Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Sr No : | 1003595 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१ |
Translated Chapter : |
शतक-१ |
Section : | उद्देशक-९ गुरुत्त्व | Translated Section : | उद्देशक-९ गुरुत्त्व |
Sutra Number : | 95 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] सत्तमे णं भंते! ओवासंतरे किं गरुए? लहुए? गरुयलहुए? अगरुयलहुए? गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, नो गरुयलहुए, अगरुयलहुए। सत्तमे णं भंते! तनुवाए किं गरुए? लहुए? गरुयलहुए? अगरुयलहुए? गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, गरुयलहुए, नो अगरुयलहुए। एवं सत्तमे घनवाए, सत्तमे घनोदही, सत्तमा पुढवी। ओवासंतराइं सव्वाइं जहा सत्तमे ओवासंतरे। जहा तनुवाए एवं–ओवास-वाय-घनउदही, पुढवी दीवा य सागरा वासा। नेरइया णं भंते! किं गरुया? लहुया? गरुयलहुया? अगरुयलहुया? गोयमा! नो गरुया, नो लहुया, गरुयलहुया वि, अगरुयलहुया वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइया नो गरुया? नो लहुया? गरुयलहुया वि? अगरुयलहुया वि? गोयमा! विउव्विय-तेयाइं पडुच्च नो गरुया, नो लहुया, गरुयलहुया, नो अगरुयलहुया। जीवं च कम्मगं च पडुच्च नो गरुया, नो लहुया, नो गरुयलहुया, अगरुयलहुया। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नेरइया नो गरुया, नो लहुया, गरुयलहुया वि, अगरुयलहुया वि। एवं जाव वेमाणिया, नवरं–नाणत्तं जाणियव्वं सरीरेहिं। धम्मत्थिकाए णं भंते! किं गरुए? लहुए? गरुयलहुए? अगरुयलहुए? गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, नो गरुयलहुए, अगरुयलहुए। अहम्मत्थिकाए णं भंते! किं गरुए? लहुए? गरुयलहुए? अगरुयलहुए? गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, नो गरुयलहुए, अगरुयलहुए। आगासत्थिकाए णं भंते! किं गरुए? लहुए? गरुयलहुए? अगरुयलहुए? गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, नो गरुयलहुए, अगरुयलहुए। जीवत्थिकाए णं भंते! किं गरुए? लहुए? गरुयलहुए? अगरुयलहुए? गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, नो गरुयलहुए, अगरुयलहुए। पोग्गलत्थिकाए णं भंते! किं गरुए? लहुए? गरुयलहुए? अगरुयलहुए? गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, गरुयलहुए वि, अगरुयलहुए वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–णो गरुए? नो लहुए? गरुयलहुए वि? अगरुयलहुए वि? गोयमा! गरुयलहुयदव्वाइं पडुच्च नो गरुए, नो लहुए, गरुयलहुए, नो अगरुयलहुए। अगरुयलहुयदव्वाइं पडुच्च नो गरुए, नो लहुए, नो गरुयलहुए, अगरुयलहुए। समया णं भंते! किं गरुया? लहुया? गरुयलहुया? अगरुयलहुया? गोयमा! नो गरुया, नो लहुया, नो गरुयलहुया, अगरुयलहुया। कम्माणि णं भंते! किं गरुयाइं? लहुयाइं? गरुयलहुयाइं? अगरुयलहुयाइं? गोयमा! नो गरुयाइं, नो लहुयाइं, नो गरुयलहुयाइं, अगरुयलहुयाइं। कण्हलेस्सा णं भंते! किं गरुया? लहुया? गरुयलहुया? अगरुयलहुया? गोयमा! नो गरुया, नो लहुया, गरुयलहुया वि, अगरुयलहुया वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–कण्हलेस्सा नो गरुया? नो लहुया? गरुयलहुया वि? अगरुयलहुया वि? गोयमा! दव्वलेस्सं पडुच्च ततियपदेणं, भावलेस्सं पडुच्च चउत्थपदेणं। एवं जाव सुक्कलेसा। दिट्ठी-दंसण-नाण-अन्नाणं-सण्णाओ चउत्थएणं पदेणं नेतव्वाओ। हेट्ठिल्ला चत्तारि सरीरा नेयव्वा ततिएणं पदेणं। कम्मयं चउत्थएणं पदेणं। मनजोगो, वइजोगो चउत्थएणं पदेणं, कायजोगो ततिएणं पदेणं। सागारोवओगो, अनागारोवओगो चउत्थएणं पदेणं। सव्वदव्वा, सव्वपएसा, सव्वपज्जवा जहा पोग्गलत्थिकाओ। तीतद्धा, अनागतद्धा, सव्वद्धा चउत्थएणं पदेणं। