मायी (अनगार) करता है, अथवा अमायी ? गौतम ! मायी विकुर्वणा करता है, अमायी (अनगार) विकुर्वणा नहीं करता। मायी अनगार यदि उस स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही कालधर्म को प्राप्त हो जाए तो उसके आराधना नहीं होती; इत्यादि तीसरे शतक के चतुर्थ उद्देशक के अनुसार यावत्‌ – उसके आराधना होती है। हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] rayagihe java evam vayasi–se jahanamae kei purise keyaghadiyam gahaya gachchhejja, evameva anagare vi bhaviyappa keyaghadiyakichchahatthagaenam appanenam uddham vehasam uppaejja? Hamta uppaejja. Anagare nam bhamte! Bhaviyappa kevatiyaim pabhu keyaghadiyakichchahatthagayaim ruvaim viuvvittae? Goyama! Se jahanamae juvatim juvane hatthenam hatthe genhejja, chakkassa va nabhi aragautta siya, evameva anagare vi bhavi-appa veuvviyasamugghaenam samohannai java pabhu nam goyama! Anagare nam bhaviappa kevalakappam jambuddivam divam bahuhim itthiruvehim ainnam vitikinnam uvatthadam samthadam phudam avagadhavagadham karettae. Esa nam goyama! Anagarassa bhaviappano ayameyaruve visae, visayamette buie, no cheva nam sampattie viuvvimsu va viuvvati va viuvvissati va. Se jahanamae kei purise hirannapelam gahaya gachchhejja, evameva anagare vi bhaviyappa hirannapelahatthakichchagaenam appanenam uddham vehasam uppaejja? Sesam tam cheva evam suvannapelam, evam rayanapelam, vairapelam, vatthapelam, abharanapelam, evam viyalakadam, sumbakadam, chammakadam, kambalakadam, evam ayabharam, tambabharam, tauyabharam, sosagabharam, hirannabharam, suvannabharam, vairabharam. Se jahanamae vaggulo siya, do vi pae ullambiya-ullambiya uddhampada ahosira chitthejja, evameva anagare vi bhaviappa vaggulikichchagaenam appanenam uddham vehasam uppaejja? Evam jannovaiyavattavvaya bhaniyavva java viuvvissati va. Se jahanamae jaloya siya, udagamsi kayam uvvihiya-uvvihiya gachchhejja, evameva anagare, sesam jaha vaggulie. Se jahanamae biyambiyagasaune siya, do vi pae samaturamgemane-samaturamgemane gachchhejja, evameva anagare, sesam tam cheva. Se jahanamae pakkhiviralae siya, rukkhao rukkham devemane-devemane gachchhejja, evameva anagare, sesa tam cheva. Se jahanamae jivamjivagasaune siya, do vi pae samaturamgemane-samaturamgemane gachchhejja, evameva anagare, sesam tam cheva. Se jahanamae hamse siya, tirao tiram abhiramamane-abhiramamane gachchhejja, evameva anagare vi bhaviappa hamsakichchagaenam appanenam, tam cheva. Se jahanamae samuddavayasae siya, biio biim devemane-devemane gachchhejja, evameva anagare, taheva. Se jahanamae kei purise chakkam gahaya gachchhejja, evameva anagare vi bhaviappa chakkahatthakichchagaenam appanenam, sesam jaha keyaghadiyae. Evam chhattam, evam chammam. Se jahanamae kei purise rayanam gahaya gachchhejja, evam cheva. Evam vairam, veruliyam java rittham. Evam uppalahatthagam, evam paumahatthagam, kumudahatthagam, nalinahatthagam, subhagahatthagam, sugamdhiyahatthagam, pomdariyahatthagam, mahapomdariyahatthagam, sayapattahatthagam, se jahanamae kei purise sahassapattagam gahaya gachchhejja, evam cheva. Se jahanamae kei purise bhisam avaddaliya-avaddaliya gachchhejja, evameva anagare vi bhisakichchagaenam appanenam tam cheva. Se jahanamae munaliya siya, udagamsi kayam ummajjiya-ummajjiya chitthejja, evameva, sesam jaha vaggulie. Se jahanamae vanasamde siya–kinhe