Sutra Navigation: Samavayang ( समवयांग सूत्र )

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Sr No : 1003320
Scripture Name( English ): Samavayang Translated Scripture Name : समवयांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

समवाय प्रकीर्णक

Translated Chapter :

समवाय प्रकीर्णक

Section : Translated Section :
Sutra Number : 220 Category : Ang-04
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] से किं तं समवाए? समवाए णं ससमया सूइज्जंति परसमया सूइज्जंति ससमयपरसमया सूइज्जंति जीवा सूइज्जंति अजीवा सूइज्जंति जीवाजीवा सूइज्जंति लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति। समवाए णं एकादियाणं एगत्थाणं एगुत्तरियपरिवुड्ढीय, दुवालसंगस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समणुगाइज्जइ, ठाणगसयस्स बारसविहवित्थरस्स सुयणाणस्स जगजीवहियस्स भगवओ समासेणं समायारे आहिज्जति, तत्थ य नानाविहप्पगारा जीवाजीवा य वण्णिया वित्थरेण अवरे वि य बहुविहा विसेसा नरग-तिरिय-मणुय-सुरगणाणं अहारुस्सास-लेस-आवास-संख-आययप्पमाण उववाय-चयन-ओगाहणोहि-वेयण-विहाण-उवओग-जोग-इंदिय-कसाय, विविहा य जीवजोणी विक्खंभु-स्सेह-परिरय-प्पमाणं विधिविसेसा य मंदरादीणं महीधराणं कुलगर-तित्थगर-गणहराणं समत्त-भरहाहिवाण चक्कीणं चेव चक्कहरहलहराण य वासाण य निग्गमा य समाए। एए अन्ने य एवमादित्थ वित्थरेणं अत्था समासिज्जंति। समवायस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्ठयाए चउत्थे अंगे एगे अज्झयणे एगे सुयक्खंधे एगे उद्देसनकाले एगे समुद्देसनकाले एगे चोयाले पदसयसहस्से पदग्गेणं, संखेज्जाणि अक्खराणि अनंता गमा अनंता पज्जवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कडा निबद्धा निकाइया जिनपन्नत्ता भावा आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति। से एवं आया एवं नाया एवं विन्नाया एवं चरण-करण-परूवणया आघविज्जति पन्न-विज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति। सेत्तं समवाए।
Sutra Meaning : समवायाङ्ग क्या है ? इसमें क्या वर्णन है ? समवायाङ्ग में स्वसमय सूचित किये जाते हैं, परसमय सूचित किये जाते हैं और स्वसमय – परसमय सूचित किये जाते हैं। जीव सूचित किये जाते हैं, अजीव सूचित किये जाते हैं और जीव – अजीव सूचित किये जाते हैं। लोक सूचित किया जाता है, अलोक सूचित किया जाता है और लोक – अलोक सूचित किया जाता है। समवायाङ्ग के द्वारा एक, दो, तीन को आदि लेकर एक – एक स्थान की परिवृद्धि करते हुए शत, सहस्त्र और कोटाकोटी तक के कितने ही पदार्थों का और द्वादशांग गणिपिटक के पल्लवाग्रों (पर्यायों के प्रमाण) का कथन किया जाता है। सौ तक के स्थानों का, तथा बारह अंगरूप में विस्तार को प्राप्त, जगत के जीवों के हितकारक भगवान श्रुतज्ञान का संक्षेप से समवतार किया जाता है। इस समवायाङ्ग में नाना प्रकार के भेद – प्रभेद वाले जीव और अजीव पदार्थ वर्णित हैं। तथा विस्तार से अन्य भी बहुत प्रकार के विशेष तत्त्वों का, नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव गणों के आहार, उच्छ्‌वास, लेश्या, आवास – संख्या, उनके आयाम – विष्कम्भ का प्रमाण, उपपात (जन्म), च्यवन (मरण), अवगाहना, उपधि, वेदना, विधान (भेद), उपयोग, योग (इन्द्रिय), कषाय, नाना प्रकार की जीव – योनियाँ, पर्वत – कूट आदि के विष्कम्भ (चौड़ाई), उत्सेध (ऊंचाई), परिरय (परिधि) के प्रमाण, मन्दर आदि महीधरों (पर्वतों) के विधि (भेद) विशेष, कुलकरों, तीर्थंकरों, गणधरों, समस्त भरतक्षेत्र के स्वामी चक्रवर्तीयों का, चक्रधर वासुदेवों और हलधरों (बलदेवों) का, क्षेत्रों का, निर्गमों को अर्थात्‌ पूर्व – पूर्व क्षेत्रों से उत्तर के (आगे के) क्षेत्रों के अधिक विस्तार का, तथा इसी प्रकार के अन्य भी पदार्थों का इस समवायाङ्ग में विस्तार से वर्णन किया गया है। समवायाङ्ग की वाचनाएं परीत हैं, अनुयोगद्वार संख्यात हैं, प्रतिपत्तियाँ संख्यात हैं, वेढ़ संख्यात हैं, श्लोक संख्यात हैं और निर्युक्तियाँ संख्यात हैं। अंग की अपेक्षा यह चौथा अंग है, इसमें एक अध्ययन है, एक श्रुतस्कन्ध है, एक उद्देशन काल है, (एक समुद्देशन – काल है), पद – गणना की अपेक्षा इसके एक लाख चवालीस हजार पद हैं। इसमें संख्यात अक्षर हैं, अनन्त गम (ज्ञान – प्रकार) हैं, अनन्त पर्याय हैं, परीत त्रस, अनन्त स्थावर तथा शाश्वत, कृत (अनित्य), निबद्ध, निकाचित जिन – प्रज्ञप्त भाव इस अंग में कहे जाते हैं, प्रज्ञापित किये जाते हैं, प्ररूपित किये जाते हैं, निदर्शित किये जाते हैं और उपदर्शित किये जाते हैं। इस अंग के द्वारा आत्मा ज्ञाता होता है, विज्ञाता होता है। इस प्रकार चरण और करण की प्ररूपणा के द्वारा वस्तु के स्वरूप का कथन, प्रज्ञापन, प्ररूपण, निदर्शन और उपदर्शन किया जाता है। यह चोथा समवायाङ्ग है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] se kim tam samavae? Samavae nam sasamaya suijjamti parasamaya suijjamti sasamayaparasamaya suijjamti jiva suijjamti ajiva suijjamti jivajiva suijjamti loge suijjati aloge suijjati logaloge suijjati. Samavae nam ekadiyanam egatthanam eguttariyaparivuddhiya, duvalasamgassa ya ganipidagassa pallavagge samanugaijjai, thanagasayassa barasavihavittharassa suyananassa jagajivahiyassa bhagavao samasenam samayare ahijjati, tattha ya nanavihappagara jivajiva ya vanniya vittharena avare vi ya bahuviha visesa naraga-tiriya-manuya-suragananam aharussasa-lesa-avasa-samkha-ayayappamana uvavaya-chayana-ogahanohi-veyana-vihana-uvaoga-joga-imdiya-kasaya, viviha ya jivajoni vikkhambhu-sseha-pariraya-ppamanam vidhivisesa ya mamdaradinam mahidharanam kulagara-titthagara-ganaharanam samatta-bharahahivana chakkinam cheva chakkaharahalaharana ya vasana ya niggama ya samae. Ee anne ya evamadittha vittharenam attha samasijjamti. Samavayassa nam paritta vayana samkhejja anuogadara samkhejjao padivattio samkhejja vedha samkhejja siloga samkhejjao nijjuttio samkhejjao samgahanio. Se nam amgatthayae chautthe amge ege ajjhayane ege suyakkhamdhe ege uddesanakale ege samuddesanakale ege choyale padasayasahasse padaggenam, samkhejjani akkharani anamta gama anamta pajjava paritta tasa anamta thavara sasaya kada nibaddha nikaiya jinapannatta bhava aghavijjamti pannavijjamti paruvijjamti damsijjamti nidamsijjamti uvadamsijjamti. Se evam aya evam naya evam vinnaya evam charana-karana-paruvanaya aghavijjati panna-vijjati paruvijjati damsijjati nidamsijjati uvadamsijjati. Settam samavae.
