Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003598
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-१

Translated Chapter :

शतक-१

Section : उद्देशक-९ गुरुत्त्व Translated Section : उद्देशक-९ गुरुत्त्व
Sutra Number : 98 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे कालासवेसियपुत्ते नामं अनगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता थेरे भगवंते एवं वयासी– थेरा सामाइयं न याणंति, थेरा सामाइयस्स अट्ठं न याणंति। थेरा पच्चक्खाणं न याणंति, थेरा पच्चक्खाणस्स अट्ठं न याणंति। थेरा संजमं न याणंति, थेरा संजमस्स अट्ठं न याणंति। थेरा संवरं न याणंति, थेरा संवरस्स अट्ठं न याणंति। थेरा विवेगं न याणंति, थेरा विवेगस्स अट्ठं ण याणंति। थेरा विउस्सग्गं न याणंति, थेरा विउस्सगस्स अट्ठं न याणंति। तए णं थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अनगारं एवं वदासी– जाणामो णं अज्जो! सामाइयं, जाणामो णं अज्जो! सामाइयस्स अट्ठं। जाणामो णं अज्जो! पच्चक्खाणं, जाणामो णं अज्जो! पच्चक्खाणस्स अट्ठं। जाणामो णं अज्जो! संजमं, जाणामो णं अज्जो! संजमस्स अट्ठं। जाणामो णं अज्जो! संवरं, जाणामो णं अज्जो! संवरस्स अट्ठं। जाणामो णं अज्जो! विवेगं, जाणामो णं अज्जो! विवेगस्स अट्ठं। जाणामो णं अज्जो! विउस्सग्गं, जाणामो णं अज्जो! विउस्सग्गस्स अट्ठं। तते णं से कालासवेसियपुत्ते अनगारे ते थेरे भगवंते एवं वयासी–जइ णं अज्जो! तुब्भे जाणह सामाइयं, तुब्भे जाणह समाइयस्स अट्ठं जाव जइ णं अज्जो! तुब्भे जाणह विउस्सग्गं, तुब्भे जाणह विउस्सग्गस्स अट्ठं। के भे अज्जो! सामाइए? के भे अज्जो! सामाइयस्स अट्ठे? जाव के भे अज्जो! विउस्सग्गे? के भे अज्जो! विउस्सग्गस्स अट्ठे? तए णं थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अनगारं एवं वयासी– आया णे अज्जो! सामाइए, आया णे अज्जो! सामाइयस्स अट्ठे। आया णे अज्जो! पच्चक्खाणे, आया णे अज्जो! पच्चक्खाणस्स अट्ठे। आया णे अज्जो! संजमे, आया णे अज्जो! संजमस्स अट्ठे। आया णे अज्जो! संवरे, आया णे अज्जो! संवरस्स अट्ठे। आया णे अज्जो! विवेगे, आया णे अज्जो! विवेगस्स अट्ठे। आया णे अज्जो! विउस्सग्गे, आया णे अज्जो! विउस्सग्गस्स अट्ठे। तए णं से कालासवेसियपुत्ते अनगारे थेरे भगवंते एवं वदासी– जइ मे अज्जो! आया सामाइए, आया सामाइयस्स अट्ठे जाव आया विउस्सग्गस्स अट्ठे–अवहट्टु कोह-मान-माया-लोभे किमट्ठं अज्जो! गरहह? कालासा! संजमट्ठयाए। से भंते! किं गरहा संजमे? अगरहा संजमे? कालासा! गरहा संजमे, नो अगरहा संजमे। गरहा वि य णं सव्वं दोसं पविणेति, सव्वं बालियं परिण्णाए। एवं खु णे आया संजमे उवहिते भवति। एवं खु णे आया संजमे उवचिए भवति। एवं खु णे आया संजमे उवट्ठिते भवति। एत्थ णं से कालासवेसियपुत्ते अनगारे संबुद्धे थेरे भगवंते वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एएसि णं भंते! पयाणं पुव्विं अन्नाणयाए असवणयाए अबोहीए अनभिगमेणं अदिट्ठाणं अस्सुयाणं अमुयाणं अविण्णायाणं अव्वोकडाणं अव्वोच्छिन्नाणं अनिज्जूढाणं अणुवधारियाणं एयमट्ठे नो सद्दहिए नो पत्तिइए नो रोइए। इदानिं भंते! एतेसिं पयाणं जाणयाए सवणयाए बोहीए अभिगमेणं दिट्ठाणं सुयाणं मुयाणं विण्णायाणं वोगडाणं वोच्छिन्नाणं निज्जूढाणं उवधारियाणं एयमट्ठं सद्दहामि पत्तियामि रोएमि। एवमेयं से जहेयं तुब्भे वदह। तए णं ते थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अनगारं एवं वयासी–सद्दहाहि अज्जो! पत्तियाहि अज्जो! रोएहि अज्जो! से जहीयं अम्हे