kinhobhase java mahamehanikurambabhue, pasadie darisanijje abhiruve padiruve, evameva anagare vi bhaviappa vanasamdakichchagaenam appanenam uddham vehasam uppaejja? Sesam tam cheva. Se jahanamae pukkharani siya–chaukkona, samatira, anupuvvasujayavappagambhirasiyalajala java saddunnaiyamahurasaranadiya pasadiya darisanijja abhiruva padiruva, evameva anagare vi bhaviappa pokkharanikichchagaenam appanenam uddham vehasam uppaejja? Hamta uppaejja. Anagare nam bhamte! Bhaviappa kevatiyaim pabhu pokkharanikichchagayaim ruvaim viuvvittae? Sesam tam cheva java viuvvissati va. Se bhamte! Kim mayi viuvvati? Amayi viuvvati? Goyama! Mayi viuvvati, no amayi viuvvati. Mayi nam tassa thanassa analoiya padikkamte kalam karei, natthi tassa arahana. Amayi nam tassa thanassa aloiya-padikkamte kalam karei, atthi tassa arahana. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti java viharai.
Sutra Meaning Transliteration : Rajagriha nagara mem yavat puchha – bhagavan ! Jaise koi purusha rassi se bamdhi hui ghatika lekara chalata hai, kya usi prakara bhavitatma anagara bhi rassi se bamdhi hui ghatika svayam hatha mem lekara umche akasha mem ura sakata hai\? Ham, gautama ! Ura sakata hai. Bhagavan ! Bhavitatma anagara rassi se bamdhi hui ghatika hatha mem grahana karane rupa kitane rupom ki vikurvana karane mem samartha hai\? Gautama ! Tritiya shataka mem jaise yuvati – yuvaka ke hastagrahana ka drishtanta dekara samajhaya hai, vaise hi yaham samajhana. Yavat yaha usaki shaktimatra hai. Samprapti dvara kabhi itane rupom ki vikriya ki nahim, karata nahim, karega nahim. Bhagavan ! Jaise koi purusha hiranya ki mamjusha lekara chalata hai, vaise hi, kya bhavitatma anagara bhi hiranya – mamjusha hatha mem lekara svayam umche akasha mem ura sakata hai\? Ham, gautama ! Purvavat samajhana. Isi prakara svarnamamjusha, ratnamamjusha, vajramamjusha, vastramamjusha evam abharanamamjusha ityadi purvavat. Isi prakara bamsa ki chatai, viranaghasa ki chatai, chamare ki chatai ya khata adi evam kambala ka bichhauna ityadi prashnottara purvavat kahana. Isi prakara lohe ka bhara, tambe ka bhara, kalai ka bhara, shishe ka bhara, hiranya ka bhara, sone ka bhara aura vajra ka bhara ityadi purvavat prashnottara kahana. Bhagavan ! Jaise koi vaggulipakshi apane donom paira lataka – lataka kara pairom ko upara aura shira ko nicha kiye rahati hai, kya usi prakara bhavitatma anagara bhi ukta chamagadara ki taraha apane rupa ki vikurvana karake svayam umche akasha mem ura sakata hai\? Ham, gautama ! Vaha ura sakata hai. Isi prakara yajnyopavita – sambandhi vaktavyata bhi kahani chahie. (bhagavan !) jaise koi jalauka apane sharira ko utprerita karake pani mem chalati hai; kya usi prakara bhavi – tatma anagara bhi ityadi prashna purvavat. (gautama !) vaggulipakshi ke samana janana chahie. Bhagavan ! Jaise koi bijambija pakshi apane donom pairom ko ghore ki taraha eka hatha uthata – uthata hua gamana karata hai, kya usi prakara bhavitatma anagara bhi ityadi prashna purvavat ! (ham, gautama ! Ura sakata hai), shesha purvavat. (bhagavan !) jisa prakara koi pakshibidalaka eka vriksha se dusare vriksha ko lamghata – lamghata jata hai, kya usi prakara bhavitatma anagara bhi ityadi prashna. (ham, gautama ! Ura sakata hai.) shesha purvavat. (bhagavan !) jaise