Sutra Meaning Transliteration : Samavayanga kya hai\? Isamem kya varnana hai\? Samavayanga mem svasamaya suchita kiye jate haim, parasamaya suchita kiye jate haim aura svasamaya – parasamaya suchita kiye jate haim. Jiva suchita kiye jate haim, ajiva suchita kiye jate haim aura jiva – ajiva suchita kiye jate haim. Loka suchita kiya jata hai, aloka suchita kiya jata hai aura loka – aloka suchita kiya jata hai. Samavayanga ke dvara eka, do, tina ko adi lekara eka – eka sthana ki parivriddhi karate hue shata, sahastra aura kotakoti taka ke kitane hi padarthom ka aura dvadashamga ganipitaka ke pallavagrom (paryayom ke pramana) ka kathana kiya jata hai. Sau taka ke sthanom ka, tatha baraha amgarupa mem vistara ko prapta, jagata ke jivom ke hitakaraka bhagavana shrutajnyana ka samkshepa se samavatara kiya jata hai. Isa samavayanga mem nana prakara ke bheda – prabheda vale jiva aura ajiva padartha varnita haim. Tatha vistara se anya bhi bahuta prakara ke vishesha tattvom ka, naraka, tiryamcha, manushya aura deva ganom ke ahara, uchchhvasa, leshya, avasa – samkhya, unake ayama – vishkambha ka pramana, upapata (janma), chyavana (marana), avagahana, upadhi, vedana, vidhana (bheda), upayoga, yoga (indriya), kashaya, nana prakara ki jiva – yoniyam, parvata – kuta adi ke vishkambha (chaurai), utsedha (umchai), pariraya (paridhi) ke pramana, mandara adi mahidharom (parvatom) ke vidhi (bheda) vishesha, kulakarom, tirthamkarom, ganadharom, samasta bharatakshetra ke svami chakravartiyom ka, chakradhara vasudevom aura haladharom (baladevom) ka, kshetrom ka, nirgamom ko arthat purva – purva kshetrom se uttara ke (age ke) kshetrom ke adhika vistara ka, tatha isi prakara ke anya bhi padarthom ka isa samavayanga mem vistara se varnana kiya gaya hai. Samavayanga ki vachanaem parita haim, anuyogadvara samkhyata haim, pratipattiyam samkhyata haim, verha samkhyata haim, shloka samkhyata haim aura niryuktiyam samkhyata haim. Amga ki apeksha yaha chautha amga hai, isamem eka adhyayana hai, eka shrutaskandha hai, eka uddeshana kala hai, (eka samuddeshana – kala hai), pada – ganana ki apeksha isake eka lakha chavalisa hajara pada haim. Isamem samkhyata akshara haim, ananta gama (jnyana – prakara) haim, ananta paryaya haim, parita trasa, ananta sthavara tatha shashvata, krita (anitya), nibaddha, nikachita jina – prajnyapta bhava isa amga mem kahe jate haim, prajnyapita kiye jate haim, prarupita kiye jate haim, nidarshita kiye jate haim aura upadarshita kiye jate haim. Isa amga ke dvara atma jnyata hota hai, vijnyata hota hai. Isa prakara charana aura karana ki prarupana ke dvara vastu ke svarupa ka kathana, prajnyapana, prarupana, nidarshana aura upadarshana kiya jata hai. Yaha chotha samavayanga hai.