Sutra Navigation: Sthanang ( स्थानांग सूत्र )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1002430
Scripture Name( English ): Sthanang Translated Scripture Name : स्थानांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

स्थान-५

Translated Chapter :

स्थान-५

Section : उद्देशक-१ Translated Section : उद्देशक-१
Sutra Number : 430 Category : Ang-03
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं पुरिम-पच्छिमगाणं जिणाणं दुग्गमं भवति, तं जहा– दुआइक्खं, दुव्विभज्जं, दुपस्सं, दुतितिक्खं, दुरणुचरं। पंचहिं ठाणेहिं मज्झिमगाणं जिणाणं सुग्गमं भवति, तं जहा–सुआइक्खं, सुविभज्जं, सुपस्सं, सुतितिक्खं, सुरनुचरं। पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणंनिच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चमब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा–खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, लाघवे। पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणंनिच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा–सच्चे, संजमे, तवे, चियाए, बंभचेरवासे। पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणं निच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तित्ताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा–उक्खित्तचरए, निक्खित्तचरए, अंतचरए, पंतचरए, लूहचरए। पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणंनिच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा–अन्नातचरए, अन्नइलायचरए, मोनचरए, संसट्ठकप्पिए, तज्जातसंसट्ठकप्पिए। पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणंनिच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा–उवनिहिए, सुद्धेसणिए, संखादत्तिए, दिट्ठलाभिए, पुट्ठलाभिए। पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणं निच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा– आयंबिलिए, निव्विइए, पुरिमड्ढिए, परिमितपिंडीवातिए, भिन्नपिंडवातिए। पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणं निच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा–अरसाहारे, विरसाहारे, अंताहारे, पंताहारे, लुहाहारे।
Sutra Meaning : पाँच कारणों से प्रथम और अन्तिम जिन का उपदेश उनके शिष्यों को उन्हें समझने में कठिनाई होती है। दुराख्येय – आयास साध्य व्याख्या युक्त। दुर्विभजन – विभाग करने में कष्ट होता है। दुर्दर्श – कठिनाई से समझ में आता है। दुःसह – परीषह सहन करने में कठिनाई होती है। दुरनुचर – जिनाज्ञानुसार आचरण करने में कठिनाई होती है। पाँच कारणों से मध्य के २२ जिन का उपदेश उनके शिष्यों को सुगम होता है। यथा – सुआख्येय – व्याख्या सरलतापूर्वक करते हैं। सुविभाज्य – विभाग करने में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता। सुदर्श – सरलतापूर्वक समझ लेते हैं। सुराह – शांतिपूर्वक परीषह सहन करते हैं। सुचर – प्रसन्नतापूर्वक जिनाज्ञानुसार आचरण करते हैं। भगवान महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच सद्‌गुण सदा प्रशस्त एवं आचरण योग्य कहे हैं। यथा – क्षमा, निर्लोभता, सरलता, मृदुता, लघुता। भगवान महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच सद्‌गुण सदा प्रशस्त एवं आचरण योग्य कहे हैं। यथा – १. सत्य, २. संयम, ३. तप, ४. त्याग, ५. ब्रह्मचर्य। भगवान महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच अभिग्रह सदा प्रशस्त एवं आचरण योग्य कहे हैं। यथा – उक्षिप्तचारी – ‘यदि गृहस्थ राँधने के पात्र में से जीमने के पात्र में अपने खाने के लिए आहार ले और उस आहार में से दे तो लेउं’। निक्षिप्तचारी – ‘रांधने के पात्र में से नीकाला हुआ आहार यदि गृहस्थ दे तो लेउं’। अंतचारी – भोजन करने के पश्चात्‌ बढ़ा हुआ आहार लेने वाला मुनि। प्रान्तचारी – तुच्छ आहार लेने वाला रूक्षचारी – लूखा आहार लेने का अभिग्रह करने वाला मुनि। भगवान महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच अभिग्रह सदा प्रशस्त एवं आचरण योग्य कहे हैं। यथा – अज्ञातचारी – अपनी जाति – कुल आदि का परीचय दिये बिना आहार लेना। अन्य ग्लानचारी – दूसरे रोगी के लिए भिक्षा लाने वाला मुनि। मौनचारी – मौनव्रतधारी मुनि। संसृष्टकल्पिक – लेप वाले हाथ से कल्पनीय आहार दे तो लेना। तज्जात संतुष्ट कल्पिक – प्रासुक पदार्थ के लेप वाले हाथ से आहार दे तो लेऊं। ऐसे अभिग्रह वाल मुनि। भगवान महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच अभिग्रह प्रशस्त एवं सदा आचरण के योग्य कहे हैं। यथा – औपनिधिक – अन्य स्थान से लाया हुआ आहार लेने वाला मुनि। शुद्धैषणिक – निर्दोष आहार की गवेषणा करने वाला मुनि। संख्यादत्तिक – आज इतनी दत्ति ही आहार लेऊंगा। दृष्टलाभिक – देखी हुई वस्तु लेने के संकल्प वाला मुनि। पृष्ठलाभिक – आपको आहार दूँ ? ऐसा पूछकर आहार दे तो लेऊं ऐसी प्रतिज्ञा वाला मुनि। महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच अभिग्रह प्रशस्त एवं सदा आचरण करने योग्य कहे हैं। यथा – आचाम्लिक – आयंबिल करने वाला मुनि। निर्विकृतिक – घी आदि की विकृति को न लेने वाला मुनि। पुरिमार्धक – दिन के पूर्वार्ध तक प्रत्याख्यान करनेवाला मुनि। परिमितपिण्डपातिक – परिमित आहार लेने वाला मुनि। भिन्न पिण्डपातिक – अखण्ड नहीं किन्तु टुकड़े – टुकड़े किया हुआ आहार लेने वाला मुनि। महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच अभिग्रह प्रशस्त एवं सदा आचरण योग्य कहे हैं। यथा – अरसाहारी, विरसाहारी, अन्ताहारि, प्रान्ताहारी, रुक्षाहारी। महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच अभिग्रह प्रशस्त एवं सदा आचरण योग्य कहे हैं। यथा – अरसजीवी विरसजीवी, अंतजीवी, प्रान्तजीवी, रुक्षजीवी। महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच अभिग्रह प्रशस्त एवं सदा आचरण योग्य कहे हैं। यथा – स्थानाति – पद – कायोत्सर्ग करने वाला मुनि। उकडु आसन बैठनेवाला मुनि। प्रतिमास्थायी – ‘एक रात्रिकी’ आदि प्रतिमाओं को धारण करने वाला मुनि। वीरासनिक – वीरासन से बैठने वाला मुनि। नैषधिक – पालथी लगाकर बैठनेवाला मुनि। महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच अभिग्रह सदा प्रशस्त एवं आचरण योग्य कहे हैं। यथा – दण्डाय – तिक – सीधे पैर कर सोने वाला मुनि। लगडशायी – आँके बाँके पैर व कमर कर सोने वाला मुनि। आतापक – शीत या ग्रीष्म की आतापना लेने वाला मुनि। अपावृतक – वस्त्र रहित रहने वाला मुनि। अकण्डूयक – खाज न खुजाने वाला मुनि।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] pamchahim thanehim purima-pachchhimaganam jinanam duggamam bhavati, tam jaha– duaikkham, duvvibhajjam, dupassam, dutitikkham, duranucharam. Pamchahim thanehim majjhimaganam jinanam suggamam bhavati, tam jaha–suaikkham, suvibhajjam, supassam, sutitikkham, suranucharam. Pamcha thanaim samanenam bhagavata mahavirenam samananam niggamthanamnichcham vannitaim nichcham kittitaim nichcham buiyaim nichcham pasatthaim nichchamabbhanunnataim bhavamti, tam jaha–khamti, mutti, ajjave, maddave, laghave. Pamcha thanaim samanenam bhagavata mahavirenam samananam niggamthanamnichcham vannitaim nichcham kittitaim nichcham buiyaim nichcham pasatthaim nichcham abbhanunnataim bhavamti, tam jaha–sachche, samjame, tave, chiyae, bambhacheravase. Pamcha thanaim samanenam bhagavata mahavirenam samananam niggamthanam nichcham vannitaim nichcham kittittaim nichcham buiyaim nichcham pasatthaim nichcham abbhanunnataim bhavamti, tam jaha–ukkhittacharae, nikkhittacharae, amtacharae, pamtacharae, luhacharae. Pamcha thanaim samanenam bhagavata mahavirenam samananam niggamthanamnichcham vannitaim nichcham kittitaim nichcham buiyaim nichcham pasatthaim nichcham abbhanunnataim bhavamti, tam jaha–annatacharae, annailayacharae, monacharae, samsatthakappie, tajjatasamsatthakappie. Pamcha thanaim samanenam bhagavata mahavirenam samananam niggamthanamnichcham vannitaim nichcham kittitaim nichcham buiyaim nichcham pasatthaim nichcham abbhanunnataim bhavamti, tam jaha–uvanihie, suddhesanie, samkhadattie, ditthalabhie, putthalabhie. Pamcha thanaim samanenam bhagavata mahavirenam samananam niggamthanam nichcham vannitaim nichcham kittitaim nichcham buiyaim nichcham pasatthaim nichcham abbhanunnataim bhavamti, tam jaha– ayambilie, nivviie, purimaddhie, parimitapimdivatie, bhinnapimdavatie. Pamcha thanaim samanenam bhagavata mahavirenam samananam niggamthanam nichcham vannitaim nichcham kittitaim nichcham pasatthaim nichcham abbhanunnataim bhavamti, tam jaha–arasahare, virasahare, amtahare, pamtahare, luhahare.
