Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003663 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-३ |
Translated Chapter : |
शतक-३ |
Section : | उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Translated Section : | उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा |
Sutra Number : | 163 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं ते ईसानकप्पवासी बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य बलिचंचारायहाणिवत्थव्वएहिं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य तामलिस्स बालतवस्सिस्स सरीरयं हीलिज्जमाणं निंदिज्जमाणं खिंसिज्जमाणं गरहिज्जमाणं अवमण्णिज्जमाणं तज्जिज्जमाणं तालेज्जमाणं परिवहिज्जमाणं पव्वहिज्जमाणं आकड्ढ-विकड्ढिं कीरमाणं पासंति, पासित्ता आसुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणा जेणेव ईसाने देविंदे देवराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य देवानुप्पिए कालगए जाणित्ता ईसाने य कप्पे इंदत्ताए उववन्ने पासेत्ता आसुरुत्ता जाव एगंते एडेंति, एडेत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। तए णं ईसाने देविंदे देवराया तेसिं ईसानकप्पवासीणं बहूणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तत्थेव सयणिज्जवरगए तिवलियं भिउडिं निडाले साहट्टु बलिचंचारायहाणिं अहे सपक्खिं सपडिदिसिं समभिलोएइ। तए णं सा बलिचंचा रायहानी ईसानेणं देविंदेणं देवरण्णा अहे सपक्खिं सपडिदिसिं समभिलोइया समाणी तेणं दिव्वप्पभावेणं इंगालब्भूया मुम्मुरब्भूया छारियब्भूया तत्तकवेल्लकब्भूया तत्ता समजोइब्भूया जाया यावि होत्था। तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तं बलिचंचं रायहाणिं इंगालब्भूयं जाव समजोइब्भूयं पासंति, पासित्ता भीआ तत्था तसिआ उव्विग्गा संजायभया सव्वओ समंता आधावेंति परिधावेंति, आधावेत्ता परिधावेत्ता अन्नमन्नस्स कायं समतुरंगेमाणा–समतुरंगेमाणा चिट्ठंति। तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य ईसाणं देविंदं देवरायं परिकुवियं जाणित्ता ईसानस्स देविंदस्स देवरन्नो तं दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवज्जुइं दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं तेयलेस्सं असहमाणा सव्वे सपक्खिं सपडिदिसं ढिच्चा करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी– अहो! णं देवानुप्पिएहिं दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवानुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए, तं दिट्ठा णं देवानुप्पियाणं दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवानुभावे लद्धे पत्ते अभिसमण्णामाए, तं खामेमो णं देवानुप्पिया! खमंतु णं देवानुप्पिया! खंतुमरिहंति णं देवानुप्पिया! नाइ भुज्जो एवं करणयाए त्ति कट्टु एयमट्ठं सम्मं विनएणं भुज्जो-भुज्जो खामेंति। तए णं से ईसाने देविंदे देवराया तेहिं बलिचंचारायहाणिवत्थव्वएहिं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य एयमट्ठं सम्मं विनएणं भुज्जो-भुज्जो खामित्ते समाणे तं दिव्वं देविड्ढिं जाव तेयलेस्सं पडिसाहरइ। तप्पभितिं च णं गोयमा! ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य ईसाणं देविंदं देवरायं आढंति परियाणंति सक्कारेंति सम्माणेंति कल्लाणं मंगलं देवयं विनएणं चेइयं पज्जुवासंति, ईसानस्स य देविंदस्स देवरन्नो आणा-उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति। एवं खलु गोयमा! ईसानेणं देविंदेणं देवरण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवानुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए ईसानस्स भंते! देविंदस्स देवरन्नो केवतियं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! सातिरेगाइं दो सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। ईसाने णं भंते! देविंदे देवराया ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् ईशानकल्पवासी बहुत – से वैमानिक देवों और देवियों ने (इस प्रकार) देखा कि बलिचंचा – निवासी बहुत – से असुरकुमार देवों और देवियों द्वारा तामली बालतपस्वी के मृत शरीर की हीलना, निन्दा और आक्रोशना की जा रही है, यावत् उस शब को मनचाहे ढंग से इधर – उधर घसीटा या खींचा जा रहा है। अतः इस प्रकार देखकर वे वैमानिक देव – देवीगण शीघ्र ही क्रोध से भड़क उठे यावत् क्रोधानल से दाँत पीसते हुए, जहाँ देवेन्द्र देवराज ईशान था, वहाँ पहुँचे। ईशानेन्द्र के पास पहुँचकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके ‘जय हो, विजय हो’ इत्यादि शब्दों से बधाया। फिर वे बोले – ‘हे देवानुप्रिय ! बलिचंचा राजधानी निवासी बहुत – से असुरकुमार देव और देवीगण आप देवानुप्रिय को कालधर्म प्राप्त हुए एवं ईशानकल्प में इन्द्ररूप में उत्पन्न हुए देखकर अत्यन्त कोपाय – मान हुए यावत् आपके मृतशरीर को उन्होंने मनचाहा आड़ा – टेढ़ा खींच – घसीटकर एकान्त में डाल दिया। तत्पश्चात् वे जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में वापस लौट गए। उस समय देवेन्द्र देवराज ईशान ईशानकल्पवासी बहुत – से वैमानिक देवों और देवियों से यह बात सूनकर और मन में विचारकर शीघ्र ही क्रोध से आगबबूला हो उठा, यावत् क्रोधाग्नि से तिलमिलाता हुआ, वहीं देवशय्या स्थित ईशानेन्द्र ने ललाट पर तीन सल डालकर एवं भ्रुकुटि तानकर बलिचंचा राजधानी को, नीचे ठीक सामने, चारों दिशाओं से बराबर सम्मुख और चारों विदिशाओं से भी एकदम सम्मुख होकर एक – एक दृष्टि से देखा। इस प्रकार कुपित दृष्टि से बलिचंचा राजधानी को देखने से वह उस दिव्यप्रभाव से जलते हुए अंगारों के समान, अग्नि – कणों के समान, तपतपाती बालू जैसी या तपे हुए गर्म तवे सरीखी, और साक्षात् अग्नि की राशि जैसी हो गई – जलने लगी। जब बलिचंचा राजधानी में रहने वाले बहुत – से असुरकुमार देवों और देवियों ने उस बलिचंचा राजधानी को अंगारों सरीखी यावत् साक्षात् अग्नि की लपटों जैसी देखी तो वे अत्यन्त भयभीत हुए, भयत्रस्त होकर काँपने लगे, उनका आनन्दरस सूख गया वे उद्विग्न हो गए और भय के मारे चारों ओर इधर – उधर भाग – दौड़ करने लगे। वे एक दूसरे के शरीर से चिपटने लगे अथवा एक दूसरे के शरीर की ओट में छीपने लगे। तब बलिचंचा – राजधानी के बहुत – से असुरकुमार देवों और देवियों ने यह जानकर कि देवेन्द्र देवराज ईशान के परिकुपित होने से (हमारी राजधानी इस प्रकार हो गई है); वे सब असुरकुमार देवगण, ईशानेन्द्र की उस दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवद्युति, दिव्य देवप्रभाव, और दिव्य तेजोलेश्या को सहन न करते हुए देवेन्द्र देवराज ईशान के चारों दिशाओं में और चारों विदिशाओं में ठीक सामने खड़े होकर ऊपर की ओर समुख करके दसों नख इकट्ठे हों, इस तरह से दोनों हाथ जोड़कर शिरसावर्तयुक्त मस्तक पर अंजलि करके ईशानेन्द्र को जय – विजय शब्दों से अभिनन्दन करके वे इस प्रकार बोले – ‘अहो ! आप देवानुप्रिय ने दिव्य देव – ऋद्धि यावत् उपलब्ध की है, प्राप्त की है, और अभिमुख कर ली है। हमने आपके द्वारा उपलब्ध, प्राप्त और सम्मुख की हुई दिव्य देवऋद्धि को, यावत् देवप्रभाव को प्रत्यक्ष देख लिया है। अतः हे देवानुप्रिय ! हम आप से क्षमा माँगते हैं। आप देवानुप्रिय हमें क्षमां करें। आप देवानुप्रिय हमें क्षमा करने योग्य हैं। फिर कभी इस प्रकार नहीं करेंगे। इस प्रकार निवेदन करके उन्होंने ईशानेन्द्र से अपने अपराध के लिए विनयपूर्वक अच्छी तरह बार – बार क्षमा माँगी। अब जबकि बलिचंचा – राजधानी – निवासी उन बहुत – से असुरकुमार देवों और देवियों ने देवेन्द्र देवराज ईशान से अपने अपराध के लिए सम्यक् विनयपूर्वक बार – बार क्षमायाचना कर ली, तब ईशानेन्द्र ने उस दिव्य देव ऋद्धि यावत् छोड़ी हुई तेजोलेश्या को वापस खींच ली। हे गौतम ! तब से बलिचंचा – राजधानी निवासी वे बहुत – से असुरकुमार देव और देवीवृन्द देवेन्द्र देवराज ईशान का आदर करते हैं यावत् उसकी पर्युपासना करते हैं। देवेन्द्र देवराज ईशान की आज्ञा और सेवा में, तथा आदेश और निर्देश में रहते हैं। हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज ईशान ने वह दिव्य देवऋद्धि यावत् इस प्रकार लब्ध, प्राप्त और अभिसमन्वागत की है। भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! दो सागरोपम से कुछ अधिक है। भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान देव आयुष्य का क्षय होने पर, स्थितिकाल पूर्ण होने पर देवलोक से च्युत होकर कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा यावत् समस्त दुःखों का अन्त करेगा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam te isanakappavasi bahave vemaniya deva ya devio ya balichamcharayahanivatthavvaehim bahuhim asurakumarehim devehim devihi ya tamalissa balatavassissa sarirayam hilijjamanam nimdijjamanam khimsijjamanam garahijjamanam avamannijjamanam tajjijjamanam talejjamanam parivahijjamanam pavvahijjamanam akaddha-vikaddhim