वदामो। तए णं से कालासवेसियपुत्ते अनगारे थेरे भगवंते वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदसी–इच्छामि णं भंते! तुब्भं अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं। तए णं से कालासवेसियपुत्ते अनगारे थेरे भगवंते वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरति। तए णं से कालासवेसियपुत्ते अनगारे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता जस्सट्ठाए कीरइ नग्ग भावे मुंडभावे अण्हाणयं अदंतवणयं अच्छत्तयं अनोवाहणयं भूमिसेज्जा फलसेज्जा कट्ठसेज्जा केसलोओ बंभचेरवासो परघरप्पवेसो लद्धावलद्धी उच्चावया गामकंटगा बावीसं परिसहोवसग्गा अहियासिज्जंति, तमट्ठं आराहेइ, आराहेत्ता चरमेहिं उस्सास-नीसासेहिं सिद्धे बुद्धे मुक्के परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीने।
Sutra Meaning : उस काल और उस समय (भगवान महावीर के शासनकाल) में पार्श्वापत्यीय कालास्यवेषिपुत्र नामक अनगार जहाँ (भगवान महावीर के) स्थविर भगवान बिराजमान थे, वहाँ गए। स्थविर भगवंतों से उन्होंने कहा – ‘हे स्थविरो ! आप सामयिक को नहीं जानते, सामयिक के अर्थ को नहीं जानते, आप प्रत्याख्यान को नहीं जानते और प्रत्याख्यान के अर्थ को नहीं जानते; आप संयम को नहीं जानते और संयम के अर्थ को नहीं जानते; आप संवर को नहीं जानते, संवर के अर्थ को नहीं जानते; हे स्थविरो ! आप विवेक को नहीं जानते और विवेक के अर्थ को नहीं जानते हैं, तथा आप व्युत्सर्ग को नहीं जानते और न व्युत्सर्ग के अर्थ को जानते हैं। तब उन स्थविर भगवंतों ने कालास्यवेषिपुत्र अनगार से इस प्रकार कहा – ‘हे आर्य ! हम सामायिक को जानते हैं, सामायिक के अर्थ को भी जानते हैं, यावत्‌ हम व्युत्सर्ग को जानते हैं और व्युत्सर्ग के अर्थ को भी जानते हैं। उसके पश्चात्‌ कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने उन स्थविर भगवंतों से इस प्रकार कहा – हे आर्यो ! यदि आप सामयिक को (जानते हैं), यावत्‌ व्युत्सर्ग को एवं व्युतसर्ग के अर्थ को जानते हैं, तो बतलाइए कि सामायिक क्या है और सामायिक का अर्थ क्या है ? यावत्‌ व्युत्सर्ग क्या है और व्युत्सर्ग का अर्थ क्या है ? तब उन स्थविर भगवंतों ने इस प्रकार कहा कि – हे आर्य ! हमारी आत्मा सामायिक है, हमारी आत्मा सामायिक का अर्थ है; यावत्‌ हमारी आत्मा व्युत्सर्ग है, हमारी आत्मा ही व्युत्सर्ग का अर्थ है। इस पर कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने उन स्थविर भगवंतों से इस प्रकार पूछा – हे आर्यो ! यदि आत्मा ही सामायिक है, यावत्‌ आत्मा ही व्युत्सर्ग का अर्थ है, तो आप क्रोध, मान, माया और लोभ का परित्याग करके क्रोधादि की गर्हा – निन्दा क्यों करते हैं ? हे कालास्यवेषिपुत्र ! हम संयम के लिए क्रोध आदि की गर्हा करते हैं। तो हे भगवन्‌ ! क्या गर्हा संयम है या अगर्हा संयम है ? हे कालास्यवेषिपुत्र ! गर्हा (पापों की निन्दा) संयम है, अगर्हा संयम नहीं है। गर्हा सब दोषों को दूर करती है – आत्मा समस्त मिथ्यात्व को जानकर गर्हा द्वारा दोष – निवारण करता है। इस प्रकार हमारी आत्मा संयम में पुष्ट होती है, और इसी प्रकार हमारी आत्मा संयम में उपस्थित होती है। वह कालास्यवेषिपुत्र अनगार बोध को प्राप्त हुए और उन्होंने स्थविर भगवंतों को, वन्दना – नमस्कार करके कहा – ‘हे भगवन्‌ ! इन (पूर्वोक्त) पदों को न जानने से, पहले सूने हुए न होने से, बोध न होने से, अभिगम न होने से, दृष्ट न होने से, विचारित न होने से, सूने हुए न होने से, विशेषरूप