Sutra Meaning Transliteration : Pamcha karanom se prathama aura antima jina ka upadesha unake shishyom ko unhem samajhane mem kathinai hoti hai. Durakhyeya – ayasa sadhya vyakhya yukta. Durvibhajana – vibhaga karane mem kashta hota hai. Durdarsha – kathinai se samajha mem ata hai. Duhsaha – parishaha sahana karane mem kathinai hoti hai. Duranuchara – jinajnyanusara acharana karane mem kathinai hoti hai. Pamcha karanom se madhya ke 22 jina ka upadesha unake shishyom ko sugama hota hai. Yatha – suakhyeya – vyakhya saralatapurvaka karate haim. Suvibhajya – vibhaga karane mem kisi prakara ka kashta nahim hota. Sudarsha – saralatapurvaka samajha lete haim. Suraha – shamtipurvaka parishaha sahana karate haim. Suchara – prasannatapurvaka jinajnyanusara acharana karate haim. Bhagavana mahavira ne shramana nirgranthom ke lie pamcha sadguna sada prashasta evam acharana yogya kahe haim. Yatha – kshama, nirlobhata, saralata, mriduta, laghuta. Bhagavana mahavira ne shramana nirgranthom ke lie pamcha sadguna sada prashasta evam acharana yogya kahe haim. Yatha – 1. Satya, 2. Samyama, 3. Tapa, 4. Tyaga, 5. Brahmacharya. Bhagavana mahavira ne shramana nirgranthom ke lie pamcha abhigraha sada prashasta evam acharana yogya kahe haim. Yatha – ukshiptachari – ‘yadi grihastha ramdhane ke patra mem se jimane ke patra mem apane khane ke lie ahara le aura usa ahara mem se de to leum’. Nikshiptachari – ‘ramdhane ke patra mem se nikala hua ahara yadi grihastha de to leum’. Amtachari – bhojana karane ke pashchat barha hua ahara lene vala muni. Prantachari – tuchchha ahara lene vala rukshachari – lukha ahara lene ka abhigraha karane vala muni. Bhagavana mahavira ne shramana nirgranthom ke lie pamcha abhigraha sada prashasta evam acharana yogya kahe haim. Yatha – ajnyatachari – apani jati – kula adi ka parichaya diye bina ahara lena. Anya glanachari – dusare rogi ke lie bhiksha lane vala muni. Maunachari – maunavratadhari muni. Samsrishtakalpika – lepa vale hatha se kalpaniya ahara de to lena. Tajjata samtushta kalpika – prasuka padartha ke lepa vale hatha se ahara de to leum. Aise abhigraha vala muni. Bhagavana mahavira ne shramana nirgranthom ke lie pamcha abhigraha prashasta evam sada acharana ke yogya kahe haim. Yatha – aupanidhika – anya sthana se laya hua ahara lene vala muni. Shuddhaishanika – nirdosha ahara ki gaveshana karane vala muni. Samkhyadattika – aja itani datti hi ahara leumga. Drishtalabhika – dekhi hui vastu lene ke samkalpa vala muni. Prishthalabhika – apako ahara dum\? Aisa puchhakara ahara de to leum aisi pratijnya vala muni. Mahavira ne shramana nirgranthom ke lie pamcha abhigraha prashasta evam sada acharana karane yogya kahe haim. Yatha – achamlika – ayambila karane vala muni. Nirvikritika – ghi adi ki vikriti ko na lene vala muni. Purimardhaka – dina ke purvardha taka pratyakhyana karanevala muni. Parimitapindapatika – parimita ahara lene vala muni. Bhinna pindapatika – akhanda nahim kintu tukare – tukare kiya hua ahara lene vala muni. Mahavira ne shramana nirgranthom ke lie pamcha abhigraha prashasta evam sada acharana yogya kahe haim. Yatha – arasahari, virasahari, antahari, prantahari, rukshahari. Mahavira ne shramana nirgranthom ke lie pamcha abhigraha prashasta evam sada acharana yogya kahe haim. Yatha – arasajivi virasajivi, amtajivi, prantajivi, rukshajivi. Mahavira ne shramana nirgranthom ke lie pamcha abhigraha prashasta evam sada acharana yogya kahe haim. Yatha – sthanati – pada – kayotsarga karane vala muni. Ukadu asana baithanevala muni. Pratimasthayi – ‘eka ratriki’ adi pratimaom ko dharana karane vala muni. Virasanika – virasana se baithane vala muni. Naishadhika – palathi lagakara baithanevala muni. Mahavira ne shramana nirgranthom ke lie pamcha abhigraha sada prashasta evam acharana yogya kahe haim. Yatha – dandaya – tika – sidhe paira kara sone vala muni. Lagadashayi – amke bamke paira va kamara kara sone vala muni. Atapaka – shita ya grishma ki atapana lene vala muni. Apavritaka – vastra rahita rahane vala muni. Akanduyaka – khaja na khujane vala muni.