kiramanam pasamti, pasitta asurutta java misimisemana jeneva isane devimde devaraya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavemti, vaddhavetta evam vayasi– Evam khalu devanuppiya! Balichamcharayahanivatthavvaya bahave asurakumara deva ya devio ya devanuppie kalagae janitta isane ya kappe imdattae uvavanne pasetta asurutta java egamte edemti, edetta jameva disim paubbhuya tameva disim padigaya. Tae nam isane devimde devaraya tesim isanakappavasinam bahunam vemaniyanam devana ya devina ya amtie eyamattham sochcha nisamma asurutte java misimisemane tattheva sayanijjavaragae tivaliyam bhiudim nidale sahattu balichamcharayahanim ahe sapakkhim sapadidisim samabhiloei. Tae nam sa balichamcha rayahani isanenam devimdenam devaranna ahe sapakkhim sapadidisim samabhiloiya samani tenam divvappabhavenam imgalabbhuya mummurabbhuya chhariyabbhuya tattakavellakabbhuya tatta samajoibbhuya jaya yavi hottha. Tae nam te balichamcharayahanivatthavvaya bahave asurakumara deva ya devio ya tam balichamcham rayahanim imgalabbhuyam java samajoibbhuyam pasamti, pasitta bhia tattha tasia uvvigga samjayabhaya savvao samamta adhavemti paridhavemti, adhavetta paridhavetta annamannassa kayam samaturamgemana–samaturamgemana chitthamti. Tae nam te balichamcharayahanivatthavvaya bahave asurakumara deva ya devio ya isanam devimdam devarayam parikuviyam janitta isanassa devimdassa devaranno tam divvam deviddhim divvam devajjuim divvam devanubhagam divvam teyalessam asahamana savve sapakkhim sapadidisam dhichcha karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavemti, vaddhavetta evam vayasi– Aho! Nam devanuppiehim divva deviddhi divva devajjui divve devanubhave laddhe patte abhisamannagae, tam dittha nam devanuppiyanam divva deviddhi divva devajjui divve devanubhave laddhe patte abhisamannamae, tam khamemo nam devanuppiya! Khamamtu nam devanuppiya! Khamtumarihamti nam devanuppiya! Nai bhujjo evam karanayae tti kattu eyamattham sammam vinaenam bhujjo-bhujjo khamemti. Tae nam se isane devimde devaraya tehim balichamcharayahanivatthavvaehim bahuhim asurakumarehim devehim devihi ya eyamattham sammam vinaenam bhujjo-bhujjo khamitte samane tam divvam deviddhim java teyalessam padisaharai. Tappabhitim cha nam goyama! Te balichamcharayahanivatthavvaya bahave asurakumara deva ya devio ya isanam devimdam devarayam adhamti pariyanamti sakkaremti sammanemti kallanam mamgalam devayam vinaenam cheiyam pajjuvasamti, isanassa ya devimdassa devaranno ana-uvavaya-vayana-niddese chitthamti. Evam khalu goyama! Isanenam devimdenam devaranna sa divva deviddhi divva devajjui divve devanubhave laddhe patte abhisamannagae Isanassa bhamte! Devimdassa devaranno kevatiyam kalam thii pannatta? Goyama! Satiregaim do sagarovamaim thii pannatta. Isane nam bhamte! Devimde devaraya tao devalogao aukkhaenam bhakkhaenam thiikkhaenam anamtaram chayam chaitta kahim gachchhihiti? Kahim uvavajjihiti? Goyama! Mahavidehe vase sijjhihiti bujjhihiti muchchihiti savvadukkhanam amtam kahiti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat ishanakalpavasi bahuta – se vaimanika devom aura deviyom ne (isa prakara) dekha ki balichamcha – nivasi bahuta – se asurakumara devom aura deviyom dvara tamali balatapasvi ke mrita sharira ki hilana, ninda aura akroshana ki ja rahi hai, yavat usa shaba ko manachahe dhamga se idhara – udhara ghasita ya khimcha ja raha hai. Atah isa prakara dekhakara ve vaimanika deva – devigana shighra hi krodha se bharaka uthe yavat krodhanala se damta pisate hue, jaham devendra devaraja ishana tha, vaham pahumche. Ishanendra ke pasa pahumchakara donom hatha jorakara mastaka para amjali karake ‘jaya ho, vijaya ho’ ityadi shabdom se badhaya. Phira ve bole – ‘he devanupriya ! Balichamcha rajadhani nivasi bahuta – se