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! क्या सातवाँ अवकाशान्तर गुरु है, अथवा वह लघु है, या गुरुलघु है, अथवा अगुरुलघु है ? गौतम! वह गुरु नहीं है, लघु नहीं है, गुरु – लघु नहीं है, किन्तु अगुरुलघु है। भगवन् ! सप्तम तनुवात क्या गुरु है, लघु है या गुरुलघु है अथवा अगुरुलघु है ? गौतम ! वह गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किन्तु गुरु – लघु है; अगुरुलघु नहीं है। इस प्रकार सप्तम – घनवात, सप्तम घनोदधि और सप्तम पृथ्वी के विषय में भी जानना चाहिए। जैसा सातवें अवकाशान्तर के विषय में कहा है, वैसा ही सभी अवकाशान्तरों के विषय में समझना चाहिए। तनुवात के विषय में जैसा कहा है, वैसा ही सभी घनवात, घनोदधि, पृथ्वी, द्वीप, समुद्र और क्षेत्रों के विषय में भी जानना चाहिए। भगवन् ! नारक जीव गुरु हैं, लघु हैं, गुरु – लघु हैं या अगुरुलघु हैं ? गौतम ! नारक जीव गुरु नहीं हैं, लघु नहीं, किन्तु गुरुलघु हैं और अगुरुलघु भी हैं। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! वैक्रिय और तैजस शरीर की अपेक्षा नारक जीव गुरु नहीं हैं, लघु नहीं हैं, अगुरुलघु भी नहीं हैं; किन्तु गुरु – लघु हैं। किन्तु जीव और कार्मणशरीर की अपेक्षा नारक जीव गुरु नहीं हैं, लघु भी नहीं हैं, गुरु – लघु भी नहीं हैं, किन्तु अगुरुलघु हैं। इस कारण हे गौतम ! पूर्वोक्त कथन किया गया है। इसी प्रकार वैमानिकों (अन्तिम दण्डक) तक जानना चाहिए, किन्तु विशेष यह है कि शरीरों में भिन्नता कहना चाहिए। धर्मास्तिकाय से लेकर यावत् जीवास्तिकाय तक चौथे पद से (अगुरुलघु) जानना चाहिए। भगवन् ! पुद् – गलास्तिकाय क्या गुरु है, लघु है, गुरुलघु है अथवा अगुरुलघु है ? गौतम ! पुद्गलास्तिकाय न गुरु है, न लघु है, किन्तु गुरुलघु है और अगुरुलघु भी है। भगवन् ! इसका क्या कारण है ? गौतम ! गुरुलघु द्रव्यों की अपेक्षा पुद्ग – लास्तिकाय गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किन्तु गुरुलघु है, अगुरुलघु नहीं है। अगुरुलघु द्रव्यों की अपेक्षा पुद्गलास्ति – काय गुरु नहीं, लघु नहीं है, न गुरु – लघु है, किन्तु अगुरुलघु है। समय और कार्मण शरीर अगुरुलघु हैं। भगवन् ! कृष्णलेश्या क्या गुरु है, लघु है ? या गुरुलघु है अथवा अगुरुलघु है ? गौतम ! कृष्णलेश्या गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किन्तु गुरुलघु है और अगुरुलघु भी है। भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है ? गौतम ! द्रव्यलेश्या की अपेक्षा तृतीय पद से (अर्थात् – गुरुलघु) जानना चाहिए, और भावलेश्या की अपेक्षा चौथे पद से (अर्थात् अगुरुलघु) जानना चाहिए। इसी प्रकार शुक्ललेश्या तक जानना चाहिए। दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, अज्ञान और संज्ञा को भी चतुर्थ पद से (अगुरुलघु) जानना चाहिए। आदि के चारों शरीरों – औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस शरीर – को तृतीय पद से (गुरुलघु) जानना चाहिए, तथा कार्मण शरीर को चतुर्थ पद से (अगुरुलघु) जानना चाहिए। मनोयोग और वचनयोग को चतुर्थ पद से (अगुरुलघु) और काययोग को तृतीय पद से (गुरुलघु) जानना चाहिए। साकारोपयोग और अनाकारोपयोग को चतुर्थ पद से जानना चाहिए। सर्वद्रव्य, सर्वप्रदेश और सर्वपर्याय पुद्गलास्तिकाय के समान समझना चाहिए। अतीतकाल, अनागत काल और सर्वकाल चौथे पद से अर्थात् अगुरुलघु जानना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] sattame nam bhamte! Ovasamtare kim garue? Lahue? Garuyalahue? Agaruyalahue? Goyama! No garue, no lahue, no garuyalahue, agaruyalahue. Sattame nam bhamte! Tanuvae kim garue? Lahue? Garuyalahue? Agaruyalahue? Goyama! No garue, no lahue, garuyalahue, no agaruyalahue. Evam sattame ghanavae, sattame ghanodahi, sattama pudhavi. Ovasamtaraim savvaim jaha sattame ovasamtare. Jaha tanuvae evam–ovasa-vaya-ghanaudahi, pudhavi diva ya sagara vasa. Neraiya nam bhamte! Kim garuya? Lahuya? Garuyalahuya? Agaruyalahuya? Goyama! No garuya, no lahuya, garuyalahuya vi, agaruyalahuya vi. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–neraiya no garuya? No lahuya? Garuyalahuya vi? Agaruyalahuya vi? Goyama! Viuvviya-teyaim paduchcha no garuya, no lahuya, garuyalahuya, no agaruyalahuya. Jivam cha kammagam cha paduchcha no garuya, no lahuya, no garuyalahuya, agaruyalahuya. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–neraiya no garuya, no lahuya, garuyalahuya vi, agaruyalahuya vi. Evam java vemaniya, navaram–nanattam janiyavvam sarirehim. Dhammatthikae nam bhamte! Kim garue? Lahue? Garuyalahue? Agaruyalahue? Goyama! No garue, no lahue, no garuyalahue, agaruyalahue. Ahammatthikae nam bhamte! Kim garue? Lahue? Garuyalahue? Agaruyalahue? Goyama! No garue, no lahue, no garuyalahue, agaruyalahue. Agasatthikae nam bhamte! Kim garue? Lahue? Garuyalahue? Agaruyalahue? Goyama! No garue, no lahue, no garuyalahue, agaruyalahue. Jivatthikae nam bhamte! Kim garue? Lahue? Garuyalahue? Agaruyalahue? Goyama! No garue, no lahue, no garuyalahue, agaruyalahue. Poggalatthikae nam bhamte! Kim garue? Lahue? Garuyalahue? Agaruyalahue? Goyama! No garue, no lahue, garuyalahue vi, agaruyalahue vi. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–no garue? No lahue? Garuyalahue vi? Agaruyalahue vi? Goyama! Garuyalahuyadavvaim paduchcha no garue, no lahue, garuyalahue, no agaruyalahue. Agaruyalahuyadavvaim paduchcha no garue, no lahue, no garuyalahue, agaruyalahue. Samaya nam bhamte! Kim garuya? Lahuya? Garuyalahuya? Agaruyalahuya? Goyama! No garuya, no lahuya, no garuyalahuya, agaruyalahuya. Kammani nam bhamte! Kim garuyaim? Lahuyaim? Garuyalahuyaim? Agaruyalahuyaim? Goyama! No garuyaim, no lahuyaim, no garuyalahuyaim, agaruyalahuyaim. Kanhalessa nam bhamte! Kim garuya? Lahuya? Garuyalahuya? Agaruyalahuya? Goyama! No garuya, no lahuya, garuyalahuya vi, agaruyalahuya vi. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–kanhalessa no garuya? No lahuya? Garuyalahuya vi? Agaruyalahuya vi? Goyama! Davvalessam paduchcha tatiyapadenam, bhavalessam paduchcha chautthapadenam. Evam java sukkalesa. Ditthi-damsana-nana-annanam-sannao chautthaenam padenam netavvao. Hetthilla chattari sarira neyavva tatienam padenam. Kammayam chautthaenam padenam. Manajogo, vaijogo chautthaenam padenam, kayajogo tatienam padenam. Sagarovaogo, anagarovaogo chautthaenam padenam. Savvadavva, savvapaesa, savvapajjava jaha poggalatthikao. Titaddha, anagataddha, savvaddha chautthaenam padenam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Kya satavam avakashantara guru hai, athava vaha laghu hai, ya gurulaghu hai, athava agurulaghu hai\? Gautama! Vaha guru nahim hai, laghu