से न जानने से, कहे हुए न होने से, अनिर्णीत होने से, उद्‌धृत न होने से, और ये पद अवधारण किये हुए न होने से इस अर्थ में श्रद्धा नहीं की थी, प्रतीति नहीं की थी, रुचि नहीं की थी; किन्तु भगवन्‌ ! अब इन (पदों) को जान लेने से, सून लेने से, बोध होने से, अभिगम होने से, दृष्ट होने से, चिन्तित होने से, श्रुत होने से, विशेष जान लेने से, (आपके द्वारा) कथित होने से, निर्णीत होने से, उद्धृत होने से और इन पदों का अवधारण करने से इस अर्थ पर मैं श्रद्धा करता हूँ, प्रतीति करता हूँ, रुचि करता हूँ, हे भगवन्‌ ! आप जो यह कहते हैं, वह यथार्थ है, वह इसी प्रकार है। तब उन स्थविर भगवंतों ने कालास्यवेषिपुत्र अनगार से कहा – हे आर्य ! हम जैसा कहते हैं उस पर वैसी ही श्रद्धा करो, आर्य ! उस पर प्रतीति करो, आर्य ! उसमें रुचि रखो। तत्पश्चात्‌ कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने उन स्थविर भगवंतों को वन्दना की, नमस्कार किया, और तब वह इस प्रकार बोले – ‘हे भगवन्‌ ! पहले मैंने (भगवान पार्श्वनाथ का) चातुर्यामधर्म स्वीकार किया है, अब मैं आपके पास प्रतिक्रमणसहित पंचमहाव्रतरूप धर्म स्वीकार करके विचरण करना चाहता हूँ। (स्थविर – ) हे देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो, वैसे करो। परन्तु (इस शुभकार्य में) विलम्ब न करो। तदनन्तर कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने स्थविर भगवंतों की वन्दना की, नमस्कार किया, और फिर चातुर्याम धर्म के स्थान पर प्रतिक्रमणसहित पंचमहाव्रत वाला धर्म स्वीकार किया और विचरण करने लगे। इसके पश्चात्‌ कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने बहुत वर्षों तक श्रमणपर्याय का पालन किया और जिस प्रयोजन से नग्नभाव, मुण्डभाव, अस्नान, अदन्तधावन, छत्रवर्जन, पैरों में जूते न पहनना, भूमिशयन, फलक पर शय्या, काष्ठ पर शयन, केशलोच, ब्रह्मचर्यवास, भिक्षार्थ गृहस्थों के घरों में प्रवेश, लाभ और अलाभ, अनुकूल और प्रतिकूल, इन्द्रियसमूह के लिए कण्टकसम चुभने वाले कठोर शब्दादि इत्यादि २२ परीषहों को सहन करना, इन सब का स्वीकार किया, उस अभीष्ट प्रयोजन की सम्यक्‌रूप से आराधना की। और वह अन्तिम उच्छ्‌वास – निःश्वास द्वारा सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए और समस्त दुःखों से रहित हुए।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tenam kalenam tenam samaenam pasavachchijje kalasavesiyaputte namam anagare jeneva thera bhagavamto teneva uvagachchhati uvagachchhitta there bhagavamte evam vayasi– Thera samaiyam na yanamti, thera samaiyassa attham na yanamti. Thera pachchakkhanam na yanamti, thera pachchakkhanassa attham na yanamti. Thera samjamam na yanamti, thera samjamassa attham na yanamti. Thera samvaram na yanamti, thera samvarassa attham na yanamti. Thera vivegam na yanamti, thera vivegassa attham na yanamti. Thera viussaggam na yanamti, thera viussagassa attham na yanamti. Tae nam thera bhagavamto kalasavesiyaputtam anagaram evam vadasi– Janamo nam ajjo! Samaiyam, janamo nam ajjo! Samaiyassa attham. Janamo nam ajjo! Pachchakkhanam, janamo nam ajjo! Pachchakkhanassa attham. Janamo nam ajjo! Samjamam, janamo nam ajjo! Samjamassa attham. Janamo nam ajjo! Samvaram, janamo nam ajjo! Samvarassa attham. Janamo nam ajjo! Vivegam, janamo nam