asurakumara deva aura devigana apa devanupriya ko kaladharma prapta hue evam ishanakalpa mem indrarupa mem utpanna hue dekhakara atyanta kopaya – mana hue yavat apake mritasharira ko unhomne manachaha ara – terha khimcha – ghasitakara ekanta mem dala diya. Tatpashchat ve jisa disha se ae the, usi disha mem vapasa lauta gae. Usa samaya devendra devaraja ishana ishanakalpavasi bahuta – se vaimanika devom aura deviyom se yaha bata sunakara aura mana mem vicharakara shighra hi krodha se agababula ho utha, yavat krodhagni se tilamilata hua, vahim devashayya sthita ishanendra ne lalata para tina sala dalakara evam bhrukuti tanakara balichamcha rajadhani ko, niche thika samane, charom dishaom se barabara sammukha aura charom vidishaom se bhi ekadama sammukha hokara eka – eka drishti se dekha. Isa prakara kupita drishti se balichamcha rajadhani ko dekhane se vaha usa divyaprabhava se jalate hue amgarom ke samana, agni – kanom ke samana, tapatapati balu jaisi ya tape hue garma tave sarikhi, aura sakshat agni ki rashi jaisi ho gai – jalane lagi. Jaba balichamcha rajadhani mem rahane vale bahuta – se asurakumara devom aura deviyom ne usa balichamcha rajadhani ko amgarom sarikhi yavat sakshat agni ki lapatom jaisi dekhi to ve atyanta bhayabhita hue, bhayatrasta hokara kampane lage, unaka anandarasa sukha gaya ve udvigna ho gae aura bhaya ke mare charom ora idhara – udhara bhaga – daura karane lage. Ve eka dusare ke sharira se chipatane lage athava eka dusare ke sharira ki ota mem chhipane lage. Taba balichamcha – rajadhani ke bahuta – se asurakumara devom aura deviyom ne yaha janakara ki devendra devaraja ishana ke parikupita hone se (hamari rajadhani isa prakara ho gai hai); ve saba asurakumara devagana, ishanendra ki usa divya devariddhi, divya devadyuti, divya devaprabhava, aura divya tejoleshya ko sahana na karate hue devendra devaraja ishana ke charom dishaom mem aura charom vidishaom mem thika samane khare hokara upara ki ora samukha karake dasom nakha ikatthe hom, isa taraha se donom hatha jorakara shirasavartayukta mastaka para amjali karake ishanendra ko jaya – vijaya shabdom se abhinandana karake ve isa prakara bole – ‘aho ! Apa devanupriya ne divya deva – riddhi yavat upalabdha ki hai, prapta ki hai, aura abhimukha kara li hai. Hamane apake dvara upalabdha, prapta aura sammukha ki hui divya devariddhi ko, yavat devaprabhava ko pratyaksha dekha liya hai. Atah he devanupriya ! Hama apa se kshama mamgate haim. Apa devanupriya hamem kshamam karem. Apa devanupriya hamem kshama karane yogya haim. Phira kabhi isa prakara nahim karemge. Isa prakara nivedana karake unhomne ishanendra se apane aparadha ke lie vinayapurvaka achchhi taraha bara – bara kshama mamgi. Aba jabaki balichamcha – rajadhani – nivasi una bahuta – se asurakumara devom aura deviyom ne devendra devaraja ishana se apane aparadha ke lie samyak vinayapurvaka bara – bara kshamayachana kara li, taba ishanendra ne usa divya deva riddhi yavat chhori hui tejoleshya ko vapasa khimcha li. He gautama ! Taba se balichamcha – rajadhani nivasi ve bahuta – se asurakumara deva aura devivrinda devendra devaraja ishana ka adara karate haim yavat usaki paryupasana karate haim. Devendra devaraja ishana ki ajnya aura seva mem, tatha adesha aura nirdesha mem rahate haim. He gautama ! Devendra devaraja ishana ne vaha divya devariddhi yavat isa prakara labdha, prapta aura abhisamanvagata ki hai. Bhagavan ! Devendra devaraja ishana ki sthiti kitane kala ki hai\? Gautama ! Do sagaropama se kuchha adhika hai. Bhagavan ! Devendra devaraja ishana deva ayushya ka kshaya hone para, sthitikala purna hone para devaloka se chyuta hokara kaham jaega, kaham utpanna hoga\? Gautama ! Mahavideha kshetra mem janma lekara siddha hoga yavat samasta duhkhom ka anta karega. |