nahim hai, guru – laghu nahim hai, kintu agurulaghu hai. Bhagavan ! Saptama tanuvata kya guru hai, laghu hai ya gurulaghu hai athava agurulaghu hai\? Gautama ! Vaha guru nahim hai, laghu nahim hai, kintu guru – laghu hai; agurulaghu nahim hai. Isa prakara saptama – ghanavata, saptama ghanodadhi aura saptama prithvi ke vishaya mem bhi janana chahie. Jaisa satavem avakashantara ke vishaya mem kaha hai, vaisa hi sabhi avakashantarom ke vishaya mem samajhana chahie. Tanuvata ke vishaya mem jaisa kaha hai, vaisa hi sabhi ghanavata, ghanodadhi, prithvi, dvipa, samudra aura kshetrom ke vishaya mem bhi janana chahie. Bhagavan ! Naraka jiva guru haim, laghu haim, guru – laghu haim ya agurulaghu haim\? Gautama ! Naraka jiva guru nahim haim, laghu nahim, kintu gurulaghu haim aura agurulaghu bhi haim. Bhagavan ! Kisa karana se aisa kaha jata hai\? Gautama ! Vaikriya aura taijasa sharira ki apeksha naraka jiva guru nahim haim, laghu nahim haim, agurulaghu bhi nahim haim; kintu guru – laghu haim. Kintu jiva aura karmanasharira ki apeksha naraka jiva guru nahim haim, laghu bhi nahim haim, guru – laghu bhi nahim haim, kintu agurulaghu haim. Isa karana he gautama ! Purvokta kathana kiya gaya hai. Isi prakara vaimanikom (antima dandaka) taka janana chahie, kintu vishesha yaha hai ki sharirom mem bhinnata kahana chahie. Dharmastikaya se lekara yavat jivastikaya taka chauthe pada se (agurulaghu) janana chahie. Bhagavan ! Pud – galastikaya kya guru hai, laghu hai, gurulaghu hai athava agurulaghu hai\? Gautama ! Pudgalastikaya na guru hai, na laghu hai, kintu gurulaghu hai aura agurulaghu bhi hai. Bhagavan ! Isaka kya karana hai\? Gautama ! Gurulaghu dravyom ki apeksha pudga – lastikaya guru nahim hai, laghu nahim hai, kintu gurulaghu hai, agurulaghu nahim hai. Agurulaghu dravyom ki apeksha pudgalasti – kaya guru nahim, laghu nahim hai, na guru – laghu hai, kintu agurulaghu hai. Samaya aura karmana sharira agurulaghu haim. Bhagavan ! Krishnaleshya kya guru hai, laghu hai\? Ya gurulaghu hai athava agurulaghu hai\? Gautama ! Krishnaleshya guru nahim hai, laghu nahim hai, kintu gurulaghu hai aura agurulaghu bhi hai. Bhagavan ! Aisa kahane ka kya karana hai\? Gautama ! Dravyaleshya ki apeksha tritiya pada se (arthat – gurulaghu) janana chahie, aura bhavaleshya ki apeksha chauthe pada se (arthat agurulaghu) janana chahie. Isi prakara shuklaleshya taka janana chahie. Drishti, darshana, jnyana, ajnyana aura samjnya ko bhi chaturtha pada se (agurulaghu) janana chahie. Adi ke charom sharirom – audarika, vaikriya, aharaka aura taijasa sharira – ko tritiya pada se (gurulaghu) janana chahie, tatha karmana sharira ko chaturtha pada se (agurulaghu) janana chahie. Manoyoga aura vachanayoga ko chaturtha pada se (agurulaghu) aura kayayoga ko tritiya pada se (gurulaghu) janana chahie. Sakaropayoga aura anakaropayoga ko chaturtha pada se janana chahie. Sarvadravya, sarvapradesha aura sarvaparyaya pudgalastikaya ke samana samajhana chahie. Atitakala, anagata kala aura sarvakala chauthe pada se arthat agurulaghu janana. |