ajjo! Vivegassa attham. Janamo nam ajjo! Viussaggam, janamo nam ajjo! Viussaggassa attham. Tate nam se kalasavesiyaputte anagare te there bhagavamte evam vayasi–jai nam ajjo! Tubbhe janaha samaiyam, tubbhe janaha samaiyassa attham java jai nam ajjo! Tubbhe janaha viussaggam, tubbhe janaha viussaggassa attham. Ke bhe ajjo! Samaie? Ke bhe ajjo! Samaiyassa atthe? Java ke bhe ajjo! Viussagge? Ke bhe ajjo! Viussaggassa atthe? Tae nam thera bhagavamto kalasavesiyaputtam anagaram evam vayasi– Aya ne ajjo! Samaie, aya ne ajjo! Samaiyassa atthe. Aya ne ajjo! Pachchakkhane, aya ne ajjo! Pachchakkhanassa atthe. Aya ne ajjo! Samjame, aya ne ajjo! Samjamassa atthe. Aya ne ajjo! Samvare, aya ne ajjo! Samvarassa atthe. Aya ne ajjo! Vivege, aya ne ajjo! Vivegassa atthe. Aya ne ajjo! Viussagge, aya ne ajjo! Viussaggassa atthe. Tae nam se kalasavesiyaputte anagare there bhagavamte evam vadasi– Jai me ajjo! Aya samaie, aya samaiyassa atthe java aya viussaggassa atthe–avahattu koha-mana-maya-lobhe kimattham ajjo! Garahaha? Kalasa! Samjamatthayae. Se bhamte! Kim garaha samjame? Agaraha samjame? Kalasa! Garaha samjame, no agaraha samjame. Garaha vi ya nam savvam dosam pavineti, savvam baliyam parinnae. Evam khu ne aya samjame uvahite bhavati. Evam khu ne aya samjame uvachie bhavati. Evam khu ne aya samjame uvatthite bhavati. Ettha nam se kalasavesiyaputte anagare sambuddhe there bhagavamte vamdati namamsati, vamditta namamsitta evam vayasi–eesi nam bhamte! Payanam puvvim annanayae asavanayae abohie anabhigamenam aditthanam assuyanam amuyanam avinnayanam avvokadanam avvochchhinnanam anijjudhanam anuvadhariyanam eyamatthe no saddahie no pattiie no roie. Idanim bhamte! Etesim payanam janayae savanayae bohie abhigamenam ditthanam suyanam muyanam vinnayanam vogadanam vochchhinnanam nijjudhanam uvadhariyanam eyamattham saddahami pattiyami roemi. Evameyam se jaheyam tubbhe vadaha. Tae nam te thera bhagavamto kalasavesiyaputtam anagaram evam vayasi–saddahahi ajjo! Pattiyahi ajjo! Roehi ajjo! Se jahiyam amhe vadamo. Tae nam se kalasavesiyaputte anagare there bhagavamte vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vadasi–ichchhami nam bhamte! Tubbham amtie chaujjamao dhammao pamchamahavvaiyam sapadikkamanam dhammam uvasampajjitta nam viharittae. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham. Tae nam se kalasavesiyaputte anagare there bhagavamte vamdai namamsai, vamditta namamsitta chaujjamao dhammao pamchamahavvaiyam sapadikkamanam dhammam uvasampajjitta nam viharati. Tae nam se kalasavesiyaputte anagare bahuni vasani samannapariyagam paunai, paunitta jassatthae kirai nagga bhave mumdabhave anhanayam adamtavanayam achchhattayam anovahanayam bhumisejja phalasejja katthasejja kesaloo bambhacheravaso paragharappaveso laddhavaladdhi uchchavaya gamakamtaga bavisam parisahovasagga ahiyasijjamti, tamattham arahei, arahetta charamehim ussasa-nisasehim siddhe buddhe mukke parinivvude savvadukkhappahine.