koi jivamjivaka pakshi apane donom pairom ko ghore ke samana eka satha uthata – uthata gamana karata hai; kya usi prakara bhavitatma anagara bhi ityadi prashna purvavat. (ham, gautama ! Ura sakata hai) shesha purvavat. (bhagavan !) jaise koi hamsa eka kinare se dusare kinare para krira karata – karata chala jata hai, kya vaise hi bhavitatma anagara bhi hamsavat vikurvana karake gagana mem ura sakata hai\? (ham, gautama ! Ura sakata hai) shesha purvavat (bhagavan !) jaise koi samudravayasa eka lahara se dusari lahara ka atikramana karata – karata chala jata hai, kya vaise hi bhavitatma anagara bhi ityadi prashna. Purvavat samajhana. (bhagavan !) jaise koi purusha hatha mem chakra lekara chalata hai, kya vaise hi bhavitatma anagara bhi tadanusara vikurvana karake chakra hatha mem lekara svayam umche akasha mem ura sakata hai\? (ham, gautama !) sabhi kathana rajjubaddha – ghatika ke samana janana chahie. Isi prakara chhatra aura charma ke sambandha mem bhi kathana karana. (bhagavan !) jaise koi purusha ratna lekara gamana karata hai, (kya usi prakara bhavitatma anagara bhi ityadi purvavat prashna). (gautama !) purvavat. Isi prakara vajra, vaidurya yavat rishtaratna taka purvavat kahana. Isi prakara utpala hatha mem lekara, padma hatha mem lekara evam kumuda hatha mem lekara tatha jaise koi purusha yavat sahastrapatra hatha mem lekara gamana karata hai, kya usi prakara bhavitatma anagara bhi ityadi purvavat prashna. (ham, gautama !) purvavat janana. Jisa prakara koi purusha kamala ki damdi ko torata – torata chalata hai, kya usi prakara bhavitatma anagara bhi svayam isa prakara ke rupa ki vikurvana karake umche akasha mem ura sakata hai\? (ham, gautama!) shesha purvavat. Jaise koi mrinalika ho aura vaha apane sharira ko pani mem dubae rakhati hai tatha usaka mukha bahara bahata hai; kya usi prakara bhavitatma anagara bhi ityadi purvavat prashna. (ham, gautama !) shesha kathana vagguli ke samana janana. (bhagavan !) jisa prakara koi vanakhanda ho, jo kala, kale prakasha vala, nila, nile abhasa vala, hara, hare abhasa vala yavat mahameghasamuha ke samana prasannatadayaka, darshaniya, abhirupa evam pratirupa ho; kya isi prakara bhavitatma anagara bhi – svayam vanakhanda ke samana vikurvana karake umche akasha mem ura sakata hai\? (ham, gautama !) shesha purvavat. (bhagavan !) jaise koi pushkarini ho, jo chatushkona aura samatira ho tatha anukrama se jo shitala gambhira jala se sushobhita ho, yavat vividha pakshiyom ke madhura svara – nada adi se yukta ho tatha prasannatadayini, darshaniya, abhirupa aura pratirupa ho, kya isi prakara bhavitatma anagara bhi usa pushkarini ke samana rupa ki vikurvana karake svayam umche akasha mem ura sakata hai\? Ham, gautama ! Vaha ura sakata hai. Bhagavan ! Bhavitatma anagara pushkarini ke samana kitane rupom ki vikurvana kara sakata hai\? (he gautama !) shesha purvavat. Bhagavan ! Kya (purvokta) vikurvana mayi (anagara) karata hai, athava amayi\? Gautama ! Mayi vikurvana karata hai, amayi (anagara) vikurvana nahim karata. Mayi anagara yadi usa sthana ki alochana aura pratikramana kiye bina hi kaladharma ko prapta ho jae to usake aradhana nahim hoti; ityadi tisare shataka ke chaturtha uddeshaka ke anusara yavat – usake aradhana hoti hai. He bhagavan ! Yaha isi prakara hai.