Sutra Meaning Transliteration : Usa kala aura usa samaya (bhagavana mahavira ke shasanakala) mem parshvapatyiya kalasyaveshiputra namaka anagara jaham (bhagavana mahavira ke) sthavira bhagavana birajamana the, vaham gae. Sthavira bhagavamtom se unhomne kaha – ‘he sthaviro ! Apa samayika ko nahim janate, samayika ke artha ko nahim janate, apa pratyakhyana ko nahim janate aura pratyakhyana ke artha ko nahim janate; apa samyama ko nahim janate aura samyama ke artha ko nahim janate; apa samvara ko nahim janate, samvara ke artha ko nahim janate; he sthaviro ! Apa viveka ko nahim janate aura viveka ke artha ko nahim janate haim, tatha apa vyutsarga ko nahim janate aura na vyutsarga ke artha ko janate haim. Taba una sthavira bhagavamtom ne kalasyaveshiputra anagara se isa prakara kaha – ‘he arya ! Hama samayika ko janate haim, samayika ke artha ko bhi janate haim, yavat hama vyutsarga ko janate haim aura vyutsarga ke artha ko bhi janate haim. Usake pashchat kalasyaveshiputra anagara ne una sthavira bhagavamtom se isa prakara kaha – he aryo ! Yadi apa samayika ko (janate haim), yavat vyutsarga ko evam vyutasarga ke artha ko janate haim, to batalaie ki samayika kya hai aura samayika ka artha kya hai\? Yavat vyutsarga kya hai aura vyutsarga ka artha kya hai\? Taba una sthavira bhagavamtom ne isa prakara kaha ki – he arya ! Hamari atma samayika hai, hamari atma samayika ka artha hai; yavat hamari atma vyutsarga hai, hamari atma hi vyutsarga ka artha hai. Isa para kalasyaveshiputra anagara ne una sthavira bhagavamtom se isa prakara puchha – he aryo ! Yadi atma hi samayika hai, yavat atma hi vyutsarga ka artha hai, to apa krodha, mana, maya aura lobha ka parityaga karake krodhadi ki garha – ninda kyom karate haim\? He kalasyaveshiputra ! Hama samyama ke lie krodha adi ki garha karate haim. To he bhagavan ! Kya garha samyama hai ya agarha samyama hai\? He kalasyaveshiputra ! Garha (papom ki ninda) samyama hai, agarha samyama nahim hai. Garha saba doshom ko dura karati hai – atma samasta mithyatva ko janakara garha dvara dosha – nivarana karata hai. Isa prakara hamari atma samyama mem pushta hoti hai, aura isi prakara hamari atma samyama mem upasthita hoti hai. Vaha kalasyaveshiputra anagara bodha ko prapta hue aura unhomne sthavira bhagavamtom ko, vandana – namaskara karake kaha – ‘he bhagavan ! Ina (purvokta) padom ko na janane se, pahale sune hue na hone se, bodha na hone se, abhigama na hone se, drishta na hone se, vicharita na hone se, sune hue na hone se, vishesharupa se na janane se, kahe hue na hone se, anirnita hone se, uddhrita na hone se, aura ye pada avadharana kiye hue na hone se isa artha mem shraddha nahim ki thi, pratiti nahim ki thi, ruchi nahim ki thi; kintu bhagavan ! Aba ina (padom) ko jana lene se, suna lene se, bodha hone se, abhigama hone se, drishta hone se, chintita hone se, shruta hone se, vishesha jana lene se, (apake dvara) kathita hone se, nirnita hone se, uddhrita hone se aura ina padom ka avadharana karane se isa artha para maim shraddha karata hum, pratiti karata hum, ruchi karata hum, he bhagavan ! Apa jo yaha kahate haim, vaha yathartha hai, vaha isi prakara hai. Taba una sthavira bhagavamtom ne kalasyaveshiputra anagara se kaha – he arya ! Hama jaisa kahate haim usa para vaisi hi shraddha karo, arya ! Usa para pratiti karo, arya ! Usamem ruchi rakho. Tatpashchat kalasyaveshiputra anagara ne una sthavira bhagavamtom ko vandana ki, namaskara kiya, aura taba vaha isa prakara bole – ‘he bhagavan ! Pahale maimne (bhagavana parshvanatha ka) chaturyamadharma svikara kiya hai, aba maim apake pasa pratikramanasahita pamchamahavratarupa dharma svikara karake vicharana karana chahata hum. (sthavira – ) he devanupriya ! Jaise tumhem sukha ho, vaise karo. Parantu (isa shubhakarya mem) vilamba na karo. Tadanantara kalasyaveshiputra anagara ne sthavira bhagavamtom ki vandana ki, namaskara kiya, aura phira chaturyama dharma ke sthana para pratikramanasahita pamchamahavrata vala dharma svikara kiya aura vicharana karane lage. Isake pashchat kalasyaveshiputra anagara ne bahuta varshom taka shramanaparyaya ka palana kiya aura jisa prayojana se nagnabhava, mundabhava, asnana, adantadhavana, chhatravarjana, pairom mem jute na pahanana, bhumishayana, phalaka para shayya, kashtha para shayana, keshalocha, brahmacharyavasa, bhikshartha grihasthom ke gharom mem pravesha, labha aura alabha, anukula aura pratikula, indriyasamuha ke lie kantakasama chubhane vale kathora shabdadi ityadi 22 parishahom ko sahana karana, ina saba ka svikara kiya, usa abhishta prayojana ki samyakrupa se aradhana ki. Aura vaha antima uchchhvasa – nihshvasa dvara siddha, buddha, mukta hue aura samasta duhkhom se rahita hue.